दसवाँ अध्याय
‘प्रसन्नता का समय’
1, 2. (क) यशायाह को क्या आशीष मिली? (ख) यशायाह के 49वें अध्याय के पहले भाग की भविष्यवाणियाँ किन पर पूरी होती हैं?
आज तक जितने भी इंसान परमेश्वर के वफादार रहे हैं, उन सभी को यह आशीष मिली है कि परमेश्वर का अनुग्रह उन पर रहा है और उसने उनकी रक्षा की है। लेकिन यहोवा, आँख मूँदकर किसी पर अनुग्रह नहीं करता। यह अनमोल आशीष पाने के लिए एक इंसान को लायक बनना पड़ता है। यशायाह ने खुद को इसके लायक बनाया था। इसलिए उस पर यहोवा का अनुग्रह था और यहोवा ने अपनी इच्छा लोगों पर ज़ाहिर करने के लिए यशायाह को इस्तेमाल किया। इसकी एक मिसाल हमें यशायाह की भविष्यवाणी के 49वें अध्याय के पहले भाग में मिलती है।
2 भविष्यवाणी में ये शब्द इब्राहीम के वंश से कहे जाते हैं। इसकी पहली पूर्ति में यह वंश, इस्राएल जाति है जो इब्राहीम से निकली थी। लेकिन भविष्यवाणी के शब्द साफ दिखाते हैं कि इसका ज़्यादातर हिस्सा, वादा किए गए मसीहा पर लागू होता है जो इब्राहीम का वंश था और जिसके आने का लोगों को बरसों से इंतज़ार था। ईश्वर-प्रेरणा से लिखे ये शब्द, मसीहा के उन आत्मिक भाइयों पर भी लागू होते हैं, जो इब्राहीम के आत्मिक वंश और “परमेश्वर के इस्राएल” का भाग बने। (गलतियों 3:7,16,29; 6:16) लेकिन, यशायाह की भविष्यवाणी का यह भाग इस बात पर ज़्यादा रोशनी डालता है कि यहोवा और उसके प्यारे बेटे, यीशु मसीह के बीच कैसा अनोखा, अटूट रिश्ता है।—यशायाह 49:26.
यहोवा उसको नियुक्त करता और उसकी रक्षा करता है
3, 4. (क) मसीहा के ऊपर किसका साया है? (ख) मसीहा यहाँ किससे बात कर रहा है?
3 मसीहा पर परमेश्वर का अनुग्रह है यानी परमेश्वर उससे प्रसन्न है। यहोवा उसे अपना काम पूरा करने के लिए ज़रूरी अधिकार और योग्यताएँ देता है। इसलिए, आनेवाले मसीहा का यह कहना सही है: “हे द्वीपो, मेरी ओर कान लगाकर सुनो; हे दूर दूर के राज्यों के लोगो, ध्यान लगाकर मेरी सुनो। यहोवा ने मुझे गर्भ ही में से बुलाया, जब मैं माता के पेट में था, तब ही उस ने मेरा नाम बताया।”—यशायाह 49:1.
4 यहाँ मसीहा “दूर दूर” देशों के लोगों से बात कर रहा है। हालाँकि मसीहा के आने का वादा यहूदियों से किया गया था, मगर उसकी सेवकाई से सभी जातियाँ आशीषें पाएँगी। (मत्ती 25:31-33) ‘द्वीपों’ और “राज्यों” के लोग यहोवा के साथ वाचा में बँधे हुए नहीं हैं, फिर भी उन्हें इस्राएल के मसीहा की बात पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि उसे सारे जगत का उद्धार करने के लिए भेजा गया है।
5. किस तरह जन्म से पहले ही मसीहा का नाम रखा गया था?
5 भविष्यवाणी कहती है कि इंसान के रूप में मसीहा के जन्म लेने से पहले ही यहोवा उसे नाम देगा। (मत्ती 1:21; लूका 1:31) यीशु के पैदा होने से बहुत पहले ही उसे “अद्भुत् परामर्श दाता, शक्तिमान ईश्वर, शाश्वत पिता, शान्ति का शासक” ये नाम दिए गए थे। (यशायाह 9:6, नयी हिन्दी बाइबिल) इम्मानूएल भी, जो शायद यशायाह के बेटे का नाम था, मसीहा के लिए भविष्यवाणी में दिया गया एक नाम है। (यशायाह 7:14; मत्ती 1:21-23) यही नहीं, जिस नाम से मसीहा लोगों में जाना जाता, यानी यीशु नाम भी उसे जन्म से पहले ही दिया गया था। (लूका 1:30,31) इब्रानी भाषा में यीशु का मतलब है, “यहोवा ही उद्धार है।” इन बातों से साफ ज़ाहिर है कि यीशु ने खुद अपने आपको मसीहा नियुक्त नहीं किया था।
6. मसीहा का मुँह कैसे एक चोखी तलवार है, और उसे किस तरह छिपाया या गुप्त रखा गया?
