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6-12 जून
पाएँ बाइबल का खज़ाना | भजन 34-37
“यहोवा पर भरोसा करें और भले काम करें”
(भजन 37:1, 2) कुकर्मियों के कारण मत कुढ़, कुटिल काम करनेवालों के विषय डाह न कर! 2 क्योंकि वे घास के समान झट कट जाएँगे, और हरी घास के समान मुर्झा जाएँगे।
“यहोवा को अपने सुख का मूल जान”
“डाह न कर!”
3 आज हम “कठिन समय” में जी रहे हैं, क्योंकि दुष्टता दुनिया में चारों तरफ फैल गयी है। हम प्रेरित पौलुस के ये शब्द पूरे होते देख रहे हैं कि “दुष्ट, और बहकानेवाले धोखा देते हुए, और धोखा खाते हुए, बिगड़ते चले जाएंगे।” (2 तीमुथियुस 3:1, 13) और इन दुष्ट लोगों को कामयाब होता और फलता-फूलता देखकर, हमारा मन बेचैन हो उठता है। उनकी वजह से, ज़रूरी बातों से हमारा ध्यान भटक सकता है और हम आध्यात्मिक बातों को पहले की तरह अहमियत नहीं देते। ध्यान दीजिए कि भजन 37 की शुरूआत में कैसे इसके बारे में हमें सावधान किया गया है, जो हमारे लिए एक खतरा बन सकता है: “कुकर्मियों के कारण मत कुढ़, कुटिल काम करनेवालों के विषय डाह न कर!”
4 दुनिया के मीडिया से हमें आए दिन नाइंसाफी की खबरें मिलती हैं जिन्हें सुनकर हम बेचैन हो उठते हैं। बेईमान बिज़नेसमैन, धोखाधड़ी करके भी कानून के हाथों से बचे रहते हैं। अपराधी, अपने फायदे के लिए लाचार और बेसहारा लोगों को अपना शिकार बनाते हैं। खूनी अकसर पकड़े नहीं जाते, और अगर पकड़े भी जाएँ तो भी उन्हें सज़ा नहीं दी जाती। इस तरह की नाइंसाफी देखकर हमें बहुत गुस्सा आता है और हमारे मन का चैन छिन जाता है। यहाँ तक कि बुराई करनेवालों की कामयाबी देखकर हम शायद मन-ही-मन उनसे जलने लगें। लेकिन इस तरह परेशान होने से क्या हालात सुधर जाएँगे? क्या दुष्ट जनों की मौज-मस्ती से जलने-कुढ़ने से, उन्हें कोई फर्क पड़ेगा? हरगिज़ नहीं पड़ेगा! और फिर देखा जाए तो हमें अंदर-ही-अंदर ‘कुढ़ने’ की कोई ज़रूरत नहीं। क्यों नहीं?
5 इसका जवाब हमें भजनहार देता है: “वे घास की नाईं झट कट जाएंगे, और हरी घास की नाईं मुर्झा जाएंगे।” (भजन 37:2) हरी-हरी घास देखने में शायद अच्छी लगे, मगर ये ज़्यादा देर तक नहीं टिकती बल्कि मुरझाकर खत्म हो जाती है। बुरे काम करनेवालों का भी यही हश्र होगा। देखने में तो लग सकता है कि वे फल-फूल रहे हैं, मगर उनकी यह हालत हमेशा के लिए नहीं रहनेवाली। जब वे मर जाते हैं, तो उनकी पाप की कमाई उनके किसी काम नहीं आती। आखिरकार हर किसी के साथ वही होता है जो न्याय के मुताबिक होना चाहिए। पौलुस ने लिखा: “पाप की मजदूरी . . . मृत्यु है।” (रोमियों 6:23) बुराई करनेवालों और सभी अधर्मियों को एक-न-एक-दिन उनकी “मजदूरी” ज़रूर मिलेगी, और बस उनके लिए सबकुछ खत्म हो जाएगा। उनका इस तरह बरबादी की राह पर चलना, वाकई कितनी बड़ी बेवकूफी है!—भजन 37:35, 36; 49:16, 17.
6 तो फिर दुष्ट लोगों की चंद दिनों की खुशहाली देखकर क्या हमें परेशान होना चाहिए? नहीं, बल्कि हमें भजन 37 की पहली दो आयतों से यह सबक सीखना चाहिए: यहोवा की सेवा करने के लिए जो रास्ता आपने चुना है, दुष्ट लोगों की कामयाबी देखकर उस रास्ते से भटक मत जाइए। इसके बजाय, अपनी नज़र आध्यात्मिक आशीषों और लक्ष्यों पर लगाए रखिए।—नीतिवचन 23:17.
(भजन 37:3-6) यहोवा पर भरोसा रख, और भला कर; देश में बसा रह, और सच्चाई में मन लगाए रह। 4 यहोवा को अपने सुख का मूल जान, और वह तेरे मनोरथों को पूरा करेगा। 5 अपने मार्ग की चिन्ता यहोवा पर छोड़; और उस पर भरोसा रख, वही पूरा करेगा। 6 वह तेरा धर्म ज्योति के समान, और तेरा न्याय दोपहर के उजियाले के समान प्रगट करेगा।
“यहोवा को अपने सुख का मूल जान”
“यहोवा पर भरोसा रख, और भला कर”
7 भजनहार हमें उकसाता है: “यहोवा पर भरोसा रख, और भला कर।” (भजन 37:3क) जब चिंताएँ या शक हमें आ घेरते हैं, तो ऐसे में हमें यहोवा पर पूरा भरोसा रखने की ज़रूरत है। आध्यात्मिक तौर पर हमारी हिफाज़त सिर्फ वही कर सकता है। मूसा ने लिखा था: “जो परमप्रधान के छाए हुए स्थान में बैठा रहे, वह सर्वशक्तिमान की छाया में ठिकाना पाएगा।” (भजन 91:1) इस संसार में ज़ुल्म को बढ़ता देख जब हम परेशान हो जाते हैं, तो हमें यहोवा पर और भी ज़्यादा भरोसा रखने की ज़रूरत है। मिसाल के लिए, चलते-चलते जब हमारे पैर में मोच आ जाए, तो हमें अच्छा लगेगा कि हमारा दोस्त अपना हाथ बढ़ाकर हमें सहारा दे। उसी तरह जब हम वफादारी से यहोवा की राह पर चलने की कोशिश करते हैं, तो हमें उसके सहारे की ज़रूरत होती है।—यशायाह 50:10.
8 दुष्टों की खुशहाली देखकर हमारे अंदर जो जलन की आग भड़क उठती है, उसे शांत करने की सबसे बढ़िया तरकीब है, भेड़ समान लोगों की खोज करने और उन्हें यहोवा के मकसद के बारे में सही ज्ञान देने में खुद को लगा देना। तेज़ी से बढ़ती जा रही बुराई को देखते हुए, हमें दूसरों की मदद करने में पूरी तरह डूब जाना चाहिए। प्रेरित पौलुस ने कहा: “भलाई करना, और उदारता न भूलो; क्योंकि परमेश्वर ऐसे बलिदानों से प्रसन्न होता है।” परमेश्वर के राज्य का शानदार सुसमाचार दूसरों को सुनाने के ज़रिए हम “भलाई” का सबसे महान काम कर सकते हैं। जी हाँ, लोगों को प्रचार करना वाकई हमारी तरफ से “स्तुतिरूपी बलिदान” है।—इब्रानियों 13:15,16; गलतियों 6:10.
9 दाऊद आगे कहता है: “देश [“धरती,” ईज़ी-टू-रीड वर्शन] में बसा रह और सच्चाई में मन लगाए रह।” (भजन 37:3ख) दाऊद के दिनों में “धरती,” वादा किए गए देश का इलाका था जो यहोवा ने इस्राएलियों को दिया था। सुलैमान की हुकूमत के दौरान इस देश की सरहदें, उत्तर में दान से लेकर दक्षिण में, बेर्शेबा तक फैल गयी थीं। इसी ज़मीन पर इस्राएल बसता था। (1 राजा 4:25) आज हम चाहे धरती के किसी कोने में रहते हों, हमें उस दिन का बेसब्री से इंतज़ार है जब पूरी धरती, फिरदौस बन जाएगी और जो धार्मिकता की नयी दुनिया होगी। उस दिन के आने तक, हम आध्यात्मिक तौर पर एक महफूज़ जगह में हैं।—यशायाह 65:13,14.
10 जब हम ‘सच्चाई में मन लगाए रहते हैं,’ तो इसका क्या नतीजा होता है? परमेश्वर की प्रेरणा से लिखा गया एक नीतिवचन हमें याद दिलाता है: “सच्चे मनुष्य पर बहुत आशीर्वाद होते रहते हैं।” (नीतिवचन 28:20) हम चाहे जहाँ भी रहते हों, जब हम सच्चे मन से हर किसी को सुसमाचार सुनाने में लगे रहते हैं, तो यहोवा हमें ढेरों आशीषें देता है। मिसाल के लिए, फ्रैंक और उसकी पत्नी रोज़ को लीजिए। चालीस साल पहले, उन दोनों को उत्तरी स्कॉटलैंड के एक नगर में पायनियर सेवा करने के लिए भेजा गया। उनके पहुँचने से पहले, कई लोग जिन्होंने सच्चाई में दिलचस्पी दिखायी थी, वे अब सच्चाई से धीरे-धीरे दूर जा चुके थे। फिर भी, यह पायनियर जोड़ा पीछे नहीं हटा, बल्कि वहाँ जाकर प्रचार करने और चेले बनाने के काम में जुट गया। आज उसी नगर में एक फलती-फूलती कलीसिया है। यह जोड़ा जिस तरह सच्चे मन से सेवा में लगा रहा, उस पर वाकई यहोवा की आशीष थी। फ्रैंक बड़ी नम्रता के साथ कहता है: “हमारी सबसे बड़ी आशीष यही है कि हम आज भी सच्चाई में हैं, और यहोवा के काम आ रहे हैं।” जी हाँ, जब हम ‘सच्चाई में मन लगाए रहते हैं,’ तो हम पर आशीषों की बौछार होती है और उनके लिए हमारी कदरदानी भी बढ़ती है।
“यहोवा को अपने सुख का मूल जान”
11 यहोवा के साथ अपने रिश्ते को मज़बूत करने और उस पर अपना भरोसा बनाए रखने के लिए हमें “यहोवा को अपने सुख का मूल” जानना होगा। (भजन 37:4क) यह हम कैसे कर सकते हैं? चाहे हालात मुश्किल-से-मुश्किल ही क्यों न हों, हर वक्त उन पर आँसू बहाने के बजाय हमारा ध्यान हमेशा यहोवा पर होना चाहिए। ऐसा करने का एक तरीका है, वक्त निकालकर उसका वचन पढ़ना। (भजन 1:1,2) क्या आपको बाइबल पढ़ाई से खुशी मिलती है? यह खुशी आपको तभी हासिल होगी जब आप यहोवा के बारे में और ज़्यादा सीखने की मंशा से इसे पढ़ेंगे। बाइबल का एक हिस्सा पढ़ने के बाद क्यों न आप थोड़ा रुककर खुद से यह सवाल करें, ‘इस भाग से मैंने यहोवा के बारे क्या सीखा?’ बाइबल की पढ़ाई करते वक्त अच्छा होगा, अगर आप अपने साथ एक नोटबुक या कागज़ रखें। हर बार जब आप बाइबल का एक हिस्सा पढ़ने के बाद, उसके मतलब पर विचार करते हैं, तो आप बाइबल के ऐसे शब्द लिख सकते हैं जो आपको परमेश्वर के किसी मनभावने गुण की याद दिलाते हैं। दाऊद ने एक और भजन में कहा था: “मेरे मुंह के वचन और मेरे हृदय का ध्यान तेरे सम्मुख ग्रहण योग्य हों, [“तुझको प्रसन्न करेंगे,” ईज़ी-टू-रीड वर्शन] हे यहोवा परमेश्वर, मेरी चट्टान और मेरे उद्धार करनेवाले!” (भजन 19:14) जब हम परमेश्वर के वचन पर ध्यान लगाकर मनन करते हैं, तो इससे यहोवा “प्रसन्न” होता है और हमें भी खुशी मिलती है।
12 हम अध्ययन और मनन से खुशी कैसे पा सकते हैं? हम यह लक्ष्य रख सकते हैं कि जितना ज़्यादा हो सके, यहोवा और उसके मार्गों के बारे में सीखें। वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा और यहोवा के करीब आओ जैसी किताबों में जानकारी का खज़ाना है जिस पर हम एहसानमंदी की भावना के साथ मनन कर सकते हैं। और जैसे दाऊद धर्मियों को विश्वास दिलाता है कि ऐसा करने पर यहोवा हमारे “मनोरथों को पूरा करेगा।” (भजन 37:4ख) और बेशक इसी विश्वास की वजह से प्रेरित यूहन्ना ये शब्द लिखने को प्रेरित हुआ: “हमें उसके साम्हने जो हियाव होता है, वह यह है; कि यदि हम उस की इच्छा के अनुसार कुछ मांगते हैं, तो वह हमारी सुनता है। और जब हम जानते हैं, कि जो कुछ हम मांगते हैं वह हमारी सुनता है, तो यह भी जानते हैं, कि जो कुछ हम ने उस से मांगा, वह पाया है।”—1 यूहन्ना 5:14, 15.
