यहोवा के वचन पर भरोसा रखिए
“मेरा भरोसा, तेरे वचन पर है।”—भजन 119:42.
1. भजन 119 को शायद किसने लिखा होगा, और उसके नज़रिए के बारे में आप क्या कह सकते हैं?
भजन 119 का रचयिता, यहोवा के वचन को दिलो-जान से प्यार करता था। वह शायद यहूदा का राजकुमार हिजकिय्याह था। ईश्वर-प्रेरणा से लिखे इस भजन में जो भावनाएँ ज़ाहिर की गयी हैं, वे हिजकिय्याह के नज़रिए से मेल खाती हैं। उसके बारे में बताया गया है कि वह यहूदा पर राज करते वक्त “यहोवा से लिपटा रहा।” (2 राजा 18:3-7) एक बात बिलकुल पक्की है: इस भजन के रचियता को अपनी आध्यात्मिक ज़रूरतों का पूरा एहसास था।—मत्ती 5:3, NW.
2. भजन 119 का विषय क्या है, और इस भजन की रचना किस तरीके से की गयी है?
2 भजन 119 का एक खास मुद्दा है, परमेश्वर के वचन या संदेश का मोल।a इसके रचियता ने इसकी 176 आयतें इब्रानी वर्णमाला के अक्षरों के क्रम में लिखी हैं। शायद इसलिए कि इसे आसानी से याद रखा जा सके। मूल इब्रानी में, इस भजन के 22 छंदों में से हर छंद में 8 पंक्तियाँ हैं, जो एक ही अक्षर से शुरू होती हैं। इस भजन में परमेश्वर के वचन, उसकी व्यवस्था, चितौनियों, उसके मार्गों, उपदेशों, उसकी विधियों, आज्ञाओं और धर्ममय नियमों का ज़िक्र है। इस लेख और अगले लेख में, बाइबल के इब्रानी पाठ के एक सही अनुवाद के मुताबिक भजन 119 पर चर्चा की जाएगी। बीते ज़माने और आज के यहोवा के सेवकों के अनुभवों पर मनन करने से, ईश्वर-प्रेरणा से लिखे इस भजन के बारे में हमारी समझ बढ़ेगी और परमेश्वर के लिखित वचन, बाइबल के लिए हमारी कदरदानी भी गहरी होगी।
परमेश्वर के वचन पर चलो और खुश रहो
3. खरे होने का मतलब समझाइए और इसकी एक मिसाल दीजिए।
3 सच्ची खुशी, परमेश्वर की व्यवस्था पर हमारे चलने से मिलती है। (भजन 119:1-8) अगर हम ऐसा करेंगे तो यहोवा की नज़रों में हम “चाल के खरे” ठहरेंगे। (भजन 119:1) खरे होने का मतलब यह नहीं कि हमें सिद्ध होना है, बल्कि इससे यह ज़ाहिर होना चाहिए कि हम यहोवा परमेश्वर की इच्छा के मुताबिक काम करने के लिए अपना भरसक कर रहे हैं। नूह “धर्मी पुरुष और अपने समय के लोगों में खरा था” और वह “परमेश्वर ही के साथ साथ चलता रहा।” यह वफादार कुलपिता और उसका परिवार, जलप्रलय से इसलिए ज़िंदा बचा क्योंकि उसने यहोवा के बताए तरीके से ज़िंदगी बितायी थी। (उत्पत्ति 6:9; 1 पतरस 3:20) उसी तरह, इस संसार के अंत से हमारा बचना इस बात पर निर्भर करता है कि हम ‘परमेश्वर के उपदेशों को यत्न से मानें’ और इस तरह उसकी मरज़ी पूरी करें।—भजन 119:4.
4. हमारी खुशी और कामयाबी किस बात पर टिकी है?
