माता-पिता बालकपन से अपने बच्चे के हृदय तक पहुँचें
“यहोवा की शिक्षा, और मानसिक-नियंत्रण में [अपने बच्चों] का पालन-पोषण करते रहो।”—इफिसियों ६:४, न्यू.व.
१. यीशु की ज़िंदगी के एक विशेष रूप से परीक्षाकारी समय में क्या घटा?
यीशु और उसके चेले यरूशलेम की ओर चल रहे थे। थोड़े ही समय पूर्व, दो अलग अलग प्रसंगों पर, यीशु ने अपने चेलों को बताया था कि अनेक कष्टों को झेलकर, उसे उस शहर में मार दिया जाता। (मरकुस ८:३१; ९:३१) यीशु के लिए इस विशेष रूप से परीक्षाकारी अवधि में, बाइबल वृत्तांत कहता है: “लोग अपने बच्चों को भी उसके पास लाने लगे, कि वह उन पर हाथ रखे।”—लूका १८:१५.
२. (अ) चेलों ने लोगों को वापस भेजने की कोशिश क्यों की होगी? (ब) इस स्थिति की ओर यीशु ने कैसी प्रतिक्रिया दिखायी?
२ इसके लिए क्या प्रतिक्रिया थी? ऐसा हुआ कि चेलों ने लोगों को डाँटा और उन्हें वापस भेज देने की कोशिश की, बेशक यह मानकर कि वे उसे अनावश्यक परेशानी और तनाव से बचाकर यीशु को कृपा दिखा रहे थे। लेकिन यीशु ने अपने चेलों से रुष्ट होकर कहा: “‘बालकों को मेरे पास आने दो; उन्हें मना न करो’ . . . और उसने बच्चों को गोद में लेकर, उन पर हाथ रखकर उन्हें आशीष देना शुरु किया।” (मरकुस १०:१३-१६, न्यू.व.) जी हाँ, जितनी सारी बातें उसके मन और हृदय में थीं, उनके बावजूद भी यीशु ने बालकों के लिए समय निकाला।
माता-पिताओं के लिए क्या सबक़ है?
३. इस घटना से माता-पिताओं को कौनसा सबक़ सीखना चाहिए?
३ इस में से माता-पिताओं के लिए एक सबक़ यह होना चाहिए: आपके जो भी अन्य ज़िम्मेदारियाँ होंगी या जिन मुसीबतों का आप सामना कर रहे होंगे, अपने बच्चों के साथ समय व्यतीत करने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। एक साथ बिताए समय से आप उन में ऐसी आत्मिक मान्यताएँ बैठा सकेंगे जो आपके बच्चों के हृदय को सुरक्षित रखकर उन्हें सही रास्ते पर लगाएगा। (व्यवस्थाविवरण ६:४-९; नीतिवचन ४:२३-२७) यूनीके और लोइस ने, जो क्रमश तीमुथियुस की माता और नानी थीं, उसे वह शिक्षण देने के लिए समय निकाल लिया, जो उसके छोटे से दिल को छूकर उसके जीवन को इस प्रकार आकार दिया कि वह बड़ा होकर परमेश्वर का एक निष्ठावान सेवक बन गया।—२ तीमुथियुस १:५; ३:१५.
४. बच्चें कितने अनमोल हैं, और माता-पिताओं को कैसे दिखाना चाहिए कि वे उनका मूल्यांकन करते हैं?
