समझ की ओर अपना मन लगाइए
“बुद्धि यहोवा ही देता है; ज्ञान और समझ की बातें उसी के मुंह से निकलती हैं।”—नीतिवचन २:६.
१. हम समझ की ओर अपना मन कैसे लगा सकते हैं?
यहोवा हमारा महान उपदेशक है। (यशायाह ३०:२०, २१, NW) लेकिन उसके वचन में प्रकट ‘परमेश्वर के ज्ञान’ से लाभ उठाने के लिए हमें क्या करना चाहिए? अंशतः, हमें ‘समझ की बात को मन लगाकर सोचना’ चाहिए—इस समझ के गुण को हासिल करने और इसे प्रदर्शित करने की मन से इच्छा होनी चाहिए। इसके लिए, हमें परमेश्वर की ओर ताकना चाहिए, क्योंकि बुद्धिमान पुरुष ने कहा: “बुद्धि यहोवा ही देता है; ज्ञान और समझ की बातें उसी के मुंह से निकलती हैं।” (नीतिवचन २:१-६) ज्ञान, बुद्धि और समझ क्या हैं?
२. (क) ज्ञान क्या है? (ख) आप बुद्धि की परिभाषा कैसे देंगे? (ग) समझ क्या है?
२ ज्ञान अनुभव, देखने, या अध्ययन द्वारा हासिल किए गए तथ्यों से अवगत होना है। बुद्धि ज्ञान को काम में लाने की योग्यता है। (मत्ती ११:१९) राजा सुलैमान ने बुद्धि का प्रदर्शन किया जब दो स्त्रियों ने एक ही बच्चे की हक़दार होने का दावा किया और उसने एक माँ के अपने बच्चे के प्रति समर्पण के बारे में ज्ञान को, उस झगड़े को निपटाने के लिए इस्तेमाल किया। (१ राजा ३:१६-२८) समझ “परखने में कुशाग्रता” है। यह “मन की वह शक्ति या योग्यता है जिसके द्वारा यह एक वस्तु को दूसरी से भिन्न करती है।” (वेबस्टर्स यूनीवर्सल डिक्शनरी) यदि हम अपना मन समझ की ओर लगाते हैं, तो यहोवा अपने पुत्र के माध्यम से उसे हमें देगा। (२ तीमुथियुस २:१, ७) लेकिन समझ जीवन के विभिन्न पहलुओं को कैसे प्रभावित करती है?
समझ और हमारी बोलचाल
३. आप नीतिवचन ११:१२, १३ को कैसे समझाएँगे और “निर्बुद्धि” होने का क्या अर्थ है?
३ समझ हमें यह महसूस करने में मदद देती है कि “चुप रहने का समय, और बोलने का भी समय है।” (सभोपदेशक ३:७) यह गुण हम जो कहते हैं उसके बारे में भी हमें सचेत करता है। नीतिवचन ११:१२, १३ कहता है: “जो अपने पड़ोसी को तुच्छ जानता है, वह निर्बुद्धि है, परन्तु समझदार पुरुष चुपचाप रहता है। जो लुतराई करता फिरता वह भेद प्रगट करता है, परन्तु विश्वासयोग्य मनुष्य बात को छिपा रखता है।” जी हाँ, एक पुरुष या स्त्री जो दूसरे व्यक्ति को तुच्छ जानता है वह “निर्बुद्धि” है। कोशकार विलहेल्म गेज़ेनीउस के अनुसार, ऐसा व्यक्ति “नासमझ” है। उस पुरुष या स्त्री में अच्छी परख की कमी है, और अभिव्यक्ति ‘मन’ का प्रयोग दिखाता है कि आन्तरिक व्यक्ति के सकारात्मक गुणों की घटी है। यदि ख़ुद को एक मसीही कहनेवाला व्यक्ति अपनी गप-शप को झूठ बोलने या निन्दा करने की हद तक ले जाता है, तो नियुक्त प्राचीनों को कलीसिया में इस अनुचित स्थिति का अन्त करने के लिए कार्यवाही करना ज़रूरी है।—लैव्यव्यवस्था १९:१६; भजन १०१:५; १ कुरिन्थियों ५:११.