4 अगर हम ‘सीधे मन से यहोवा का धन्यवाद करें और उसकी विधियों को मानते रहें,’ तो वह हमें कभी नहीं छोड़ेगा। (भजन 119:7, 8) परमेश्वर ने इस्राएल के अगुवे यहोशू को नहीं छोड़ा था, क्योंकि यहोशू ‘व्यवस्था की पुस्तक में दिन रात ध्यान दिए रहा कि जो कुछ उस में लिखा है उसके अनुसार कर सके।’ इस सलाह पर अमल करने से वह एक कामयाब अगुवा बना और उसने बुद्धिमानी के काम किए। (यहोशू 1:8) अपनी ज़िंदगी के आखिरी दिनों में भी यहोशू, परमेश्वर की स्तुति करता रहा और इस्राएलियों को यह बात याद दिला सका: “तुम सब अपने अपने हृदय और मन में जानते हो, कि जितनी भलाई की बातें हमारे परमेश्वर यहोवा ने हमारे विषय में कहीं उन में से एक भी बिना पूरी हुए नहीं रही।” (यहोशू 23:14) यहोशू और भजन 119 के रचयिता की तरह हम यहोवा की स्तुति करने और उस पर भरोसा रखने से खुशी और कामयाबी पा सकते हैं।
यहोवा का वचन हमें शुद्ध बनाए रखता है
5. (क) समझाइए कि आध्यात्मिक मायने में कैसे शुद्ध रहा जा सकता है। (ख) अगर कोई जवान गंभीर पाप कर बैठे, तो उसके लिए क्या मदद हाज़िर है?
5 अगर हम परमेश्वर के वचन के मुताबिक सावधानी बरतें, तो हम आध्यात्मिक मायने में शुद्ध रह सकेंगे। (भजन 119:9-16) ऐसा तब भी मुमकिन है जब हमारे माता-पिता हमारे लिए अच्छी मिसाल नहीं रखते। हालाँकि हिजकिय्याह का पिता मूर्तिपूजक था, फिर भी हिजकिय्याह ने ‘अपनी चाल शुद्ध रखी।’ इसका मतलब है कि उसने खुद को मूर्ति-पूजा के कामों से दूर रखा होगा। आज अगर परमेश्वर की सेवा करनेवाला कोई जवान गंभीर पाप कर बैठे तब क्या? पश्चाताप करके, प्रार्थना के ज़रिए, माता-पिता और मसीही प्राचीनों की मदद लेकर वह जवान मसीही, हिजकिय्याह की तरह बन सकता है और ‘अपनी चाल शुद्ध रख सकता और सावधान रह सकता है।’—याकूब 5:13-15.
6. किन स्त्रियों ने ‘अपनी चाल शुद्ध रखी और परमेश्वर के वचन के अनुसार सावधान रहीं’?
6 राहाब और रूत, दोनों स्त्रियाँ भजन 119 की रचना से काफी समय पहले जी चुकी थीं। मगर उन्होंने भी ‘अपनी चाल शुद्ध रखी।’ राहाब एक कनानी वेश्या थी, मगर बाद में वह यहोवा की एक उपासक बनी और अपने मज़बूत विश्वास के लिए मशहूर हुई। (इब्रानियों 11:30, 31) मोआबी रूत ने अपने देवी-देवताओं को छोड़ दिया, यहोवा की सेवा की और इस्राएल को दी गयी परमेश्वर की व्यवस्था को माना। (रूत 1:14-17; 4:9-13) ये गैर-इस्राएली स्त्रियाँ ‘परमेश्वर के वचन के अनुसार सावधान रहीं’ जिससे उन्हें यीशु मसीह की पुरखिन बनने का अनोखा सम्मान मिला।—मत्ती 1:1, 4-6.
7. दानिय्येल और बाकी तीन इब्रानी जवानों ने आध्यात्मिक शुद्धता कायम रखने में कैसे एक बढ़िया मिसाल कायम की?
