यहोवा को हक है कि हम संग मिलकर उसकी स्तुति करें
“याह की स्तुति करो।”—भज. 111:1.
1, 2. “हल्लिलूयाह” का क्या मतलब है? मसीही यूनानी शास्त्र में यह शब्द कैसे इस्तेमाल हुआ है?
“हल्लिलूयाह!” यह पुकार ईसाईजगत के गिरजों में अकसर सुनायी देती है। कुछ लोग आम बातचीत के बीच-बीच में यह शब्द बोलते रहते हैं। मगर बहुत कम हैं जो इस पवित्र शब्द का मतलब जानते हैं और इसे इस्तेमाल करनेवाले ज़्यादातर लोगों के जीने के तरीके से परमेश्वर का अपमान होता है। (तीतु. 1:16) बाइबल की एक डिक्शनरी बताती है कि “हल्लिलूयाह शब्द से, अलग-अलग भजन लिखनेवालों ने लोगों को बुलावा दिया कि वे उनके साथ यहोवा की स्तुति करें।” दरअसल, बाइबल के कई विद्वान बताते हैं कि “हल्लिलूयाह” का मतलब है “याह [यानी यहोवा] की स्तुति करो।”
2 इसी वजह से भजन 111:1 में पाए जानेवाले इस शब्द का अनुवाद हिंदी बाइबल में “याह की स्तुति करो” किया गया है। यूनानी भाषा में ये शब्द, प्रकाशितवाक्य 19:1-6 में चार बार आते हैं। इन आयतों में झूठे धर्म के विनाश पर खुशियाँ मनायी जा रही हैं। जब ऐसा होगा, तब सच्चे उपासकों के पास “हल्लिलूयाह” की पुकार लगाने की खास वजह होगी और वे ऐसा पूरे आदर के साथ करेंगे।
परमेश्वर के महान काम
3. नियमित तौर पर इकट्ठा होने का हमारा खास मकसद क्या है?
3 यहोवा को क्यों यह हक है कि हम संग मिलकर उसकी स्तुति करें, भजन 111 का रचनाकार हमें इसकी कई वजह देता है। आयत 1 कहती है: “मैं सीधे लोगों की गोष्ठी में और मण्डली में भी सम्पूर्ण मन से यहोवा का धन्यवाद करूंगा।” यहोवा के साक्षी भी ऐसा ही महसूस करते हैं। चाहे हम अपनी कलीसिया में हों या बड़े अधिवेशनों में, नियमित तौर पर इकट्ठा होने का हमारा खास मकसद है, यहोवा की स्तुति करना।
4. इंसान यहोवा के कामों पर किस तरह ध्यान दे सकते हैं?
4 “यहोवा के कार्य महान् हैं, वे सब जो उनसे प्रसन्न रहते हैं, उन पर ध्यान लगाते हैं।” (भज. 111:2, NHT) “ध्यान लगाते हैं” शब्दों पर गौर कीजिए। एक किताब के मुताबिक यह आयत उन लोगों पर लागू हो सकती है जो परमेश्वर की रचनाओं की “जाँच-परख, सच्ची लगन और श्रद्धा की भावना से करते हैं।” यहोवा ने अपनी हर रचना एक खास मकसद पूरा करने के लिए बनायी है। उसने सूरज, चाँद और धरती को अपनी-अपनी जगह पर बिलकुल सही बिठाया है। तीनों का आपस में बढ़िया तालमेल है, जिससे हमारी धरती को गरमी और रौशनी मिलती है, दिन और रात होते हैं, मौसम आते-जाते हैं और समुद्र में ज्वार-भाटा उठता है।
5. हमारे विश्व के बारे में इंसान की बढ़ती समझ से क्या बात ज़ाहिर हुई है?
