जवानो, अभी अपने सिरजनहार को स्मरण रखिए
“अपनी जवानी के दिनों में अपने सृजनहार को स्मरण रख।”—सभो. 12:1.
1. यहोवा ने कैसे दिखाया कि उसे अपने जवानों पर भरोसा है?
मसीही जवानो, क्या आप जानते हैं कि यहोवा आपको किस नज़र से देखता है? आप उसके लिए अनमोल और ओस की बूंदों के समान हैं जो तरो-ताज़ा करती हैं। दरअसल उसने भविष्यवाणी की है कि उसके बेटे के “पराक्रम के दिन,” जवान स्त्री-पुरुष मसीह की सेवा में “खुशी से अपने आप को पेश” (किताब-ए-मुकद्दस) करेंगे। (भज. 110:3) यह भविष्यवाणी हमारे समय के बारे में थी। लेकिन आज दुनिया के ज़्यादातर लोग परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानते, वे अपना ही स्वार्थ पूरा करने और दौलत बटोरने में लगे हुए हैं। इसके बावजूद, यहोवा ने यह भविष्यवाणी इसलिए की क्योंकि वह जानता था कि उसकी उपासना करनेवाले जवान, दुनिया के लोगों से अलग होंगे। जवान भाई-बहनो, क्या आप देख सकते हैं कि यहोवा आप पर कितना भरोसा करता है?
2. यहोवा को स्मरण रखने का क्या मतलब है?
2 जब जवान अपने महान सिरजनहार, यहोवा को स्मरण करते हैं, तो यह देखकर उसे कितनी खुशी होती होगी। (सभो. 12:1) लेकिन यहोवा को स्मरण रखने का मतलब सिर्फ उसके बारे में सोचना नहीं है। इसके लिए कदम उठाना भी ज़रूरी है। दूसरे शब्दों में कहें तो हमें अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में यहोवा के नियमों और सिद्धांतों के मुताबिक चलना चाहिए और उसे भानेवाले काम करने चाहिए। इसके अलावा, यहोवा को स्मरण रखने का यह भी मतलब है कि हम उस पर भरोसा रखें, क्योंकि हम जानते हैं कि वह हमारी गहरी परवाह करता और हमारी भलाई चाहता है। (भज. 37:3; यशा. 48:17, 18) क्या आप अपने महान सिरजनहार के बारे में ऐसा ही महसूस करते हैं?
‘सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखिए’
3, 4. यीशु ने कैसे यहोवा पर अपना भरोसा दिखाया और आज यहोवा पर भरोसा रखना क्यों ज़रूरी है?
3 परमेश्वर पर भरोसा रखने की सबसे बेहतरीन मिसाल यीशु मसीह ने कायम की। वह नीतिवचन 3:5, 6 में दिए गए शब्दों पर बिलकुल खरा उतरा। वहाँ लिखा है, “तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।” यीशु के बपतिस्मे के कुछ समय बाद, शैतान ने उसे सारे राज्यों का अधिकार और वैभव दिखाकर उसे बहकाने की कोशिश की। (लूका 4:3-13) लेकिन यीशु उसके बहकावे में नहीं आया। क्योंकि उसे मालूम था कि ‘नम्रता और यहोवा का भय मानने’ से ही सच्चा “धन, महिमा और जीवन” मिलता है।—नीति. 22:4.
4 आज दुनिया में जहाँ देखो वहाँ लालच और स्वार्थ का बोलबाला है। ऐसे माहौल में यीशु की मिसाल पर चलना हमारे लिए बुद्धिमानी होगी। यह बात भी याद रखिए कि शैतान हर मुमकिन कोशिश करेगा, ताकि यहोवा के सेवकों को जीवन की ओर ले जानेवाले सँकरे मार्ग से गुमराह कर सके। वह तो यही चाहता है कि सब-के-सब विनाश की ओर ले जानेवाले चौड़े मार्ग पर चलें। जवानो, शैतान के छलावे में मत आइए! इसके बजाय, ठान लीजिए कि आप हमेशा अपने महान सिरजनहार को स्मरण रखेंगे। उस पर पूरा भरोसा रखिए और “सच्ची ज़िन्दगी” पर अपनी पकड़ मज़बूत कीजिए, जो बहुत जल्द हमें मिलनेवाली है।—1 तीमु. 6:19, हिन्दुस्तानी बाइबिल।
जवानो, समझदार बनिए!