४ मसीही माता-पिताओं को उन्हें यहोवा के दिए बच्चों की लापरवाही नहीं करनी चाहिए। जी हाँ, बच्चें यहोवा से एक अनमोल तोहफ़ा हैं। (भजन १२७:३) तो, उनके साथ समय व्यतीत करें—उनके हृदय तक पहुँचें—उसी तरह जैसे तीमुथियुस की माता और नानी ने आदर्श पेश किया। आपको न केवल उनके साथ उनके आचरण के बारे में बात करते और उन्हें अनुशासित करते हुए समय बिताना चाहिए, लेकिन यह भी ज़रूरी है कि आप उनके साथ भोजन करें, उनके साथ पढ़ें, उनके साथ खेलें, और रात को उन्हें सोने के लिए तैयार करें। अपने बच्चों के साथ बिताया यह सारा समय अत्यावश्यक है।
५. एक ऐसे पिता का उदाहरण दें जिसने अपने पिता-संबंधी ज़िम्मेदारियों के लिए क़दर दिखायी।
५ एक विख्यात जापानी व्यवसायी ने, जो यहोवा का एक गवाह बना, इस वास्तविकता को पहचान लिया। “उच्च पद पर के जे. एन. आर. व्यवस्थापक परिवार के साथ रहने के लिए इस्तीफ़ा देता है,” इस शीर्षपंक्ति के नीचे, फरवरी १०, १९८६, के मैंनीची डेली न्यूज़ ने रिपोर्ट किया कि: “जापानी राष्ट्रीय रेल्वे (जे.एन.आर.) के एक उच्च पद पर के व्यवस्थापक ने अपने परिवार से अलगाव के बजाय पदत्याग चुन लिया . . . तामूरा कहता है, ‘डाइरेक्टर जेनरल की नौकरी कोई भी ले सकता है। लेकिन मैं अपने बच्चों का एकमात्र पिता हूँ।’” क्या आप उसी तरह अपनी माता-पिता संबंधी ज़िम्मेदारियों को गंभीरतापूर्वक लेते हैं?
क्यों विशेष कोशिशें अभी ज़रूरी हैं
६. आज बच्चों का उचित रीति से पालन-पोषण करना इतना कठिन क्यों है?
६ जिस तरीक़े से परमेश्वर का वचन सीखाता है, वैसे बच्चों का “यहोवा की शिक्षा और मानसिक-नियंत्रण में” पालन-पोषण करना शायद मानवी इतिहास में पहले कभी इतना कठिन न रहा होगा। (इफिसियों ६:४) इसका कारण यह है कि हम “अंतिम दिनों” में जी रहे हैं, और शैतान और उसके दुष्टात्माएँ बड़े कष्ट उत्पन्न कर रहे हैं क्योंकि वे क्रुद्ध हैं और जानते हैं कि उनका थोड़ा ही समय बाक़ी है। (२ तीमुथियुस ३:१-५; प्रकाशितवाक्य १२:७-१२) इस प्रकार, अपने बच्चों का पालन-पोषण एक दैवी रीति से करने की माता-पिताओं की कोशिशें, इस प्रतीकात्मक “हवा” से विफल की जा रहे हैं, जिस पर शैतान अधिकार जताता है। वह “हवा,” या स्वार्थ और अवज्ञा की अभिवृत्ति, उस हवा की तरह परिव्यापक है जिस में हम श्वास लेते हैं।—इफिसियों २:२.
७, ८. (अ) टेलिविजन घर में क्या ला सकता है, और फिर भी अनेक माता-पिता क्या करते हैं? (ब) बच्चे की देखभाल करनेवाले व्यक्ति के तौर से टेलिविजन को इस्तेमाल करना माता-पिता संबंधी ज़िम्मेदारी की दुःखद अवहेलना क्यों है?
७ खास तौर से, टेलिविजन घर में इस “संसार की आत्मा,” इस विषैली “हवा” को ले आता है। (१ कुरिन्थियों २:१२) दरअसल जो कुछ भी टेलिविजन पर प्रदर्शित होता है, वह अक़्सर मनोरंजन की दुनिया के शक्तिशाली अनैतिक और समलिंगकामी अंग से प्रभावित है। (रामियों १:२४-३२) आपके बच्चे प्रस्तुत किए गए अधर्मी विचारणा और नैतिक गंदगी के प्रति उसी तरह ग्रहणशील हैं जिस तरह वे वास्तविक हवा के प्रदूषण के प्रति हैं। पर अनेक माता-पिता क्या करते हैं?
