क्या आप परमेश्वर के प्रति अपना सम्पूर्ण कर्त्तव्य निभा रहे हैं?
“परमेश्वर सब कामों और सब गुप्त बातों का, चाहे वे भली हों या बुरी, न्याय करेगा।”—सभोपदेशक १२:१४.
१. यहोवा ने अपने लोगों के लिए कौन-से इंतज़ाम किए हैं?
यहोवा उन सबकी मदद करता है जो उसे सृजनहार के रूप में याद रखते हैं। यहोवा अपने वचन के ज़रिए उन्हें बताता है कि उसे खुश करने के लिए क्या करना है। और वह उन्हें अपनी पवित्र आत्मा देता है जिसकी मदद से वे उसकी इच्छा पूरी कर सकें और ‘हर प्रकार के भले काम’ कर सकें। (कुलुस्सियों १:९, १०) साथ ही, यहोवा ने “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” का भी इंतज़ाम किया है जो आध्यात्मिक भोजन देकर परमेश्वर के मार्ग पर चलना सिखाता है। (मत्ती २४:४५-४७) तो हम देख सकते हैं कि यहोवा अपने लोगों को उसकी सेवा करने और उसके राज्य का प्रचार करने में काफी मदद देता है।—मरकुस १३:१०.
२. यहोवा की सेवा के बारे में हमारे मन में कौन-से सवाल उठ सकते हैं?
२ सच्चे मसीही यहोवा की पवित्र सेवा में मशरूफ रहते हैं इसलिए वे हमेशा खुश नज़र आते हैं। लेकिन उनमें से कुछ यह सोचकर निराश महसूस करते हैं कि उनकी सारी मेहनत बेकार जा रही है। कभी-कभी उन्हें लगता है कि परमेश्वर की सेवा में वे जो मेहनत कर रहे हैं क्या वह सचमुच मायने रखती है। मिसाल के तौर पर, एक पिता के मन में शायद फैमिली स्टडी और दूसरे कामों के बारे में ये सवाल उठे: ‘हमारा परिवार यहोवा की सेवा में जो कर रहा है उससे क्या सचमुच यहोवा खुश होता होगा? क्या हम वाकई यहोवा के प्रति अपने फर्ज़ को पूरा कर रहे हैं?’ इन सवालों का जवाब पाने में और अपना हौसला बनाए रखने में सभोपदेशक के वचन हमारी मदद कर सकते हैं।
क्या सब कुछ व्यर्थ है?
३. सभोपदेशक १२:८ के मुताबिक किस तरह की ज़िंदगी व्यर्थ ही व्यर्थ है?
३ लेकिन कुछ लोग शायद सोचें कि बुद्धिमान उपदेशक की बातें तो हौसला बढ़ाने के बजाय किसी को भी निराश कर सकती हैं, चाहे वह जवान हो या बूढ़ा, क्योंकि “उपदेशक कहता है, सब व्यर्थ ही व्यर्थ; सब कुछ व्यर्थ है।” (सभोपदेशक १२:८) लेकिन इन शब्दों का मतलब यह है कि अगर एक इंसान जवानी में महान सृजनहार को याद न करे और उसकी सेवा किए बगैर सारी ज़िंदगी गुज़ारकर बुढ़ापे का मुँह देखे तो उसके लिए इससे व्यर्थ और कोई बात हो ही नहीं सकती। ऐसे इंसान की ज़िंदगी व्यर्थ ही व्यर्थ है। मरने से पहले उसने शैतान की इस बुरी दुनिया में भले ही धन-दौलत, इज़्ज़त और शोहरत हासिल कर ली हो लेकिन उसके लिए हर चीज़ व्यर्थ होगी।—१ यूहन्ना ५:१९.
४. हम क्यों कह सकते हैं कि यहोवा की सेवा करनेवालों के लिए सब कुछ व्यर्थ नहीं है?
