ग्यारहवाँ अध्याय
“तुम प्रधानों पर भरोसा न रखना”
1, 2. (क) ईश्वर-प्रेरणा से दी गयी किस सलाह को यहूदियों ने नहीं माना, और इसका नतीजा क्या हुआ? (ख) यहोवा क्यों पूछता है: “त्यागपत्र कहां है”?
“तुम प्रधानों पर भरोसा न रखना, न किसी आदमी पर, क्योंकि उस में उद्धार करने की भी शक्ति नहीं। . . . क्या ही धन्य वह है, जिसका सहायक याकूब का ईश्वर है, और जिसका भरोसा अपने परमेश्वर यहोवा पर है। वह आकाश और पृथ्वी . . . का कर्त्ता है।” (भजन 146:3-6) काश कि यशायाह के ज़माने के यहूदी, भजनहार की इस सलाह को मानते! मिस्र या किसी और विधर्मी जाति पर भरोसा रखने के बजाय, भला होता कि वे ‘याकूब के ईश्वर’ पर भरोसा रखते! अगर वे ऐसा करते तो दुश्मनों का हमला होने पर यहोवा ज़रूर उनकी हिफाज़त करता। लेकिन यहूदा, यहोवा से मदद माँगना ही नहीं चाहता। इसलिए यहोवा भी यरूशलेम को नाश होने के लिए छोड़ देगा और यहूदा के निवासियों को बाबुल की बंधुआई में जाने देगा।
2 यहूदा की इस हालत के लिए कोई और नहीं बल्कि वह खुद ज़िम्मेदार है। वह हरगिज़ यह इलज़ाम नहीं लगा सकता कि उस पर आफत इसलिए आयी है क्योंकि यहोवा ने उसके साथ विश्वासघात किया है या वह इस देश के साथ अपनी वाचा को भूल गया है। सिरजनहार वाचा तोड़नेवालों में से नहीं है। (यिर्मयाह 31:32; दानिय्येल 9:27; प्रकाशितवाक्य 15:4) इसी बात पर ज़ोर देते हुए यहोवा, उन यहूदियों से पूछता है: “तुम्हारी माता का त्यागपत्र कहां है, जिसे मैं ने उसे त्यागते समय दिया था?” (यशायाह 50:1क) मूसा की व्यवस्था के अधीन, अगर एक आदमी अपनी पत्नी को तलाक देना चाहता है तो उसे अपनी पत्नी को त्याग-पत्र देना पड़ता था। तब वह स्त्री किसी और पुरुष की होने के लिए आज़ाद हो जाती थी। (व्यवस्थाविवरण 24:1,2) लाक्षणिक अर्थ में यहोवा ने यहूदा की बहन, यानी इस्राएल को ऐसा त्याग-पत्र दे दिया है, मगर यहूदा को नहीं।a वह अब भी उसका “स्वामी” है। (यिर्मयाह 3:8,14) इसलिए यहूदा को विधर्मी देशों के साथ नाता जोड़ने की छूट बिलकुल नहीं है। यहोवा के साथ उसका रिश्ता तब तक कायम रहेगा जब तक “शीलो [मसीहा] न आए।”—उत्पत्ति 49:10.
3. यहोवा ने अपने लोगों को क्यों ‘बेच’ दिया?
3 यहोवा, यहूदा से यह भी पूछता है: “क्या अपना कोई कर्ज चुकाने के लिये मैंने तुम्हें बेचा है?” (यशायाह 50:1ख, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) ऐसा नहीं कि यहोवा अपना कोई कर्ज़ चुकाने के लिए यहूदियों को बाबुल की बंधुआई में भेज देगा। वह कोई गरीब इस्राएली नहीं जिसे अपने लेनदार को पैसा चुकाने के लिए अपने बच्चों को गुलामी में बेचना पड़े। (निर्गमन 21:7) यहोवा अपने लोगों के दास बनाए जाने की असली वजह बताता है: “सुनो, तुम अपने ही अधर्म के कामों के कारण बिक गए, और तुम्हारे ही अपराधों के कारण तुम्हारी माता छोड़ दी गई।” (यशायाह 50:1ग) यहोवा ने यहूदियों को नहीं त्यागा, बल्कि उन्होंने खुद यहोवा से मुँह फेर लिया है।
4, 5. यहोवा अपने लोगों के लिए प्यार कैसे दिखाता है, मगर बदले में यहूदा क्या करता है?
