अध्ययन लेख 3
अपने दिल की हिफाज़त कैसे करें?
“सब चीज़ों से बढ़कर अपने दिल की हिफाज़त कर।”—नीति. 4:23.
गीत 36 दिल की हिफाज़त करें
लेख की एक झलकa
1-3. (क) यहोवा सुलैमान से प्यार क्यों करता था और उसने उसे कौन-सी आशीषें दीं? (ख) इस लेख में हमें किन सवालों के जवाब मिलेंगे?
सुलैमान अभी नौजवान ही था कि उसे पूरे इसराएल का राजा बनाया गया। राजा बने उसे कुछ ही दिन हुए थे कि एक दिन यहोवा ने सपने में उससे कहा, “तू जो चाहे माँग, मैं तुझे दूँगा।” सुलैमान ने कहा, “मैं बस एक जवान हूँ और मुझे कोई तजुरबा नहीं है। . . . इसलिए मेहरबानी करके अपने सेवक को ऐसा दिल दे जो हमेशा तेरी आज्ञा माने ताकि मैं तेरे लोगों का न्याय कर सकूँ।” (1 राजा 3:5-10) “ऐसा दिल दे जो हमेशा तेरी आज्ञा माने,” इन शब्दों से पता चलता है कि सुलैमान कितना नम्र था! तभी तो यहोवा उससे बहुत प्यार करता था! (2 शमू. 12:24) परमेश्वर उस जवान राजा की गुज़ारिश से इतना खुश हुआ कि उसने उसे ‘बुद्धि और समझ से भरा दिल’ दिया।—1 राजा 3:12.
2 जब तक सुलैमान यहोवा का वफादार रहा, यहोवा ने उसे बहुत-सी आशीषें दीं। उसे “इसराएल के परमेश्वर यहोवा के नाम की महिमा के लिए” मंदिर बनाने का सम्मान मिला। (1 राजा 8:20) वह परमेश्वर से मिली बुद्धि के लिए दूर-दूर तक मशहूर हो गया। यही नहीं, उसने परमेश्वर की प्रेरणा से जो बातें कहीं, वे बाइबल की तीन किताबों में दर्ज़ हैं। उनमें से एक है, नीतिवचन की किताब।
3 इस किताब में शब्द “दिल” करीब 50 बार आया है। इसका एक उदाहरण है नीतिवचन 4:23, जहाँ लिखा है, “सब चीज़ों से बढ़कर अपने दिल की हिफाज़त कर।” इस आयत में शब्द “दिल” का क्या मतलब है? इस सवाल का जवाब हमें इस लेख में मिलेगा। हमें दो और अहम सवालों के जवाब मिलेंगे: शैतान किस तरह हमारे दिल को दूषित या भ्रष्ट करने की कोशिश करता है? हम अपने दिल की हिफाज़त कैसे कर सकते हैं? परमेश्वर के वफादार रहने के लिए इन अहम सवालों के जवाब जानना ज़रूरी है।
“दिल” का क्या मतलब है?