४ लेकिन जो यहोवा की सेवा वफादारी से करते हैं उनके लिए सब कुछ व्यर्थ नहीं होता क्योंकि वे अपना धन स्वर्ग में जमा करते हैं। (मत्ती ६:१९, २०) वे हमेशा परमेश्वर की सेवा में मशरूफ रहते हैं और बेशक उनकी मेहनत बेकार नहीं जाती। (१ कुरिन्थियों १५:५८) लेकिन सवाल यह है कि अगर हमने अपनी ज़िंदगी यहोवा को समर्पित कर दी है तो क्या हम उस ज़िम्मेदारी को पूरा कर रहे हैं, जो यहोवा ने इन अंतिम दिनों में करने के लिए हमें सौंपी है? (२ तीमुथियुस ३:१) और क्या हमारे और हमारे पड़ोसियों के जीने के तरीके में वाकई फर्क है? हमारे पड़ोसी भी शायद अपने-अपने धर्म के मुताबिक उपासना करते हों, वे शायद बहुत धार्मिक हों और इसलिए बराबर मंदिर-मस्जिद जाते हों और धर्म के सभी रस्मों-रिवाजों को बड़ी वफादारी से निभातें हों। लेकिन हममें और उनमें फर्क यह है कि वे हमारी तरह सुसमाचार का प्रचार नहीं करते हैं। साथ ही उन्हें यह नहीं मालूम कि हम “अन्त समय” में जी रहे हैं, ना ही उन्हें एहसास है कि हम किस मोड़ से गुज़र रहे हैं।—दानिय्येल १२:४.
५. अगर हम अपना सारा वक्त ज़िंदगी की मामूली बातों में ही लगा रहे हैं तो हमें क्या करने की ज़रूरत है?
५ यीशु मसीह ने आज के इस बुरे समय के बारे में कहा था: “जैसे नूह के दिन थे, वैसा ही मनुष्य के पुत्र का आना भी होगा। क्योंकि जैसे जल-प्रलय से पहिले के दिनों में, जिस दिन तक कि नूह जहाज पर न चढ़ा, उस दिन तक लोग खाते-पीते थे, और उन में ब्याह शादी होती थी। और जब तक जल-प्रलय आकर उन सब को बहा न ले गया, तब तक उन को कुछ भी मालूम न पड़ा; वैसे ही मनुष्य के पुत्र का आना भी होगा।” (मत्ती २४:३७-३९) यूँ तो खाना-पीना अपने आप में गलत नहीं, वैसे ही शादी भी आखिर परमेश्वर का किया हुआ एक इंतज़ाम है। (उत्पत्ति २:२०-२४) लेकिन अगर हम अपना सारा वक्त इन्हीं बातों के पीछे बरबाद कर रहे हैं तो क्यों न इस बारे में दोबारा सोचने और ज़िंदगी में बदलाव करने के लिए यहोवा से प्रार्थना करें और उससे मदद माँगे? यहोवा हमारी मदद करेगा ताकि हम उसकी सेवा को अपनी ज़िंदगी में सबसे पहला स्थान दे पाएँ। इस तरह हम, जो सही है उसे करते हुए यहोवा के प्रति अपने फर्ज़ को पूरा कर सकेंगे।—मत्ती ६:३३; रोमियों १२:१२; २ कुरिन्थियों १३:७.
समर्पण और परमेश्वर के प्रति हमारा सम्पूर्ण कर्त्तव्य
६. बपतिस्मा पाए हुए कुछ लोग किस तरह परमेश्वर के प्रति अपने कर्त्तव्य को पूरा करने से चूक रहे हैं?
६ बपतिस्मा पाए हुए कुछ मसीही भूल गए हैं कि उन्होंने यहोवा को अपनी ज़िंदगी समर्पित करते वक्त वादा किया था कि वे उसकी सेवा करेंगे। इसलिए उन्हें इस बारे में दिल से प्रार्थना करने की ज़रूरत है। हर साल कहने को तो ३,००,००० से भी ज़्यादा लोग बपतिस्मा ले रहे हैं। लेकिन इस संख्या के मुताबिक यहोवा की सेवा जोश के साथ करनेवालों की संख्या में भी जो बढ़ोतरी होनी चाहिए वह नहीं हुई है क्योंकि बपतिस्मा पाए हुए कितने लोगों ने तो प्रचार करना ही छोड़ दिया है। दरअसल बपतिस्मा पाने से पहले ही एक व्यक्ति को प्रचार का काम पूरे जोश के साथ करना चाहिए। तब वह यीशु की इस आज्ञा से अच्छी तरह वाकिफ होगा जो उसने अपने सभी शिष्यों को दी थी: “तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से बपतिस्मा दो। और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ: और देखो, मैं जगत के अन्त तक सदैव तुम्हारे संग हूं।” (मत्ती २८:१९, २०) अगर हमारे सामने कोई ऐसी समस्या या कोई बड़ी बीमारी है जिसका हल हमारे हाथ में नहीं है तो यह हमारी मजबूरी है लेकिन अगर हमारी समस्या ऐसी है जिसे चाहे तो हम कोशिश करके पार कर सकते हैं, मगर फिर भी उसे एक बहाना बनाकर प्रचार करना छोड़ देते हैं, तो इसका मतलब होगा कि हम सृजनहार के प्रति अपने फर्ज़ को पूरा नहीं कर रहे हैं।—यशायाह ४३:१०-१२.
