आपको ख़ुश करने के लिए क्या ज़रूरी है?
लोगों द्वारा नियुक्त राजनीतिज्ञ ऐसे लोगों को ख़ुश करने की बहुत कोशिश करते हैं। आख़िर, उनकी नौक़रियाँ इस पर निर्भर हैं। परन्तु एक समाचार-पत्रिका पोलैण्ड में “एक मोह भंग और विच्छिन्न निर्वाचक मंडल” के बारे में बताती है। एक पत्रकार समझाता है कि अमरीका “विधिवत् राजनीति के प्रति संदेह की भावना से भरा” एक समाज है। एक और लेखक हमें “फ्रांस में बढ़ती हुई राजनीतिक उदासीनता” के बारे में बताता है। ऐसी व्यापक उदासीनता और असंतुष्टि—जो केवल इन तीनों देशों में ही सीमित नहीं है—संकेत करती है कि लोगों को ख़ुश करने के अपने प्रयत्न में राजनीतिज्ञ सफ़ल नहीं हो रहे हैं।
धार्मिक अगुए भी ख़ुशी की प्रतिज्ञा करते हैं, यदि इस जीवन में नहीं, तो कम-से-कम आगे के जीवन में। वे इसे इस पूर्वधारणा पर आधारित करते हैं कि मनुष्यों में एक अमर या देहांतर होनेवाली आत्मा है, एक ऐसा विचार जिसे बहुत से लोग विभिन्न कारणों से अस्वीकार करते हैं और जिसका बाइबल स्पष्ट रीति से खंडन करती है। ख़ाली गिरजे और कम होती जा रही सदस्यता सूचियाँ दिखाती हैं कि लाखों लोग अब धर्म को ख़ुशी के लिए ज़रूरी नहीं समझते।—उत्पत्ति २:७, १७; यहेजकेल १८:४, २० से तुलना कीजिए.
रुपये के असंतुष्ट प्रेमी
यदि राजनीति या धर्म में नहीं, तो ख़ुशी कहाँ से प्राप्त होगी? शायद वाणिज्य के क्षेत्र में? यह भी ख़ुशी प्रदान करने में समर्थ होने का दावा करता है। यह विज्ञापन के माध्यम द्वारा अपने पक्ष में तर्क करता है, स्पष्ट रूप से कहते हुए: पैसे से ख़रीदी जा सकनेवाली सब भौतिक वस्तुओं और सेवाओं से ख़ुशी मिलती है।
ऐसा प्रतीत होता है कि इस तरीक़े से ख़ुशी की खोज करनेवालों की संख्या बढ़ती जा रही है। कई साल पहले यह रिपोर्ट किया गया था कि जर्मनी में हर दूसरी गृहस्थी बुरी तरह से कर्ज़ों में डूबी हुई है। तो फिर, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि जर्मन के प्रसिद्ध समाचार पत्र डी ट्साइट (Die Zeit) ने पूर्वानुमान लगाया कि “[इन में से] अनेक कभी-भी कर्ज़ों से नहीं छूटेंगे।” इसने स्पष्ट किया: “जिस हद तक बैंक लगातार अवसर देता है उस हद तक जमा रकम से अधिक रुपया निकालना कितना ही आसान है—और इस फंदे से अपना सिर निकालना कितना ही मुश्किल।”
अन्य अत्यधिक उद्योगिकृत राष्ट्रों में भी स्थिति समान है। कुछ साल पहले, न्यू यॉर्क के सिटी विश्वविद्यालय में एक समाजविज्ञानी, डेविड कैपलोविट्ज़ ने अंदाज़ा लगाया कि अमरीका में, दो करोड़ और ढाई करोड़ के बीच गृहस्थियाँ बुरी तरह से कर्ज़ में डूबी हुई हैं। “लोग कर्ज़ों से अभिभूत हैं,” उसने कहा, “और इससे उनकी ज़िन्दगियाँ बरबाद हो रही हैं।”
यह तो ख़ुशी नहीं जान पड़ती! लेकिन क्या हमें यह प्रत्याशा करनी चाहिए कि जो काम स्पष्ट रूप से दूसरे दो (राजनीति और धर्म) नहीं कर सकते हैं वह वाणिज्य की दुनिया करने में समर्थ होगी? धनी राजा सुलैमान ने एक बार लिखा: “जो रुपये से प्रीति रखता है वह रुपये से तृप्त न होगा; और न जो बहुत धन से प्रीति रखता है, लाभ से: यह भी व्यर्थ है।”—सभोपदेशक ५:१०.
