आप अपना चालचलन शुद्ध रख सकते हैं
“परमेश्वर का प्रेम यह है, कि हम उस की आज्ञाओं को मानें; और उस की आज्ञाएं कठिन नहीं।”—1 यूहन्ना 5:3.
1. आज लोगों के आचरण में किस तरह का फर्क देखा जा सकता है?
बहुत सालों पहले भविष्यवक्ता मलाकी ने परमेश्वर की प्रेरणा से एक भविष्यवाणी की थी। उसमें एक ऐसे समय के बारे में बताया गया था जब परमेश्वर के सेवकों के आचरण और लोगों के आचरण में ज़मीन-आसमान का फर्क देखा जा सकेगा। भविष्यवक्ता मलाकी ने लिखा: “तुम फिरकर धर्मी और दुष्ट का भेद, अर्थात् जो परमेश्वर की सेवा करता है, और जो उसकी सेवा नहीं करता, उन दोनों का भेद पहिचान सकोगे।” (मलाकी 3:18) यह भविष्यवाणी आज पूरी हो रही है। परमेश्वर के सेवक उसकी आज्ञाओं का जिनमें शुद्ध चालचलन रखने की आज्ञा भी शामिल हैं, पालन करते हैं। हालाँकि उन्हें मालूम है कि इन आज्ञाओं पर चलना हमेशा आसान नहीं मगर वह पूरा यकीन रखते हैं कि ऐसा करना बुद्धि का मार्ग है। इन मुश्किलों को ध्यान में रखते हुए ही यीशु ने कहा था कि मसीहियों को उद्धार पाने के लिए यत्न करते रहने की ज़रूरत है।—लूका 13:23, 24.
2. कौन-से बाहर के कुछ दबाव लोगों के लिए नैतिक रूप से शुद्ध रहना मुश्किल बना देते हैं?
2 अपने चरित्र को शुद्ध रखना इतना मुश्किल क्यों है? इसकी एक वजह है बाहरी दबाव। मनोरंजन की मायानगरी दिखाती है कि नाजायज़ संबंध दिलकश और मज़ेदार तो होते ही हैं साथ ही ये वयस्कों की पहचान भी हैं। मगर मनोरंजन की दुनिया इसके बुरे अंजामों के बारे में ज़रा-भी नहीं बताती। (इफिसियों 4:17-19) यह ज़्यादातर लैंगिक संबंधों को ऐसे लोगों के बीच दिखाती है जो पति-पत्नी नहीं हैं। फिल्मों और टीवी के कार्यक्रमों में ऐसे संबंधों को आम बात बताया जाता है जिसे गंभीरता से नहीं लेना चाहिए। दरअसल ऐसे संबंधों में सच्चा प्यार और एक दूसरे के लिए आदर तो दूर की बात है। बहुत-से बच्चे ये सब देखते हुए ही बड़े होते हैं। और-तो-और आज के माहौल में जहाँ लैंगिक संबंधों को पूरी छूट दी जाती है लोगों को अपने दोस्तों से ज़बरदस्त दबाव पड़ता है कि वे भी दूसरों के साथ नाजायज़ संबंध रखें। अगर वे ऐसा नहीं करते तो या तो उनकी खिल्ली उड़ायी जाती है या उन्हें ताने मारे जाते हैं।—1 पतरस 4:4.
3. दुनिया के लोग किन कारणों से अनैतिकता में शामिल होते हैं?