7 “मनुष्य के मन में बचपन से जो कुछ उत्पन्न होता है सो बुरा ही होता है।” फिर भी, जवान लोग शैतान के कब्ज़े में पड़े इस भ्रष्ट संसार में जीते हुए भी शुद्ध मार्ग पर चल सकते हैं। (उत्पत्ति 8:21; 1 यूहन्ना 5:19) दानिय्येल और बाकी तीन इब्रानी जवानों का उदाहरण लीजिए। जब वे बाबुल में बंधुए थे, तब वे ‘परमेश्वर के वचन के अनुसार सावधान रहे।’ मसलन, उन्होंने ठान लिया था कि वे ‘राजा का भोजन खाकर अपवित्र न होंगे।’ (दानिय्येल 1:6-10) बाबुली लोग अशुद्ध जानवरों का मांस खाते थे, जिन्हें खाने से मूसा की व्यवस्था में मना किया गया था। (लैव्यव्यवस्था 11:1-31; 20:24-26) वे कभी-कभी जानवरों को मारने के बाद उनका खून नहीं बहाते थे, इसलिए ऐसे जानवरों को खाना, खून के बारे में परमेश्वर के नियम के खिलाफ था। (उत्पत्ति 9:3, 4) इसलिए ताज्जुब नहीं कि क्यों उन चारों इब्रानी जवानों ने शाही खाना खाने से इनकार कर दिया! परमेश्वर के मार्ग पर चलनेवाले उन जवानों ने आध्यात्मिक शुद्धता बरकरार रखी और इस तरह एक बढ़िया मिसाल कायम की।
परमेश्वर का वचन, सच्चे बने रहने में मददगार
8. परमेश्वर की व्यवस्था को समझने और लागू करने के लिए हमारे अंदर कैसा नज़रिया और ज्ञान होना ज़रूरी है?
8 यहोवा की तरफ सच्चे बने रहने में मदद देनेवाली एक ज़रूरी बात है, उसके वचन से गहरा लगाव होना। (भजन 119:17-24) अगर हम ईश्वर-प्रेरणा से लिखनेवाले भजनहार की तरह होंगे, तो हममें परमेश्वर की व्यवस्था की “अद्भुत बातें” समझने की गहरी ललक होगी। हम हमेशा ‘यहोवा के नियमों की अभिलाषा’ करेंगे और ‘उसकी चितौनियों के लिए गहरा लगाव’ (NW) दिखाएँगे। (भजन 119:18, 20, 24) भले ही हम कुछ समय से यहोवा के समर्पित सेवक हैं, फिर भी क्या हम “निर्मल आत्मिक दूध की लालसा” रखते हैं? (1 पतरस 2:1, 2) हमें बाइबल की बुनियादी शिक्षाओं को समझने की ज़रूरत है ताकि हम परमेश्वर की व्यवस्था को ठीक-ठीक समझ सकें और उसे लागू कर सकें।
9. जब परमेश्वर के नियम और इंसान की माँगों के बीच टकराव हो तो हमें क्या करना चाहिए?
9 हो सकता है हमें परमेश्वर की चितौनियों से प्यार हो, लेकिन अगर दुनिया के “हाकिम” किसी वजह से हमारे खिलाफ बात करें, तब क्या? (भजन 119:23, 24) आज बड़े-बड़े अधिकारी अकसर परमेश्वर के नियमों से ज़्यादा इंसानों के कायदे-कानूनों को अहमियत देने के लिए हम पर दबाव डालते हैं। जब इंसान की माँगों और परमेश्वर की मरज़ी पूरी करने के बीच टकराव हो, तो हमें क्या करना चाहिए? परमेश्वर के वचन के लिए हमारा प्यार हमें यहोवा की तरफ सच्चे बने रहने में मदद देगा। यीशु के जिन प्रेरितों पर ज़ुल्म ढाए गए थे, उनकी तरह हम भी कहेंगे: “मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना ही कर्तव्य कर्म है।”—प्रेरितों 5:29.
10, 11. उदाहरण देकर समझाइए कि हम ज़िंदगी के सबसे मुश्किल हालात में भी यहोवा की तरफ कैसे अपनी खराई बनाए रख सकते हैं।
10 ज़िंदगी के मुश्किल-से-मुश्किल हालात में भी यहोवा की तरफ सच्चे बने रहना मुमकिन है। (भजन 119:25-32) अगर हम परमेश्वर की तरफ अपनी खराई बनाए रखने में कामयाब होना चाहते हैं, तो हमें सीखने के लिए हर पल तैयार होना चाहिए और उसके उपदेश के लिए सच्चे दिल से बिनती करनी चाहिए। साथ ही, हमें ‘सच्चाई के मार्ग’ पर चलने का चुनाव करना चाहिए।—भजन 119:26, 30.