5. इस दुनिया का क्या होगा, इस बारे में आप क्या सोचते हैं?
5 अपने महान सिरजनहार को स्मरण रखनेवाले जवान, बाकी जवानों से कहीं ज़्यादा समझदार होते हैं। (भजन 119:99, 100 पढ़िए।) वे परमेश्वर के जैसा नज़रिया रखते हैं, इसलिए वे जानते हैं कि शैतान की यह दुनिया विनाश की कगार पर है। माना कि आपको ज़िंदगी में ज़्यादा तजुरबा नहीं है, मगर आपने यह ज़रूर गौर किया होगा कि भविष्य को लेकर लोगों में दिन-ब-दिन डर और चिंताएँ बढ़ती जा रही हैं। अगर आप स्कूल जाते हैं, तो बेशक आपने प्रदूषण, पृथ्वी के बढ़ते तापमान और पेड़ों की अंधाधुंध कटाई के बारे में पढ़ा होगा। दुनिया का यह हाल देखकर लोग घबराए हुए हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि यह पृथ्वी खत्म हो जाएगी। लेकिन यहोवा के साक्षी जानते हैं कि ये सारी बातें उस चिन्ह का हिस्सा हैं, जो शैतान की दुनिया के अंत की तरफ इशारा करता है।—प्रका. 11:18.
6. कुछ जवान किस तरह शैतान के फँदे में फँस गए हैं?
6 लेकिन अफसोस की बात है कि परमेश्वर के कुछ जवान सेवक आध्यात्मिक तौर पर चौकन्ने नहीं रहे हैं। और उन्होंने इस बात की तरफ अपनी आँखें मूँद ली हैं कि इस दुनिया का अंत नज़दीक है। (2 पत. 3:3, 4) कुछ जवान ऐसे भी हैं, जो पोर्नोग्राफी और बुरी सोहबत में पड़कर गंभीर पाप कर बैठे हैं। (नीति. 13:20) आज हम अंत के बिलकुल करीब है। ऐसे में अगर हम परमेश्वर की मंज़ूरी खो दें, तो यह कितने दुःख की बात होगी! हमारे साथ ऐसा न हो, इसके लिए आइए हम देखें कि सा.यु.पू. 1473 में इस्राएलियों के साथ क्या हुआ। यह तब की बात है जब वे वादा किए गए देश के एकदम करीब थे और मोआब की तराई में डेरा डाले हुए थे। वहाँ ऐसा क्या हुआ था?
मंज़िल के इतने करीब होने पर भी वे पाप में फँस गए
7, 8. (क) मोआब की तराई में शैतान ने कौन-सी धूर्त चाल आज़मायी? (ख) आज शैतान कौन-सी चाल चलता है?
7 शैतान नहीं चाहता था कि इस्राएली किसी भी कीमत पर वादा किए देश में दाखिल हों। इसलिए उसने एक झूठे नबी बिलाम के ज़रिए इस्राएलियों को शाप देने की कोशिश की। मगर जब उसकी यह चाल नाकाम रही, तो उसने इस्राएलियों पर इससे भी धूर्त चाल आज़मायी, ताकि वे खुद-ब-खुद परमेश्वर की मंज़ूरी खो बैठें। उसने उन्हें फँसाने के लिए मोआबी औरतों का इस्तेमाल किया। और इस बार उसकी यह चाल काफी कामयाब रही। इस्राएली, उन औरतों के साथ कुकर्म करने लगे और उनके देवता बाल-पोर की भी उपासना करने लगे। हालाँकि इस्राएली वादा किए देश के बहुत ही करीब थे, लेकिन इस पाप की वजह से करीब 24, 000 इस्राएलियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। कितना बुरा हुआ!—गिन. 25:1-3, 9.
