हमें “अद्भुत रीति से रचा गया” है
“मैं भयानक और अद्भुत रीति से रचा गया हूं।”—भजन 139:14.
1. समझ रखनेवाले बहुत-से लोग क्यों मानते हैं कि धरती की बेमिसाल रचनाओं को परमेश्वर ने बनाया है?
सारी कुदरत बेमिसाल रचनाओं से भरी हुई है। इन सबकी शुरूआत कैसे हुई? कुछ लोग मानते हैं कि इस सवाल का एक बुद्धिमान सिरजनहार के साथ कोई सरोकार नहीं। लेकिन दूसरे लोग कहते हैं कि सिरजनहार की मदद के बगैर कुदरत को समझ पाना मुश्किल है। वे मानते हैं कि धरती के जीव-जंतुओं की बनावट इतनी जटिल और हैरतअँगेज़ है, साथ ही उनकी इतनी सारी जातियाँ हैं कि उनका अपने आप वजूद में आना नामुमकिन है। बहुत-से लोगों को, यहाँ तक कि कुछ वैज्ञानिकों को भी ऐसे सबूत मिले हैं, जो दिखाते हैं कि पूरे विश्व को वाकई एक बुद्धिमान, शक्तिशाली और हमारा भला चाहनेवाले सिरजनहार ने बनाया है।a
2. किस बात ने दाऊद को यहोवा की महिमा करने के लिए उभारा?
2 प्राचीन इस्राएल के राजा, दाऊद को भी यकीन था कि इस शानदार सृष्टि का बनानेवाला परमेश्वर महिमा पाने का हकदार है। हालाँकि दाऊद आज के वैज्ञानिक युग से हज़ारों साल पहले जीया था, फिर भी उसे एहसास था कि वह परमेश्वर की सृष्टि के अजूबों से घिरा हुआ है। और जब उसने अपने शरीर की बनावट पर गौर किया, तो परमेश्वर की सृजने की शक्ति देखकर उसका दिल गहरे विस्मय से भर गया। इसलिए उसने लिखा: “मैं तेरा धन्यवाद करूंगा, इसलिये कि मैं भयानक और अद्भुत रीति से रचा गया हूं। तेरे काम तो आश्चर्य के हैं, और मैं इसे भली भांति जानता हूं।”—भजन 139:14.
3, 4. यहोवा की रचनाओं पर गहराई से मनन करना, हममें से हरेक के लिए क्यों ज़रूरी है?
3 दाऊद को इस बात का पक्का यकीन इसलिए था, क्योंकि वह यहोवा की रचनाओं पर गहराई से मनन करता था। आजकल स्कूल-कॉलेजों में और मीडिया के ज़रिए, इंसान की शुरूआत के बारे में बढ़-चढ़कर ऐसी शिक्षाएँ दी जाती हैं, जो परमेश्वर पर हमारे विश्वास को खत्म कर देती हैं। इसलिए दाऊद के जैसा मज़बूत विश्वास पैदा करने के लिए ज़रूरी है कि हम भी यहोवा की रचनाओं पर गहराई से मनन करें। विश्वास के, खासकर सिरजनहार के वजूद और उसकी भूमिका जैसे अहम विषयों के मामले में दूसरे जो सोचते हैं, उसका असर हमें खुद पर नहीं होने देना चाहिए।
4 इसके अलावा, यहोवा की रचनाओं पर मनन करने से उसके लिए हमारी कदर बढ़ती है और भविष्य के बारे में उसने जो वादे किए हैं, उन पर हमारा भरोसा भी बढ़ता है। इससे हम यहोवा को और भी करीबी से जानने और उसकी सेवा करने के लिए उकसाए जाते हैं। तो आइए देखें कि कैसे आधुनिक विज्ञान ने दाऊद की इस बात को पुख्ता किया है कि हम ‘अद्भुत रीति से रचे गए हैं।’
हमारा अद्भुत शारीरिक विकास
5, 6. (क) हम सबकी ज़िंदगी की शुरूआत कैसे हुई? (ख) हमारे गुर्दे क्या काम करते हैं?