८ वे टेलिविजन को बच्चे की देखभाल करनेवाले एक व्यक्ति के तौर से इस्तेमाल करते हैं। “अब नहीं, मुन्ने। मैं व्यस्त हूँ। जाकर टेलिविजन देखो,” वे अपने बच्चों से कहते हैं। एक विख्यात टेलिविजन प्रसारक कहता है कि ये “कई अमरीकी परिवारों में सबसे अक़्सर बोले जानेवाले शब्द हैं।” और फिर भी बच्चों को टेलिविजन पर जो कुछ भी दिखाया जाता है, उसे देखने के लिए भेजना, वास्तव में, उन्हें खुला छोड़ देने के बराबर है। (नीतिवचन २९:१५) यह माता-पिता संबंधी ज़िम्मेदारियों की दुःखद अवहेलना बनती है। जैसे कि इस प्रसारक ने बच्चों के पालन-पोषण के बारे में ग़ौर किया: “यह माता-पिता की भूमिका निभाने का काम, समय व्यय करनेवाला काम और एक बड़ी ज़िम्मेदारी है और यह किसी और को नहीं सौंपी जा सकती, निश्चय ही एक टेलिविजन सेट को तो नहीं।”
९. बच्चों को कौनसे प्रदूषण से ख़ास तौर पर संरक्षण की ज़रूरत है?
९ परंतु, जिस समय में हम रहते हैं, उसके दबाव की वजह से, आप शायद, चेलों की तरह, बच्चों को हटा देने के लिए प्रवृत्त होंगे, ताकि आप ऐसे काम-काज की ओर ध्यान दे सकेंगे जिसे ज़्यादा महत्त्वपूर्ण समझा जा सकता है। लेकिन अपने बच्चों से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण क्या है? उनके आत्मिक जीवन ख़तरे में हैं! आप शायद स्मरण करेंगे कि १९८६ में जब सोवियत यूनियन में चेर्नोबिल परमाणु दुर्घटना घटी, बच्चों को प्रदूषण से बचाने के लिए, उन्हें उस इलाके से हटा दिया गया था। उसी तरह, अगर आपको अपने बच्चों का आत्मिक स्वास्थ्य सुरक्षित रखना हो, तो आपको उन्हें इस संसार के विषैली “हवा” से सुरक्षित रखने की ज़रूरत है, जो कितने अक़्सर टेलिविजन सेट में से उगल आता है।—नीजिवचन १३:२०.
१०. विषैली “हवा” के और कौनसे स्रोत बच्चों के लिए एक ख़तरा हैं, और इसे कौनसा बाइबल उदाहरण चित्रित करता है?
१० परंतु, विषैली “हवा” के अन्य स्रोत हैं जो नैतिक मान्यताएँ नष्ट कर सकते हैं और तरुण मनों को कठोर बना सकते हैं। पड़ोस के बच्चों से और पाठशाला में अनुचित संग-साथ भी कोमल दिलों में बोए बाइबल सच्चाईयों पर दबाव डालकर उन्हें निकाल सकते हैं। (१ कुरिन्थियों १५:३३) याकूब की जवान बेटी दीना से एक सबक़ सीखा जा सकता है, जो “उस देश की लड़कियों से भेंट करने को निकलती थी” और, उसके फलस्वरूप, एक नौजवान ने उस पर बलात्कार किया। (उत्पत्ति ३४:१, २) एक ऐसे संसार, जो तब से, आज और भी ज़्यादा गिरा हुआ है, के नैतिक ख़तरों से बचे रहने के लिए बच्चों को भला-भाँति सिखाना और प्रशिक्षित करना ज़रूरी है।
क्यों बालकपन से प्रशिक्षित करना चाहिए?