3 दूसरी वजह है हमारे अंदर से आनेवाला दबाव, जो नैतिक रूप से शुद्ध रहना मुश्किल कर देता है। यहोवा परमेश्वर ने इंसान को लैंगिक इच्छाओं के साथ बनाया है और कई बार ये इच्छाएँ बहुत ज़बरदस्त हो सकती हैं। हमारी इच्छाओं का हमारी सोच के साथ गहरा ताल्लुक है, और लैंगिक अनैतिकता ऐसे ही सोच-विचार से जुड़ी है जो यहोवा के विचारों से मेल नहीं खाते। (याकूब 1:14, 15) मिसाल के तौर पर, हाल ही में ब्रिटिश मॆडिकल जर्नल में छपे एक सर्वे के मुताबिक जिन लोगों ने ज़िंदगी में पहली बार संभोग किया था वह जिज्ञासा की वजह से था, वे इसका अनुभव करके देखना चाहते थे। दूसरों ने सोचा कि जब उनकी उम्र के दूसरे लड़के-लड़कियाँ सेक्स का आनंद ले रहे हैं, तो उन्हें भी कुँवारा बने रहने की क्या ज़रूरत है। औरों का कहना था कि उन्होंने जज़्बात में बहकर ऐसा किया था या वे “नशे में थे।” लेकिन अगर हम परमेश्वर को खुश करना चाहते हैं तो हमें उनकी तरह बिलकुल नहीं सोचना चाहिए। तो फिर किस तरह की सोच नैतिक रूप से शुद्ध रहने में हमारी मदद करेगी?
विश्वास को मज़बूत कीजिए
4. नैतिक रूप से शुद्ध रहने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
4 नैतिक रूप से शुद्ध रहने के लिए हमें पूरा यकीन करना चाहिए कि सच्चाई की जिस राह पर हम चल रहे हैं वह वाकई फायदेमंद है। प्रेरित पौलुस ने रोम के मसीहियों को यही बात लिखी थी: “जिस से तुम परमेश्वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो।” (रोमियों 12:2) नैतिक रूप से शुद्ध रहने की अहमियत समझने का मतलब सिर्फ यह जानना नहीं कि परमेश्वर के वचन में अनैतिकता को गलत बताया गया है बल्कि इसमें यह समझना भी शामिल है कि अनैतिकता को गलत क्यों कहा गया है और इससे दूर रहकर हम क्या-क्या लाभ पाते हैं। इसके कुछ कारणों के बारे में पिछले लेख में भी चर्चा की गयी थी।
5. मसीहियों के लिए अपने चरित्र को शुद्ध रखने की सबसे बड़ी वजह क्या है?
5 मगर मसीहियों के लिए परमेश्वर के साथ उनका रिश्ता ही दुनिया में सबसे ज़्यादा मायने रखता है और यही उनके लिए लैंगिक अनैतिकता से दूर रहने की सबसे बड़ी वजह है। हमने पिछले लेख में देखा कि सिर्फ परमेश्वर ही जानता है कि हमारे लिए सबसे उत्तम क्या है। उसके लिए हमारा प्यार, हमें बुराई से घृणा करने में हमारी मदद करता है। (भजन 97:10) हम यह भी जानते हैं कि “हर एक अच्छा वरदान और हर एक उत्तम दान” परमेश्वर ही देता है। (याकूब 1:17) वह हमसे प्यार करता है और उसकी आज्ञा का पालन करके हम यह दिखाते हैं कि हम भी उससे प्यार करते हैं और उसने हमारे लिए जो कुछ किया है उसकी दिल से कदर करते हैं। (1 यूहन्ना 5:3) हम यह कभी नहीं चाहेंगे कि यहोवा हमसे निराश हो जाए। ना ही हम उसके खरे नियमों को तोड़कर उसे दुःख पहुँचाना चाहेंगे। (भजन 78:41) हम ऐसा कोई काम नहीं करना चाहेंगे जिससे उसकी पवित्र और सच्ची उपासना की बदनामी हो। (तीतुस 2:5; 2 पतरस 2:2) इस तरह, अपने चरित्र को शुद्ध रखकर हम परमप्रधान के दिल को आनंदित करते हैं।—नीतिवचन 27:11.
6. अपने नैतिक आदर्शों के बारे में दूसरों को बताने से हमें क्या फायदे होंगे?