४. समझवाले और वफ़ादार मसीही गोपनीय जानकारी के बारे में क्या करते हैं?
४ “निर्बुद्धि” लोगों के विपरीत, “समझदार” व्यक्ति जहाँ चुप रहना उचित होता है, चुप रहते हैं। वे किसी का भरोसा नहीं तोड़ते। (नीतिवचन २०:१९) यह जानते हुए कि बेलगाम ज़बान नुक़सान पहुँचा सकती है, समझदार लोग “विश्वासयोग्य” होते हैं। वे संगी विश्वासियों के प्रति निष्ठावान होते हैं और ऐसे गोपनीय मामलों को जगज़ाहिर नहीं करते जिससे उन्हें नुक़सान पहुँच सकता है। यदि कलीसिया के बारे में समझदार मसीहियों को किसी भी तरह की कोई गोपनीय जानकारी प्राप्त होती है, तो वे तब तक उसे अपने तक रखते हैं जब तक यहोवा का संगठन प्रकाशनों के माध्यम से उसे ज़ाहिर करना उपयुक्त न समझे।
समझ और हमारा चालचलन
५. “मूर्ख” लुचपन को कैसे देखता है, और क्यों?
५ बाइबल नीतिवचन हमें समझ को इस्तेमाल करने और अनुचित चालचलन से दूर रहने में मदद करती है। उदाहरण के लिए, नीतिवचन १०:२३ कहता है: “मूर्ख को तो महापाप [लुचपन] करना हंसी की बात जान पड़ती है, परन्तु समझवाले पुरुष में बुद्धि रहती है।” वे लोग जिनके लिए लुचपन “हंसी की बात” है वे अपने मार्ग की दोषपूर्णता के प्रति अन्धे हैं और परमेश्वर को ऐसे व्यक्ति के तौर पर जिसे सबको लेखा देना है, अनदेखा करते हैं। (रोमियों १४:१२) ऐसे ‘मूर्ख जन’ अपने तर्क में इतने भ्रष्ट हो जाते हैं कि वे मानने लगते हैं कि परमेश्वर उनके ग़लत कामों को देख ही नहीं रहा। अपने कामों के द्वारा, वे वास्तव में यह कहते हैं: “कोई परमेश्वर है ही नहीं।” (भजन १४:१-३; यशायाह २९:१५, १६) ईश्वरीय सिद्धान्तों के द्वारा न चलने की वजह से, उनमें समझ की कमी होती है और मामलों को सही तरीक़े से नहीं परख सकते।—नीतिवचन २८:५.
६. लुचपन मूर्खता क्यों है, और यदि हमारे पास समझ है तो हम इसे कैसे देखेंगे?
६ “समझदार पुरुष” को यह एहसास होता है कि लुचपन “हंसी की बात,” अर्थात् एक खेल नहीं है। वह जानता है कि यह परमेश्वर को अप्रसन्न करता है और उसके साथ हमारे सम्बन्ध को नष्ट कर सकता है। ऐसा चालचलन मूर्खता है क्योंकि यह लोगों का आत्म-सम्मान हर लेता है, विवाह बर्बाद कर देता है, मन और शरीर दोनों को नुक़सान पहुँचाता है, और अध्यात्मिकता के नष्ट हो जाने की ओर ले जाता है। इसलिए आइए हम समझ की ओर अपना मन लगाएँ और किसी-भी तरह के लुचपन या अनैतिकता से दूर रहें।—नीतिवचन ५:१-२३.
समझ और हमारी मनोवृत्ति
७. गुस्से के कुछ शारीरिक प्रभाव कौन-से हैं?