8 हम भी एक नयी दुनिया के बिलकुल करीब हैं, जो वादा किए देश से लाख गुना अच्छी होगी। इस्राएलियों के समय की तरह शैतान आज भी परमेश्वर के लोगों को गुमराह करने के लिए लैंगिक अनैतिकता का इस्तेमाल कर रहा है। दुनिया के नैतिक स्तर इस कदर गिर चुके हैं कि व्यभिचार को गलत नहीं माना जाता और समलैंगिकता अपनी-अपनी पसंद की बात मानी जाती है। एक मसीही बहन ने कहा, “मेरे बच्चे सिर्फ घर पर और राज्य घर में सीखते हैं कि परमेश्वर की नज़र में समलैंगिकता और शादी के बगैर सेक्स एक पाप है।”
9. “जवानी” में क्या चुनौती आ सकती है और जवान इसका सामना कैसे कर सकते हैं?
9 अपने महान सिरजनहार को स्मरण रखनेवाले जवान जानते हैं कि लैंगिक संबंध एक अनमोल वरदान है, जिसका ज़िंदगी और बच्चे पैदा करने के साथ गहरा नाता है। इसलिए वे इस बात को अच्छी तरह समझते हैं कि परमेश्वर के ठहराए इंतज़ाम यानी शादी के बंधन में ही एक व्यक्ति लैंगिक संबंध रख सकता है। (इब्रा. 13:4) लेकिन इस मामले में शुद्ध रहना जवानों के लिए बहुत बड़ी चुनौती हो सकती है। क्योंकि “जवानी” में उनकी लैंगिक इच्छाएँ ज़बरदस्त होती हैं और इस वजह से वे गलत कदम उठा सकते हैं। (1 कुरि. 7:36) जब आपके मन में गलत खयाल आते हैं, तो आप क्या कर सकते हैं? यहोवा से गिड़गिड़ाकर बिनती कीजिए कि वे आपको अच्छी बातों पर सोचने में मदद दे। यहोवा हमेशा उन लोगों की सुनता है, जो सच्चे दिल से उसे पुकारते हैं। (लूका 11:9-13 पढ़िए।) दूसरों के साथ आध्यात्मिक विषयों पर बात करने से भी हम अपना ध्यान अच्छी बातों पर लगाए रख सकेंगे।
सोच-समझकर लक्ष्य रखिए!
10. हमें किस गलत सोच से दूर रहना चाहिए और हमें खुद से कौन-से सवाल पूछने चाहिए?
10 आज दुनिया में कई नौजवान सारी हदें तोड़कर ऐयाशी की ज़िंदगी जीते हैं। इसकी एक वजह यह है कि वे “परमेश्वर की राह” के बारे में नहीं जानते और उनके पास भविष्य की कोई पक्की आशा नहीं। (नीति. 29:18, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) वे यशायाह के दिनों के उन अधर्मी इस्राएलियों की तरह हैं, जिनकी ज़िंदगी का मकसद सिर्फ ‘हर्ष और आनन्द मनाना, मांस खाना और दाखमधु पीना’ था। (यशा. 22:13) ऐसे नौजवानों को देखकर यह मत सोचिए कि काश, मैं भी उनकी तरह ज़िंदगी का मज़ा ले पाता! इसके बजाय, उस अनमोल आशा के बारे में सोचिए जो यहोवा अपने वफादार लोगों को देता है। अगर आप परमेश्वर के एक जवान सेवक हैं, तो क्या आपको नयी दुनिया का बेसब्री से इंतज़ार हैं? क्या आप यहोवा की दी ‘इस धन्य आशा की बाट जोहते’ वक्त ‘संयम के साथ जीवन’ बिताने की भरसक कोशिश करते हैं? (तीतु. 2:12, 13) आपके जवाबों से तय होगा कि आप ज़िंदगी में किन बातों को अहमियत देंगे और क्या लक्ष्य रखेंगे।
11. स्कूल जानेवाले मसीही जवानों को अपनी पढ़ाई में क्यों मेहनत करनी चाहिए?
