हम शोकित हैं, फिर भी आशाहीन नहीं
“हम नहीं चाहते, कि तुम उनके विषय में जो सोते हैं, अज्ञान रहो; ऐसा न हो, कि तुम औरों की नाईं शोक करो जिन्हें आशा नहीं।”—१ थिस्सलुनीकियों ४:१३.
१. मनुष्यजाति नियमित रूप से क्या अनुभव करती है?
क्या आपने किसी प्रियजन को मृत्यु में खोया है? हमारी उम्र चाहे जो भी हो, हममें से अधिकांश लोग एक रिश्तेदार या दोस्त की मृत्यु से दु:खी हुए हैं। शायद हमने दादा\दादी, या माता\पिता, अथवा विवाह-साथी, या एक बच्चे को खोया हो। बुढ़ापा, बीमारी, और दुर्घटनाएँ नियमित तौर पर मृत्यु का कारण बनते हैं। अपराध, हिंसा, और युद्ध दुःख और शोक को और बढ़ाते हैं। हर साल संसार-भर में, औसतन पाँच करोड़ से अधिक लोग मरते हैं। १९९३ में प्रतिदिन औसतन १,४०,२५० लोग मरे। मृत्यु की भारी क़ीमत मित्रों और परिवार के सदस्यों को प्रभावित करती है, और कुछ खोने की भावना गहरी होती है।
२. बच्चों की मृत्यु के बारे में क्या अस्वाभाविक प्रतीत होता है?
२ क्या हम कैलिफोर्निया, अमरीका के उस माता-पिता के साथ सहानुभूति नहीं दिखा सकते, जिन्होंने गर्भवती पुत्री को दुःखद रूप से एक अप्रत्याशित कार दुर्घटना में खो दिया? एक ही झटके में उन्होंने अपनी एकलौती पुत्री और उस शिशु को जो उनका पहला पोता या पोती होता खो दिया। दुर्घटनाग्रस्त स्त्री के पति ने अपनी पत्नी और अपने पहले पुत्र या पुत्री को खो दिया। माता-पिताओं के लिए एक बच्चे की मृत्यु का दुःख सहना, चाहे वह अब भी छोटा हो या बड़ा हो गया हो, किसी तरह अस्वाभाविक है। यह स्वाभाविक नहीं है कि बच्चे अपने माता-पिता की मृत्यु से पहले मरें। हम सब ज़िन्दगी से प्रेम करते हैं। अतः मृत्यु वास्तव में एक शत्रु है।—१ कुरिन्थियों १५:२६.
मृत्यु मानव परिवार में प्रवेश करती है
३. हाबिल की मृत्यु का आदम और हव्वा पर क्या प्रभाव पड़ा होगा?
३ हमारे पहले मानव माता-पिता, आदम और हव्वा के विद्रोह के समय से, पाप और मृत्यु ने मानव इतिहास के क़रीब छः हज़ार सालों तक राजाओं के तौर पर राज्य किया है। (रोमियों ५:१४; ६:१२, २३) बाइबल हमें यह नहीं बताती कि उनके पुत्र हाबिल की उसके भाई कैन द्वारा हत्या पर उन्होंने कैसी प्रतिक्रिया दिखाई। अनेक कारणों से यह उनके लिए एक दुःखद अनुभव रहा होगा। यहाँ, पहली बार उन्होंने मानव मृत्यु की वास्तविकता का सामना किया जो कि उनके अपने पुत्र की मृत्यु थी। उन्होंने अपने विद्रोह और स्वेच्छा के जारी दुरुपयोग का परिणाम देखा। परमेश्वर की ओर से चेतावनियों के बावजूद, कैन ने पहला भ्रातृ-घात करने का चुनाव किया था। हम जानते हैं कि हव्वा पर हाबिल की मृत्यु का अत्यधिक प्रभाव पड़ा होगा क्योंकि जब उसने शेत को जन्म दिया तब उसने कहा: “परमेश्वर ने मेरे लिये हाबिल की सन्ती, जिसको कैन ने घात किया, एक और वंश ठहरा दिया है।”—उत्पत्ति ४:३-८, २५.
