‘यहोवा का वचन’ कभी खाली नहीं जा सकता
‘मैं उस वचन का प्रचार करूंगा: जो यहोवा ने मुझ से कहा, तू मेरा पुत्र है, मुझ से मांग, और मैं जाति जाति के लोगों को तेरी सम्पति होने के लिये दे दूंगा।’—भजन 2:7, 8.
1. परमेश्वर के और राष्ट्रों के मकसद के बीच क्या फर्क है?
यहोवा परमेश्वर का इंसान और धरती के लिए एक मकसद है। राष्ट्रों का भी एक मकसद है। लेकिन दोनों के मकसद में ज़मीन-आसमान का फर्क है! और हमें ऐसी उम्मीद भी करनी चाहिए क्योंकि परमेश्वर खुद कहता है: “मेरी और तुम्हारी गति में और मेरे और तुम्हारे सोच विचारों में, आकाश और पृथ्वी का अन्तर है।” परमेश्वर का मकसद हर हाल में पूरा होगा, इसलिए वह आगे कहता है: “जिस प्रकार से वर्षा और हिम आकाश से गिरते हैं और वहां यों ही लौट नहीं जाते, वरन भूमि पर पड़कर उपज उपजाते हैं जिस से बोनेवाले को बीज और खानेवाले को रोटी मिलती है, उसी प्रकार से मेरा वचन भी होगा जो मेरे मुख से निकलता है; वह व्यर्थ ठहरकर मेरे पास न लौटेगा, परन्तु, जो मेरी इच्छा है उसे वह पूरा करेगा, और जिस काम के लिये मैं ने उसको भेजा है उसे वह सुफल करेगा।”—यशायाह 55:9-11.
2, 3. दूसरे भजन में क्या साफ-साफ बताया गया है, और इससे कौन-से सवाल खड़े होते हैं?
2 मसीहाई राज्य के बारे में परमेश्वर का मकसद ज़रूर पूरा होगा, यह बात दूसरे भजन में साफ-साफ बतायी गयी है। इसके लेखक प्राचीन इस्राएल के राजा दाऊद ने पवित्र आत्मा से उभारे जाकर यह भविष्यवाणी की कि एक ऐसा समय आएगा जब राष्ट्रों में हुल्लड़ मचेगा। उनके शासक यहोवा परमेश्वर और उसके अभिषिक्त के खिलाफ खड़े होंगे। लेकिन भजनहार ने अपने गीत में यह भी गाया: “मैं उस वचन का प्रचार करूंगा: जो यहोवा ने मुझ से कहा, तू मेरा पुत्र है, . . . मुझ से मांग, और मैं जाति जाति के लोगों को तेरी सम्पति होने के लिये, और दूर दूर के देशों को तेरी निज भूमि बनने के लिये दे दूंगा।”—भजन 2:7, 8.
3 ‘यहोवा का यह वचन’ राष्ट्रों के लिए किस बात का इशारा होगा? दुनिया के आम लोगों पर यह कैसे असर डालता है? बेशक हम जानना चाहेंगे कि दूसरा भजन पढ़नेवाले और परमेश्वर का भय माननेवाले सभी लोगों के लिए इसके क्या मायने हैं?
राष्ट्रों में हुल्लड़
4. आप भजन 2:1, 2 के खास मुद्दों को कैसे बताएँगे?
4 दुनिया के राष्ट्र और उसके शासक क्या करेंगे, इस बारे में बताते हुए भजनहार अपना गीत इस तरह शुरू करता है: “जाति जाति के लोग क्यों हुल्लड़ मचाते हैं, और देश देश के लोग व्यर्थ बातें क्यों सोच रहे हैं? यहोवा के और उसके अभिषिक्त के विरुद्ध पृथ्वी के राजा मिलकर, और हाकिम आपस में सम्मति करके कहते हैं।”—भजन 2:1, 2.a
5, 6. देश देश के लोग कौन-सी “व्यर्थ बातें सोच रहे हैं”?