4 यहोवा के अगले सवाल से साफ पता चलता है कि उसे अपने लोगों से कितना प्यार है: “इसका क्या कारण है कि जब मैं आया तब कोई न मिला? और जब मैं ने पुकारा, तब कोई न बोला?” (यशायाह 50:2क) यहोवा, अपने सेवकों यानी भविष्यवक्ताओं के ज़रिए मानो उनके घर आकर लोगों से खुद मिन्नत करता है कि वे पूरे मन से उसके पास लौट आएँ। मगर यहूदी कोई जवाब नहीं देते। उन्हें अदना इंसान से मदद माँगना ज़्यादा बेहतर लगता है और कभी-कभी तो वे मिस्र के सामने भी हाथ फैलाते हैं।—यशायाह 30:2; 31:1-3; यिर्मयाह 37:5-7.
5 क्या मिस्र के पास यहोवा से बढ़कर उद्धार करने की ताकत है? ये विश्वासघाती यहूदी, शायद सदियों पहले हुई उन घटनाओं को भूल गए हैं जिनके बाद उनकी जाति का जन्म हुआ था। यहोवा उनसे पूछता है: “क्या मेरा हाथ ऐसा छोटा हो गया है कि छुड़ा नहीं सकता? क्या मुझ में उद्धार करने की शक्ति नहीं? देखो, मैं एक धमकी से समुद्र को सुखा देता हूं, मैं महानदों को रेगिस्तान बना देता हूं; उनकी मछलियां जल बिना मर जातीं और बसाती हैं। मैं आकाश को मानो शोक का काला कपड़ा पहिनाता, और टाट को उनका ओढ़ना बना देता हूं।”—यशायाह 50:2ख,3.
6, 7. मिस्र की फौज जब इस्राएल के लिए खतरा बन गयी, तब यहोवा ने उद्धार करने की अपनी शक्ति कैसे दिखायी?
6 परमेश्वर के लोग जिससे उद्धार की उम्मीद लगाए बैठे थे, उसी मिस्र देश ने सा.यु.पू. 1513 में उन पर ज़ुल्म ढाए थे। उस वक्त इस्राएली उस विधर्मी देश के गुलाम थे। मगर यहोवा ने उन्हें छुड़ाया और उनका यह छुटकारा वाकई देखने लायक था! पहले वह मिस्र पर दस विपत्तियाँ लाया। दसवीं विपत्ति की ज़बरदस्त मार के बाद, मिस्र के फिरौन ने इस्राएलियों को उस देश से तुरंत निकल जाने को कहा। (निर्गमन 7:14–12:31) मगर, वे मिस्र से बाहर निकले ही थे कि फिरौन ने अपना इरादा बदल दिया। उसने अपनी फौज तैयार की और इस्राएलियों को वापस खदेड़कर मिस्र लाने के लिए निकल पड़ा। (निर्गमन 14:5-9) एक तरफ पीछा करती हुई मिस्रियों की बड़ी फौज, तो दूसरी तरफ लाल सागर था। इस्राएली इन दोनों के बीच बुरी तरह फँस चुके थे! मगर उनके लिए युद्ध करने को यहोवा उनके साथ था।
7 यहोवा ने इस्राएलियों और मिस्रियों के बीच बादल का एक खंभा खड़ा कर दिया जिससे मिस्री जहाँ थे, वहीं रुक गए। बादल के जिस तरफ मिस्री थे वहाँ अंधकार था; जबकि इस्राएलियों की तरफ उजियाला। (निर्गमन 14:20) इस तरह मिस्र की फौज को काबू करने के बाद, यहोवा ने “रात भर प्रचण्ड पुरवाई चलाई, और समुद्र को दो भाग करके जल ऐसा हटा दिया, जिससे कि उसके बीच सूखी भूमि हो गई।” (निर्गमन 14:21) जब सागर के दो भाग हो गए तो इस्राएलियों के सभी आदमी, औरतें और बच्चे, सही-सलामत लाल समुद्र पार कर गए। वे समुद्र की दूसरी तरफ पहुँचने ही वाले थे कि यहोवा ने बादल हटा दिया। तब गुस्से से पागल मिस्री, बेतहाशा उनके पीछे भागे और समुद्र के बीचों-बीच आ गए। जैसे ही इस्राएलियों ने सही-सलामत किनारे पर कदम रखा, यहोवा ने पानी का बाँध तोड़ दिया जिससे फिरौन और उसकी फौज उसमें डूबकर मर गए। इस तरह यहोवा अपने लोगों के लिए लड़ा। इस घटना से आज मसीहियों को कितनी हिम्मत मिलती है!—निर्गमन 14:23-28.