4-5. (क) नीतिवचन 4:23 में शब्द “दिल” का क्या मतलब है? (ख) इस बात पर ध्यान देना क्यों ज़रूरी है कि हम अंदर से कैसे इंसान हैं? उदाहरण देकर समझाइए।
4 नीतिवचन 4:23 में इस्तेमाल हुए शब्द “दिल” का मतलब है, एक व्यक्ति की सोच, भावनाएँ, इच्छाएँ और उसके इरादे। दूसरे शब्दों में कहें तो “दिल” हमारे अंदर के इंसान को दर्शाता है, न कि इस बात को कि हम बाहर से कैसे दिखते हैं।
5 इस बात पर ध्यान देना क्यों ज़रूरी है कि हम अंदर से कैसे इंसान हैं? इसे समझने के लिए सेहत की बात लीजिए। अपने शरीर और दिल को तंदुरुस्त रखने के लिए ज़रूरी है कि हम पौष्टिक खाना खाएँ और नियमित तौर पर कसरत करें। ठीक उसी तरह अपने लाक्षणिक दिल को तंदुरुस्त रखने के लिए हमें बाइबल और दूसरे प्रकाशन पढ़ने होंगे और नियमित तौर पर यह दिखाना होगा कि हमें यहोवा पर विश्वास है। हम अपना यह विश्वास सीखी हुई बातों पर चलकर और उनके बारे में दूसरों को बताकर ज़ाहिर कर सकते हैं। (रोमि. 10:8-10; याकू. 2:26) हमारी सेहत के बारे में एक और बात ध्यान देने लायक है। वह यह कि शायद हमें अपने आपको देखकर लगे कि हम सेहतमंद हैं, लेकिन असल में अंदर से हम बीमार हों। उसी तरह शायद खुद को परमेश्वर के कामों में व्यस्त देखकर हमें लगे कि हमारा विश्वास मज़बूत है, लेकिन हो सकता है कि हमारे अंदर गलत इच्छाएँ पनप रही हों। (1 कुरिं. 10:12; याकू. 1:14, 15) हमें याद रखना चाहिए कि शैतान अपनी सोच से हमें भ्रष्ट करना चाहता है। इसके लिए वह ठीक कौन-से तरीके अपनाता है? ऐसे में हम अपनी हिफाज़त कैसे कर सकते हैं?
शैतान हमारा दिल भ्रष्ट करने की कोशिश कैसे करता है?
6. शैतान क्या चाहता है और इसके लिए वह क्या करने की कोशिश करता है?
6 शैतान हमें अपनी तरह बनाना चाहता है। वह चाहता है कि हम यहोवा के स्तर ठुकराकर अपना मतलब पूरा करें। लेकिन शैतान हमसे ज़बरदस्ती नहीं कर सकता कि हम उसकी तरह सोचें या काम करें। इस वजह से वह दूसरे तरीके अपनाता है। मिसाल के लिए, वह हमें ऐसे लोगों से घिरे रखने की कोशिश करता है, जिनकी सोच वह पहले से ही भ्रष्ट कर चुका है। (1 यूह. 5:19) भले ही हमें पता है कि बुरी संगति हमारी सोच और हमारा चालचलन “बिगाड़” सकती है, फिर भी शैतान इस उम्मीद में रहता है कि हम उन लोगों के साथ वक्त बिताएँगे। (1 कुरिं. 15:33) शैतान की यह चाल राजा सुलैमान पर काम कर गयी। सुलैमान ने ऐसी बहुत-सी औरतों से शादी की जो यहोवा की उपासना नहीं करती थीं। उनका “उस पर ज़बरदस्त असर” हुआ और उन्होंने “धीरे-धीरे उसका दिल बहका दिया।”—1 राजा 11:3; फु.
7. शैतान और किस तरह अपनी सोच फैलाता है और हमें क्यों सावधान रहना चाहिए?
7 शैतान फिल्मों और टीवी कार्यक्रमों में पेश की जानेवाली कहानियों के ज़रिए भी अपनी सोच फैलाने की कोशिश करता है। वह जानता है कि कहानियाँ न सिर्फ लोगों का मन बहलाती हैं, बल्कि बहुत कुछ सिखाती भी हैं। जैसे, उनकी सोच, भावनाएँ और उनका व्यवहार कैसा होना चाहिए। यीशु ने सिखाने का यह तरीका कई बार अपनाया था। उसने एक दयालु सामरी और उड़ाऊ बेटे की कहानी सुनाकर लोगों को अच्छी बातें सिखायी थीं। (मत्ती 13:34; लूका 10:29-37; 15:11-32) लेकिन जिन लोगों को शैतान ने अपनी सोच से भ्रष्ट कर दिया है, वे कहानियों के ज़रिए हमारी सोच भ्रष्ट कर सकते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि फिल्में और टीवी कार्यक्रम देखना गलत है। इनसे हमारा मनोरंजन होता है और हम अच्छी बातें भी सीखते हैं। लेकिन मनोरंजन चुनते वक्त हमें सावधान रहना चाहिए। हम खुद से पूछ सकते हैं, ‘क्या यह फिल्म या टीवी कार्यक्रम मुझे सिखा रहा है कि शरीर की इच्छाएँ पूरी करना गलत नहीं है?’ (गला. 5:19-21; इफि. 2:1-3) अगर आपको पता चलता है कि किसी कार्यक्रम में शैतान की सोच का बढ़ावा दिया जा रहा है, तो आप क्या करेंगे? उस कार्यक्रम से उतना ही दूर रहिए, जितना आप किसी संक्रामक बीमारी से दूर रहते हैं!