6 मसीहा, भविष्यवाणी में आगे कहता है: “उस ने मेरे मुंह को चोखी तलवार के समान बनाया और अपने हाथ की आड़ में मुझे छिपा रखा; उस ने मुझ को चमकीला तीर बनाकर अपने तर्कश में गुप्त रखा।” (यशायाह 49:2) यहोवा के मसीहा, यीशु ने जब सा.यु. 29 में धरती पर सेवकाई शुरू की तब वाकई उसके शब्द और काम तेज़ और चमकीले हथियारों की तरह थे। ये सुननेवालों के दिलों को अंदर तक भेद देते थे। (लूका 4:31,32) उसके शब्दों और कामों से, यहोवा के सबसे बड़े दुश्मन, शैतान और उसके पैरोकारों का क्रोध भड़क उठता था। यीशु के जन्म से ही, शैतान उसे मार डालने की कोशिश करता है, मगर वह नाकाम रहता है क्योंकि यीशु को यहोवा अपने तर्कश में एक तीर की तरह गुप्त रखता है।a यीशु पूरा भरोसा कर सकता था कि उसका पिता ज़रूर उसकी रक्षा करेगा। (भजन 91:1; लूका 1:35) परमेश्वर के ठहराए हुए वक्त पर, यीशु ने इंसानों के लिए अपनी जान कुरबान कर दी। लेकिन भविष्य में ऐसा समय आएगा, जब यीशु स्वर्ग से एक शक्तिशाली योद्धा के रूप में निकल पड़ेगा, और एक अलग अर्थ में उसके मुँह से एक चोखी तलवार निकलेगी। अबकी बार, यह तलवार इस बात का प्रतीक है कि यीशु को यहोवा के दुश्मनों के खिलाफ फैसला सुनाने और उन्हें दंड देने का अधिकार दिया गया है।—प्रकाशितवाक्य 1:16.
परमेश्वर के दास का परिश्रम व्यर्थ नहीं जाता
7. यशायाह 49:3 में दिए गए यहोवा के शब्द किस पर पूरे होते हैं, और क्यों?
7 अब भविष्यवाणी में यहोवा कहता है: “तू मेरा दास इस्राएल है, मैं तुझ में अपनी महिमा प्रगट करूंगा।” (यशायाह 49:3) यहोवा, इस्राएल जाति को अपना दास कहकर पुकारता है। (यशायाह 41:8) लेकिन परमेश्वर का सबसे श्रेष्ठ दास यीशु मसीह है। (प्रेरितों 3:13) परमेश्वर की सृष्टि का कोई और प्राणी, यीशु से बेहतर यहोवा की “महिमा” प्रकट नहीं कर सकता। इसलिए, हालाँकि भविष्यवाणी के ये शब्द इस्राएल जाति से कहे जाते हैं, मगर असल में ये यीशु पर पूरे होते हैं।—यूहन्ना 14:9; कुलुस्सियों 1:15.
8. मसीहा के अपने ही लोगों ने उसके साथ क्या किया, मगर वह अपनी कामयाबी का फैसला किस पर छोड़ता है?
8 लेकिन, क्या यह सच नहीं कि यीशु की अपनी ही जाति के ज़्यादातर लोगों ने उसे तुच्छ जानकर ठुकरा दिया था? जी हाँ। कुल मिलाकर इस्राएल जाति ने, यीशु को परमेश्वर के अभिषिक्त दास के रूप में कबूल नहीं किया। (यूहन्ना 1:11) यीशु ने धरती पर जो भी काम किए उसकी उस समय के लोगों ने कदर नहीं की, यहाँ तक कि उन्हें तुच्छ समझा। इस मामले में मसीहा की असफलता उसके अगले शब्दों से ज़ाहिर होती है: “मैं ने तो व्यर्थ परिश्रम किया, मैं ने व्यर्थ ही अपना बल खो दिया है।” (यशायाह 49:4क) लेकिन मसीहा निराश हो जाने की वजह से ऐसा नहीं कहता। उसके अगले शब्दों पर ध्यान दीजिए: “तौभी निश्चय मेरा न्याय यहोवा के पास है और मेरे परिश्रम का फल मेरे परमेश्वर के हाथ में है।” (यशायाह 49:4ख) मसीहा की सेवकाई कामयाब रही या नाकाम, इसका फैसला इंसान नहीं बल्कि परमेश्वर करेगा।
9, 10. (क) यहोवा ने मसीहा को क्या काम सौंपा, और उसे कैसे नतीजे मिले? (ख) मसीहा के साथ जो हुआ, उससे आज मसीही कैसे हिम्मत पा सकते हैं?