8. किन चेतावनियों को अनसुना करने के कारण यहूदा के लोगों को आखिरकार बंधुआई में जाना पड़ा?
8 परमेश्वर की तरफ से मिली उस जीत को यशायाह के ज़माने तक सात सौ साल बीत चुके हैं। अब यहूदा एक आज़ाद देश है। मगर वह अकसर अश्शूर और मिस्र जैसी विदेशी सरकारों के साथ राजनीतिक संधियाँ कर लेता है। लेकिन इन विधर्मी देशों के प्रधानों पर भरोसा नहीं किया जा सकता। वे यहूदा के साथ वाचा तो बाँधते हैं, मगर जब अपना मतलब पूरा करने की बात आती है, तो वे इन वाचाओं को ताक पर रख देते हैं। इसलिए भविष्यवक्ता, यहोवा की तरफ से लोगों को चेतावनी देते हैं कि वे इन आदमियों पर भरोसा न रखें। मगर, इन भविष्यवक्ताओं की बात सुनने के बजाय लोग अपने कानों में उँगलियाँ डाल लेते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि यहूदी, बंदी बनाकर बाबुल ले जाए जाते हैं और उन्हें वहाँ 70 साल सज़ा काटनी पड़ती है। (यिर्मयाह 25:11) लेकिन यहोवा अपने लोगों को नहीं भूलेगा, ना ही वह उन्हें सदा के लिए त्याग देगा। वह ठहराए हुए वक्त पर उन्हें याद करेगा, उनके लिए अपने वतन वापस लौटने और शुद्ध उपासना फिर से शुरू करने का रास्ता खोल देगा। यह सब क्यों किया जाएगा? उस शीलो के आने की तैयारी के लिए, जिसके अधीन राज्य-राज्य के लोग हो जाएँगे!
शीलो आता है
9. शीलो कौन था, और वह किस तरह का शिक्षक था?
9 सदियाँ बीत गयीं। और “जब उचित अवसर आया,” तब शीलो यानी प्रभु यीशु मसीह इस पृथ्वी पर प्रकट हुआ। (गलतियों 4:4, ईज़ी-टू-रीड वर्शन; इब्रानियों 1:1,2) इस तरह जब यहोवा ने अपने सबसे अज़ीज़ सेवक को प्रवक्ता बनाकर यहूदियों के पास भेजा तो इससे ज़ाहिर हुआ कि वह अपने लोगों से कितना प्रेम करता है। यीशु किस तरह का प्रवक्ता साबित हुआ? सर्वश्रेष्ठ! यीशु सिर्फ प्रवक्ता ही नहीं बल्कि एक निपुण शिक्षक भी था। और क्यों ना हो, आखिर उसका सिखानेवाला, यहोवा परमेश्वर खुद एक बेजोड़ उपदेशक है। (यूहन्ना 5:30; 6:45; 7:15,16,46; 8:26) इस बात का सबूत हम यशायाह की भविष्यवाणी में यीशु के इन शब्दों से देख सकते हैं: “प्रभु यहोवा ने मुझे सीखनेवालों की जीभ दी है कि मैं थके हुए को अपने वचन के द्वारा संभालना जानूं। भोर को वह नित मुझे जगाता और मेरा कान खोलता है कि मैं शिष्य के समान सुनू।”—यशायाह 50:4.b
10. यहोवा को अपने लोगों से जो प्यार है, वही प्यार यीशु ने कैसे दिखाया मगर बदले में लोगों ने क्या नज़रिया दिखाया?
