अध्ययन लेख 36
नेकी करने का इरादा पक्का कीजिए!
“सुखी हैं वे जो नेकी के भूखे-प्यासे हैं।”—मत्ती 5:6.
गीत 9 यहोवा हमारा राजा है!
एक झलकa
1. यूसुफ के साथ क्या हुआ? लेकिन उसने क्या किया?
यूसुफ पोतीफर के घर में काम करता था। एक बार पोतीफर बाहर गया हुआ था। तब उसकी पत्नी ने यूसुफ से कहा, “मेरे साथ सो।” उस वक्त कोई उसे नहीं देख रहा था। और वह जानता था कि अगर वह अपनी मालकिन की बात ना माने, तो वह उसका जीना मुश्किल कर देगी। फिर भी उसने साफ मना कर दिया। पोतीफर की पत्नी उसके पीछे पड़ी रही, लेकिन यूसुफ उसे मना करता रहा। वह ऐसा क्यों कर पाया? उसने कहा, “भला मैं इतना बड़ा दुष्ट काम करके परमेश्वर के खिलाफ पाप कैसे कर सकता हूँ?”—उत्प. 39:7-12.
2. यूसुफ को कैसे पता था कि व्यभिचार करना पाप है?
2 यूसुफ को कैसे पता था कि व्यभिचार करना यहोवा की नज़र में एक “दुष्ट काम” है? मूसा का कानून तो करीब 200 साल बाद दिया गया, जिसमें यह आज्ञा दी गयी थी: “तुम व्यभिचार न करना।” (निर्ग. 20:14) भले ही यूसुफ के पास कानून नहीं था, पर वह यहोवा को जानता था। उसे पता था कि यहोवा ने एक आदमी और एक औरत की शादी करवायी थी। इसलिए वह समझ गया होगा कि एक पति और पत्नी को ही आपस में संबंध रखने चाहिए। उसने यह भी सुना होगा कि जब दो मौकों पर उसकी परदादी सारा पर दो आदमियों ने नज़र डाली, तो यहोवा ने कैसे उसकी हिफाज़त की। उसकी दादी रिबका के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। और तब भी यहोवा ने उसे बचाया। (उत्प. 2:24; 12:14-20; 20:2-7; 26:6-11) इन सब बातों के बारे में सोचने से यूसुफ समझ गया होगा कि व्यभिचार करना यहोवा की नज़र में गलत है। वह यहोवा से प्यार करता था और वही करना चाहता था जो उसकी नज़र में सही है, इसलिए उसने यह गलत काम नहीं किया।
3. इस लेख में हम क्या जानेंगे?
3 आप भी ज़रूर अच्छे काम करना चाहते होंगे, ऐसे काम जो यहोवा की नज़र में सही हैं। लेकिन हम सब अपरिपूर्ण हैं और कभी-कभी दुनिया के लोगों की तरह सोचने लगते हैं, और इसलिए कई बार समझ नहीं पाते कि क्या अच्छा है और क्या बुरा। (यशा. 5:20; रोमि. 12:2) इस लेख में हम जानेंगे कि अच्छे या नेक काम करने का क्या मतलब है और ऐसे काम करने से क्या फायदा होता है। फिर हम ऐसी तीन बातों पर चर्चा करेंगे जिन्हें ध्यान में रखने से यहोवा के स्तरों को मानने का हमारा इरादा और भी पक्का हो जाएगा।
नेकी क्या होती है?
4. किन लोगों को नेक नहीं कहा जा सकता?
4 कुछ लोग लकीर के फकीर होते हैं। वे खुद को कुछ ज़्यादा ही धर्मी समझते हैं और किसी से ज़रा-सी गलती हुई नहीं कि उसका न्याय करने बैठ जाते हैं। भले ही वे खुद को बड़ा नेक समझते हों, पर यह नेकी नहीं होती। परमेश्वर को ऐसे लोग बिलकुल भी नहीं पसंद। यीशु को भी ऐसे लोग पसंद नहीं थे। जब वह धरती पर था, तो उसने धर्म-गुरुओं को फटकारा, क्योंकि वे खुद को बहुत धर्मी समझते थे और सही-गलत के बारे में उन्होंने अपने ही स्तर बना लिए थे। (सभो. 7:16; लूका 16:15) तो फिर नेकी क्या होती है?
5. (क) बाइबल के मुताबिक नेकी क्या होती है? (ख) एक नेक इंसान कैसा होता है?