७. हमें परमेश्वर की उपासना करने के लिए क्यों एक-साथ इकट्ठा होना चाहिए?
७ पुराने ज़माने में इस्राएल जाति परमेश्वर को समर्पित थी और वह व्यवस्था वाचा के अधीन थी इसलिए इस्राएलियों को यहोवा की कुछ माँगों को पूरा करने की ज़रूरत थी। मिसाल के तौर पर, सभी इस्राएली पुरुषों को साल में तीन बार पर्व मनाने के लिए एक-साथ हाज़िर होना पड़ता था और अगर कोई पुरुष जानबूझकर फसह के पर्व में हाज़िर नहीं होता तो उसे “नाश” किया जाता था। (गिनती ९:१३; लैव्यव्यवस्था २३:१-४३; व्यवस्थाविवरण १६:१६) इसके अलावा, सभी इस्राएलियों को भी परमेश्वर की उपासना के लिए एक-साथ हाज़िर होना था, चाहे वे स्त्री हो या पुरुष, बच्चे हों या बूढ़े। ऐसा करने पर ही वे परमेश्वर के समर्पित लोगों के तौर पर उसके प्रति अपने फर्ज़ को पूरा कर पाते। (व्यवस्थाविवरण ३१:१०-१३) व्यवस्था में कहीं भी ऐसा नहीं लिखा था कि ‘अगर हो सके तो एक-साथ हाज़िर हो जाना।’ इस बात को मद्येनज़र रखते हुए हम कह सकते हैं कि आज जो यहोवा को समर्पित हैं, उनके लिए पौलुस के ये शब्द बहुत ही मायने रखते हैं: “प्रेम, और भले कामों में उस्काने के लिये एक दूसरे की चिन्ता किया करें। और एक दूसरे के साथ इकट्ठा होना न छोड़ें, जैसे कि कितनों की रीति है, पर एक दूसरे को समझाते रहें; और ज्यों ज्यों उस दिन को निकट आते देखो, त्यों त्यों और भी अधिक यह किया करो।” (इब्रानियों १०:२४, २५) जी हाँ, हर मीटिंग में अपने भाई-बहनों के साथ इकट्ठा होना परमेश्वर के प्रति समर्पित मसीहियों का एक फर्ज़ है।
सोच-समझकर फैसले कीजिए!
८. समर्पित जवान मसीहियों को अपनी पवित्र सेवा के बारे में प्रार्थना करके क्यों अच्छी तरह विचार करना चाहिए?
