“याह की तारीफ” क्यों करें?
“याह की तारीफ करो! . . . उसकी तारीफ करना कितना मनभावना और सही है!”—भज. 147:1.
1-3. (क) भजन 147 शायद कब लिखा गया था? (ख) इस भजन का अध्ययन करने से हम क्या सीख सकते हैं?
हम अकसर अलग-अलग वजहों से किसी की तारीफ करते हैं। हमें शायद उसके काम करने का तरीका पसंद आए या उसकी कोई खूबी हमें भा जाए। यहोवा के बारे में क्या? क्या उसकी तारीफ करने की हमारे पास कोई वजह है? हम उसकी बनायी चीज़ों में उसकी अपार शक्ति देख सकते हैं। इतना ही नहीं, उसने अपने बेटे का फिरौती बलिदान देकर हमारे लिए अपने प्यार का बेहतरीन सबूत दिया है। इससे साफ पता चलता है कि इंसानों से कहीं बढ़कर यहोवा हमारी तारीफ के काबिल है।
2 भजन 147 से मालूम होता है कि इसके लेखक के दिल में यहोवा की तारीफ करने की ज़बरदस्त इच्छा थी। उसने दूसरों को भी ऐसा करने का बढ़ावा दिया।—भजन 147:1, 7, 12 पढ़िए।
3 हम नहीं जानते कि भजन 147 का लिखनेवाला कौन है। लेकिन मुमकिन है कि वह उस समय जीया था जब यहोवा ने इसराएलियों को बैबिलोन की बँधुआई से आज़ाद किया और वे यरूशलेम लौटे। (भज. 147:2) अपने भजन में उसने यहोवा की तारीफ की क्योंकि यहोवा के लोग एक बार फिर अपने देश में उसकी उपासना कर सकते थे। इसके बाद, उसने यहोवा की तारीफ करने की और भी कई वजह बतायीं। वे क्या थीं? “हल्लिलूयाह” कहने या ‘याह की तारीफ करने’ की आपके पास कौन-सी वजह हैं?—भज. 147:1, फु.
यहोवा टूटे मनवालों को चंगा करता है
4. राजा कुसरू ने जब इसराएलियों को आज़ाद किया तो उन्हें कैसा लगा होगा और क्यों?
4 कल्पना कीजिए कि बैबिलोन की बँधुआई में रहते वक्त इसराएलियों को कैसा लगा होगा। जिन लोगों ने उन्हें बंदी बनाया था वे उनकी खिल्ली उड़ाकर कहते थे, “हमारे लिए सिय्योन का कोई गीत गाओ।” लेकिन यहूदी गाना नहीं चाहते थे क्योंकि उनकी खुशी की सबसे बड़ी वजह यानी यरूशलेम उजाड़ पड़ा था। (भज. 137:1-3, 6) उनका मन उदास था और उन्हें दिलासे की ज़रूरत थी। परमेश्वर ने अपने वचन में भविष्यवाणी की कि वह उनकी मदद करेगा। कैसे? फारस के राजा कुसरू के ज़रिए। कुसरू ने बैबिलोन पर जीत हासिल की और परमेश्वर के लोगों को आज़ाद किया। उसने कहा, ‘यहोवा ने मुझे यह हुक्म दिया है कि मैं यरूशलेम में उसका भवन बनवाऊँ।’ फिर उसने इसराएलियों से कहा, “तुममें से जो कोई उसके लोगों में से है, उसके साथ उसका परमेश्वर यहोवा रहे और वह यरूशलेम जाए।” (2 इति. 36:23) सोचिए, बैबिलोन में रहनेवाले इसराएलियों को यह सुनकर कितना दिलासा मिला होगा!
5. भजन के लेखक ने यहोवा के बारे में क्या कहा?
