हृदय के आनन्द सहित यहोवा की सेवा कीजिए
“ये सभी शाप निश्चय ही तुझ पर आएँगे . . . क्योंकि तू ने . . . यहोवा अपने परमेश्वर की सेवा प्रसन्नता और हृदय के आनन्द के साथ नहीं की।”—व्यवस्थाविवरण २८:४५-४७, NW.
१. इस बात का क्या सबूत है कि यहोवा की सेवा करनेवाले, चाहे जहाँ कहीं उसकी सेवा करें, आनन्दित हैं?
यहोवा के सेवक आनन्दित हैं, चाहे वे उसकी इच्छा स्वर्ग में कर रहे हों या पृथ्वी पर। स्वर्गदूतीय “भोर के तारे,” पृथ्वी की नेंव डाली जाने पर आनन्द से गा उठे, और निःसंदेह हज़ारों हज़ार स्वर्गीय दूत आनन्द से ‘परमेश्वर के वचन को पूरा करते’ हैं। (अय्यूब ३८:४-७; भजन १०३:२०) यहोवा का एकलौता पुत्र स्वर्ग में एक आनन्दित “कारीगर” था और पृथ्वी पर मनुष्य यीशु मसीह के तौर पर ईश्वरीय इच्छा करने में उसने ख़ुशी प्राप्त की। इसके अतिरिक्त, उसने “उस आनन्द के लिये जो उसके आगे धरा था, लज्जा की कुछ चिन्ता न करके, क्रूस का दुख सहा; और सिंहासन पर परमेश्वर के दहिने जा बैठा।”—नीतिवचन ८:३०, ३१; इब्रानियों १०:५-१०; १२:२.
२. कौन-सी बात ने निर्धारित किया कि इस्राएली आशीष अथवा शाप का अनुभव करते?
२ जब इस्राएलियों ने परमेश्वर को प्रसन्न किया तब उन्होंने आनन्द का अनुभव किया। लेकिन यदि वे उसकी अवज्ञा करते तब क्या? उन्हें चेतावनी दी गयी थी: “[शाप] तुझ पर और तेरी सन्तान पर सदा सर्वदा के लिए चिह्न और एक चमत्कार के तौर पर बने रहेंगे, क्योंकि तू ने सब वस्तुओं की बहुतायत के कारण यहोवा अपने परमेश्वर की सेवा प्रसन्नता और हृदय के आनन्द के साथ नहीं की। और जिन शत्रुओं को यहोवा तेरे विरुद्ध भेजेगा, उनकी तू भूख, प्यास, नंगेपन तथा सब वस्तुओं के अभाव में सेवा करेगा; और वह निश्चय ही तेरी गर्दन पर लोहे का जुआ रखेगा जब तक कि वह तुझे नाश न कर दे।” (व्यवस्थाविवरण २८:४५-४८, NW) आशीषों और शापों ने स्पष्ट किया कि कौन यहोवा के सेवक थे और कौन नहीं। ऐसे शापों ने यह भी प्रमाणित किया कि परमेश्वर के सिद्धान्तों और उद्देश्यों से खिलवाड़ नहीं किया जा सकता, ना ही उन्हें तुच्छ समझा जा सकता है। क्योंकि इस्राएलियों ने तबाही और निर्वासन के बारे में यहोवा की चेतावनियों को मानने से इनकार कर दिया, यरूशलेम “पृथ्वी की सारी जातियों के लिए शाप” बन गया। (यिर्मयाह २६:६, NHT) इसलिए आइए हम परमेश्वर की आज्ञा मानें और उसके अनुग्रह का आनन्द उठाएँ। धर्मपरायण व्यक्तियों द्वारा अनुभव की गयी अनेक ईश्वरीय आशीषों में से आनन्द एक है।
“हृदय के आनन्द” सहित सेवा कैसे करें
३. प्रतीकात्मक हृदय क्या है?
