“शान्ति का समय” नज़दीक है!
“प्रत्येक बात के लिए समय नियुक्त है, . . . युद्ध का समय, तथा शान्ति का समय।”—सभोपदेशक ३:१, ८, NHT.
१. युद्ध और शांति के मामले में इस २०वीं सदी में क्या अजीब बात देखी गई है?
सारी दुनिया शांति के लिए तरसती है। और क्यों न तरसे? पूरे इतिहास में शांति की सबसे ज़्यादा कमी इसी सदी में रही है। लेकिन अजीब बात है कि शांति लाने की सबसे ज़्यादा कोशिशें भी इसी सदी में की गयी हैं। शांति लाने के लिए सन् १९२० में राष्ट्र संघ बनाया गया। सन् १९२८ में कॆलॉग-ब्रायंड शांति संधि की गयी। एक किताब में इस संधि के बारे में कहा गया था कि यह “पहले विश्व युद्ध के बाद शांति बनाए रखने के लिए सबसे बेहतरीन शुरुआत” है। इसे “दुनिया के लगभग सभी देशों ने” कबूल किया था और वे “पूरी दुनिया में शांति लाने के लिए युद्ध बंद कर देने के लिए राज़ी हुए थे।” और जब राष्ट्र संघ ठप्प पड़ गया तो कुछ ही साल बाद उसकी जगह पर सन् १९४५ में संयुक्त राष्ट्र संगठन खड़ा हो गया।
२. संयुक्त राष्ट्र का उद्देश्य क्या है, और उसे किस हद तक कामयाबी मिली है?
२ राष्ट्र संघ को दुनिया भर में शांति लाने के लिए बनाया गया था। संयुक्त राष्ट्र का भी यही उद्देश्य है। लेकिन कामयाबी ने अभी तक पूरी तरह उसके कदम नहीं चूमे हैं। माना कि आज पहले दो विश्व युद्ध जितने बड़े युद्ध तो नहीं हो रहे। लेकिन ऐसी कई छोटी-मोटी लड़ाइयों का सिलसिला जारी है जिन्होंने सैकड़ों-हज़ारों लोगों से उनका चैन, उनकी शांति, उनका घर उनका माल सबकुछ छीन लिया है यहाँ तक उनकी जानें भी ली हैं। तो ऐसे में क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि संयुक्त राष्ट्र इस २१वीं सदी में “शान्ति का समय” लाएगा? हरगिज़ नहीं!
सच्ची शांति का आधार
३. अगर कोई किसी से नफरत करता है तो उनमें सच्ची शांति क्यों नहीं हो सकती?
३ एक-दूसरे को बरदाश्त कर लेने से ही लोगों में या देशों में शांति नहीं आ सकती। क्यों? ज़रा सोचिए कि अगर कोई किसी से नफरत करता है, तो क्या वह उसके साथ शांति से रह सकेगा? जी नहीं। १ यूहन्ना ३:१५ में लिखा है, “जो कोई अपने भाई से बैर रखता है, वह हत्यारा है।” और अभी का इतिहास इस बात का गवाह है कि जब-जब लोगों ने एक-दूसरे से नफरत की है तब-तब उनमें लड़ाइयाँ और युद्ध ज़रूर हुए हैं।
४. शांति सिर्फ किन लोगों को मिल सकती है और क्यों?
४ सच्ची शांति सिर्फ यहोवा परमेश्वर ही दे सकता है क्योंकि वही “शान्ति का परमेश्वर” है। इसलिए शांति सिर्फ उन्हीं लोगों को मिल सकती है जो यहोवा परमेश्वर से प्रेम करते हैं और उसके धर्मी सिद्धांतों को मानते हैं। इससे पता चलता है कि यहोवा परमेश्वर सभी लोगों को शांति की आशीष नहीं देता। “दुष्टों के लिये शान्ति नहीं है, मेरे परमेश्वर का यही वचन है।” क्यों? क्योंकि दुष्ट लोग परमेश्वर की पवित्र शक्ति के ज़रिए, दिखाए गए मार्ग पर नहीं चलते, इसीलिए उनमें शांति नहीं है जो परमेश्वर की पवित्र शक्ति का एक फल है।—रोमियों १५:३३; यशायाह ५७:२१; गलतियों ५:२२.