5 वैज्ञानिकों ने हमारे सौर-मंडल में पृथ्वी की स्थिति के बारे में बहुत कुछ पता लगाया है। उन्होंने पाया है कि हमारे चाँद का बड़ा आकार और इसका द्रव्यमान हमारी धरती के हिसाब से बिलकुल सही है। यह जितनी दूरी पर अपनी कक्षा में पृथ्वी के चक्कर काटता है उससे पृथ्वी को बहुत फायदे मिलते हैं। आकाश के ये पिंड एक-दूसरे से जितनी दूरी पर रखे गए हैं और इनके बीच जो तालमेल बिठाया गया है, उसकी वजह से हर साल पृथ्वी के कुछ हिस्सों में दिलकश मौसम आते हैं और अपनी छटा बिखेर जाते हैं। यही नहीं, विश्व-मंडल की प्राकृतिक शक्तियों के बीच जिस बारीकी से तालमेल बिठाया गया है, इस बारे में भी बहुत जानकारी हासिल की गयी है। इसीलिए, “विश्व जिसकी रचना ‘बिलकुल सही’ है” शीर्षक के एक लेख में, मकैनिकल इंजीनियरिंग के एक प्रोफेसर ने कहा: “यह समझना मुश्किल नहीं कि पिछले 30 साल में क्यों बहुत-से वैज्ञानिकों ने अपनी सोच बदली है। अब तक वे मानते थे कि हमारा विश्व, अंतरिक्ष में हुए एक विस्फोट का नतीजा है। मगर अब यह मानना ऐसा है जैसे हम आँख मूंदकर किसी बात पर विश्वास करते हैं, जबकि उसके सच होने का कोई आधार नहीं है। हम जितना ज़्यादा अपनी धरती की बनावट के बारे में समझ हासिल करते हैं, हमें उतने ज़्यादा सबूत मिलते हैं कि हमारा यह आशियाना किसी बुद्धिमान रचनाकार ने बड़े ध्यान से और बड़ी सूझ-बूझ के साथ तैयार किया है।”
6. परमेश्वर ने इंसान को जिस तरह बनाया, उस बारे में आप कैसा महसूस करते हैं?
6 परमेश्वर ने हमें जिस तरह बनाया है, वह भी सृष्टि में परमेश्वर की बेहतरीन कारीगरी की एक मिसाल है। (भज. 139:14) इंसानों की रचना करते वक्त परमेश्वर ने उन्हें सभी ज़रूरी अंगों के साथ सिर्फ एक शरीर ही नहीं दिया, बल्कि दिमाग भी दिया साथ ही काम करने की काबिलीयत और क्षमता भी दी। परमेश्वर ने हमें बोलने-सुनने की और पढ़ने-लिखने की काबिलीयत दी, जो किसी चमत्कार से कम नहीं। बहुतों के पास ये काबिलीयतें होती हैं। यही नहीं, आपके शरीर का सीधा खड़ा होना, अपने आप में कारीगरी की बेजोड़ मिसाल है। आपके शरीर की बनावट और इसका संतुलन बनाए रखना, सभी अंगों के तालमेल से इसका काम कर पाना और खाना पचाकर ऊर्जा तैयार करना, ये सारी बातें हमें हैरत में डाल देती हैं। इसके अलावा, आपके मस्तिष्क की तंत्रिकाओं के एक-दूसरे के साथ संपर्क की वजह से आपका दिमाग और आपकी इंद्रियाँ काम करती हैं। वैज्ञानिकों ने आज तक ऐसा यंत्र नहीं बनाया, जो मस्तिष्क की बराबरी कर सके। दरअसल, इंसान ने जो हासिल किया है वह सिर्फ अपने दिमाग और अपनी इंद्रियों की बदौलत हासिल किया है, जो परमेश्वर ने उसे दी हैं। अब अपनी उंगलियों और अंगूठों पर गौर कीजिए। दुनिया में ऐसा काबिल और तजुरबेकार इंजीनियर नहीं हुआ जिसने इन उंगलियों जैसा सुंदर साथ ही तरह-तरह के भार उठानेवाला यंत्र बनाया हो। खुद से पूछिए, ‘अगर परमेश्वर ने हमें उंगलियाँ न दी होतीं, तो क्या इंसान बड़ी कुशलता के साथ इनसे शानदार कलाकृतियाँ बना पाता और बड़े-बड़े निर्माण कर पाता?’
परमेश्वर की महान रचनाएँ और उसके गुण
7. हमें क्यों बाइबल को परमेश्वर की एक महान रचना मानना चाहिए?