5 “तू ने मेरे भीतरी अंगों [“गुर्दों,” NW] को बनाया है, तू ने मुझे माँ के गर्भ में रचा है।” (भजन 139:13, NHT) हम सबकी ज़िंदगी की शुरूआत हमारी माँ की कोख में सिर्फ एक कोशिका से हुई, जो इस नुक्ते (.) से भी छोटी थी। वह सूक्ष्म कोशिका इतनी जटिल थी कि उसे एक छोटा-सा कारखाना कहना गलत नहीं होगा! वह कोशिका तेज़ी से बढ़ती गयी। माँ की कोख में जब आपका दूसरा महीना पूरा हुआ, तो आपके शरीर के ज़रूरी अंग बनकर तैयार हो गए। उनमें आपके गुर्दे भी शामिल थे। जब आपका जन्म हुआ, तब आपके गुर्दे आपके खून को छानने के लिए तैयार थे। यानी तब से आपके गुर्दों ने खून से नुकसान पहुँचानेवाले पदार्थों और जो पानी शरीर के लिए ज़रूरी नहीं है, उसे अलग करने और ज़रूरी तत्त्वों को बचाए रखने का काम शुरू कर दिया। अगर आपके दोनों गुर्दे स्वस्थ हैं, तो वे हर 45 मिनट में खून में पाए जानेवाले करीब 5 लीटर पानी को छान सकते हैं!
6 यही नहीं, आपके गुर्दे खून में पाए जानेवाले खनिज और अम्ल को सही मात्रा में बनाए रखने, साथ ही ब्लड प्रेशर को काबू में रखने में भी मदद देते हैं। इसके अलावा, वे और भी कई ज़रूरी काम करते हैं। जैसे, विटामिन-डी को ऐसे पदार्थ में बदलना, जो आपकी हड्डियों की सही बढ़ोतरी के लिए ज़रूरी है, और एरिथ्रोपोइटिन नाम के हार्मोन तैयार करना, जो हड्डियों में लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन को बढ़ाता है। इसलिए इसमें कोई दो राय नहीं कि गुर्दों को “शरीर का महान रसायन-वैज्ञानिक” कहा जाता है!b
7, 8. (क) एक अजन्मे बच्चे के शुरूआती विकास के बारे में बताइए। (ख) किस मायने में गर्भ में बढ़ रहा बच्चा, “पृथ्वी के नीचे स्थानों में रचा जाता” है?
7 “जब मैं गुप्त में बनाया जाता, और पृथ्वी के नीचे स्थानों में रचा जाता था, तब मेरी हड्डियां तुझ से छिपी न थीं।” (भजन 139:15) हमारी सबसे पहली कोशिका विभाजित होकर दो नयी कोशिकाएँ बनीं। फिर ये कोशिकाएँ दो-से-चार, चार-से-आठ, इस तरह विभाजित होती गयीं। कुछ ही समय बाद, ये कोशिकाएँ अलग-अलग समूहों में बँटने लगीं। जैसे, तंत्रिका-कोशिकाएँ, मांसपेशी-कोशिकाएँ, त्वचा की कोशिकाएँ वगैरह। फिर, एक ही तरह की कोशिकाएँ मिलकर ऊतक बने और ये ऊतक मिलकर शरीर के अलग-अलग अंग बने। मिसाल के लिए, अपने कंकाल-तंत्र को ही लीजिए, जिसमें 206 हड्डियाँ पायी जाती हैं। जब आप अपने माँ के गर्भ में पड़े, तो उसके तीसरे हफ्ते में यह तंत्र बनना शुरू हो गया था। और जब आप सिर्फ सात हफ्तों के थे और आपके शरीर का आकार करीब एक इंच लंबा था, तब यह तंत्र पूरी तरह बनकर तैयार हो चुका था। लेकिन उस वक्त आपकी हड्डियाँ सख्त नहीं हुई थीं, बल्कि बहुत ही छोटी और नाज़ुक थीं।
8 यह हैरतअँगेज़ विकास आपकी माँ के कोख में हुआ था। क्योंकि इंसान इसमें झाँककर देख नहीं सकता, इसलिए यह ऐसा था मानो हम पृथ्वी के नीचे स्थानों में रचे गए हों। दरअसल, हमारा विकास कैसे होता है, इस बारे में इंसान सब कुछ पता नहीं लगा पाया है। मिसाल के लिए, किस बात ने आपके खास जीन्स को एक ऐसी प्रक्रिया शुरू करने के लिए उभारा जिससे कोशिकाएँ अलग-अलग समूहों में बँटकर शरीर के अंग बनें? हो सकता है, विज्ञान एक दिन इसका जवाब ढूँढ़ निकाले। मगर जैसे दाऊद ने आगे कहा, हमारा बनानेवाला यहोवा शुरू से ही इस बारे में सबकुछ जानता है।
9, 10. भ्रूण के बढ़ने की सारी जानकारी किस मायने में परमेश्वर की ‘पुस्तक में पहले से लिखी हुई है’?