11 दुनिया चाहती है कि जवान अपनी सारी ताकत और सारा ध्यान ऊँचे लक्ष्यों को हासिल करने में लगाएँ। अगर आप स्कूल जाते हैं, तो आपको बुनियादी शिक्षा लेने में ज़रूर मेहनत करनी चाहिए। लेकिन इसके पीछे आपका मकसद सिर्फ एक अच्छी नौकरी पाना ही नहीं होना चाहिए बल्कि यह मकसद भी होना चाहिए कि आप कलीसिया के काम आ सकें और प्रचार में अच्छे फल ला सकें। इसके लिए आपको अपनी बात अच्छे तरीके से कहना, सिलसिलेवार ढंग से सोचना, साथ ही, ठंडे दिमाग और आदर के साथ लोगों से तर्क करना सीखना होगा। लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि जो जवान बाइबल का अध्ययन करते हैं और उसके सिद्धांतों पर चलने की कोशिश करते हैं, उन्हें सबसे बढ़िया शिक्षा मिलती है। इतना ही नहीं, वे एक ऐसी ज़िंदगी पाने की बुनियाद डालते हैं, जो कामयाब होगी और हमेशा तक कायम रहेगी।—भजन 1:1-3 पढ़िए।a
12. मसीही माता-पिताओं को किसकी मिसाल पर चलना चाहिए?
12 इस्राएल देश में, माता-पिता अपने बच्चों को शिक्षा देना बहुत ज़रूरी समझते थे। वे ज़िंदगी के लगभग सभी मामलों के बारे में अपने बच्चों को तालीम देते थे, खासकर आध्यात्मिक मामलों के बारे में। (व्यव. 6:6, 7) इसलिए, एक इस्राएली जवान को अपने माँ-बाप और परमेश्वर का भय माननेवाले बड़े-बुज़ुर्गों की बातें मानने से काफी फायदा होता था। उसे न सिर्फ ज्ञान मिलता था बल्कि वह अपने अंदर ऐसे गुण बढ़ा पाता था, जो सिर्फ परमेश्वर और उसकी आज्ञाओं के बारे में सीखने से हासिल होते हैं। जैसे बुद्धि, प्रवीणता, समझ, और सोचने-समझने की काबिलीयत। (नीति. 1:2-4; 2:1-5, 11-15) इस्राएलियों की मिसाल पर चलते हुए, आज मसीही माता-पिताओं को भी अपने बच्चों को शिक्षा देनी चाहिए।
उन लोगों की सुनिए, जो आपसे प्यार करते हैं
13. जवानों को किस तरह की सलाह दी जाती है और उन्हें सावधान क्यों रहना चाहिए?
13 जवानों को हर तरह के लोगों से सलाह मिलती है। इनमें उनके स्कूल टीचर भी शामिल हैं, जो अकसर उन्हें कामयाबी की बुलंदियाँ छूने का बढ़ावा देते हैं। जवानो, हमारी आपसे गुज़ारिश है कि आप इन सलाहों की अच्छी तरह जाँच करें और देखें कि इन्हें मानना सही होगा कि नहीं। ऐसा करते वक्त परमेश्वर से मदद के लिए प्रार्थना कीजिए, साथ ही उसके वचन, बाइबल और विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास से मिले साहित्य की भी मदद लीजिए। बाइबल के अपने अध्ययन से आप यह अच्छी तरह जानते हैं कि जवानों और कम तजुरबा रखनेवालों को शैतान अपना खास निशाना बनाता है। हव्वा की मिसाल लीजिए। यहोवा ने कई तरीकों से उसे अपने प्यार का सबूत दिया था। फिर भी, वह शैतान की बातों में आ गयी जो उसके लिए पराया था और जिसने उसकी खातिर कुछ नहीं किया था। सच, अगर हव्वा ने यहोवा की बात मानी होती, तो अंजाम कितना अलग होता।—उत्प. 3:1-6.
14. हमें यहोवा और अपने माता-पिता की बात क्यों सुननी चाहिए?
14 आपका महान सिरजनहार आपसे बहुत प्यार करता है, ठीक जैसे वह हव्वा से करता था। और उसके प्यार में कोई स्वार्थ नहीं छिपा है। वह आपको सिर्फ आज ही नहीं, बल्कि हमेशा खुश देखना चाहता है। इसलिए एक प्यार करनेवाले पिता के नाते वह आपसे और बाकी उपासकों से कहता है, “मार्ग यही है, इसी पर चलो।” (यशा. 30:21) इसके अलावा, अगर आपके माँ-बाप यहोवा के उपासक हैं, तो यह आपके लिए बड़ी आशीष है। जब वे आपको सलाह देते हैं कि ज़िंदगी में किन बातों को पहली जगह देनी चाहिए और क्या लक्ष्य रखने चाहिए, तब उनकी सलाह को ध्यान से सुनिए। (नीति. 1:8, 9) आखिर आपके माँ-बाप यही चाहते हैं कि आपको हमेशा की ज़िंदगी मिले, जो दुनिया की तमाम दौलत या शोहरत नहीं दिला सकती। —मत्ती 16:26.