7 यहोवा ने इंसान के लिए जो महान काम किए हैं, उनमें और भी कई अद्भुत चीज़ें शामिल हैं। इनकी जानकारी हमें बाइबल से मिलती है। बाइबल अपने आप में एक अजूबा है। इसकी पहली किताब से लेकर आखिरी किताब के बीच अनोखा तालमेल है। इसके जैसी और कोई किताब नहीं, जो ‘परमेश्वर की प्रेरणा से रची गयी हो और . . . शिक्षा के लिये लाभदायक हो।’ (2 तीमु. 3:16) मिसाल के लिए, बाइबल की पहली किताब, उत्पत्ति बताती है कि परमेश्वर ने नूह के दिनों में कैसे धरती से बुराई का सफाया किया। दूसरी किताब, निर्गमन दिखाती है कि कैसे यहोवा ने मिस्र की गुलामी से इसराएल जाति को छुटकारा दिलाकर यह साबित किया कि वही सच्चा परमेश्वर है। शायद इन्हीं घटनाओं को ध्यान में रखते हुए भजनहार यह कहने को प्रेरित हुआ: “[यहोवा] के काम विभवमय और ऐश्वर्य्यमय होते हैं, और उसका धर्म सदा तक बना रहेगा। उस ने अपने आश्चर्यकर्मों का स्मरण कराया है; यहोवा अनुग्रहकारी और दयावन्त है।” (भज. 111:3, 4) क्या आप भी यह नहीं मानते कि बीते ज़मानों में और आपकी ज़िंदगी के दौरान यहोवा ने जो-जो काम किए हैं, वे उसके ‘वैभव और ऐश्वर्य’ की याद दिलाते हैं?
8, 9. (क) परमेश्वर के काम, इंसान के कामों से कैसे अलग हैं? (ख) परमेश्वर के कौन-से गुण आपको अच्छे लगते हैं?
8 गौर कीजिए कि भजनहार, यहोवा के लाजवाब गुणों का भी बखान करता है, जैसे कि धार्मिकता, अनुग्रह और दया। आप जानते हैं कि पापी इंसान के ज़्यादातर काम परमेश्वर के धार्मिक स्तरों के हिसाब से नहीं होते। अकसर उसके कामों से उसका लालच, ईर्ष्या और घमंड दिखायी देता है। इसका सबूत दहशत फैलानेवाले वे हथियार हैं, जो कि आदमी पैसा कमाने के लिए और उन लड़ाइयों के लिए तैयार करता है जिन्हें भड़काने का वह खुद ज़िम्मेदार होता है। इन लड़ाइयों का कहर लाखों मासूमों को झेलना पड़ता है, जो बद-से-बदतर हालात में रात-दिन खौफ के साए में जीते हैं। यही नहीं, इंसान के बहुत-से काम ऐसे हैं जिन्हें पूरा करने के लिए उन गरीबों का खून चूसा जाता है, जो पहले ही अत्याचार का शिकार हैं। इसकी मिसाल देने के लिए कई लोग शायद मिस्र के पिरामिडों की बात करें, जिन्हें बनाने के लिए गुलामों का इस्तेमाल किया गया था। लेकिन ये पिरामिड, ज़्यादातर मिस्र के घमंडी राजाओं या फिरौनों को दफनाने के काम आते थे। और-तो-और, आज भी इंसानों के ज़्यादातर काम ऐसे हैं जिनसे न सिर्फ लोगों को अत्याचार से दबाया जा रहा है, बल्कि ‘पृथ्वी को नष्ट’ (NHT) किया जा रहा है।—प्रकाशितवाक्य 11:18 पढ़िए।
9 मगर, यहोवा के काम कितने अलग हैं। उसका हर काम सही उसूलों के आधार पर होता है। उसका एक काम यह है कि उसने पापी इंसानों पर दया कर उनके उद्धार का रास्ता खोला। इसके लिए परमेश्वर ने फिरौती का इंतज़ाम किया और इस तरह अपनी “धार्मिकता प्रगट” की। (रोमि. 3:25, 26) वाकई, ‘उसकी धार्मिकता सदा तक बनी रहती है’! और परमेश्वर के अनुग्रह की बात करें, तो उसका यह गुण इस बात से दिखायी देता है कि उसने बड़ा सब्र दिखाते हुए पापी इंसानों के साथ व्यवहार किया है। उसने कई मौकों पर उनसे बड़े प्यार से गुज़ारिश की कि वे अपने बुरे रास्ते छोड़कर लौट आएँ और सही काम करें।—यहेजकेल 18:25 पढ़िए।
अपने वादे निभानेवाला
10. यहोवा ने इब्राहीम के साथ अपनी वाचा के मामले में वादा निभाने की मिसाल कैसे रखी?
