बुद्धि पाइए और अनुशासन स्वीकार कीजिए
यहोवा परमेश्वर महान शिक्षक है। वह अपने लोगों को खुद के बारे में तो सिखाता ही है, साथ ही उन्हें ज़िंदगी जीने का तरीका भी सिखाता है। (यशायाह ३०:२०; ५४:१३; भजन २७:११) इस्राएलियों के ज़माने में यहोवा ने सिखाने का ज़िम्मा भविष्यवक्ताओं, लेवियों और खासकर याजकों जैसे समझदार पुरुषों को दिया था। (२ इतिहास ३५:३; यिर्मयाह १८:१८) भविष्यवक्ताओं का काम था, लोगों को परमेश्वर के उद्देश्य और उसके गुणों के बारे में सिखाना, साथ ही यह समझाना कि उन्हें किस मार्ग पर चलना चाहिए। याजकों और लेवियों की ज़िम्मेदारी थी, लोगों को यहोवा की कानून-व्यवस्था सिखाना। और पुरनिए या ज्ञानी पुरुष, लोगों को रोज़मर्रा ज़िंदगी के बारे में अच्छी सलाह देते थे।
दाऊद का पुत्र सुलैमान, इस्राएलियों में सबसे बुद्धिमान या ज्ञानी पुरुष था। (१ राजा ४:३०, ३१) उसका वैभव, उसकी बुद्धि और धन-दौलत देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते थे। और इन खास मेहमानों में से एक थी शीबा की रानी, जिसने सुलैमान की कीर्त्ति देखकर कहा: “इसका आधा भी मुझे न बताया गया था; तेरी बुद्धिमानी और कल्याण उस कीर्त्ति से भी बढ़कर है, जो मैं ने सुनी थी।” (१ राजा १०:७) सुलैमान की इस बुद्धि का राज़ क्या था? जब वह सा.यु.पू. १०३७ में इस्राएल का राजा बना, तो उसने “बुद्धि और ज्ञान” के लिए यहोवा से प्रार्थना की। सुलैमान की बिनती सुनकर यहोवा खुश हुआ और उसने उसे बुद्धि, ज्ञान और समझ दी। (२ इतिहास १:१०-१२; १ राजा ३:१२) यही वज़ह है कि सुलैमान “तीन हज़ार नीतिवचन” कह सका। (१ राजा ४:३२) इनमें से कुछ नीतिवचनों को, बाइबल की नीतिवचन नामक किताब में दर्ज़ किया गया है जिसमें “आगूर” और “लमूएल राजा” के वचन भी हैं। (नीतिवचन ३०:१; ३१:१) इन नीतिवचनों की सच्चाई हर ज़माने में साबित हुई है और इनमें परमेश्वर की बुद्धि नज़र आती है। (१ राजा १०:२३, २४) ये नीतिवचन हज़ारों साल पहले कहे गए थे, पर फिर भी खुशी और कामयाबी पाने के लिए जितने ज़रूरी ये उस वक्त थे उतने ही आज भी हैं।
कामयाबी और शुद्ध चालचलन का राज़
नीतिवचन की पुस्तक का मकसद उसकी पहली कुछ आयतों में बताया गया है: “दाऊद के पुत्र इस्राएल के राजा सुलैमान के नीतिवचन: इनके द्वारा पढ़नेवाला बुद्धि और शिक्षा प्राप्त करे, और समझ की बातें समझे, और काम करने में प्रवीणता [अंदरूनी समझ पाए], और धर्म, न्याय और सीधाई की शिक्षा पाए; कि भोलों को चतुराई, और जवान को ज्ञान और विवेक [अच्छे-बुरे में फर्क करने की काबिलीयत] मिले।”—नीतिवचन १:१-४.
‘सुलैमान के नीतिवचनों’ का कितना बढ़िया मकसद है! वे इसलिए कहे गए हैं ताकि मनुष्य “बुद्धि और शिक्षा [या, अनुशासन] प्राप्त करे।” बुद्धि का मतलब है किसी बात को सही तरीके से समझना और फिर इस समझ की मदद से समस्याएँ सुलझाना, अपनी मंज़िल तक पहुँचना, खतरों से बचना या ऐसा करने में दूसरों की मदद करना। एक किताब कहती है, “नीतिवचन की किताब में ‘बुद्धि’ का मतलब है, समझ-बूझ से जीना यानी सही फैसले करने के काबिल होना और ज़िंदगी में कामयाबी पाना। सच, बुद्धि हासिल करना कितना ज़रूरी है!—नीतिवचन ४:७.