5 आज के सारे राष्ट्र कौन-सी “व्यर्थ बातें सोच रहे हैं”? परमेश्वर के अभिषिक्त यानी मसीहा, या मसीह को स्वीकार करने के बजाय राष्ट्र खुद अपनी हुकूमत को हमेशा तक कायम रखने की “सोच रहे” या इसी उधेड़-बुन में लगे हैं। दूसरे भजन के इन शब्दों की एक पूर्ति पहली सदी में भी हुई, जब यहूदी और रोमी अधिकारियों ने परमेश्वर के ठहराए राजा यीशु मसीह को मरवाने के लिए एक-दूसरे का साथ दिया। लेकिन इसकी बड़ी पूर्ति सन् 1914 में होनी शुरू हुई जब यीशु को स्वर्ग में राजा बनाया गया। तब से दुनिया की एक भी राजनैतिक सरकार ने परमेश्वर के ठहराए इस राजा का अधिकार नहीं माना है।
6 जब भजनहार ने पूछा कि “देश देश के लोग व्यर्थ बातें क्यों सोच रहे हैं,” तो उसका क्या मतलब था? यही कि उनका मकसद व्यर्थ है; बेकार है और उसका नाकाम होना तय है। वे कभी इस धरती पर अमन-चैन और एकता नहीं ला सकते। फिर भी, वे परमेश्वर की हुकूमत के खिलाफ खड़े होने की जुर्रत करते हैं। दरअसल, वे अहंकारियों की तरह परमप्रधान और उसके अभिषिक्त के दुश्मन बन गए हैं और उनके साथ युद्ध करने की ठान ली है। यह क्या ही मूर्खता है!
यहोवा का विजयी राजा
7. पहली सदी के यीशु के चेलों ने अपनी प्रार्थना में भजन 2:1, 2 को उस पर कैसे लागू किया?
7 यीशु के चेलों ने भजन 2:1, 2 के शब्दों को यीशु पर लागू किया था। जब विश्वास की खातिर उन्हें सताया गया, तब उन्होंने प्रार्थना की: “हे स्वामी [यहोवा], तू वही है जिस ने स्वर्ग और पृथ्वी और समुद्र और जो कुछ उन में है बनाया। तू ने पवित्र आत्मा के द्वारा अपने सेवक हमारे पिता दाऊद के मुख से कहा, कि अन्य जातियों ने हुल्लड़ क्यों मचाया? और देश के लोगों ने क्यों व्यर्थ बातें सोचीं? प्रभु और उसके मसीह के विरोध में पृथ्वी के राजा खड़े हुए, और हाकिम एक साथ इकट्ठे हो गए। क्योंकि सचमुच तेरे सेवक यीशु के विरोध में, जिसे तू ने अभिषेक किया, हेरोदेस [अन्तिपास] और पुन्तियुस पीलातुस भी अन्य जातियों और इस्राएलियों के साथ इस नगर में इकट्ठे हुए।” (प्रेरितों 4:24-27; लूका 23:1-12)b जी हाँ, परमेश्वर के अभिषिक्त सेवक, यीशु के खिलाफ पहली सदी में साज़िश रची गयी थी। लेकिन कई सदियों बाद इस भजन की एक और पूर्ति होनी थी।
8. भजन 2:3 आज के राष्ट्रों पर कैसे लागू होता है?