10 “उस ने अपने डरवैयों को आहार दिया है; वह अपनी वाचा को सदा तक स्मरण रखेगा।” (भज. 111:5) ऐसा लगता है कि भजनहार यहाँ इब्राहीम से की गयी वाचा के बारे में बता रहा था। यहोवा ने इब्राहीम के वंश को आशीष देने का वादा किया था और कहा था कि वे अपने दुश्मनों के नगरों पर कब्ज़ा कर लेंगे। (उत्प. 22:17, 18; भज. 105:8, 9) शुरू में ये वादे तब पूरे हुए जब इब्राहीम का वंश बढ़ते-बढ़ते इसराएल जाति बन गया। यह जाति लंबे अरसे तक मिस्र में गुलाम रही, मगर तब ‘परमेश्वर ने अपनी वाचा को, जो उस ने इब्राहीम के साथ बान्धी थी, स्मरण किया’ और उन्हें मिस्र की गुलामी से छुड़ाया। (निर्ग. 2:24) इसके बाद से, यहोवा ने इसराएलियों के साथ जिस तरह व्यवहार किया उससे पता चलता है कि वह कितना उदार है। उसने उनके शरीर की ज़रूरत पूरी करने के लिए उन्हें सचमुच का खाना और उनके दिलो-दिमाग के लिए आध्यात्मिक जानकारी दी ताकि वे उसके स्तरों पर चल सकें। (व्यव. 6:1-3; 8:4; नहे. 9:21) बाद की सदियों में, इसराएल जाति बार-बार यहोवा से मुँह फेर लेती थी, मगर यहोवा उनके पास अपने भविष्यवक्ता भेजकर उनसे लौट आने की गुज़ारिश करता था। इसराएलियों को मिस्र से छुटकारा दिलाए 1,500 से भी ज़्यादा साल बीत चुके थे, जब परमेश्वर ने अपने इकलौते बेटे को इस धरती पर भेजा। ज़्यादातर यहूदियों ने यीशु को ठुकरा दिया और उसे मौत की सज़ा के लिए सौंप दिया। तब इसराएल जाति को ठुकराकर, यहोवा ने एक नयी जाति तैयार की, जो एक आध्यात्मिक जाति थी और जिसे ‘परमेश्वर का इस्राएल’ कहा गया। मसीह के साथ-साथ यह जाति इब्राहीम के आध्यात्मिक वंश का हिस्सा बनती है, जिसके बारे में यहोवा ने भविष्यवाणी की थी कि वह इस वंश के ज़रिए इंसानों को आशीष देगा।—गल. 3:16, 29; 6:16.
11. यहोवा कैसे इब्राहीम के साथ की गयी ‘अपनी वाचा का स्मरण रखता’ है?
11 यहोवा अब भी ‘अपनी वाचा’ और इसके ज़रिए जिन आशीषों का वादा किया गया था, उन्हें ‘स्मरण रखता’ है। आज, वह 400 से ज़्यादा भाषाओं में बेहिसाब आध्यात्मिक भोजन दे रहा है। इतना ही नहीं, जब हम अपने शरीर की ज़रूरतों के लिए प्रार्थना करते हैं, तो वह इन शब्दों के मुताबिक हमारी ज़रूरतें भी पूरी करता रहता है: “हमारी दिन भर की रोटी हर दिन हमें दिया कर।”—लूका 11:3; भज. 72:16, 17; यशा. 25:6-8.
यहोवा की कमाल की शक्ति
12. किस मायने में इसराएल को “जाति जाति का उत्तराधिकार” दिया गया?
12 “उसने जाति जाति का उत्तराधिकार अपनी प्रजा को देकर, अपने कार्यों का सामर्थ्य उन पर प्रकट किया है।” (भज. 111:6, NHT) भजनहार के मन में शायद मिस्र से इसराएल के छुटकारे की बात रही होगी, जो किसी चमत्कार से कम नहीं था और उस जाति के इतिहास में यह बहुत ही खास घटना थी। आखिरकार जब यहोवा ने इसराएलियों को वादा किए गए देश में दाखिल होने दिया, तो वे यरदन नदी के पूरब और पश्चिम के सभी देशों पर जीत हासिल करने में कामयाब हुए। (नहेमायाह 9:22-25 पढ़िए।) जी हाँ, यहोवा ने इसराएल को “जाति जाति का उत्तराधिकार” दिया। परमेश्वर का सामर्थ्य और उसकी शक्ति क्या ही बढ़िया ढंग से ज़ाहिर हुई!