७ अपना मन समझ की ओर लगाना हमारी मनोवृत्ति को क़ाबू में रखने में भी हमारी मदद करता है। “जो विलम्ब से क्रोध करनेवाला है वह बड़ा समझवाला है,” नीतिवचन १४:२९ कहता है, “परन्तु जो अधीर है, वह मूढ़ता की बढ़ती करता है।” एक कारण जिसकी वजह से एक समझवाला व्यक्ति अनियंत्रित गुस्से से दूर रहने की कोशिश करता है वह यह है कि इसका हम पर शारीरिक रूप से बुरा प्रभाव पड़ता है। यह रक्त चाप बढ़ा सकता है और साँस लेने में समस्या उत्पन्न कर सकता है। डॉक्टरों ने गुस्से और जलजलाहट को ऐसी भावनाएँ बताया है जिनकी वजह से ऐसी बीमारियाँ जैसे दमा, त्वचा के रोग, अपचन और अल्सर होती हैं।
८. अधीर होना किस ओर ले जा सकता है, लेकिन इस सम्बन्ध में समझ हमारी मदद कैसे कर सकती है?
८ यह केवल हमारे स्वास्थ्य को नुक़सान पहुँचाने से दूर रहना नहीं है जिसके लिए हमें समझ का प्रयोग करना चाहिए और “विलम्ब से क्रोध करनेवाला” होना चाहिए। अधीर होना ऐसे मूर्ख कार्यों की ओर ले जा सकता है जिनके लिए हम बाद में पछताएँगे। समझ हमें यह ध्यान में रखने की मदद देती है कि बेलगाम बोलचाल या अनियंत्रित चालचलन के क्या परिणाम हो सकते हैं और इस प्रकार कुछ मूर्खतापूर्ण कार्य करने के द्वारा “मूढ़ता की बढ़ती” करने से हमें दूर रखती है। ख़ास तौर पर समझ हमें यह अहसास कराने में मदद देती है कि गुस्सा हमारे सोच-विचार को ख़राब कर सकता है, ताकि हम अच्छी परख न कर सकें। यह ईश्वरीय इच्छा पूरी करने और परमेश्वर के धर्मी सिद्धान्तों के अनुसार जीने की हमारी योग्यता को कमज़ोर कर देता है। जी हाँ, अनियंत्रित गुस्से की चपेट में आना आध्यात्मिक रूप से नुक़सानदायक है। वास्तव में, “क्रोध” को घृणित ‘शरीर के कामों’ में बताया गया है जो हमें परमेश्वर के राज्य के वारिस नहीं होने देंगे। (गलतियों ५:१९-२१) तो फिर समझवाले मसीहियों के तौर पर, आइए हम “सुनने के लिये तत्पर और बोलने में धीरा और क्रोध में धीमा हो।”—याकूब १:१९.
९. समझ और भाईचारे का प्रेम हमें मतभेदों को सुलझाने में कैसे मदद दे सकते हैं?
९ यदि हम क्रोधित होते हैं, समझ शायद यह सूचित करे कि हमें चुप रहना चाहिए ताकि झगड़ा न छिड़ जाए। नीतिवचन १७:२७ कहता है: “जो संभलकर बोलता है, वही ज्ञानी ठहरता है; और जिसकी आत्मा शान्त रहती है, सोई समझवाला पुरुष ठहरता है।” समझ और भाईचारे का प्रेम हमें मदद देगा कि ऐसी किसी बात को बोल देने के हमारे आवेग को क़ाबू में रखने की ज़रूरत को समझें जिससे ठेस पहुँच सकती है। यदि पहले ही गुस्सा किसी पर भड़क चुका है, प्रेम और नम्रता हमें क्षमा माँगने और स्थिति सुधारने के लिए प्रेरित करेंगे। लेकिन मान लीजिए कि किसी ने हमें ठेस पहुँचाई है। तो आइए हम उससे अकेले में कोमल और नम्र तरीक़े से बात करें और शान्ति को बढ़ावा देने के मुख्य उद्देश्य के साथ।—मत्ती ५:२३, २४; १८:१५-१७.