13 खराई बनाए रखनेवालों के तौर पर हमें सबसे ज़्यादा खुशी तब होगी, जब यह जग-ज़ाहिर हो जाएगा कि यहोवा ही सारे जहान का महाराजाधिराज और मालिक है। (नीतिवचन 27:11) क्या हमारा दिल खुशी से गद्गद नहीं हो उठता जब हमें खबर मिलती है कि हमारे भाई उन देशों में बड़े ज़ोर-शोर से प्रचार कर रहे हैं, जहाँ एक ज़माने में तानाशाह सरकारें हुकूमत करती थीं? हम यह जानने के लिए बेताब हैं कि संसार के अंत से पहले और क्या-क्या घटेगा जिससे हमें सुसमाचार प्रचार करने की शायद और ज़्यादा आज़ादी मिले। पश्चिमी देशों में रहनेवाले बहुत-से यहोवा के साक्षी पूरे जोश के साथ उन विद्यार्थियों, शरणार्थियों और दूसरे कई लोगों को प्रचार कर रहे हैं, जो कुछ समय के लिए पश्चिम में आ बसे हैं और जिन्हें अपनी मरज़ी से उपासना करने की आज़ादी है। हमारी दुआ है कि जब ये लोग वापस अपने वतन लौटें, तो वे सच्चाई की रोशनी चमकाते रहें, यहाँ तक कि उन देशों में भी जो आध्यात्मिक रूप में घोर अंधकार में हैं।—मत्ती 5:14-16.
“अपने मार्ग की चिन्ता यहोवा पर छोड़”
14 यह जानकर हमारे दिल को कितनी तसल्ली मिलती है कि हमारी चिंताएँ और जिस भारी बोझ तले हमारा दम घुटा जा रहा है, उस बोझ को हटाया जा सकता है! कैसे? दाऊद पहले कहता है: “अपने मार्ग की चिन्ता यहोवा पर छोड़; और उस पर भरोसा रख।” फिर वह आगे कहता है: “वही सबकुछ करेगा।” (किताब-ए-मुकद्दस) (भजन 37:5) हमारी कलीसियाओं में बहुत-से भाई-बहन इस बात का सबूत देते हैं कि यहोवा हर वक्त हमें सहारा देने के लिए तैयार रहता है। (भजन 55:22) पूरे समय के सेवक जैसे पायनियर, सफरी ओवरसियर, मिशनरी या बेथेल में सेवा करनेवाले स्वयंसेवक, ये सभी इस बात की गवाही दे सकते हैं कि यहोवा वाकई अपने लोगों की देखभाल करता है। क्यों न आप उनमें से ऐसे भाई-बहनों से बात करें जिन्हें आप जानते हैं और उनसे पूछें कि यहोवा ने कैसे उनकी मदद की है? इसमें कोई शक नहीं कि आप उनसे कई किस्से सुनेंगे जो दिखाते हैं कि मुश्किल-से-मुश्किल हालात में भी उनकी मदद करने में यहोवा का हाथ कभी छोटा नहीं हुआ है। वह हरदम ज़िंदगी की हर ज़रूरत को पूरा करता है।—भजन 37:25; मत्ती 6:25-34.
15 जब हम यहोवा को अपना आसरा बनाते हैं और उस पर पूरा-पूरा भरोसा रखते हैं, तो हम अपनी ज़िंदगी में भजनहार के अगले शब्दों का अनुभव कर सकते हैं: “वह तेरा धर्म ज्योति की नाईं, और तेरा न्याय दोपहर के उजियाले की नाईं प्रगट करेगा।” (भजन 37:6) यहोवा के साक्षी होने के नाते अकसर ऐसा होता है कि हमारे बारे में झूठी अफवाहें फैलायी जाती हैं। मगर यहोवा नेकदिल लोगों की आँखें खोल देता है ताकि वे देख सकें कि हम सब लोगों को इसलिए प्रचार करते हैं क्योंकि हमें यहोवा से और अपने पड़ोसियों से प्यार है। साथ ही, बहुत-से लोग हमारे अच्छे चालचलन पर चाहे कितना भी कीचड़ क्यों न उछालें, सच्चाई को कभी छिपाया नहीं जा सकता। हमारा विरोध करने या हमें सताने के लिए लोग चाहे कोई भी हथकंडा क्यों न अपना लें, इन सबको सहने के लिए यहोवा हमें थामे रहेगा। अगर हम ऐसा करेंगे, तो नतीजा यह होगा कि जिस तरह दोपहर में सूरज पूरे तेज के साथ आसमान में चमकता है, उसी तरह परमेश्वर के लोगों की धार्मिकता दमकेगी।—1 पतरस 2:12.
(भजन 37:7-11) यहोवा के सामने चुपचाप रह, और धीरज से उसकी प्रतीक्षा कर; उस मनुष्य के कारण न कुढ़, जिसके काम सफल होते हैं, और वह बुरी युक्तियों को निकालता है! 8 क्रोध से परे रह, और जलजलाहट को छोड़ दे! मत कुढ़, उस से बुराई ही निकलेगी। 9 क्योंकि कुकर्मी लोग काट डाले जाएँगे; और जो यहोवा की बाट जोहते हैं, वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे। 10 थोड़े दिन के बीतने पर दुष्ट रहेगा ही नहीं; और तू उसके स्थान को भली भांति देखने पर भी उसको न पाएगा। 11 परन्तु नम्र लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और बड़ी शान्ति के कारण आनन्द मनाएँगे।
“यहोवा को अपने सुख का मूल जान”
‘चुपचाप रह, धीरज से आस्रा रख’
16 भजनहार आगे कहता है: “यहोवा के साम्हने चुपचाप रह, और धीरज से उसका आस्रा रख; उस मनुष्य के कारण न कुढ़, जिसके काम सुफल होते हैं, और वह बुरी युक्तियों को निकालता है!” (भजन 37:7) यहाँ दाऊद इस बात पर ज़ोर दे रहा है कि हम तब तक धीरज धरें जब तक यहोवा कार्यवाही नहीं करता। हालाँकि इस संसार का अंत अभी तक नहीं आया है, लेकिन यह कोई वजह नहीं है कि हम शिकायत करने लगें। क्या हमने यह नहीं देखा कि यहोवा की दया और धीरज की इंतिहा उससे कहीं बढ़कर है जितना हमने सोचा था? क्या आज हम भी धीरज दिखाते हुए इंतज़ार कर सकते हैं, साथ ही अंत आने से पहले सुसमाचार का प्रचार करने में पूरी तरह लगे रह सकते हैं? (मरकुस 13:10) यह वक्त जल्दबाज़ी से काम करने का नहीं है, क्योंकि इससे हमारी खुशी और आध्यात्मिक सुरक्षा छिन सकती है। इसके बजाय, यह वक्त है शैतान के संसार का डटकर मुकाबला करने का, ताकि हम उसके साँचे में ढलकर भ्रष्ट न हो जाएँ। यह वक्त है कि हम अपना चालचलन शुद्ध बनाए रखें और ऐसा कोई काम न करें जिससे हम यहोवा की नज़रों में गिर जाएँ और अपनी धार्मिकता खो बैठें। तो आइए हम लगातार अपने मन से गंदे खयालों को निकाल बाहर फेंकते रहें और विपरीत लिंग या फिर हमारे ही लिंग के लोगों के साथ कोई भी गलत व्यवहार न करें।—कुलुस्सियों 3:5.
17 दाऊद हमें सलाह देता है: “क्रोध से परे रह, और जलजलाहट को छोड़ दे! मत कुढ़, उस से बुराई ही निकलेगी। क्योंकि कुकर्मी लोग काट डाले जाएंगे; और जो यहोवा की बाट जोहते हैं, वही पृथ्वी के अधिकारी होंगे।” (भजन 37:8,9) जी हाँ, हम पूरे विश्वास के साथ उस समय की राह देख सकते हैं—जो अब इतना पास आ गया है—जब यहोवा धरती पर से हर तरह के भ्रष्टाचार के साथ-साथ इसके लिए ज़िम्मेदार लोगों को भी मिटा देगा।
“थोड़े दिन के बीतने पर”
18 “थोड़े दिन के बीतने पर दुष्ट रहेगा ही नहीं; और तू उसके स्थान को भली भांति देखने पर भी उसको न पाएगा।” (भजन 37:10) इन शब्दों से हमें कितना हौसला मिलता है! क्योंकि बहुत जल्द वह घड़ी आनेवाली है, जब इस दुनिया का और उस दौर का अंत होगा जिसमें इंसान यहोवा से अलग रहकर अपने ऊपर सिर्फ संकट ही लाया है! इंसान हर तरह की सरकार आज़मा चुके हैं, मगर वे सब बुरी तरह नाकाम रही हैं। और अब वह समय आ गया है जब एक बार फिर सही मायनों में परमेश्वर की हुकूमत होगी, जी हाँ परमेश्वर का राज्य शासन करेगा जिसका राजा यीशु मसीह है। यह राज्य पूरे संसार की बागडोर अपने हाथ में ले लेगा और अपने सभी दुश्मनों को हटा देगा।—दानिय्येल 2:44.
19 परमेश्वर के राज्य के अधीन नयी दुनिया में, आप चाहे धरती का कोना-कोना छान मारें, लेकिन आपको एक भी “दुष्ट” जन नहीं मिलेगा। दरअसल, उस दौरान जो कोई यहोवा के खिलाफ बगावत करेगा, उसे उसी वक्त खत्म कर दिया जाएगा। ऐसा एक भी इंसान नहीं होगा जो यहोवा के हुकूमत करने के हक पर उँगली उठाए या परमेश्वर के ठहराए अधिकार के अधीन होने से इनकार करे। आपके सभी पड़ोसी आप ही की तरह होंगे, उनमें और आप में यहोवा को खुश करने की दिली-तमन्ना होगी। इस वजह से हम सब कितना सुरक्षित महसूस करेंगे—घर के दरवाज़े पर ताले या सलाखें नहीं होंगी। ऐसा कुछ नहीं होगा जो हमारे भरोसे को तोड़ेगा और हमारी खुशियों को हमसे छीनेगा।—यशायाह 65:20; मीका 4:4; 2 पतरस 3:13.