5 सीधे शब्दों में कहें तो नेकी का मतलब है, वह करना जो यहोवा को सही लगता है। जब बाइबल लिखी गयी थी, तो उसमें नेकी के बारे में बताने के लिए जो शब्द इस्तेमाल किया गया था, अलग-अलग जगह उसका अनुवाद अलग-अलग तरीके से किया गया है। पर हर जगह उसका यही मतलब है कि यहोवा ने हमारे लिए जो स्तर ठहराए हैं, उनके मुताबिक जीना। जैसे एक जगह बाइबल में बताया गया है कि यहोवा चाहता था कि व्यापारी ऐसे बाट-पत्थर और नापने के बरतन इस्तेमाल करें जो “सही हों।” (व्यव. 25:15) यहाँ जिस इब्रानी शब्द का अनुवाद “सही” किया गया है, उसका मतलब “नेक” भी हो सकता है। इसलिए हम कह सकते हैं कि एक नेक इंसान ईमानदार होता है और सही तरीके से व्यापार करता है। एक नेक इंसान को अन्याय से भी नफरत होती है, वह चाहता है कि हर किसी के साथ न्याय हो। और कोई भी फैसला लेने से पहले वह सोचता है कि यहोवा क्या चाहता है, क्योंकि वह “उसे पूरी तरह खुश” करना चाहता है।—कुलु. 1:10.
6. यहोवा के स्तर क्यों हमेशा सही होते हैं? (यशायाह 55:8, 9)
6 यहोवा ना सिर्फ नेकी करता है, बल्कि बाइबल में बताया गया है कि उसमें “नेकी वास करती है।” (यिर्म. 50:7) उसी ने हमें बनाया है, इसलिए उसे ही यह तय करने का हक है कि हमारे लिए क्या सही है और क्या गलत। और यहोवा परिपूर्ण भी है, उसे हमेशा पता होता है कि सही क्या है और गलत क्या। हम इंसान तो अपरिपूर्ण हैं और कभी-कभी सही-गलत में ठीक से फर्क नहीं कर पाते। (नीति. 14:12; यशायाह 55:8, 9 पढ़िए।) फिर भी हम उसके स्तर मान सकते हैं, क्योंकि उसने हमें अपनी छवि में बनाया है। (उत्प. 1:27) उसके स्तरों को मानकर हमें बहुत खुशी मिलती है, क्योंकि हम अपने पिता से बहुत प्यार करते हैं और उसकी तरह बनना चाहते हैं।—इफि. 5:1.
7. सही-गलत के स्तर होना क्यों ज़रूरी है? उदाहरण देकर समझाइए।
7 सही-गलत के बारे में यहोवा ने जो स्तर ठहराए हैं, उन्हें मानने में हमारी ही भलाई है। ज़रा सोचिए, अगर हर ट्रैफिक सिग्नल पर लाल, पीली और हरी बत्ती के बजाय अलग-अलग रंग की बत्तियाँ हों, तो कितनी गड़बड़ी हो जाएगी, कई हादसे भी हो सकते हैं। या अगर बिना सही माप लिए और घटिया माल इस्तेमाल करके कोई इमारत बनायी जाए, तो वह गिर सकती है और कई लोगों की मौत भी हो सकती है। और ज़रा सोचिए, अगर डॉक्टर अपने हिसाब से किसी बीमारी का इलाज करने लगें, तो कितने लोगों की जान जा सकती है। इससे पता चलता है कि यह बहुत ज़रूरी है कि कोई सही-गलत या अच्छे-बुरे के स्तर तय करे। इनसे हमारी हिफाज़त होती है। उसी तरह यहोवा के स्तर मानने से भी हमारी हिफाज़त होती है।
8. अगर हम यहोवा के स्तरों को मानें, तो हमें क्या आशीषें मिलेंगी?
8 अगर हम यहोवा के स्तरों को मानें, तो वह हमें ढेरों आशीषें देगा। उसने वादा किया है कि “नेक लोग धरती के वारिस होंगे और उस पर हमेशा की ज़िंदगी जीएँगे।” (भज. 37:29) सोचिए जब हर कोई यहोवा के स्तरों को मानेगा, तो धरती पर कितना अच्छा माहौल होगा। लोगों के बीच एकता और शांति होगी और हर कोई खुश होगा। यहोवा चाहता है कि आप भी ऐसी ज़िंदगी जीएँ। इसलिए यह बहुत ज़रूरी है कि हम नेक काम करें और यहोवा के स्तरों को मानें। पर हम यहोवा के स्तरों को मानने का अपना इरादा और पक्का कैसे कर सकते हैं? आइए तीन बातों पर ध्यान दें।
यहोवा के स्तरों को मानने का इरादा पक्का कीजिए
9. हम यहोवा के स्तर मानने का इरादा कैसे पक्का कर सकते हैं?