५. सच्चे मसीही क्या करने की सपने में भी नहीं सोच सकते?
५ इस २०वीं सदी में अपने-आप को मसीही कहनेवाले लोगों ने अकसर दूसरों के साथ युद्ध किया है। लेकिन सच्चे मसीही सपने में भी ऐसा करने की नहीं सोच सकते। (याकूब ४:१-४) माना कि ये सच्चे मसीही परमेश्वर के बारे में सिखायी गयी गलत शिक्षाओं के खिलाफ ज़रूर लड़ते हैं। मगर यह लड़ाई दूसरों को नुकसान पहुँचाने के लिए नहीं, बल्कि उनकी मदद करने के लिए है। धर्म के नाम पर दूसरों को सताना या देशभक्ति के नाम पर किसी पर हमला करना सच्ची मसीहियत के सिद्धांत के खिलाफ है। पौलुस ने रोम के मसीहियों से कहा था: “जहां तक हो सके, तुम अपने भरसक सब मनुष्यों के साथ मेल मिलाप रखो।”—रोमियों १२:१७-१९; २ तीमुथियुस २:२४, २५.
६. आज सच्ची शांति सिर्फ कहाँ पायी जा सकती है?
६ आज यहोवा के उपासक पूरी दुनिया में फैले हुए हैं और सिर्फ उन्हीं के बीच परमेश्वर की सच्ची शांति है। (भजन ११९:१६५; यशायाह ४८:१८) अलग-अलग सरहदों में बँटे देशों में रहने पर भी उनमें एकता है, क्योंकि वे किसी भी राजनैतिक दल का पक्ष नहीं लेते। (यूहन्ना १५:१९; १७:१४) धर्म के नाम पर उनमें फूट नहीं है। वे लोग “एक ही मन और एक ही मत होकर मिले” हुए हैं, इसलिए कोई भी उनकी शांति नहीं छीन सकता। (१ कुरिन्थियों १:१०) यहोवा के साक्षियों के बीच ऐसी शांति आज चमत्कार नहीं तो और क्या है? यहोवा ने जैसे वादा किया था, वैसे ही किया है: “मैं शान्ति को तेरा शासक और धार्मिकता को तेरा प्रशासक ठहराऊंगा।”—यशायाह ६०:१७, NHT; इब्रानियों ८:१०.
यह “युद्ध का समय” क्यों है?
७, ८. (क)हालाँकि यहोवा के साक्षी शांतिप्रिय लोग हैं, लेकिन वे मौजूदा समय को क्या समझते हैं? (ख) मसीही लड़ाई का सबसे अहम हथियार कौन-सा है?
७ हालाँकि यहोवा के साक्षी शांतिप्रिय लोग हैं, लेकिन वे इस समय को खासकर “युद्ध का समय” समझते हैं। वे भी एक लड़ाई लड़ रहे हैं। मगर वे सचमुच की लड़ाई नहीं लड़ते, क्योंकि वे दूसरों को डरा-धमकाकर बाइबल का संदेश सुनने पर मज़बूर नहीं करते हैं। ऐसा करना तो परमेश्वर के इस न्योते के बिलकुल खिलाफ होगा: “जो कोई चाहे वह जीवन का जल सेंतमेंत ले।” (तिरछे टाइप हमारे।) (प्रकाशितवाक्य २२:१७) वे लोगों को पकड़-पकड़ कर उनका धर्म नहीं बदलते! यहोवा के साक्षी सिर्फ आध्यात्मिक लड़ाई लड़ते हैं। पौलुस ने लिखा: “हमारी लड़ाई के हथियार शारीरिक नहीं, पर गढ़ों को ढा देने के लिये परमेश्वर के द्वारा सामर्थी हैं।”—२ कुरिन्थियों १०:४; १ तीमुथियुस १:१८.