३ इस्राएलियों को “प्रसन्नता और हृदय के आनन्द” सहित यहोवा की सेवा करनी थी। वैसे ही परमेश्वर के आधुनिक-दिन सेवकों को भी करनी है। प्रसन्न होने का अर्थ है “ख़ुश होना; आनन्द से भर जाना।” यद्यपि शास्त्रवचनों में शारीरिक हृदय का उल्लेख किया गया है, यह आक्षरिक रूप से सोचता या तर्क नहीं करता। (निर्गमन २८:३०) इसका मुख्य कार्य लहू को पम्प करना है जो शरीर की कोशिकाओं को पोषित करता है। लेकिन अधिकांश मामलों में, बाइबल प्रतीकात्मक हृदय का उल्लेख करती है, जो सिर्फ़ स्नेह, प्रेरणा और बुद्धि का केन्द्र नहीं है। इसे “सामान्य रूप से मुख्य भाग, आंतरिक भाग और इसलिए आंतरिक मनुष्य” का प्रतीक कहा गया है, “जो स्वयं को अपने विभिन्न कार्यों में, अपनी इच्छाओं, स्नेह, भावनाओं, भावावेगों, उद्देश्यों, अपने विचारों, अनुभूतियों, कल्पनाओं, अपनी बुद्धि, ज्ञान, कौशल, अपने विश्वास और अपने तर्क, अपनी स्मरण-शक्ति और सचेतना में प्रदर्शित करता है।” (जर्नल ऑफ द सोसायटी ऑफ बिबलिकल लिट्रेचर अण्ड एक्सजीसस, १८८२, पृष्ठ ६७) हमारे प्रतीकात्मक हृदय में हमारी भावनाएँ और मनोभाव अंतर्ग्रस्त हैं, जिनमें आनन्द सम्मिलित है।—यूहन्ना १६:२२.
४. कौन-सी बात हमें हृदय के आनन्द सहित यहोवा की सेवा करने में मदद कर सकती है?
४ कौन-सी बात हमें हृदय के आनन्द सहित यहोवा की सेवा करने में मदद कर सकती है? अपनी आशीषों और परमेश्वर-प्रदत्त विशेषाधिकारों का एक सकारात्मक और क़दरदान दृष्टिकोण सहायक है। उदाहरण के लिए, सच्चे परमेश्वर की ‘पवित्र सेवा’ करने के अपने विशेषाधिकार के बारे में हम आनन्द से सोच सकते हैं। (लूका १:७५) उसी से सम्बन्धित विशेषाधिकार है, उसके गवाहों के तौर पर यहोवा का नाम धारण करना। (यशायाह ४३:१०-१२) इसके साथ हम इस बात की जानकारी का आनन्द जोड़ सकते हैं कि परमेश्वर के वचन का पालन करने के द्वारा हम उसे प्रसन्न कर रहे हैं। और आध्यात्मिक रोशनी को प्रतिबिम्बित करने में और इस तरह अनेक लोगों को अंधकार से बाहर आने में मदद करने से कितना आनन्द मिलता है!—मत्ती ५:१४-१६. १ पतरस २:९ से तुलना कीजिए।
५. ईश्वरीय आनन्द का स्रोत क्या है?
५ लेकिन, हृदय के आनन्द सहित यहोवा की सेवा करने में सिर्फ़ सकारात्मक सोच-विचार अंतर्ग्रस्त नहीं है। दृष्टिकोण में सकारात्मक होना लाभकारी है। लेकिन ईश्वरीय आनन्द ऐसा कुछ नहीं है जो हम चरित्र विकास द्वारा उत्पन्न करते हैं। यह यहोवा की आत्मा का एक फल है। (गलतियों ५:२२, २३) यदि हमारे पास ऐसा आनन्द नहीं है, तो हमें शायद समायोजन करने की ज़रूरत होगी ताकि ऐसे किसी अशास्त्रीय तरीक़े से सोच-विचार करने या कार्य करने से दूर रहें जो परमेश्वर की आत्मा को शोकित कर सकता है। (इफिसियों ४:३०) तथापि, यहोवा को समर्पित लोगों के तौर पर हम इस बात से न डरें कि किसी अवसर पर हार्दिक आनन्द का अभाव ईश्वरीय अस्वीकृति का सबूत है। हम अपरिपूर्ण हैं और कभी-कभार दर्द, उदासी, और यहाँ तक कि हताशा के अधीन होते हैं, लेकिन यहोवा हमें समझता है। (भजन १०३:१०-१४) इसलिए आइए हम उसकी पवित्र आत्मा के लिए प्रार्थना करें, और यह याद रखें कि इसका फल आनन्द परमेश्वर द्वारा प्रदान किया जाता है। हमारा प्रेममय स्वर्गीय पिता हमारी ऐसी प्रार्थनाओं का जवाब देगा और उसकी सेवा हृदय के आनन्द सहित करने में हमें समर्थ करेगा।—लूका ११:१३.