भौतिक सम्पत्तियों में ख़ुशी की खोज करना, हवाई क़िले बनाने के बराबर है। शायद उन्हें बनाने में मज़ा आए, लेकिन यदि आप उन में रहने की कोशिश करेंगे तो आपको समस्याएँ आएँगी।
ख़ुशी प्राप्य है लेकिन कैसे?
प्रेरित पौलुस यहोवा को “ख़ुश परमेश्वर” कहता है। (१ तीमुथियुस १:११, NW) मनुष्य को अपने ही स्वरूप में सृष्ट करके, ख़ुश परमेश्वर ने उन्हें भी ख़ुश होने की योग्यता दी। (उत्पत्ति १:२६) परन्तु उनकी ख़ुशी परमेश्वर की सेवा करने पर निर्भर होनी थी, जैसे भजनहार ने दिखाया: “जिस राज्य का परमेश्वर यहोवा है, वह क्या ही धन्य [ख़ुश, NW] है!” (भजन १४४:१५ख) परमेश्वर के प्रति हमारी सेवा में क्या सम्मिलित है और कैसे हमारा उसकी सेवा करना सच्ची ख़ुशी की ओर ले जाता है, इन बातों की बेहतर समझ प्राप्त होगी यदि हम न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन (New World Translation) में उन ११० जगहों में से कुछेक पर विचार करें जहाँ “ख़ुश” और “ख़ुशी” शब्द पाए जाते हैं।
आध्यात्मिक ज़रूरतों को पहचानना
परमेश्वर के पुत्र, यीशु मसीह ने अपने प्रसिद्ध पहाड़ी उपदेश में कहा: “ख़ुश हैं वे जो अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत के प्रति सचेत हैं।” (मत्ती ५:३, NW) वाणिज्य की दुनिया हमें यह सोचने के भ्रम में डालने की कोशिश करती है कि विलास वस्तुओं की ख़रीदारी ख़ुशी के लिए काफ़ी है। यह हमें बताती है कि गृह कंप्यूटर, विडियो कैमरा, टेलीफ़ोन, कार, नवीनतम खेल साज़सामान, शानदार वस्त्र का होना ही ख़ुशी है। जो बात यह हमें नहीं बताती है वह यह है कि दुनिया में करोड़ों लोगों के पास ये चीज़ें नहीं हैं और तब भी ज़रूरी नहीं कि वे दुःखी हैं। जबकि ये चीज़ें संभवतः जीवन को ज़्यादा आरामदायक और सुविधाजनक बनाती हैं, ये ख़ुशी के लिए अत्यावश्यक नहीं हैं।
पौलुस की तरह, जो लोग अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत के प्रति सचेत हैं कहते हैं: “यदि हमारे पास खाने और पहिनने को हो, तो इन्हीं पर सन्तोष करना चाहिए।” (१ तीमुथियुस ६:८) क्यों? क्योंकि आध्यात्मिक ज़रूरतों को संतुष्ट करने से ही अनन्तकाल का जीवन मिलता है।—यूहन्ना १७:३.
यदि हमारे पास इन्हें ख़रीदने के लिए पैसा है, तो क्या अच्छी चीज़ों का आनन्द लेने में कुछ बुराई है? संभवतः नहीं। फिर भी, इससे यह सीखने के लिए हमारी आध्यात्मिकता प्रबल होती है कि हमें हर इच्छा को तृप्त नहीं करना चाहिए और ऐसी किसी चीज़ को सिर्फ़ इसलिए नहीं ख़रीदना चाहिए कि हम उसकी क़ीमत दे सकते हैं। इस प्रकार हम संतुष्टि सीखते हैं और ख़ुशी को कायम रखते हैं, जैसे यीशु ने भी किया, चाहे उसकी आर्थिक स्थिति सांसारिक स्तरों के अनुसार सर्वोत्तम नहीं थी। (मत्ती ८:२०) और पौलुस दुःख व्यक्त नहीं कर रहा था जब उसने लिखा: “मैं ने यह सीखा है कि जिस दशा में हूं, उसी में सन्तोष करूं। मैं दीन होना भी जानता हूं और बढ़ना भी जानता हूं: हर एक बात और सब दशाओं में मैं ने तृप्त होना, भूखा रहना, और बढ़ना-घटना सीखा है।”—फिलिप्पियों ४:११, १२.