9 यीशु की सबसे बड़ी ख्वाहिश यह है कि परमेश्वर उससे प्रसन्न हो। भविष्यवाणी में मसीहा कहता है: “अब यहोवा जिस ने मुझे जन्म ही से इसलिये रचा कि मैं उसका दास होकर याकूब को उसकी ओर फेर ले आऊं अर्थात् इस्राएल को उसके पास इकट्ठा करूं, क्योंकि यहोवा की दृष्टि में मैं आदरयोग्य हूं और मेरा परमेश्वर मेरा बल है।” (यशायाह 49:5) मसीहा इसलिए आता है कि वह इस्राएल के पुत्रों का मन उनके स्वर्गीय पिता की ओर फेरे। लेकिन चंद इस्राएलियों को छोड़ अधिकतर उसकी बात नहीं मानते। मगर, मसीहा को अपनी मेहनत का असली फल यहोवा परमेश्वर से मिलता है। उसकी कामयाबी इंसान के दर्जे से नहीं बल्कि यहोवा के स्तरों से आँकी जाती है।
10 आज, यीशु के चेले भी कभी-कभी सोच सकते हैं कि वे व्यर्थ ही परिश्रम कर रहे हैं। कुछ जगहों में ऐसा लग सकता है कि वे प्रचार में जितने घंटे बिताते हैं और जितनी मेहनत करते हैं, उसके हिसाब से उन्हें मिलनेवाला प्रतिफल ना के बराबर है। मगर फिर भी, यीशु की मिसाल याद करके वे हिम्मत पाते हैं। प्रेरित पौलुस के शब्दों से भी उन्हें हौसला मिलता है: “सो हे मेरे प्रिय भाइयो, दृढ़ और अटल रहो, और प्रभु के काम में सर्वदा बढ़ते जाओ, क्योंकि यह जानते हो, कि तुम्हारा परिश्रम प्रभु में व्यर्थ नहीं है।”—1 कुरिन्थियों 15:58.
“अन्यजातियों के लिये ज्योति”
11, 12. मसीहा “अन्यजातियों के लिये ज्योति” कैसे रहा है?
11 यशायाह की भविष्यवाणी में यहोवा, मसीहा की हिम्मत बँधाते हुए उसे याद दिलाता है कि उसका दास होना कोई “हलकी सी बात” नहीं। यीशु को “याकूब के गोत्रों का उद्धार करने और इस्राएल के रक्षित लोगों को लौटा ले आने” का काम मिला है। इसके अलावा यहोवा कहता है: “मैं तुझे अन्यजातियों के लिये ज्योति ठहराऊंगा कि मेरा उद्धार पृथ्वी की एक ओर से दूसरी ओर तक फैल जाए।” (यशायाह 49:6) यीशु ने पृथ्वी पर सिर्फ इस्राएल देश में ही प्रचार किया था, फिर वह “पृथ्वी की एक ओर से दूसरी ओर तक” लोगों में ज्ञान की रोशनी कैसे फैलाता है?
12 बाइबल में दर्ज़ की गयी घटनाएँ दिखाती हैं कि पृथ्वी से यीशु के चले जाने पर “अन्यजातियों के लिये” परमेश्वर की “ज्योति” बुझ नहीं गयी। यीशु की मौत के लगभग 15 साल बाद, मिशनरी पौलुस और बरनबास ने यशायाह 49:6 का हवाला देकर समझाया कि यह भविष्यवाणी, यीशु के चेलों यानी उसके आत्मिक भाइयों पर पूरी होती है। उन्होंने कहा: “प्रभु ने हमें यह आज्ञा दी है; कि मैं ने तुझे अन्यजातियों के लिये ज्योति ठहराया है; ताकि तू पृथ्वी की छोर तक उद्धार का द्वार हो।” (प्रेरितों 13:47) पौलुस अपने जीते-जी देख पाया कि उद्धार का सुसमाचार न सिर्फ यहूदियों तक बल्कि “आकाश के नीचे की सारी सृष्टि” में पहुँचाया गया था। (कुलुस्सियों 1:6,23) आज मसीह के बचे हुए अभिषिक्त भाई भी यही काम कर रहे हैं। और लाखों की तादाद में “बड़ी भीड़” उनका हाथ बँटा रही है, और इस तरह वे दुनिया के 230 से ज़्यादा देशों में “अन्यजातियों के लिये ज्योति” का काम कर रहे हैं।—प्रकाशितवाक्य 7:9.
13, 14. (क) मसीहा और उसके चेलों को प्रचार काम करते वक्त क्या-क्या सहना पड़ा है? (ख) मसीहा के हालात में क्या ज़बरदस्त बदलाव आया?
13 यहोवा ने सचमुच अपने दास मसीहा, उसके अभिषिक्त भाइयों और उनके साथ सुसमाचार प्रचार करनेवाली बड़ी भीड़ के तमाम लोगों को हिम्मत दी है और वे आज भी यह काम जारी रखे हुए हैं। यह सच है कि यीशु की तरह उसके चेलों से भी लोगों ने नफरत की और उनका विरोध किया है। (यूहन्ना 15:20) मगर यहोवा हमेशा अपने ठहराए हुए वक्त पर पासा पलट देता है ताकि वह अपने वफादार सेवकों को छुटकारा दिलाए और उन्हें प्रतिफल दे सके। जिस मसीहा को “तुच्छ जाना जाता” है और जिससे इस ‘जाति को घृणा है,’ उससे यहोवा वादा करता है: “राजा उसे देखकर खड़े हो जाएंगे और हाकिम दण्डवत् करेंगे; यह यहोवा के निमित्त होगा, जो सच्चा और इस्राएल का पवित्र है और जिस ने तुझे चुन लिया है।”—यशायाह 49:7.