११. (अ) माता-पिता संबंधी प्रशिक्षण कब शुरु हाना चाहिए? (ब) कौनसे बढ़िया परिणाम आपेक्षित किए जा सकते हैं?
११ लेकिन माता-पिता संबंधी प्रशिक्षण कब शुरु होना चाहिए? बाइबल कहती है कि तीमुथियुस ने उसका प्रशिक्षण “बालकपन से” प्राप्त किया। (२ तीमुथियुस ३:१५) दिलचस्प रूप से, यहाँ इस्तेमाल किया गया यूनानी शब्द, ब्रेʹफोस, अक़्सर एक अजन्मे बच्चे के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जैसा कि लुका १:४१, ४४ में किया गया है। वहाँ, कहा गया है कि बालक यूहन्ना अपनी माता के गर्भ में उछल पड़ा। लेकिन ब्रेʹफोस, यह शब्द नवजात इस्राएली बालकों के विषय भी इस्तेमाल किया गया है, जिनकी जानें मूसा के जन्मने के वक्त मिस्र देश में ख़तरे में थीं। (प्रेरितों के काम ७:१९, २०) तीमुथियुस की स्थिति में, यह शब्द स्पष्ट रूप से मात्र एक बालक, या शिशु को ज़िक्र करता है, और केवल एक छोटे बच्चे को ही नहीं। तीमुथियुस ने पवित्र लेखन से तब से उपदेश पाया था जब से वह याद कर सकता था, उस समय से जब वह सिर्फ़ एक शिशु था। और कैसे अच्छे परिणाम हुए! (फिलिप्पियों २:१९-२२) फिर भी, क्या नवजात शिशु सचमुच ऐसे प्रारंभिक शिक्षण से लाभ प्राप्त कर सकते हैं?
१२. (अ) बालक शायद किस समय से धारणाएँ और जानकारी सोखना शुरु करेंगे? (ब) माता-पिताओं को कब और कैसे अपने बच्चों को आत्मिक शिक्षण देना शुरु करना चाहिए?
१२ “मनोविज्ञान के पूरे क्षेत्र में सबसे उत्तेजक विकसनों में से एक है, बालक के सीखने की बड़ी क्षमता के विषय हमारी नयी समझ,” डॉ. एडवार्ड ज़िग्लर, येल विश्वविद्यालय के एक प्राध्यापक ने, १९८४ में रिपोर्ट किया। वास्तव में, हेल्थ नामक पत्रिका कहती है: “नया अनुसंधान सुझाता है कि अभी गर्भ में पल रहे बालक शायद देख, सुन, चख—और भावनाएँ ‘महसूस’ कर सकते हैं।” प्रत्यक्ष रूप से, माता-पिता का अपने बच्चों को सिखाना शुरु करना बहुत जल्दी है, ऐसा कभी कहा नहीं जा सकता। (व्यवस्थाविवरण ३१:१२) वे अपने बच्चों को किताबों से चित्र दिखाने और उन्हें कहानियाँ सुनाने के द्वारा शुरु कर सकते हैं। किंडर्गार्टन इज़ टू लेट (किंडर्गार्टन तक बहुत देर हो चुकी है), इस किताब का लेखक, मासारु इबुका, कहता है कि, “अति निर्णायक वर्ष जन्म से तीन वर्ष तक के हैं।” यह इसलिए है कि छोटा मन विशेष रूप से ढालने योग्य है, और यह जानकारी को ज़्यादा आसानी से सोख लेता है, जैसा कि एक नयी भाषा में किसी बालक का जल्दी ही प्रवीणता प्राप्त करना प्रमाणित करता है। न्यू यॉर्क विश्वविद्यालय में प्रारंभिक बालपन शिक्षण के प्राध्यापक ने यह भी कहा कि “जिस क्षण से माता-पिता बच्चों को अस्पताल से घर लाते हैं, उसी क्षण से उन्हें उनको पढ़ना सिखाना शुरु करना चाहिए!”
