“हम तुम्हारे संग चलेंगे”
“हम तुम्हारे संग चलेंगे, क्योंकि हम ने सुना है कि परमेश्वर तुम्हारे साथ है।”—जक. 8:23.
1, 2. (क) यहोवा ने हमारे दिनों के बारे में क्या कहा था? (ख) इस लेख में हम किन सवालों के जवाब जानेंगे? (लेख की शुरुआत में दी तसवीर देखिए।)
यहोवा ने हमारे दिनों के बारे में कहा, “भाँति भाँति की भाषा बोलनेवाली सब जातियों में से दस मनुष्य, एक यहूदी पुरुष के वस्त्र की छोर को यह कहकर पकड़ लेंगे, ‘हम तुम्हारे संग चलेंगे, क्योंकि हम ने सुना है कि परमेश्वर तुम्हारे साथ है।’” (जक. 8:23) यहाँ बताया यहूदी पुरुष उन लोगों को दर्शाता है, जिन्हें परमेश्वर ने पवित्र शक्ति से अभिषिक्त किया है। उन्हें “परमेश्वर के इसराएल” भी कहा जाता है। (गला. 6:16) दस मनुष्य उन लोगों को दर्शाते हैं, जिन्हें इस धरती पर हमेशा जीने की आशा है। वे जानते हैं कि यहोवा ने इन अभिषिक्त लोगों के समूह को आशीष दी है और वे उनके साथ मिलकर परमेश्वर की उपासना करना सम्मान की बात समझते हैं।
2 भविष्यवक्ता जकर्याह की तरह यीशु ने कहा कि परमेश्वर के लोगों में एकता होगी। उसने बताया कि उसके चेले दो समूह के तौर पर होंगे यानी ‘छोटा झुंड’ और “दूसरी भेड़ें,” मगर उसने यह भी कहा कि वे सभी “एक झुंड” होंगे और उनका “एक चरवाहा” होगा। (लूका 12:32; यूह. 10:16) लेकिन दो समूह होने की वजह से कुछ सवाल उठते हैं: (1) क्या दूसरी भेड़ के लोगों को आज सभी अभिषिक्त मसीहियों के नाम पता होने चाहिए? (2) अभिषिक्त मसीहियों को खुद को किस नज़र से देखना चाहिए? (3) अगर आपकी मंडली में कोई स्मारक के दौरान रोटी और दाख-मदिरा लेने लगता है, तो आपको उसके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए? और (4) अगर स्मारक में रोटी और दाख-मदिरा लेनेवालों की गिनती बढ़ती जाती है, तो क्या आपको चिंता करनी चाहिए? इन सवालों के जवाब हमें इस लेख में मिलेंगे।
क्या आज हमें सभी अभिषिक्त मसीहियों के नाम पता होने चाहिए?
3. हमारे लिए यह पक्के तौर पर जानना क्यों नामुमकिन है कि कौन 1,44,000 जनों में से होगा?
3 क्या दूसरी भेड़ के लोगों को आज धरती पर मौजूद सभी अभिषिक्त मसीहियों के नाम पता होने चाहिए? नहीं। क्यों? क्योंकि किसी के लिए भी पक्के तौर पर यह जानना नामुमकिन है कि इन सभी को अपना इनाम मिलेगा या नहीं।[1] हालाँकि परमेश्वर ने उन्हें स्वर्ग जाने का बुलावा तो दिया है, पर वे अपना इनाम सिर्फ तभी पाएँगे, जब वे वफादार बने रहेंगे। यह बात शैतान जानता है और वह ‘झूठे भविष्यवक्ताओं’ का सहारा लेकर उन्हें “गुमराह” करने की कोशिश करता है। (मत्ती 24:24) अभिषिक्त मसीही तब तक यकीन के साथ नहीं कह सकते कि उन्हें अपना इनाम मिलेगा, जब तक कि यहोवा उन पर यह ज़ाहिर नहीं कर देता कि उसने उन्हें वफादार ठहराया है। यहोवा ही उन्हें आखिरी मंज़ूरी देता है यानी वही उन पर आखिरी मुहर लगाता है। ऐसा वह या तो उनकी मौत से पहले करता है या “महा-संकट” की शुरुआत से ठीक पहले करेगा।—प्रका. 2:10; 7:3, 14.