5 यहोवा ने न सिर्फ इसराएल राष्ट्र को बल्कि हरेक इसराएली को भी दिलासा दिया। यहोवा आज भी अपने सेवकों के साथ ऐसा करता है। भजन के लिखनेवाले ने कहा कि परमेश्वर “टूटे मनवालों को चंगा करता है, उनके घावों पर पट्टी बाँधता है।” (भज. 147:3) जब हम बीमार या मायूस होते हैं तो हम यकीन रख सकते हैं कि यहोवा को हमारी परवाह है। यहोवा हमें दिलासा देने और हमारे दिल पर लगे ज़ख्मों पर मरहम लगाने के लिए तैयार रहता है। (भज. 34:18; यशा. 57:15) वह हमें हर मुश्किल का सामना करने के लिए बुद्धि और हिम्मत देता है।—याकू. 1:5.
6. भजन 147:4 में लिखी बात क्यों आपके दिल को छू जाती है? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
6 इसके बाद, भजन के लेखक ने आसमान की तरफ देखकर कहा कि यहोवा “तारों की गिनती करता है, उनमें से हरेक को नाम से पुकारता है।” (भज. 147:4) लेखक तारों को तो निहार सकता था लेकिन उसे पता नहीं था कि असल में इनकी गिनती कितनी है। वैज्ञानिक बताते हैं कि सिर्फ हमारी मंदाकिनी की बात लें तो इसमें अरबों तारे हैं। पर कहा जाता है कि विश्व-मंडल में अरबों-खरबों मंदाकिनियाँ हैं! इतने तारों को गिनना इंसान के बस में नहीं, लेकिन इन्हें बनानेवाला ज़रूर ऐसा कर सकता है! दरअसल वह हर तारे को अच्छी तरह जानता है और उसने हरेक को नाम भी दिया है। (1 कुरिं. 15:41) अगर परमेश्वर जानता है कि हरेक तारा किस जगह पर है, तो क्या उसे आपके बारे में नहीं पता होगा कि आप कहाँ पर हैं, कैसा महसूस कर रहे हैं और आपको किस चीज़ की ज़रूरत है?
7, 8. (क) यहोवा हमारे बारे में क्या जानता है? (ख) उदाहरण देकर बताइए कि यहोवा किस तरह हमारे साथ प्यार से पेश आता है?
7 यहोवा अच्छी तरह जानता है कि आप पर क्या बीत रही है और वह उस मुश्किल से निकलने में आपकी मदद कर सकता है। (भजन 147:5 पढ़िए।) कभी-कभी शायद आपको लगे, “मैं अपने हालात से नहीं लड़ सकता, यह मेरे बस के बाहर है।” पर यकीन रखिए कि यहोवा हमारी सीमाएँ जानता है, उसे पता है कि “हम मिट्टी ही हैं।” (भज. 103:14) अपरिपूर्ण होने की वजह से हो सकता है कि हम एक ही गलती बार-बार करें। बाद में हमें अफसोस हो और हम मन-ही-मन कहें, “काश! मैंने वह बात न कही होती” या “काश! मेरे मन में वह गलत सोच या जलन की भावना न आयी होती।” यहोवा हमारी तरह अपरिपूर्ण नहीं, लेकिन वह हमारी भावनाएँ अच्छी तरह समझता है।—यशा. 40:28.
8 क्या कभी यहोवा ने अपने शक्तिशाली हाथ से आपको मुश्किल घड़ी में सँभाला है? (यशा. 41:10, 13) कीयोको नाम की एक पायनियर बहन ने कुछ ऐसा ही अनुभव किया। उसे संगठन ने एक नयी जगह जाकर सेवा करने के लिए कहा। वहाँ जाकर वह बहुत निराश हो गयी। लेकिन कीयोको ने कैसे जाना कि यहोवा उसकी मुश्किलों को समझता है? नयी मंडली में ऐसे कई भाई-बहन थे जो उसकी भावनाएँ समझते थे और उसके साथ प्यार से पेश आते थे। उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे यहोवा उससे कह रहा हो, “कीयोको मैं तुझे बहुत प्यार करता हूँ सिर्फ इसलिए नहीं कि तू एक पायनियर है बल्कि इसलिए कि तू मेरी बेटी है और तूने अपना जीवन मुझे समर्पित किया है। मैं चाहता हूँ कि तू अपनी सेवा में खुश रह!” क्या आपके मामले में भी यहोवा ने दिखाया है कि वह आपकी मुश्किलें समझता है और “उसकी समझ की कोई सीमा नहीं”?
