अन्त तक अपना भरोसा दृढ़ बनाए रखिए
कल्पना कीजिए कि एक छोटा हवाई-जहाज़ ख़राब मौसम की परिस्थितियों में उड़ रहा है। विमान-चालक थल-चिन्हों को समझ नहीं पा रहा। घने बादल उसे घेर लेते हैं। वह अपने हवा-रोक शीशे के पार कुछ नहीं देख सकता, फिर भी वह निश्चित महसूस करता है कि वह अपनी यात्रा सुरक्षित रूप से तय कर सकता है। उसके विश्वास का कारण क्या है?
उसके पास अचूक यंत्र हैं जो उसे बादलों के बीच उड़ने और अंधेरे में उतरने में समर्थ करते हैं। उसके मार्ग में, ख़ासकर हवाई-अड्डे के पास, संकेत-दीप उसे विद्युतीय रूप से मार्गदर्शित करते हैं, और भूमि पर वायु-यातायात नियंत्रकों के साथ उसका रेडियो सम्पर्क है।
तुलनात्मक तरीक़े से, हम विश्वास के साथ भविष्य का सामना कर सकते हैं, हालाँकि संसार की स्थिति दिन-प्रति-दिन अंधकारमय होती जाती है। इस दुष्ट व्यवस्था के बीच हमारी यात्रा शायद उससे ज़्यादा समय ले रही हो जिसकी कुछ ने अपेक्षा की थी, लेकिन हम विश्वस्त हो सकते हैं कि हम सही मार्ग पर और सही वक़्त पर हैं। हम इतने निश्चित क्यों हो सकते हैं? क्योंकि हमारे पास ऐसा मार्गदर्शन है जो हमें उसे पहचानने में समर्थ करता है जिसे मानव दृष्टि नहीं पहचान सकती।
परमेश्वर का वचन ‘हमारे मार्ग के लिये उजियाला’ है, और यह ‘विश्वासयोग्य है, साधारण लोगों को बुद्धिमान बना देता है।’ (भजन १९:७; ११९:१०५) संकेत-दीपों के समान जो विमान-चालक के उड़ान पथ को दिखाते हैं, बाइबल यथार्थता से भविष्य की घटनाओं की रूपरेखा देती है और यह निश्चित करने के लिए कि हम अपनी मंजिल पर सुरक्षित रूप से पहुँचें, स्पष्ट निर्देशन देती है। लेकिन, ईश्वरीय मार्गदर्शन से लाभ उठाने के लिए हमारा उस पर भरोसा करना ज़रूरी है।
इब्रानियों को लिखी अपनी पत्री में, पौलुस ने यहूदी मसीहियों से आग्रह किया कि “अपने प्रथम भरोसे पर अन्त तक दृढ़ता से स्थिर रहें।” (इब्रानियों ३:१४) भरोसा कमज़ोर पड़ सकता है यदि उस पर अपनी पकड़ को ‘दृढ़’ न किया जाए। तब सवाल उठता है कि कैसे हम अन्त तक यहोवा में अपना विश्वास दृढ़ रख सकते हैं?