१३. कौनसी बात बालकों की सीखने की क्षमता को चित्रित करती है?
१३ कॅनाडा से एक माँ अपने बच्चे की सीखने की क्षमता के विषय लिखती है: “एक दिन मैं अपने साढ़े चार वर्ष के बेटे, शॉन, को माइ बुक ऑफ बाइबल स्टोरीज़ इस किताब में से एक कहानी पढ़कर सुना रही थी। एक जगह पर मैं रुकी, और मुझे इतना आश्चर्य हुआ जब पाया कि उसने कहानी जारी रखी है, शब्दशः, उसी तरह जैसे वह बाइबल स्टोरीज़ किताब में छपी गयी है। . . . मैंने एक और पढ़कर आज़माया और फिर एक और, तथा पाया कि उसने प्रत्येक कहानी कंठस्थ की थी। . . . उसने पहली ३३ कहानियाँ, जगहों और लोगों के कठिन नामों सहित, शब्दशः, वास्तव में कंठस्थ की हैं।”a
१४. (अ) बालकों के कौशलों से कौन आश्चर्यचकित नहीं? (ब) मसीही माता-पिताओं का लक्ष्य क्या होना चाहिए? (क) बच्चों को किस के लिए तैयार होना आवश्यक है, और क्यों?
१४ जो लोग बालकों की सीखने की समर्थता से अच्छी तरह परिचित हैं, वे ऐसे कारनामों से आश्चर्यचकित नहीं हैं। “अगर हम ने बच्चों के बजाय बालकों को सिखाया होता, तो यह दुनिया आइंस्टाइन, शेक्सपियर, बेथोवन, और लिओनार्डो डा विंची जैसे प्रज्ञा-संपन्न विशालकायों से भरी होती,” द इंस्टिट्यूट्स फॉर दी अचीवमेंट ऑफ ह्यूमन पोटेंशियल (मानवी समर्थता की सफलता के लिए संस्थान) के निदेशक, डॉ. ग्लेन्न डोमॅन दावा करते हैं। निःसंदेह, मसीही माता-पिताओं का लक्ष्य प्रज्ञा-संपन्न विशालकायों को उत्पन्न करना नहीं है लेकिन अपने बच्चों के हृदय तक पहुँचना है ताकि बच्चे परमेश्वर की सेवा करने से कभी हट न जाएँ। (नीतिवचन २२:६) पाठशाला में जो परीक्षाओं का सामना वह करेगा, उनके लिए उसे तैयार कराने के उद्देश्य से ऐसी कोशिशें बच्चे को पाठशाला दाख़िल कराने से बहुत पहले की जानी चाहिए। उदाहरणार्थ, किंडर्गार्टन या दिन के शिशु-देखभाल कार्यक्रम जन्म-दिन और धार्मिक उत्सवों की पार्टियाँ प्रस्तुत करते हैं जो बच्चों के लिए मनोरंजक हो सकते हैं। तो बच्चे को यह समझना चाहिए कि यहोवा के सेवक क्यों हिस्सा नहीं लेते। वरना वह बड़ा होकर अपने माता-पिता के धर्म से द्वेष करने लगेगा।
बच्चे के हृदय तक कैसे पहुँच सकते हैं
१५, १६. अपने बच्चे के हृदय तक पहुँचने की अपनी मदद के लिए माता-पिता क्या इस्तेमाल कर सकते हैं, और इन प्रबंधों का उपयोग किस तरह प्रभावकारी रीति से किया जा सकता है?