20 फिर, “नम्र लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे।” (भजन 37:11क) “नम्र लोग” वे लोग हैं, जो दीनता से यहोवा के वक्त का इंतज़ार करते हैं कि वह उन्हें इंसाफ दिलाए और जो-जो ज़्यादतियाँ उनके साथ हुई हैं, उन्हें ठीक करे। वे “बड़ी शान्ति के कारण आनन्द मनाएंगे।” (भजन 37:11ख) यहाँ तक कि आज सच्ची मसीही कलीसिया के साथ जुड़े आध्यात्मिक फिरदौस में भी हमें बड़ी शांति मिलती है।
ढूँढ़े अनमोल रत्न
(भजन 34:18) यहोवा टूटे मनवालों के समीप रहता है, और पिसे हुओं का उद्धार करता है।
परमेश्वर के करीब आइए
टूटे मनवालों के लिए दिलासा
एक मसीही स्त्री जो बहुत लंबे समय से निराशा में घिरी हुई थी, कहती है: ‘यहोवा मुझसे कभी प्यार नहीं कर सकता।’ उसने खुद को यह यकीन दिला दिया था कि यहोवा उससे बहुत दूर है। क्या यहोवा वाकई अपने उन सेवकों से दूर रहता है जो निराशा से जूझ रहे हैं? इसका जवाब हमें भजनहार दाविद के दिलासा-भरे शब्दों से मिलता है, जो उसने भजन 34:18 में परमेश्वर की प्रेरणा से लिखे।
दाविद अच्छी तरह जानता था कि जब यहोवा का कोई वफादार सेवक घोर निराशा का शिकार हो जाता है, तो उस पर क्या बीतती है। अपनी जवानी में दाविद को एक भगोड़े की ज़िंदगी गुज़ारनी पड़ी क्योंकि राजा शाऊल उससे जलता था और हाथ धोकर उसकी जान के पीछे पड़ा था। दाविद पलिश्तियों के गत शहर में जाकर छिप गया जो कि दुश्मनों का इलाका था। उसे लगा कि इस जगह शाऊल उसे ढूँढ़ने बिलकुल नहीं आएगा। लेकिन पलिश्तियों ने उसे पहचान लिया इसलिए उसे पागल होने का नाटक करना पड़ा। इस तरह वह बाल-बाल बचा। दाविद ने अपनी हिफाज़त के लिए परमेश्वर को धन्यवाद दिया और अपने इस अनुभव पर भजन 34 की रचना की।
क्या दाविद को यह लगता था कि परमेश्वर ऐसे लोगों से दूर रहता है जो परेशानियों के दौरान निराश हो जाते हैं या खुद को इस लायक नहीं समझते कि परमेश्वर उन पर ध्यान दे? दाविद लिखता है: “यहोवा टूटे मनवालों के समीप रहता है, और पिसे हुओं का उद्धार करता है।” (आयत 18) आइए देखें कि ये शब्द हमें कैसे दिलासा और आशा से भर देते हैं।
“यहोवा . . . समीप रहता है।” एक किताब बताती है कि इस वाक्य “से यह खुलकर ज़ाहिर होता है कि प्रभु चौकन्ना रहता है और अपने लोगों पर ध्यान देता है, वह उनकी मदद और हिफाज़त के लिए हमेशा तैयार रहता है।” यह जानकर कितना दिलासा मिलता है कि यहोवा अपने लोगों की देखभाल करता है। वह देख सकता है कि इन ‘संकटों से भरे वक्त’ में उन्हें किन-किन मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है और वह उनके दिल की हर बात जानता है।—2 तीमुथियुस 3:1; प्रेषितों 17:27.
“टूटे मनवालों के।” कुछ संस्कृतियों में ‘टूटे मन’ या टूटे दिल का मतलब होता है कि किसी को उसका प्यार नहीं मिल पाया। लेकिन एक विद्वान कहता है कि भजनहार के ये शब्द “ज़िंदगी के छोटे-बड़े दुखों” को दर्शाते हैं। जी हाँ, परमेश्वर के वफादार सेवकों को भी कई बार बड़ी-बड़ी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है जिनसे उनका मन टूट जाता है।
“पिसे हुओं” के। जब कोई इंसान निराशा के गहरे सागर में डूब जाता है, तो शायद वह अपनी नज़रों में इतना गिरा हुआ महसूस करे कि कुछ समय के लिए सारी आशा खो बैठे। बाइबल अनुवादकों के लिए लिखी एक निर्देश-पुस्तिका कहती है कि भजनहार के इन शब्दों को इस तरह भी कहा जा सकता है, “वे लोग जिन्हें अपना आने वाला कल अंधकार से भरा लगता है।”
यहोवा “टूटे मनवालों” और “पिसे हुओं” के साथ कैसे पेश आता है? क्या वह उनसे दूर रहता है और सोचता है कि ऐसे लोग उसके प्यार और परवाह के लायक नहीं? हरगिज़ नहीं! जैसे प्यार करनेवाला एक पिता अपने बच्चे को मुश्किल में देखकर गोद में उठा लेता है और उसे पुचकारता है, उसी तरह यहोवा भी मदद के लिए गुहार लगा रहे अपने सेवकों के करीब रहता है। वह उन्हें दिलासा देने और उनके टूटे और पिसे मन पर मरहम लगाने के लिए बेताब रहता है। यहोवा ऐसे लोगों को किसी भी परेशानी का सामना करने के लिए बुद्धि और ताकत दे सकता है।—2 कुरिंथियों 4:7; याकूब 1:5.
क्यों न आप यह जानने की कोशिश करें कि आप यहोवा के और करीब कैसे आ सकते हैं। करुणा से भरा यहोवा परमेश्वर वादा करता है: “मैं . . . उसके संग भी रहता हूं, जो खेदित और नम्र है, कि, नम्र लोगों के हृदय और खेदित लोगों के मन को हर्षित करूं।”—यशायाह 57:15.
(भजन 34:20) वह उसकी हड्डी हड्डी की रक्षा करता है; और उन में से एक भी टूटने नहीं पाती।
‘वह दिन तुम को स्मरण दिलानेवाला ठहरे’
19 फसह के लिए मेम्ने की बलि चढ़ाते वक्त, इसराएलियों को इस बात का ध्यान रखना था कि वे मेम्ने की एक भी हड्डी न तोड़ें। (निर्ग. 12:46; गिन. 9:11, 12) ‘परमेश्वर के मेम्ने’ के बारे में क्या, जो फिरौती देने आया था? (यूह. 1:29) उसे सूली पर चढ़ाया गया था और उसकी दोनों तरफ एक-एक अपराधी को भी सूली पर लटकाया गया था। यहूदियों ने पीलातुस से कहा कि सूली पर चढ़ाए गए अपराधियों की हड्डियाँ तोड़ी जाएँ, ताकि उनकी मौत जल्दी हो जाए। इस तरह उन अपराधियों की लाशें निसान 15 शुरू होने से पहले ही सूली पर से उतार ली जातीं, क्योंकि निसान 15 बड़ा सब्त का दिन था। सैनिकों ने यीशु की दोनों तरफ लटके अपराधियों की टाँगें तोड़ दीं, “मगर जब उन्होंने यीशु के पास आकर देखा कि वह पहले ही मर चुका है, तो उसकी टाँगें नहीं तोड़ीं।” (यूह. 19:31-34) ठीक जैसे फसह के मेम्ने की हड्डियाँ नहीं तोड़ी गयी थीं, वैसे ही यीशु की हड्डियाँ भी नहीं तोड़ी गयीं। इस तरह फसह का मेम्ना, यीशु के बलिदान की महज़ एक “छाया” था, जो ईसवी सन्33 के निसान 14 को दिया गया था। (इब्रा. 10:1) साथ ही, इससे भजन 34:20 में दर्ज़ शब्द भी पूरे हुए। इस ब्यौरे से बाइबल में दी भविष्यवाणी पर हमारा भरोसा और भी मज़बूत होना चाहिए।
13-19 जून
पाएँ बाइबल का खज़ाना | भजन 38-44
“यहोवा हमें बीमारी के दौरान सँभालता है”
(भजन 41:1, 2) क्या ही धन्य है वह, जो कंगाल की सुधि रखता है! विपत्ति के दिन यहोवा उसको बचाएगा। 2 यहोवा उसकी रक्षा करके उसको जीवित रखेगा, और वह पृथ्वी पर भाग्यवान होगा। तू उसको शत्रुओं की इच्छा पर न छोड़।
यहोवा आपको सँभालेगा
7 अगर आप बीमार हैं, तो आप इस बात का ज़रूर यकीन रख सकते हैं कि यहोवा आपको दिलासा देगा और आपको सँभालेगा, जैसे उसने बीते समय में अपने सेवकों को सँभाला। राजा दाविद ने लिखा, “क्या ही धन्य है वह, जो कंगाल की सुधि रखता है! विपत्ति के दिन यहोवा उसको बचाएगा। यहोवा उसकी रक्षा करके उसको जीवित रखेगा।” (भज. 41:1, 2) हम जानते हैं कि दाविद के दिनों में जिस व्यक्ति ने किसी कंगाल या दीन-दुखियारे की मदद की, वह हमेशा जीवित नहीं रहा। इसलिए दाविद का यह मतलब बिलकुल नहीं था कि इस तरह मदद करनेवाले लोग चमत्कार से जीवित रहेंगे और हमेशा की ज़िंदगी पाएँगे। तो फिर उसके कहने का क्या मतलब हो सकता है? यही कि परमेश्वर अच्छे और वफादार लोगों की मदद करेगा। कैसे? दाविद समझाता है, “जब वह [रोग] के मारे [बिस्तर] पर पड़ा हो, तब यहोवा उसे सम्भालेगा; तू रोग में उसके पूरे बिछौने को उलटकर ठीक करेगा।” (भज. 41:3) जी हाँ, जो व्यक्ति किसी दीन-दुखियारे की मदद करता है, उसका यह काम और उसकी वफादारी परमेश्वर कभी नहीं भूलता। इसलिए, अगर वह बीमार हो जाता है, तो परमेश्वर उसे बुद्धि और ताकत दे सकता है। साथ ही, परमेश्वर ने इंसान का शरीर इस तरह बनाया है कि यह खुद को ठीक कर सकता है।
प्र91 10/1 पेज 14 पै 6, अँग्रेज़ी
यहोवा की सनातन भुजाओं को अपना सहारा बनाइए
6 एक लिहाज़ करनेवाला व्यक्ति ज़रूरतमंदों की मदद करता है। कई बार एक इंसान कमज़ोर पड़ सकता है, जब वह “विपत्ति के दिन” का सामना करता है। यह विपत्ति का दिन मुसीबत की कोई घड़ी या मुसीबतों का एक लंबा दौर हो सकता है। पर ऐसे में अगर वह परमेश्वर पर भरोसा रखे, तो परमेश्वर उसको ज़रूर सँभालेगा और लोगों को जब पता चलेगा कि कैसे परमेश्वर ने उसके साथ दया की तो वे उस व्यक्ति को “पृथ्वी पर” खुश व्यक्ति कहेंगे। परमेश्वर ने दाविद को सँभाले रखा, जब वह “व्याधि के मारे शय्या पर पड़ा” था। यह शायद उस वक्त की बात थी, जब दाविद का बेटा अबशालोम इसराएल की राजगद्दी हड़पना चाहता था और दाविद बहुत तनाव में था।—2 शमूएल 15:1-6.
(भजन 41:3) जब वह व्याधि के मारे शय्या पर पड़ा हो, तब यहोवा उसे सम्भालेगा; तू रोग में उसके पूरे बिछौने को उलटकर ठीक करेगा।
पुराने ज़माने में यहोवा अपने लोगों का “छुड़ानेवाला” था
12 ऐसे हालात में भी, दाऊद ने अपने ‘छुड़ानेवाले’ पर भरोसा रखा। वह जानता था कि अगर यहोवा का कोई सच्चा उपासक बीमार पड़ जाए, तो वह उसे अकेला नहीं छोड़ेगा। उसने कहा: “विपत्ति के दिन यहोवा उसको बचाएगा। यहोवा [“खुद,” NW] उसे सम्भालेगा; तू रोग में उसके पूरे बिछौने को उलटकर ठीक करेगा।” (भज. 41:1, 3) गौर कीजिए कि इस आयत में दाऊद ने अपना भरोसा किन शब्दों में ज़ाहिर किया। उसने कहा, ‘यहोवा खुद उसे सम्भालेगा।’ दाऊद को पक्का यकीन था कि यहोवा उसे छुड़ाएगा। मगर कैसे?