अपने विश्वास पर चलिए
इससे पहले कि एक विमान-चालक बिना देखे, पूरी तरह से अपने यंत्रों और भू-नियंत्रण पर निर्भर करते हुए उड़ान भर सके, उसे पर्याप्त प्रशिक्षण और अनेक घंटों के उड़ान-समय की ज़रूरत होती है। इसी प्रकार, एक मसीही को लगातार अपने विश्वास पर चलने की ज़रूरत है, ताकि उसका विश्वास यहोवा के मार्गदर्शन में बना रहे, ख़ासकर जब कठिन परिस्थितियाँ उठ खड़ी होती हैं। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “इसलिये कि हम में वही विश्वास की आत्मा है, (जिस के विषय में लिखा है, कि मैं ने विश्वास किया [“मैं विश्वास पर चला,” NW] इसलिये मैं बोला) सो हम भी विश्वास करते हैं [“विश्वास पर चलते हैं,” NW], इसी लिये बोलते हैं।” (२ कुरिन्थियों ४:१३) अतः, जब हम परमेश्वर के सुसमाचार के बारे में बोलते हैं, हम अपने विश्वास पर चल रहे होते हैं और उसे दृढ़ कर रहे होते हैं।
मॉगडॉलेनॉ, जिसने दूसरे विश्व युद्ध के समय में चार साल नज़रबंदी शिविर में बिताए, प्रचार गतिविधि के मूल्य को समझाती है: “मेरी माँ ने मुझे सिखाया कि मज़बूत विश्वास बनाए रखने के लिए, दूसरे के आध्यात्मिक कल्याण के बारे में चिन्ता करना अत्यावश्यक है। मुझे एक घटना याद है जो बताती है कि हमने कैसा महसूस किया। रॉवनब्रुक नज़रबन्दी शिविर से हमारी रिहाई के बाद मेरी माँ और मैं एक शुक्रवार को अपने घर पहुँचे। दो दिन के बाद, रविवार को, हमने भाइयों के साथ घर-घर के प्रचार में भाग लिया। मैं दृढ़ विश्वास करती हूँ कि यदि हम दूसरों को परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं में भरोसा करने में मदद देने पर ध्यान देते, तो वही प्रतिज्ञाएँ हमारे लिए और अधिक वास्तविक बन जाएँगी।”—प्रेरितों ५:४२ से तुलना कीजिए।
हमारे विश्वास को अन्त तक दृढ़ बनाए रखना दूसरे क्षेत्रों में आध्यात्मिक गतिविधि की माँग करता है। व्यक्तिगत अध्ययन विश्वास को मज़बूत करनेवाला एक और अत्युत्तम कार्य है। यदि हम बिरीया के लोगों का अनुसरण करें और प्रतिदिन अध्यवसायी रूप से शास्त्रवचनों की जाँच करें, तो यह हमें “अन्त तक आशा का पूरा आश्वासन” रखने में मदद देगा। (इब्रानियों ६:११, NW; प्रेरितों १७:११) सच है, व्यक्तिगत अध्ययन समय और दृढ़संकल्प की माँग करता है। संभवतः, इसी कारण से पौलुस ने इब्रानियों को ऐसे मामलों में “आलसी” अथवा सुस्त होने के ख़तरे के बारे में चिताया।—इब्रानियों ६:१२.
एक सुस्त मनोवृत्ति के जीवन के अनेक क्षेत्रों में भयानक परिणाम हो सकते हैं। सुलैमान ने कहा कि “हाथों की सुस्ती से घर चूता है।” (सभोपदेशक १०:१८) कभी-न-कभी बारिश की बूँदें उस छत से टपकने लगती हैं जिसकी देखरेख न की गई हो। यदि हम आध्यात्मिक रूप से अपने हाथों को सुस्त होने देते हैं और अपने विश्वास को बनाए रखने में असफल होते हैं, तो शायद संदेह उत्पन्न हो जाएँ। दूसरी ओर, परमेश्वर के वचन का नियमित अध्ययन और उस पर मनन हमारे विश्वास को पोषित करेगा और उसकी रक्षा करेगा।—भजन १:२, ३.
अनुभव द्वारा भरोसा विकसित करना
निश्चित ही, एक विमान-चालक अनुभव से, साथ ही साथ अध्ययन के द्वारा सीखता है कि उसके यंत्र भरोसा करने लायक़ हैं। उसी तरह, यहोवा में हमारा विश्वास बढ़ता है जब हम स्वयं अपने जीवन में उसकी प्रेममय परवाह का प्रमाण देखते हैं। यहोशू ने इसका अनुभव किया, और उसने अपने संगी इस्राएलियों को याद दिलाया: “तुम सब अपने अपने हृदय और मन में जानते हो, कि जितनी भलाई की बातें हमारे परमेश्वर यहोवा ने हमारे विषय में कहीं उन में से एक भी बिना पूरी हुए नहीं रही; वे सब की सब तुम पर घट गई हैं।”—यहोशू २३:१४.