9 पहली बात: यहोवा से प्यार कीजिए। सही क्या है और गलत क्या, इसके स्तर यहोवा ने ठहराए हैं। जब हम यहोवा से और भी प्यार करेंगे, तो यहोवा के स्तर मानने का हमारा इरादा और भी पक्का हो जाएगा और हम हमेशा सही काम करेंगे। आदम और हव्वा के बारे में सोचिए। अगर उन्हें यहोवा से प्यार होता, तो क्या वे उसकी आज्ञा तोड़ते?—उत्प. 3:1-6, 16-19.
10. अब्राहम यहोवा को और अच्छी तरह कैसे जान पाया?
10 अगर हम आदम-हव्वा की तरह गलती नहीं करना चाहते, तो यह बहुत ज़रूरी है कि हम यहोवा के लिए अपना प्यार बढ़ाएँ। और ऐसा हम तभी कर पाएँगे जब हम यहोवा के बारे में जानेंगे, उसके गुणों के बारे में सीखेंगे और यह समझने की कोशिश करेंगे कि वह कैसे सोचता है। अब्राहम ने भी ऐसा ही किया। वह यहोवा से बहुत प्यार करता था। कई बार यहोवा ने कोई ऐसा फैसला लिया जो उसे समझ में नहीं आया। लेकिन तब भी उसने यहोवा के फैसले पर उँगली नहीं उठायी, बल्कि यह समझने की कोशिश की कि यहोवा ऐसा क्यों कह रहा है। जैसे, जब यहोवा ने उसे बताया कि वह सदोम और अमोरा का नाश करनेवाला है, तो अब्राहम घबरा गया। उसे लगा कि कहीं “सारी दुनिया का न्याय करनेवाला” दुष्टों के साथ नेक लोगों को भी ना मिटा दे। अब्राहम सोच रहा था कि यहोवा ऐसा कैसे कर सकता है, इसलिए उसने यहोवा से कुछ सवाल किए। और यहोवा ने उसके सभी सवालों के जवाब दिए। इस तरह वह यहोवा को और भी अच्छी तरह जान पाया। वह समझ पाया कि यहोवा लोगों का दिल देखता है। वह कभी-भी किसी निर्दोष को सज़ा नहीं देगा।—उत्प. 18:20-32.
11. अब्राहम ने ऐसा क्या किया जिससे पता चलता है कि वह यहोवा से प्यार करता था और उस पर भरोसा करता था?
11 सदोम और अमोरा के नाश के बारे में अब्राहम की यहोवा से जो बातचीत हुई, उसके बाद वह यहोवा से और भी प्यार करने लगा होगा, उसका और भी आदर करने लगा होगा। कुछ सालों बाद यहोवा ने उससे कुछ ऐसा करने को कहा जो उसके लिए बहुत मुश्किल था। यहोवा ने उससे कहा कि वह अपने प्यारे बेटे इसहाक की बलि चढ़ाए। लेकिन इस बार अब्राहम ने यहोवा से कोई सवाल नहीं किया, क्योंकि अब वह यहोवा को और भी अच्छी तरह जान चुका था। वह यहोवा की बात मानने को तैयार हो गया। ज़रा सोचिए, जब वह अपने बेटे की बलि चढ़ाने के लिए तैयारियाँ कर रहा होगा, तो उस पर क्या बीत रही होगी, उसे कितना दुख हो रहा होगा। पर उस वक्त उसने उन बातों के बारे में सोचा होगा जो वह यहोवा के बारे में जानता था। उसे पता था कि यहोवा कभी कोई गलत काम नहीं कर सकता, कभी अन्याय नहीं कर सकता। अब्राहम ने यहोवा के उस वादे के बारे में भी सोचा होगा कि इसहाक के वंश से एक बड़ा राष्ट्र आएगा। पर उस वक्त तक इसहाक के कोई बच्चा नहीं था। इसलिए अब्राहम को यकीन था कि चाहे इसहाक मर भी जाए, यहोवा उसे ज़िंदा कर सकता है। (इब्रा. 11:17-19) अब्राहम यहोवा से बहुत प्यार करता था, इसलिए उसे भरोसा था कि यहोवा हमेशा वही करेगा जो सही है। यही वजह थी कि उसने मुश्किल-से-मुश्किल वक्त में भी यहोवा की आज्ञा मानी।—उत्प. 22:1-12.