10 धरती पर आने से पहले, यीशु ने स्वर्ग में अपने पिता के साथ काम किया था। पिता और पुत्र के बीच कितना प्यारा और गहरा रिश्ता है, इस बारे में नीतिवचन 8:30 में एक कविता के रूप में वर्णन किया गया है: ‘तब मैं कारीगर सा [यहोवा के] पास था; और प्रति दिन मैं उसकी प्रसन्नता था, और हर समय उसके साम्हने आनन्दित रहता था।’ यीशु को अपने पिता की बातें सुनने में बड़ा आनंद मिलता था। अपने पिता की तरह उसे भी “मनुष्यों” से प्रेम था। (नीतिवचन 8:31) इसलिए जब वह पृथ्वी पर आया, तो उसने “थके हुए को अपने वचन” से सँभाला। उसने अपनी सेवकाई की शुरूआत, यशायाह की भविष्यवाणी के ये दिलासा देनेवाले शब्द पढ़कर की: “प्रभु का आत्मा मुझ पर है, इसलिये कि उस ने कंगालों को सुसमाचार सुनाने के लिये मेरा अभिषेक किया है, . . . [कि] कुचले हुओं को छुड़ाऊं।” (लूका 4:18; यशायाह 61:1) कंगालों के लिए सुसमाचार! थके-हारे लोगों के लिए विश्राम! यह घोषणा सुनकर लोगों को कितना खुश होना चाहिए! कुछ लोग वाकई खुश हुए मगर सभी नहीं। अंत में, कई लोगों ने उन सबूतों को ठुकरा दिया जिनसे पता लगता था कि यीशु, यहोवा का सिखलाया हुआ है।
11. कौन यीशु के साथ उसका जूआ उठाते हैं, और उन्हें कैसा महसूस होता है?
11 मगर कुछ लोग यीशु की शिक्षाएँ सुनना चाहते थे। इसलिए उन्होंने यीशु का यह प्यार-भरा न्यौता बड़ी खुशी से स्वीकार किया: “हे सब परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे हुए लोगो, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो; और मुझ से सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे।” (मत्ती 11:28,29) यीशु के पास आनेवालों में वे लोग भी शामिल थे जो उसके प्रेरित बने। वे जानते थे कि यीशु का जूआ उठाने का मतलब है, कड़ी मेहनत करना। उन पर कई ज़िम्मेदारियाँ आतीं जिनमें एक थी, दुनिया के कोने-कोने तक राज्य का सुसमाचार फैलाना। (मत्ती 24:14) जब प्रेरित और बाकी चेले यह काम करने में जुट गए, तो उनके मन को सचमुच विश्राम मिला। आज वफादार मसीही भी यही काम कर रहे हैं और उन्हें भी प्रेरितों जैसी खुशियाँ मिलती हैं।
वह विरोध नहीं करता
12. यीशु ने कैसे दिखाया कि वह अपने स्वर्गीय पिता की आज्ञा मानता है?
12 यीशु यह कभी नहीं भूला कि पृथ्वी पर उसके आने का मकसद, परमेश्वर की इच्छा पूरी करना है। उसका सोच-विचार कैसा होगा, इस बारे में पहले से ही बताया गया था: “प्रभु यहोवा ने मेरा कान खोला है, और मैं ने विरोध न किया, न पीछे हटा।” (यशायाह 50:5) यीशु ने हमेशा यहोवा की आज्ञा के मुताबिक काम किया। यही नहीं उसने तो यह भी कहा: “पुत्र आप से कुछ नहीं कर सकता, केवल वह जो पिता को करते देखता है।” (यूहन्ना 5:19) इंसान के रूप में आने से पहले, यीशु ने अपने पिता के साथ-साथ शायद करोड़ों-अरबों साल तक काम किया था। और पृथ्वी पर आने के बाद भी वह यहोवा की हिदायतों का पालन करता रहा। तो फिर, आज हम मसीह के चेलों को जो असिद्ध हैं, यहोवा के आदेशों का पालन करने में कितना कड़ा प्रयास करना चाहिए!
13. बहुत जल्द यीशु के साथ क्या होनेवाला था, फिर भी उसने कैसे साहस दिखाया?