9 “तेरी आंखों ने मेरे बेडौल तत्व [“भ्रूण,” NW] को देखा; और मेरे सब अंग जो दिन दिन बनते जाते थे वे रचे जाने से पहिले तेरी पुस्तक में लिखे हुए थे।” (भजन 139:16) आपकी सबसे पहली कोशिका में आपके शरीर की बनावट की पूरी योजना थी। इसी योजना के मुताबिक, पहले गर्भ में नौ महीने के दौरान और फिर जन्म से लेकर बड़े होने तक, यानी बीस से भी ज़्यादा सालों तक आपका विकास होता गया। इस पूरे समय के दौरान, आपका शरीर कई चरणों से गुज़रा और यह सब उस सबसे पहली कोशिका में दी जानकारी के मार्गदर्शन से हुआ।
10 दाऊद को न तो कोशिकाओं के बारे में कुछ पता था और ना ही जीन्स के बारे में। उसके ज़माने में तो माइक्रोस्कोप भी नहीं था। मगर फिर भी, उसने इस बात को सही-सही समझा कि उसके खुद के शरीर का जिस तरह विकास हुआ, वह पहले से बनायी योजना का एक सबूत है। दाऊद को शायद भ्रूण के बढ़ने के बारे में थोड़ी-बहुत मालूमात थी। इसलिए वह यह दलील दे सका कि भ्रूण के विकास का हर चरण, पहले से मौजूद रचना के मुताबिक, ठहराए गए समय पर पूरा होता होगा। उसने कविता की शैली में कहा कि यह रचना परमेश्वर की ‘पुस्तक में पहले से लिखी हुई है।’
11. हमें शारीरिक लक्षण कैसे मिले?
11 आज हर कोई जानता है कि जो गुण और लक्षण पीढ़ी-दर-पीढ़ी माँ-बाप से बच्चों में आते हैं, वे जीन्स की बदौलत ही आते हैं। जैसे उनका कद, उनके नैन-नक्श, बालों का रंग और दूसरे हज़ारों लक्षण। आपकी हर कोशिका में लाखों जीन्स होते हैं और हर जीन, डी.एन.ए. (डीऑक्सीराइबोन्युक्लिक एसिड) से बनी एक लंबी कड़ी का हिस्सा होता है। आपके शरीर के विकास से जुड़ी सारी हिदायतें, आपके डी.एन.ए. की रसायनिक बनावट में पहले से ‘लिखी’ होती है। इसलिए जब भी आपकी कोशिका विभाजित होकर नयी कोशिका बनती है या पुरानी कोशिका की जगह लेती है, तो आपका डी.एन.ए. ये सारी हिदायतें नयी कोशिका को देता है। इस तरह आप न सिर्फ ज़िंदा रह पाते हैं बल्कि आपका रंग-रूप भी लगभग वही-का-वही बना रहता है। स्वर्ग में रहनेवाले हमारे सिरजनहार की शक्ति और बुद्धि की क्या ही बेजोड़ मिसाल!
हमारी लाजवाब दिमागी काबिलीयत
12. क्या बातें खास तौर से इंसानों को जानवरों से अलग करती हैं?
12 “मेरे लिये तो हे ईश्वर, तेरे विचार क्या ही बहुमूल्य हैं! उनकी संख्या का जोड़ कैसा बड़ा है! यदि मैं उनको गिनता तो वे बालू के किनकों से भी अधिक ठहरते।” (भजन 139:17, 18क) देखा जाए तो जानवर भी अद्भुत रीति से रचे गए हैं। कुछ जानवरों की इंद्रियाँ तो हम इंसानों की इंद्रियों से भी ज़्यादा तेज़ हैं और उनमें कुछ ऐसी काबिलीयतें हैं जो हममें हैं ही नहीं। मगर परमेश्वर ने इंसानों को एक ऐसी दिमागी काबिलीयत दी है, जो किसी भी जानवर में नहीं पायी जाती। विज्ञान की एक किताब कहती है: “भले ही हम इंसान कई मामलों में जानवरों की तरह हैं, मगर एक बात है जो हमें धरती के बाकी सभी जीवों से अलग करती है और वह है, भाषा और सोचने-समझने की काबिलीयत का इस्तेमाल करना। हम इस मामले में भी अनोखे हैं कि हममें खुद के बारे में जानने की ललक होती है: हमारे शरीर की बनावट कैसी है? हम किस तरह रचे गए थे?” ये ऐसे सवाल हैं जिन पर दाऊद ने भी मनन किया था।
13. (क) दाऊद, परमेश्वर के विचारों पर कैसे मनन कर सका? (ख) हम दाऊद की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?