6 नैतिक रूप से शुद्ध रहने का दृढ़-संकल्प करने और इसके बारे में दूसरों को बताने से हमारी और ज़्यादा हिफाज़त होती है। लोगों को यह जानना चाहिए कि हम यहोवा के सेवक हैं और हमने उसके ऊँचे आदर्शों का पालन करने का पक्का इरादा किया है। हम अपनी ज़िंदगी, अपने शरीर और अपनी मर्ज़ी के मालिक हैं और यह फैसला हमने खुद किया है क्योंकि दाँव पर हमारे स्वर्गीय पिता के साथ हमारा रिश्ता लगा हुआ है। तो आइए सब यह जान जाएँ कि आपकी नैतिक खराई बिकाऊ नहीं है। परमेश्वर के सिद्धांतो पर अटल रहकर उसकी गवाही देना गर्व की बात समझिए। (भजन 64:10) नैतिक आदर्शों के बारे में आपका क्या विश्वास है इसे दूसरों को बताने में शर्म महसूस मत कीजिए। आपके बोलने से आपको हिम्मत मिलेगी, आपकी हिफाज़त होगी और दूसरे भी आपकी मिसाल पर चलना चाहेंगे।—1 तीमुथियुस 4:12.
7. नैतिक रूप से शुद्ध रहने के अपने फैसले पर हम कैसे अटल रह सकते हैं?
7 ऊँचे नैतिक आदर्शों पर चलने का फैसला करने और दूसरों को उसके बारे में बताने के बाद, हमें अपने फैसले पर अटल रहने के लिए ज़रूरी कदम उठाना है। एक कदम होगा अपने दोस्त चुनते वक्त बाइबल की इस बात को ध्यान में रखना “बुद्धिमानों की संगति कर, तब तू भी बुद्धिमान हो जाएगा।” जो लोग आपकी तरह नैतिक रूप से शुद्ध रहने की अहमियत जानते हैं उनके साथ संगति कीजिए वे आपका भी हौसला बढ़ाएँगे। दूसरी तरफ बाइबल यह भी कहती है: “परन्तु मूर्खों का साथी नाश हो जाएगा।” (नीतिवचन 13:20) इसलिए जहाँ तक हो सके ऐसे लोगों की संगति से दूर रहिए जो आपके पक्के इरादे को कमज़ोर कर सकते हैं।—1 कुरिन्थियों 15:33.
8. (क) हमें अपने मन को परमेश्वर की बुद्धि से क्यों भरना चाहिए? (ख) हमें किन चीज़ों से दूर रहना चाहिए?
8 इसके अलावा हमें अपने मन को ऐसी बातों से भरना चाहिए जो सत्य हैं, जो आदरनीय हैं, जो उचित हैं, और जो पवित्र हैं, सुहावनी और बातें मनभावनी हैं और जो सद्गुण और प्रशंसा की बातें हैं। (फिलिप्पियों 4:8) जो हम देखते हैं, पढ़ते हैं या जो संगीत हम सुनते हैं उसका सावधानी से चुनाव करके हम ऐसा कर सकते हैं। यह कहना कि अश्लील किताबों का बुरा असर नहीं होता, यह कहने के बराबर होगा कि अच्छी किताबें पढ़ने से अच्छा असर नहीं होता। याद रखिए कि असिद्ध इंसान बड़ी आसानी से अनैतिकता में फँस सकता है। तो जो किताबें, पत्रिकाएँ, फिल्म, और संगीत लैंगिक भावनाओं को जगाते हैं वे गलत इच्छाएँ पैदा कर सकते हैं और यह इच्छाएँ हमसे पाप करवा सकती हैं। इसलिए नैतिक रूप से शुद्ध रहने के लिए हमें अपने मन को परमेश्वर की बुद्धि से भरना बहुत ज़रूरी है।—याकूब 3:17.
अनैतिकता की तरफ ले जानेवाले कदम
9-11. जैसे सुलैमान बताता है एक-के-बाद-एक कौन-से कदम उस नौजवान को अनैतिकता की तरफ ले गए?