13, 14. (क) बैबिलोन के मामले में यहोवा ने कैसे अपनी शक्ति दिखायी, जिसकी याद शायद भजनहार के मन में रही हो? (ख) यहोवा ने अपने लोगों को आज़ाद कराने के लिए और कौन-से महान काम किए हैं?
13 लेकिन हम अच्छी तरह जानते हैं, हालाँकि यहोवा ने उनकी खातिर इतना कुछ किया मगर इसराएल ने न तो यहोवा के लिए, न अपने पुरखों इब्राहीम, इसहाक और याकूब के लिए आदर दिखाया। वे परमेश्वर के खिलाफ बगावत करते रहे, इसलिए परमेश्वर ने बैबिलोन को इजाज़त दी कि उन्हें देश-निकाला देकर अपने गुलाम बनाकर ले जाए। (2 इति. 36:15-17; नहे. 9:28-30) बाइबल के कुछ विद्वानों का मानना है कि भजन 111 का रचनाकार, उस दौर में जीया था जब इसराएली बैबिलोन की गुलामी से छूटकर वापस अपने वतन लौट आए थे। अगर यह सच है, तो इस भजनहार के पास यहोवा की वफादारी और शक्ति के लिए उसकी स्तुति करने की एक और वजह थी। परमेश्वर ने अपनी वफादारी और शक्ति तब दिखायी जब उसने यहूदियों को बैबिलोन के चंगुल से छुड़ाया, क्योंकि इस साम्राज्य की नीति थी कि वह अपने बंदियों को कभी-भी आज़ाद नहीं करता था।—यशा. 14:4, 17.
14 करीब पाँच सौ साल बाद, यहोवा ने और भी बड़े पैमाने पर अपनी शक्ति का इस्तेमाल किया, जब उसने पश्चाताप करनेवाले पापी इंसानों को पाप और मौत की गुलामी से आज़ाद किया। (रोमि. 5:12) इसका एक नतीजा यह हुआ कि 1,44,000 इंसानों के आगे यह आशा रखी गयी कि वे यीशु के चेले बनकर परमेश्वर की पवित्र शक्ति से अभिषिक्त किए जाएँ। सन् 1919 में, यहोवा ने अपनी शक्ति का इस्तेमाल किया ताकि इन अभिषिक्त जनों में से शेष बचे हुए लोगों को झूठे धर्म की बेड़ियों से आज़ाद करे। इन आखिरी दिनों के दौरान इन अभिषिक्तों ने जो कामयाबियाँ हासिल की हैं वे सिर्फ परमेश्वर की शक्ति से ही मुमकिन हो सकती हैं। मौत तक वफादार बने रहने पर, वे यीशु मसीह के साथ स्वर्ग से इस धरती पर राज करेंगे ताकि पापों से पश्चाताप करनेवाले इंसानों को फायदा पहुँचाएँ। (प्रका. 2:26, 27; 5:9, 10) प्राचीन इसराएल ने पृथ्वी का एक छोटा-सा इलाका कुछ वक्त के लिए उत्तराधिकार में पाया था। मगर ये अभिषिक्त जन बड़े ही शानदार ढंग से पूरी पृथ्वी के उत्तराधिकारी होंगे।—मत्ती 5:5.
अटल और विश्वासयोग्य सिद्धांत
15, 16. (क) परमेश्वर के हाथों के काम में क्या-क्या शामिल है? (ख) परमेश्वर ने प्राचीन इसराएल को क्या आज्ञाएँ दी थीं?
15 “सच्चाई और न्याय उसके हाथों के काम हैं; उसके सब उपदेश विश्वासयोग्य हैं, वे सदा सर्वदा अटल रहेंगे, वे सच्चाई और सिधाई से किए हुए हैं।” (भज. 111:7, 8) यहोवा के “हाथों के काम” में पत्थर की वे दो पटियाएँ भी शामिल थीं जिन पर इसराएल जाति के लिए दस ज़रूरी नियम खोदकर लिखे गए थे। (निर्ग. 31:18) इन नियमों के साथ-साथ बाकी सभी आज्ञाएँ जो मूसा के कानून में शामिल की गयी थीं, वे अटल और विश्वासयोग्य सिद्धांतों पर आधारित हैं।
16 मिसाल के लिए, इन पटियाओं पर एक आज्ञा यह लिखी थी: “मैं तेरा परमेश्वर यहोवा जलन रखने वाला ईश्वर हूं।” आगे इस आज्ञा में कहा है कि ‘जो यहोवा से प्रेम रखते और उसकी आज्ञाओं को मानते हैं, उन हज़ारों पर करुणा किया करता’ है।—निर्ग. 20:5, 6, 12, 15, 17.