फिलीपींस की एक विवाहित बहन, होसॆफ़ीनॉ ने यही सबक़ सीखा। वह समझाती है कि उसके सच्चाई सीखने से पहले जीवन कैसा था: “मेरे पति बहुत पीते थे, और जब वो मतवाले हो जाते, वो गुस्सा होते और मुझे मारते। हमारा दुःखी विवाह हमारे बेटे पर भी प्रभाव डाल रहा था। दोनों, मेरे पति और मैं नौकरी करते थे और अच्छा पैसा कमा रहे थे, लेकिन हम अपनी ज़्यादातर कमायी जुए में उड़ा देते थे। मेरे पति के अनेक मित्र थे, फिर भी उनमें से अधिकांश इसलिए उनसे मित्रता की तलाश में रहते थे ताकि वो उनके पीने के लिए पैसे दें, और कुछ ने केवल उन पर हँसने के लिए उन्हें मतवाला करने की कोशिश की।
“परिस्थिति बदली जब हमने यहोवा के बारे में सीखा और उसकी सलाह को मन में बिठाया। मेरे पति अब नहीं पीते, हमने जुआ खेलना छोड़ दिया है, और हमारे पास सच्चे मित्र हैं जो हमसे प्रेम करते और हमारी मदद करते हैं। हमारा विवाह एक सुखी विवाह है, और हमारा बेटा एक अच्छे जवान पुरुष के रूप में बढ़ रहा है। हम थोड़े समय काम करते हैं, लेकिन हमारे पास ज़्यादा पैसे हैं। अनुभव ने हमें सिखाया है कि यहोवा एक प्रेमी पिता के जैसा है, जो हमें हमेशा सही दिशा में ले जाता है।”
रेडियो निर्देशनों के परिणामस्वरूप अथवा एक यांत्रिक जाँच से, विमान-चालकों को कभी-कभी यह अहसास होता है कि उन्हें अपने मार्ग को सही करने की ज़रूरत है। इसी प्रकार शायद हमें भी यहोवा के निर्देशन के अनुसार अपने मार्ग को बदलने की ज़रूरत हो। “जब कभी तुम दहिनी वा बाई ओर मुड़ने लगो, तब तुम्हारे पीछे से यह वचन तुम्हारे कानों में पड़ेगा, मार्ग यही है, इसी पर चलो।” (यशायाह ३०:२१) उसके वचन और उसके संगठन के माध्यम से, हम सलाह पाते हैं जो हमें आध्यात्मिक ख़तरों से आगाह करती है। इनमें से एक संगति के बारे में है।
संगति हमें मार्ग से भटका सकती है
यदि ज़रूरी सुधार न किए जाएँ तो एक छोटा हवाई-जहाज़ मार्ग से भटक सकता है। इसी प्रकार, आज मसीहियों पर लगातार बाहरी प्रभाव के थपेड़े पड़ते हैं। हम एक शारीरिक-मनोवृत्ति रखनेवाले संसार में रहते हैं जहाँ अनेक लोग आध्यात्मिक मूल्यों का उपहास करते, पैसे और सुख-विलास को कहीं ज़्यादा महत्त्व देते हैं। पौलुस ने तीमुथियुस को चिताया कि अन्तिम दिन “कठिन” होते। (२ तीमुथियुस ३:१-५) किशोर, जो स्वीकृति और लोकप्रियता के लिए लालायित रहते हैं, ख़ास तौर पर बुरी संगति के प्रति असुरक्षित हैं।—२ तीमुथियुस २:२२.
अमैन्डा, जो १७ साल की है, समझाती है: “कुछ समय के लिए मेरे सहपाठियों ने मेरे विश्वास को कुछ हद तक कमज़ोर कर दिया था। वे कहते रहते कि मेरा धर्म प्रतिबन्धक और तर्कविरुद्ध है, और इस बात ने मुझे निरुत्साहित करना शुरू कर दिया। फिर भी, मेरे माता-पिता ने मुझे समझने में मदद दी कि मसीही मार्गदर्शन रक्षा करने का काम करते हैं न कि प्रतिबन्धक हैं। अब मुझे अहसास होता है कि ये सिद्धान्त मेरे पिछले स्कूल के साथियों के जीवन से एक ज़्यादा सन्तोषजनक जीवन जीने में मेरी मदद कर रहे हैं। मैं ने उन पर भरोसा करना सीखा है जो सचमुच मेरी परवाह करते हैं—मेरे माता-पिता और यहोवा—और मैं पायनियर सेवा का आनन्द उठा रही हूँ।”
चाहे हम किसी-भी उम्र के क्यों न हों, हम ऐसे लोगों से मिलेंगे जो हमारे विश्वास के विषय में निन्दात्मक टिप्पणी करते हैं। वे शायद सांसारिक दृष्टि से बुद्धिमान नज़र आएँ, लेकिन परमेश्वर के लिए वे शारीरिक, अनाध्यात्मिक हैं। (१ कुरिन्थियों २:१४) पौलुस के दिन के कुरिन्थ में सांसारिक दृष्टि से बुद्धिमान संदेहवादी लोग एक प्रभावशाली समूह थे। इन तत्वज्ञानियों की शिक्षाओं के कारण संभवतः कुरिन्थ के कुछ मसीहियों का पुनरुत्थान में से विश्वास ख़त्म हो गया। (१ कुरिन्थियों १५:१२) “धोखा न खाना” प्रेरित पौलुस ने चिताया। “बुरी संगति अच्छे चरित्र को बिगाड़ देती है।”—१ कुरिन्थियों १५:३३.