9 अनैतिकता की तरफ बढ़नेवाले कदमों को आसानी से पहचाना जा सकता है। और हर अगला कदम पीछे मुड़ना और भी मुश्किल बना देता है। ध्यान दीजिए कि नीतिवचन 7:6-23 में इसे किस तरह समझाया गया है। वहाँ सुलैमान “एक जवान” के बारे में बताता है जो “निर्बुद्धि” था या जिसके इरादे नेक नहीं थे। वह नौजवान “उस स्त्री [एक वेश्या] के घर के कोने के पास की सड़क पर चला जाता था, और उस ने उसके घर का मार्ग लिया। उस समय दिन ढल गया, और संध्याकाल आ गया था, वरन रात का घोर अन्धकार छा गया था।” यह उसका पहला गलत कदम था। रात के वक्त उसका “मन” उसे किसी ऐसी-वैसी सड़क पर नहीं बल्कि उस सड़क पर ले जा रहा था, जहाँ एक वेश्या अकसर घूमा करती थी और वह यह अच्छी तरह जानता था।
10 हम आगे पढ़ते हैं: “उस से एक स्त्री मिली, जिस का भेष वेश्या का सा था, और वह बड़ी धूर्त्त थी।” अब वह उस वेश्या को सचमुच अपने सामने देखता है! वह चाहता तो वापस घर लौट सकता था मगर यह पहले से भी ज़्यादा मुश्किल था क्योंकि वह नौजवान नैतिक रूप से कमज़ोर था। वह वेश्या उस नौजवान को पकड़कर चूमती है। उसका चुंबन पाने के बाद अब वह उसकी मोहक बातें सुनने लगता है। वह कहती है: “मुझे मेलबलि चढ़ाने थे, और मैं ने अपनी मन्नतें आज ही पूरी की हैं।” मेलबलि में माँस, मैदा, तेल और दाखमधु को भेंट में चढ़ाया जाता था। (लैव्यव्यवस्था 19:5, 6; 22:21; गिनती 15:8-10) मेलबलि का ज़िक्र करके वह शायद बताना चाहती थी कि वह आध्यात्मिकता में कमज़ोर नहीं है, साथ ही वह यह इशारा भी कर रही थी कि उसके घर में खाने-पीने की कोई कमी नहीं है। वह उस जवान से मिन्नतें करती है, “अब चल हम प्रेम से भोर तक जी बहलाते रहें; हम परस्पर की प्रीति से आनन्दित रहें।”
11 इसका अंजाम क्या हुआ होगा यह कल्पना करना मुश्किल नहीं है। “ऐसी ही बातें कह कहकर, उस ने उसको अपनी प्रबल माया में फंसा लिया।” वह नौजवान उसके पीछे उसके घर ऐसे जाता है “जैसे बैल कसाई-खाने को” या एक ऐसी चिड़िया की तरह जो ‘फन्दे की ओर बेग से उड़ती है।’ इसके अंजाम के बारे में सुलैमान बड़े गंभीर शब्दों में कहता है: ‘वह न जानता था कि उस में उसके प्राण जाएंगे।’ उसके प्राण या ज़िंदगी इसलिए दाँव पर थी क्योंकि “परमेश्वर व्यभिचारियों, और परस्त्रीगामियों का न्याय करेगा।” (इब्रानियों 13:4) सभी पुरुष और स्त्रियाँ दोनों इससे क्या ही ज़बरदस्त सबक सीख सकते हैं! जिस डगर पर चलने से हम यहोवा का प्यार खो सकते हैं उस डगर पर हमें पैर रखने भी नहीं चाहिए।
12. (क) शब्द “निर्बुद्धि” से क्या पता चलता है? (ख) हम नैतिक रूप से मज़बूत कैसे हो सकते हैं?
12 ध्यान दीजिए कि उस नौजवान के लिए “निर्बुद्धि” शब्द इस्तेमाल किया गया है। इस शब्द से पता चलता है कि उसका सोचना, इच्छाएँ, लगाव, भावनाएँ, और ज़िंदगी के लक्ष्य परमेश्वर की इच्छा के अनुसार नहीं थे। उसकी नैतिक कमज़ोरी उसे अपने ही विनाश की तरफ ले गई। इन कठिन “अन्तिम दिनों” में खुद को नैतिक रूप से मज़बूत रखने में कड़ी मेहनत करने की ज़रूरत है। (2 तीमुथियुस 3:1) परमेश्वर ने हमारी मदद के लिए कई इंतज़ाम किए हैं। उसने मसीही सभाओं का इंतज़ाम किया है जो सही रास्ते पर चलते रहने में हमारा हौसला बढ़ाती हैं। साथ ही इनमें हम ऐसे भाई-बहनों से मिलते हैं जिनकी वही मंज़िल है जो हमारी है। (इब्रानियों 10:24, 25) फिर उसने हमें ऐसे प्राचीन दिए हैं जो हमारी रखवाली करते हैं, और हमें धार्मिकता का मार्ग सिखाते हैं। (इफिसियों 4:11, 12) साथ ही हमारे पास परमेश्वर का वचन बाइबल है जिससे हम मार्गदर्शन और सलाहें पा सकते हैं। (2 तीमुथियुस 3:16) और किसी भी वक्त हम परमेश्वर से उसकी पवित्र आत्मा पाने के लिए प्रार्थना कर सकते हैं।—मत्ती 26:41.