१५ माता-पिताओं को अपने बच्चे के हृदय तक पहुँचने की मदद करने के लिए, यहोवा के गवाहों ने लिसनिंग टू द ग्रेट टीचर जैसे प्रकाशन तैयार किए हैं। “दो मनुष्य जिन्होंने जन्म-दिन मनाए,” इस शीर्षक के उसके अध्याय में यह किताब पार्टियों के बारे में बताती है और कैसे “ये बहुत ही मनोरंजक हो सकते हैं।” फिर भी यह अध्याय समझाता है कि जो दो जन्म-दिन की पार्टियों का उल्लेख बाइबल में किया गया, वे मूर्तिपूजकों द्वारा मनायी गयीं, जिन्होंने यहोवा की उपासना नहीं की, और प्रत्येक पार्टी में ‘किसी का सिर झटके से उड़ा दिया गया।’ (मरकुस ६:१७-२९; उत्पत्ति ४०:२०-२२) आप अपने बच्चे के हृदय तक पहुँचने के लिए इस जानकारी को किस तरह इस्तेमाल कर सकते हैं?
१६ आप ग्रेट टीचर किताब के आकर्षक कार्यविधि को यह कहकर अपना सकते हैं कि: “अब, हम जानते हैं कि बाइबल में जो कुछ भी है उसके लिए एक कारण है।” फिर पूछिए: “तो, तुम क्या कहोगे, परमेश्वर हमें जन्म-दिन की पार्टियों के बारे में क्या बता रहा है?” इस प्रकार आपके बच्चे को इस मामले पर सोच-विचार करने और सही निष्कर्षों पर पहुँचने की मदद होती है। ग्रेट टीचर किताब के अलावा, माता-पिताओं के उपयोग के लिए अन्य साहित्य भी तैयार किया गया है, माइ बुक ऑफ बाइबल स्टोरीज़ और धारावाहिक “जीज़स लाइफ ॲन्ड मिनिस्ट्री” (“यीशु का जीवन और सेवकाई”), जो जनवरी १९८६ से प्रहरीदुर्ग के हर अंक में प्रकाशित हुआ है। क्या आपने इन स्तंभों को अपने बच्चों के साथ साथ खुद को भी सिखाने में इस्तेमाल किया है?
१७. यहाँ माता-पिताओं को कौनसे उपयागी सुझाव दिए गए हैं?
१७ आपके बच्चे के साथ, यह ज़रूरी है कि आप उन बातों पर बार बार विचार करें जो उन वाद-विषयों और परिस्थितियों से संबंधित हैं जिनका सामना वह पाठशाला में करेगा। अपने बच्चे को यह जानने दें कि आप दोनों यहोवा के प्रति जवाबदेह हैं। (रोमियों १४:१२) उन अच्छी बातों को विशिष्ट करें, जो यहोवा हमारे लिए करता है, इस तरह यहोवा को प्रसन्न करना चाहने के लिए बच्चे के छोटा-से हृदय को प्रेरित करें। (प्रेरितों के काम १४:१७) सीखने की अवधियों को खुशी का समय बनाएँ। बच्चों को कहानियाँ बेहद पसंद हैं, तो एक सजीव रीति से शिक्षण देने में सचमुच लगे रहें जो कि आपके बच्चे के हृदय तक पहुँचेगा। नियमित रूप से एक साथ भोजन न करने से, अनेक परिवार ऐसी अवधियों के लिए एक बहुत बढ़िया मौक़ा गँवा देते हैं। क्या आप एक परिवार के तौर से एक साथ भोजन करते हैं? अगर नहीं, क्या आप इस स्थिति को सुधार सकते हैं?—तुलना प्रेरितों के काम २:४२, ४६, ४७ से करें।
१८, १९. (अ) माता-पिताओं को अपने बच्चों के शिक्षण को किस तरह व्यवस्थित करना चाहिए और किस बात पर कम ज़ोर नहीं दिया जा सकता? (ब) पिता-संबंधी ज़िम्मदारी के एक आधुनिक उदाहरण के कौनसे पहलू आपको प्रभावित करते हैं, और अगर किसी माता-पिता ने उनको प्रयोग में लाया, तो आप क्या सोचते हैं, उसका परिणाम क्या होगा?