15, 16. (क) हम यहोवा पर क्या भरोसा रख सकते हैं? (ख) बारूक की मिसाल से हम क्या ज़रूरी सबक सीखते हैं?
15 महान सिरजनहार को स्मरण रखनेवाले सादगी-भरा जीवन जीते हैं। और इस बात का भरोसा रखते हैं कि यहोवा उन्हें ‘कभी नहीं छोड़ेगा’ और ‘न कभी उन्हें त्यागेगा।’ (इब्रानियों 13:5 पढ़िए।) यह सोच दुनिया की सोच से बिलकुल अलग है, इसलिए हमें सतर्क रहना चाहिए कि कहीं संसार की आत्मा हम पर हावी न हो जाए। (इफि. 2:2) इस मामले में यिर्मयाह के सेक्रेटरी बारूक की मिसाल पर ध्यान दीजिए। वह उस समय जीया था, जब यरूशलेम पर मुसीबत के काले बादल मँडरा रहे थे और आखिरकार सा.यु.पू. 607 में उस शहर को तहस-नहस कर दिया गया था।
16 बारूक की ज़िंदगी में एक ऐसा वक्त आया, जब शायद वह दौलत और ऐशो-आराम की चीज़ें चाहने लगा। यहोवा यह सब देख रहा था और उसने प्यार से बारूक को सलाह दी कि वह अपने लिए “बड़ाई” न खोजे। बारूक नम्र और बुद्धिमान था, इसलिए उसने यहोवा की सलाह मानी और यरूशलेम के विनाश से बच निकला। (यिर्म. 45:2-5) दूसरी तरफ, बारूक के ज़माने के लोगों ने धन-दौलत बटोरकर अपने लिए “बड़ाई” ढूँढ़ी और यहोवा की उपासना को ताक पर रख दिया। नतीजा, जब कसदियों (बाबुलियों) ने यरूशलेम पर धावा बोला, तब उनका सबकुछ उनसे छिन गया। और कई लोगों ने अपनी जान भी गँवा दीं। (2 इति. 36:15-18) बारूक की मिसाल से हम सीखते हैं कि परमेश्वर के साथ एक अच्छा रिश्ता बनाना, धन-दौलत बटोरने और नामो-शोहरत कमाने से कहीं बढ़कर है।
उम्दा मिसालों से सीखिए
17. यीशु, पौलुस और तीमुथियुस कैसे यहोवा के सेवकों के लिए बेहतरीन मिसाल है?
17 परमेश्वर का वचन हमें कई लोगों की बेहतरीन मिसाल देता है, ताकि हम जीवन की ओर ले जानेवाले मार्ग पर चल सकें। यीशु की मिसाल लीजिए। वह चाहता तो किसी भी काम में महारत हासिल कर सकता था। लेकिन उसने अपना पूरा ध्यान उस काम में लगाया जिससे लोगों को हमेशा के लिए फायदा होता, यानी ‘राज्य का सुसमाचार सुनाने’ में। (लूका 4:43) प्रेरित पौलुस ने भी यहोवा की सेवा में ज़्यादा-से-ज़्यादा करने के लिए अपना बढ़िया करियर छोड़ दिया और अपना पूरा समय और ताकत राज्य की खुशखबरी सुनाने में लगा दी। एक और मिसाल है तीमुथियुस की, “जो विश्वास में [पौलुस का] सच्चा पुत्र” था। (1 तीमु. 1:1) उसने पौलुस की बेहतरीन मिसाल पर चलते हुए अपनी ज़िंदगी परमेश्वर की सेवा में लगायी। यीशु, पौलुस और तीमुथियुस ने जिस तरह की ज़िंदगी जीने का चुनाव किया, क्या उसका उन्हें कोई पछतावा हुआ? बिलकुल नहीं! दरअसल पौलुस ने कहा कि वह परमेश्वर की सेवा करने के सम्मान के आगे दुनिया की दौलत और शोहरत को “कूड़ा” समझता है।—फिलि. 3:8-11.