11 हिजकिय्याह जिसने शायद भजन 119 लिखा, उसने ‘सच्चाई के मार्ग’ पर चलने का चुनाव किया था। हालाँकि वह झूठे उपासकों से घिरा हुआ था और शाही दरबार के सदस्यों ने शायद उसकी खिल्ली उड़ायी होगी, फिर भी वह सच्चाई की राह से नहीं हटा। ऐसे हालात की वजह से ज़रूर ‘उसका जीव उदासी के मारे गल चला’ होगा। (भजन 119:28) मगर हिजकिय्याह ने परमेश्वर पर भरोसा रखा, वह एक भला राजा था और उसने वही काम किया जो “यहोवा की दृष्टि में ठीक” था। (2 राजा 18:1-5) परमेश्वर पर भरोसा रखने से हम भी परीक्षाओं में धीरज धर सकते हैं और परमेश्वर की तरफ अपनी खराई बनाए रख सकते हैं।—याकूब 1:5-8.
यहोवा का वचन हिम्मत देता है
12. हम भजन 119:36, 37 को निजी तौर पर कैसे लागू कर सकते हैं?
12 परमेश्वर के वचन के निर्देशन पर चलने से हमें वह हिम्मत मिलती है जो ज़िंदगी की परीक्षाओं को सहने के लिए ज़रूरी है। (भजन 119:33-40) हम नम्रता से यहोवा का उपदेश पाने की कोशिश करते हैं ताकि हम “पूर्ण मन से” उसकी व्यवस्था मान सकें। (भजन 119:33, 34) भजनहार की तरह, हम परमेश्वर से यह गुज़ारिश करते हैं: “मेरे मन को लोभ [“अनुचित लाभ,” NHT] की ओर नहीं, अपनी चितौनियों ही की ओर फेर दे।” (भजन 119:36) प्रेरित पौलुस की तरह, ‘हम सब बातों में ईमानदारी दिखाते’ हैं। (इब्रानियों 13:18, NHT) अगर नौकरी की जगह पर हमारा मालिक हमसे कुछ बेईमानी करने के लिए कहता है, तो हम परमेश्वर की हिदायतों को सख्ती से मानने के लिए हिम्मत जुटाते हैं, और ऐसे में यहोवा हमेशा हमें आशीष देता है। दरअसल, वह हमें सभी बुरी इच्छाओं पर काबू रखने में मदद देता है। इसलिए आइए हम यह प्रार्थना करें: “मेरी आंखों को व्यर्थ वस्तुओं की ओर से फेर दे।” (भजन 119:37) जिन बेकार की चीज़ों से परमेश्वर को नफरत है, उनके लिए हम दिल में कभी चाहत पैदा न करें। (भजन 97:10) प्रार्थना करने से हमें जिन बहुत-सी बुरी बातों से दूर रहने में मदद मिलेगी उनमें से दो हैं, पोर्नोग्राफी और प्रेतात्मवाद के काम।—1 कुरिन्थियों 6:9,10; प्रकाशितवाक्य 21:8.
13. यीशु के जिन चेलों पर ज़ुल्म ढाए गए थे, उन्हें निडरता से गवाही देने की हिम्मत कैसे मिली?
13 परमेश्वर के वचन का सही ज्ञान हमें निडरता से गवाही देने के काबिल बनाता है। (भजन 119:41-48) “अपनी निंदा करनेवाले को उत्तर” देने के लिए हमें वाकई हिम्मत की ज़रूरत है। (भजन 119:42, NHT) कभी-कभी, हम पर यीशु के चेलों की तरह ज़ुल्म ढाए जा सकते हैं जिन्होंने यहोवा से यह प्रार्थना की थी: “हे प्रभु . . . अपने दासों को यह बरदान दे, कि तेरा वचन बड़े हियाव से सुनाएं।” नतीजा क्या हुआ? “वे सब पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गए, और परमेश्वर का वचन हियाव से सुनाते रहे।” उसी तरह पूरे जहान का मालिक और प्रभु हमें भी उसका वचन निडरता से सुनाने की हिम्मत देता है।—प्रेरितों 4:24-31.
14. पौलुस की तरह हिम्मत से गवाही देने के लिए क्या बात हमारी मदद करती है?