४. अमर प्राण की मिथ्या हाबिल की मृत्यु के पश्चात् सांत्वना क्यों नहीं प्रदान कर पायी थी?
४ हमारे पहले मानव माता-पिता ने उन पर परमेश्वर के दंड की वास्तविकता को भी देखा—अर्थात् यदि वे विद्रोह करते या अवज्ञाकारी होते, तो वे ‘अवश्य मरते।’ शैतान के झूठ के बावजूद, प्रत्यक्षतः उस समय तक अमर प्राण की मिथ्या का विकास नहीं हुआ था, अतः वे उससे कोई झूठी सांत्वना नहीं प्राप्त कर सकते थे। परमेश्वर ने आदम से कहा था: ‘तू मिट्टी में मिल जाएगा; क्योंकि तू उसी में से निकाला गया है; तू मिट्टी तो है और मिट्टी ही में फिर मिल जाएगा।’ स्वर्ग, नरक, उपनरक, शोधन-स्थान, या कहीं और एक अमर प्राण के रूप में भावी अस्तित्व का उसने कोई ज़िक्र नहीं किया था। (उत्पत्ति २:१७; ३:४, ५, १९) ऐसे जीवित प्राणियों के तौर पर जिन्होंने पाप किया था, आदम और हव्वा अंततः मरते और उनका अस्तित्व समाप्त हो जाता। राजा सुलैमान यह लिखने के लिए उत्प्रेरित हुआ: “जीवते तो इतना जानते हैं कि वे मरेंगे, परन्तु मरे हुए कुछ भी नहीं जानते, और न उनको कुछ और बदला मिल सकता है, क्योंकि उनका स्मरण मिट गया है। उनका प्रेम और उनका बैर और उनकी डाह नाश हो चुकी, और अब जो कुछ सूर्य के नीचे किया जाता है उस में सदा के लिये उनका और कोई भाग न होगा।”—सभोपदेशक ९:५, ६.
५. मृत जनों के लिए सच्ची आशा क्या है?
५ ये शब्द कितने सच हैं! वास्तव में, कौन है जो दो सौ या तीन सौ साल पहले के पूर्वजों को याद कर सकता है? अकसर उनकी क़ब्र का भी कुछ अता-पता नहीं होता या काफ़ी समय से उसकी उपेक्षा की गयी होती है। क्या इसका यह अर्थ है कि हमारे मृत प्रियजनों के लिए कोई आशा नहीं है? नहीं, बिलकुल नहीं। मरथा ने यीशु से अपने मृत भाई, लाजर के बारे में कहा: “मैं जानती हूं, कि अन्तिम दिन में पुनरुत्थान के समय वह जी उठेगा।” (यूहन्ना ११:२४) इब्रानी लोग विश्वास करते थे कि परमेश्वर मृत लोगों को भविष्य में किसी समय पुनरुत्थित करेगा। फिर भी, इस बात ने उन्हें किसी प्रियजन की मृत्यु पर शोक मनाने से नहीं रोका।—अय्यूब १४:१३.
वफ़ादार जन जिन्होंने शोक मनाया
६, ७. इब्राहीम और याक़ूब ने मृत्यु के प्रति कैसी प्रतिक्रया दिखाई?
६ क़रीब चार हज़ार साल पहले, जब इब्राहीम की पत्नी सारा की मृत्यु हुई तब “इब्राहीम सारा के लिए रोने व शोक मनाने के लिए वहां गया।” परमेश्वर के उस वफ़ादार सेवक ने अपनी प्रिय और निष्ठावान पत्नी को खोने पर अपनी गहरी भावनाओं को दिखाया। हालाँकि वह एक वीर पुरुष था, वह अपने शोक को आँसू बहाकर व्यक्त करने से नहीं शर्माया।—उत्पत्ति १४:११-१६; २३:१, २, NHT.