८ ‘हमारी लड़ाई के हथियारों’ में सबसे अहम है “आत्मा की तलवार जो परमेश्वर का वचन है।” (इफिसियों ६:१७) यह तलवार बहुत ही मज़बूत और शक्तिशाली है। “परमेश्वर का वचन जीवित, और प्रबल, और हर एक दोधारी तलवार से भी बहुत चोखा है, और जीव, और आत्मा को, और गांठ गांठ, और गूदे गूदे को अलग करके, वार पार छेदता है; और मन की भावनाओं और विचारों को जांचता है।” (इब्रानियों ४:१२) मसीही अपनी इस तलवार से “कल्पनाओं को, और हर एक ऊंची बात को, जो परमेश्वर की पहिचान के विरोध में उठती है” काट सकते हैं। (२ कुरिन्थियों १०:५) इसकी मदद से वे झूठी शिक्षाओं का, गलत कामों का और ऐसे तत्वज्ञानों का परदाफाश कर सकते हैं जो परमेश्वर की नहीं, बल्कि मनुष्य की बुद्धि की उपज हैं।—१ कुरिन्थियों २:६-८; इफिसियों ६:११-१३.
९. क्यों हमें अपने पापी शरीर के खिलाफ लड़ाई में कभी हार नहीं माननी चाहिए?
९ मसीही एक और किस्म की आध्यात्मिक लड़ाई लड़ते हैं, और वह है पापी शरीर के खिलाफ। पौलुस को भी ऐसी ही लड़ाई लड़नी पड़ी थी। उसने कहा, “मैं अपनी देह को मारता कूटता, और वश में लाता हूं; ऐसा न हो कि औरों को प्रचार करके, मैं आप ही किसी रीति से निकम्मा ठहरूं।” (१ कुरिन्थियों ९:२७) कुलुस्से के मसीहियों से कहा गया था कि “अपने उन अंगों को मार डालो, जो पृथ्वी पर हैं, अर्थात् व्यभिचार, अशुद्धता, दुष्कामना, बुरी लालसा और लोभ को जो मूर्त्ति पूजा के बराबर है।” (कुलुस्सियों ३:५) बाइबल के लेखक, यहूदा ने मसीहियों से यह कहा कि “तुम उस विश्वास के लिए यत्नपूर्वक संघर्ष करते रहो जो पवित्र लोगों को एक ही बार सदा के लिए सौंपा गया था।” (यहूदा ३, NHT) लेकिन हमें ऐसा क्यों करना चाहिए? पौलुस खुद इसका जवाब देता है: “यदि तुम शरीर के अनुसार दिन काटोगे, तो मरोगे, यदि आत्मा से देह की क्रियाओं को मारोगे, तो जीवित रहोगे।” (रोमियों ८:१३) सो, इससे यह बात साफ होती है कि हमें अपने शरीर की अभिलाषाओं के खिलाफ लड़ाई में कभी हार नहीं माननी चाहिए।
१०. सन् १९१४ में क्या हुआ और जल्द ही क्या होगा?
१० इस समय को युद्ध का समय समझने का एक और कारण है कि ‘परमेश्वर के पलटा लेने का दिन’ बहुत ही नज़दीक है। (यशायाह ६१:१, २) जब सन् १९१४ में यहोवा का नियुक्त समय शुरू हुआ, तब मसीहा के राज्य की शुरुआत हुई और मसीह को शैतान की व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई लड़ने का पूरा-पूरा अधिकार दिया गया। अब दुनिया की बागडोर परमेश्वर ने अपने हाथों में ले ली है और इंसानों का अपनी मन-मरज़ी से राज चलाने का समय खत्म हुआ। मगर परमेश्वर के मसीह के इस राज को स्वीकार करने के बजाय ज़्यादातर लोग उसे ठुकरा रहे हैं ठीक जैसे पहली सदी के ज़्यादातर लोगों ने किया था। (प्रेरितों २८:२७) इंसान उसके राज्य का विरोध कर रहे हैं, इसलिए मसीह इस विरोध के होते हुए ‘अपने शत्रुओं को अपने आधीन करेगा।’ (भजन ११०:२) और प्रकाशितवाक्य ६:२ में वादा किया गया है कि वह जल्द ही ‘और भी जय प्राप्त’ करता हुआ इसे पूरा करेगा। वह ऐसा कब करेगा? “सर्वशक्तिमान परमेश्वर के उस बड़े दिन की लड़ाई” के दौरान ‘जो इब्रानी में हर-मगिदोन कहलाती है।’—प्रकाशितवाक्य १६:१४, १६.