12. हम अब्राहम की तरह कैसे बन सकते हैं? (भजन 73:28)
12 हम अब्राहम की तरह कैसे बन सकते हैं? हमें यहोवा के बारे में सीखते रहना होगा। इस तरह हम उसके और करीब आ जाएँगे और उससे और भी प्यार करने लगेंगे। (भजन 73:28 पढ़िए।) जब हम जानने लगते हैं कि यहोवा को क्या सही लगता है और क्या गलत और वह किस तरह सोचता है, तो हम भी उसकी तरह सोचने लगते हैं। (इब्रा. 5:14) हम ऐसी हर चीज़ से नफरत करने लगते हैं जो यहोवा को बुरी लगती है। फिर जब हमें कोई कुछ गलत काम करने को कहता है, तो हम साफ इनकार कर देते हैं, क्योंकि हम यहोवा का दिल नहीं दुखाना चाहते और उसके साथ अपना रिश्ता खराब नहीं करना चाहते। हम और क्या कर सकते हैं जिससे यहोवा के स्तरों को मानने का हमारा इरादा पक्का हो जाए?
13. हम “नेकी का पीछा” कैसे कर सकते हैं? (नीतिवचन 15:9)
13 दूसरी बात: हर दिन यहोवा के स्तरों को मानने की कोशिश कीजिए। ठीक जैसे हर दिन कसरत करने से हमारी सेहत अच्छी रहती है, उसी तरह जब हम हर दिन यहोवा के स्तरों को मानने की कोशिश करते हैं, तो उन्हें मानने का हमारा इरादा और भी पक्का हो जाता है। यहोवा कभी हमसे कुछ ऐसा करने के लिए नहीं कहता जो हम नहीं कर सकते। वह जानता है कि हम उसके स्तरों को मान सकते हैं। (भज. 103:14) और जब हम ऐसा करते हैं और नेक काम करते हैं, तो उसे बहुत खुशी होती है। बाइबल में लिखा है, “नेकी का पीछा करनेवाले से वह प्यार करता है।” (नीतिवचन 15:9 पढ़िए।) जब हम यहोवा की और ज़्यादा सेवा करने के लिए कोई लक्ष्य रखते हैं, तो उसे पाने के लिए बहुत मेहनत करते हैं। उसी तरह हमें नेक काम करने के लिए भी मेहनत करनी होगी, मानो नेकी का पीछा करना होगा। जब हम यहोवा के स्तरों को मानने की पूरी कोशिश करेंगे, तो वह भी हमारी मदद करेगा और हम उसके स्तरों को और अच्छी तरह मान पाएँगे।—भज. 84:5, 7.
14. “नेकी का कवच” क्या है और हमें इसे क्यों पहने रहना है?
14 हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि यहोवा के स्तर हमारे लिए बोझ हैं या उन्हें मानना बहुत मुश्किल है। (1 यूह. 5:3) इसके बजाय हमें ध्यान रखना चाहिए कि अगर हम इन्हें हर दिन मानें, तो इससे हमारी हिफाज़त होगी। क्या आपको परमेश्वर के दिए वे हथियार याद हैं जिनके बारे में पौलुस ने बताया था? (इफि. 6:14-18) उनमें से एक था, “नेकी का कवच” यानी सही और गलत के बारे में यहोवा के स्तर। पुराने ज़माने में अगर युद्ध में एक सैनिक कवच पहने रहता था, तो दुश्मन के हमलों से उसके दिल की हिफाज़त होती थी। उसी तरह, अगर हम नेकी का कवच पहने रहें यानी यहोवा के स्तरों को मानें, तो शैतान के हमलों से हमारे दिल की भी हिफाज़त होगी। तो हर वक्त नेकी का कवच पहने रहिए!—नीति. 4:23.
15. आप नेकी का कवच कैसे पहन सकते हैं?