13 मगर इससे भी बढ़कर जो बात हम इंसानों को जानवरों से अलग करती है, वह है परमेश्वर के विचारों पर मनन करने की हमारी काबिलीयत।c यह काबिलीयत, परमेश्वर की तरफ से एक खास तोहफा है और साबित करती है कि हम ‘परमेश्वर के स्वरूप’ में बनाए गए हैं। (उत्पत्ति 1:27) दाऊद ने इस तोहफे का अच्छा इस्तेमाल किया। उसने उन सबूतों पर मनन किया जो साफ दिखाते हैं कि परमेश्वर वजूद में है। साथ ही, उसने अपने आस-पास की सृष्टि से झलकते उसके अच्छे गुणों पर भी ध्यान किया। दाऊद के पास पवित्र शास्त्र की शुरू की कुछ किताबें भी मौजूद थीं, जिनमें खुद परमेश्वर ने अपने और अपने कामों के बारे में खुलासा किया था। इन ईश्वर-प्रेरित लेखनों ने दाऊद को परमेश्वर के विचारों, उसकी शख्सियत और उसके मकसद को समझने में काफी मदद दी। जब दाऊद ने उन लेखनों पर, सृष्टि पर और उसके साथ परमेश्वर के व्यवहार पर मनन किया, तो वह अपने बनानेवाले की बड़ाई करने के लिए उकसाया गया।
विश्वास में क्या शामिल है
14. परमेश्वर पर विश्वास करने के लिए, उसके बारे में सबकुछ जानने की ज़रूरत क्यों नहीं है?
14 दाऊद ने सृष्टि पर, और शास्त्र में दर्ज़ बातों पर जितना ज़्यादा मनन किया, उतना ज़्यादा उसे एहसास हुआ कि परमेश्वर के ज्ञान और काबिलीयत को पूरी तरह समझ पाना, उसके बस के बाहर है। (भजन 139:6) हमारे बारे में भी यह बात सच है। हम चाहे कितनी भी कोशिश क्यों न कर लें, मगर परमेश्वर की सृष्टि के कामों को हम पूरी तरह कभी नहीं समझ पाएँगे। (सभोपदेशक 3:11; 8:17) फिर भी, परमेश्वर ने हर ज़माने के सच्चाई की खोज करनेवालों के लिए बाइबल और कुदरत के ज़रिए काफी ज्ञान “प्रगट किया है,” जिससे कि वे अपने अंदर सबूतों पर आधारित पक्का विश्वास पैदा कर सकें।—रोमियों 1:19, 20; इब्रानियों 11:1, 3.
15. मिसाल देकर बताइए कि विश्वास और परमेश्वर के साथ हमारे रिश्ते के बीच क्या संबंध है।
15 विश्वास होने में सिर्फ यह मान लेना काफी नहीं कि जीवन और जहान को बनाने के पीछे ज़रूर किसी बुद्धिमान हस्ती का हाथ रहा होगा। इसमें यह भी शामिल है कि हम यहोवा परमेश्वर पर भरोसा करें और उसे एक ऐसा असल शख्स मानें, जो चाहता है कि हम उसे जानें और उसके साथ एक अच्छा रिश्ता कायम करें। (याकूब 4:8) इस बात को और भी अच्छी तरह समझने के लिए, ज़रा उस भरोसे के बारे में सोचिए जो आप प्यार करनेवाले अपने पिता पर रखते हैं। मान लीजिए एक व्यक्ति आकर आपसे कहता है, ‘मुझे नहीं लगता कि आपका पिता आपको मुसीबत में फँसा देखकर आपकी मदद करेगा।’ ऐसे में आप शायद उसे यह यकीन दिला न पाएँ कि आपके पिता एक भरोसेमंद शख्स हैं। मगर जहाँ तक आपकी बात है, तो आपको इस बात का पूरा यकीन है कि मुसीबत की घड़ी में वे आपको कभी अकेला नहीं छोड़ेंगे। आपको यह यकीन इसलिए है क्योंकि सालों से आप उनके साथ रहे हैं, इसलिए आप उन्हें अच्छी तरह जानते हैं। साथ ही, आपने देखा है कि उन्होंने कैसे अपने कामों से अपने प्यार और परवाह का सबूत दिया है। उसी तरह, अगर हम बाइबल का अध्ययन करें, सृष्टि पर मनन करें और यह अनुभव करें कि यहोवा ने कैसे मदद के लिए की गयी हमारी प्रार्थनाओं का जवाब दिया है, तो हम उसे अच्छी तरह जान पाएँगे। और फिर यही बात हमें उस पर भरोसा करने के लिए उभारेगी। इससे हमें यह भी बढ़ावा मिलेगा कि हम उसे और करीबी से जानें, और निःस्वार्थ प्रेम और भक्ति के साथ हमेशा उसकी महिमा करते रहें। क्या ज़िंदगी जीने का इससे बड़ा और कोई मकसद हो सकता है?—इफिसियों 5:1, 2.