समझ और हमारा परिवार
१०. पारिवारिक जीवन में बुद्धि और समझ कौन-सी भूमिका निभाते हैं?
१० पारिवारिक सदस्यों को बुद्धि और समझ दिखाने की ज़रूरत है, क्योंकि ये गुण एक परिवार को दृढ़ बनाएँगे। नीतिवचन २४:३, ४ कहता है: “घर बुद्धि से बनता है, और समझ के द्वारा स्थिर होता है। ज्ञान के द्वारा कोठरियां सब प्रकार की बहुमूल्य और मनभाऊ वस्तुओं से भर जाती हैं।” बुद्धि और समझ सफल पारिवारिक जीवन के लिए उत्तम इमारती पत्थरों की तरह हैं। समझ मसीही माता-पिता को अपने बच्चों की भावनाओं और चिन्ताओं को उनके मन से बाहर निकालने में मदद करती है। एक समझवाला व्यक्ति बातचीत करने, सुनने और अपने विवाहित साथी की भावनाओं और विचारों में अन्तर्दृष्टि पाने में योग्य होता है।—नीतिवचन २०:५.
११. एक समझदार विवाहित स्त्री कैसे ‘अपना घर बनाती है’?
११ बुद्धि और समझ बेशक आनन्दमय पारिवारिक जीवन के लिए अनिवार्य हैं। उदाहरण के लिए, नीतिवचन १४:१ कहता है: “हर बुद्धिमान स्त्री अपने घर को बनाती है, पर मूढ़ स्त्री उसको अपने ही हाथों से ढा देती है।” एक बुद्धिमान और समझदार विवाहित स्त्री अपने पति की उचित अधीनता में घराने की भलाई के लिए कड़ी मेहनत करेगी और इस प्रकार अपने परिवार को बनाने में मदद देगी। एक बात जो ‘उसके घर को बनाएगी’ वह यह है कि वह हमेशा अपने पति के बारे में अच्छी बात कहेगी और इस प्रकार दूसरों के सामने उसकी इज़्ज़त बढ़ाएगी। और एक योग्य, समझदार पत्नी जो यहोवा का पवित्र भय मानती है उसकी प्रशंसा की जाएगी।—नीतिवचन १२:४; ३१:२८, ३०.
समझ और जीवन में हमारा मार्ग
१२. जो लोग “निर्बुद्धि” हैं वे मूर्खता को कैसे देखते हैं, और क्यों?
१२ समझ हमें हमारे सभी मामलों में उचित मार्ग पर चलते रहने में मदद देती है। यह नीतिवचन १५:२१ में सूचित किया गया है, जो कहता है: “निर्बुद्धि को मूढ़ता से आनन्द होता है, परन्तु समझवाला मनुष्य सीधी चाल चलता है।” हमें यह नीतिवचन कैसे समझना चाहिए? मूर्ख पुरुषों, स्त्रियों, और युवजनों के लिए एक मूढ़ता का मार्ग या मूर्खतापूर्ण कार्य आनन्द का कारण होता है। वे “निर्बुद्धि” होते हैं, जिनके पास भले हेतु की कमी होती है, और वे इतने मूर्ख होते हैं कि मूढ़ता से आनन्दित होते हैं।
१३. हँसी और छिछोरेपन के बारे में सुलैमान ने क्या समझा?