14 बाद में प्रेरित पौलुस ने फिलिप्पी के मसीहियों को लिखी पत्री में, मसीहा के हालात में आनेवाले ज़बरदस्त बदलाव का ज़िक्र किया। उसने बताया कि यीशु को यातना स्तंभ पर कितनी ज़िल्लत सहनी पड़ी, मगर बाद में परमेश्वर ने उसे महिमा का ऊँचा स्थान दिया। यहोवा ने अपने इस दास को “अति महान भी किया, और उसको वह नाम दिया जो सब नामों में श्रेष्ठ है। कि . . . सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें।” (फिलिप्पियों 2:8-11) मसीहा के वफादार चेलों को आगाह किया गया है कि उन्हें भी सताया जाएगा। लेकिन, मसीहा की तरह उन्हें भी पूरा यकीन है कि यहोवा उनसे प्रसन्न है।—मत्ती 5:10-12; 24:9-13; मरकुस 10:29,30.
“प्रसन्नता की बेला”
15. यशायाह की भविष्यवाणी में किस खास “समय” का ज़िक्र किया गया है, और इसका क्या अर्थ निकलता है?
15 यशायाह की भविष्यवाणी में आगे एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण बात कही गयी है। यहोवा, मसीहा से कहता है: “अपनी प्रसन्नता के समय मैं ने तेरी सुन ली, उद्धार करने के दिन मैं ने तेरी सहायता की है; मैं तेरी रक्षा करके तुझे लोगों के लिये एक वाचा ठहराऊंगा।” (यशायाह 49:8क) ऐसी ही एक भविष्यवाणी भजन 69:13-18 में भी दर्ज़ है। वहाँ भजनहार ने “प्रसन्नता के समय” के लिए “कृपा-अवसर” (नयी हिन्दी बाइबिल) इस्तेमाल किया। इन शब्दों का यह अर्थ निकलता है कि लोगों को एक खास तरीके से यहोवा का अनुग्रह और सुरक्षा पाने का मौका दिया जाता है, मगर इसका एक निश्चित और सीमित समय है।
16. प्राचीन इस्राएल के लिए परमेश्वर की प्रसन्नता का समय कब आया?
16 प्रसन्नता का यह समय कब आया? दरअसल प्रसन्नता के समय की यह बात प्राचीन इस्राएल के छुटकारे और बहाली की भविष्यवाणी का हिस्सा थी। और इससे पता चलता है कि यहूदी अपने वतन वापस लौट पाएँगे। इस्राएल जाति के लिए प्रसन्नता का समय तब आया जब उन्होंने अपने “देश का पुन: निर्माण” किया और वे अपनी “उजाड़ पैतृक-भूमि” को फिर से बसा पाए। (यशायाह 49:8ख, नयी हिन्दी बाइबिल) वे अब बाबुल के ‘बन्दी’ नहीं रहे। और जब वे अपने वतन लौट रहे थे तो यहोवा ने इस बात का ध्यान रखा कि वे “भूखे” या “प्यासे” न हों, न ही उन्हें “झुलसानेवाली धूप या लू से कुछ हानि” हो। यहूदियों के झुंड-के-झुंड जो यहाँ-वहाँ बिखरे हुए थे, कुछ “दूर दूर से . . . , कुछ उत्तर से, कुछ पश्चिम से” अपने वतन वापस लौट आए। (यशायाह 49:9-12, NHT) इस तरह यह भविष्यवाणी सबसे पहले यहूदियों पर बड़े ही अद्भुत तरीके से पूरी हुई। मगर बाइबल बताती है कि इस भविष्यवाणी को और भी कई बार पूरा होना था।
17, 18. पहली सदी के दौरान यहोवा ने प्रसन्नता का कौन-सा समय ठहराया?
17 इस भविष्यवाणी की अगली पूर्ति यीशु के संबंध में थी। जब उसका जन्म हुआ तो स्वर्गदूतों ने यह ऐलान किया कि मनुष्यों पर शांति हो और परमेश्वर उनसे प्रसन्न हो या उन पर अनुग्रह करे। (लूका 2:13,14) लेकिन परमेश्वर का यह अनुग्रह हर किसी को नहीं बल्कि सिर्फ उन्हीं लोगों को दिया जाता, जो यीशु पर विश्वास रखते हैं। बाद में, यीशु ने खुद सबके सामने यशायाह 61:1,2 की भविष्यवाणी पढ़कर बताया कि यह उसी पर पूरी होती है इसलिए कि वह “प्रभु [यहोवा] के प्रसन्न रहने के वर्ष” का प्रचार करने आया है। (लूका 4:17-21) प्रेरित पौलुस ने समझाया कि मसीह जब पृथ्वी पर एक इंसान के रूप में था तो यहोवा ने उसे खास सुरक्षा प्रदान की थी। (इब्रानियों 5:7-9) इसलिए प्रसन्नता का यह समय, धरती पर यीशु के जीवनकाल पर लागू होता है जिस दौरान उस पर परमेश्वर का अनुग्रह बना रहा।
18 लेकिन, यह भविष्यवाणी एक बार और पूरी हुई। प्रसन्नता के समय के बारे में यशायाह के शब्दों का हवाला देने के बाद, पौलुस ने आगे कहा: “देखो, यही है प्रसन्नता की बेला, यही है उद्धार का दिन!” (2 कुरिन्थियों 6:2, नयी हिन्दी बाइबिल) पौलुस ने ये शब्द यीशु की मौत के 22 साल बाद लिखे। ज़ाहिर है कि सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त के दिन जब मसीही कलीसिया का जन्म हुआ, तब यहोवा ने अपना प्रसन्नता का वर्ष बढ़ाया ताकि मसीह के अभिषिक्त चेलों पर भी उसका अनुग्रह हो।
19. आज मसीही, यहोवा की प्रसन्नता के समय से कैसे फायदा उठा सकते हैं?