अपने सिरजनहार के मार्गदर्शन की खोज कीजिए
16. दाऊद का यहोवा के साथ के करीबी रिश्ते से हम क्या सीख सकते हैं?
16 “हे परमेश्वर, मुझे जांचकर मेरे हृदय को जान ले; मुझे परख और मेरी चिन्ताओं को जान ले; और देख कि मुझ में कोई बुरी चाल है कि नहीं, और अनन्त के मार्ग में मेरी अगुवाई कर।” (भजन 139:23, 24, NHT) दाऊद को मालूम था कि यहोवा पहले से ही उसके बारे में सबकुछ जानता है। यानी, उसका एक भी विचार, बात या काम उसके बनानेवाले की नज़रों से छिपा नहीं था। (भजन 139:1-12; इब्रानियों 4:13) परमेश्वर उसे इतने करीब से जानता है, यह सोचकर दाऊद सुरक्षित महसूस करता था, ठीक जैसे एक नन्हे-से बच्चे को प्यार करनेवाले अपने माता-पिता की गोद में किसी बात का डर नहीं रहता है। दाऊद, परमेश्वर के साथ के अपने इस करीबी रिश्ते को अनमोल समझता था। इसलिए वह उसे बरकरार रखने के लिए मेहनत करता था। वह परमेश्वर के हाथ के कामों पर गहराई से मनन और उससे प्रार्थना किया करता था। दरअसल दाऊद के कई भजन, जिनमें भजन 139 भी शामिल है, ऐसी प्रार्थनाएँ हैं जिन्हें संगीत की धुनों पर तैयार किया गया था। दाऊद की तरह, अगर हम भी मनन और प्रार्थना करें, तो हम यहोवा के करीब आ सकते हैं।
17. (क) दाऊद क्यों चाहता था कि यहोवा उसके दिल को जाँचे? (ख) हम अपनी आज़ाद मरज़ी का जिस तरह से इस्तेमाल करते हैं, उसका हमारी ज़िंदगी पर क्या असर पड़ता है?
17 हम परमेश्वर के स्वरूप में बनाए गए हैं, इसलिए हमें आज़ाद मरज़ी दी गयी है। इसका मतलब है कि हम या तो अच्छाई करने का चुनाव कर सकते हैं या फिर बुराई करने का। मगर इस आज़ाद मरज़ी का हम कैसे इस्तेमाल करते हैं, इसका हमें लेखा भी देना पड़ेगा। दाऊद नहीं चाहता था कि वह बुरे लोगों में गिना जाए। (भजन 139:19-22) वह ऐसी गलतियाँ करने से दूर रहना चाहता था, जिनके बुरे अंजाम उसे आगे चलकर भुगतने पड़ते। इसीलिए यहोवा के ज्ञान के बारे में मनन करने के बाद, दाऊद ने नम्रता के साथ परमेश्वर से बिनती की कि वह उसके अंदर के इंसान, यानी उसके दिल को जाँचे और उसे जीवन के मार्ग पर ले जाए। परमेश्वर के धर्मी नैतिक स्तर सभी पर लागू होते हैं; तो ज़ाहिर-सी बात है कि हमें भी सही चुनाव करने की ज़रूरत है। यहोवा हम सभी को उकसाता है कि हम उसकी आज्ञा मानें। अगर हम ऐसा करेंगे, तो वह हम पर अनुग्रह करेगा और हमें ढेरों आशीषें देगा। (यूहन्ना 12:50; 1 तीमुथियुस 4:8) हर दिन यहोवा के साथ-साथ चलने से, हमें मन की शांति मिलती है। यहाँ तक कि उस वक्त भी हमें यह शांति मिलती है, जब हम बड़ी-से-बड़ी मुसीबत से गुज़रते हैं।—फिलिप्पियों 4:6, 7.