13 दाऊद ने यह उम्मीद नहीं की कि यहोवा कोई चमत्कार करके उसकी बीमारी ठीक करेगा। इसके बजाय, उसे पूरा भरोसा था कि यहोवा “उसे सम्भालेगा।” मतलब वह उसकी बीमारी में उसका सहारा बनेगा और उसे ताकत देगा। दाऊद को वाकई ऐसी मदद की ज़रूरत थी। क्योंकि बीमारी की वजह से वह कमज़ोर हो चुका था, ऊपर से उसके दुश्मन बुरी-बुरी बातें कहकर उसकी हिम्मत तोड़ रहे थे। (आयत 5, 6) यहोवा ने किस तरह दाऊद को ताकत दी? हो सकता है, उसने दाऊद को वे बातें याद करने में मदद दी हो, जिनसे दाऊद को ढाढ़स मिला होगा। दाऊद आगे कहता है: “मुझे तो तू . . . मेरी खराई में सम्भाले रहता है।” (आयत 12, NHT) दाऊद को इस बात से भी ताकत मिली होगी कि भले ही वह बीमार था और उसके दुश्मन उसके बारे में बुरा-भला कहते थे, फिर भी यहोवा की नज़र में वह एक खरा इंसान था। आखिरकार, दाऊद अपनी बीमारी से ठीक हो गया। क्या यह जानकर हमें हिम्मत नहीं मिलती कि यहोवा अपने बीमार सेवकों को सँभाले रहता है?—2 कुरि. 1:3.
(भजन 41:12) मुझे तो तू खराई में सम्भालता, और सर्वदा के लिये अपने सम्मुख स्थिर करता है।
यहोवा आपको सँभालेगा
18 जब तक हम इस दुनिया में जी रहे हैं और हम असिद्ध हैं तब तक हमें बीमारियों से तो जूझना ही पड़ेगा। और बीमार होने पर हम यह उम्मीद नहीं कर सकते कि यहोवा चमत्कार करके हमें ठीक कर देगा। लेकिन हम उस शानदार भविष्य की आस ज़रूर लगा सकते हैं जब यहोवा हमें पूरी तरह ठीक कर देगा। प्रकाशितवाक्य 22:1, 2 के मुताबिक, प्रेषित यूहन्ना ने दर्शन में “जीवन देनेवाले पानी की नदी” और ‘जीवन देनेवाले ऐसे पेड़’ देखे, जिनकी पत्तियों से “राष्ट्रों के लोगों के रोग दूर” हो जाएँगे। यहाँ जड़ी-बूटियों से बनी किसी दवा की बात नहीं की गयी है, जो हम ठीक होने के लिए अभी या नयी दुनिया में ले सकते हैं। इसके बजाय, ये उन सभी इंतज़ामों को दर्शाते हैं जो यहोवा और यीशु करेंगे ताकि आज्ञा माननेवाले लोगों को हमेशा की ज़िंदगी मिल सके।—यशा. 35:5, 6.
19 उस शानदार भविष्य को देखने के लिए हमारी आँखें तरस रही हैं। लेकिन तब तक हम यकीन रख सकते हैं कि यहोवा अपने हर सेवक से प्यार करता है। वह समझता है कि जब हम बीमार होते हैं, तो हमें कैसा महसूस होता है। दाविद की तरह, हमें यकीन है कि अगर हम बीमार हो जाते हैं, तो यहोवा हमें अकेला नहीं छोड़ेगा। वह हमेशा उनकी देखभाल करेगा, जो उसके वफादार रहते हैं।—भज. 41:12.
खराई बनाए रखना क्यों ज़रूरी है?
3. हमारी आशा के लिए ज़रूरी
15 जैसा कि हमने सीखा, यहोवा खराई के आधार पर ही हमारा न्याय करेगा। इसलिए खराई हमारे भविष्य की आशा के लिए बहुत ज़रूरी है। दाऊद इस बात को अच्छी तरह जानता था। (भजन 41:12 पढ़िए।) दाऊद को आशा थी कि परमेश्वर का अनुग्रह उस पर सदा बना रहेगा। आज के मसीहियों की तरह वह भी हमेशा तक जीने की आस लगाए था। दाऊद चाहता था कि वह यहोवा परमेश्वर की सेवा करते हुए उसके साथ एक करीबी रिश्ता बरकरार रखे। वह इस बात को अच्छी तरह समझता था कि अगर वह अपनी इस आशा को पूरा होते देखना चाहता है, तो उसके लिए खरे बने रहना बहुत ज़रूरी है। अगर हम भी खराई बनाए रखें, तो यहोवा हमें सँभालेगा, सिखाएगा, हमारा मार्गदर्शन करेगा और हमें आशीष देगा।
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
(भजन 39:1, 2) मैंने कहा, “मैं अपनी चालचलन में चौकसी करूँगा, ताकि मेरी जीभ से पाप न हो; जब तक दुष्ट मेरे सामने है, तब तक मैं लगाम लगाए अपना मुँह बन्द किए रहूँगा।” 2 मैं मौन धारण कर गूँगा बन गया, और भलाई की ओर से भी चुप्पी साधे रहा; और मेरी पीड़ा बढ़ गई।
“चुप रहने का समय”
जब हमारा वास्ता ऐसे लोगों से पड़ता है जो यहोवा के नियमों को नहीं मानते, तब अपनी ज़बान को काबू में रखना समझदारी है। अगर कभी प्रचार में लोग हमें बुरा-भला कहें तो ऐसे में खामोश रहना ही अच्छा है। उसी तरह, जब हमारे साथ पढ़नेवाले या साथ काम करनेवाले अश्लील चुटकुले सुनाते हैं या कोई गंदी बात करते हैं, तब भी हमें चुप रहना चाहिए, क्योंकि अगर हम उनकी बात पर हँसें या हामी भरें तो इससे ज़ाहिर होगा कि हम उनका साथ दे रहे हैं। (इफि. 5:3) भजनहार ने लिखा: “जब तक दुष्ट मेरे साम्हने है, तब तक मैं लगाम लगाए अपना मुंह बन्द किए रहूंगा।”—भज. 39:1
भजन संहिता किताब के पहले भाग की झलकियाँ
39:1, 2. जब दुष्ट लोग हमसे ऐसी जानकारी उगलवाने की कोशिश करते हैं, जिनसे वे हमारे मसीही भाई-बहनों को नुकसान पहुँचा सकें, तब हमें बुद्धि से काम लेना चाहिए और ‘लगाम लगाकर अपना मुंह बंद रखना’ चाहिए, यानी हमें खामोश रहना चाहिए।
(भजन 41:9) मेरा परम मित्र जिस पर मैं भरोसा रखता था, जो मेरी रोटी खाता था, उस ने भी मेरे विरुद्ध लात उठाई है।
उन्हें मसीहा मिल गया!
धोखा दिया और अकेला छोड़ दिया गया!
5 बताया गया था कि मसीहा का धोखेबाज़ दोस्त उससे छल करेगा। दाविद ने भविष्यवाणी की थी कि “मेरा परम मित्र जिस पर मैं भरोसा रखता था, जो मेरी रोटी खाता था, उस ने भी मेरे विरुद्ध लात उठाई है।” (भज. 41:9) जो इंसान किसी के साथ रोटी खाता है, उसे दोस्त माना जाता है। (उत्प. 31:54) इसलिए यहूदा इस्करियोती का उसे धोखा देना बहुत बड़ा छल था। यीशु उस वक्त अपने प्रेषितों का ध्यान दाविद की भविष्यवाणी की तरफ खींच रहा था जब उसने अपने धोखेबाज़ चेले की तरफ इशारा करते हुए कहा: “मैं तुम सबके बारे में बात नहीं कर रहा। जिन्हें मैंने चुना है उन्हें मैं जानता हूँ, मगर शास्त्र की इस बात का पूरा होना ज़रूरी है, ‘जो मेरी रोटी खाया करता था उसी ने मेरे खिलाफ लात उठाई है।’”—यूह. 13:18.
पुराने ज़माने में यहोवा अपने लोगों का “छुड़ानेवाला” था
11 मिसाल के लिए, दाऊद बताता है कि उसके एक जिगरी दोस्त ने उसे दगा दी। यह वही दोस्त था, जो उसके साथ रोटी खाया करता था। (आयत 9) इससे हमें वह घटना याद आती है, जब दाऊद के सबसे भरोसेमंद सलाहकार अहीतोपेल ने उसके साथ गद्दारी की और अबशालोम के साथ मिलकर उसके खिलाफ बगावत की। (2 शमू. 15:31; 16:15) एक तरफ दाऊद अपनी बीमारी से इतना कमज़ोर हो चुका था कि बिस्तर से उठ नहीं पा रहा था। दूसरी तरफ, उसके खिलाफ साज़िश रचनेवाले उसकी मौत की कामना कर रहे थे, ताकि वे अपने मंसूबों को अंजाम दे सकें। ज़रा सोचिए, ऐसे में दाऊद पर क्या बीती होगी।—आयत 5.
20-26 जून
पाएँ बाइबल का खज़ाना | भजन 45-51
“यहोवा टूटे मनवालों को नहीं ठुकराता”
(भजन 51:1-4) हे परमेश्वर, अपने अटल प्यार के मुताबिक मुझ पर रहम कर। अपनी बड़ी दया के मुताबिक मेरे अपराध मिटा दे। 2 मेरा दोष पूरी तरह धो दे, मेरे पाप दूर करके मुझे शुद्ध कर दे। 3 क्योंकि मुझे अपने अपराधों का पूरा-पूरा एहसास है, मेरा पाप हमेशा मेरे सामने रहता है। 4 मैंने तेरे खिलाफ, हाँ, सबसे बढ़कर तेरे खिलाफ पाप किया है, मैंने तेरी नज़र में बुरा काम किया है। इसलिए तू जो बोलता है वह सही है, तेरा न्याय सच्चा है।
प्र93 3/15 पेज 10-11 पै 9-13, अँग्रेज़ी
यहोवा की दया हमें निराश होने से बचाती है
9 दाविद और बतशेबा अपने गलत काम के लिए यहोवा परमेश्वर के सामने कसूरवार थे। वे अपने इस पाप के लिए मौत की सज़ा के लायक थे, लेकिन परमेश्वर की दया उन पर थी, खास तौर पर दाविद के ऊपर क्योंकि परमेश्वर ने उसके साथ राज की वाचा बाँधी थी। (2 शमूएल 7:11-16) दाविद और बतशेबा को अपने किए पाप का जो पछतावा था वह हम भजन 51 में समझ पाते हैं। जब नातान भविष्यवक्ता ने उसे यह एहसास दिलाया कि उसका पाप कितना बड़ा है, तो दाविद ने पूरे मन से पछतावा किया और यह दिल छू लेनेवाला भजन लिखा। दाविद को उसके पाप का एहसास दिलाने के लिए नातान को हिम्मत की ज़रूरत थी, ठीक जैसे आज मसीही प्राचीनों को भी ऐसे मामलों में हिम्मत दिखानी पड़ती है। दाविद अपने दोष से नहीं मुकरा और न ही उसने नातान को मार डालने का हुक्म दिया, बल्कि उसने नम्रता से अपने पाप कबूल किए। (2 शमूएल 12:1-14) भजन 51 से हमें पता चलता है कि दाविद को अपने पाप का कितना पछतावा था। यह प्रार्थना खास तौर पर हमारे लिए तब ज़्यादा मायने रखती है, जब हम कोई पाप कर बैठते हैं और हमें परमेश्वर से माफी चाहिए होती है।
हम परमेश्वर के सामने जवाबदेह हैं
10 दाविद ने अपना पाप कबूल किया और यह बिनती की: “हे परमेश्वर, अपनी करुणा के अनुसार मुझ पर अनुग्रह कर; अपनी बड़ी दया के अनुसार मेरे अपराधों को मिटा दे।” (भजन 51:1) पाप करके दाविद परमेश्वर के कानून के खिलाफ गया। लेकिन परमेश्वर की करुणा या अटल प्यार के बिना वह उसके साथ दोबारा एक अच्छा रिश्ता नहीं बना पाता। राजा दाविद को इस बात का पूरा यकीन था कि परमेश्वर उसके अपराधों को मिटा देगा क्योंकि बीते समय में परमेश्वर ने उस पर कई बार दया की थी।
11 प्रायश्चित के दिन चढ़ाए जानेवाला बलिदान पापों की माफी देता था और परमेश्वर इसके ज़रिए यह बताना चाहता था कि उसके पास एक ऐसा रास्ता है, जिससे वह पश्चाताप करनेवालों को शुद्ध कर सकता है। आज हमें वह रास्ता पता है जिनसे हमें परमेश्वर की दया और माफी मिल सकती है, वह है यीशु मसीह के फिरौती बलिदान पर विश्वास। दाविद सिर्फ यह जानता था कि बलिदान अलग-अलग किस्म के होते हैं और किसी बात की निशानी हैं। इसके बावजूद उसने परमेश्वर की महा-कृपा पर विश्वास किया, तो आज यहोवा के सेवकों को उस बलिदान पर कितना विश्वास करना चाहिए जो उनके उद्धार के लिए दिया गया है।—रोमियों 5:8; इब्रानियों 10:1.