19 लेकिन, आज यीशु के उन चेलों के बारे में क्या जिन्हें परमेश्वर के स्वर्गीय राज्य के वारिस होने के लिए अभिषिक्त नहीं किया गया है? क्या पृथ्वी पर जीने की आशा रखनेवाले ये लोग भी प्रसन्नता की इस बेला से लाभ पा सकते हैं? जी हाँ, ज़रूर। बाइबल की प्रकाशितवाक्य की किताब दिखाती है कि आज का यह समय, यहोवा की ओर से बड़ी भीड़ के लिए प्रसन्नता का समय है, जो “बड़े क्लेश में से निकलकर” धरती पर फिरदौस में ज़िंदगी का आनंद उठाएगी। (प्रकाशितवाक्य 7:13-17) इसलिए, सभी मसीही इस सीमित समय का फायदा उठा सकते हैं जिस दौरान यहोवा, असिद्ध इंसानों को अपना अनुग्रह पाने का मौका दे रहा है।
20. किस तरह मसीही इस सलाह को मान सकते हैं कि वे यहोवा के अनुग्रह को व्यर्थ न जाने दें?
20 प्रेरित पौलुस ने, यहोवा की प्रसन्नता की बेला का ऐलान करने से पहले एक चेतावनी दी। उस चेतावनी में उसने मसीहियों को समझाया: “परमेश्वर का अनुग्रह जो तुम पर हुआ, व्यर्थ न रहने दो।” (2 कुरिन्थियों 6:1) इसलिए मसीही, परमेश्वर को प्रसन्न करने और उसकी इच्छा पूरी करने का कोई भी अवसर हाथ से नहीं जाने देते। (इफिसियों 5:15,16) पौलुस की यह सलाह मानने में उनकी भलाई है: ‘हे भाइयो, चौकस रहो, कि तुम में ऐसा बुरा और अविश्वासी मन न हो, जो जीवते परमेश्वर से दूर हट जाए। बरन जिस दिन तक आज का दिन कहा जाता है, हर दिन एक दूसरे को समझाते रहो, ऐसा न हो, कि तुम में से कोई जन पाप के छल में आकर कठोर हो जाए।’—इब्रानियों 3:12,13.
21. यशायाह के 49वें अध्याय के पहले भाग की समाप्ति में कौन-सा खुशी का ऐलान किया गया है?
21 भविष्यवाणी में यहोवा और उसके मसीहा के बीच की बातचीत अब खत्म होती है और यशायाह यह खुशी का ऐलान करता है: “हे आकाश, जयजयकार कर, हे पृथ्वी, मगन हो; हे पहाड़ो, गला खोलकर जयजयकार करो! क्योंकि यहोवा ने अपनी प्रजा को शान्ति दी है और अपने दीन लोगों पर दया की है।” (यशायाह 49:13) इन सुंदर शब्दों से, प्राचीनकाल के इस्राएलियों और यहोवा के सर्वश्रेष्ठ दास, यीशु मसीह को कितनी शांति मिली होगी और आज इनसे यहोवा के अभिषिक्त दासों और उनके साथियों, यानी ‘अन्य भेड़ों’ को भी कितनी शांति मिलती है!—यूहन्ना 10:16, NW.
यहोवा अपने लोगों को नहीं भूलता
22. यहोवा कैसे बताता है कि वह अपने लोगों को कभी नहीं भूलेगा?
22 यशायाह अब यहोवा के फैसले सुनाने लगता है। वह भविष्यवाणी करता है कि इस्राएली बंधुए शायद निराश होकर हिम्मत हारने लगेंगे। यशायाह कहता है: “सिय्योन ने कहा, यहोवा ने मुझे त्याग दिया है, मेरा प्रभु मुझे भूल गया है।” (यशायाह 49:14) लेकिन क्या यह सच है? क्या यहोवा ने अपने लोगों को त्याग दिया है और वह उन्हें भूल गया है? यहोवा की तरफ से यशायाह आगे कहता है: “क्या यह हो सकता है कि कोई माता अपने दूधपिउवे बच्चे को भूल जाए और अपने जन्माए हुए लड़के पर दया न करे? हां, वह तो भूल सकती है, परन्तु मैं तुझे नहीं भूल सकता।” (यशायाह 49:15) यहोवा ने कितना प्यार-भरा जवाब दिया! एक माँ अपने बच्चे से जितना प्यार करती है, उससे कहीं बढ़कर परमेश्वर अपने लोगों से प्यार करता है। उसे हर घड़ी अपने वफादार जनों का ध्यान रहता है। वह उन्हें ऐसे याद रखता है मानो उसने उनके नाम अपने हाथों पर खोद कर लिख लिए हों: “देख, मैंने तेरा नाम अपनी हथेली पर खोद कर लिख लिया है; तेरी शहरपनाह निरन्तर मेरे सामने है।”—यशायाह 49:16, NHT.
23. पौलुस ने मसीहियों की हिम्मत बँधाते हुए कैसे भरोसा दिलाया कि यहोवा उन्हें कभी नहीं भूलेगा?