4. अगर आज सभी अभिषिक्त मसीहियों के नाम जानना मुमकिन नहीं है, तो फिर हम उनके “संग” कैसे जा सकते हैं?
4 अगर आज धरती पर मौजूद सभी अभिषिक्त मसीहियों के नाम जानना मुमकिन नहीं है, तो फिर ‘दूसरी भेड़’ के लोग उनके “संग” कैसे जा सकते हैं? बाइबल में लिखा है कि “दस मनुष्य, एक यहूदी पुरुष के वस्त्र की छोर को यह कहकर पकड़ लेंगे, ‘हम तुम्हारे संग चलेंगे, क्योंकि हम ने सुना है कि परमेश्वर तुम्हारे साथ है।’” हालाँकि बाइबल यहाँ एक यहूदी पुरुष की बात करती है, लेकिन शब्द “तुम्हारे” से पता चलता है कि एक से ज़्यादा लोगों की बात की गयी है। इसका मतलब है कि यहूदी पुरुष किसी एक व्यक्ति को नहीं, बल्कि अभिषिक्त मसीहियों के पूरे समूह को दर्शाता है। यह बात दूसरी भेड़ के लोग अच्छी तरह जानते हैं और वे इस समूह के साथ मिलकर यहोवा की सेवा करते हैं। उन्हें न तो इस समूह के हर सदस्य का नाम जानने की ज़रूरत है और न उनमें से हर एक के पीछे चलने की ज़रूरत है। हमारा अगुवा यीशु है और बाइबल कहती है कि हमें सिर्फ उसके पीछे चलना चाहिए।—मत्ती 23:10.
अभिषिक्त मसीहियों को खुद को किस नज़र से देखना चाहिए?
5. किस चेतावनी के बारे में अभिषिक्त मसीहियों को गंभीरता से सोचना चाहिए और क्यों?
5 पहला कुरिंथियों 11:27-29 (पढ़िए।) में जो चेतावनी दी गयी है, उस बारे में अभिषिक्त मसीहियों को गंभीरता से सोचना चाहिए। आखिर यहाँ पौलुस क्या कहना चाहता था? यही कि अगर एक अभिषिक्त मसीही यहोवा के साथ अच्छा रिश्ता बनाकर न रखे और उसका वफादार न रहे, फिर भी अगर वह स्मारक के दौरान रोटी और दाख-मदिरा ले, तो वह “अयोग्य दशा में” ऐसा कर रहा होगा। (इब्रा. 6:4-6; 10:26-29) इस कड़ी चेतावनी से अभिषिक्त मसीही यह याद रख पाते हैं कि उन्हें अभी तक इनाम नहीं मिला है। उनके लिए “मसीह यीशु के ज़रिए परमेश्वर ने ऊपर का जो बुलावा रखा है, उस इनाम के लक्ष्य” को पाने में उन्हें बराबर लगे रहना चाहिए।—फिलि. 3:13-16.
6. अभिषिक्त मसीहियों को खुद को किस नज़र से देखना चाहिए?