12 दाविद ने परमेश्वर से गिड़गिड़ाकर यह भी कहा: “मुझे भली भाँति धोकर मेरा अधर्म दूर कर, और मेरा पाप छुड़ाकर मुझे शुद्ध कर! मैं तो अपने अपराधों को जानता हूँ, और मेरा पाप निरन्तर मेरी दृष्टि में रहता है।” (भजन 51:2, 3) पाप करने का मतलब है, परमेश्वर के स्तरों को मानने से चूक जाना। दाविद से यही हुआ। लेकिन वह उन खूनी या व्यभिचारियों जैसा नहीं था, जो पाप करके बेफिक्र रहते हैं या उनके जैसा नहीं था जिन्हें सिर्फ सज़ा मिलने या कोई बीमारी होने का डर रहता है। दाविद यहोवा से प्यार करता था इसीलिए वह बुराई से घृणा करता था। (भजन 97:10) वह अपने पाप की वजह से इतना गंदा महसूस कर रहा था कि वह चाहता था कि परमेश्वर उसे पूरी तरह शुद्ध करे। दाविद अच्छी तरह जानता था कि उसने क्या पाप किए हैं और उसे इस बात का पछतावा था कि उसने अपनी बुरी इच्छाओं को खुद पर हावी होने दिया। उसका पाप निरन्तर उसके सामने था क्योंकि परमेश्वर का भय माननेवालों का ज़मीर उन्हें तब तक कचोटता रहता है जब तक कि वे पश्चाताप करके अपने पाप कबूल न कर लें और यहोवा उन्हें माफ न कर दे।
13 दाविद यह जानता था कि वह अपने कामों के लिए यहोवा के सामने जवाबदेह है, इसलिए उसने कहा: “मैं ने केवल तेरे ही विरुद्ध पाप किया, और जो तेरी दृष्टि में बुरा है, वह किया है; ताकि तू बोलने में धर्मी और न्याय करने में निष्कलंक ठहरे।” (भजन 51:4) दाविद ने परमेश्वर के कानून तोड़े, एक राजा के नाते अपनी ज़िम्मेदारियों को तुच्छ समझा और ‘यहोवा के शत्रुओं को तिरस्कार करने का बड़ा अवसर दिया।’ (2 शमूएल 12:14; निर्गमन 20:13, 14, 17) दाविद ने जो किया उसकी वजह से उसने इसराएली समाज और अपने परिवार के सदस्यों के खिलाफ भी पाप किया, ठीक जैसे कोई जिसका बपतिस्मा हो चुका है अपने गलत कामों से मंडली के भाई-बहनों को और अपने परिवारवालों को दुख पहुँचाता है। हालाँकि दाविद ने ऊरिय्याह के खिलाफ पाप किया था, मगर उसे पता था कि वह यहोवा के सामने जवाबदेह है। (उत्पत्ति 39:7-9 से तुलना कीजिए।) दाविद जानता था कि यहोवा जो भी न्याय करेगा वह सही होगा। (रोमियों 3:4) जिन मसीहियों ने पाप किया है, उन्हें भी ऐसा ही नज़रिया अपनाना चाहिए।
(भजन 51:7-9) जूफा से मुझे शुद्ध कर, तो मैं पवित्र हो जाऊँगा; 8 मुझे धो, और मैं हिम से भी अधिक श्वेत बनूँगा। मुझे हर्ष और आनन्द की बातें सुना, जिससे जो हड्डियाँ तू ने तोड़ डाली हैं, वे मगन हो जाएँ। 9 अपना मुख मेरे पापों की ओर से फेर ले, और मेरे सारे अधर्म के कामों को मिटा डाल।
प्र93 3/15 पेज 12-13 पै 18-20, अँग्रेज़ी
यहोवा की दया हमें निराश होने से बचाती है
पहले जैसी खुशी पाने के लिए माफी माँगिए
18 एक मसीही जिसके ज़मीर ने उसे कभी दोषी ठहराया हो, दाविद के इन शब्दों को अच्छी तरह समझ सकता है: “मुझे हर्ष और आनन्द की बातें सुना, जिससे जो हड्डियाँ तू ने तोड़ डाली हैं, वे मगन हो जाएँ।” (भजन 51:8) पश्चाताप करने और अपने पाप कबूल करने से पहले ही दाविद का ज़मीर उसे कचोटने लगा था, जिसकी वजह से वह बहुत दुखी हो गया था। कुशल संगीतकारों और निपुण गायकों के आनन्द भरे गीत भी उसके दिल को खुश नहीं कर सके। उसे परमेश्वर की मंज़ूरी खोने का इतना दुख था कि वह उस इंसान की तरह हो गया था जिसकी हड्डियाँ बेरहमी से तोड़ी गयी हों। वह परमेश्वर से माफी पाना चाहता था, फिर से उसके साथ एक अच्छा रिश्ता बनाना चाहता था और पहले की तरह खुश रहना चाहता था। आज भी, पश्चाताप करनेवाले एक व्यक्ति को यहोवा से माफी माँगनी चाहिए ताकि वह दोबारा उसके साथ अपना रिश्ता कायम कर सके और पहले की तरह खुशी महसूस कर सके। और जब वह “पवित्र शक्ति से मिलनेवाली खुशी” दोबारा पा लेता है, तो यह दिखाता है कि यहोवा ने उसे माफ कर दिया है और वह उससे प्यार करता है। (1 थिस्सलुनीकियों 1:6) इससे कितना दिलासा मिलता है!
19 दाविद ने प्रार्थना में यह भी कहा: “अपना मुख मेरे पापों की ओर से फेर ले, और मेरे सारे अधर्म के कामों को मिटा डाल।” (भजन 51:9) एक इंसान यह उम्मीद नहीं कर सकता कि पाप करने के बाद भी यहोवा की मंज़ूरी उस पर बनी रहेगी। इसलिए दाविद ने यहोवा से गुज़ारिश की कि वह उसके पापों की ओर से अपना मुँह फेर ले। राजा दाविद ने परमेश्वर से यह भी बिनती की कि वह उसके सारे पापों और अधर्म के कामों को मिटा दे। अगर यहोवा ऐसा करता, तो इससे दाविद का न सिर्फ हौसला बढ़ता बल्कि उसका ज़मीर उसे कचोटना बंद कर देता क्योंकि उसके प्यारे परमेश्वर ने उसे माफ कर दिया था।
तब क्या जब आपने पाप किया हो?
20 भजन 51 से पता चलता है कि अगर यहोवा के किसी सेवक को अपने पाप का पछतावा है, तो वह यहोवा से बिना किसी हिचकिचाहट के प्रार्थना कर सकता है कि परमेश्वर उस पर कृपा करे और उसे शुद्ध करे। अगर हम भी पाप कर बैठें, तो हमें यहोवा से नम्र होकर माफी माँगनी चाहिए, एक साफ ज़मीर के लिए और पहली जैसी खुशी पाने के लिए भी प्रार्थना करनी चाहिए। पश्चाताप करनेवाले मसीही यहोवा से इस बात के लिए प्रार्थना कर सकते हैं क्योंकि “वह पूरी रीति से क्षमा” करता है। (यशायाह 55:7; भजन 103:10-14) साथ ही, उन्हें मंडली के प्राचीनों को भी बताना चाहिए ताकि वे ज़रूरी मदद दे सकें।—याकूब 5:13-15.
(भजन 51:10-17) हे परमेश्वर, मेरे अन्दर शुद्ध मन उत्पन्न कर, और मेरे भीतर स्थिर आत्मा नये सिरे से उत्पन्न कर। 11 मुझे अपने सामने से निकाल न दे, और अपने पवित्र आत्मा को मुझ से अलग न कर। 12 अपने किए हुए उद्धार का हर्ष मुझे फिर से दे, और उदार आत्मा देकर मुझे सम्भाल। 13 तब मैं अपराधियों को तेरा मार्ग सिखाऊँगा, और पापी तेरी ओर फिरेंगे। 14 हे परमेश्वर, हे मेरे उद्धारकर्त्ता परमेश्वर, मुझे हत्या के अपराध से छुड़ा ले, तब मैं तेरे धर्म का जयजयकार करने पाऊँगा। 15 हे प्रभु, मेरा मुँह खोल दे तब मैं तेरा गुणानुवाद कर सकूँगा। 16 क्योंकि तू मेलबलि से प्रसन्न नहीं होता, नहीं तो मैं देता; होमबलि से भी तू प्रसन्न नहीं होता। 17 टूटा मन परमेश्वर के योग्य बलिदान है; हे परमेश्वर, तू टूटे और पिसे हुए मन को तुच्छ नहीं जानता।
हम अपना चालचलन पवित्र बनाए रख सकते हैं
6 यहोवा के बारे में जानने से पहले, शायद हमें ऐसे काम करना पसंद हो जो यहोवा को मंज़ूर नहीं हैं। हो सकता है वे काम करने की इच्छा आज भी हमारे मन में उठती हो। लेकिन यह चुनौती पार करने और ज़रूरी बदलाव करने में यहोवा हमारी मदद कर सकता है, ताकि हम उसे खुश करनेवाले काम कर सकें। ज़रा राजा दाविद पर गौर कीजिए। उसने बतशेबा के साथ लैंगिक संबंध बनाकर पाप किया। मगर बाद में उसने सच्चे दिल से पश्चाताप किया। उसने यहोवा से गिड़गिड़ाकर प्रार्थना की कि वह उसे “शुद्ध मन” दे और आज्ञा माननेवाला बनने में उसकी मदद करे। (भज. 51:10, 12) हमारे अंदर अगर पहले बुरी इच्छाएँ काफी ज़बरदस्त थीं और उन्हें ठुकराने में आज भी हम संघर्ष कर रहे हैं तो भी यहोवा हमारी मदद कर सकता है। वह हमारे अंदर उसकी आज्ञा मानने और सही काम करने की ऐसी ज़बरदस्त इच्छा पैदा कर सकता है, जिससे बुरी इच्छाएँ दब सकती हैं। साथ ही, गलत खयालों को हम पर हावी होने से रोकने में भी वह हमारी मदद कर सकता है।—भज. 119:133.
प्र93 3/15 पेज 14-17 पै 4-16, अँग्रेज़ी
यहोवा टूटे मन को तुच्छ नहीं जानता
शुद्ध मन ज़रूरी है
4 पाप की वजह से अगर एक समर्पित मसीही का परमेश्वर के साथ रिश्ता कमज़ोर पड़ गया है, तो यहोवा की दया और माफी पाने के अलावा उसे खुद क्या करना चाहिए? दाविद ने यह बिनती की: “हे परमेश्वर, मेरे अन्दर शुद्ध मन उत्पन्न कर, और मेरे भीतर स्थिर आत्मा नये सिरे से उत्पन्न कर।” (भजन 51:10) शायद दाविद ने यह बिनती इसलिए की क्योंकि वह जानता था कि उसके दिल में पाप करने की फितरत अब भी है। हमने शायद ऐसे कोई गंभीर पाप न किए हों जो दाविद ने बतशेबा और ऊरिय्याह के खिलाफ किए थे। लेकिन हमें यहोवा की मदद की ज़रूरत है ताकि हम बुरे चालचलन या गंभीर पाप में न फँसें। यहोवा की मदद से हम अपने अंदर ऐसी बुरी इच्छाओं और आदतों को पनपने से रोक सकते हैं जैसे कि लालच और नफरत, जो चोरी या खून करने के बराबर है।—कुलुस्सियों 3:5, 6; 1 यूहन्ना 3:15.