यहोवा पर भरोसा रखना
अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत के प्रति सचेत रहना परमेश्वर पर भरोसा रखने की तत्परता को सूचित करता है। इससे ख़ुशी मिलती है, जैसे राजा सुलैमान ने स्पष्ट किया: “जो यहोवा पर भरोसा रखता, वह धन्य [ख़ुश, NW] होता है।”—नीतिवचन १६:२०.
लेकिन, क्या यह एक तथ्य नहीं कि बहुत से लोग परमेश्वर से ज़्यादा पैसे और सम्पत्ति पर भरोसा रखते हैं? इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो, मुद्रा से ज़्यादा अनुचित और कोई स्थान नहीं जहाँ “परमेश्वर पर हमारा भरोसा है” आदर्शोक्ति प्रदर्शित की जा सकती है, चाहे यह अभिव्यक्ति सच में अमरीकी मुद्रा पर पायी जाती है।
राजा सुलैमान, जिसे पैसे से प्राप्य किसी भी अच्छी चीज़ की कमी नहीं थी, ने स्वीकार किया कि भौतिक सम्पत्तियों पर भरोसा रखने से स्थायी ख़ुशी नहीं मिलती है। (सभोपदेशक ५:१२-१५) बैंक में पड़ा पैसा, बैंक के दिवाला निकलने के द्वारा या मुद्रास्फीति द्वारा खो सकता है। अचल सम्पत्ति प्रचंड तूफ़ानों में नाश हो सकती है। बीमा पॉलिसी, चाहे कुछ हद तक भौतिक नुक़सान पूरा करें, कभी भी भावात्मक नुक़सानों को पूरा नहीं कर सकती हैं। स्टॉक और बंध-पत्र रातोरात ही स्टॉक बाज़ार के गिरने से निर्मूल्य हो सकते हैं। एक अच्छी ख़ासी नौकरी भी—कितने ही कारणों से—आज है और कल नहीं हो सकती है।
इन्हीं कारणों से, जो व्यक्ति यहोवा पर भरोसा रखता है, यीशु की चेतावनी पर ध्यान देने की बुद्धिमत्ता को समझता है: “अपने लिये पृथ्वी पर धन इकट्ठा न करो; जहां कीड़ा और काई बिगाड़ते हैं, और जहां चोर सेंध लगाते और चुराते हैं। परन्तु अपने लिये स्वर्ग में धन इकट्ठा करो, जहां न तो कीड़ा, और न काई बिगाड़ते हैं, और जहां चोर न सेंध लगाते और न चुराते हैं।”—मत्ती ६:१९, २०.
इससे बढ़कर सुरक्षा का एहसास और ख़ुशी की भावना क्या हो सकती है कि एक व्यक्ति यह जाने कि उसने अपना भरोसा सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर रखा है, जो हमेशा ज़रूरतों को प्रदान करता है?—भजन ९४:१४; इब्रानियों १३:५, ६.
ईश्वरीय ताड़ना स्वीकार करना
सलाह, यहाँ तक कि ताड़ना का भी स्वागत है जब यह प्रेम की भावना के साथ एक सच्चे दोस्त द्वारा दी जाती है। परमेश्वर के सेवक अय्यूब के एक नाममात्र दोस्त ने आत्म-धर्माभिमानी रीति से उसे कहा: “क्या ही धन्य वह मनुष्य, जिसको ईश्वर ताड़ना देता है।” चाहे यह कथन सच है, पर जिस बात की ओर एलीपज ने इन शब्दों के द्वारा संकेत किया—कि अय्यूब गम्भीर पाप का दोषी था—वह सच नहीं थी। कितना ही ‘निकम्मा शान्तिदाता’! लेकिन, जब यहोवा ने बाद में अय्यूब को एक प्रेममय रीति से ताड़ना दी, तब अय्यूब ने ताड़ना को विनम्रता से स्वीकार किया और अपने आपको ज़्यादा ख़ुशी की स्थिति में लाया।—अय्यूब ५:१७; १६:२; ४२:६, १०-१७.