8 जब प्राचीन इस्राएल में राजा राज करता था जिनमें से एक दाऊद था, तब अन्यजातियाँ और उनके शासक साथ मिलकर परमेश्वर और उसके ठहराए, अभिषिक्त राजा के खिलाफ खड़े हुए थे। लेकिन हमारे ज़माने के बारे में क्या? आज के राष्ट्र, यहोवा और मसीहा की माँगों के मुताबिक खुद को बदलना नहीं चाहते। इसलिए उन्हें यह कहते दिखाया गया है: “आओ, हम उनके बन्धन तोड़ डालें, और उनकी रस्सियों को अपने ऊपर से उतार फेंके।” (भजन 2:3) परमेश्वर और उसके अभिषिक्त जन ने जो भी रोक लगायी, उनका इन शासकों और राष्ट्रों ने विरोध किया है। बेशक ऐसे किसी भी बंधन को तोड़ने या रस्सियों को उतार फेंकने की उनकी कोशिशें नाकाम होंगी।
यहोवा उनको ठट्ठों में उड़ाता है
9, 10. यहोवा राष्ट्रों को ठट्ठों में क्यों उड़ाता है?
9 दुनिया के शासक अपनी हुकूमत कायम रखने के लिए जो कोशिशें कर रहे हैं, उनसे यहोवा को कोई फर्क नहीं पड़ता। दूसरे भजन में आगे कहा गया है: “वह जो स्वर्ग में विराजमान है, हंसेगा; प्रभु उनको ठट्ठों में उड़ाएगा।” (भजन 2:4) परमेश्वर अपने मकसद को पूरा करने में इस कदर आगे बढ़ता है मानो उसकी नज़रों में ये शासक अस्तित्त्व में हैं ही नहीं। वह उनकी ढिठाई पर हँसता और उन्हें ठट्ठों में उड़ाता है। उन्हें अपनी शेखी बघारने दो। यहोवा के सामने वे सिर्फ एक मज़ाक बनकर रह गए हैं। वह उनके बेकार के विरोध पर कहकहे लगाता है।
10 एक और भजन में दाऊद, शत्रुओं और राष्ट्रों का ज़िक्र करते हुए इस तरह गाता है: “हे सेनाओं के परमेश्वर यहोवा, हे इस्राएल के परमेश्वर सब अन्यजातिवालों को दण्ड देने के लिये जाग; किसी विश्वासघाती अत्याचारी पर अनुग्रह न कर। वे लोग सांझ को लौटकर कुत्ते की नाईं गुर्राते हैं, और नगर के चारों ओर घूमते हैं। देख वे डकारते हैं, उनके मुंह के भीतर तलवारें हैं, क्योंकि वे कहते हैं, कौन सुनता है? परन्तु हे यहोवा, तू उन पर हंसेगा; तू सब अन्य जातियों को ठट्ठों में उड़ाएगा।” (भजन 59:5-8) दुनिया के राष्ट्र जो डींगे मारते और यहोवा के खिलाफ मूर्खता का मार्ग अपनाकर जिस तरह भारी गड़बड़ी में हैं, यहोवा उस पर हँसता है।
11. जब राष्ट्र परमेश्वर के मकसद के खिलाफ काम करने के लिए ऐड़ी-चोटी का ज़ोर लगाने की कोशिश करेंगे, तब क्या होगा?
11 भजन 2 के शब्दों से हमारा विश्वास मज़बूत होता है कि परमेश्वर किसी भी चुनौती का सामना कर सकता है। हम पूरा यकीन रख सकते हैं कि वह हमेशा अपनी इच्छा पूरी करता है और अपने वफादार सेवकों को कभी नहीं छोड़ता। (भजन 94:14) तो फिर जब सारे राष्ट्र, ऐड़ी-चोटी का ज़ोर लगाकर यहोवा के मकसद के खिलाफ काम करने की कोशिश करेंगे, तब क्या होगा? इस भजन के मुताबिक परमेश्वर मानो बादल की ज़बरदस्त गड़गड़ाहट के साथ ‘अपने क्रोध में बातें करेगा।’ इससे भी बढ़कर वह “अपने प्रकोप” से उन्हें इस कदर “भयभीत कर” देगा, मानो उन पर बिजली गिरा दी हो।—भजन 2:5, NHT.