१८ सीखने की अवधि बच्चे की उम्र के अनुसार समंजित करनी चाहिए। तो एक बालक के साथ, जिसके ध्यान देने की अवधि सीमित है, हर दिन कई कम-समय की अवधियाँ रखें। फिर, प्रगतिशील रीति से, उन्हें ज़्यादा समय के लिए लें और अंतर्वस्तु बढ़ाएँ। अपने बच्चों को सीखाने के लिए नियमित अवधियाँ होने के महत्त्व पर कम ज़ोर बिल्कुल ही नहीं दिया जा सकता। (उत्पत्ति १८:१९; व्यवस्थाविवरण ११:१८-२१) एक पिता ने, जिसकी आयु अब सत्तर से उनासी के बीच है, अपने बेटे का पालन-पोषण करने में, जो कि अब एक मसीही प्राचीन बना है, एक बढ़िया उदाहरण प्रस्तुत किया। सालों पहले उसने अपने कार्यक्रम का वर्णन किया, यह कहकर:
१९ “जब हमारा लड़का क़रीब एक साल का था, मैंने उसे सोने के वक्त बाइबल कहानियाँ, एक विस्तृत, सजीव तरीक़े में, बतलाना शुरु किया, ताकि एक तीव्र प्रभाव हो। जैसे ही उसने अपने दूसरे वर्ष में बोलना शुरु किया, हम उसके खाट के पास घुटने टेकते और एक-एक वाक्य लेकर, मैं उस से उन्हें मेरे बाद दोहरा लेता, ‘प्रभु की प्रार्थना।’ . . . जब वह तीन साल का हुआ मैं ने उस से नियमित बाइबल अध्ययन करना शुरु किया . . . वह अपनी किताब में ध्यान जमाए रखता, और मेरे बाद शब्दों को ज़बानी दोहराता। इस प्रकार वह शब्दों को अच्छी तरह उच्चारित कर सका और उसने बड़े-बड़े शब्दों को भी स्पष्ट रूप से प्रतिज्ञापित करना सीखा। . . . उसके हृदय में बाइबल सच्चाईयों को गहरे रीति से बैठाने की मदद करने के लिए, जब वह तीन साल का था हमने उस से सरल बाइबल पाठ कंठस्थ करवाना शुरु किया। जिस समय उसने किंडर्गार्टन में प्रवेश किया, उसे लगभग तीस पाठ याद थे, और पिछले सितंबर जब उसने प्रथम श्रेणी में प्रवेश किया, उसने सत्तर पाठ याद किए थे। . . . हमारा बेटा जब सोने जाता है, उस से पहले, मैं उस से उसके पाठों में से कुछेक पाठ दोहरा लेता हूँ। उसी तरह जब वह सुबह जागता है, दिन के लिए अपने अभिवादन के एक हिस्से के तौर से वह अक़्सर थोड़े बाइबल पाठ सुनाता है।”
२०. शिक्षण कार्यक्रम में क्या शामिल किया जाना चाहिए, और कोई बच्चा घर-घर की सेवकाई का मज़ा किस तरह ले सकता है?