13 यहोवा के एकलौते पुत्र को ठुकरानेवाले कुछ लोग उसे सताते हैं। इसके बारे में भी पहले से भविष्यवाणी की गयी थी: “मैंने पीटनेवालों की ओर अपनी पीठ और दाढ़ी नोचनेवालों की ओर अपने गाल कर दिए; अपमानित करने और थूकनेवालों से मैंने अपना मुख न छिपाया।” (यशायाह 50:6, NHT) इस भविष्यवाणी के मुताबिक, मसीहा के विरोधी उसे दुःख देंगे और उसका अपमान करेंगे। यीशु जानता था कि उसके साथ ऐसा होगा। और उसे यह भी पता था कि तकलीफों का यह दौर किस अंजाम तक पहुँचेगा। फिर भी, जब पृथ्वी पर उसका समय खत्म होने पर था तो वह बिलकुल भी भयभीत नहीं हुआ। उसका इरादा चकमक पत्थर की तरह मज़बूत था, और वह यरूशलेम की ओर निकल पड़ा जहाँ उसकी इंसानी ज़िंदगी का अंत होना था। वहाँ जाते वक्त, यीशु ने अपने चेलों से कहा: “देखो, हम यरूशलेम को जाते हैं, और मनुष्य का पुत्र महायाजकों और शास्त्रियों के हाथ पकड़वाया जाएगा, और वे उस को घात के योग्य ठहराएंगे, और अन्य जातियों के हाथ में सौंपेंगे। और वे उस को ठट्ठों में उड़ाएंगे, और उस पर थूकेंगे, और उसे कोड़े मारेंगे, और उसे घात करेंगे, और तीन दिन के बाद वह जी उठेगा।” (मरकुस 10:33,34) यीशु के साथ इतनी दुष्टता और घोर अन्याय के पीछे उन महायाजकों और शास्त्रियों का हाथ था, जिन्हें भविष्यवाणियों से पढ़कर यह अच्छी तरह मालूम हो जाना चाहिए था कि यीशु ही मसीहा है।
14, 15. यशायाह के ये शब्द कैसे पूरे हुए कि यीशु को पीटा जाएगा और उसका अपमान किया जाएगा?
14 सामान्य युग 33 के निसान 14 की रात को, यीशु अपने कुछ चेलों के साथ गतसमनी बाग में मौजूद था। वहाँ वह प्रार्थना कर रहा था कि अचानक, लोगों की भीड़ वहाँ आ धमकी और उसे हिरासत में ले लिया। मगर यीशु घबराया नहीं। वह जानता था कि यहोवा उसके साथ है। यीशु ने अपने सहमे हुए प्रेरितों का डर दूर करने के लिए कहा कि अगर वह चाहे तो अपनी रक्षा के लिए पिता से बिनती करके बारह पलटन से अधिक स्वर्गदूत मँगा सकता है। फिर उसने आगे कहा: “परन्तु पवित्र शास्त्र की वे बातें कि ऐसा ही होना अवश्य हैं, क्योंकर पूरी होंगी?”—मत्ती 26:36,47,53,54.
15 मसीहा की परीक्षाओं और उसकी मौत के बारे में की गयी हर भविष्यवाणी पूरी हुई। महासभा ने उस पर मुकद्दमा चलाया, जिसका फैसला पहले से तय किया जा चुका था। उसके बाद पुन्तियुस पीलातुस ने यीशु से पूछताछ की और उसे कोड़े लगवाए। रोमी सैनिकों ने ‘उसके सिर पर सरकण्डे मारे, और उस पर थूका।’ इस तरह यशायाह की एक-एक बात पूरी हुई। (मरकुस 14:65; 15:19; मत्ती 26:67,68) यशायाह ने यह भी कहा था कि मसीहा की दाढ़ी के बाल नोचे जाएँगे, जो घोर अपमान की एक निशानी है। हालाँकि बाइबल में इसका कोई ज़िक्र नहीं मिलता, मगर जैसा यशायाह ने बताया था यीशु के साथ ऐसा ज़रूर हुआ होगा।c—नहेमायाह 13:25.
16. भारी तनाव का सामना करते वक्त भी, यीशु किस तरह पेश आता है, और वह क्यों लज्जित महसूस नहीं करता?