यहोवा हमारी ज़रूरतें पूरी करता है
9, 10. यहोवा सबसे बढ़कर किस तरह हमारी मदद करता है? उदाहरण देकर समझाइए।
9 हर इंसान को रोटी, कपड़े और रहने की एक जगह की ज़रूरत होती है। इसलिए कभी-कभी हमें यह चिंता सताए कि पता नहीं, कल हमारे पास खाने को होगा या नहीं। लेकिन यहोवा ने धरती इस तरह बनायी है कि सबको खाने-पीने की चीज़ें मिलें यहाँ तक कि “कौवे के बच्चों को भी . . . जो खाना माँगते हैं।” (भजन 147:8, 9 पढ़िए।) अगर यहोवा कौवों को खाना देता है तो हम पूरा यकीन रख सकते हैं कि वह हमारी ज़रूरतें भी पूरी करेगा।—भज. 37:25.
10 इससे भी बढ़कर हमारी एक ज़रूरत है जिसे यहोवा पूरी करता है। वह हमारी मदद करता है ताकि हम अपना विश्वास मज़बूत बनाए रख सकें। वह हमें ‘वह शांति देता है जो समझ से परे है।’ (फिलि. 4:6, 7) मूटसूओ नाम के एक भाई और उसकी पत्नी ने खुद अनुभव किया कि कैसे यहोवा ने उनकी मदद की। सन् 2011 में जापान में एक सुनामी आयी। मूटसूओ अपनी पत्नी के साथ घर की छत पर चढ़ गया और इस तरह वे मरते-मरते बचे। उस दिन उनके पास जो कुछ था, वह सब खत्म हो गया। फिर वे छत से उतरकर अपने घर की दूसरी मंज़िल पर आए और उन्होंने एक अँधेरे कमरे में ठिठुरते हुए पूरी रात काटी। सुबह होने पर वे कुछ ढूँढ़ने लगे जिससे उन्हें हौसला मिल सके। उन्हें 2006 की इयरबुक मिली। जैसे ही मूटसूओ ने इयरबुक के पेज पलटे तो उसकी नज़र एक शीर्षक पर पड़ी, “आज तक की सबसे खतरनाक सुनामी।” उस लेख में बताया गया था कि 2004 में सुमात्रा में एक भूकंप हुआ जिससे कई जगह तबाही मचानेवाली सुनामी आयी। मूटसूओ और उसकी पत्नी उन जगहों में रहनेवाले भाई-बहनों के अनुभव पढ़कर रो पड़े। उन्होंने महसूस किया कि यहोवा ने उनका हौसला बढ़ाया और उन्हें उस वक्त इसी हौसले की ज़रूरत थी। यहोवा ने दूसरे तरीकों से भी उनकी मदद की। जापान के अलग-अलग इलाकों से भाई-बहनों ने उनके लिए खाने की चीज़ें और कपड़े भेजे। लेकिन उन्हें सबसे ज़्यादा हिम्मत तब मिली जब संगठन की तरफ से कुछ भाई उनसे और मंडली के बाकी भाई-बहनों से मिलने आए। मूटसूओ कहता है, “मैंने महसूस किया कि यहोवा हममें से हरेक के साथ है और हमारी देखभाल कर रहा है। मैं बता नहीं सकता कि हमें कितना दिलासा मिला है!” वाकई, परमेश्वर सबसे पहले हमारा विश्वास मज़बूत करता है, फिर हमारी ज़रूरत की चीज़ें हमें देता है।
परमेश्वर से मदद लीजिए
11. परमेश्वर से मदद लेने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
11 यहोवा “दीन लोगों को उठाता है” और उनकी मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहता है। (भज. 147:6क) यहोवा से मदद लेने के लिए हमें क्या करना चाहिए? उसके साथ हमें अपना रिश्ता मज़बूत करना चाहिए। यह तभी हो सकता है जब हम दीन या नम्र होंगे। (सप. 2:3) नम्र लोग किसी भी नाइंसाफी और दुख को सहते वक्त यहोवा पर भरोसा रखते हैं। उन्हें यकीन रहता है कि यहोवा उस नाइंसाफी को दूर करेगा और उन्हें राहत देगा। ऐसे लोगों से यहोवा खुश होता है।
12, 13. (क) परमेश्वर से मदद लेने के लिए हमें किस बात से दूर रहना चाहिए? (ख) यहोवा किन लोगों से खुश होता है?