15 नेकी का कवच पहनने के लिए आपको क्या करना होगा? हर रोज़ कोई भी फैसला लेने या काम करने से पहले सोचिए कि उस बारे में यहोवा के क्या स्तर हैं। अगर आप किसी से बात कर रहे हों, कोई गाना सुनने की या मनोरंजन करने की सोच रहे हों या आपका कोई किताब पढ़ने का मन कर रहा हो, तो सोचिए: ‘इसका मेरे दिल पर क्या असर होगा? क्या यहोवा इससे खुश होगा? या कहीं इसमें कोई ऐसी चीज़ तो नहीं है जो यहोवा की नज़र में बुरी है, जैसे अनैतिकता, हिंसा, लालच करना और सिर्फ अपने बारे में सोचना?’ (फिलि. 4:8) अगर आप ऐसे फैसले लें जो यहोवा के स्तरों के मुताबिक हैं, तो आप अपने दिल की हिफाज़त कर पाएँगे।
16-17. यशायाह 48:18 के मुताबिक हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि हम हमेशा यहोवा के स्तरों को मान सकते हैं?
16 क्या आपको कभी यह सोचकर चिंता होती है कि आप हमेशा यहोवा के स्तरों को मान पाएँगे या नहीं? अगर हाँ, तो यहोवा के उस वादे पर ध्यान दीजिए जो यशायाह 48:18 में लिखा है। (पढ़िए।) यहोवा कहता है कि ‘आपकी नेकी समुंदर की लहरों के समान होगी।’ सोचिए कि आप समुंदर किनारे खड़े हैं। चारों तरफ बहुत शांति है और आप देख रहे हैं कि कैसे एक-के-बाद-एक लहरें आ रही हैं। ऐसे में क्या आप यह सोचेंगे कि कहीं ये लहरें आना एक दिन बंद तो नहीं हो जाएँगी? नहीं, क्योंकि आप जानते हैं कि ये हज़ारों सालों से ऐसे ही आती जा रही हैं और हमेशा आती रहेंगी।
17 ‘आपकी नेकी भी समुंदर की लहरों की तरह’ हो सकती है। जिस तरह समुंदर की लहरें लगातार आती रहती हैं, उसी तरह आप भी हमेशा यहोवा के स्तरों को मान सकते हैं। कोई भी फैसला लेने से पहले सोचिए कि यहोवा को क्या अच्छा लगेगा। और फिर वैसा ही कीजिए। चाहे वह फैसला लेना आपके लिए कितना ही मुश्किल क्यों ना हो, याद रखिए कि आपका पिता यहोवा आपसे बहुत प्यार करता है। वह हरदम आपके साथ रहेगा और आपको हिम्मत देगा ताकि आप हमेशा उसके स्तरों को मानते रहें।—यशा. 40:29-31.
18. हमें अपने हिसाब से दूसरों का न्याय क्यों नहीं करना चाहिए?
18 तीसरी बात: दूसरों पर उँगली मत उठाइए, न्याय करना यहोवा का काम है। हमें यहोवा के स्तरों को मानने की पूरी कोशिश करनी चाहिए। लेकिन हमें कभी दूसरों पर उँगली नहीं उठानी चाहिए, यह नहीं सोचना चाहिए कि वे यहोवा के स्तरों को ठीक से नहीं मान रहे हैं। अपने हिसाब से उनका न्याय करने के बजाय, हमें याद रखना चाहिए कि यहोवा “सारी दुनिया का न्याय करनेवाला” है। (उत्प. 18:25) यहोवा ने हमें यह अधिकार नहीं दिया है कि हम अपने हिसाब से दूसरों का न्याय करें। यीशु ने भी आज्ञा दी थी, “दोष लगाना बंद करो ताकि तुम पर भी दोष न लगाया जाए।”—मत्ती 7:1.b
19. यूसुफ जानता था कि यहोवा को ही न्याय करने का हक है, इसलिए उसने क्या किया?
19 ज़रा एक बार फिर यूसुफ के बारे में सोचिए। वह एक नेक इंसान था। पर उसके भाइयों ने उसके साथ बहुत बुरा किया। उन्होंने उसे मारा-पीटा, उसे गुलामी करने के लिए बेच दिया और अपने पिता को यकीन दिला दिया कि यूसुफ मर चुका है। सालों बाद, यूसुफ दोबारा अपने भाइयों से मिला। उस वक्त तक वह मिस्र का एक बहुत बड़ा अधिकारी बन चुका था। इसलिए वह चाहता तो अपने भाइयों से बदला ले सकता था, उन्हें सज़ा दिलवा सकता था। उसके भाइयों को अपने किए पर पछतावा था, लेकिन उन्हें लग रहा था कि यूसुफ उनसे बदला लेगा। मगर यूसुफ ने उनसे कहा, “डरो मत। भला मैं क्यों तुम्हारा न्याय करूँगा? क्या मैं परमेश्वर हूँ?” (उत्प. 37:18-20, 27, 28, 31-35; 50:15-21) यूसुफ ने अपने भाइयों का न्याय नहीं किया। उसे पता था कि यहोवा को ही न्याय करने का हक है।
20-21. हमें भाई-बहनों और दूसरे लोगों के साथ किस तरह पेश आना चाहिए?