हमारा पवित्र, भययोग्य उद्धार करनेवाला
17. परमेश्वर का नाम पवित्र मानकर उसका सम्मान करने की इसराएलियों के पास कौन-सी वजह थीं?
17 “उस ने अपनी प्रजा का उद्धार किया है; उस ने अपनी वाचा को सदा के लिये ठहराया है। उसका नाम पवित्र और भययोग्य है।” (भज. 111:9) इस बार भी, भजनहार के मन में यह होगा कि यहोवा ने किस वफादारी से इब्राहीम से की गयी वाचा पूरी की और अपना वादा निभाया। उसी वादे के मुताबिक, यहोवा ने अपने लोगों को छोड़ा नहीं, तब भी नहीं जब वे प्राचीन मिस्र में गुलाम थे और न बाद में जब वे बैबिलोन में बंदी थे। दोनों बार, यहोवा ने अपने लोगों का उद्धार किया। यही दो वजह काफी हैं कि इसराएल के लोग परमेश्वर के नाम को पवित्र मानकर उसका सम्मान करते।—निर्गमन 20:7; रोमियों 2:23, 24 पढ़िए।
18. आपको क्यों लगता है कि परमेश्वर के नाम के कहलाए जाना, बड़े सम्मान की बात है?
18 आज मसीही भी ऐसे ही हालात में हैं। उन्हें पाप और मौत की गुलामी से छुड़ाया गया है, जबकि उनके लिए इस गुलामी से छुटकारा पाने के सारे रास्ते बंद थे। हमारी यह कोशिश होनी चाहिए कि आदर्श प्रार्थना की पहली बिनती के मुताबिक जीएँ, जो कहती है: “तेरा नाम पवित्र माना जाए।” (मत्ती 6:9) परमेश्वर के नाम की शान और उसके ऐश्वर्य के बारे में गहराई से सोचने पर हमारे अंदर परमेश्वर का भय पैदा होना चाहिए। भजन 111 का लेखक, परमेश्वर का भय मानने के बारे में सही नज़रिया रखता था। उसने कहा: “यहोवा का भय मानना बुद्धि का आरम्भ है; उन सब की समझ उत्तम होती है जो उसकी आज्ञा-पालन करते [उसकी आज्ञाएँ मानते] हैं।”—भज. 111:10.
19. अगले लेख में हम किस बात पर चर्चा करेंगे?
19 अगर हमारे अंदर परमेश्वर का सही भय है, तो हम बुराई से घृणा करेंगे। इसी भय की वजह से हम परमेश्वर के शानदार गुण अपने अंदर पैदा करेंगे। इन गुणों के बारे में भजन 112 में बताया है, जिस पर हम अगले लेख में चर्चा करेंगे। इस भजन में बताया गया है कि अगर हम हमेशा-हमेशा तक परमेश्वर की स्तुति करनेवालों में होना चाहते हैं तो उसके लिए हमें क्या करना होगा। वाकई वह हमेशा-हमेशा तक हमारी स्तुति का हकदार है। “उसकी स्तुति सदा बनी रहेगी।”—भज. 111:10.
मनन के लिए सवाल
• यहोवा को क्यों यह हक है कि हम संग मिलकर उसकी स्तुति करें?
• यहोवा की रचनाओं और कामों में उसके कौन-से गुण दिखायी देते हैं?
• आप परमेश्वर के नाम के कहलाए जाने के सम्मान को किस नज़र से देखते हैं?
[पेज 20 पर तसवीर]
नियमित तौर पर सभाओं में इकट्ठा होने का हमारा खास मकसद है यहोवा की स्तुति करना
[पेज 23 पर तसवीर]
यहोवा के सभी नियम अटल और विश्वासयोग्य सिद्धांतों पर आधारित हैं