७ याक़ूब का उदाहरण समान था। जब धोखे से उसे यह विश्वास दिलाया गया कि उसका पुत्र यूसुफ एक जंगली जानवर द्वारा मारा गया है, तब उसने कैसी प्रतिक्रिया दिखाई? हम उत्पत्ति ३७:३४, ३५ में पढ़ते हैं: “तब याक़ूब ने अपने वस्त्र फाड़े और कमर में टाट लपेटा, और अपने पुत्र के लिये बहुत दिनों तक विलाप करता रहा। और उसके सब बेटे-बेटियों ने उसको शान्ति देने का यत्न किया; पर उसको शान्ति न मिली; और वह यही कहता रहा, मैं तो विलाप करता हुआ अपने पुत्र के पास अधोलोक में उतर जाऊंगा। इस प्रकार उसका पिता उसके लिये रोता ही रहा।” जी हाँ, जब एक प्रिय व्यक्ति मर जाता है तब शोक व्यक्त करना मानवीय और स्वाभाविक है।
८. इब्रानी लोग अकसर अपना शोक कैसे व्यक्त करते थे?
८ कुछ लोग शायद सोचेंगे कि आधुनिक या स्थानीय रिवाज़ों के अनुसार याक़ूब की प्रतिक्रिया हद से ज़्यादा और भावुक थी। लेकिन वह एक अलग समय और संस्कृति में पाला-पोसा गया था। उसकी शोक की अभिव्यक्ति—टाट लपेटना—इस रिवाज़ का बाइबल में पहला उल्लेख है। लेकिन, जैसे इब्रानी शास्त्र में वर्णित है, शोक को विलाप करने, विलाप के गीत रचने, और राख में बैठने के द्वारा भी व्यक्त किया जाता था। स्पष्टतः इब्रानी लोगों पर शोक की निष्कपट अभिव्यक्तियाँ करने की कोई रोक-टोक नहीं थी।a—यहेजकेल २७:३०-३२; आमोस ८:१०.
यीशु के समय में शोक
९, १०. (क) लाजर की मृत्यु के प्रति यीशु ने कैसी प्रतिक्रिया दिखाई? (ख) यीशु की प्रतिक्रिया हमें उसके बारे में क्या बताती है?
९ यीशु के प्रारंभिक शिष्यों के बारे में हम क्या कह सकते हैं? उदाहरण के लिए, जब लाजर मर गया, उसकी बहनों, मरथा और मरियम ने आँसू बहाकर और रोकर शोक मनाया। परिपूर्ण मानव यीशु ने कैसी प्रतिक्रिया दिखाई जब वह उनके घर पहुँचा? यूहन्ना का विवरण बताता है: “जब मरियम वहां पहुंची जहां यीशु था, तो उसे देखते ही उसके पांवों पर गिर के कहा, हे प्रभु, यदि तू यहां होता तो मेरा भाई न मरता। जब यीशु ने उस को और उन यहूदियों को जो उसके साथ आए थे रोते हुए देखा, तो आत्मा में बहुत ही उदास हुआ, और घबरा कर कहा, तुम ने उसे कहां रखा है? उन्हों ने उस से कहा, हे प्रभु, चलकर देख ले। यीशु के आंसू बहने लगे।”—यूहन्ना ११:३२-३५.
१० “यीशु के आंसू बहने लगे।” ये कुछेक शब्द यीशु की मानवता, उसकी करुणा और उसकी भावनाओं के बारे में बहुत कुछ बताते हैं। पुनरुत्थान की आशा के बारे में पूर्ण रूप से अवगत होने के बावजूद, “यीशु रो पड़ा।” (यूहन्ना ११:३५, NHT) वृत्तांत आगे यह बताता है कि दर्शकों ने टिप्पणी की: “देखो, वह [लाजर] से कैसी प्रीति रखता था”! निश्चय ही, यदि परिपूर्ण मानव यीशु एक मित्र को खोने पर रोया, तो इसमें कोई शर्म की बात नहीं यदि आज एक पुरुष या स्त्री शोक मनाए और रोए।—यूहन्ना ११:३६.
मृतकों के लिए कौन-सी आशा?
११. (क) शोक मनाने से सम्बन्धित बाइबलीय उदाहरणों से हम क्या सीख सकते हैं? (ख) हम क्यों उनकी तरह शोक नहीं मनाते जिनके पास कोई आशा नहीं?