आज, परमेश्वर अपने सेवकों से सीधे बात नहीं करता है जैसे उसने अय्यूब से की थी। इसके बजाय, वह उन्हें अपने वचन और अपने आत्मा-निर्देशित संगठन द्वारा ताड़ना देता है। लेकिन वे मसीही जो भौतिकवादी लाभ के पीछे लगते हैं, उनके पास नियमित रूप से बाइबल का अध्ययन करने और यहोवा के संगठन द्वारा दी गई सभाओं में उपस्थित होने के लिए अक़सर न समय, ताक़त, और न ही प्रवृत्ति होती है।
नीतिवचन ३:११-१८ के अनुसार, जिस आदमी को परमेश्वर ताड़ना देता है, वह ऐसी ताड़ना को स्वीकार करने की बुद्धिमत्ता को समझता है: “क्या ही धन्य [ख़ुश, NW] है वह मनुष्य जो बुद्धि पाए, और वह मनुष्य जो समझ प्राप्त करे, क्योंकि बुद्धि की प्राप्ति चान्दी की प्राप्ति से बड़ी, और उसका लाभ चोखे सोने के लाभ से भी उत्तम है। वह मूंगे से अधिक अनमोल है, और जितनी वस्तुओं की तू लालसा करता है, उन में से कोई भी उसके तुल्य न ठहरेगी। उसके दहिने हाथ में दीर्घायु, और उसके बाएँ हाथ में धन और महिमा हैं। उसके मार्ग मनभाऊ हैं, और उसके सब मार्ग कुशल के हैं। जो बुद्धि को ग्रहण कर लेते हैं, उनके लिये वह जीवन का वृक्ष बनती है; और जो उसको पकड़े रहते हैं, वह धन्य हैं।”
शुद्ध और शांति-प्रेमी होना
यीशु ने ख़ुश लोगों का वर्णन इस प्रकार किया कि वे ‘मन में शुद्ध’ और “मेल करवानेवाले” हैं। (मत्ती ५:८, ९) लेकिन एक ऐसी दुनिया में जो भौतिकवादी जीवन-शैली को बढ़ावा देती है, यह कितना ही आसान है कि स्वार्थी, यहाँ तक कि सम्भवतः अशुद्ध इच्छाएँ भी हमारे हृदयों में जड़ पकड़ लें! यदि ईश्वरीय बुद्धि द्वारा निर्देशित न हुए, तो यह कितना ही आसान होगा कि हम बहककर बेईमान तरीक़ों से आर्थिक हित की खोज में लग जाएँ जो दूसरों के साथ हमारे शांतिपूर्ण रिश्ते को नष्ट कर देगा! अच्छे कारणों से, बाइबल चेतावनी देती है: “रुपये का लोभ सब प्रकार की बुराइयों की जड़ है, जिसे प्राप्त करने का प्रयत्न करते हुए कितनों ने विश्वास से भटककर अपने आप को नाना प्रकार के दुखों से छलनी बना लिया है।”—१ तीमुथियुस ६:१०.
पैसे का प्रेम एक अहंकारी दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है जो असंतुष्टि, कृतघ्नता, और लालच को प्रोत्साहित करता है। ऐसी ग़लत भावना को विकसित होने से रोकने के लिए, कुछ मसीही लोग मुख्य आर्थिक निर्णय लेने से पहले अपने आप से ऐसे प्रश्न पूछते हैं: क्या सच में मुझे इसकी ज़रूरत है? क्या मुझे इस मँहगी ख़रीदारी या इस अच्छे वेतन वाली, समय बरबाद करनेवाली नौकरी की ज़रूरत उन लाखों अन्य लोगों से ज़्यादा है, जिन्हें इन चीज़ों के बिना जीना पड़ता है? क्या यह सम्भव है कि मैं अपने पैसे या समय को बेहतर तरीक़े से सच्ची उपासना में अपने भाग को बढ़ाने में, विश्वव्यापी प्रचार कार्य का समर्थन करने में, या अपने से कम सफल लोगों की सहायता करने में लगा सकता हूँ?