सुलैमान के नीतिवचन हमें शिक्षा या अनुशासन भी देते हैं। क्या वाकई हमें इसकी ज़रूरत है? बाइबल के मुताबिक अनुशासन का मतलब है सुधारना, डाँटना या सज़ा देना। एक बाइबल विद्वान कहता है कि अनुशासन का “मतलब है यह सिखाना कि अच्छे गुण कैसे बढ़ाएँ। इसमें बुराई की ओर बहकनेवालों को सुधारना भी शामिल है।” चाहे हम खुद अपने आप को अनुशासन दें या कोई और हमें अनुशासन दे, यह हमें न सिर्फ बुराई करने से रोकता है बल्कि हमें बदलाव करने और अच्छी ज़िंदगी जीने के लिए भी उकसाता है। जी हाँ, अगर हम चाहते हैं कि हमारा चालचलन शुद्ध रहे तो हमें अनुशासन की ज़रूरत है।
तो फिर, नीतिवचन की किताब के दो मकसद हैं, एक तो बुद्धि देना और दूसरा, अनुशासन देना। अगर हमने अनुशासन के ज़रिए अच्छे गुण पैदा किए हैं और बुद्धि हासिल की है तो यह अलग-अलग तरीकों से ज़ाहिर होगा। मिसाल के तौर पर, हम धार्मिकता और न्याय से काम करेंगे और ये गुण हमें यहोवा के ऊँचे दर्जों का पालन करने में मदद करेंगे।
बुद्धि में कई गुण शामिल हैं जैसे समझ, अंदरूनी समझ, चतुराई और अच्छे-बुरे में फर्क करने की काबिलीयत। समझ का मतलब है, किसी मामले का पूरा-पूरा जायज़ा लेकर, उस पर विचार करके उसे अच्छी तरह जान लेना। जबकि अंदरूनी समझ पाने के लिए हमें उस मामले से जुड़ी हर बात का कारण पता होना चाहिए, यानी यह जानना कि किसी मार्ग के सही या गलत होने की वज़ह क्या है। मिसाल के तौर पर, अगर हममें समझ है तो हम गलत रास्ते पर जानेवाले एक आदमी को तुरंत चेतावनी देंगे कि आगे खतरा है। लेकिन अगर हममें अंदरूनी समझ है तो हम यह भी समझ सकेंगे कि वह आदमी उस रास्ते पर क्यों चला जा रहा है, साथ ही हम उसे बचाने के लिए सबसे बढ़िया तरीका भी ढूँढ़ निकालेंगे।
चतुर लोग, मंद-बुद्धि के नहीं होते बल्कि होशियार होते हैं। (नीतिवचन १४:१५) वे आनेवाले खतरे को पहले से भाँप लेते हैं और उसका सामना करने के लिए तैयार रहते हैं। तो हम कह सकते हैं कि बुद्धि हमें अच्छी तरह सोच-विचार करने में मदद देती है ताकि हमारी ज़िंदगी को एक मकसद मिले। इसलिए बाइबल में दिए गए नीतिवचनों का अध्ययन करना सचमुच फायदेमंद है क्योंकि हमें बुद्धि और अनुशासन देने के लिए इन्हें बाइबल में दर्ज़ किया गया है। इन नीतिवचनों पर ध्यान देने से ‘भोले’ लोग भी चतुर बनेंगे, ‘जवानों’ को ज्ञान मिलेगा और वे अच्छे-बुरे में फर्क करने के काबिल होंगे।
बुद्धिमानों के लिए नीतिवचन
लेकिन बाइबल में दिए गए नीतिवचन सिर्फ भोले, नादान लोगों और जवानों के लिए नहीं हैं। ये बुद्धिमानों के लिए भी हैं जो सुनकर अपने ज्ञान को और भी बढ़ाना चाहते हैं। राजा सुलैमान कहता है, “बुद्धिमान उन्हें सुन कर निज ज्ञान बढ़ावें और समझदार व्यक्ति दिशा निर्देश पायें, ताकि मनुष्य नीतिवचन, ज्ञानी के दृष्टाँतों को और पहेली भरी बातों को समझ सकें।” (नीतिवचन १:५, ६, ईज़ी टू रीड वर्शन) बुद्धिमान व्यक्ति नीतिवचनों पर ध्यान देकर अपने ज्ञान को और भी बढ़ाएगा और समझदार व्यक्ति ज़िंदगी को सही दिशा में ले जाने की अपनी काबिलीयत बढ़ाएगा।