18. एक जवान ने अपनी ज़िंदगी में क्या बड़ा बदलाव किया और उसे अपने फैसले पर कोई रंज क्यों नहीं हुआ?
18 आज कई मसीही जवान यीशु, पौलुस और तीमुथियुस के जैसा विश्वास दिखाते हैं। मिसाल के लिए, एक भाई पहले ऐसी नौकरी करता था, जिसमें उसे मोटी तनख्वाह मिलती थी। उसने कहा, “बाइबल के उसूलों पर चलने की वजह से मुझे एक-के-बाद-एक प्रमोशन मिलते गए। मैं पैसों में खेलने लगा। इसके बावजूद मुझे लगा जैसे मैं हवा को पकड़ने की कोशिश कर रहा हूँ। फिर मैंने ठान लिया कि मैं नौकरी छोड़कर पूरे समय की सेवा करूँगा। जब मैंने अपनी कंपनी के अधिकारियों से इस बारे में बात की, तो उन्होंने तुरंत कहा कि वे मेरी तनख्वाह बढ़ा देंगे। उन्हें लगा कि शायद मैं अपना इरादा बदल दूँगा। लेकिन मैंने अपना इरादा नहीं बदला। कई लोगों को समझ नहीं आया कि मैंने क्यों अपना अच्छा-खासा करियर छोड़कर पूरे समय की सेवा करने का फैसला किया। अगर वे मुझसे पूछे तो मेरा जवाब यही होगा कि मैं परमेश्वर से किए अपने समर्पण के वादे को निभाना चाहता हूँ। आज मैं अपनी ज़िंदगी परमेश्वर की सेवा में लगा रहा हूँ और मुझे इतनी खुशी और सुकून है कि क्या बताऊँ। मुझे नहीं लगता कि दुनिया की कोई भी दौलत और शोहरत ऐसी खुशी दे सकती है।”
19. जवानों को कौन-सा बुद्धि-भरा फैसला करने का बढ़ावा दिया गया है?
19 दुनिया-भर में हज़ारों जवानों ने ऐसे ही बुद्धि-भरे फैसले किए हैं। इसलिए जवानो, अपने भविष्य के बारे में सोचते वक्त याद रखिए कि यहोवा का दिन बहुत करीब है। (2 पत. 3:11, 12) उन लोगों के जैसे बनने की कोशिश मत कीजिए, जो आज दुनिया में खूब दौलत और नाम कमा रहे हैं। इसके बजाय, जो आपसे प्यार करते हैं, उनकी सुनिए। “स्वर्ग में धन इकट्ठा” कीजिए, क्योंकि तभी आपका भविष्य सुरक्षित होगा और आपको हमेशा-हमेशा के फायदे मिलेंगे। (मत्ती 6:19, 20. 1 यूहन्ना 2:15-17 पढ़िए।) तो जवानो, अपने महान सिरजनहार, यहोवा को स्मरण रखिए। ऐसा करने से वह आपको ज़रूर इनाम देगा।
[फुटनोट]
a ऊँची शिक्षा और नौकरी के बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए 1 अक्टूबर, 2005 की प्रहरीदुर्ग के पेज 26-31 देखिए।
क्या आपको याद है?
• हम यहोवा पर अपना भरोसा कैसे दिखा सकते हैं?
• हमें सबसे बढ़िया शिक्षा कहाँ मिल सकती है?
• बारूक से हम क्या सबक सीख सकते हैं?
• कौन हमारे लिए बेहतरीन मिसालें हैं और क्यों?
[पेज 13 पर तसवीरें]
यहोवा सबसे बेहतरीन शिक्षा मुहैया कराता है
[पेज 15 पर तसवीर]
बारूक ने यहोवा की सलाह मानी और यरूशलेम के विनाश से बच निकला। आप उसकी मिसाल से क्या सीख सकते हैं?