८ शायद आप जवान हैं और आपने अपना जीवन यहोवा को समर्पित किया है। अगर आप अपनी ज़िंदगी में राज्य के काम को पहला स्थान देंगे तो आपको कई आशीषें मिलेंगी। (नीतिवचन १०:२२) अगर आप प्रार्थना के ज़रिए परमेश्वर से मदद माँगेंगे और सोच-समझकर योजना बनाएँगे तो आप कम-से-कम जवानी के चंद साल पूरे समय की सेवा कर पाएँगे। यह आपके लिए महान सृजनहार को याद करने का एक बढ़िया तरीका होगा। अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो हो सकता है कि आप अपना ज़्यादातर समय और ध्यान, धन-दौलत कमाने पर लगा दें। दुनिया के ज़्यादातर लोगों की तरह शायद आप कच्ची उम्र में ही शादी कर बैठें और फिर घर-गृहस्थी बसाने के चक्कर में भारी कर्ज़ में फँस जाएँ। और ऐसे में आपकी आधी ज़िंदगी तो बस पैसा कमाने में ही निकल जाएगी। अगर आपके बच्चे होंगे तो आपको कई सालों तक उनकी परवरिश करने की ज़िम्मेदारी उठानी पड़ेगी। (१ तीमुथियुस ५:८) हाँ, हो सकता है कि ये सारी ज़िम्मेदारियाँ उठाते हुए भी आप अपने महान सृजनहार को न भूलें। लेकिन क्या इसमें अक्लमंदी नहीं होगी कि आप अभी से फैसला करें कि आगे चलकर आपको क्या करना है, जिससे बाद में आपको पछताना नहीं पड़ेगा कि काश मैनें अपनी जवानी के साल पूरी तरह यहोवा की सेवा में बिताए होते! तो क्यों न अभी से आनेवाले कल के बारे में प्रार्थना करके सोच-समझकर फैसला करें ताकि आप अपनी जवानी में यहोवा की पवित्र सेवा करके खुशी पाएँ?
९. ऐसे भाइयों के लिए अब भी क्या करना मुमकिन है जो पहले कलीसिया में काफी ज़िम्मेदारियाँ निभाते थे लेकिन अब बूढ़े हो चुके हैं?
९ आइए हम एक और मामले पर गौर करें। मान लीजिए, एक भाई जो कभी ‘परमेश्वर के झुंड’ की रखवाली करता था। (१ पतरस ५:२, ३) किसी वज़ह से उसने खुद उस ज़िम्मेदारी के पद को छोड़ दिया। और अब वह बूढ़ा हो चुका है इसलिए परमेश्वर की सेवा करना उसके लिए और भी मुश्किल हो। लेकिन क्या अब भी वह फिर से कलीसिया में ज़िम्मेदारियाँ पाने के लिए आगे बढ़ सकता है? जी हाँ, ज़रूर, क्योंकि जब एक ऐसा बुज़ुर्ग भाई कलीसिया की रखवाली करेगा तो कलीसिया को बहुत फायदा होगा। इतना ही नहीं, उसके दोस्तों और परिवार को भी यह देखकर कितनी खुशी होगी कि वह परमेश्वर की सेवा और ज़्यादा कर रहा है। (रोमियों १४:७, ८) सबसे खुशी की बात तो यह है कि यहोवा अपने सेवकों के कामों को कभी नहीं भूलता। (इब्रानियों ६:१०-१२) लेकिन अपने सृजनहार को याद रखने में कौन-सी बात हमारी मदद कर सकती है?
अपने महान सृजनहार को याद रखने में मदद
१०. हम क्यों कह सकते हैं कि महान सृजनहार को याद करने के मामले में सही-सही हिदायतें देने में उपदेशक एक काबिल आदमी था?
१० अपने महान सृजनहार को याद रखने के लिए ज़रूरी हिदायतें देने में उपदेशक सचमुच एक काबिल आदमी था। जब उसने मन लगाकर यहोवा से प्रार्थना की तो यहोवा ने उसे ऐसी बुद्धि दी जो किसी इंसान के पास नहीं थी। (१ राजा ३:६-१२) फिर सुलैमान ने इंसान की ज़िंदगी के बारे में काफी खोज-बीन की। उसने जो भी पता किया उसे लिख डालने के लिए परमेश्वर ने उसे प्रेरित किया ताकि उसकी बातें पढ़कर हर कोई फायदा उठा सके। उपदेशक ने लिखा: “उपदेशक जो बुद्धिमान था, वह प्रजा को ज्ञान भी सिखाता रहा, और ध्यान लगाकर और पूछपाछ करके बहुत से नीतिवचन क्रम से रखता था। उपदेशक ने मनभावने शब्द खोजे और सीधाई से ये सच्ची बातें लिख दीं।”—सभोपदेशक १२:९, १०.
११. हमें सुलैमान की सलाह क्यों माननी चाहिए?