एक नीतिवचन में अकसर थोड़े ही शब्दों में बहुत बड़ी सच्चाई बताई जाती है। बाइबल के कुछ नीतिवचन दृष्टांत के रूप में कहे गए हैं जिन्हें समझना मुश्किल होता है। (नीतिवचन १:१७-१९) कुछ नीतिवचनों में पहेलियाँ हैं, जो इतनी पेचीदा और उलझानेवाली होती हैं कि उन्हें समझने के लिए मदद की ज़रूरत होती है। कुछ नीतिवचनों में एक बात की तुलना दूसरी से की गई है, कुछ में लाक्षणिक भाषा और दूसरों में अलंकारों का इस्तेमाल किया गया है। इन्हें समझने के लिए समय लगता है और काफी सोच-विचार करने की ज़रूरत होती है। लेकिन ढेरों नीतिवचनों की रचना करनेवाले सुलैमान ने इन्हें समझने का तरीका ढूँढ़ निकाला और उसने नीतिवचन की किताब पढ़नेवालों को भी यह तरीका समझाया है। हर बुद्धिमान व्यक्ति इस पर ध्यान देना चाहेगा।
मंज़िल पाने के लिए सही शुरूआत करना
एक व्यक्ति को बुद्धि और अनुशासन की खोज कहाँ से शुरू करनी चाहिए? सुलैमान जवाब देता है: “यहोवा का भय मानना ज्ञान का आदि है किन्तु मूर्ख जन तो बुद्धि और अनुशासन को तुच्छ मानते हैं।” (नीतिवचन १:७, ईज़ी टू रीड वर्शन) यहोवा का भय मानने से ही ज्ञान मिलता है। और इस ज्ञान के बिना हम बुद्धि या अनुशासन नहीं पा सकते। इसलिए यहोवा का भय मानने से ही हमें बुद्धि और अनुशासन मिलेगा।—नीतिवचन ९:१०; १५:३३.
परमेश्वर का भय मानने का मतलब उसका खौफ खाना नहीं है। इसके बजाय, यह परमेश्वर के लिए गहरी श्रद्धा और भक्ति की भावना है। ऐसे भय के बिना हम सच्चा ज्ञान हासिल नहीं कर सकते। यहोवा परमेश्वर ने ही हमें ज़िंदगी दी है और अगर हमारे पास ज़िंदगी ही न हो तो हम ज्ञान कैसे लेंगे? (भजन ३६:९; प्रेरितों १७:२५, २८) इसके अलावा, पूरी दुनिया परमेश्वर की ही बनाई हुई है इसलिए इंसान जिन चीज़ों का भी ज्ञान लेता है वह सब उसी की हस्तकला होती है। (भजन १९:१, २; प्रकाशितवाक्य ४:११) परमेश्वर ने कुछ लोगों को प्रेरित करके अपना वचन लिखवाया है जो “उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिये लाभदायक है।” (२ तीमुथियुस ३:१६, १७) इसलिए यहोवा के बिना हमें सच्चा ज्ञान कभी नहीं मिल सकता। जो व्यक्ति यह ज्ञान पाना चाहता है उसे श्रद्धा से यहोवा का भय मानना चाहिए।
अगर एक इंसान में परमेश्वर का भय न हो तो उसके सारे ज्ञान और उसकी दुनियावी बुद्धि का क्या फायदा? प्रेरित पौलुस ने लिखा: “कहां रहा ज्ञानवान? कहां रहा शास्त्री? कहां इस संसार का विवादी? क्या परमेश्वर ने संसार के ज्ञान को मूर्खता नहीं ठहराया?” (१ कुरिन्थियों १:२०) परमेश्वर का भय न माननेवाला इंसान जो सिर्फ दुनिया की नज़रों में बुद्धिमान होता है, वह आम जानकारी के आधार पर गलत फैसले कर बैठता है और इसलिए “मूर्ख” साबित होता है।
“तेरे गले का हार”
बुद्धिमान राजा सुलैमान, अब जवानों से कहता है: “हे मेरे पुत्र, अपने पिता की शिक्षा पर कान लगा, और अपनी माता की सीख को न त्याग, क्योंकि ये तो तेरे सिर के लिए शोभायमान मुकुट और तेरे गले का हार हैं।”—नीतिवचन १:८, ९, NHT.