जब आनन्द की कमी होती है
६. यदि परमेश्वर के प्रति हमारी सेवा में आनन्द की कमी है, तो हमें क्या करना चाहिए?
६ यदि हमारी सेवा में आनन्द की कमी है, तो आख़िरकार हम यहोवा की सेवा करने में धीमे पड़ सकते हैं या विश्वासघाती भी हो सकते हैं। इसलिए, नम्रतापूर्वक और प्रार्थनापूर्वक अपने हेतुओं पर विचार करना और आवश्यक समायोजन करना बुद्धिमानी होगी। परमेश्वर-प्रदत्त आनन्द को प्राप्त करने के लिए, हमें यहोवा की सेवा प्रेम से प्रेरित होकर और अपने सारे मन, प्राण, और बुद्धि से करनी चाहिए। (मत्ती २२:३७) हमें स्पर्धात्मक मनोवृत्ति से सेवा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि पौलुस ने लिखा: “यदि हम आत्मा के द्वारा जीवित है, तो आत्मा के अनुसार चलें भी। हम घमण्डी होकर न एक दूसरे को छेड़ें, और न एक दूसरे से डाह करें।” (गलतियों ५:२५, २६) यदि हम दूसरों से श्रेष्ठ होने के लिए या प्रशंसा पाने के लिए सेवा कर रहे हैं तो हमें सच्चा आनन्द प्राप्त नहीं होगा।
७. हम अपने हृदय के आनन्द को पुनःजागृत कैसे कर सकते हैं?
७ यहोवा के प्रति अपने समर्पण के अनुरूप जीने से आनन्द मिलता है। जब हमने परमेश्वर को नया-नया समर्पण किया था, हमने उत्साहपूर्वक मसीही जीवन के मार्ग पर चलना शुरू किया। हमने शास्त्रवचनों का अध्ययन किया और सभाओं में नियमित रूप से भाग लिया। (इब्रानियों १०:२४, २५) सेवकाई में भाग लेने से हमें आनन्द प्राप्त हुआ। लेकिन, यदि हमारा आनन्द कम हो गया है तब क्या? बाइबल अध्ययन, सभा उपस्थिति, सेवकाई में भाग लेने से—वाक़ई, मसीहियत के हर पहलू में पूरी तरह शामिल होने से—हमारे जीवन को आध्यात्मिक स्थिरता मिलनी चाहिए और इससे जो प्रेम हमें पहले था और हमारा भूतपूर्व हृदय का आनन्द दोनों पुनःजागृत होने चाहिए। (प्रकाशितवाक्य २:४) तब हम ऐसे कुछ लोगों की तरह नहीं होंगे जो कुछ-कुछ आनन्दहीन हैं और जिन्हें अकसर आध्यात्मिक सहायता की ज़रूरत होती है। प्राचीन मदद करने में ख़ुशी पाते हैं, लेकिन हमें व्यक्तिगत रूप से परमेश्वर के प्रति अपने समर्पण के अनुरूप जीना है। कोई और हमारे लिए यह नहीं कर सकता। इसलिए आइए हम सामान्य मसीही नित्यक्रम को पालन करने का लक्ष्य रखें ताकि यहोवा के प्रति अपने समर्पण के अनुरूप जीएँ और सच्चा आनन्द प्राप्त करें।
८. यदि हम आनन्दित होना चाहते हैं तो साफ़ अंतःकरण महत्त्वपूर्ण क्यों है?