परमेश्वर का ठहराया राजा राजगद्दी पर बैठता है
12. भजन 2:6 में राजगद्दी पर बिठाने की किस घटना के बारे में बताया गया है?
12 भजनहार के ज़रिए यहोवा अब जो राष्ट्रों से कहता है, उसे सुनकर वे बेशक परेशान हो उठते हैं। परमेश्वर ऐलान करता है: “मैं तो अपने ठहराए हुए राजा को अपने पवित्र पर्वत सिय्योन की राजगद्दी पर बैठा चुका हूं।” (भजन 2:6) सिय्योन पर्वत, यरूशलेम का एक पहाड़ था जहाँ दाऊद को इस्राएल का राजा ठहराया गया था। लेकिन मसीहाई राजा न तो उस नगर की राजगद्दी पर, ना ही दुनिया के किसी और सिंहासन पर बैठता। दरअसल, यहोवा ने पहले ही यीशु मसीह को अपना चुना हुआ मसीहाई राजा ठहराकर स्वर्गीय सिय्योन पर्वत की राजगद्दी पर बिठाया है।—प्रकाशितवाक्य 14:1.
13. यहोवा ने अपने पुत्र के साथ क्या वाचा बाँधी है?
13 अब मसीहाई राजा बोलता है: “मैं उस वचन का प्रचार करूंगा [यानी यहोवा का जिसने अपने बेटे के साथ राज्य की वाचा बाँधी है]: जो यहोवा ने मुझ से कहा, तू मेरा पुत्र है, आज तू मुझ से उत्पन्न हुआ।” (भजन 2:7) मसीह ने इस राज्य की वाचा का ज़िक्र तब किया जब उसने अपने प्रेरितों से कहा: “तुम वह हो, जो मेरी परीक्षाओं में लगातार मेरे साथ रहे। और जैसे मेरे पिता ने मेरे लिये एक राज्य ठहराया है, वैसे ही मैं भी तुम्हारे लिये ठहराता हूं।”—लूका 22:28-30क.
14. यह क्यों कहा जा सकता है कि राजपद के लिए यीशु को छोड़ कोई और दावेदार नहीं हो सकता?
14 जैसी भजन 2:7 में भविष्यवाणी की गयी थी, यहोवा ने यीशु के बपतिस्मे पर और बाद में आत्मिक जीवन के लिए उसका पुनरुत्थान करके उसने अपने पुत्र के तौर पर उसकी पहचान करायी। (मरकुस 1:9-11; रोमियों 1:4; इब्रानियों 1:5; 5:5) जी हाँ, स्वर्गीय राज्य का राजा और कोई नहीं बल्कि परमेश्वर का अपना एकलौता पुत्र है। (यूहन्ना 3:16) राजा दाऊद के शाही घराने का वारिस होने के नाते यीशु को छोड़ कोई और राजपद का दावेदार नहीं हो सकता। (2 शमूएल 7:4-17; मत्ती 1:6,16) इस भजन के मुताबिक परमेश्वर, अपने बेटे से कहता है: “मुझ से मांग, और मैं जाति जाति के लोगों को तेरी सम्पति होने के लिये, और दूर दूर के देशों को तेरी निज भूमि बनने के लिये दे दूंगा।”—भजन 2:8.
15. यीशु, राष्ट्रों को अपनी विरासत के तौर पर क्यों माँगता है?
15 यहोवा के बाद, इसी राजा यानी परमेश्वर के अपने पुत्र का स्थान आता है। यीशु, यहोवा का परखा हुआ, वफादार और भरोसेमंद सेवक है। साथ ही, परमेश्वर का पहिलौठा होने के नाते यीशु का उसकी विरासत पर हक है। बेशक यीशु मसीह “अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप और सारी सृष्टि में पहिलौठा है।” (कुलुस्सियों 1:15) उसे बस परमेश्वर से माँगने की देर है और वह ‘जाति जाति के लोगों को उसकी सम्पति होने के लिए और दूर के देशों को उसकी निज भूमि बनने के लिये दे देगा।’ यीशु यह माँग इसलिए करता हैं, क्योंकि “उसका सुख मनुष्यों की संगति से होता” है और वह इस धरती और इंसानों के लिए अपने स्वर्गीय पिता की इच्छा की दिली तमन्ना रखता है।—नीतिवचन 8:30, 31.