दाऊद के पापों से सबक हासिल करना
13, 14. कैसे राजा दाऊद पाप के दलदल में धँसता चला गया?
13 दुःख की बात है कि बेहतरीन मिसाल रखनेवाले परमेश्वर के वफादार सेवक भी लैंगिक अनैतिकता के फँदे में फँसे हैं। दाऊद ऐसा ही एक इंसान था जिसने बरसों तक वफादारी से यहोवा की सेवा की थी। इसमें ज़रा-भी शक नहीं कि वह परमेश्वर से बेहद प्यार करता था। मगर फिर भी एक बार वह पाप के दलदल में धँसता चला गया। जैसे उस नौजवान के साथ हुआ था जिसके बारे में सुलैमान ने बताया था, दाऊद के कुछ गलत कदम उसे ऐसे रास्ते पर ले गए जो एक-के-बाद-एक उसे गंभीर पापों में फँसाते चले गए।
14 यह तब की बात है जब दाऊद करीब 50-55 की उम्र का था। एक दिन उसने अपनी छत से एक खूबसूरत स्त्री को नहाते देखा। तब उसने पुछवाया कि वह कौन है। उसे बताया गया कि वह हित्ती उरिय्याह की पत्नी बतशेबा है और उसका पति अमोनियों के नगर “रब्बा” पर चढ़ाई करने के लिए युद्ध में गया हुआ है। तब दाऊद ने उसे महल में बुलवा लिया और उसके साथ संभोग किया। मगर बाद में यह मामला पेचीदा होता चला गया जब बतशेबा को पता चला कि वह दाऊद के बच्चे की माँ बननेवाली है। तब दाऊद ने उसके पति, उरिय्याह को युद्ध से वापस बुलवा भेजा ताकि वह अपनी पत्नी के साथ रात बिताए जिससे यह लगे कि बतशेबा के बच्चे का बाप उरिय्याह ही है। मगर उरिय्याह अपने घर नहीं गया। जब दाऊद ने देखा कि उसकी चाल कामयाब नहीं हो रही तो उसने हर हाल में अपने पाप पर परदा डालने के लिए उरिय्याह के हाथ में एक चिट्ठी देकर वापस रब्बा भेज दिया। उस चिट्ठी में उसने सेनापति को लिखा था कि उरिय्याह को ऐसी जगह पर लड़ने के लिए भेजे जहाँ वह मारा जाए। और यही हुआ, उरिय्याह मारा गया और इससे पहले की बतशेबा के गर्भवती होने के बारे में लोगों को पता चले, दाऊद ने विधवा बतशेबा के साथ शादी कर ली।—2 शमूएल 11:1-27.
15. (क) दाऊद के पाप का पर्दाफाश कैसे किया गया? (ख) नातान की कुशलता भरी ताड़ना सुनकर दाऊद ने कैसी भावना दिखाई?
15 अपने पाप को छिपाने की दाऊद की चाल कामयाब होती नज़र आयी। लेकिन जब हम 32वें भजन को पढ़ते हैं तो यह पाते हैं इस दौरान दाऊद का ज़मीर उसे कोसता रहा। (भजन 32:3-5) और इस तरह महीने गुज़र गए। इसके बाद बतशेबा ने एक बेटे को जन्म दिया। मगर यह पाप यहोवा की नज़रों से ना छिप सका। बाइबल बताती है: “उस काम से जो दाऊद ने किया था यहोवा क्रोधित हुआ।” (2 शमूएल 11:27) यहोवा ने भविष्यवक्ता नातान को दाऊद के पास भेजा और उसने बड़ी कुशलता से दाऊद के सामने उसके पाप का पर्दाफाश किया। दाऊद ने फौरन अपना पाप मान लिया और यहोवा से माफी की फरियाद की। उसके सच्चे पश्चाताप की वजह से परमेश्वर के साथ उसका रिश्ता दोबारा कायम हो सका। (2 शमूएल 12:1-13) दाऊद इस ताड़ना से चिढ़ा नहीं। इसके बजाय उसने वैसी ही भावना दिखाई जैसी भजन 141:5 में लिखी है: “धर्मी मुझ को मारे तो यह कृपा मानी जाएगी, और वह मुझे ताड़ना दे, तो यह मेरे सिर पर का तेल ठहरेगा; मेरा सिर उस से इन्कार न करेगा।”
16. पाप के बारे में सुलैमान ने क्या चेतावनी और सलाह दी?