२० ऐसा प्रगतिशील शिक्षण कार्यक्रम, उचित माता-पिता संबंधी उदाहरण और समनुरूप अनुशासन के प्रयोग सहित, आपके बच्चे को जीवन में एक ऐसी शुरुआत देगा जिसके लिए वह हमेशा के लिए आभारी रहेगा। (नीतिवचन २२:१५; २३:१३, १४) कार्यक्रम का एक अत्यावश्यक हिस्सा छोटी उम्र से ही सार्वजनिक सेवकाई में प्रशिक्षण होना चाहिए। एक अर्थपूर्ण हिस्सा लेने के लिए अपने बच्चे को तैयार करने के द्वारा उसे एक रमणीय अनुभव बनाएँ। ऊपर उल्लेख किए गए पिता ने अपने बेटे के बारे में आगे कहा: “शास्त्रपदों को उद्धृत करने की उसकी क्षमता उसे बहुत ही प्रभावकारी बनाती है, चूँकि कई लोग आश्चर्यचकित होते हैं और उस से प्रस्तुत बाइबल पत्रिकाओं के प्रस्ताव को ना नहीं कह सकते। जब से वह तीन साल का था उसने इस मसीही सेवा में हिस्सा लिया है, और अब [छः साल की उम्र में] लोगों को बाइबल साहित्य पढ़ने देने में अक़्सर मेरे पत्नी और मुझ से ज़्यादा प्रभावकारी है।”—अवेक!, जनवरी २२, १९६५, पृष्ठ ३-४.
२१. (अ) माता-पिता अपने बच्चों के लिए कौनसा सबसे शानदार भविष्य छोड़ सकते हैं? (ब) माता-पिताओं को कौनसी झिड़की दी जाती है, और नाबालिग़ बच्चों सहित सभी माता-पिताओं को क्या करना चाहिए?
२१ सचमुच, मसीही माता-पिताओं को अपने बच्चों को छोड़ने के लिए एक अद्भुत विरासत है, यहोवा के बारे में जानकारी और उसके साथ एक भव्य नए संसार में अनन्त जीवन, शांति, और खुशी की प्रत्याशाएँ। (नीतिवचन ३:१-६, १३-१८; १३:२२) सबसे महत्त्वपूर्ण, आपके नन्हे-मुन्नों के हृदय में यहोवा की सेवा करने की इच्छा के साथ-साथ उस शानदार भविष्य की वास्तविकता में दृढ़ विश्वास बाँधें। उनके लिए सच्ची उपासना को एक स्वाभाविक और आनन्दमय अनुभव बनाएँ। (१ तीमुथियुस १:११) बालकपन से यहोवा पर भरोसा उनके दिल में बैठाएँ। और उनके साथ नियमित सीखने की अवधियाँ रखने में कभी, हाँ, कभी लापरवाही न करें! इन्हें आप सर्व प्राथमिकता दें, अपने बच्चों को क्या जानकारी ज़रूरी है और आप उनके हृदय तक किस तरह सबसे अच्छी तरह पहुँच सकते हैं, इसका सतत पुनःजाँच करें। आप व्यस्त हैं और आप पर दबाव है; शैतान और उसका संसार उसका प्रबंध करते हैं। लेकिन यीशु के आदर्श को याद करें! अपने बच्चों के साथ नियमित अध्ययन करने के लिए कभी इतना व्यस्त न रहें!
[फुटनोट]
a जिस समय से वह पढ़ सका, उस से बहुत पहले उसने किताब की रिकोर्ड किए गए कैसेटों को सिर्फ़ सुन सुनकर ही उन कहानियों को सीख लिया था।
आप कैसे प्रत्युत्तर देंगे?
◻ कौनसा बाइबल प्रमाण दिखाता है कि माता-पिताओं को अपने बच्चों की ज़रूरतों को प्राथमिकता देनी चाहिए?
◻ अब माता-पिताओं के अपने बच्चों का संरक्षण करने में विशेष कोशिशें क्यों आवश्यक हैं?
◻ यह इतना अत्यावश्यक क्यों है कि बच्चें बालकपन से प्रशिक्षित किए जाएँ?
◻ अपने बच्चों के हृदय तक पहुँचने के लिए माता-पिताओं के लिए कुछेक प्रायोगिक सुझाव क्या हैं?
◻ कौनसी बात की लापरवाही मसीही माता-पिताओं को कभी न करनी चाहिए?
[पेज 12 पर तसवीरें]
माता-पिता संबंधी प्रशिक्षण बहुत ही जल्दी शुरु किया जाना चाहिए