राष्ट्रों के खिलाफ यहोवा का वचन
16, 17. भजन 2:9 के मुताबिक राष्ट्रों का क्या होनेवाला है?
16 आज यानी यीशु मसीह की अदृश्य उपस्थिति के दौरान, दूसरे भजन की भविष्यवाणियाँ पूरी हो रही हैं। तो फिर इस दुनिया के राष्ट्रों का क्या होनेवाला है? राजा यीशु बहुत जल्द परमेश्वर के इस हुक्म को पूरा करेगा: “तू उन्हें [राष्ट्रों को] लोहे के डण्डे से टुकड़े टुकड़े करेगा, तू कुम्हार के बर्तन की नाईं उन्हें चकना चूर कर डालेगा।”—भजन 2:9.
17 पुराने ज़माने में, राजा का राजदंड उसके शाही अधिकार की निशानी होती थी। इस भजन के मुताबिक कुछ राजदंड लोहे के बने होते थे। यहाँ जिस भाषा का इस्तेमाल किया गया है उससे मन में एक तसवीर उभरकर आती है कि राजा, मसीह कितनी आसानी से राष्ट्रों को नाश कर देगा। कुम्हार के मिट्टी के बर्तनों पर लोहे के डंडे का एक ज़बरदस्त प्रहार उसके इतने टुकड़े कर सकता है कि उसे दोबारा जोड़ना नामुमकिन है।
18, 19. परमेश्वर की मंज़ूरी पाने के लिए पृथ्वी के राजाओं को क्या करने की ज़रूरत है?
18 क्या दुनिया के राजाओं को यह विनाश हर हाल में देखना पड़ेगा? नहीं, क्योंकि भजनहार उनसे इन शब्दों में गुज़ारिश करता है: “अब, हे राजाओं, बुद्धिमान बनो; हे पृथ्वी के न्यायियों, यह उपदेश ग्रहण करो।” (भजन 2:10) राजाओं से कहा जाता है कि वे इस चेतावनी को गंभीरता से लें और बुद्धि का इस्तेमाल करें। उन्हें समझना चाहिए कि पमरेश्वर का राज्य इंसानों के फायदे के लिए जो-जो कर सकता है, उसके मुकाबले उनकी सारी योजनाएँ बेकार हैं।
19 परमेश्वर की मंज़ूरी पाने के लिए पृथ्वी के राजाओं को अपना रास्ता बदलना होगा। उन्हें यह नसीहत दी जाती है कि वे ‘डरते हुए यहोवा की उपासना करें, और कांपते हुए मगन हों।’ (भजन 2:11) ऐसा करने का क्या नतीजा होगा? तब बड़ी गड़बड़ी या बेचैनी के बजाय वे उस आशा से मगन हो सकेंगे जो मसीहाई राजा उन्हें देगा। धरती के राजाओं के लिए ज़रूरी है कि जैसा घमण्ड और अंहकार उन्होंने अपनी हुकूमत में दिखाया है, वे उन्हें त्याग दें। बिना देर किए खुद को बदलें। अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करते हुए यह समझें कि यहोवा की हुकूमत वाकई सर्वश्रेष्ठ और बेजोड़ है और यह भी कि परमेश्वर और उसके मसीहाई राजा की शक्ति का सामना कोई नहीं कर सकता।
“पुत्र को चूमो”
20, 21. ‘पुत्र को चूमने’ का क्या मतलब है?