१३ इस्राएल के समझवाले राजा सुलैमान ने जान लिया कि छिछोरापन व्यर्थ है। उसने स्वीकार किया: “मैं ने अपने मन से कहा, चल, मैं तुझ को आनन्द के द्वारा जाँचूंगा; इसलिये आनन्दित और मगन हो। परन्तु देखो, यह भी व्यर्थ है। मैं ने हँसी के विषय में कहा, यह तो बावलापन है, और आनन्द के विषय में, उस से क्या प्राप्त होता है?” (सभोपदेशक २:१, २) एक समझवाले पुरुष की तरह, सुलैमान ने पाया कि मात्र प्रसन्नता और हँसी संतोषजनक नहीं हैं, क्योंकि इनसे सच्ची और स्थिर ख़ुशी पैदा नहीं होती। हँसी थोड़ी देर के लिए हमें अपनी समस्याओं को भूलने में मदद दे सकती है, लेकिन बाद में वे शायद और ज़्यादा बड़ी बनकर सामने उभरें। सुलैमान उचित रूप से हँसी को “बावलापन” कह सका। क्यों? क्योंकि बिना सोचे समझे हँसना अच्छी परख को धुँधला सकता है। यह हमारे द्वारा बहुत ही गंभीर मामलों को हलका समझने का कारण बन सकता है। राजसी विदूषक के शब्दों और कार्यों से जुड़े आनन्द की ओर इशारा, कुछ सार्थक कार्य के तौर पर नहीं किया जा सकता है। हँसी और प्रसन्नता के सुलैमान के परीक्षण का महत्त्व समझना, हमें “परमेश्वर के नहीं बरन सुखविलास ही के चाहनेवाले” होने से दूर रहने में मदद करता है।—२ तीमुथियुस ३:१, ४.
१४. कैसे समझवाला मनुष्य “सीधी चाल” चलता है?
१४ यह कैसे है कि समझवाला मनुष्य “सीधी चाल” चलता है? आध्यात्मिक समझ और ईश्वरीय सिद्धान्तों को लागू करना लोगों को धर्मी और सीधे मार्ग की ओर ले जाता है। बाईंगटन अनुवाद साफ़-साफ़ कहता है: “मूर्खता बे-दिमाग़ पुरुष के लिए परमसुख है, लेकिन चतुर मनुष्य सीधी चाल चलेगा।” “समझवाला मनुष्य” अपने क़दमों के लिए सीधे मार्ग बनाता है परमेश्वर के वचन को अपने जीवन में लागू करने की वजह से सही और ग़लत में भेद करने के योग्य होता है।—इब्रानियों ५:१४; १२:१२, १३.
समझ के लिए हमेशा यहोवा की ओर ताकिए
१५. नीतिवचन २:६-९ से हम क्या सीखते हैं?
१५ जीवन में धर्मी मार्ग पर चलने के लिए, हम सभी को अपनी अपरिपूर्णता को स्वीकार करने और आध्यात्मिक समझ के लिए यहोवा की ओर ताकने की ज़रूरत है। नीतिवचन २:६-९ कहता है: “बुद्धि यहोवा ही देता है; ज्ञान और समझ की बातें उसी के मुंह से निकलती हैं। वह सीधे लोगों के लिये खरी बुद्धि रख छोड़ता है; जो खराई से चलते हैं, उनके लिये वह ढाल ठहरता है। वह न्याय के पथों की देख भाल करता, और अपने भक्तों के मार्ग की रक्षा करता है। तब तू धर्म और न्याय, और सीधाई को, निदान सब भली-भली चाल समझ सकेगा।”—याकूब ४:६ से तुलना कीजिए।
१६. यहोवा के विरुद्ध कोई बुद्धि, समझ, या युक्ति क्यों नहीं चलती है?