8. माता-पिता किस तरह बच्चों को अपने दिल की हिफाज़त करना सिखा सकते हैं?
8 माता-पिताओ, शैतान आपके बच्चों का भी दिल भ्रष्ट करने की कोशिश करता है। इस वजह से आपकी खास ज़िम्मेदारी बनती है कि आप उन्हें अपने दिल की हिफाज़त करना सिखाएँ। सोचिए कि आप अपने बच्चों को बीमारियों से बचाने के लिए क्या-कुछ नहीं करते। आप अपने घर को साफ-सुथरा रखते हैं और ऐसी हर चीज़ घर से बाहर फेंक देते हैं, जिससे आपका बच्चा बीमार हो सकता है। उसी तरह आपको ऐसी फिल्मों, टीवी कार्यक्रमों, वीडियो गेम और वेबसाइट से अपने बच्चों को दूर रखना है, जिनसे शैतान उनकी सोच भ्रष्ट कर सकता है। इस बात का पूरा ध्यान रखिए कि यहोवा के साथ आपके बच्चों की दोस्ती में दरार न आए। उनकी देखभाल करने की ज़िम्मेदारी और अधिकार यहोवा ने आपको दिया है। (नीति. 1:8; इफि. 6:1, 4) इस वजह से बाइबल के स्तरों के आधार पर अपने परिवार के लिए नियम बनाने से मत डरिए। अपने छोटे बच्चों को बताइए कि वे क्या देख सकते हैं और क्या नहीं और इसकी वजह समझाइए। (मत्ती 5:37) जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, उन्हें यहोवा के स्तरों के मुताबिक सही-गलत में फर्क करना सिखाइए। (इब्रा. 5:14) एक बात हमेशा याद रखिए, बच्चे आपकी बातों से बहुत कुछ सीखते हैं, लेकिन उससे भी ज़्यादा वे आपको देखकर सीखते हैं।—व्यव. 6:6, 7; रोमि. 2:21.
9. शैतान किस सोच का बढ़ावा देता है और यह क्यों खतरनाक है?
9 शैतान एक और तरीके से हमारा दिल भ्रष्ट करने की कोशिश करता है। वह चाहता है कि हम यहोवा की सोच के बजाय इंसानी सोच पर भरोसा करें। (कुलु. 2:8) ज़रा एक उदाहरण पर ध्यान दीजिए। शैतान इस सोच का बढ़ावा देता है कि ज़िंदगी में अमीर बनना ही सबसे ज़रूरी है। ऐसी सोच रखनेवाले अपना पूरा ध्यान पैसा कमाने पर लगाते हैं, फिर चाहे वे अमीर बनें या न बनें। यह सोच बहुत खतरनाक है। वह इसलिए कि पैसा कमाने की चाहत उन पर इस कदर हावी हो जाती है कि वे अपनी सेहत, पारिवारिक रिश्ते, यहाँ तक कि यहोवा के साथ अपनी दोस्ती भी दाँव पर लगा देते हैं। (1 तीमु. 6:10) हम अपने पिता यहोवा के कितने शुक्रगुज़ार हैं कि वह पैसे के बारे में सही नज़रिया रखने में हमें बुद्धि-भरी सलाह देता है।—सभो. 7:12; लूका 12:15.