यह ‘बोलने का समय’ है
११. यहोवा ने क्यों बहुत ही धीरज से काम लिया है, लेकिन आखिर में क्या ज़रूर आएगा?
११ सन् १९१४ इंसान के इतिहास में एक बहुत ही निर्णायक मोड़ साबित हुआ। तब से ८५ साल बीत चुके हैं। यहोवा ने इंसान के साथ बहुत ही धीरज से काम लिया है। उसने अपने साक्षियों को बताया है कि वक्त बहुत कम है। करोड़ों लोगों की जान खतरे में है और उन्हें आगाह किया जाना है, क्योंकि यहोवा “नहीं चाहता, कि कोई नाश हो; बरन यह कि सब को मन फिराव का अवसर मिले।” (२ पतरस ३:९) यह नाश तो ज़रूर आएगा। क्योंकि जल्द ही, ‘प्रभु यीशु अपने सामर्थी दूतों के साथ प्रगट होगा’ और ऐसे लोगों से “पलटा लेगा” जो परमेश्वर के राज्य के संदेश को जानबूझकर ठुकराते हैं और “जो परमेश्वर को नहीं पहचानते, और हमारे प्रभु यीशु के सुसमाचार को नहीं मानते।”—२ थिस्सलुनीकियों १:६-९.
१२. (क) भारी क्लेश के शुरू होने के बारे में अटकलें लगाना क्यों बेकार है? (ख) यीशु ने भारी क्लेश के बारे में किस खतरे की चेतावनी दी?
१२ लेकिन यहोवा का यह धीरज का बाँध कब टूटेगा और “भारी क्लेश” कब शुरू होगा? इसके बारे में कोई भी अटकलें लगाना बेकार है। क्यों? क्योंकि यीशु ने साफ-साफ शब्दों में कहा: “उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता।” लेकिन उसने यह ज़रूर बताया कि हमें क्या करना चाहिए: “जागते रहो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारा प्रभु किस दिन आएगा। . . . तैयार रहो, क्योंकि जिस घड़ी के विषय में तुम सोचते भी नहीं हो, उसी घड़ी मनुष्य का पुत्र आ जाएगा।” (मत्ती २४:२१, ३६, ४२, ४४) अगर दूसरे शब्दों में कहें, तो इसका मतलब है कि हमें भारी क्लेश की शुरुआत को ध्यान में रखते हुए हर दिन दुनिया की घटना के बारे में सचेत रहना चाहिए। (१ थिस्सलुनीकियों ५:१-५) ऐसे वक्त पर यह सोचना कितना खतरनाक होगा कि अभी कुछ नहीं होनेवाला, हमें अभी ज़्यादा फिक्र नहीं करनी चाहिए, आराम की ज़िंदगी बिताने में क्या हर्ज़ है, आगे जो होगा देखा जाएगा। यीशु ने खबरदार किया था: “सावधान रहो, ऐसा न हो कि तुम्हारे मन खुमार और मतवालेपन, और इस जीवन की चिन्ताओं से सुस्त हो जाएं, और वह दिन तुम पर फन्दे की नाईं अचानक आ पड़े।” (लूका २१:३४, ३५) इसमें कोई शक नहीं कि यहोवा के जो “चार स्वर्गदूत” विनाश की “चारों हवाओं” को थामे हुए हैं, वे उन्हें हमेशा तक थामे नहीं रहेंगे।—प्रकाशितवाक्य ७:१-३.