१६ यहोवा पर हमारी निर्भरता को स्वीकार करते हुए, आइए हम नम्रतापूर्वक उसके वचन में गहराई तक खोजने के द्वारा उसकी इच्छा को समझने की कोशिश करें। उसके पास सम्पूर्ण अर्थ में बुद्धि है, और उसकी सलाह हमेशा लाभदायक होती है। (यशायाह ४०:१३; रोमियों ११:३४) वास्तव में, कोई भी सम्मति जो उसके विरोध में खड़ी होती है वह व्यर्थ है। नीतिवचन २१:३० कहता है: “यहोवा के विरुद्ध न तो कुछ बुद्धि, और न कुछ समझ, न कोई युक्ति चलती है।” (नीतिवचन १९:२१ से तुलना कीजिए।) केवल आध्यात्मिक समझ, जो “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के माध्यम से प्रदान किए गए प्रकाशनों की सहायता से परमेश्वर के वचन के अध्ययन से विकसित होती है, जीवन में एक सही मार्ग का पीछा करने में हमारी मदद करेगा। (मत्ती २४:४५-४७) यह जानते हुए कि चाहे विरोधी सलाह कितनी ही विश्वसनीय क्यों न प्रतीत होती हो, उसके वचन के आगे वह नहीं ठहर सकती, आइए हम अपने जीवन के मार्ग को यहोवा की सलाह के अनुसार चलाएँ।
१७. यदि ग़लत सलाह दी जाती है तो क्या परिणाम हो सकता है?
१७ समझवाले मसीही जो सलाह देते हैं मानते हैं कि इसे दृढ़ रूप से परमेश्वर के वचन पर आधारित होना चाहिए और कि किसी सवाल का जवाब देने से पहले बाइबल अध्ययन और मनन करना ज़रूरी हैं। (नीतिवचन १५:२८) यदि गंभीर मामलों का ग़लत जवाब दिया जाए, तो इससे बहुत बड़ा नुक़सान हो सकता है। अतः, संगी विश्वासियों की आध्यात्मिक रीति से सहायता करने का प्रयास करते वक़्त, मसीही प्राचीनों को आध्यात्मिक समझ की ज़रूरत है और उन्हें यहोवा के मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।
आध्यात्मिक समझ से भरपूर
१८. यदि कलीसिया में एक समस्या खड़ी होती है, तो समझ आध्यात्मिक संतुलन बनाए रखने में हमारी मदद कैसे कर सकती है?
१८ यहोवा को प्रसन्न करने के लिए, हमें “सब बातों की समझ” की ज़रूरत है। (२ तीमुथियुस २:७) बाइबल के गूढ़ अध्ययन और परमेश्वर की आत्मा और संगठन के निर्देशन के साथ चलना हमें यह समझने में मदद करेगा कि क्या करना है यदि हम ऐसी स्थितियों का सामना करते हैं जो हमें ग़लत मार्ग की ओर ले जा सकती हैं। उदाहरण के लिए, मान लीजिए कलीसिया में किसी मामले को उस प्रकार नहीं निपटाया गया जैसा हमने सोचा था कि उसे निपटाया जाना चाहिए। आध्यात्मिक समझ हमें यह देखने में मदद देगी कि यह यहोवा के लोगों के साथ संगति और परमेश्वर की सेवा करना छोड़ देने का कोई कारण नहीं है। यहोवा की सेवा करने का जो हमारा विशेषाधिकार है, जिस आध्यात्मिक स्वतंत्रता का हम आनन्द लेते हैं, राज्य उद्घोषकों के तौर पर जो आनन्द हम पा सकते हैं उसके बारे में सोचिए। आध्यात्मिक समझ हमें सही दृष्टिकोण प्राप्त करने और यह महसूस करने के योग्य बनाती है कि हम परमेश्वर को समर्पित हैं और हमें उसके साथ अपने सम्बन्ध को यत्न से सँभालना है, चाहे दूसरे कुछ भी करें। यदि एक समस्या से निपटने के लिए हम ईश्वरशासित ढंग से और कुछ नहीं कर पाते, तो हमें स्थिति को सुधारने के लिए धीरज से यहोवा की बाट जोहने की ज़रूरत है। छोड़ देने या हताशा के आगे झुक जाने के बजाय, आइए हम ‘परमेश्वर पर आशा लगाए रहें।’—भजन ४२:५, ११.
१९. (क) फिलिप्पियों के लिए पौलुस की प्रार्थना का सारांश क्या था? (ख) यदि हम पूरी तरह से कोई बात नहीं जान पाते तो समझ हमारी कैसे मदद करेगी?