23 गलतियों को लिखी अपनी पत्री में, प्रेरित पौलुस ने यह कहकर वहाँ के मसीहियों का हौसला बढ़ाया: “हम भले काम करने में हियाव न छोड़ें, क्योंकि यदि हम ढीले न हों, तो ठीक समय पर कटनी काटेंगे।” (गलतियों 6:9) और इब्रानी मसीहियों की हिम्मत बँधाते हुए उसने लिखा: “परमेश्वर अन्यायी नहीं, कि तुम्हारे काम, और उस प्रेम को भूल जाए, जो तुम ने उसके नाम के लिये . . . दिखाया।” (इब्रानियों 6:10) हमें कभी ऐसा महसूस नहीं करना चाहिए कि यहोवा अपने लोगों को भूल गया है। प्राचीन सिय्योन की तरह, आज मसीहियों के पास भी आनंद मनाने और धीरज धरते हुए यहोवा की बाट जोहने का ठोस कारण है। यहोवा अपनी वाचा की शर्तों और वादों से कभी नहीं मुकरता।
24. सिय्योन कैसे दोबारा आबाद होगी और वह कौन-से सवाल पूछेगी?
24 यशायाह के ज़रिए शांति देने के लिए यहोवा अब और भी कुछ कहता है। जो “[सिय्योन के] उजाड़नेवाले” हैं, चाहे वे बाबुली हों या धर्मत्यागी यहूदी, उनका खतरा अब टल गया है। सिय्योन के “लड़के,” यानी बंधुआई में यहोवा के वफादार रहनेवाले यहूदी “फुर्ती से आ रहे हैं।” वे सब-के-सब ‘इकट्ठे किए’ जाएँगे। यहूदी जब तेज़ी से यरूशलेम लौट जाएँगे, तो उनकी राजधानी की शोभा ऐसे बढ़ जाएगी जैसे कोई ‘दुल्हिन, गहनों’ से सजी-सँवरी हो। (यशायाह 49:17,18) एक लंबे अरसे से सिय्योन के स्थान “सुनसान” पड़े थे। लेकिन अब वह यह देखकर कितनी हैरान हो जाएगी कि उसमें इतने लोग आ बसे हैं कि वे उसमें समा नहीं पाते। (यशायाह 49:19,20 पढ़िए।) तो फिर सिय्योन का यह पूछना लाज़िमी है कि ये सारे लड़के कहाँ से आए: “तब तू मन में कहेगी, किस ने इनको मेरे लिये जन्माया? मैं तो पुत्रहीन और बांझ हो गई थी, दासत्व में और यहां वहां मैं घूमती रही, इनको किस ने पाला? देख, मैं अकेली रह गई थी; फिर ये कहां थे?” (यशायाह 49:21) सिय्योन जो कभी बांझ थी, अब कितनी खुश है!
25. आज के ज़माने में आत्मिक इस्राएल कैसे दोबारा आबाद हुआ?
25 ये शब्द आज के ज़माने में भी पूरे हुए हैं। पहले विश्वयुद्ध के दौरान, आत्मिक इस्राएल पर बहुत-सी मुसीबतें आयीं और वह कुछ समय के लिए उजड़ गया और बंधुआई में चला गया। मगर उसे दोबारा बसाया गया और वह आध्यात्मिक फिरदौस में आ गया। (यशायाह 35:1-10) आत्मिक इस्राएल भी उस देश की तरह मानो उजड़ गया था जिसका वर्णन यशायाह ने किया। मगर जब उसने देखा कि वह ऐसे लोगों से आबाद हो गया जो पूरे जोश और आनंद से यहोवा की उपासना करते हैं, तो वह खुशी से भर गया।
“देश देश के लोगों के लिये एक झण्डा”
26. यहोवा ने अपने छुड़ाए हुए लोगों की कैसे मदद की?
26 भविष्यवाणी के ज़रिए, यहोवा अब यशायाह को समय के उस मोड़ पर ले आता है जब उसके लोगों को बाबुल से छुड़ाया जाएगा। क्या उस वक्त परमेश्वर किसी तरह से उनकी मदद करेगा? यहोवा इसका जवाब देता है: “देख, मैं अपना हाथ जाति जाति के लोगों की ओर उठाऊंगा, और देश देश के लोगों के साम्हने अपना झण्डा खड़ा करूंगा; तब वे तेरे पुत्रों को अपनी गोद में लिए आएंगे, और तेरी पुत्रियों को अपने कन्धे पर चढ़ाकर तेरे पास पहुंचाएंगे।” (यशायाह 49:22) इस भविष्यवाणी की पहली पूर्ति में यहोवा का “झण्डा,” यरूशलेम है जो एक वक्त इस्राएल की राजधानी था और जहाँ यहोवा का मंदिर हुआ करता था। जब इस्राएली, यरूशलेम के लिए रवाना होते हैं तो दूसरी जातियों के मशहूर और ताकतवर लोग, जैसे कि “राजा” और “रानियां” भी लौटने में उनकी मदद करती हैं। (यशायाह 49:23क) इनमें से कुछ मददगार थे, फारस के राजा कुस्रू और अर्तक्षत्र लॉन्गिमेनस और उनके घराने। (एज्रा 5:13; 7:11-26) इसके अलावा, यशायाह के इन शब्दों की एक और पूर्ति होनेवाली थी।
27. (क) भविष्यवाणी की बड़ी पूर्ति में, वह “झण्डा” क्या है जिसकी ओर लोगों के झुंड-के-झुंड इकट्ठे हो रहे हैं? (ख) जब सारी जातियों को मसीहा की हुकूमत के सामने घुटने टेकने पड़ेंगे तो इसका नतीजा क्या होगा?