११ हम उन बाइबलीय उदाहरणों से क्या सीख सकते हैं? यह कि शोक मनाना मानवीय और स्वाभाविक है और कि हमें अपना शोक व्यक्त करने में लज्जित महसूस नहीं करना चाहिए। पुनरुत्थान की आशा से मृदुकृत होने पर भी, किसी प्रियजन की मृत्यु एक अभिघातज नुक़सान है जो गहराई तक ठेस पहुँचाता है। कई सालों की, शायद कई दशकों की नज़दीकी सहचारिता और साझेदारी अचानक और दुःखद रूप से समाप्त हो जाती है। यह सच है कि हम उनकी तरह शोक नहीं मनाते जिनके पास कोई आशा नहीं या जिनके पास झूठी आशाएँ हैं। (१ थिस्सलुनीकियों ४:१३) इसके अलावा, हम मनुष्यों के पास एक अमर प्राण के होने या पुनर्जन्म के द्वारा अस्तित्व में बने रहने के बारे में किसी भी कल्प-कथा से गुमराह नहीं होते। हम यह ज़रूर जानते हैं कि यहोवा ने ‘एक नए आकाश और नई पृथ्वी की प्रतिज्ञा की है जिन में धार्मिकता बास करेगी।’ (२ पतरस ३:१३) परमेश्वर “[हमारी] आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहिली बातें जाती रहीं।”—प्रकाशितवाक्य २१:४.
१२. पौलुस ने पुनरुत्थान में अपने विश्वास को कैसे व्यक्त किया?
१२ जो मर चुके हैं उनके लिए क्या आशा है?b मसीही लेखक पौलुस हमें सांत्वना और आशा देने के लिए उत्प्रेरित हुआ जब उसने लिखा: “सब से अन्तिम बैरी जो नाश किया जाएगा वह मृत्यु है।” (१ कुरिन्थियों १५:२६) ए न्यू हिन्दी ट्रान्सलेशन कहती है: “सब से अन्तिम शत्रु जिसका अन्त किया जाएगा वह मृत्यु है।” पौलुस इस बारे में इतना निश्चित क्यों हो सकता था? क्योंकि वह एक ऐसे व्यक्ति द्वारा धर्मपरिवर्तित और शिक्षित था जो मृतकों में से जिलाया गया था, अर्थात् यीशु मसीह। (प्रेरितों ९:३-१९) यही कारण था कि पौलुस कह सका: “जब मनुष्य [आदम] के द्वारा मृत्यु आई; तो मनुष्य [यीशु] ही के द्वारा मरे हुओं का पुनरुत्थान भी आया। और जैसे आदम में सब मरते हैं, वैसा ही मसीह में सब जिलाए जाएंगे।”—१ कुरिन्थियों १५:२१, २२.
१३. लाजर के पुनरुत्थान पर दर्शकों ने कैसी प्रतिक्रिया दिखाई?
१३ यीशु की शिक्षा हमें भविष्य के लिए अत्यधिक सांत्वना और आशा प्रदान करती है। उदाहरण के लिए, उसने लाजर के मामले में क्या किया? वह उस क़ब्र के पास गया जहाँ लाजर का शरीर चार दिनों से पड़ा था। उसने प्रार्थना की और “यह कहकर उस ने बड़े शब्द से पुकारा, कि हे लाजर, निकल आ। जो मर गया था, वह कफन से हाथ पांव बन्धे हुए निकल आया, और उसका मुंह अंगोछे से लिपटा हुआ था: यीशु ने उन से कहा, उसे खोलकर जाने दो।” क्या आप मरथा और मरियम के चेहरों पर आश्चर्य और आनन्द के भाव का अनुमान लगा सकते हैं? पड़ोसी कितने आश्चर्यचकित हुए होंगे जब उन्होंने इस चमत्कार को देखा! अतः यह आश्चर्य की बात नहीं कि अनेक दर्शकों ने यीशु पर विश्वास किया। लेकिन, उसके धार्मिक शत्रुओं ने ‘उसे मार डालने की सम्मति की।’—यूहन्ना ११:४१-५३.
१४. लाजर का पुनरुत्थान किस बात की एक झलक थी?