सहनशीलता दिखाना
अय्यूब को जिन संकटों को मजबूरन सहना पड़ा था, उनमें से एक थी आर्थिक पदावनति। (अय्यूब १:१४-१७) जैसे उसका उदाहरण दिखाता है, जीवन के हर पहलू में सहनशीलता की ज़रूरत पड़ती है। कुछ मसीहियों को सताहटें सहनी पड़ती हैं; दूसरों को प्रलोभन; और अन्य को बुरी आर्थिक स्थिति सहनी पड़ती हैं। लेकिन हर प्रकार की सहनशीलता के लिए यहोवा प्रतिफल देगा, जैसे मसीही शिष्य याकूब ने अय्यूब के विषय में लिखा: “हम धीरज धरनेवालों को धन्य [ख़ुश, NW] कहते हैं।”—याकूब ५:११.
अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए आध्यात्मिक हितों की उपेक्षा करने से शायद अल्पकालिक आर्थिक राहत मिले, लेकिन क्या परमेश्वर के राज्य के अधीन स्थायी आर्थिक राहत के हमारे दृश्य को यह उज्ज्वल रखने में सहायता करेगी? क्या यह ख़तरा मोल लेने के योग्य है?—२ कुरिन्थियों ४:१८.
अब और सर्वदा के लिए ख़ुशी प्राप्त करना
मनुष्यों को ख़ुश करने के लिए क्या ज़रूरी है, स्पष्टतः इस विषय पर कुछ लोग यहोवा के दृष्टिकोण का विरोध करते हैं। ज़्यादा महत्त्वपूर्ण दीर्घकालिक लाभों की उपेक्षा करते हुए, उन्हें परमेश्वर की सलाह के अनुसार काम करने में कोई तात्कालिक निजी लाभ नज़र नहीं आता। वे इस बात को समझने से चूक जाते हैं कि भौतिक चीज़ों पर भरोसा रखना व्यर्थ है और कुंठा पैदा करता है। बाइबल का लेखक सही पूछता है: “जब सम्पत्ति बढ़ती है, तो उसके खानेवाले भी बढ़ते हैं, तब उसके स्वामी को इसे छोड़ और क्या लाभ होता है कि उस सम्पत्ति को अपनी आंखों से देखे?” (सभोपदेशक ५:११; साथ ही सभोपदेशक २:४-११; ७:१२ भी देखिए.) कितनी ही जल्दी दिलचस्पी मंद पड़ जाती है और जिन चीज़ों के बारे में हमने सोचा था कि हमें लेनी ही हैं, वे ताक़ पर ही रखे-रखे, जगह बरबाद करने और धूल इकट्ठा करने के सिवाय कुछ नहीं करतीं!
एक सच्चा मसीही कभी भी भौतिक रूप से पड़ोसी जितना अमीर बनने के दबाव में अपने आपको नहीं आने देगा। वह जानता है कि एक व्यक्ति का असल मूल्य इस बात से नापा जाता है कि वह क्या है, न कि उसके पास क्या है। उसके मन में कोई संदेह नहीं कि एक व्यक्ति को ख़ुश—सचमुच ख़ुश करने के लिए क्या ज़रूरी है: यहोवा के साथ एक अच्छे रिश्ते का आनन्द लेना और उसकी सेवा में व्यस्त रहना।
[पेज 4 पर तसवीरें]
भौतिक चीज़े अपने आप में कभी भी स्थायी ख़ुशी नहीं ला सकती हैं
[पेज 6 पर तसवीरें]
बाइबल कहती है: “धन्य [ख़ुश, NW] हैं वे जो अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत के प्रति सचेत हैं”