14 अगर हम “सत्य वचन” को दिल में संजोए रखें और ‘परमेश्वर की व्यवस्था पर लगातार चलते रहें,’ तो हम हिम्मत के साथ बेझिझक गवाही दे सकेंगे। (भजन 119:43, 44) परमेश्वर के लिखित वचन का मन लगाकर अध्ययन करने से हम ‘राजाओं के साम्हने उसकी चितौनियों की चर्चा’ करने के काबिल बनेंगे। (भजन 119:46) प्रार्थना और यहोवा की आत्मा हमें मुनासिब तरीके से सही बात बोलने में भी मदद देगी। (मत्ती 10:16-20; कुलुस्सियों 4:6) पौलुस ने बड़ी हिम्मत के साथ पहली सदी के शासकों को परमेश्वर की चितौनियों के बारे में बताया था। मसलन, उसने रोमी गवर्नर फेलिक्स को गवाही दी जिसने “उस विश्वास के विषय में जो मसीह यीशु पर है, उस से सुना।” (प्रेरितों 24:24, 25) पौलुस ने गवर्नर फेस्तुस और राजा अग्रिप्पा के सामने भी गवाही दी। (प्रेरितों 25:22–26:32) यहोवा की मदद से हम भी ऐसे दिलेर साक्षी बन सकते हैं जो कभी ‘सुसमाचार से नहीं लजाते।’—रोमियों 1:16.
परमेश्वर का वचन हमें सांत्वना देता है
15. जब दूसरे हमारी खिल्ली उड़ाते हैं, तब परमेश्वर के वचन से कैसे हमें सांत्वना मिल सकती है?
15 यहोवा का वचन ऐसी सांत्वना देता है जिस पर भरोसा किया जा सकता है। (भजन 119:49-56) हमारी ज़िंदगी में कभी ऐसा मुकाम भी आता है जब हमें खास तौर से सांत्वना की ज़रूरत होती है। हालाँकि हम यहोवा के साक्षियों के नाते निडरता से बात करते हैं, मगर ‘अभिमानी’ लोग जो परमेश्वर के खिलाफ जाने की गुस्ताखी करते हैं, वे कभी-कभी हमें ‘अत्यन्त ठट्ठे में उड़ाते हैं।’ (भजन 119:51) लेकिन प्रार्थना करने से शायद हमें परमेश्वर के वचन में दर्ज़ अच्छी बातें याद आएँ जिससे हम ‘शान्ति पाएं।’ (भजन 119:52) जब हम बिनती कर रहे होते हैं, तो हमें शायद बाइबल का ऐसा कोई नियम या सिद्धांत याद आ जाए जिससे हमें तनाव भरे माहौल में शांति और हिम्मत मिले।
16. परमेश्वर के सेवकों ने ज़ुल्मों के बावजूद क्या नहीं किया है?
16 जिन अभिमानियों ने भजनहार की खिल्ली उड़ाई थी, वे इस्राएली थे यानी परमेश्वर को समर्पित जाति के सदस्य। उनका ऐसा करना कितनी शर्मनाक बात थी! लेकिन हमें उनकी तरह नहीं बनना है बल्कि यह ठान लेना है कि हम कभी परमेश्वर की व्यवस्था से नहीं मुकरेंगे। (भजन 119:51) बीते सालों में, नात्ज़ियों के ज़ुल्मों और ऐसे ही दूसरे अत्याचार सहते वक्त, परमेश्वर के हज़ारों सेवकों ने उसके वचन के नियमों और सिद्धांतों से मुकरने से इनकार कर दिया। (यूहन्ना 15:18-21) इसके अलावा, यहोवा की आज्ञा मानना हमारे लिए कोई बोझ नहीं है, क्योंकि उसके कायदे-कानून हमारे लिए ऐसे मधुर गीत की तरह हैं जिनसे हमारे मन को चैन मिलता है।—भजन 119:54; 1 यूहन्ना 5:3.
यहोवा के वचन के लिए एहसानमंद रहिए
17. परमेश्वर के वचन के लिए कदरदानी हमें क्या करने को उकसाती है?