5 यहोवा चाहता है कि उसके सेवक “शुद्ध मन” यानी नेक इरादे से उसकी सेवा करें। जब दाविद को एहसास हुआ कि उसके इरादे नेक नहीं थे तो उसने परमेश्वर से प्रार्थना की कि वह उसके मन को शुद्ध करे और परमेश्वर के स्तरों के मुताबिक उसे ढाले। भजनहार दाविद अपने अंदर अच्छी सोच एक नए सिरे से उत्पन्न करना चाहता था, जो उसे पाप करने से दूर रहने में और परमेश्वर के कानूनों और स्तरों पर टिके रहने में मदद करती।
पवित्र शक्ति ज़रूरी है
6 अपनी गलतियों की वजह से हम इतने निराश हो सकते हैं कि हम शायद यह सोचने लगे कि परमेश्वर हमें छोड़ देगा और अपनी पवित्र शक्ति देना बंद कर देगा। दाविद ने ऐसा ही महसूस किया इसलिए उसने यहोवा से गिड़गिड़ाकर बिनती की: “मुझे अपने सामने से निकाल न दे, और अपने पवित्र आत्मा को मुझ से अलग न कर।” (भजन 51:11) दाविद अपनी गलती पर बहुत पछताया और नम्र हुआ, जिस वजह से उसे लगने लगा कि वह परमेश्वर की सेवा के लायक नहीं है। अगर परमेश्वर उसे अपने सामने से निकाल देता, तो वह उसकी मंज़ूरी, सुख-चैन और आशीष खो बैठता। यहोवा की पवित्र शक्ति की मदद से ही वह उसके साथ फिर से एक अच्छा रिश्ता बना पाता। उसकी मदद से वह यहोवा से मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना कर सकता था, जिस पर चलने से वह यहोवा को खुश कर सकता था, पाप से दूर रह सकता था और बुद्धिमानी से राजा के तौर पर सेवा कर सकता था। उसे यह एहसास था कि उसने पवित्र शक्ति देनेवाले के खिलाफ पाप किया है, इसलिए उसने यहोवा से बिनती की कि वह अपनी पवित्र शक्ति को उससे अलग न कर दे।
7 हमारे बारे में क्या? हमें पवित्र शक्ति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए और उसके मुताबिक चलना भी चाहिए। अगर हम ऐसा नहीं करते हैं, तो हम उसे दुखी कर रहे होंगे। (लूका 11:13; इफिसियों 4:30) ऐसे में पवित्र शक्ति हम पर काम नहीं करेगी और हम प्यार, खुशी, शांति, सहनशीलता, कृपा, भलाई, विश्वास, कोमलता और संयम जैसे पवित्र शक्ति के ये पहलू ज़ाहिर नहीं कर पाएँगे। अगर हम पाप करने के बाद पछतावा न करें, तो यहोवा हम पर से अपनी पवित्र शक्ति हटा देगा।
उद्धार की खुशी
8 एक पश्चाताप करनेवाला व्यक्ति माफी पाने के बाद फिर से यहोवा के इंतज़ामों से फायदा पा सकता है, जिनसे वह उद्धार पा सकता है। दाविद भी यही चाहता था इसीलिए उसने परमेश्वर से गुज़ारिश की: “अपने किए हुए उद्धार का हर्ष मुझे फिर से दे, और उदार आत्मा देकर मुझे सम्भाल।” (भजन 51:12) यहोवा परमेश्वर से उद्धार पाकर खुशी मनाना क्या ही बढ़िया बात थी। (भजन 3:8) परमेश्वर के खिलाफ पाप करने के बाद दाविद ने उद्धार की खुशी पाने की कोशिश की और वह उसे मिली। बाद में, यहोवा ने अपने बेटे यीशु मसीह के फिरौती बलिदान के ज़रिए उद्धार पाने का रास्ता खोल दिया। अगर हम कोई गंभीर पाप कर बैठते हैं और चाहते हैं कि हम उद्धार की खुशी फिर से पाएँ, तो परमेश्वर के समर्पित सेवक होने के नाते हमें सच्चा पश्चाताप करना होगा ताकि हम पवित्र शक्ति के खिलाफ पाप न करें।—मत्ती 12:31, 32; इब्रानियों 6:4-6.
9 दाविद ने यहोवा से गुज़ारिश की कि वह उसे “उदार आत्मा देकर” सँभाले। यहाँ शायद दाविद यहोवा की मदद करने की इच्छा या उसकी पवित्र शक्ति की बात नहीं कर रहा था, बल्कि वह खुद की सोच सुधारने की बात कर रहा था। दाविद चाहता था कि परमेश्वर उसके अंदर सही काम करने की इच्छा बढ़ाए ताकि वह दोबारा पाप करने से दूर रहे। यहोवा अपने सेवकों को हमेशा सँभाले रखता है और पाप के बोझ से झुके हुए लोगों को सीधा खड़ा करता है। (भजन 145:14) यह जानकर हमें कितना दिलासा मिलता है, खासकर जब हम किसी पाप की वजह से बहुत अफसोस कर रहे हों और यहोवा की सेवा वफादारी से करना चाहते हों।
पापियों को कैसे समझाएँ
10 परमेश्वर की इजाज़त से दाविद कुछ ऐसा करना चाहता था जिससे यह पता चलता है कि उसे यहोवा की दया की कितनी कदर है और वह दूसरों की मदद करना चाहता है। उसने प्रार्थना में यहोवा को अपनी यह इच्छा बतायी: “तब मैं अपराधियों को तेरा मार्ग सिखाऊँगा, और पापी तेरी ओर फिरेंगे।” (भजन 51:13) दाविद जिसने खुद पाप किया था वह परमेश्वर के कानून तोड़नेवालों को कैसे सिखा सकता था? वह उनसे क्या कहता? क्या इससे कुछ हासिल होता?
11 दाविद जानता था कि यहोवा की मंज़ूरी खोने और ज़मीर के कचोटने का दर्द क्या होता है, इसलिए वह उन लोगों को प्यार और करुणा से सिखा सकता था जो पाप की वजह से अंदर से टूट चूके थे। लेकिन वह अपनी मिसाल से दूसरों को तभी सिखा सकता था जब वह खुद यहोवा के स्तरों को कबूल करता और उससे माफी पाता। क्योंकि जो परमेश्वर की आज्ञाओं पर चलने से इनकार करते हैं, वे दूसरों को उस पर चलने के लिए नहीं सिखा सकते। (भजन 50:16, 17) दाविद पापी इसराएलियों को यहोवा का मार्ग सिखाकर उन्हें यह समझा सकता था कि पाप के क्या बुरे अंजाम हो सकते हैं, पश्चाताप करने का मतलब क्या है और परमेश्वर की दया कैसे पायी जा सकती है, ताकि वे बुराई का रास्ता छोड़ दें।
12 दाविद ने अपनी इच्छा दोहराते हुए कहा: “हे परमेश्वर, हे मेरे उद्धारकर्ता परमेश्वर, मुझे हत्या के अपराध से छुड़ा ले, तब मैं तेरे धर्म का जयजयकार करने पाऊँगा।” (भजन 51:14) किसी के खून के दोषी होने की सज़ा मौत थी। (उत्पत्ति 9:5, 6) दाविद को मन की शांति तब मिलती, जब उसे यह पता चलता कि उद्धार दिलानेवाले परमेश्वर ने उसे ऊरिय्याह के खून के दोष से मुक्त कर दिया है। यह बात उसे उभारती कि वह अपनी धार्मिकता के बजाय यहोवा की धार्मिकता का गुणगान करे। (सभोपदेशक 7:20; रोमियों 3:10) दाविद अपनी अनैतिकता का दाग नहीं मिटा सकता था, न ही वह ऊरिय्याह को फिर से ज़िंदा कर सकता था। उसी तरह आज भी एक इंसान किसी की लूटी हुई इज़्ज़त नहीं लौटा सकता और न ही वह किसी का खून करके उसे दोबारा ज़िंदा कर सकता है। लेकिन जब कभी हमें ऐसे काम करने की लालसा होती है, तो हमें भी इस बारे में सोचना चाहिए। यहोवा ने अपनी नेकी की वजह से हम पर जो दया की है हमें सच्चे दिल से उसकी कदर करनी चाहिए। यह कदरदानी हमें उभारेगी कि हम दूसरों को माफ करनेवाले और नेक परमेश्वर यहोवा के बारे में बताएँ।
13 जब तक यहोवा एक पापी पर दया करके उसका मुँह न खोल दे तब तक वह उसकी महिमा नहीं कर सकता या उसके बारे में सच्चाई नहीं बता सकता। दाविद ने अपने गीत में कहा: “हे प्रभु, मेरा मुँह खोल दे, तब मैं तेरा गुणानुवाद कर सकूँगा।” (भजन 51:15) परमेश्वर से माफी मिलने पर दाविद उभारा जाता कि वह एक साफ ज़मीर के साथ पापियों को यहोवा का मार्ग सिखाए और पूरे दिल से यहोवा की महिमा करे। दाविद की तरह जिन लोगों को अपने पापों की माफी मिली है, उन्हें परमेश्वर की महा-कृपा की कदर करनी चाहिए, हर मौके पर उसके बारे में सच्चाई बतानी चाहिए और उसका ‘गुणानुवाद करना’ चाहिए।—भजन 43:3.
बलिदान जो परमेश्वर को कबूल है
14 दाविद ने अच्छी समझ हासिल की थी इसलिए उसने कहा: “क्योंकि तू मेलबलि से प्रसन्न नहीं होता, नहीं तो मैं देता; होमबलि से भी तू प्रसन्न नहीं होता।” (भजन 51:16) मूसा के कानून के मुताबिक लोगों को परमेश्वर के लिए जानवरों का बलिदान चढ़ाना होता था। लेकिन दाविद ने जो पाप किए थे, उनकी सज़ा मौत थी, जिसके लिए जानवरों का बलिदान चढ़ाकर माफी पाना मुमकिन नहीं था वरना वह यहोवा को सबसे बेहतरीन बलिदान चढ़ाता। जब तक हम सच्चा पश्चाताप नहीं करते हमारे बलिदानों की कोई कीमत नहीं होगी। इसलिए यह सोचना गलत होगा कि कुछ अच्छा काम करने से हम अपने पापों को ढाँप सकते हैं।
15 दाविद ने आगे लिखा: “टूटा मन परमेश्वर के योग्य बलिदान है; हे परमेश्वर, तू टूटे और पिसे हुए मन को तुच्छ नहीं जानता।” (भजन 51:17) एक पश्चाताप करनेवाले व्यक्ति का “टूटा मन परमेश्वर के सामने योग्य बलिदान है।” ऐसा व्यक्ति ढीठ नहीं होता। एक समर्पित व्यक्ति जिसका मन टूटा हुआ है अपने पाप की वजह से बहुत दुखी महसूस करता है। वह नम्र बनता है क्योंकि उसे इस बात का एहसास होता है कि वह परमेश्वर की मंज़ूरी खो चूका है और उसे दोबारा पाने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार होता है। अगर हम अपने पापों का पश्चाताप न करें और पूरे मन से सिर्फ उसकी उपासना न करें, तो हम परमेश्वर की सेवा में जो भी करें उसकी कोई कीमत नहीं होगी।—नहूम 1:2.
16 परमेश्वर के सामने टूटा और पिसा हुआ मन एक बलिदान की तरह है और ऐसा बलिदान वह कबूल करता है। कई बार हम ऐसे काम कर जाते हैं जो यहोवा के सेवक होने के नाते हमें नहीं करना चाहिए। लेकिन ऐसे में हम निराशा में नहीं डूबते। हो सकता है कि कभी हम कोई पाप कर बैठे जिसका हमें बहुत दुख है और हम यहोवा से माफी पाने के लिए तरस रहे हैं, तब हमें यह नहीं मान लेना चाहिए कि अब हमारा कुछ नहीं हो सकता। जब हम दिल से पश्चाताप करते हैं, तब यहोवा हमारे टूटे मन को नहीं ठुकराता। वह हमें मसीह के फिरौती बलिदान के आधार पर माफ करता है और फिर से अपनी मंज़ूरी देता है। (यशायाह 57:15; इब्रानियों 4:16; 1 यूहन्ना 2:1) लेकिन जैसे दाविद ने किया, हमें परमेश्वर से उसकी मंज़ूरी पाने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए, न कि सज़ा से बचने के लिए। परमेश्वर ने दाविद के पाप माफ किए, लेकिन उसे उसके अंजामों से नहीं बचाया।—2 शमूएल 12:11-14.