27 यशायाह 11:10 में ‘देश देश के लोगों के लिये एक झण्डे’ का ज़िक्र किया गया है। प्रेरित पौलुस ने ये शब्द, यीशु मसीह पर लागू किए। (रोमियों 15:8-12) इसलिए भविष्यवाणी की बड़ी पूर्ति में, यीशु और आत्मा से अभिषिक्त उसके संगी राजा, यहोवा का वह “झण्डा” हैं जिसके तले लोगों के झुंड-के-झुंड इकट्ठे हो रहे हैं। (प्रकाशितवाक्य 14:1) वक्त आने पर पृथ्वी के सभी लोगों को, यहाँ तक कि आज के शासकों को भी मसीहा की हुकूमत के सामने घुटने टेकने पड़ेंगे। (भजन 2:10,11; दानिय्येल 2:44) इसका नतीजा क्या होगा? यहोवा कहता है: “तू यह जान लेगी कि मैं ही यहोवा हूं; मेरी बाट जोहनेवाले कभी लज्जित न होंगे।”—यशायाह 49:23ख.
“अब हमारा उद्धार निकट है”
28. (क) यहोवा किन शब्दों से एक बार फिर अपने लोगों को यकीन दिलाता है कि उन्हें ज़रूर छुड़ाया जाएगा? (ख) यहोवा आज भी अपने लोगों से क्या वादा करता है?
28 बाबुल की बंधुआई में रहते वक्त कुछ लोगों ने शायद सोचा होगा: ‘क्या इस्राएल का छुड़ाया जाना वाकई मुमकिन है?’ इस सवाल को ध्यान में रखते हुए यहोवा पूछता है: “क्या वीर के हाथ से शिकार छीना जा सकता है? क्या दुष्ट के बंधुए छुड़ाए जा सकते हैं?” (यशायाह 49:24) जवाब है, हाँ। यहोवा उन्हें यकीन दिलाता है: “हां, वीर के बंधुए उस से छीन लिए जाएंगे, और बलात्कारी का शिकार उसके हाथ से छुड़ा लिया जाएगा।” (यशायाह 49:25क) इस बात से कितना आश्वासन मिलता है! इतना ही नहीं, जब यहोवा अपने लोगों पर अनुग्रह करता है तो इसके साथ वह उनकी हिफाज़त करने का पक्का वादा भी करता है। वह साफ-साफ कहता है: “जो तुझ से लड़ते हैं उन से मैं आप मुक़द्दमा लड़ूंगा, और तेरे लड़केबालों का मैं उद्धार करूंगा।” (यशायाह 49:25ख) यहोवा आज भी यही वादा करता है। जकर्याह 2:8 के मुताबिक, यहोवा अपने लोगों से कहता है: “जो तुम को छूता है, वह मेरी आंख की पुतली ही को छूता है।” यह सच है कि आज हम परमेश्वर की प्रसन्नता की बेला का आनंद उठा रहे हैं, जिस दौरान सारी दुनिया के लोगों को आत्मिक सिय्योन की ओर आने का मौका दिया जा रहा है। लेकिन, प्रसन्नता की यह बेला कुछ वक्त के बाद खत्म हो जाएगी।
29. जो यहोवा की आज्ञा मानने से इनकार करते हैं, उनका कैसा भयानक अंजाम होगा?
29 लेकिन उन ढीठ लोगों का क्या होगा जो यहोवा की आज्ञा मानने से इनकार कर देते हैं, यहाँ तक कि उसके उपासकों को सताते भी हैं? यहोवा कहता है: “जो तुझ पर अन्धेर करते हैं उनको मैं उन्हीं का मांस खिलाऊंगा, और, वे अपना लोहू पीकर ऐसे मतवाले होंगे जैसे नये दाखमधु से होते हैं।” (यशायाह 49:26क) कैसा भयानक अंजाम! ऐसे हठीले विरोधी ज़्यादा समय तक नहीं रहेंगे। उनका सर्वनाश किया जाएगा। इस तरह, अपने लोगों का उद्धार करके और उनके दुश्मनों का नाश करके, यहोवा खुद को उद्धारकर्त्ता साबित करेगा। “तब सब प्राणी जान लेंगे कि तेरा उद्धारकर्त्ता यहोवा और तेरा छुड़ानेवाला, याकूब का शक्तिमान मैं ही हूं।”—यशायाह 49:26ख.
30. यहोवा ने अपने लोगों की खातिर, कैसे-कैसे उद्धार के काम किए हैं और वह आगे भी क्या करेगा?