12 वहीं दूसरी तरफ, परमेश्वर “दुष्टों को ज़मीन पर पटक देता है।” (भज. 147:6ख) हम नहीं चाहते कि हमारे साथ ऐसा हो। हम चाहते हैं कि यहोवा हमसे अटल प्यार करे। इसके लिए हमें उन बातों से नफरत करनी चाहिए जिनसे यहोवा नफरत करता है। (भज. 97:10) मिसाल के लिए, हमें नाजायज़ यौन-संबंध से नफरत करनी चाहिए। हमें अश्लील तसवीरें देखने से या ऐसी किसी भी बात से दूर रहना चाहिए जो हमें नाजायज़ यौन-संबंध के फंदे में फँसा सकती है। (भज. 119:37; मत्ती 5:28) ऐसा करने के लिए शायद हमें कड़ा संघर्ष करना पड़े मगर हमें यहोवा की आशीष मिलेगी।
13 लेकिन अगर हम इस संघर्ष में उन बातों पर भरोसा रखें जिन पर इंसान भरोसा रखता है, तो क्या यहोवा खुश होगा? नहीं। यहोवा “घोड़े की ताकत से खुश नहीं होता।” तो क्या हमें खुद पर या किसी इंसान पर भरोसा रखना चाहिए? नहीं! क्योंकि ‘आदमी के मज़बूत पैर यहोवा की नज़र में कुछ भी नहीं।’ (भज. 147:10) हमें यहोवा पर निर्भर रहना होगा। हमें मदद के लिए लगातार उससे प्रार्थना करनी होगी और अपनी कमज़ोरियों से लड़ने के लिए उसके आगे गिड़गिड़ाना होगा। वह कभी हमारी प्रार्थनाएँ सुनकर नहीं थकता। “यहोवा उनसे खुश होता है जो उसका डर मानते हैं, जो उसके अटल प्यार की आस लगाते हैं।” (भज. 147:11) यहोवा विश्वासयोग्य परमेश्वर है और हमसे प्यार करता है। इसलिए हम यकीन रख सकते हैं कि गलत इच्छाओं पर जीत हासिल करने में वह लगातार हमारी मदद करेगा।
14. भजन के लेखक को किस बात का यकीन था?