८ यदि हम चाहते हैं कि हमारे पास परमेश्वर की आत्मा का फल आनन्द हो, तो हमें साफ़ अंतःकरण की ज़रूरत है। जब तक इस्राएल के राजा दाऊद ने अपने पाप को छुपाने का प्रयास किया, वह दुःखी रहा। वास्तव में, उसके जीवन की तरावट सूखती प्रतीत हुई, और वह शायद शारीरिक रूप से बीमार हो गया होगा। उसे कितनी राहत मिली होगी जब पश्चाताप और पाप-स्वीकरण हुआ! (भजन ३२:१-५) यदि हम कोई गंभीर पाप छुपा रहे हैं तो हम आनन्दित नहीं हो सकते। इसके कारण शायद हम व्याकुल जीवन जीएँ। निश्चय ही, वह आनन्द अनुभव करने का तरीक़ा नहीं है। लेकिन पाप-स्वीकरण और पश्चाताप से राहत मिलती है और आनन्दपूर्ण मनोवृत्ति की पुनःप्राप्ति होती है।—नीतिवचन २८:१३.
आनन्द सहित इन्तज़ार करना
९, १०. (क) इब्राहीम को कौन-सी प्रतिज्ञा प्राप्त हुई, लेकिन उसके विश्वास और आनन्द की परीक्षा शायद कैसे हुई होगी? (ख) इब्राहीम, इसहाक और याकूब के उदाहरणों से हम कैसे लाभ प्राप्त कर सकते हैं?
९ जब हम पहली बार ईश्वरीय उद्देश्य के बारे में सीखते हैं तो आनन्दित होना एक बात है, लेकिन सालों बाद भी आनन्दित रहना दूसरी बात है। यह विश्वासी इब्राहीम के मामले में सचित्रित किया जा सकता है। उसने परमेश्वर की आज्ञा पर अपने पुत्र इसहाक को बलि देने का प्रयास किया, उसके बाद एक स्वर्गदूत ने यह संदेश दिया: “यहोवा की यह वाणी है, कि मैं अपनी ही यह शपथ खाता हूं, कि तू ने जो यह काम किया है कि अपने पुत्र, वरन अपने एकलौते पुत्र को भी, नहीं रख छोड़ा; इस कारण मैं निश्चय तुझे आशीष दूंगा; और निश्चय तेरे वंश को आकाश के तारागण, और समुद्र के तीर की बाल के किनकों के समान अनगिनित करूंगा, और तेरा वंश अपने शत्रुओं के नगरों का अधिकारी होगा: और पृथ्वी की सारी जातियां अपने को तेरे वंश के कारण धन्य मानेंगी: क्योंकि तू ने मेरी बात मानी है।” (उत्पत्ति २२:१५-१८) निःसंदेह, इब्राहीम इस प्रतिज्ञा से हर्षित हुआ।
१० इब्राहीम ने शायद अपेक्षा की होगी कि इसहाक वह “वंश” होगा जिसके द्वारा प्रतिज्ञात आशीषें प्राप्त होंगी। लेकिन इसहाक के माध्यम से कोई अद्भुत बात निष्पन्न हुए बग़ैर ही सालों के गुज़रने से शायद इब्राहीम और उसके परिवार के विश्वास और आनन्द की परीक्षा हुई होगी। इसहाक को और फिर बाद में उसके पुत्र याकूब को, परमेश्वर द्वारा प्रतिज्ञा की पुष्टि ने उन्हें आश्वस्त किया कि वंश का आगमन अब भी भविष्य में होना था, और इस बात ने उन्हें अपने विश्वास और आनन्द को क़ायम रखने में मदद दी। लेकिन, इब्राहीम, इसहाक और याकूब की मृत्यु परमेश्वर द्वारा उन्हें की गयी प्रतिज्ञाओं की पूर्ति देखे बिना ही हो गयी, लेकिन वे यहोवा के आनन्दहीन सेवक नहीं थे। (इब्रानियों ११:१३) हम भी उसकी प्रतिज्ञाओं की पूर्ति का इन्तज़ार करते हुए, विश्वास और आनन्द से यहोवा की सेवा करते रह सकते हैं।
सताहट के बावजूद आनन्द
११. सताहट के बावजूद हम आनन्दित क्यों हो सकते हैं?