6 पौलुस ने अभिषिक्त मसीहियों से कहा, “मैं जो प्रभु का चेला होने के नाते कैदी हूँ, तुमसे गुज़ारिश करता हूँ कि तुम्हारा चालचलन उस बुलावे के योग्य हो जो तुम्हें दिया गया है।” उन्हें यह कैसे करना चाहिए? पौलुस ने समझाया, “मन की पूरी दीनता, कोमलता और सहनशीलता के साथ प्यार से एक-दूसरे की सहते रहो, शांति के एक करनेवाले बंधन में बंधे हुए उस एकता में रहने की जी-जान से कोशिश करते रहो जो पवित्र शक्ति की तरफ से मिलती है।” (इफि. 4:1-3) यहोवा की पवित्र शक्ति उसके सेवकों को नम्र होने का बढ़ावा देती है, न कि घमंडी होने का। (कुलु. 3:12) इसलिए अभिषिक्त मसीही खुद को दूसरों से बेहतर नहीं समझते। वे यह मानते हैं कि यहोवा अभिषिक्त मसीहियों को अपने बाकी सेवकों से ज़्यादा पवित्र शक्ति नहीं देता। उन्हें यह भी नहीं लगता कि वे बाइबल की सच्चाइयाँ दूसरों से ज़्यादा अच्छी तरह समझ सकते हैं। वे कभी किसी के बारे में यह सोचकर कि वह अभिषिक्त है, उसे स्मारक में रोटी और दाख-मदिरा लेने का बढ़ावा नहीं देते। इसके बजाय, वे नम्र बने रहते हैं और यह कबूल करते हैं कि सिर्फ यहोवा लोगों को स्वर्ग का बुलावा दे सकता है।
7, 8. अभिषिक्त मसीही किस बात की उम्मीद नहीं करते और क्यों?
7 हालाँकि अभिषिक्त मसीही मानते हैं कि स्वर्ग का बुलावा एक बड़ा सम्मान है, लेकिन वे दूसरों से यह उम्मीद नहीं करते कि वे उनके साथ खास तरीके से पेश आएँ। (इफि. 1:18, 19; फिलिप्पियों 2:2, 3 पढ़िए।) वे यह भी जानते हैं कि जब यहोवा ने उनका अभिषेक किया, तो उसने यह बात हर किसी पर ज़ाहिर नहीं की। इसलिए अभिषिक्त मसीही उस वक्त ताज्जुब नहीं करते, जब कुछ लोग उनके अभिषिक्त होने पर तुरंत यकीन नहीं करते। दरअसल उन्हें बाइबल की यह सलाह पता है कि हमें फौरन किसी ऐसे व्यक्ति पर विश्वास नहीं कर लेना चाहिए, जो कहता है कि उसे परमेश्वर से खास ज़िम्मेदारी मिली है। (प्रका. 2:2) एक अभिषिक्त मसीही दूसरों से यह उम्मीद नहीं करता कि वे उस पर कुछ ज़्यादा ही ध्यान दें। इसलिए वह जिनसे पहली बार मिलता है, उन्हें यह नहीं बताता कि वह अभिषिक्त है। वह शायद किसी से इस बात का ज़िक्र भी न करे। और न ही वह उन बड़े-बड़े कामों के बारे में शेखी मारेगा, जो वह स्वर्ग में करेगा।—1 कुरिं. 1:28, 29; 1 कुरिंथियों 4:6-8 पढ़िए।
8 अभिषिक्त मसीहियों को यह नहीं लगता कि उन्हें सिर्फ दूसरे अभिषिक्त मसीहियों के साथ वक्त बिताना चाहिए, मानो वे किसी क्लब (एक अलग समाज) के सदस्य हों। वे दूसरे अभिषिक्त मसीहियों को ढूँढ़ने की कोशिश में नहीं रहते, ताकि वे उनसे स्वर्ग के बुलावे के बारे में बात कर सकें या अपना एक समूह बनाकर बाइबल का अध्ययन कर सकें। (गला. 1:15-17) अगर अभिषिक्त मसीही ऐसा करते, तो मंडली में एकता नहीं होती। ऐसा करके वे पवित्र शक्ति के खिलाफ काम कर रहे होते, जिसकी मदद से परमेश्वर के लोगों में शांति और एकता है।—रोमियों 16:17, 18 पढ़िए।
आपको उनके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए?