११ इस आयत को यूनानी सेप्टुअजॆंट बाइबल में यूँ कहा गया है: “प्रचारक [उपदेशक] बुद्धिमान था; और उसने सच्चाई की बातों को क्रमानुसार और सुंदर-सुंदर शब्दों में लिखने के लिए काफी मेहनत की ताकि लोग उसके दृष्टांतों से सीखकर बुद्धि पा सकें।” (द सेप्टुअजॆंट बाइबल जिसे चार्ल्स थॉम्सन ने अनुवाद किया था) सुलैमान ने बहुत ही दिलचस्प और फायदेमंद विषयों पर सलाह दी और बड़े ही सुंदर शब्दों का इस्तेमाल किया ताकि उसकी बातें लोगों के मन में बैठ जाएँ। उसकी जो भी बातें हम बाइबल में पढ़ते हैं वे परमेश्वर की पवित्र आत्मा की प्रेरणा से लिखी गई थीं। इसलिए हम बेझिझक उसकी सलाह पर अमल कर सकते हैं।—२ तीमुथियुस ३:१६, १७.
१२. सभोपदेशक १२:११, १२ में कहे गए सुलैमान के वचनों को आप अपने शब्दों में कैसे समझाएँगे?
१२ सुलैमान के दिनों में आज की तरह छपाईखाने नहीं थे मगर फिर भी उन दिनों किताबों की कोई कमी नहीं थी। लेकिन उन दुनियावी किताबों के बारे में कैसा नज़रिया रखना सही था? सुलैमान ने कहा: “बुद्धिमानों के वचन पैनों के समान होते हैं, और सभाओं के प्रधानों के वचन गाड़ी हुई कीलों के समान हैं, क्योंकि एक ही चरवाहे की ओर से मिलते हैं। हे मेरे पुत्र, इन्हीं से चौकसी सीख। बहुत पुस्तकों की रचना का अन्त नहीं होता, और बहुत पढ़ना देह को थका देता है।—सभोपदेशक १२:११, १२.
१३. जिन लोगों में परमेश्वर की बुद्धि होती है, वे किस तरह पैनों की तरह होते हैं और “गाड़ी हुई कीलों” के समान कौन होते हैं?
१३ जिन लोगों के पास परमेश्वर की बुद्धि होती है उनकी बातें तेज़ धार या पैने की तरह होती हैं। वह कैसे? जब लोग उनकी बातों को पढ़ते या सुनते हैं तो वे उनके दिल को छू जाती हैं कि वे उनकी बुद्धि भरी बातों के मुताबिक काम भी करें। और जो सच्ची बुद्धि के “वचनों” और अच्छी बातों पर ध्यान लगाए रहते हैं, वे मज़बूती से ठोंकी गई “कीलों” की तरह दृढ़ बने रहते हैं। और इसकी वज़ह यह हो सकती है कि ऐसे लोगों में यहोवा की बुद्धि होती है और इसलिए जो उनकी बातें पढ़ते और सुनते हैं वे भी दृढ़ बन जाते हैं। अगर आप परमेश्वर का भय रखनेवाले माता-पिता हैं तो क्या यह ज़रूरी नहीं कि आप ऐसी बुद्धि की बातें अपने बच्चों के दिलों-दिमाग में बैठाने के लिए जी-जान से कोशिश करें?—व्यवस्थाविवरण ६:४-९.
१४. (क) किस तरह की किताबों को “बहुत पढ़ना” ठीक नहीं है? (ख) किन किताबों को हमें ज़्यादा अहमियत देनी चाहिए और क्यों?