14 यहोवा हमें भरोसा दिलाता है कि जब हम किसी मुश्किल में होते हैं, तो वह हमारी मदद करता है। जब इसराएली यरूशलेम लौटे तो भजन के लेखक ने गहराई से सोचा कि यहोवा किस तरह उनकी मदद कर रहा है। उसने एक गीत में यहोवा के बारे में लिखा, “वह तेरी नगरी के फाटकों के बेड़े मज़बूत करता है, वह तेरे बेटों को आशीष देता है। वह तेरे इलाके में शांति लाता है।” (भज. 147:13, 14) यहोवा नगरी के फाटकों को मज़बूत करता है, इस बात से भजन के लेखक का यकीन बढ़ा कि यहोवा अपने लोगों की हिफाज़त करता रहेगा।
15-17. (क) हम कभी-कभी अपनी मुश्किलों के बारे में कैसा महसूस करते हैं? लेकिन यहोवा अपने वचन से कैसे हमारी मदद करता है? (ख) उदाहरण देकर बताइए कि परमेश्वर का वचन कैसे “फुर्ती से भागकर” हमारी मदद करता है।
15 आप शायद अपनी मुश्किलों को लेकर बहुत परेशान हों, लेकिन यहोवा इनका सामना करने के लिए आपको बुद्धि दे सकता है। भजन के लेखक ने उसके बारे में कहा, “वह धरती पर अपनी आज्ञा भेजता है, उसका वचन फुर्ती से भागकर जाता है।” फिर लेखक ने बर्फ, पाले और ओलों का ज़िक्र किया और पूछा, “उसकी भेजी ठंड कौन सह सकता है?” इसके बाद उसने कहा, “वह अपना वचन भेजता है और वे पिघल जाते हैं।” (भज. 147:15-18) हमारा परमेश्वर सबसे बुद्धिमान है और उसके पास अपार शक्ति है। अगर वह ओले और बर्फ को अपने काबू में रख सकता है, तो क्या मुश्किलें पार करने में आपकी मदद नहीं कर सकता?
16 आज यहोवा अपने वचन, बाइबल के ज़रिए हमारा मार्गदर्शन करता है। भजन के लेखक ने कहा कि उसका वचन “फुर्ती से भागकर” हमारी मदद के लिए आता है। यहोवा हमें सही वक्त पर सही राह दिखाता है। हमें बाइबल, “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” से मिलनेवाले प्रकाशनों, JW ब्रॉडकास्टिंग, jw.org, प्राचीनों और मंडली के भाई-बहनों से कितनी मदद मिलती है! (मत्ती 24:45) क्या आपने कभी महसूस किया कि यहोवा ने फुर्ती से आपको राह दिखायी है?
17 सीमोन नाम की बहन ने महसूस किया कि किस तरह परमेश्वर के वचन ने उसकी मदद की। उसे लगता था कि यहोवा उससे खुश नहीं और वह किसी काम की नहीं। लेकिन जब-जब वह निराश होती थी तो यहोवा से प्रार्थना करती और मदद की भीख माँगती थी। वह बाइबल का लगातार अध्ययन भी करती थी। सीमोन कहती है, “ऐसा कभी नहीं हुआ कि मैंने यहोवा से मदद माँगी हो और उसने मुझे हिम्मत और मार्गदर्शन न दिया हो।” इस तरह वह अपने हालात के बारे में सही नज़रिया रख पायी।
18. आप क्यों महसूस करते हैं कि यहोवा आपके करीब है? “याह की तारीफ” करने की आपके पास क्या वजह हैं?
18 भजन का लेखक जानता था कि यहोवा ने धरती के सब राष्ट्रों में से इसराएल राष्ट्र को अपने लोग होने के लिए चुना था। वही अकेला ऐसा राष्ट्र था जिसे परमेश्वर ने अपना “वचन” और “नियम” दिए थे। (भजन 147:19, 20 पढ़िए।) आज हमारे लिए यह बड़े सम्मान की बात है कि हम परमेश्वर के नाम से जाने जाते हैं। हम कितने एहसानमंद हैं कि हम यहोवा को जानते हैं और हमारे पास उसका वचन है जो हमारा मार्गदर्शन करता है। यही नहीं, हमें इस बात की भी खुशी है कि हम उसके साथ एक करीबी रिश्ता रख सकते हैं। भजन 147 के लेखक की तरह क्या आपके पास “याह की तारीफ” करने की ढेरों वजह नहीं हैं? क्या आप दूसरों को उसकी तारीफ करने का बढ़ावा देंगे?