9. जो भाई-बहन स्मारक में रोटी और दाख-मदिरा लेते हैं, हमें उनके साथ किस तरह व्यवहार नहीं करना चाहिए और क्यों? (“प्यार ‘बदतमीज़ी से पेश नहीं आता’” नाम का बक्स देखिए।)
9 अभिषिक्त भाई-बहनों के साथ आपको किस तरह व्यवहार करना चाहिए? यीशु ने अपने चेलों से कहा था, “तुम सब भाई हो।” उसने यह भी कहा, “जो कोई खुद को ऊँचा करता है, उसे नीचा किया जाएगा और जो कोई खुद को नीचे रखता है उसे ऊँचा किया जाएगा।” (मत्ती 23:8-12) इसलिए किसी एक व्यक्ति की हद से ज़्यादा तारीफ करना सही नहीं होगा, फिर चाहे वह मसीह का अभिषिक्त भाई ही क्यों न हो। जब बाइबल प्राचीनों की बात करती है, तो यह हमें बढ़ावा देती है कि हम उनके विश्वास की मिसाल पर चलें। लेकिन बाइबल हमें यह भी बताती है कि हमें किसी इंसान को अपना अगुवा या नेता नहीं बनाना चाहिए। (2 कुरिं. 1:24) यह सच है कि बाइबल कहती है कि कुछ लोग “दुगुने आदर के योग्य” हैं, लेकिन वह इसलिए नहीं कि वे अभिषिक्त हैं, बल्कि इसलिए कि वे “बढ़िया तरीके से अगुवाई” करते हैं और “बोलने और सिखाने में कड़ी मेहनत करते हैं।” (1 तीमु. 5:17) अगर हम अभिषिक्त मसीहियों की कुछ ज़्यादा ही तारीफ करें या उन पर ज़्यादा ध्यान दें, तो हम उन्हें शर्मिंदा कर रहे होंगे। यहाँ तक कि ऐसा करने से वे घमंडी हो सकते हैं। (रोमि. 12:3) हममें से कोई भी ऐसा कुछ नहीं करना चाहेगा, जिससे मसीह का कोई अभिषिक्त भाई ऐसी बड़ी गलती कर बैठे।—लूका 17:2.
10. आप अभिषिक्त मसीहियों के लिए कैसे आदर दिखा सकते हैं?
10 जिन्हें यहोवा ने अभिषिक्त किया है, उनके लिए हम कैसे आदर दिखा सकते हैं? हमें उनसे यह नहीं पूछना चाहिए कि वे कैसे अभिषिक्त बने। यह एक निजी मामला है, जिसके बारे में जानने का हमें कोई हक नहीं है। (1 थिस्स. 4:11; 2 थिस्स. 3:11) हम उनके पति या पत्नी या उनके माता-पिता या परिवार के किसी सदस्य से भी नहीं पूछते कि क्या वे भी अभिषिक्त हैं। एक व्यक्ति को अपनी आशा अपने खानदान से विरासत में नहीं मिलती। (1 थिस्स. 2:12) हमें ऐसे सवाल भी नहीं करने चाहिए, जिनसे दूसरों को बुरा लग सकता है। जैसे, हमें एक अभिषिक्त मसीही की पत्नी से यह नहीं पूछना चाहिए कि उसे अपने पति के बिना धरती पर हमेशा जीने के बारे में कैसा लगता है। जो भी हो, हम इस बात का पूरा यकीन रख सकते हैं कि नयी दुनिया में यहोवा हर “प्राणी की इच्छा को सन्तुष्ट” करेगा।—भज. 145:16, अ न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन।
11. अगर हम ‘तारीफों के पुल बाँधने’ से दूर रहें, तो इससे हमारी हिफाज़त होती है। कैसे?