दिल की हिफाज़त कैसे करें?
10-11. (क) अपने दिल की हिफाज़त करने के लिए हमें क्या करना होगा? (ख) पुराने ज़माने में पहरेदार क्या करते थे और हमारा ज़मीर कैसे एक पहरेदार की तरह काम कर सकता है?
10 अपने दिल की हिफाज़त करने के लिए हमें सबसे पहले खतरों को पहचानना होगा और फिर तुरंत कदम उठाना होगा। नीतिवचन 4:23 में जिस शब्द का अनुवाद “हिफाज़त” किया गया है, उससे हमें एक पहरेदार की याद आती है। राजा सुलैमान के दिनों में पहरेदार शहरपनाह के ऊपर तैनात होते थे और अगर उन्हें कोई खतरा नज़र आता, तो वे तुरंत आवाज़ लगाकर दूसरों को खबरदार करते थे। इस तसवीर को मन में रखकर हम अच्छी तरह समझ पाते हैं कि हमें क्या करना चाहिए, ताकि शैतान हमारी सोच को भ्रष्ट न कर दे।
11 पुराने ज़माने में पहरेदार और फाटक पर तैनात दरबान साथ-साथ काम करते थे। (2 शमू. 18:24-26) जब भी कोई दुश्मन शहर के पास आता, तो पहरेदार की आवाज़ सुनकर दरबान शहर के फाटक बंद कर देते थे। इस तरह वे मिलकर शहर की हिफाज़त करते थे। (नहे. 7:1-3) बाइबल से प्रशिक्षण पाया हमारा ज़मीरb एक पहरेदार की तरह काम करता है। जब भी शैतान हमारे दिल में घुसपैठ करने यानी हमारी सोच, भावनाओं, इच्छाओं और हमारे इरादों को भ्रष्ट करने की कोशिश करता है, तो हमारा ज़मीर हमें खबरदार करता है। जब ऐसा होता है, तो हमें ज़मीर की आवाज़ सुननी चाहिए और अपने दिल के दरवाज़े बंद कर देने चाहिए।
12-13. (क) हमें क्या करने के लिए लुभाया जा सकता है? (ख) लेकिन हमें क्या कदम उठाना चाहिए?
12 हम पर शैतान की सोच का असर न हो, इसके लिए हम क्या कर सकते हैं? एक उदाहरण पर गौर कीजिए। यहोवा ने हमें सिखाया है कि ‘हमारे बीच नाजायज़ यौन-संबंध और किसी भी तरह की अशुद्धता का ज़िक्र तक न हो।’ (इफि. 5:3) लेकिन अगर स्कूल के बच्चे या साथ काम करनेवाले अनैतिक विषयों पर बात करने लगें, तो हम क्या करेंगे? हमें पता है कि हमें ‘भक्तिहीन कामों और दुनियावी इच्छाओं को ठुकरा’ देना चाहिए। (तीतु. 2:12) हमारा ज़मीर पहरेदार की तरह शायद हमें खबरदार करे। (रोमि. 2:15) लेकिन क्या हम उसकी आवाज़ सुनेंगे? हो सकता है, हमारा मन करे कि हम अपने साथियों की सुनें या उन तसवीरों को देखें, जो वे एक-दूसरे को दिखा रहे हैं। लेकिन ऐसे वक्त में हमें मानो शहर के फाटक बंद कर देने चाहिए यानी बातचीत का रुख मोड़ देना चाहिए या वहाँ से उठकर चले जाना चाहिए।
13 साथियों के दबाव का डटकर सामना करने के लिए हमें हिम्मत चाहिए। हम पूरा भरोसा रख सकते हैं कि यहोवा हमारी मेहनत देखता है और वह हमें बुद्धि और ताकत देगा, ताकि हम शैतान की सोच का डटकर विरोध कर सकें। (2 इति. 16:9; यशा. 40:29; याकू. 1:5) लेकिन अपने दिल की हिफाज़त करने के लिए हम और क्या कर सकते हैं?