16 बतशेबा और दाऊद के दूसरे बेटे, सुलैमान ने अपने पिता की ज़िंदगी की इस मनहूस घड़ी के बारे में ज़रूर सोचा होगा। उसने बाद में यह लिखा: “जो अपने अपराध छिपा रखता है, उसका कार्य सुफल नहीं होता, परन्तु जो उनको मान लेता और छोड़ भी देता है, उस पर दया की जायेगी।” (नीतिवचन 28:13) अगर हम ने कोई गंभीर पाप किया है तो आइए हम भी परमेश्वर की प्रेरणा से लिखी इस सलाह पर अमल करें, जो ना सिर्फ एक चेतावनी है पर एक अच्छी सलाह भी है। हमें यहोवा के सामने अपने पाप को मान लेना चाहिए और कलीसिया के प्राचीनों से मदद लेने के लिए उनके पास जाना चाहिए। क्योंकि प्राचीनों की ज़िम्मेदारी में उन लोगों की मदद करना भी शामिल है जो मार्ग से भटक जाते हैं।—याकूब 5:14, 15.
पाप के अंजामों को भुगतना
17. हालाँकि यहोवा पापों को क्षमा करता है मगर वह पाप करनेवालों को किससे आज़ाद नहीं करता?
17 यहोवा ने दाऊद को माफ कर दिया। क्यों? क्योंकि दाऊद यहोवा का वफादार सेवक था, उसने खुद दूसरों पर दया की थी और क्योंकि उसका पश्चाताप सच्चा था। इस सबके बावजूद दाऊद को उसके पाप के उन खतरनाक अंजामों से नहीं बचाया गया जो उसे बाद में भुगतने पड़े। (2 शमूएल 12:9-14) यही बात आज भी सच है। हालाँकि यहोवा उन लोगों पर विपत्तियाँ नहीं लाता जो पाप करके पश्चाताप दिखाते हैं मगर वह उनके गलत कामों के बुरे अंजामों से उन्हें आज़ाद नहीं करता। (गलतियों 6:7) जो लोग अनैतिकता करते हैं, उन पर से दूसरों का भरोसा उठ जाता है और वे इज़्ज़त खो बैठते हैं। इसके अलावा उन्हें तलाक, अनचाहे गर्भ, लैंगिक रूप से फैलनेवाली बीमारियों को भी झेलना पड़ सकता है।
18. (क) घोर लैंगिक अनैतिकता के एक मामले से निपटने के लिए पौलुस ने कुरिन्थ की कलीसिया को क्या हिदायतें दी? (ख) यहोवा पापियों को अपना प्यार और दया कैसे दिखाता है?
18 अगर हमने कोई गंभीर पाप किया है और अब उसके अंजामों को भुगत रहे हैं तो ऐसे में हम हिम्मत हार सकते हैं। मगर हमें पश्चाताप करने और दोबारा परमेश्वर के साथ अपना रिश्ता जोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए। पहली सदी में पौलुस ने कुरिन्थ की कलीसिया को लिखा था कि वह अपने बीच से उस व्यक्ति को निकाल दे जो कौटुम्बिक व्यभिचार कर रहा था। (1 कुरिन्थियों 5:1, 13) मगर जब उस आदमी ने सच्चा पश्चाताप दिखाया, तो पौलुस ने वहाँ की कलीसिया को यह हिदायत दी: “उसका अपराध क्षमा करो; और शान्ति दो, [और] उस को अपने प्रेम का प्रमाण दो।” (2 कुरिन्थियों 2:5-8) प्रेरणा से लिखी इस हिदायत में हम यहोवा का प्यार और पश्चाताप करनेवालों के लिए उसकी दया देख सकते हैं। यहाँ तक कि जब कोई पापी पश्चाताप करता है तो स्वर्ग में रहनेवाले स्वर्गदूत आनंद मनाते हैं।—लूका 15:10.