१३. करीब साठ लाख से ज़्यादा लोग क्या जान गए हैं?
१३ लेखा लेने का दिन तेज़ी से नज़दीक आ रहा है, इसलिए ‘बोलने के समय’ के बारे में सुलैमान ने जो कहा, उसका ताल्लुक हमारे समय से है। (सभोपदेशक ३:७) यहोवा के साक्षी जान गए हैं कि आज वाकई ‘बोलने का समय’ है और इसलिए साठ लाख से ज़्यादा साक्षी जोश के साथ परमेश्वर के राज्य की महानता का बखान कर रहे हैं और उसके पलटा लेने के दिन की चेतावनी दे रहे हैं। और मसीह के पराक्रम के इस दिन में वे खुशी-खुशी खुद को अर्पण कर रहे हैं।—भजन ११०; १४५:१०-१२.
“शान्ति है” कहकर बहकानेवाले लोग
१४. सा.यु.पू. सातवीं सदी के दौरान कौन-से भविष्यवक्ता झूठे साबित हुए?
१४ सा.यु.पू. सातवीं सदी के दौरान, परमेश्वर के सच्चे भविष्यवक्ता यिर्मयाह और यहेजकेल ने यरूशलेम पर आनेवाले विनाश का संदेश सुनाया, क्योंकि वहाँ के लोगों ने परमेश्वर की आज्ञाओं को नज़रअंदाज़ कर दिया था और भ्रष्ट हो गए थे। मगर उस समय के बड़े-बड़े धर्मगुरुओं ने इन भविष्यवक्ताओं की बातों को झूठा ठहराने की कोशिश की। फिर भी ठीक जैसे परमेश्वर के भविष्यक्ताओं ने कहा था वह विनाश सा.यु.पू. ६०७ में आ गया। वे सारे झूठे धर्मगुरू ऐसे ‘मूढ़ भविष्यद्वक्ता’ साबित हुए जो ‘“शान्ति है”, कहकर [परमेश्वर की] प्रजा को बहका रहे थे, जब कि शान्ति नहीं थी।’—यहेजकेल १३:१-१६; यिर्मयाह ६:१४, १५; ८:८-१२.
१५. क्या आज भी ऐसे ही झूठे भविष्यवक्ता हैं? समझाइए।
१५ उन “मूढ़ भविष्यद्वक्ताओं” की तरह, आज के धर्मगुरू भी लोगों को परमेश्वर के आनेवाले विनाश की चेतावनी नहीं दे रहे। इसके बजाय वे आज के राजनैतिक दलों के बारे में तारीफ के पुल बाँधते हैं और कहते हैं कि सिर्फ वे ही हमें सच्ची शांति और सुरक्षा दे सकते हैं। वे सब, परमेश्वर से ज़्यादा इंसानों को खुश करने में लगे हुए हैं। इसलिए वे अपने पीछे चलनेवाली जनता से वही कहते हैं जो जनता सुनना पसंद करती है। वे उन्हें यह नहीं बताते कि परमेश्वर का राज्य शुरू हो चुका है और मसीह राजा जल्द ही पूरी तरह से जीत हासिल करेगा। (दानिय्येल २:४४; २ तीमुथियुस ४:३, ४; प्रकाशितवाक्य ६:२) वे भी झूठे भविष्यवक्ताओं की तरह पूरे यकीन के साथ यही कहते हैं कि ‘“शान्ति है,” जबकि शान्ति नहीं है।’ लेकिन जल्द ही उन्हें मुँह की खानी पड़ेगी जब वे उस परमेश्वर का क्रोध देखेंगे, जिसके बारे में उन्होंने गलत बातें फैलायी थीं और जिसके नाम पर उन्होंने न जाने कितने कलंक लगाए थे। पूरी दुनिया के झूठे धर्मों के धर्मगुरुओं को, जिन्हें बाइबल में एक बदचलन स्त्री कहा गया है, ज़बरदस्त धक्का लगेगा और तब उनकी चीख शांति की अपनी ही झूठी पुकार में दबकर रह जाएगी।—प्रकाशितवाक्य १८:७, ८.