११ यहोवा के सेवकों के तौर पर, हम सताहट से पीड़ित होने पर भी हृदय के आनन्द सहित यहोवा की सेवा कर सकते हैं। यीशु ने उन लोगों को ख़ुश कहा जो उसकी ख़ातिर सताए जाते हैं, और प्रेरित पतरस ने कहा: “जैसे जैसे मसीह के दुखों में सहभागी होते हो, आनन्द करो, जिस से उसकी महिमा के प्रगट होते समय भी तुम आनन्दित और मगन हो। फिर यदि मसीह के नाम के लिये तुम्हारी निन्दा की जाती है, तो धन्य [ख़ुश, NW] हो; क्योंकि महिमा का आत्मा, जो परमेश्वर का आत्मा है, तुम पर छाया करता है।” (१ पतरस ४:१३, १४; मत्ती ५:११, १२) यदि आप सताहट सह रहे हैं और धार्मिकता की ख़ातिर पीड़ित हैं, तो आपके पास यहोवा की आत्मा और स्वीकृति है, और यह निश्चय ही आनन्द को बढ़ावा देता है।
१२. (क) क्यों हम आनन्द से विश्वास की परीक्षाओं का सामना कर सकते हैं? (ख) निर्वासन में एक लेवी के मामले से कौन-सा मूल पाठ सीखा जा सकता है?
१२ हम आनन्द से विश्वास की परीक्षाओं का सामना कर सकते हैं क्योंकि परमेश्वर हमारी शरण है। यह भजन ४२ और ४३ में स्पष्ट किया गया है। किसी कारणवश, एक लेवी निर्वासन में था। परमेश्वर के भवन में उपासना करने की कमी उसे इतनी खटक रही थी कि वह एक प्यासी मृगी अथवा हरिणी की तरह महसूस कर रहा था, जो एक सूखे और निर्जल क्षेत्र में जल के लिए तरसती है। वह यहोवा के लिए और परमेश्वर के भवन में उसकी उपासना करने के विशेषाधिकार के लिए “प्यासा” था या तरस रहा था। (भजन ४२:१, २) इस निर्वासित लेवी के अनुभव से हमें प्रेरित होना चाहिए ताकि यहोवा के लोगों के साथ जिस संगति का हम आनन्द उठाते हैं उसके प्रति कृतज्ञता दिखाएँ। यदि सताहट की वजह से क़ैद जैसी स्थिति तात्कालिक रूप से हमें उनके साथ होने से रोकती है, तो पवित्र सेवा में इकट्ठे अनुभव किए गए गतकालीन आनन्द पर विचार करें और धीरज के लिए प्रार्थना करें। ऐसा करते वक़्त हम ‘परमेश्वर पर भरोसा रखते’ हैं कि वह हमें अपने उपासकों के साथ नियमित गतिविधि में पुनःस्थापित करे।—भजन ४२:४, ५, ११; ४३:३-५.
“आनन्द से यहोवा की आराधना करो”
१३. भजन १००:१, २ कैसे दिखाता है कि आनन्द परमेश्वर के प्रति हमारी सेवा की एक विशेषता होनी चाहिए?
१३ आनन्द परमेश्वर के प्रति हमारी सेवा की एक विशेषता होनी चाहिए। यह धन्यवाद के भजन में दिखाया गया जिसमें भजनहार ने गाया: “हे सारी पृथ्वी के लोगो यहोवा का जयजयकार करो! आनन्द से यहोवा की आराधना करो! जयजयकार के साथ उसके सम्मुख आओ!” (भजन १००:१, २) यहोवा “आनन्दित परमेश्वर” है और चाहता है कि उसके सेवक उसके प्रति अपने समर्पण को पूरा करने में आनन्द प्राप्त करें। (१ तीमुथियुस १:११, NW) सभी राष्ट्रों के लोगों को यहोवा में हर्ष मनाना चाहिए, और हमारी स्तुति की अभिव्यक्तियाँ प्रभावशाली होनी चाहिए, एक विजयी सेना की “जयजयकार” की तरह। क्योंकि परमेश्वर की सेवा स्फूर्तिदायक है, यह आनन्द के साथ होनी चाहिए। इसलिए, भजनहार ने लोगों से आग्रह किया कि “जयजयकार” के साथ परमेश्वर की उपस्थिति में आएँ।
१४, १५. भजन १००:३-५ आज यहोवा के आनन्दित लोगों पर कैसे लागू होता है?