30 ये शब्द पहली बार तब पूरे हुए जब यहोवा ने कुस्रू के ज़रिए अपने लोगों को बाबुल की बंधुआई से छुटकारा दिलाया। ठीक उसी तरह ये शब्द 1919 में भी पूरे हुए जब यहोवा ने राजा के पद पर विराजमान अपने बेटे, यीशु मसीह के ज़रिए अपने लोगों को आध्यात्मिक बंधुआई से छुड़ाया। इसीलिए, बाइबल में यहोवा और यीशु दोनों को उद्धारकर्त्ता कहा गया है। (तीतुस 2:11-13; 3:4-6) यहोवा हमारा उद्धारकर्त्ता है और यीशु, यानी मसीहा उसका ठहराया हुआ “अधिनायक” है। (प्रेरितों 5:31, नयी हिन्दी बाइबिल) जी हाँ, यीशु मसीह के ज़रिए यहोवा, जो उद्धार के काम करता है वे वाकई अद्भुत हैं। सुसमाचार का ऐलान करवाकर यहोवा, सीधे मन के लोगों को झूठे धर्म के शिकंजे से छुड़ाता है। और छुड़ौती बलिदान के ज़रिए, वह उन्हें पाप और मृत्यु की बेड़ियों से भी आज़ाद करता है। सन् 1919 में उसने यीशु के भाइयों को आध्यात्मिक बंधुआई से छुड़ाया था। और तेज़ी से आनेवाले हरमगिदोन के युद्ध में वह वफादार इंसानों की एक बड़ी भीड़ को उस विनाश से बचाएगा जो पापियों पर आ पड़ेगा।
31. परमेश्वर की प्रसन्नता पाकर मसीहियों को क्या करना चाहिए?
31 तो फिर, परमेश्वर की प्रसन्नता पाना कितनी बढ़िया आशीष है! आइए हम सभी प्रसन्नता की इस बेला का समझदारी से इस्तेमाल करें। साथ ही, हम समय की गंभीरता को समझते हुए काम करें और रोमियों को लिखे पौलुस के इन शब्दों को मानें: “समय को पहिचा[नो] . . . इसलिये कि अब तुम्हारे लिये नींद से जाग उठने की घड़ी आ पहुंची है, क्योंकि जिस समय हम ने विश्वास किया था, उस समय के विचार से अब हमारा उद्धार निकट है। रात बहुत बीत गई है, और दिन निकलने पर है; इसलिये हम अन्धकार के कामों को तज कर ज्योति के हथियार बान्ध लें। जैसा दिन को सोहता है, वैसा ही हम सीधी चाल चलें; न कि लीला क्रीड़ा, और पियक्कड़पन, न व्यभिचार, और लुचपन में, और न झगड़े और डाह में। बरन प्रभु यीशु मसीह को पहिन लो, और शरीर की अभिलाषों को पूरा करने का उपाय न करो।”—रोमियों 13:11-14.
32. परमेश्वर के लोगों को क्या आश्वासन दिए गए हैं?
32 जो यहोवा की सलाह मानते हैं, उन पर उसका अनुग्रह बना रहेगा। वह उन्हें सुसमाचार सुनाने का काम पूरा करने के लिए ज़रूरी ताकत और काबिलीयत देता रहेगा। (2 कुरिन्थियों 4:7) यहोवा अपने दासों को वैसे ही इस्तेमाल करेगा जैसे वह उनके अगुवे, यीशु को इस्तेमाल करता है। वह उनके मुँह को “चोखी तलवार के समान” बनाएगा ताकि वे नम्र लोगों के दिलों तक सुसमाचार का संदेश पहुँचा सकें। (मत्ती 28:19,20) वह अपने लोगों को “अपने हाथ की आड़ में” छिपाकर उनकी हिफाज़त करेगा। ‘चमकीले तीर’ की तरह, वे उसके “तर्कश में गुप्त” रखे जाएँगे। जी हाँ, यहोवा अपने लोगों को कभी न त्यागेगा!—भजन 94:14; यशायाह 49:2,15.
[फुटनोट]
a “शैतान ने बेशक यह पहचान लिया था कि यीशु ही परमेश्वर का पुत्र है और वही भविष्यवाणी में कहे अनुसार उसका सिर कुचल डालेगा। (उत्प 3:15) इसलिए उसने यीशु को मार डालने की हर मुमकिन कोशिश की। लेकिन जिब्राएल स्वर्गदूत ने मरियम को यह खबर सुनाते वक्त कि यीशु उसके गर्भ में पड़ेगा, उससे कहा: ‘पवित्र आत्मा तुझ पर उतरेगा, और परमप्रधान की सामर्थ तुझ पर छाया करेगी इसलिये वह पवित्र जो उत्पन्न होनेवाला है, परमेश्वर का पुत्र कहलाएगा।’ (लूका 1:35) यहोवा ने अपने बेटे की रक्षा की। इसलिए नन्हे यीशु को मार डालने की कोशिशें नाकाम रहीं।”—इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स्, भाग 2, पेज 868, जिसे वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी ने प्रकाशित किया है।
[पेज 139 पर तसवीर]
मसीहा, यहोवा के तर्कश में एक ‘चमकीले तीर’ की तरह है
[पेज 141 पर तसवीर]
मसीहा “अन्यजातियों के लिये ज्योति” रहा है
[पेज 147 पर तसवीर]
एक माँ अपने बच्चे से जितना प्यार करती है, उससे कहीं बढ़कर परमेश्वर अपने लोगों से प्यार करता है