11 अगर हम अभिषिक्त मसीहियों को दूसरों से ज़्यादा अहमियत न दें, तो इससे हमारी भी हिफाज़त होती है। कैसे? बाइबल बताती है कि मंडली में ‘झूठे भाई’ भी होंगे, जो शायद यह भी कहें कि वे अभिषिक्त हैं। (गला. 2:4, 5; 1 यूह. 2:19) और यह भी हो सकता है कि कुछ अभिषिक्त मसीही वफादार न रहें। (मत्ती 25:10-12; 2 पत. 2:20, 21) लेकिन अगर हम ‘तारीफों के पुल बाँधने’ से दूर रहें, तो हम कभी दूसरों के पीछे नहीं चलेंगे, उनके भी नहीं जो अभिषिक्त हैं या जिनका बहुत नाम है या जो लंबे समय से यहोवा की सेवा कर रहे हैं। ऐसे में, अगर वे वफादार न भी रहें या मंडली छोड़कर चले जाएँ, तो यहोवा पर से हमारा विश्वास नहीं उठेगा और न ही हम उसकी सेवा करना बंद करेंगे।—यहू. 16.
गिनती बढ़ने से क्या आपको चिंता करनी चाहिए?
12, 13. स्मारक में रोटी और दाख-मदिरा लेनेवालों की गिनती के बारे में हमें क्यों चिंता नहीं करनी चाहिए?
12 स्मारक में जो मसीही रोटी और दाख-मदिरा लेते थे, उनकी गिनती कई सालों के दौरान कम होती गयी। लेकिन पिछले कुछ सालों से उनकी गिनती हर साल बढ़ती जा रही है। क्या हमें इस बारे में चिंता करनी चाहिए? नहीं। आइए जानें क्यों।
13 “यहोवा उन्हें जानता है जो उसके अपने हैं।” (2 तीमु. 2:19) यहोवा जानता है कि कौन अभिषिक्त है। लेकिन जो स्मारक में रोटी और दाख-मदिरा लेते हैं, उनकी गिनती करनेवाला भाई नहीं जानता कि कौन सच में अभिषिक्त है। इसलिए इस गिनती में वे लोग भी शामिल हैं, जो सोचते हैं कि वे अभिषिक्त हैं, मगर हैं नहीं। जैसे, कुछ लोग पहले रोटी और दाख-मदिरा लेते थे, पर कुछ समय बाद उन्होंने उसे लेना बंद कर दिया। शायद कुछ लोगों को कोई मानसिक बीमारी हो या वे निराशा से गुज़र रहे हों और उन्हें लगता हो कि वे स्वर्ग में मसीह के साथ राज करेंगे, इसलिए वे रोटी और दाख-मदिरा लेने लगे हों। इससे पता चलता है कि हमें ठीक-ठीक नहीं मालूम कि अब धरती पर वाकई कितने अभिषिक्त मसीही रह गए हैं।
14. जब महा-संकट शुरू होगा, तब धरती पर कितने अभिषिक्त मसीही रह जाएँगे, इस बारे में बाइबल क्या कहती है?
14 जब यीशु अभिषिक्त मसीहियों को स्वर्ग ले जाने आएगा, तब वे धरती के अलग-अलग इलाकों में होंगे। बाइबल कहती है कि यीशु “तुरही की बड़ी आवाज़ के साथ अपने स्वर्गदूतों को भेजेगा और वे उसके चुने हुओं को आकाश के इस छोर से लेकर उस छोर तक, चारों दिशाओं से इकट्ठा करेंगे।” (मत्ती 24:31) बाइबल यह भी बताती है कि आखिरी दिनों के दौरान अभिषिक्त मसीहियों में से कुछ ही लोग इस धरती पर होंगे। (प्रका. 12:17) लेकिन वह यह नहीं कहती कि जब महा-संकट शुरू होगा, तब उनमें से कितने रह जाएँगे।
15, 16. यहोवा ने जिन 1,44,000 मसीहियों को चुना है, उनके बारे में हमें क्या समझना चाहिए?