17 परमेश्वर के वचन के मुताबिक ज़िंदगी बिताने से हम उसके लिए अपनी कदर दिखाते हैं। (भजन 119:57-64) भजनहार ने ‘यहोवा के वचनों के अनुसार चलने का निश्चय किया’ था, और वह ‘परमेश्वर के धर्ममय नियमों के कारण आधी रात को भी उसका धन्यवाद करने को उठता था।’ अगर कभी रात को बीच में हमारी नींद खुल जाती है, तो प्रार्थना के ज़रिए परमेश्वर को अपनी कदरदानी ज़ाहिर करने का यह क्या ही बढ़िया मौका है! (भजन 119:57, 62) परमेश्वर के वचन के लिए गहरी कदर हमें उससे सीखने के लिए उकसाती है और हमें ‘यहोवा का भय माननेवालों का संगी’ बनाती है, यानी ऐसे लोगों का दोस्त जो परमेश्वर के लिए गहरी श्रद्धा और विस्मय की भावना रखते हैं। (भजन 119:63, 64) क्या ऐसे बढ़िया साथी हमें दुनिया में कहीं और मिल सकते हैं?
18. जब हम ‘दुष्टों की रस्सियों से बन्ध जाते हैं,’ तब यहोवा कैसे हमारी प्रार्थनाएँ सुनता है?
18 जब हम पूरे दिल से यहोवा से प्रार्थना करते हैं और नम्रता से उससे बिनती करते हैं कि वह हमें सिखाए तो हम एक तरह से ‘यहोवा को मना रहे’ होते हैं ताकि हम उसका अनुग्रह पा सकें। हमें खासकर ऐसे वक्त पर प्रार्थना करनी चाहिए जब हम ‘दुष्टों की रस्सियों से बन्ध जाते हैं।’ (भजन 119:58, 61) दुश्मन हमारे सामने रस्सियों की तरह जो रुकावटें पैदा करते हैं, उन्हें यहोवा काट सकता है ताकि हम राज्य का प्रचार और चेला बनाने का काम जारी रख सकें। (मत्ती 24:14; 28:19, 20) ऐसा उन देशों में कई बार देखा गया है जहाँ हमारे काम पर पाबंदी लगायी गयी है।
परमेश्वर के वचन पर विश्वास रखिए
19, 20. हमारे दुःख भले के लिए कैसे हो सकते हैं?
19 परमेश्वर और उसके वचन पर विश्वास हमें क्लेश सहने और लगातार उसकी मरज़ी पूरी करने में मदद देता है। (भजन 119:65-72) हालाँकि भजनहार के खिलाफ अभिमानियों ने ‘झूठी बातें गढ़ी थीं,’ फिर भी उसने अपने गीत में कहा: “मुझे जो दुःख हुआ वह मेरे लिये भला ही हुआ है।” (भजन 119:66, 69, 71) यहोवा के किसी सेवक के दुःख सहने से कैसे उसका भला हो सकता है?
20 दुःख झेलते वक्त हम बेशक यहोवा से गिड़गिड़ाकर बिनती करते हैं, जिससे हम उसके और भी करीब आते हैं। हम शायद परमेश्वर के लिखित वचन का अध्ययन करने में ज़्यादा वक्त बिताएँ और उसे लागू करने के लिए जी-तोड़ कोशिश करें। इससे हमारी ज़िंदगी खुशहाल होती है। लेकिन अगर हम क्लेश के वक्त ऐसा बर्ताव करें जिससे हमारे बुरे गुण ज़ाहिर हों, जैसे उतावलापन या घमंड, तब क्या? गिड़गिड़ाकर प्रार्थना करने और परमेश्वर के वचन और आत्मा की मदद लेने से हम ऐसी खामियों पर काबू पा सकेंगे और पहले से बढ़कर ‘नए मनुष्यत्व को पहिन’ सकेंगे। (कुलुस्सियों 3:9-14) इसके अलावा, मुश्किलों के दौर में हमारा विश्वास मज़बूत होता है। (1 पतरस 1:6, 7) पौलुस ने अपने क्लेश से फायदा पाया क्योंकि तकलीफों की वजह से ही उसने यहोवा पर पहले से ज़्यादा निर्भर रहना सीखा। (2 कुरिन्थियों 1:8-10) क्या हम भी तकलीफों को अपने ऊपर अच्छा असर डालने देते हैं?
हमेशा यहोवा पर भरोसा रखिए
21. जब परमेश्वर अंहकारी लोगों को लज्जित करता है, तो क्या होता है?