चौकन्ने रहिए
14-15. (क) हमें किन बातों के लिए अपने दिल के दरवाज़े खोलने चाहिए और यह हम कैसे कर सकते हैं? (ख) नीतिवचन 4:20-22 के मुताबिक बाइबल पढ़ने और उससे पूरा फायदा पाने के लिए हमें क्या करना चाहिए? (“मनन कैसे करें?” नाम का बक्स भी देखें।)
14 दिल की हिफाज़त करने के लिए हमें बुरी बातों के लिए न सिर्फ अपने दिल के दरवाज़े बंद करने चाहिए, बल्कि अच्छी बातों के लिए इन्हें खोलना भी चाहिए। एक बार फिर उस शहर के बारे में सोचिए, जिसके चारों तरफ शहरपनाह है। जब दुश्मन धावा बोलते थे, तो उन्हें रोकने के लिए दरबान शहर के फाटक बंद कर देते थे। मगर दूसरे मौकों पर वे फाटक खोल देते थे, ताकि राशन-पानी और दूसरी ज़रूरी चीज़ें शहर के अंदर लायी जा सकें। अगर शहर के फाटक हमेशा बंद रहते, तो वहाँ के निवासी भूखों मर जाते। उसी तरह यहोवा की सोच को अपने दिल में जगह देने के लिए हमें समय-समय पर अपने दिल के दरवाज़े खोलने चाहिए।
15 यहोवा की सोच बाइबल में दी गयी है, इसलिए जब भी हम बाइबल पढ़ते हैं, तो हम उसकी सोच का अपने दिलो-दिमाग और व्यवहार पर असर होने देते हैं। बाइबल पढ़ने और उससे पूरा फायदा पाने के लिए प्रार्थना करना ज़रूरी है। एक बहन बताती है, “बाइबल पढ़ने से पहले मैं यहोवा से प्रार्थना करती हूँ। मैं उससे मदद माँगती हूँ, ताकि मैं उसके वचन में दी ‘लाजवाब बातें साफ देख सकूँ।’” (भज. 119:18) हमें पढ़ी हुई बातों पर मनन भी करना चाहिए। जब हम प्रार्थना करते हैं, यहोवा का वचन पढ़ते हैं और उस पर मनन करते हैं, तो उसका वचन हमारे “दिल में” बस जाता है और हमें यहोवा की सोच से लगाव हो जाता है।—नीतिवचन 4:20-22 पढ़िए; भज. 119:97.
16. JW ब्रॉडकास्टिंग के कार्यक्रम से बहुत-से लोगों को क्या फायदा हुआ है?
16 JW ब्रॉडकास्टिंग के कार्यक्रम देखने से भी हम यहोवा की सोच को अपने दिलो-दिमाग पर असर करने देते हैं। एक पति-पत्नी कहते हैं, “हर महीने का कार्यक्रम वाकई हमारी प्रार्थनाओं का जवाब है। जब भी हम उदास होते हैं या खुद को अकेला महसूस करते हैं, तो ये कार्यक्रम हमारा हौसला बढ़ाते हैं। ब्रॉडकास्टिंग के गानों के क्या कहने! चाहे हम खाना बना रहे हों या साफ-सफाई कर रहे हों या फिर चाय का मज़ा ले रहे हों, हम इन्हें हमेशा चलाकर रखते हैं।” इन कार्यक्रमों से सच में हमारे दिल की हिफाज़त होती है। इनकी मदद से हम यहोवा की तरह सोचना सीखते हैं और शैतान की सोच से दूर रहते हैं।
17-18. (क) जब हम सही काम करते हैं, तो 1 राजा 8:61 के मुताबिक हम क्या दिखाते हैं? (ख) राजा हिजकियाह की मिसाल से हम क्या सीखते हैं? (ग) भजन 139:23, 24 में दर्ज़ दाविद की प्रार्थना के मुताबिक हम किस बात के लिए प्रार्थना कर सकते हैं?