19. गलत मार्ग पर चलने के अंजामों से दुःख पाना किस तरह लाभदायक हो सकता है?
19 हमारे गलत काम से हमें दुःख तो होगा मगर यह अफसोस ‘अनर्थ काम की ओर फिरने से चौकस रहने में’ हमारी मदद कर सकता है। (अय्यूब 36:21) पाप के बुरे अंजामों को भुगतने से हम दोबारा गलत काम करने से दूर रहेंगे। इसके अलावा, दाऊद ने पाप के मार्ग पर चलकर अपनी ज़िंदगी में जो दुःखदायी अनुभव हासिल किया था, उसने उसे दूसरों को नसीहत देने में इस्तेमाल किया। उसने कहा: “तब मैं अपराधियों को तेरा मार्ग सिखाऊंगा, और पापी तेरी ओर फिरेंगे।”—भजन 51:13.
यहोवा की सेवा करने से खुशी हासिल होती है
20. परमेश्वर की खरी माँगों को पूरा करने से क्या लाभ मिलते हैं?
20 यीशु ने कहा था: “धन्य वे हैं, जो परमेश्वर का वचन सुनते और मानते हैं।” (लूका 11:28) परमेश्वर की खरी माँगों को पूरा करने से ना सिर्फ हमें अभी बल्कि हमेशा की खुशियाँ हासिल हो सकेंगी। अगर हमने अपने चरित्र को अब तक शुद्ध रखा है तो आइए हम यहोवा के इंतज़ामों से फायदा उठाते हुए ऐसा करना जारी रखें। अगर हम लैंगिक अनैतिकता में गिर गए हैं तो भी हम यह जानकर हिम्मत पा सकते हैं कि यहोवा उन लोगों को माफ करने के लिए तैयार है जो सच्चा पश्चाताप करते हैं। साथ ही आइए यह दृढ़-संकल्प करें कि हम अपने पाप को दोबारा नहीं दोहराएँगे।—यशायाह 55:7.
21. प्रेरित पतरस की किस सलाह को अपनाना अपने चरित्र को शुद्ध रखने में हमारी मदद कर सकता है?
21 बहुत जल्द यह अधर्मी संसार मिट जाएगा और इसके साथ ही अनैतिक सोच-विचार और गंदे काम भी। इसलिए अभी से अपने चरित्र को शुद्ध रखकर हम हमेशा का फायदा पाएँगे। प्रेरित पतरस ने लिखा था: “हे प्रियो, जब कि तुम इन बातों की आस देखते हो तो यत्न करो कि तुम शान्ति से उसके साम्हने निष्कलंक और निर्दोष ठहरो। . . . तुम लोग पहिले ही से इन बातों को जानकर चौकस रहो, ताकि अधर्मियों के भ्रम में फंसकर अपनी स्थिरता को हाथ से कहीं खो न दो।”—2 पतरस 3:14, 17.
क्या आप समझा सकते हैं?
• अपने चरित्र को शुद्ध रखना मुश्किल क्यों हो सकता है?
• हमने ऊँचे नैतिक आदर्शों पर चलने का जो संकल्प किया है उस पर कायम रहने के लिए कौन-से कदम उठाए जा सकते हैं?
• सुलैमान ने जिस नौजवान का ज़िक्र किया उसके पापों से हम क्या सबक सीख सकते हैं?
• दाऊद की मिसाल हमें पश्चाताप के बारे में क्या सिखाती है?
[पेज 13 पर तसवीर]
नैतिकता के मामले में आपका संकल्प क्या है, यह दूसरों को बताना एक तरह की हिफाज़त है
[पेज 16, 17 पर तसवीरें]
दाऊद ने दिल से पश्चाताप किया था, इसलिए यहोवा ने उसे माफ कर दिया