15 यहोवा तय करता है कि वह कब अभिषिक्त मसीहियों को चुनेगा। (रोमि. 8:28-30) उसने यीशु के जी उठने के बाद अभिषिक्त मसीहियों को चुनना शुरू किया। ऐसा लगता है कि पहली सदी में सभी सच्चे मसीही अभिषिक्त थे। फिर सैकड़ों साल बाद, ऐसे लोग हुए जो खुद को मसीही तो कहते थे, मगर उनमें से ज़्यादातर मसीह की शिक्षाओं पर नहीं चलते थे। इसके बावजूद उस दौरान जो गिने-चुने सच्चे मसीही थे, उन्हें यहोवा ने अभिषिक्त किया। वे गेहूँ की तरह थे, जिनके बारे में यीशु ने कहा था कि वे जंगली पौधों के बीच बढ़ेंगे। (मत्ती 13:24-30) आखिरी दिनों में यहोवा और भी लोगों को चुनता आया है, ताकि वे 1,44,000 मसीहियों में गिने जाएँ।[2] इसलिए अगर परमेश्वर अंत आने के ठीक पहले कुछ लोगों को चुनता है, तो हम यह शक नहीं करेंगे कि क्या वह सही कर रहा है। (यशा. 45:9; दानि. 4:35; रोमियों 9:11, 16 पढ़िए।)[3] हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम उन मज़दूरों की तरह न बनें, जिन्होंने अपने मालिक से इसलिए शिकायत की कि उसने आखिरी घंटे में काम करनेवाले मज़दूरों को उनके बराबर मज़दूरी दी।—मत्ती 20:8-15 पढ़िए।
16 जिन्हें स्वर्ग जाने की आशा है, वे सभी ‘विश्वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाले दास’ का भाग नहीं हैं। (मत्ती 24:45-47) पहली सदी की तरह, आज यहोवा और यीशु कुछ लोगों के ज़रिए बहुत-से लोगों को खाना खिला रहे हैं यानी उन्हें सिखा रहे हैं। पहली सदी में सिर्फ कुछ ऐसे अभिषिक्त मसीही थे, जिन्होंने मसीही यूनानी शास्त्र लिखा। उसी तरह आज कुछ ही ऐसे अभिषिक्त मसीही हैं, जिन्हें परमेश्वर के लोगों को ‘सही वक्त पर खाना देने’ की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी है।
17. आपने इस लेख से क्या सीखा?
17 इस लेख से हमने क्या-क्या सीखा? यहोवा अपने सभी सेवकों को इनाम देता है, फिर चाहे वे “यहूदी पुरुष” में से हों या “दस मनुष्य” में से। उसने कुछ लोगों को स्वर्ग में जीवन देना तय किया है, जो यीशु के साथ राज करेंगे, जबकि अपने ज़्यादातर सेवकों को धरती पर हमेशा की ज़िंदगी देने का फैसला किया है। वह सभी से उम्मीद करता है कि वे एक जैसे कानून मानें और उसके वफादार बने रहें। सभी को नम्र बने रहना चाहिए और साथ मिलकर उसकी उपासना करनी चाहिए। सभी को एकता में बने रहना चाहिए और मंडली में शांति बनाए रखने के लिए काम करना चाहिए। जैसे-जैसे अंत करीब आ रहा है, आइए हम सब मिलकर यहोवा की सेवा करते रहें और एक झुंड में मसीह के पीछे चलते रहें।
^ [1] (पैराग्राफ 3) भजन 87:5, 6 के मुताबिक भविष्य में परमेश्वर शायद उन सभी के नाम ज़ाहिर करे, जो स्वर्ग में यीशु के साथ राज करेंगे।—रोमि. 8:19.
^ [2] (पैराग्राफ 15) हालाँकि प्रेषितों 2:33 से पता चलता है कि यीशु के ज़रिए पवित्र शक्ति उँडेली जाती है, लेकिन यह यहोवा ही तय करता है कि किस व्यक्ति का पवित्र शक्ति से अभिषेक होगा।
^ [3] (पैराग्राफ 15) ज़्यादा जानकारी के लिए 1 मई, 2007 की प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) में पेज 30-31 पर “आपने पूछा” लेख देखिए।