20 अब दया दिखाते हुए भजन 2, राष्ट्रों के राजाओं को एक न्यौता देता है। विद्रोह करने के लिए एक-साथ इकट्ठा होने के बजाय, उन्हें यह सलाह दी जाती है: “पुत्र को चूमो ऐसा न हो कि वह [यहोवा] क्रोध करे, और तुम मार्ग ही में नाश हो जाओ; क्योंकि क्षण भर में उसका क्रोध भड़कने को है।” (भजन 2:12क) जब सारे जहान का महाराजाधिराज यहोवा अपना वचन सुनाता है, तो उस पर हर हाल में ध्यान दिया जाना चाहिए। जब परमेश्वर अपने पुत्र को राजगद्दी पर बिठाता है, तब पृथ्वी के राजाओं को ‘व्यर्थ बातों के बारे में सोचना’ बंद कर देना चाहिए था। उन्हें फौरन उसे राजा मानकर पूरी तरह से उसकी आज्ञाओं का पालन करना चाहिए था।
21 लेकिन उन्हें क्यों ‘पुत्र को चूमने’ की ज़रूरत है? जब यह भजन लिखा गया, उस ज़माने में चूमने को दोस्ती की निशानी माना जाता था और मेहमानों का स्वागत करने के लिए उन्हें चूमा जाता था, और फिर वे मेहमाननवाज़ी का लुत्फ उठा सकते थे। इसके अलावा, चूमने को वफादरी की निशानी भी माना जाता था। (1 शमूएल 10:1) दूसरे भजन की इस आयत में परमेश्वर, राष्ट्रों से अपने पुत्र को चूमने या अभिषिक्त राजा के तौर पर उसका स्वागत करने का हुक्म दे रहा है।
22. राष्ट्रों के राजाओं को हर हाल में कौन-सी चेतावनी माननी चाहिए?
22 जो लोग यहोवा के चुने हुए राजा के अधिकार को मानने से इनकार करते, वे दरअसल यहोवा की ही बेइज़्ज़ती करते हैं। वे सारे विश्व पर यहोवा परमेश्वर की हुकूमत को कबूल नहीं करते हैं और यह भी मानने से इनकार करते हैं कि उसे इंसानों के लिए सबसे बेहतरीन राजा चुनने की काबिलीयत है और हक भी। दुनिया के राजा एक दिन पाएँगे कि जब वे अपने मंसूबों को अंजाम देने के लिए कोशिशों में लगे होंगे, तब अचानक परमेश्वर का कहर उन पर टूट पड़ेगा। “क्षण भर में उसका क्रोध भड़कने को है,” यानी बहुत जल्दी उसका गुस्सा उबलनेवाला है और तब इसका सामना कोई नहीं कर सकेगा। इसलिए राष्ट्रों के राजाओं को तो शुक्र मनाना चाहिए कि उन्हें ये चेतावनी दी गयी है और उसे स्वीकार करके फौरन उसके मुताबिक कदम उठाना चाहिए। ऐसा करने का मतलब होगा अपनी जान बचाना।
23. दुनिया के हर इंसान के पास अभी-भी क्या करने का वक्त है?
23 यह सजीव भजन यूँ खत्म होता है: “धन्य हैं वे जिनका भरोसा उस [यहोवा] पर है।” (भजन 2:12ख) दुनिया के हर इंसान के पास महफूज़ जगह में जाने का अभी-भी वक्त है। यहाँ तक कि राष्ट्रों की योजनाओं का समर्थन करनेवाले हरेक शासक के पास भी अभी मौका है। वे यहोवा के पास भागकर आ सकते हैं जो उन्हें अपने राज्य की हुकूमत में शरण देगा। लेकिन उन्हें यह कदम फौरन उठाना है, इससे पहले कि मसीहाई राज्य विरोध करनेवाले राष्ट्रों को चकनाचूर कर दे।
24. दुःख-तकलीफ से भरे इस संसार में भी हम कैसे ज़्यादा कामयाब और सुखी ज़िंदगी बसर कर सकते हैं?