अपने अद्भुत सिरजनहार की दिखायी राह पर चलिए!
18. सृष्टि पर मनन करने के बाद, दाऊद किस नतीजे पर पहुँचा?
18 बचपन में, दाऊद अकसर मैदानों में भेड़ों को चराने जाता था। भेड़ें घास चरने के लिए अपने सिर नीचे कर लेतीं, मगर दाऊद अपनी आँखें उठाकर आसमान को निहारता। जब रात हो जाती, तो दाऊद अंतरिक्ष की विशालता और वह किस बात का सबूत देती है, इस पर मनन करता। उसने लिखा: “आकाश ईश्वर की महिमा वर्णन कर रहा है; और आकाशमण्डल उसकी हस्तकला को प्रगट कर रहा है। दिन से दिन बातें करता है, और रात को रात ज्ञान सिखाती है।” (भजन 19:1, 2) दाऊद बखूबी समझता था कि जिस शख्स ने इस सारी सृष्टि को अद्भुत तरीके से रचा है, उसे न सिर्फ ढूँढ़ा जाना चाहिए बल्कि उसकी दिखायी राह पर चलना भी चाहिए। हमें भी ऐसा ही करने की ज़रूरत है।
19. हम ‘अद्भुत रीति से रचे गए’ हैं, इस बात से सभी जवान और बुज़ुर्ग क्या सबक सीख सकते हैं?
19 दाऊद उस सलाह की उम्दा मिसाल था, जो उसके बेटे सुलैमान ने बाद में जवानों को दी थी। वह सलाह थी: “अपनी जवानी के दिनों में अपने सृजनहार को स्मरण रख, . . . परमेश्वर का भय मान और उसकी आज्ञाओं का पालन कर; क्योंकि मनुष्य का सम्पूर्ण कर्त्तव्य यही है।” (सभोपदेशक 12:1, 13) दाऊद ने अपनी जवानी के दिनों में ही यह जान लिया था कि वह “अद्भुत रीति से रचा गया” है। इस गहरी समझ के मुताबिक जीने की वजह से उसे ज़िंदगी-भर कई आशीषें मिलती रहीं। उसी तरह अगर हम सभी जवान और बुज़ुर्ग, अपने महान सिरजनहार की महिमा और सेवा करते रहें, तो हमारी आज की और भविष्य की ज़िंदगी खुशियों से भरी होगी। जो लोग यहोवा के करीब रहते हैं और उसके धर्मी मार्गों पर चलते हैं, उनके बारे में बाइबल यह वादा करती है: “वे पुराने होने पर भी [“वृद्धावस्था में भी,” नयी हिन्दी बाइबिल] फलते रहेंगे; और रस भरे और लहलहाते रहेंगे, जिस से यह प्रगट हो, कि यहोवा सीधा है।” (भजन 92:14, 15) इतना ही नहीं, हम हमेशा-हमेशा के लिए अपने सिरजनहार के अद्भुत कामों का लुत्फ उठाने की भी उम्मीद कर सकते हैं। (w07 6/15)
[फुटनोट]
a जून 22, 2004 की सजग होइए! (अँग्रेज़ी) का अंक देखिए। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।
b सितंबर 8, 1997 की सजग होइए! का लेख, “आपके गुर्दे—जीवन-पोषक फ़िल्टर” भी देखिए।
c भजन 139:18ख में दर्ज़ दाऊद के शब्दों से ज़ाहिर होता है कि परमेश्वर के विचार इतने सारे हैं कि अगर दाऊद सुबह से लेकर रात को सोने तक उन्हें गिनता रहता, तो सुबह उठने के बाद भी उसके पास गिनने के लिए और भी बहुत बचा होता।
क्या आप समझा सकते हैं?
• एक भ्रूण जिस तरीके से बढ़ता है, वह कैसे दिखाता है कि हम ‘अद्भुत रीति से रचे गए’ हैं?
• हमें यहोवा के विचारों पर क्यों मनन करना चाहिए?
• विश्वास और यहोवा के साथ हमारे रिश्ते के बीच क्या संबंध है?
[पेज 17 पर तसवीरें]
गर्भ में बच्चे का विकास पहले से ठहरायी गयी एक योजना के मुताबिक होता है
डी.एन.ए.
[चित्र का श्रेय]
गर्भ में बढ़ रहा बच्चा: Lennart Nilsson