१६. (क) यहोवा के साक्षियों का किस बात में रिकॉर्ड रहा है? (ख) वे उन लोगों से कैसे अलग हैं जो कहते हैं कि ‘“शान्ति है,” जबकि शांति नहीं है’?
१६ दुनिया के बड़े-बड़े नेता भले ही आखिर तक शांति के खोखले वादे क्यों न करते रहें लेकिन इससे, सच्ची शांति के बारे में परमेश्वर के वादे पर भरोसा रखनेवाले लोगों का विश्वास कभी नहीं डगमगाता। सौ से भी ज़्यादा सालों से यहोवा के साक्षियों का रिकॉर्ड रहा है कि वे परमेश्वर के वचन की वफादारी से पैरवी करते हैं, साहस से झूठे धर्मों का विरोध करते हैं और परमेश्वर के राज्य की दिल से हिमायत करते हैं। लोगों को शांति की मीठी-मीठी लोरी सुनाकर सुलाने के बजाय, वे लोगों को इस हकीकत से वाकिफ कराने की पूरी-पूरी कोशिश कर रहे हैं कि जागो, यह युद्ध का समय है।—यशायाह ५६:१०-१२; रोमियों १३:११, १२; १ थिस्सलुनीकियों ५:६.
यहोवा अपनी खामोशी तोड़ता है
१७. यहोवा जल्द ही अपनी चुप्पी तोड़ेगा, इसका मतलब क्या है?
१७ सुलैमान ने भी कहा: “परमेश्वर धर्मी और दुष्ट दोनों का न्याय करेगा, क्योंकि उसके यहां एक एक विषय . . . का समय है।” (सभोपदेशक ३:१७) जी हाँ, यहोवा ने झूठे धर्मों का और ‘यहोवा के और उसके अभिषिक्त के विरुद्ध [खड़े होनेवाले] पृथ्वी के राजाओं’ का न्याय करने के लिए एक समय ठहराया है। (भजन २:१-६; प्रकाशितवाक्य १६:१३-१६) उस वक्त परमेश्वर के ‘चुप’ रहने का समय खत्म हो जाएगा। (भजन ८३:१; यशायाह ६२:१; यिर्मयाह ४७:६, ७) उसने अपने दुश्मनों को प्यार की ज़बान में समझाने की लाख कोशिश की लेकिन अब वह यीशु मसीह के ज़रिए, जिसे उसने सिंहासन पर बिठाकर मसीह राजा बनाया है, अपने दुश्मनों के साथ उसी ज़बान में बात करेगा जो वे समझते हैं: “यहोवा वीर की नाई निकलेगा और योद्धा के समान अपनी जलन भड़काएगा, वह ऊंचे शब्द से ललकारेगा और अपने शत्रुओं पर जयवन्त होगा। बहुत काल से तो मैं चुप रहा और मौन साधे अपने को रोकता रहा; परन्तु अब जच्चा की नाईं चिल्लाऊंगा, मैं हांफ हांफकर सांस भरूंगा। पहाड़ों और पहाड़ियों को मैं सुखा डालूंगा और उनकी सब हरियाली झुलसा दूंगा; मैं नदियों को द्वीप कर दूंगा और तालों को सुखा डालूंगा। मैं अन्धों को एक मार्ग से ले चलूंगा जिसे वे नहीं जानते और उनको ऐसे पथों से चलाऊंगा जिन्हें वे नहीं जानते। उनके आगे मैं अन्धियारे को उजियाला करूंगा और टेढ़े मार्गों को सीधा करूंगा। मैं ऐसे ऐसे काम करूंगा और उनको न त्यागूंगा।” (तिरछे टाइप हमारे।)—यशायाह ४२:१३-१६.
१८. किस मामले में यहोवा के लोग जल्द ही ‘चुप रहेंगे’?