१४ भजनहार ने आगे कहा: “निश्चय जानो, [पहचानो, स्वीकार करो] कि यहोवा ही परमेश्वर है! उसी ने हम को बनाया, और हम उसी के हैं; हम उसकी प्रजा, और उसकी चराई की भेड़ें हैं।” (भजन १००:३) क्योंकि यहोवा हमारा सृष्टिकर्ता है, वह हमारा मालिक है जैसे एक चरवाहा अपनी भेड़ों का मालिक होता है। परमेश्वर इतनी अच्छी तरह हमारी देखरेख करता है कि हम कृतज्ञतापूर्वक उसका गुणगान करते हैं। (भजन २३) यहोवा के सम्बन्ध में, भजनहार ने यह भी गाया: “उसके फाटकों से धन्यवाद, और उसके आंगनों में स्तुति करते हुए प्रवेश करो, उसका धन्यवाद करो, और उसके नाम को धन्य कहो! क्योंकि यहोवा भला है, उसकी करुणा सदा के लिये, और उसकी सच्चाई पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है।”—भजन १००:४, ५.
१५ आज, यहोवा के भवन के आंगनों में धन्यवाद और स्तुति देने के लिए सभी राष्ट्रों के आनन्दित लोग प्रवेश कर रहे हैं। हमेशा यहोवा की प्रशंसा करने के द्वारा हम आनन्द से परमेश्वर के नाम की स्तुति करते हैं, और उसके महान गुण हमें उसकी स्तुति करने के लिए प्रेरित करते हैं। वह पूरी तरह से भला है, और अपने सेवकों के लिए उसकी करुणा अथवा स्नेहपूर्ण परवाह पर हमेशा भरोसा रखा जा सकता है, क्योंकि वह सदा तक बनी रहती है। “पीढ़ी से पीढ़ी” तक यहोवा उन लोगों के प्रति प्रेम दिखाने में सच्चा है जो उसकी इच्छा पूरी करते हैं। (रोमियों ८:३८, ३९) तो फिर, निश्चय ही हमारे पास ‘आनन्द से यहोवा की आराधना करने’ का अच्छा कारण है।
अपनी आशा में आनन्दित रहो
१६. कौन-सी आशाओं और प्रत्याशाओं में मसीही आनन्दित हो सकते हैं?
१६ पौलुस ने लिखा: “आशा में आनन्दित रहो।” (रोमियों १२:१२) यीशु मसीह के अभिषिक्त अनुयायी अमर स्वर्गीय जीवन की महिमायुक्त आशा में आनन्दित रहते हैं जो परमेश्वर ने उन्हें अपने पुत्र के ज़रिए प्रदान की है। (रोमियों ८:१६, १७; फिलिप्पियों ३:२०, २१) पृथ्वी पर परादीस में अनन्त जीवन की आशा रखनेवाले मसीहियों को भी आनन्द करने का आधार है। (लूका २३:४३) यहोवा के सभी वफ़ादार सेवकों को राज्य आशा में आनन्द करने का कारण है, क्योंकि वे या तो उस स्वर्गीय सरकार का भाग होंगे या उसके पार्थिव क्षेत्र में जीएँगे। क्या ही आनन्दपूर्ण आशीष!—मत्ती ६:९, १०; रोमियों ८:१८-२१.
१७, १८. (क) यशायाह २५:६-८ में कौन-सी बात पूर्वबतायी गयी थी? (ख) यशायाह की इस भविष्यवाणी की पूर्ति अब कैसे हो रही है और भविष्य में इसकी पूर्ति के बारे में क्या?