दूसरी ओर, अच्छी संगति हमें आध्यात्मिक रूप से दृढ़ करती है। मसीही कलीसिया के अन्दर, हमें उन लोगों के साथ मिलने-जुलने का अवसर है जो विश्वास का जीवन जीते हैं। नॉरमन नामक एक भाई, जिसने १९३९ में सच्चाई सीखी, अब भी सभी के लिए प्रोत्साहन का एक बड़ा स्रोत है। किस बात ने उसके आध्यात्मिक दृष्टिकोण को स्पष्ट रखा है? “सभाएँ और वफ़ादार भाइयों के साथ नज़दीक़ी मित्रता महत्त्वपूर्ण हैं,” वह जवाब देता है। “इस प्रकार की संगति ने मुझे परमेश्वर के और शैतान के संगठन के बीच भिन्नता को स्पष्ट रूप से देखने में मदद दी है।”
धन का धोखा
ब्रायन नामक एक अनुभवी विमान-चालक समझाता है कि “एक विमान-चालक कभी-कभी शायद अपने यंत्रों पर भरोसा करना कठिन पाए—मात्र इसलिए कि उसकी सहज-वृत्ति असहमत होती है। अनुभवी सैनिक विमान-चालक अपने विमानों को उलटा उड़ाने के लिए जाने जाते हैं क्योंकि ज़मीन पर रोशनियाँ बिल्कुल तारों की तरह दिखती थीं—हालाँकि उनके यंत्रों ने इसका विपरीत निर्देश दिया।”
इसी तरह, हमारी स्वार्थी सहज-वृत्ति आध्यात्मिक अर्थ में हमें बहका सकती है। यीशु ने कहा कि धन में “धोखा” है, और पौलुस ने चिताया कि ‘रुपए के लोभ ने कितनों को विश्वास से भटका दिया है।’—मरकुस ४:१९; १ तीमुथियुस ६:१०.
धोखा देनेवाली टिमटिमाती रोशनियों के समान, चमकदार दिखनेवाले भौतिकवादी लक्ष्य हमें ग़लत दिशा दिखा सकते हैं। “आशा की हुई वस्तुओं” में आनन्द मनाने के बजाय, हम इस संसार के दिखावे के द्वारा, जो मिटता जाता है बहक सकते हैं। (इब्रानियों ११:१; १ यूहन्ना २:१६, १७) यदि हम एक ऐयाश जीवन-शैली पाने के लिए “दृढ़निश्चयी” हैं, तो संभवतः हमारे पास आध्यात्मिक उन्नति के लिए शायद ही कोई समय बचे।—१ तीमुथियुस ६:९, NW; मत्ती ६:२४; इब्रानियों १३:५.
पैट्रिक नामक एक जवान विवाहित पुरुष ने यह स्वीकार किया कि उसने और उसकी पत्नी ने बेहतर जीवन-स्तर का आनन्द लेने की ख़ातिर आध्यात्मिक लक्ष्यों को त्याग दिया। वह समझाता है: “हम कलीसिया में उन लोगों से प्रभावित हुए थे जिनके पास बड़ी गाड़ियाँ और आलीशान मकान थे। हालाँकि हमने राज्य आशा को कभी-भी दृष्टि से ओझल नहीं होने दिया, हमने महसूस किया कि हमारी भी जीवन-शैली आरामदायक होनी चाहिए। लेकिन, कुछ समय बाद, हमें एहसास हुआ कि सच्ची ख़ुशी यहोवा की सेवा करने और आध्यात्मिक तौर पर उन्नति करने से आती है। अब एक बार फिर हमारा जीवन साधारण है। हमने अपने कार्य घंटों को कम किया है, और हम, नियमित पायनियर बन गए हैं।”
विश्वास ग्रहणशील हृदय पर निर्भर करता है
एक ग्रहणशील हृदय भी यहोवा में विश्वास दृढ़ करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सच है, “विश्वास आशा की हुई वस्तुओं का निश्चय, और अनदेखी वस्तुओं का प्रमाण [अथवा, “विश्वासोत्पादक प्रमाण,” NW फुटनोट] है।” (इब्रानियों ११:१) लेकिन जब तक कि हमारे पास एक ग्रहणशील हृदय नहीं है, यह असंभावनीय है कि हम विश्वस्त होंगे। (नीतिवचन १८:१५; मत्ती ५:६) इसी कारण प्रेरित पौलुस ने कहा कि “हर एक में विश्वास नहीं।”—२ थिस्सलुनीकियों ३:२.