१४ यीशु ने वह अविस्मरणीय पुनरुत्थान कई चश्मदीद गवाहों की उपस्थिति में किया। यह उस भावी पुनरुत्थान की एक झलक थी जिसके बारे में उसने पहले एक अवसर पर पूर्वबताया था, जब उसने कहा: “इस से अचम्भा मत करो, क्योंकि वह समय आता है, कि जितने कब्रों में हैं, उसका शब्द सुनकर निकलेंगे। जिन्हों ने भलाई की है वे जीवन के पुनरुत्थान के लिये जी उठेंगे और जिन्हों ने बुराई की है वे दंड के पुनरुत्थान के लिये जी उठेंगे।”—यूहन्ना ५:२८, २९.
१५. पौलुस और हनन्याह के पास यीशु के पुनरुत्थान का क्या सबूत था?
१५ जैसे पहले बताया गया है, प्रेरित पौलुस पुनरुत्थान में विश्वास करता था। किस आधार पर? वह पहले कुख्यात शाऊल था, मसीहियों का उत्पीड़क। उसके नाम और प्रसिद्धि ने विश्वासियों के बीच डर पैदा किया। आख़िरकार, क्या यह वही व्यक्ति नहीं था जिसने मसीही शहीद स्तिफनुस को पथराव करके मारने की सहमति दी? (प्रेरितों ८:१; ९:१, २, २६) फिर भी, दमिश्क के मार्ग पर, पुनरुत्थित मसीह ने शाऊल को कुछ समय के लिए अंधा करके उसके होश ठिकाने लगाए। शाऊल ने एक आवाज़ को उससे कहते हुए सुना: “हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है? उस ने पूछा; हे प्रभु, तू कौन है? उस ने कहा; मैं यीशु हूं; जिसे तू सताता है।” उसी पुनरुत्थित मसीह ने फिर हनन्याह को, जो दमिश्क में रहता था, आदेश दिया कि वह उस घर में जाए जहाँ पौलुस प्रार्थना कर रहा था और उसकी नज़र फिर से ठीक कर दे। अतः, व्यक्तिगत अनुभव से पुनरुत्थान में विश्वास करने के लिए पौलुस और हनन्याह, दोनों के पास पर्याप्त कारण था।—प्रेरितों ९:४, ५, १०-१२.
१६, १७. (क) हम कैसे जानते हैं कि पौलुस मानव प्राण के अंतर्निहित अमरत्व की यूनानी धारणा में विश्वास नहीं करता था? (ख) बाइबल कौन-सी ठोस आशा प्रदान करती है? (इब्रानियों ६:१७-२०)
१६ ध्यान दीजिए कि कैसे शाऊल, अर्थात् प्रेरित पौलुस ने जवाब दिया जब एक उत्पीड़ित मसीही के तौर पर, वह हाकिम फेलिक्स के सामने लाया गया। हम प्रेरितों २४:१५ में पढ़ते हैं: “[मैं] परमेश्वर से आशा रखता हूं . . . कि धर्मी और अधर्मी दोनों का जी उठना होगा।” स्पष्टतः, पौलुस ने मानव प्राण, जो तथाकथित तौर पर किसी काल्पनिक मरणोत्तर जीवन या अधोलोक में जाता है, के अंतर्निहित अमरत्व की विधर्मी यूनानी धारणा में विश्वास नहीं किया। वह पुनरुत्थान में विश्वास करता था और उसी में विश्वास करना सिखाता था। इसका अर्थ होता, कुछ लोगों के लिए स्वर्ग में मसीह के साथ आत्मिक प्राणियों के तौर पर अमर जीवन का वरदान और अधिकांश लोगों के लिए परिपूर्ण पृथ्वी पर जीवन की वापसी।—लूका २३:४३; १ कुरिन्थियों १५:२०-२२, ५३, ५४; प्रकाशितवाक्य ७:४, ९, १७; १४:१, ३.