१७ यशायाह ने आज्ञाकारी मानवजाति के लिए एक आनन्दपूर्ण भविष्य को भी पूर्वबताया। उसने लिखा: “सेनाओं का यहोवा इसी पर्वत पर सब देशों के लोगों के लिये ऐसी जेवनार करेगा जिस में भांति भांति का चिकना भोजन और निथरा हुआ दाखमधु होगा; उत्तम से उत्तम चिकना भोजन और बहुत ही निथरा हुआ दाखमधु होगा। और जो पर्दा सब देशों के लोगों पर पड़ा है, जो घूंघट सब अन्यजातियों पर लटका हुआ है, उसे वह इसी पर्वत पर नाश करेगा। वह मृत्यु को सदा के लिये नाश करेगा, और प्रभु यहोवा सभों के मुख पर से आंसू पोंछ डालेगा, और अपनी प्रजा की नामधराई सारी पृथ्वी पर से दूर करेगा; क्योंकि यहोवा ने ऐसा कहा है।”—यशायाह २५:६-८.
१८ यहोवा के उपासकों के तौर पर आज हम जिस आध्यात्मिक दावत में भाग लेते हैं वह वाक़ई एक आनन्दपूर्ण जेवनार है। वास्तव में, हमारा आनन्द उमड़ता है जब हम आक्षरिक अच्छी वस्तुओं की उस जेवनार की प्रत्याशा में परमेश्वर की सेवा उत्साहपूर्वक करते हैं जिसकी प्रतिज्ञा उसने नए संसार के लिए की है। (२ पतरस ३:१३) यीशु के बलिदान के आधार पर, यहोवा आदम के पाप के कारण मानवजाति पर पड़े हुए “घूंघट” को हटाएगा। पाप और मृत्यु के हटाए जाने को देखना कितने आनन्द की बात होगी! पुनरुत्थित प्रिय जनों का वापस स्वागत करना, और आँसुओं के मिटाए जाने को देखना, और परादीस पृथ्वी पर रहना क्या ही ख़ुशी की बात होगी! ऐसी परादीस पृथ्वी जहाँ यहोवा के लोगों की नामधराई नहीं होगी बल्कि उन्होंने महा निन्दक, शैतान अर्थात् इब्लीस के लिए परमेश्वर को उत्तर प्रदान किया होगा।—नीतिवचन २७:११.
१९. उसके गवाहों के तौर पर यहोवा ने हमारे सामने जो प्रत्याशाएँ रखी हैं उनकी ओर हमें कैसी प्रतिक्रिया दिखानी चाहिए?
१९ यहोवा अपने सेवकों के लिए जो करेगा उसकी जानकारी क्या आपको आनन्द और कृतज्ञता से नहीं भर देती? वाक़ई, ऐसी महान प्रत्याशाएँ हमारे आनन्द में योगदान देती हैं! इसके अतिरिक्त, हमारी धन्य आशा हमें अपने आनन्दित, प्रेमपूर्ण, उदार परमेश्वर की ओर इन भावनाओं के साथ देखने के लिए प्रेरित करती है: “देखो, हमारा परमेश्वर यही है; हम इसी की बाट जोहते आए हैं, कि वह हमारा उद्धार करे। यहोवा यही है; हम उसकी बाट जोहते आए हैं। हम उस से उद्धार पाकर मगन और आनन्दित होंगे।” (यशायाह २५:९) अपनी उत्कृष्ट आशा को अपने मन में दृढ़तापूर्वक बिठाए हुए, आइए हृदय के आनन्द सहित यहोवा की सेवा करने का हर प्रयास करें।
आप कैसे जवाब देंगे?
◻ हम “हृदय के आनन्द” सहित यहोवा की सेवा कैसे कर सकते हैं?
◻ यदि परमेश्वर के प्रति हमारी सेवा में आनन्द की कमी है, तो हम क्या कर सकते हैं?
◻ यहोवा के लोगों को सताहट के बावजूद आनन्द कैसे प्राप्त हो सकता है?
◻ अपनी आशा में आनन्द करने के हमारे पास कौन-से कारण हैं?
[पेज 17 पर तसवीरें]
मसीही जीवन के सभी पहलुओं में भाग लेना हमारे आनन्द को बढ़ाएगा