24 अगर हम पूरी लगन के साथ शास्त्रवचनों का अध्ययन करें और उसकी सलाह को ज़िंदगी में लागू करें, तो हम दुःख-तकलीफों से भरे इस संसार में भी ज़्यादा कामयाब और सुखी ज़िंदगी बसर कर सकते हैं। बाइबल में दी गयी सलाह को मानने से परिवार खुशहाल होगा और रिश्ते मज़बूत होंगे, साथ ही ऐसी ढेरों चिंताओं और डर से आज़ादी मिलेगी जो इस दुनिया को अपने शिकंजे में जकड़े हुए हैं। बाइबल में दिए मार्गदर्शन पर चलने से हमारे अंदर विश्वास पैदा होगा कि हम अपने सिरजनहार को खुश कर रहे हैं। उसके राज्य की हुकूमत को ठुकरानेवालों और सच्चाई का विरोध करनेवालों को धरती से साफ करने के बाद, सिर्फ इस जहान का मालिक ही हमें “इस समय के और आनेवाले जीवन की” गारंटी दे सकता है।—1 तीमुथियुस 4:8.
25. क्योंकि ‘यहोवा का वचन’ कभी खाली नहीं जा सकता, तो हम अपने दिनों में क्या होने की उम्मीद कर सकते हैं?
25 ‘यहोवा का वचन’ कभी खाली नहीं जा सकता। हमारा सिरजनहार होने के नाते, वह जानता है कि इंसानों के लिए सबसे बेहतर क्या है और वह आज्ञा माननेवालों को शांति, संतोष, और अपने पुत्र के राज में हमेशा की सुरक्षा देने का अपना मकसद ज़रूर पूरा करेगा। हमारे समय के बारे में भविष्यवक्ता दानिय्येल ने लिखा था: “उन राजाओं के दिनों में स्वर्ग का परमेश्वर, एक ऐसा राज्य उदय करेगा जो अनन्तकाल तक न टूटेगा, . . . वरन वह उन सब राज्यों को चूर चूर करेगा, और उनका अन्त कर डालेगा; और वह सदा स्थिर रहेगा।” (दानिय्येल 2:44) बेशक, यही वक्त है कि हम बिना देर किए ‘पुत्र को चूमें’ और महाराजाधिराज प्रभु यहोवा की सेवा करें!
[फुटनोट]
a शुरूआत में राजा दाऊद “अभिषिक्त” जन था, और पलिश्ती शासक, “पृथ्वी के राजा” थे जिन्होंने एक-साथ अपनी फौजें लेकर उस पर चढ़ाई की थी।
b मसीही यूनानी शास्त्र के और भी हवाले दिखाते हैं कि दूसरे भजन में बताया गया परमेश्वर का अभिषिक्त, यीशु ही है। भजन 2:7 की तुलना प्रेरितों 13:32, 33 और इब्रानियों 1:5; 5:5 से करने से यह बात और साफ हो जाती है। भजन 2:9 और प्रकाशितवाक्य 2:27 भी देखिए।
आप कैसे जवाब देंगे?
• दुनिया के राष्ट्र ‘कौन-सी व्यर्थ बातें सोच रहे हैं’?
• यहोवा, राष्ट्रों को ठट्ठों में क्यों उड़ाता है?
• राष्ट्रों के खिलाफ परमेश्वर का क्या वचन है?
• ‘पुत्र को चूमने’ का क्या मतलब है?
[पेज 16 पर तसवीर]
दाऊद ने विजेता मसीहाई राजा के बारे में भजन गाया
[पेज 17 पर तसवीर]
राजाओं और इस्राएल के लोगों ने यीशु मसीह के खिलाफ साज़िश रची थी
[पेज 18 पर तसवीर]
मसीह को राजा बनाकर स्वर्गीय सिय्योन पर्वत के राजगद्दी पर बिठाया गया है