१७ इस प्रकार बाइबल हमें एक स्पष्ट प्रतिज्ञा और ठोस आशा प्रदान करती है कि पुनरुत्थान के ज़रिए अनेक लोग अपने प्रियजनों को फिर से यहाँ पृथ्वी पर देखेंगे, लेकिन बहुत ही भिन्न परिस्थितियों में।—२ पतरस ३:१३; प्रकाशितवाक्य २१:१-४.
शोकित लोगों के लिए व्यावहारिक मदद
१८. (क) कौन-सा मददगार साधन “ईश्वरीय भय” अधिवेशनों में रिलीज़ किया गया था? (बक्स देखिए।) (ख) कौन-से सवालों के अब जवाब प्राप्त करने की ज़रूरत है?
१८ अब हमारे पास हमारी यादें और हमारे दुःख हैं। इस कठिन मृत्युशोक के समय से बच निकलने के लिए हम क्या कर सकते हैं? शोकित लोगों की मदद करने के लिए दूसरे क्या कर सकते हैं? इसके अलावा, हम हमारी क्षेत्र सेवकाई में मिलनेवाले उन निष्कपट लोगों की मदद करने के लिए क्या कर सकते हैं जो बिना किसी वास्तविक आशा के हैं और जिन्हें भी शोक है? और मृत्यु में सो रहे हमारे प्रियजनों के बारे में हम बाइबल से क्या अतिरिक्त सांत्वना प्राप्त कर सकते हैं? अगला लेख कुछ सुझाव देगा।
[फुटनोट]
a बाइबलीय समय में शोक मनाने के बारे में अतिरिक्त जानकारी के लिए, वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित शास्त्रवचनों पर अंतर्दृष्टि (अंग्रेज़ी), खण्ड २, पृष्ठ ४४६-७ देखिए।
[फुटनोट]
b बाइबल में दी गई पुनरुत्थान की आशा के बारे में अधिक जानकारी के लिए शास्त्रवचनों पर अंतर्दृष्टि (अंग्रेज़ी), खण्ड २, पृष्ठ ७८३-९३ देखिए।
क्या आप जवाब दे सकते हैं?
◻ यह क्यों कहा जा सकता है कि मृत्यु एक शत्रु है?
◻ बाइबलीय समय में परमेश्वर के सेवक अपना शोक कैसे व्यक्त करते थे?
◻ मृत प्रियजनों के लिए कौन-सी आशा है?
◻ पुनरुत्थान पर विश्वास करने का पौलुस के पास क्या आधार था?
[पेज 8 पर बक्स]
शोकित लोगों के लिए व्यावहारिक मदद
१९९४-९५ के दौरान “ईश्वरीय भय” ज़िला अधिवेशनों में वॉच टावर संस्था ने एक नए ब्रोशर के रिलीज़ की घोषणा की जिसका शीर्षक है जब आपका कोई प्रियजन मर जाता है (अंग्रेज़ी)। यह प्रोत्साहक प्रकाशन सब राष्ट्रों और भाषाओं के लोगों को सांत्वना प्रदान करने के लिए तैयार किया गया है। जैसे आप शायद देख चुके होंगे, यह मृत्यु और मृत लोगों की अवस्था के बारे में बाइबल का सरल स्पष्टीकरण प्रस्तुत करता है। इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण, यह यीशु मसीह के ज़रिए, साफ़ की गई परादीस पृथ्वी पर, फिर से जीवन पाने के बारे में परमेश्वर की प्रतिज्ञा को विशिष्ट करता है। यह शोकित लोगों को वास्तव में सांत्वना प्रदान करता है। अतः, यह मसीही सेवकाई में एक मददगार साधन होना चाहिए और इसे दिलचस्पी जगाने का कार्य करना चाहिए जिससे और अनेक गृह बाइबल अध्ययन परिणित हों। अध्ययन के लिए सवाल सोच-समझकर हर खण्ड के अंत में बक्सों में दिए गए हैं ताकि चर्चा किए गए मुद्दों के बारे में किसी भी निष्कपट, शोकित व्यक्ति के साथ आसानी से पुनर्विचार किया जा सके।
[पेज 8 पर तसवीरें]
जब लाजर मरा, तब यीशु रोया
[पेज 9 पर तसवीरें]
यीशु ने लाजर को मृतकों में से जी उठाया