पुराने ज़माने में इस्राएली माता-पिताओं को परमेश्वर से यह ज़िम्मेदारी मिली थी कि वे अपने बच्चों को सिखाएँ। मूसा ने पिताओं से आग्रह किया: “ये आज्ञाएं जो मैं आज तुझ को सुनाता हूं वे तेरे मन में बनी रहें; और तू इन्हें अपने बालबच्चों को समझाकर सिखाया करना, और घर में बैठे, मार्ग पर चलते, लेटते, उठते, इनकी चर्चा किया करना।” (व्यवस्थाविवरण ६:६, ७) माताओं पर भी काफी ज़िम्मेदारी थी। अपने पति के अधीन रहते हुए उन्हें भी यह देखना था कि परिवार के नियमों का पालन हो रहा है या नहीं।
दरअसल बाइबल के मुताबिक, परिवार ही वह जगह है जहाँ बच्चों को सबसे पहले शिक्षा मिलनी चाहिए। (इफिसियों ६:१-३) जब बच्चे, यहोवा का भय माननेवाले अपने माता-पिता की आज्ञा मानते हैं तो यह ऐसा है मानो बच्चे एक शोभायमान मुकुट और गले में हार पहने हुए हैं।
“उनका प्राण लालच ही के कारण नाश हो जाता है”
एशिया में रहनेवाले एक पिता ने अपने १६ साल के बेटे को पढ़ाई के लिए अमरीका भेजने से पहले उसे सलाह दी कि बुरे लोगों के जाल में न फँसे। यह सलाह सुलैमान की इस चेतावनी से मिलती-जुलती है: “हे मेरे पुत्र, यदि पापी लोग तुझे फुसलाएं, तो उनकी बात न मानना।” (नीतिवचन १:१०) लेकिन सुलैमान ने यह भी बताया कि वे किस तरह से दूसरों को फुसलाते हैं। वे कहते हैं, “हमारे संग चल, कि हम हत्या करने के लिये घात लगाएं, हम निर्दोषों की ताक में रहें; हम अधोलोक की नाईं उनको जीवता, कबर में पड़े हुओं के समान समूचा निगल जाएं; हम को सब प्रकार के अनमोल पदार्थ मिलेंगे, हम अपने घरों को लूट से भर लेंगे; तू हमारा साझी हो जा, हम सभों का एक ही बटुआ हो।”—नीतिवचन १:११-१४.
यह साफ ज़ाहिर है कि वे दूसरों को फुसलाने के लिए धन का लालच देते हैं। रातों-रात अमीर बनने का लालच देकर “पापी” लूट-मार करने में दूसरों को भी शामिल कर लेते हैं। धन-दौलत पाने के लिए ये दुष्ट खून बहाने से भी नहीं हिचकिचाते। वे अपने शिकार को “अधोलोक की नाईं जीवता, कबर में पड़े हुओं के समान समूचा निगल” जाते हैं, यानी वे उसका सब कुछ लूट लेते हैं, जिस तरह कब्र पूरे शरीर को निगल लेती है। वे दूसरों को अपराधी बनने का न्योता देते हैं, क्योंकि वे “अपने घरों को लूट से” भरना चाहते हैं और भोले लोगों को अपना ‘साझीदार’ बनाना चाहते हैं। यह सलाह हमारे वक्त के लिए कितनी ज़रूरी है! आजकल के जवानों के गैंग और नशीली दवाएँ बेचनेवाले भी क्या ऐसे ही तरीकों से लोगों को नहीं फँसाते? क्या ज़्यादातर व्यापारों में रातों-रात मुनाफा कमाने के लालच में बेईमानी नहीं की जाती?