ढूँढ़े अनमोल रत्न
(भजन 45:4) सत्यता, नम्रता और धर्म के निमित्त अपने ऐश्वर्य और प्रताप पर सफलता से सवार हो; तेरा दाहिना हाथ तुझे भयानक काम सिखलाए!
महान राजा, मसीह की महिमा कीजिए!
राजा “सच्चाई” के पक्ष में लड़ता है
11 भजन 45:4 पढ़िए। राजा इलाकों पर कब्ज़ा करने या लोगों को गुलाम बनाने के लिए युद्ध नहीं लड़ता। युद्ध लड़ने के उसके इरादे इससे कहीं ज़्यादा नेक हैं। वह “सच्चाई, नम्रता और नेकी” (एन.डब्ल्यू.) के पक्ष में लड़ता है। वह सबसे अहम “सच्चाई” क्या है, जिसके पक्ष में राजा लड़ता है? वह यह कि सिर्फ यहोवा को इस पूरे विश्व पर हुकूमत करने का अधिकार है। जब शैतान ने यहोवा के खिलाफ बगावत की, तो वह दरअसल कह रहा था कि यहोवा को हुकूमत करने का अधिकार नहीं है। तब से लेकर अब तक, दुष्ट स्वर्गदूतों और इंसानों ने इस अहम सच्चाई पर सवाल उठाया है। अब समय आ गया है कि यहोवा का अभिषिक्त राजा युद्ध करने निकले और यह साबित करे कि सिर्फ यहोवा को ही हुकूमत करने का अधिकार है।
(भजन 48:12, 13) सिय्योन के चारों ओर चलो, और उसकी परिक्रमा करो, उसके गुम्मटों को गिन लो, 13 उसकी शहरपनाह पर दृष्टि लगाओ, उसके महलों को ध्यान से देखो; जिससे कि तुम आनेवाली पीढ़ी के लोगों से इस बात का वर्णन कर सको।
शांति-भरे अनोखे माहौल को बेहतर बनाने में मेहनत कीजिए
13 हम चाहे जितने भी समय से सच्चाई में हों, हम सभी को यहोवा के संगठन के बारे में दूसरों को बताना चाहिए। दुष्टता और भ्रष्टाचार से भरी, मगर प्यार से खाली इस दुनिया में हमारे बीच जो शांति-भरा माहौल पाया जाता है, वह किसी चमत्कार से कम नहीं। जब हम यहोवा के संगठन या “सिय्योन” के शानदार कामों के बारे में और शांति-भरे माहौल के बारे में “आनेवाली पीढ़ी” को बताएँगे, तो यह हमारे लिए क्या ही खुशी की बात होगी!—भजन 48:12-14 पढ़िए।
27 जून–3 जुलाई
पाएँ बाइबल का खज़ाना | भजन 52-59
“अपना बोझ यहोवा पर डाल दे”
(भजन 55:2) मेरी ओर ध्यान देकर, मुझे उत्तर दे; मैं चिन्ता के मारे छटपटाता हूँ और व्याकुल रहता हूँ।
(भजन 55:4, 5) मेरा मन भीतर ही भीतर संकट में है, और मृत्यु का भय मुझ में समा गया है। 5 भय और कँपकँपी ने मुझे पकड़ लिया है, और भय के कारण मेरे रोंए रोंए खड़े हो गए हैं।
(भजन 55:16-18) परन्तु मैं तो परमेश्वर को पुकारूँगा; और यहोवा मुझे बचा लेगा। 17 साँझ को, भोर को, दोपहर को, तीनों पहर मैं दोहाई दूँगा और कराहता रहूँगा, और वह मेरा शब्द सुन लेगा। 18 जो लड़ाई मेरे विरुद्ध मची थी उससे उसने मुझे कुशल के साथ बचा लिया है। उन्होंने तो बहुतों को संग लेकर मेरा सामना किया था।
भजन संहिता किताब के दूसरे भाग की झलकियाँ
55:4, 5, 12-14, 16-18. जब दाऊद के अपने बेटे, अबशलोम ने उसके खिलाफ साज़िश रची और जब अहीतोपेल ने, जिसकी हर सलाह पर वह बहुत भरोसा करता था, उसके साथ गद्दारी की, तो उसके दिल को बहुत ठेस पहुँची। मगर फिर भी, यहोवा पर उसका विश्वास ज़रा भी नहीं डगमगाया। हम भी चाहे कितने ही दर्द या पीड़ाओं से गुज़र रहे हों, हमें कभी-भी परमेश्वर पर अपने विश्वास को कमज़ोर होने नहीं देना चाहिए।
हमेशा अपना बोझ यहोवा पर डालिए
एक समय इस्राएल के राजा दाऊद ने महसूस किया कि दबाव लगभग असहनीय था। भजन 55 के अनुसार, दबावों और शत्रुओं के बैर के कारण हुई चिन्ता ने उसे हद से ज़्यादा विचलित कर दिया था। उसने बड़ी हृदयवेदना और भय का अनुभव किया। वह अपने दुःख में सिर्फ़ कराह सकता था। (भजन 55:2, 5, 17) लेकिन अपनी तमाम परेशानियों के बावजूद, उसने सामना करने का एक रास्ता पा लिया था। कैसे? उसने सहारे के लिए अपने परमेश्वर की ओर देखा। उन लोगों के लिए जो शायद दाऊद की तरह महसूस करें, उसकी यह सलाह थी: “अपना बोझ यहोवा पर डाल दे।”—भजन 55:22.
(भजन 55:12-14) जो मेरी नामधराई करता है वह शत्रु नहीं था, नहीं तो मैं उसको सह लेता; जो मेरे विरुद्ध बड़ाई मारता है वह मेरा बैरी नहीं है, नहीं तो मैं उस से छिप जाता। 13 परन्तु वह तो तू ही था जो मेरी बराबरी का मनुष्य मेरा परममित्र और मेरी जान पहचान का था। 14 हम दोनों आपस में कैसी मीठी मीठी बातें करते थे; हम भीड़ के साथ परमेश्वर के भवन को जाते थे।
हमेशा अपना बोझ यहोवा पर डालिए
विश्वासघात का सामना करना
यह हमें उस वृत्तान्त की ओर लाता है जिसने दाऊद को भजन 55 लिखने के लिए उकसाया। वह गहरे भावात्मक तनाव में था। “मेरा हृदय भीतर ही भीतर वेदना से भर गया है,” उसने लिखा, “और मृत्यु का भय मुझ में समा गया है।” (भजन 55:4) कौन-सी बात इस वेदना का कारण थी? दाऊद के बेटे अबशालोम ने दाऊद से राजपद छीनने का षड्यन्त्र रचा था। (2 शमूएल 15:1-6) उसके अपने बेटे द्वारा किए गए इस विश्वासघात को सहना तो मुश्किल था ही, लेकिन जिस बात ने इसे बदतर बना दिया वह यह थी कि दाऊद का सबसे ज़्यादा भरोसेमंद सलाहकार, अहीतोपेल नामक पुरुष, दाऊद के विरुद्ध इस षड्यन्त्र में शामिल हो गया। वह अहीतोपेल है जिसके बारे में दाऊद भजन 55:12-14 में वर्णन करता है। इस षड्यन्त्र और विश्वासघात के फलस्वरूप, दाऊद को यरूशलेम से भागना पड़ा। (2 शमूएल 15:13, 14) इसके कारण उसे कितनी वेदना हुई होगी!
(भजन 55:22) अपना बोझ यहोवा पर डाल दे वह तुझे सम्भालेगा; वह धर्मी को कभी टलने न देगा।
भजन संहिता किताब के दूसरे भाग की झलकियाँ
55:22. हम यहोवा पर अपना बोझ कैसे डाल सकते हैं? इन तरीकों से: (1) जिस बात की चिंता हमें खायी जा रही है, उसके बारे में प्रार्थना करके, (2) उसके वचन और संगठन से मार्गदर्शन माँगकर और उनकी मदद लेकर, और (3) खुद के हालात को सुधारने के लिए जितना हमसे बन पड़ता है, उतना करने की अपनी तरफ से पूरी कोशिश करके।
चिंता के बोझ तले मत दबिए
बेशक मूसा कई बातों के बारे में सोच रहा था। इसीलिए उसने यहोवा से पूछा: “जब मैं इस्राएलियों के पास जाकर उन से यह कहूं, कि तुम्हारे पितरों के परमेश्वर ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है, तब यदि वे मुझ से पूछें, कि उसका क्या नाम है? तब मैं उनको क्या बताऊं?” तब यहोवा ने उसे इसका जवाब दिया। (निर्गमन 3:13, 14) मूसा को इस बात की भी चिंता थी कि अगर फिरौन ने उसकी बात पर यकीन नहीं किया तब क्या होगा। फिर से यहोवा ने भविष्यवक्ता को जवाब बताया। उसकी एक आखिरी समस्या थी—मूसा ने कहा कि वह “बोलने में निपुण नहीं।” इस समस्या को कैसे हल किया गया? यहोवा ने मूसा की मदद के लिए हारून को भेजा कि वह मूसा के लिए बात करे।—निर्गमन 4:1-5, 10-16.
मूसा ने परमेश्वर से जो सवाल किए थे उसे उनका जवाब मिल गया था और इससे परमेश्वर पर उसका विश्वास मज़बूत हो गया था। इसलिए मूसा वही करने के लिए तैयार हुआ जिसकी यहोवा ने आज्ञा दी थी। यह सोचकर परेशान होने के बजाए कि जब मैं फिरौन के सामने खड़ा होऊँगा तब क्या होगा, मूसा “ने यहोवा की आज्ञा के अनुसार ही किया।” (निर्गमन 7:6) अगर उसके दिमाग में बस चिंताएँ भरी होतीं तो दिए गए काम को पूरा करने में उसे विश्वास और निडरता की कमी महसूस होती, जबकि ये दोनों गुण, उस काम को पूरा करने के लिए ज़रूरी थे।
मूसा ने जिस संतुलित तरीके से दिए गए काम को पूरा किया उसे प्रेरित पौलुस ने “संयम की आत्मा” कहा। (2 तीमुथियुस 1:7; तीतुस 2:2-6) अगर मूसा में संयम की आत्मा नहीं होती तो वह इतने बड़े काम को देखकर ही आसानी से निराश हो सकता था और शायद उस काम को करने से मना कर सकता था।
अपने विचारों पर नियंत्रण रखिए
रोज़मर्रा की ज़िंदगी में जब आपके विश्वास की परीक्षा होती है या कोई सताहट आती है तब आप क्या करते हैं? क्या बाधाओं और चुनौतियों को सामने देखकर और उनके बारे में सोचकर आपके होश उड़ जाते हैं? या क्या आप सोच-समझकर उसे हल करने की कोशिश करते हैं? जैसा कि कुछ लोग कहते हैं कि ‘जब कोई समस्या गले पड़ी नहीं तो उसे हल करने के बारे में क्यों सोचें?’ हो सकता है कि ऐसी कोई समस्या कभी सामने ही न आए! तो फिर ऐसी समस्या के बारे में बेवजह सोच-सोचकर क्यों दुःखी हों जो शायद कभी न उठे? बाइबल कहती है: “उदास मन दब जाता है।” (नीतिवचन 12:25) इसका नतीजा यह होता है कि व्यक्ति अपने फैसलों को अगले दिन पर टालता जाता है, जब तक कि बहुत देर नहीं हो जाती।
बिन-बात की चिंता करने से हमारी आध्यात्मिकता को सबसे ज़्यादा नुकसान होता है। यीशु मसीह ने बताया था कि धन के धोखे और “इस संसार की चिन्ता” से ‘राज्य के वचन’ के लिए हमारी अहमियत कम हो सकती है। (मत्ती 13:19, 22) जिस तरह कँटीली झाड़ियाँ पौधे को बढ़ने और फल लाने से रोक सकती हैं उसी तरह हमेशा चिंताओं में डूबे रहना हमें परमेश्वर की महिमा करते हुए आध्यात्मिक उन्नति करने और फल लाने में रुकावट पैदा कर सकता है। बिन-बात की चिंता करके और दुःखी होकर बहुत-से लोगों ने यहोवा को समर्पण नहीं किया है। उनको डर होता है कि ‘अगर मैं अपने समर्पण के मुताबिक नहीं जीया तो क्या होगा?’