१४ लेकिन सुलैमान ने दुनियावी किताबों के बारे में ऐसा क्यों कहा? क्योंकि ये किताबें यहोवा के वचन, बाइबल से बिलकुल अलग हैं और इनमें सिर्फ इंसानों के सोच-विचार होते हैं। और उनकी ज़्यादातर बातें शैतान के विचारों से मिलती-जुलती हैं। (२ कुरिन्थियों ४:४) इसलिए दुनिया की ऐसी किताबों को ‘बहुत पढ़ने’ से कोई खास फायदा नहीं होता। सच तो यह है कि दुनिया की ज़्यादातर किताबें हमें आध्यात्मिक रूप से नुकसान पहुँचा सकती हैं। इसलिए आइए, हम सुलैमान की तरह परमेश्वर के वचन पर मनन करें कि उसमें जीवन के बारे में क्या बताया गया है। अगर हम ऐसा करेंगे तो यहोवा पर हमारा विश्वास मज़बूत होगा और हम उसके और करीब आएँगे। मगर दूसरी किताबों को हद से ज़्यादा पढ़ना हमें थका सकता है। खासकर उन किताबों को पढ़ना थकाऊ हो सकता है, जिनमें दुनियावी सोच-विचार होते हैं, जो परमेश्वर की बुद्धि के खिलाफ है। ऐसी किताबें हमें नुकसान ही पहुँचाएँगी क्योंकि ये परमेश्वर और उसके उद्देश्यों पर से हमारा विश्वास तोड़ सकती हैं। इसलिए आइए हम हमेशा याद रखें कि सुलैमान के दिनों और हमारे दिनों में भी वे ही किताबें फायदेमंद हैं जिनमें “एक ही चरवाहे” यानी यहोवा परमेश्वर की बुद्धि की बातें बताई गई हैं। यहोवा ने हमें ६६ किताबों से बनी बाइबल दी है और हमें इसी पर सबसे ज़्यादा ध्यान देना चाहिए। बाइबल और ‘विश्वासयोग्य दास’ से मिलनेवाली किताबें ही हमें “परमेश्वर का ज्ञान” देती हैं—नीतिवचन २:१-६.
परमेश्वर के प्रति हमारा सम्पूर्ण कर्त्तव्य
१५. (क) सुलैमान ने जब “मनुष्य का सम्पूर्ण कर्त्तव्य” कहा तो उसके कहने का क्या मतलब था? (ख) परमेश्वर के प्रति अपना पूरा कर्त्तव्य निभाने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
१५ सुलैमान ने इंसान की ज़िंदगी के बारे में काफी खोजबीन की थी और आखिर में उसका निचोड़ बताते हुए उसने कहा: “सब कुछ सुना गया; अन्त की बात यह है कि परमेश्वर का भय मान और उसकी आज्ञाओं का पालन कर; क्योंकि मनुष्य का सम्पूर्ण कर्त्तव्य यही है। क्योंकि परमेश्वर सब कामों और सब गुप्त बातों का, चाहे वे भली हों या बुरी, न्याय करेगा।” (सभोपदेशक १२:१३, १४) अपने महान सृजनहार के लिए अगर हमारे मन में भय और श्रद्धा होगी तो हम और शायद हमारा परिवार ऐसी ज़िन्दगी नहीं जीएँगे जो आगे चलकर हमें और हमारे परिवार को भारी मुसीबतों में डाल सकती है। परमेश्वर का भय पवित्र होता है जो बुद्धि और ज्ञान पाने के लिए बहुत ज़रूरी है। (भजन १९:९; नीतिवचन १:७) अगर हम परमेश्वर के वचन को गहराई से समझेंगे और ज़िंदगी की हर बात में उसकी सलाह मानेंगे तो हम परमेश्वर के प्रति अपना “सम्पूर्ण कर्त्तव्य” निभा रहे होंगे। और हाँ, सम्पूर्ण कर्त्तव्य निभाने का मतलब यह नहीं है कि हमें कर्त्तव्यों की एक लंबी लिस्ट तैयार करनी है। लेकिन इसका मतलब यह है कि हम हमेशा परमेश्वर के बताए तरीके से काम करें और अपनी समस्याओं को हल करने के लिए बाइबल से सलाह-मशविरा करें।
१६. जहाँ तक न्याय का सवाल है, परमेश्वर क्या करेगा?