21 परमेश्वर का वचन हमें यहोवा पर भरोसा रखने की एक ठोस वजह देता है। (भजन 119:73-80) अगर हम वाकई अपने सिरजनहार पर भरोसा रखते हैं तो हमें कभी लज्जित नहीं होना पड़ेगा। लेकिन दूसरे जो करते हैं, उसकी वजह से शायद हमें दिलासे की ज़रूरत पड़े और हम यह प्रार्थना करना चाहें: “अहंकारी लज्जित हों।” (भजन 119:76-78, NHT) जब यहोवा ऐसे लोगों को लज्जित करता है, तो उनके दुष्ट कामों का पर्दाफाश होता है और यहोवा के पवित्र नाम की महिमा होती है। हम यह पक्का यकीन रख सकते हैं कि परमेश्वर के लोगों को सतानेवाले सही मायनों में कभी कामयाब नहीं होंगे। मसलन, यहोवा के साक्षियों का नामो-निशान मिटाने में उन्हें न तो कभी सफलता मिली है और न कभी मिलेगी, क्योंकि साक्षी पूरे दिल से यहोवा पर भरोसा रखते हैं।—नीतिवचन 3:5, 6.
22. किस मायने में भजनहार “धूएं में की कुप्पी के समान” था?
22 जब हम पर ज़ुल्म ढाए जाते हैं तब परमेश्वर का वचन, यहोवा पर हमारा भरोसा मज़बूत करता है। (भजन 119:81-88) अहंकारी लोग भजनहार को इतना सता रहे थे कि उसने खुद को “धूएं में की कुप्पी के समान” महसूस किया। (भजन 119:83, 86) बाइबल के ज़माने में जानवरों की खाल से बनायी जानेवाली कुप्पियों या मशकों में पानी, दाखमधु या दूसरे तरल पदार्थ भरे जाते थे। जब इन मशकों का इस्तेमाल नहीं किया जाता और उन्हें धूएँ से भरे किसी कमरे में आग के पास लटका दिया जाता, तो वे सिकुड़ जाती थीं। क्या तकलीफों या ज़ुल्मों की वजह से कभी आपने खुद को “धूएं में की कुप्पी के समान” महसूस किया है? अगर हाँ, तो यहोवा पर भरोसा रखिए और यह प्रार्थना कीजिए: “अपनी करुणा के अनुसार मुझ को जिला, तब मैं तेरी दी हुई चितौनी को मानूंगा।”—भजन 119:88.
23. भजन 119:1-88 पर चर्चा करके हमने क्या सीखा है, और आगे जब हम भजन 119:89-176 का अध्ययन करेंगे तो हम खुद से क्या पूछ सकते हैं?
23 भजन 119 की शुरू की आधी आयतों पर हमने जो चर्चा की वह दिखाती है कि यहोवा अपने सेवकों पर इसलिए निरंतर प्रेम-कृपा दिखाता है क्योंकि वे उसके वचन पर भरोसा रखते हैं और उसकी विधियों, चितौनियों, आज्ञाओं और नियमों से प्यार करते हैं। (भजन 119:16, 47, 64, 70, 77, 88) यहोवा को यह देखकर बहुत खुशी होती है कि उसकी भक्ति करनेवाले लोग उसके वचन के अनुसार सावधानी से जीवन जीते हैं। (भजन 119:9, 17, 41, 42) जब आप इस खूबसूरत भजन की बाकी आयतों का अध्ययन करेंगे तो आप खुद से यह पूछ सकते हैं: ‘क्या मैं वाकई यहोवा के वचन को अपने मार्ग के लिए उजियाला होने देता हूँ?’
[फुटनोट]
a इसका मतलब यहोवा का संदेश है, ना कि परमेश्वर के वचन बाइबल में दी गयी सारी जानकारी।
आप क्या जवाब देंगे?
• सच्ची खुशी किस बात पर निर्भर करती है?
• यहोवा का वचन हमें आध्यात्मिक तरीके से कैसे शुद्ध रखता है?
• परमेश्वर का वचन किन तरीकों से हमें हिम्मत और सांत्वना देता है?
• हमें यहोवा और उसके वचन पर विश्वास क्यों रखना चाहिए?
[पेज 11 पर तसवीर]
रूत, राहाब और बाबुल में बंदी बनाए गए इब्रानी जवान ‘परमेश्वर के वचन के अनुसार सावधान रहे’
[पेज 12 पर तसवीर]
पौलुस ने बड़ी हिम्मत के साथ ‘राजाओं के साम्हने परमेश्वर की चितौनियों की चर्चा की’