१८ जब अपने राज्य की खातिर यहोवा के “बोलने” की बारी आएगी, तब उसके लोगों को अपनी सफाई में कुछ भी कहने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। क्योंकि अब ‘चुप रहने’ की बारी उनकी होगी। परमेश्वर के प्राचीन सेवकों पर जो शब्द लागू हुए थे, अब वही शब्द इन पर भी लागू होंगे: “इस लड़ाई में तुम्हें लड़ना न होगा; हे यहूदा, और हे यरूशलेम, ठहरे रहना, और खड़े रहकर यहोवा की ओर से अपना बचाव देखना।”—२ इतिहास २०:१७.
१९. जल्द ही मसीह के महिमायुक्त भाई कौन-सा खास काम करेंगे?
१९ ये शैतान और उसके संगठन के लिए कितनी करारी हार होगी! और मसीह के महिमायुक्त भाई धर्म की खातिर लड़ाई लड़कर एक शानदार जीत हासिल करेंगे जो इस वादे के मुताबिक होगा: “शान्ति का परमेश्वर शैतान को तुम्हारे पांवों से शीघ्र कुचलवा देगा।” (रोमियों १६:२०) इस तरह जिस शांति के लिए लोग लंबे अरसे से तरसते आए हैं, वह आखिरकार हासिल होकर रहेगी।
२०. जल्द ही कौन-सा समय होगा?
२० यहोवा के उस महाप्रताप के दिन में बचकर छुटकारा पानेवाले लोगों के लिए ज़िंदगी कितनी शानदार होगी! उसके बाद जल्द ही पुराने ज़माने के वफादार स्त्री-पुरुष भी उनके साथ होंगे, क्योंकि उनके पुनरुत्थान का समय आ पहुँचेगा। मसीहा के शासन के हज़ार साल सही मायनो में “बोने का समय, . . . चंगा करने का भी समय; . . . हंसने का भी समय; . . . नाचने का भी समय . . . गले लगाने का समय, और . . . प्रेम करने का समय” होगा। और हाँ, यह हमेशा-हमेशा की “शान्ति का समय” भी होगा!—सभोपदेशक ३:१-८; भजन २९:११; ३७:११; ७२:७.
आप क्या जवाब देंगे?
◻ हमेशा-हमेशा की शांति किस आधार पर आ सकती है?
◻ यहोवा के साक्षी इस समय को “युद्ध का समय” क्यों समझते हैं?
◻ परमेश्वर के लोगों को कब ‘बोलना’ है और कब ‘चुप रहना’ है?
◻ यहोवा अपनी चुप्पी कब और कैसे तोड़ेगा?
[पेज 13 पर बक्स/तसवीरें]
यहोवा ने इन सब के लिए एक समय ठहराया है:
◻ गोग को उकसाना कि वे परमेश्वर के लोगों पर हमला करें।—यहेजकेल ३८:३, ४, १०-१२
◻ नेताओं के मन में डालना कि वे महा बाबुल का नाश करें।—प्रकाशितवाक्य १७:१५-१७; १९:२
◻ मेम्ने का विवाह।—प्रकाशितवाक्य १९:६, ७
◻ हर-मगिदोन की लड़ाई की शुरुआत करना।—प्रकाशितवाक्य १९:११-१६, १९-२१
◻ यीशु के हज़ार वर्ष का शासन शुरू करने के लिए शैतान को ज़ंजीरों से बांधना।—प्रकाशितवाक्य २०:१-३
ये सारी घटनाएँ उसी क्रम में लिखी गयी हैं जिस क्रम में बाइबल में इनका ज़िक्र किया गया है। हमें यकीन है कि ये पाँचों घटनाएँ उसी क्रम में घटेंगी जैसे यहोवा ने तय किया है और उसी समय पर घटेंगी जो उसने ठहराया है।
[पेज 15 पर तसवीरें]
मसीह के हज़ार वर्ष के शासन में सचमुच इन सब का समय होगा:
हंसने का . . .
गले लगाने का . . .
प्रेम करने का . . .
बोने का . . .
नाचने का . . .
बनाने का . . .