बुद्धिमान राजा सलाह देता है, “हे मेरे पुत्र तू उनके संग मार्ग में न चलना, वरन उनकी डगर में पांव भी न धरना; क्योंकि वे बुराई ही करने को दौड़ते हैं, और हत्या करने को फुर्ती करते हैं।” उनका बुरा अंजाम बताते हुए सुलैमान कहता है: “क्योंकि पक्षी के देखते हुए जाल फैलाना व्यर्थ होता है; और ये लोग तो अपनी ही हत्या करने के लिये घात लगाते हैं, और अपने प्राणों की घात की ताक में रहते हैं। सब लालचियों की चाल ऐसी ही होती है; उनका प्राण लालच ही के कारण नाश हो जाता है।”—नीतिवचन १:१५-१९.
इन “लालचियों” का लालच उनकी जान लेकर ही रहेगा। दुष्ट लोग दूसरों के लिए जो जाल बिछाते हैं उसमें वे खुद फँस जाएँगे। लेकिन अपना यह अंजाम जानने पर क्या वे बुराई का रास्ता छोड़ देंगे? नहीं। जैसे एक “पक्षी” जाल देखने के बाद भी उसमें आकर फँस जाता है, उसी तरह दुष्ट लोग धन के लालच में अंधे हो जाते हैं और जुर्म करना नहीं छोड़ते। लेकिन आज नहीं तो कल उन्हें अपने किए की सज़ा ज़रूर मिलेगी।
बुद्धि की पुकार कौन सुनेगा?
लेकिन क्या पापियों को सचमुच पता है कि वे एक खतरनाक रास्ते पर चल रहे हैं? बेशक उन्हें पता है। क्या उन्हें खबरदार किया गया है कि उनके कामों का अंजाम बुरा होगा? जी हाँ उन्हें खबरदार किया गया है। वे यह बहाना नहीं बना सकते कि उन्हें किसी ने बताया नहीं क्योंकि सभी जगहों पर एक चेतावनी साफ-साफ सुनाई जा रही है।
सुलैमान कहता है: “बुद्धि सड़क में ऊंचे स्वर से बोलती है; और चौकों में प्रचार करती है; वह बाज़ारों की भीड़ में पुकारती है; वह फाटकों के बीच में और नगर के भीतर भी ये बातें बोलती है।” (नीतिवचन १:२०, २१) आम जगहों पर बुद्धि ज़ोर-ज़ोर से और साफ-साफ पुकार रही है ताकि हर कोई सुन सके। पुराने ज़माने में इस्राएल देश में, बुज़ुर्ग लोग नगर के फाटकों के पास चौक में बैठकर अच्छी सलाह देते थे और न्याय किया करते थे। हमारे लिए भी यहोवा परमेश्वर ने सच्ची बुद्धि की बातें अपने वचन, बाइबल में लिखवाई है और बाइबल हर जगह मौजूद है। परमेश्वर के सेवक इसका संदेश हर जगह सुना रहे हैं। सचमुच, परमेश्वर हर जगह बुद्धि की बातों का प्रचार करवा रहा है।
सच्ची बुद्धि क्या कह रही है? वह कह रही है: “हे भोले लोगों, तुम कब तक भोलेपन से प्रीति रखोगे? और हे ठट्ठा करनेवालों, तुम कब तक ठट्ठा करने से प्रसन्न रहोगे? . . . मैं ने तो पुकारा परन्तु तुम ने इनकार किया, और मैं ने हाथ फैलाया, परन्तु किसी ने ध्यान न दिया।” मूर्ख लोग बुद्धि की पुकार पर ज़रा भी ध्यान नहीं देते। इसलिए वे “अपनी करनी का फल आप भोगेंगे।” उनकी ‘मनमानी उन्हें ले डूबेगी, उनका आत्म सुख उन्हें नष्ट कर देगा।’ (ईज़ी टू रीड वर्शन)—नीतिवचन १:२२-३२.
लेकिन अगर कोई बुद्धि की बातें सुनने के लिए समय निकालता है तो उसका भविष्य कैसा होगा? “वह निडर बसा रहेगा, और बेखटके सुख से रहेगा।” (नीतिवचन १:३३) इसलिए हम चाहते हैं कि आप भी उन लोगों में हों जो बाइबल के नीतिवचनों पर ध्यान देकर बुद्धि और अनुशासन पाते हैं।
[पेज 15 पर तसवीर]
सच्ची बुद्धि की बातें हर जगह सुनने को मिलती हैं