हमारी आध्यात्मिक लड़ाई के बारे में प्रेरित पौलुस ने बताया, हम बहुत परिश्रम कर रहे हैं कि “हर एक भावना को कैद करके मसीह का आज्ञाकारी बना” दें। (2 कुरिन्थियों 10:5) हमारी चिंताओं के द्वारा हमें हताश करके और शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से कमज़ोर करके हमारे सबसे बड़े दुश्मन, शैतान को बहुत-ही खुशी होगी। वह शक का इस्तेमाल करके बेखबर लोगों को अपने जाल में फँसाने में बहुत माहिर है। इसीलिए पौलुस ने मसीहियों को यह चेतावनी दी थी कि “शैतान को अवसर” मत दो। (इफिसियों 4:27) “इस संसार के ईश्वर” की हैसियत से शैतान ने बड़ी सफलता के साथ ‘अविश्वासियों की बुद्धि को अन्धा कर दिया है।’ (2 कुरिन्थियों 4:4) हमें अपने दिलो-दिमाग पर काबू करने का उसे कभी-भी मौका नहीं देना चाहिए!
मदद हाज़िर है
जब बच्चे को समस्या आती है तो वह अपने प्रेमी पिता के पास चला जाता है जो उसे निर्देशन और तसल्ली देता है। ठीक इसी तरह, हम भी अपने पिता यहोवा से, जो स्वर्ग में रहता है, अपनी समस्याओं के बारे में कह सकते हैं। यहाँ तक कि यहोवा कहता है कि हम अपना बोझ और अपनी चिंताएँ उस पर डाल दें। (भजन 55:22) उस बच्चे की तरह जो अपने पिता से दिलासा पाने के बाद अपनी समस्याओं के बारे में फिर आगे चिंता नहीं करता, उसी तरह हमें भी न सिर्फ अपना बोझ यहोवा पर डाल देना चाहिए, बल्कि डालने के बाद उसे उसी के पास छोड़ देना चाहिए।—याकूब 1:6.
हम अपनी चिंताओं को यहोवा पर कैसे डाल सकते हैं? फिलिप्पियों 4:6, 7 जवाब देता है: “किसी भी बात की चिन्ता मत करो: परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएं। तब परमेश्वर की शान्ति, जो समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी।” जी हाँ, प्रार्थनाओं और निवेदन में हमारी लगन को देखकर यहोवा हमें अंदरूनी शांति देगा जिससे हम हताश होने और बिन-बात की चिंता करने से दूर रह सकेंगे।—यिर्मयाह 17:7, 8; मत्ती 6:25-34.
प्रार्थनाओं के अनुसार काम करने के लिए हमें खुद को न तो शारीरिक रूप से, न ही मानसिक रूप से, दूसरों से अलग या दूर करना चाहिए। (नीतिवचन 18:1) इसके बजाए अच्छा होगा कि हम अपनी समस्याओं से संबंधित बाइबल के सिद्धांतों और निर्देशनों पर ध्यान दें, और सिर्फ अपनी समझ का सहारा न लें। (नीतिवचन 3:5, 6) जवान और बूढ़े सभी, समस्याओं का सामना करने या फैसले करने के लिए बाइबल और वॉच टावर प्रकाशनों से भरपूर जानकारी ले सकते हैं। इसके अलावा हमें यह आशीष मिली है कि मसीही कलीसिया में अनुभवी और बुद्धिमान प्राचीन होते हैं, साथ ही दूसरे परिपक्व मसीह भी, जो हमेशा हमें सलाह-मशविरा देने के लिए तैयार रहते हैं। (नीतिवचन 11:14; 15:22) ऐसे लोग जो हमारी समस्या से ताल्लुक नहीं रखते और साथ ही मामलों को परमेश्वर की नज़र से देखते हैं, अकसर हमारी समस्याओं को एक अलग नज़रिए से देखने में हमारी मदद कर सकते हैं। हालाँकि वे हमारे लिए फैसले नहीं करेंगे, मगर वे हमें काफी प्रोत्साहन दे सकते हैं और हमारी बड़ी मदद कर सकते हैं।
“परमेश्वर पर आस लगाए रह”
इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि आजकल हर दिन की समस्याओं से ही बहुत तनाव हो जाता है, इसलिए बिन-बात की मन-गढ़ंत चिंता करना ज़रूरी नहीं है। क्या होगा क्या नहीं यह सोचकर अगर हम डर जाते हैं और बेचैन हो जाते हैं तो प्रार्थना और निवेदन के साथ यहोवा के करीब आइए। उसके वचन और संगठन से निर्देशन, बुद्धि और संयम की आत्मा हासिल कीजिए। इस तरह हम यह पाएँगे कि चाहे कैसी भी परिस्थिति क्यों न हो, हर परिस्थिति से निपटने के लिए मदद हाज़िर है।
बहुत-ही परेशान और व्याकुल होकर, भजनहार गाया: “हे मेरे प्राण, तू निराश क्यों है? और भीतर ही भीतर तू व्याकुल क्यों? परमेश्वर पर आस लगाए रह—मैं तो उसकी स्तुति करूंगा जो मेरा उद्धारकर्ता, मेरा परमेश्वर है।” (भजन 42:11, NHT) आइए हम भी अपनी ऐसी ही मनोवृत्ति बना लें।
जी हाँ, जो शायद असलियत में हो सकता है उसकी योजना बनाइए, और जो नहीं हो सकता, उसे यहोवा के हाथ में छोड़ दीजिए। “अपनी सारी चिन्ता उसी पर डाल दो, क्योंकि उस को तुम्हारा ध्यान है।”—1 पतरस 5:7.
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
(भजन 56:8) तू मेरे मारे मारे फिरने का हिसाब रखता है; तू मेरे आँसुओं को अपनी कुप्पी में रख ले! क्या उनकी चर्चा तेरी पुस्तक में नहीं है?
प्र09 6/1 पेज 29 पै 1, अँग्रेज़ी
क्या सचमुच किसी को परवाह है?
भजन की किताब में हम पुराने ज़माने के भजनहार जैसे राजा दाविद के दिल छू लेनेवाले शब्द पढ़ सकते हैं, जिससे पता चलता है कि यहोवा अपने सेवकों की कितनी परवाह करता है। भजन 56:8 में राजा दाविद ने परमेश्वर से बिनती की: “तू मेरे आँसुओं को अपनी कुप्पी में रख ले! क्या उनकी चर्चा तेरी पुस्तक में नहीं है?” दाविद के इन शब्दों से पता चलता है कि यहोवा न सिर्फ उसकी तकलीफ समझता था, बल्कि यह भी समझता था कि उससे उसकी भावनाओं पर क्या असर हुआ। यहोवा जानता था कि वह किस दर्द से गुज़र रहा है और वह क्यों आँसू बहा रहा है। वाकई हमारे सृजनहार की नज़र उन सब पर रहती है जो उसकी मरज़ी पूरी करने की पूरी कोशिश करते हैं और “जिनका मन उसकी ओर निष्कपट रहता है।”
प्र08 10/1 पेज 26 पै 3, अँग्रेज़ी
कुप्पी में आँसु
दाविद के दिल छू लेनेवाले शब्द आज हमारे लिए भी मायने रखते हैं। वह कैसे? बाइबल समझाती है कि यह दुनिया शैतान के कब्ज़े में है और वह अभी “बड़े क्रोध में है।” इसकी वजह से पूरी धरती पर मुसीबत का कहर टूट पड़ा है। (प्रकाशितवाक्य 12:12) यह एक वजह है क्यों बहुत-से लोग दाविद की तरह जज़बाती, मानसिक और शारीरिक तकलीफ से गुज़र रहे हैं, खासकर वे लोग जो परमेश्वर को खुश करना चाहते हैं। क्या आप ऐसी तकलीफ से गुज़र रहे हैं? ये वफादार लोग ‘रोते हुए’ और हिम्मत के साथ अपनी खराई बनाए रखने में लगे रहते हैं। (भजन 126:6) वे इस बात का यकीन रख सकते हैं कि उनका पिता यहोवा उनकी तकलीफों को और उन पर होनेवाले इसके असर को देख सकता है। वह अपने सेवकों पर आनेवाली तकलीफों को न सिर्फ अच्छी तरह समझता है, बल्कि उनके आँसुओं और तकलीफों को याद भी रखता है मानो उन्हें अपनी कुप्पी में संजोकर रखता है।
यहोवा ने ‘आपके सिर के बाल भी गिन रखे हैं’
15 ऐसा कहने के बाद दाऊद ने भजन 56:8 में दर्ज़ यह दिलचस्प बात कही: “तू मेरे मारे मारे फिरने का हिसाब रखता है; तू मेरे आंसुओं को अपनी कुप्पी में रख ले! क्या उनकी चर्चा तेरी पुस्तक में नहीं है?” यहोवा की कोमल परवाह का उसने क्या ही खूबसूरत शब्दों में बखान किया है! जब हमारे लिए दुःख सहना मुश्किल हो जाता है, तो शायद हम आँसू बहा-बहाकर यहोवा को पुकारें। यहाँ तक कि सिद्ध इंसान यीशु ने भी ऐसा किया था। (इब्रानियों 5:7) दाऊद को कोई शक नहीं था कि यहोवा उसकी हालत देख रहा है, और वह उसकी पीड़ा याद रखेगा, मानो उसने दाऊद के आँसुओं को एक कुप्पी में बंद कर रखा हो या उसकी दर्द भरी दास्तान किसी किताब में दर्ज़ कर दी हो। आप भी शायद ऐसा ही महसूस करते हों कि आप इतने आँसू बहा रहे हैं कि उन्हें एक कुप्पी में भरा जा सकता है या एक किताब के कई पन्नों में दर्ज़ किया जा सकता है। अगर आप ऐसी नाज़ुक हालत में हैं, तो ढाढ़स बाँधिए। बाइबल हमें भरोसा दिलाती है: “यहोवा टूटे मनवालों के समीप रहता है, और पिसे हुओं का उद्धार करता है।—भजन 34:18.
(भजन 59:1, 2) हे मेरे परमेश्वर, मुझ को शत्रुओं से बचा, मुझे ऊँचे स्थान पर रखकर मेरे विरोधियों से बचा, 2 मुझ को बुराई करनेवालों के हाथ से बचा, और हत्यारों से मेरा उद्धार कर।
यहोवा हमारी दुहाई सुनता है
13 तो क्या अपनी समस्याओं के बारे में यहोवा से सिर्फ प्रार्थना करना काफी है? जी नहीं, हमें और भी कुछ करने की ज़रूरत है। हमें अपनी प्रार्थनाओं के मुताबिक काम भी करना चाहिए। जब राजा शाऊल ने दाऊद को मारने के लिए उसके घर आदमी भेजे, तब दाऊद ने यहोवा से यह बिनती की: “हे मेरे परमेश्वर, मुझ को शत्रुओं से बचा, मुझे ऊंचे स्थान पर रखकर मेरे विरोधियों से बचा, मुझ को बुराई करनेवालों के हाथ से बचा, और हत्यारों से मेरा उद्धार कर।” (भज. 59:1, 2) प्रार्थना करने के अलावा, दाऊद ने अपनी पत्नी की बात मानी और वहाँ से भाग खड़ा हुआ। (1 शमू. 19:11, 12) उसी तरह, हम व्यावहारिक बुद्धि के लिए यहोवा से प्रार्थना कर सकते हैं, ताकि हम अपनी पीड़ाओं से जूझने या फिर अपने हालात को सुधारने के लिए कदम उठा सकें।—याकू. 1:5.