१९ आध्यात्मिक समझ हमें परमेश्वर और उसके लोगों के प्रति निष्ठावान रहने में मदद देती है। फिलिप्पी के मसीहियों को पौलुस ने लिखा: “मेरी प्रार्थना यही है कि तुम्हारा प्रेम सच्चे ज्ञान और पूर्ण समझ सहित निरन्तर बढ़ता जाए। जिस से कि तुम उन बातों को जो सर्वोत्तम हैं अपना लो और मसीह के दिन तक पूर्णतः सच्चे और निर्दोष बने रहो।” (फिलिप्पियों १:९, १०, NHT) उचित रूप से तर्क करने के लिए, हमें “सच्चे ज्ञान और पूर्ण समझ” की ज़रूरत है। यहाँ “समझ” अनुवादित यूनानी शब्द “तीखी नैतिक परख” को सूचित करता है। जब हम कुछ सीखते हैं, हमें परमेश्वर और मसीह से उसका सम्बन्ध समझना चाहिए और इस बात पर मनन करना चाहिए कि यह कैसे यहोवा के व्यक्तित्व और प्रबन्धों को ऊँचा उठाता है। यह यहोवा परमेश्वर और यीशु मसीह ने जो हमारे लिए किया है उसके लिए हमारी समझ और हमारे मूल्यांकन को बढ़ाता है। यदि हम किसी बात को पूरी तरह नहीं जान पाते, तो समझ हमें यह महसूस करने में मदद करेगी कि परमेश्वर, मसीह, और ईश्वरीय उद्देश्य के बारे में जो सभी महत्त्वपूर्ण बातें हमने सीखी हैं उन पर से अपने विश्वास को खोना नहीं चाहिए।
२०. हमारे पास कैसे भरपूर आध्यात्मिक समझ हो सकती है?
२० यदि हम हमेशा अपने विचारों और कार्यों को परमेश्वर के वचन के सामंजस्य में लाते हैं तो हमारे पास भरपूर आध्यात्मिक समझ होगी। (२ कुरिन्थियों १३:५) सकारात्मक रूप से ऐसा करना हमें, हठीले और दूसरों की आलोचना करनेवाले बनने के बजाय नम्र होने में मदद देगा। समझ हमें सुधारक सलाह से लाभ उठाने और अधिक महत्त्वपूर्ण बातों को प्रिय जानने में मदद देगी। (नीतिवचन ३:७) तो फिर, यहोवा को प्रसन्न करने की इच्छा के साथ, आइए हम उसके वचन के यथार्थ ज्ञान से भर जाने की कोशिश करें। यह हमें सही और ग़लत के बीच भेद करने, जो वाक़ई महत्त्वपूर्ण है उसे पहचानने, और यहोवा के साथ अपने मूल्यवान सम्बन्ध में निष्ठा से लगे रहने के योग्य बनाएगा। यह सब तभी संभव है जब हम अपना मन समझ की ओर लगाएँगे। फिर भी, इसके अलावा और भी कुछ चाहिए। हमें समझ को अपनी रक्षा करने देनी चाहिए।
आप कैसे जवाब देंगे?
◻ हमें समझ की ओर अपना मन क्यों लगाना चाहिए?
◻ समझ हमारी बोलचाल और चालचलन को कैसे प्रभावित कर सकती है?
◻ समझ का हमारी मनोवृत्ति पर क्या प्रभाव हो सकता है?
◻ समझ के लिए हमें हमेशा यहोवा की ओर क्यों ताकना चाहिए?
[पेज 13 पर तसवीर]
समझ हमें अपनी मनोवृत्ति को नियंत्रण में रखने में मदद देती है
[पेज 15 पर तसवीर]
समझवाले राजा सुलैमान ने महसूस किया कि छिछोरापन वाक़ई सन्तोषजनक नहीं है