१६ हम यह कभी न भूलें कि हमारे महान सृजनहार की नज़रों से कोई भी चीज़ बच नहीं सकती। (नीतिवचन १५:३) वह ‘सब कामों का न्याय करेगा।’ जी हाँ, परमप्रधान परमेश्वर सभी बातों का इंसाफ करेगा, उन बातों का भी जो इंसानों को नज़र नहीं आती। इस बात को याद रखने से हमें पमरेश्वर की आज्ञाओं को मानने की प्रेरणा मिल सकती है। लेकिन परमेश्वर की आज्ञाओं को मानने के लिए सबसे बड़ी वज़ह होनी चाहिए, यहोवा के लिए प्रेम। और इसीलिए प्रेरित यूहन्ना ने लिखा: “परमेश्वर का प्रेम यह है, कि हम उस की आज्ञाओं को मानें; और उस की आज्ञाएं कठिन नहीं।” (१ यूहन्ना ५:३) परमेश्वर की आज्ञाओं को मानना न सिर्फ सही है बल्कि अक्लमंदी भी है क्योंकि उनको मानने से हमेशा-हमेशा के लिए हमारा भला होगा। जो महान सृजनहार से प्यार करते हैं उनके लिए उसकी आज्ञाएँ मानना कोई बोझ नहीं है। उन्हें तो ऐसा करने से बहुत खुशी मिलती है।
अपना सम्पूर्ण कर्त्तव्य निभाइए
१७. अगर हम परमेश्वर के प्रति सचमुच अपना सम्पूर्ण कर्त्तव्य निभाना चाहते हैं तो हमें क्या करना होगा?
१७ अगर हम अक्लमंद हैं और सचमुच परमेश्वर के प्रति अपना सम्पूर्ण कर्त्तव्य निभाना चाहते हैं, तो हम न सिर्फ उसकी आज्ञाओं को मानेंगे बल्कि यहोवा के लिए हमारे दिल में भय भी होगा और हम ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जिससे वह नाराज़ हो। दरअसल, “बुद्धि का मूल यहोवा का भय है” और जो उसकी आज्ञा मानते हैं उनकी “बुद्धि अच्छी होती है।” (भजन १११:१०; नीतिवचन १:७) इसलिए आइए हम सभी बातों में यहोवा की आज्ञा मानें क्योंकि ऐसा करने में ही समझदारी है। और ऐसा करना खासकर आज बहुत ज़रूरी है क्योंकि यीशु मसीह को परमेश्वर ने राजा और न्यायी नियुक्त किया है और उसके न्याय का दिन बहुत जल्द आनेवाला है।—मत्ती २४:३; २५:३१, ३२.
१८. अगर हम यहोवा परमेश्वर के प्रति अपना सम्पूर्ण कर्त्तव्य निभाएँगे तो हमें कौन-सी आशीष मिलेगी?
१८ आज परमेश्वर हम में से हरेक का मुआयना कर रहा है। वह देख रहा है कि क्या हमारा मन आध्यात्मिक बातों पर लगा है या हम दुनिया के रंग में इतने डूब चुके हैं कि परमेश्वर के साथ हमारा रिश्ता टूटने पर है? (१ कुरिन्थियों २:१०-१६; १ यूहन्ना २:१५-१७) चाहे हम बूढ़े हों या जवान, आइए हम सब अपने महान सृजनहार को खुश करने की पूरी कोशिश करें। अगर हम यहोवा की आज्ञाओं को मानेंगे तो हम इस पुरानी दुनिया की बेकार चीज़ों पर मन नहीं लगाएँगे क्योंकि यह जल्द ही नाश होने पर है। तब हम यकीन कर सकते हैं कि परमेश्वर के वादे के मुताबिक हमें नई दुनिया में हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी। (२ पतरस ३:१३) परमेश्वर के प्रति अपना सम्पूर्ण कर्त्तव्य निभानेवालों का भविष्य कितना उज्जवल होगा!
आपका जवाब क्या होगा?
◻ आप क्यों कह सकते हैं कि सबकुछ व्यर्थ नहीं है?
◻ जवान मसीहियों को अपनी पवित्र सेवा के बारे में क्यों प्रार्थना करके विचार करना चाहिए?
◻ किस तरह की किताबों को “बहुत पढ़ना” बेकार होगा?
◻ “मनुष्य का सम्पूर्ण कर्त्तव्य” क्या है?
[पेज 20 पर तसवीर]
जो यहोवा की सेवा वफादारी से करते हैं उनके लिए सब कुछ व्यर्थ नहीं होता
[पेज 23 पर तसवीर]
बाइबल दुनिया की ज़्यादातर किताबों की तरह नहीं है बल्कि यह हमें तरो-ताज़ा करती है और हमारे लिए बहुत फायदेमंद है