17 हर बार जब हम सही काम करने से फायदा पाते हैं, तो यह देखकर हमारा विश्वास मज़बूत होता है। (याकू. 1:2, 3) इतना ही नहीं, यहोवा को हमें अपने बच्चे पुकारने में गर्व होता है और यह एहसास हमें खुशी देता है। साथ ही, यहोवा का दिल खुश करने की हमारी इच्छा बढ़ जाती है। (नीति. 27:11) हम पर आनेवाली हर परीक्षा से हमें यह दिखाने का मौका मिलता है कि हम अपने प्यारे पिता की सेवा आधे-अधूरे मन से नहीं करते। (भज. 119:113) इसके बजाय हम पूरे दिल से उससे प्यार करते हैं यानी हमने ठान लिया है कि हम हर हाल में उसकी आज्ञा मानेंगे और उसकी मरज़ी पूरी करेंगे।—1 राजा 8:61 पढ़िए।
18 क्या इसका मतलब है कि हमसे गलतियाँ नहीं होंगी? बिलकुल होंगी क्योंकि हम अपरिपूर्ण हैं। जब हमसे गलतियाँ होती हैं, तो हम राजा हिजकियाह की मिसाल याद कर सकते हैं। उससे भी गलतियाँ हुईं, लेकिन उसने पश्चाताप किया और वह “पूरे दिल से” यहोवा की सेवा करता रहा। (यशा. 38:3-6; 2 इति. 29:1, 2; 32:25, 26) आइए ठान लें कि हम शैतान को हमारी सोच भ्रष्ट नहीं करने देंगे। आइए यह प्रार्थना करें कि यहोवा हमें “ऐसा दिल दे जो हमेशा [उसकी] आज्ञा माने।” (1 राजा 3:9; भजन 139:23, 24 पढ़िए।) यकीन मानिए, सब चीज़ों से बढ़कर अपने दिल की हिफाज़त करने से हम यहोवा के वफादार रह सकते हैं।
गीत 54 “राह यही है!”
a क्या हम यहोवा के वफादार रहेंगे या शैतान के झाँसे में आकर यहोवा से दूर चले जाएँगे? इसका जवाब इस बात पर निर्भर नहीं करता कि हम पर कैसी परीक्षाएँ आती हैं, बल्कि इस बात पर करता है कि हम अपने दिल की कितनी अच्छी तरह हिफाज़त करते हैं। शब्द “दिल” का क्या मतलब है? शैतान किस तरह हमारे दिल को भ्रष्ट करने की कोशिश करता है? हम इसकी हिफाज़त कैसे कर सकते हैं? इस लेख में इन अहम सवालों के जवाब दिए जाएँगे।
b इसका क्या मतलब है? यहोवा ने हमें ऐसी काबिलीयत दी है कि हम अपनी सोच, भावनाओं और कामों की जाँच कर सकते हैं और फिर तय कर सकते हैं कि वे सही हैं या गलत। बाइबल में इस काबिलीयत को ज़मीर कहा गया है। (रोमि. 2:15; 9:1) बाइबल से प्रशिक्षण पाया हमारा ज़मीर, बाइबल में दिए यहोवा के स्तरों के आधार पर फैसला करता है कि हमारी सोच, बातें या काम सही हैं या गलत।
c तसवीर के बारे में: बपतिस्मा पाया हुआ एक भाई टीवी देख रहा है कि तभी कोई गंदा सीन आ जाता है। अब भाई को फैसला करना है कि वह क्या करेगा।
d तसवीर के बारे में: पुराने ज़माने के एक पहरेदार को शहर के बाहर कोई खतरा नज़र आता है। वह नीचे दरबानों को आवाज़ लगाता है और वे तुरंत फाटक बंद करके बेड़े लगा देते हैं।