20 यूसुफ की तरह, हमें भी याद रखना चाहिए कि न्याय करने का हक सिर्फ यहोवा को है। यह हमारा काम नहीं है। हम पूरी तरह नहीं जान सकते कि किसी भाई या बहन ने कोई काम क्यों किया। हम उनका दिल नहीं पढ़ सकते, सिर्फ ‘यहोवा ही इरादों को जाँच सकता है।’ (नीति. 16:2) यहोवा सबसे प्यार करता है, फिर चाहे एक इंसान किसी भी देश या जाति का क्यों ना हो। और वह चाहता है कि हम भी ‘अपने दिलों को बड़ा करें,’ सभी भाई-बहनों से प्यार करें और अपने स्तरों के हिसाब से उनका न्याय ना करें।—2 कुरिं. 6:13.
21 भाई-बहनों के अलावा हमें दूसरे लोगों के बारे में भी कोई राय नहीं बना लेनी चाहिए। (1 तीमु. 2:3, 4) जैसे हमें अपने किसी रिश्तेदार के बारे में यह नहीं सोचना चाहिए कि वह तो कभी सच्चाई सीखेगा ही नहीं। हमें याद रखना चाहिए कि यहोवा आज ‘सब लोगों को’ पश्चाताप करने का मौका दे रहा है। (प्रेषि. 17:30) तो कभी-भी दूसरों पर दोष मत लगाइए, ना ही किसी के बारे में यह सोचिए कि वह तो कभी सुनेगा ही नहीं। याद रखिए, जो लोग खुद को बहुत नेक समझते हैं, यहोवा उन्हें नेक नहीं समझता।
22. आप यहोवा के स्तरों को क्यों मानना चाहते हैं?
22 आइए हम यहोवा के स्तरों को मानने का अपना इरादा पक्का करते रहें, मानो ‘नेकी के लिए अपनी भूख-प्यास’ बढ़ाते रहें। (मत्ती 5:6) ऐसा करने से हमें खुशी मिलेगी। तब दूसरे भी हमसे सीखेंगे और हमसे और यहोवा से और भी प्यार करने लगेंगे। जब हम यहोवा के स्तरों को मानने की कोशिश करेंगे, तो वह हमारी मेहनत पर ध्यान देगा और खुश होगा। दुनिया के स्तर तो गिरते जा रहे हैं, पर आइए हम यहोवा के स्तरों को मानते रहें क्योंकि वह “नेक लोगों से प्यार करता है।”—भज. 146:8.
गीत 139 खुद को नयी दुनिया में देखें!
a यह दुनिया बुरे लोगों से भरी पड़ी है। लेकिन कई नेक लोग भी हैं जो ऐसे काम करते हैं जो यहोवा की नज़र में सही हैं। ज़रूर आप भी उनमें से एक होंगे। आप ऐसे काम इसलिए करते हैं क्योंकि आप यहोवा से प्यार करते हैं और यहोवा को नेक काम पसंद हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि नेकी क्या होती है और नेक काम करने से क्या फायदा होता है। हम यह भी जानेंगे कि नेक काम करने का अपना इरादा हम और पक्का कैसे कर सकते हैं।
b कुछ मामलों में मंडली के प्राचीनों को न्याय करना पड़ता है, जैसे तब जब किसी ने कोई गंभीर पाप किया हो। (1 कुरिं. 5:11; 6:5; याकू. 5:14, 15) लेकिन ऐसा करते वक्त प्राचीन याद रखते हैं कि वे किसी का दिल नहीं पढ़ सकते और वे यहोवा की तरफ से न्याय कर रहे हैं। (2 इतिहास 19:6 से तुलना करें।) इसलिए दूसरों का न्याय करते वक्त उनकी यही कोशिश रहती है कि वे यहोवा के स्तरों को ध्यान में रखें और यहोवा की तरह न्याय करें। वे दूसरों से हद-से-ज़्यादा की उम्मीद नहीं करते, भेदभाव नहीं करते और जब मुमकिन हो तो दया करते हैं।