तब, कैसे हम उपलब्ध सभी विश्वासोत्पादक प्रमाणों के प्रति अपने हृदय को अनुक्रियाशील बनाए रख सकते हैं? ईश्वरीय गुणों को विकसित करने के द्वारा, ऐसे गुण जो विश्वास को पुष्ट करते और उकसाते हैं। पतरस हमसे ‘अपने विश्वास पर सद्गुण, समझ, संयम, धीरज, भक्ति, भाईचारे की प्रीति, और प्रेम को बढ़ाते जाने’ का आग्रह करता है। (२ पतरस १:५-७; गलतियों ५:२२, २३) दूसरी ओर, यदि हम एक आत्म-केन्द्रित जीवन जीते हैं अथवा यहोवा की नाममात्र सेवा करते हैं, तो तर्कसंगत रूप से हम अपने विश्वास के बढ़ने की अपेक्षा नहीं कर सकते।
एज्रा ने यहोवा के वचन को पढ़ने और उसका पालन करने पर “अपना मन लगाया था।” (एज्रा ७:१०) इसी प्रकार मीका के पास एक ग्रहणशील हृदय था। “परन्तु मैं यहोवा की ओर ताकता रहूंगा, मैं अपने उद्धारकर्त्ता परमेश्वर की बाट जोहता रहूंगा; मेरा परमेश्वर मेरी सुनेगा।”—मीका ७:७.
मॉगडॉलेनॉ भी, जिसका पहले ज़िक्र किया जा चुका है, धीरज के साथ यहोवा की बाट जोहती है। (हबक्कूक २:३) वह कहती है: “हमारे पास पहले ही आध्यात्मिक परादीस है। अगली सीढ़ी, भौतिक परादीस, जल्द ही आ जाएगी। इस दौरान लाखों लोग बड़ी भीड़ में शामिल हो रहे हैं। परमेश्वर के संगठन में इतने सारे लोगों को इकट्ठा होते देखना मुझे रोमांचित करता है।”
हमारे उद्धार के परमेश्वर की ओर ताकना
अपना विश्वास अन्त तक दृढ़ बनाए रखना इस बात की माँग करता है कि हम अपने विश्वास पर चलें और यहोवा और उसके संगठन से हमें प्राप्त होनेवाले मार्गदर्शन को ध्यानपूर्वक सुनें। यह सचमुच प्रयास के लायक़ है। एक विमान-चालक गहरा संतोष महसूस करता है जब एक लम्बी, कठिन यात्रा के बाद, वह उतरता है और अन्ततः घने बादलों को बेध पाता है। उसके सामने पृथ्वी फैली हुई होती है—हरी-भरी और स्वागत करती। हवाई-अड्डे का उड़ान-पथ नीचे है, उसका स्वागत करने का इन्तज़ार कर रहा है।
एक रोमांचकारी अनुभव हमारा भी इन्तज़ार कर रहा है। यह अंधकारमय, दुष्ट संसार धार्मिकता की एक नई पृथ्वी को मार्ग देगा। एक ईश्वरीय स्वागत हमारा इन्तज़ार कर रहा है। हम वहाँ पहुँच सकते हैं यदि हम भजनहार के शब्दों को मानते हैं: “हे प्रभु यहोवा, मैं तेरी ही बाट जोहता आया हूं, बचपन से मेरा आधार तू है। . . . मैं नित्य तेरी स्तुति करता रहूंगा।”—भजन ७१:५, ६.