16 जब यीशु को पीलातुस के सामने पेश किया गया, तो वह उससे अपनी ज़िंदगी की भीख नहीं माँगता, मगर शांत रहकर अपनी गरिमा बनाए रखता है, क्योंकि उसे पता है कि शास्त्र में लिखी बात पूरी होने के लिए उसका मरना ज़रूरी है। जब रोमी गवर्नर ने यीशु से कहा कि उसके पास उसे मौत की सज़ा सुनाने या रिहा करने का अधिकार है तो यीशु ने बेखौफ जवाब दिया: “यदि तुझे ऊपर से न दिया जाता, तो तेरा मुझ पर कुछ अधिकार न होता।” (यूहन्ना 19:11) पीलातुस के सैनिकों ने यीशु के साथ जानवरों जैसा सलूक किया, मगर वे उसे लज्जित महसूस कराने में कामयाब न हो सके। भला वह क्यों लज्जित महसूस करे? उसने ऐसा कोई पाप नहीं किया जिसके लिए उसे सज़ा दी जा रही है। सच तो यह है कि उसे धार्मिकता के मार्ग पर चलने के कारण सताया जा रहा है। इस तरह यशायाह की भविष्यवाणी के अगले शब्द भी पूरे होते हैं: “प्रभु यहोवा मेरी सहायता करता है, इस कारण मैं ने संकोच नहीं किया; वरन अपना माथा चकमक की नाईं कड़ा किया क्योंकि मुझे निश्चय था कि मुझे लज्जित होना न पड़ेगा।”—यशायाह 50:7.
17. यीशु की सेवकाई के दौरान यहोवा हर घड़ी कैसे उसे थामे रहा?
17 यीशु में इतना साहस इसलिए है क्योंकि उसे यहोवा पर पूरा भरोसा है। उसने जिस तरह यह सबकुछ सहा, वह दिखाता है कि उसके बारे में यशायाह के ये शब्द बिलकुल सच हैं: “जो मुझे धर्मी ठहराता है वह मेरे निकट है। मेरे साथ कौन मुक़द्दमा करेगा? हम आमने-साम्हने खड़े हों। मेरा विरोधी कौन है? वह मेरे निकट आए। सुनो, प्रभु यहोवा मेरी सहायता करता है; मुझे कौन दोषी ठहरा सकेगा? देखो, वे सब कपड़े के समान पुराने हो जाएंगे; उनको कीड़े खा जाएंगे।” (यशायाह 50:8,9) यीशु के बपतिस्मे के दिन, यहोवा ने उसे अपने आत्मिक पुत्र के नाते धर्मी ठहराया। दरअसल, उस अवसर पर खुद परमेश्वर की आवाज़ यह कहते हुए सुनायी पड़ी: “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिस से मैं अत्यन्त प्रसन्न हूं।” (मत्ती 3:17) और पृथ्वी पर अपनी ज़िंदगी के आखिरी वक्त में जब यीशु गतसमनी के बाग में घुटने टेककर प्रार्थना कर रहा था, तब ‘स्वर्ग से एक दूत उस को दिखाई दिया जिसने उसे सामर्थ दी।’ (लूका 22:41-43) इससे यीशु को यह आश्वासन मिला कि उसने पृथ्वी पर जिस तरह से अपनी ज़िंदगी बितायी उससे उसका पिता खुश है। परमेश्वर के इस सिद्ध बेटे ने कोई पाप नहीं किया था। (1 पतरस 2:22) भले ही उसके दुश्मन आरोप लगाते हैं कि वह सब्त के नियम का तोड़नेवाला, पियक्कड़ है और उसमें दुष्टात्मा है, मगर उनके झूठ से यीशु के नाम पर कोई दाग नहीं लगा। जब परमेश्वर उसके साथ है, तो कौन उसके खिलाफ खड़ा होने की जुर्रत कर सकता है?—लूका 7:34; यूहन्ना 5:18; 7:20; रोमियों 8:31; इब्रानियों 12:3.
18, 19. अभिषिक्त मसीहियों को कैसे उन्हीं तकलीफों से गुज़रना पड़ा है, जो यीशु पर आयी थीं?
18 यीशु ने अपने चेलों को आगाह किया: “यदि उन्हों ने मुझे सताया, तो तुम्हें भी सताएंगे।” (यूहन्ना 15:20) बहुत जल्द ऐसा ही हुआ। सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त के दिन, पवित्र आत्मा यीशु के वफादार चेलों पर आयी और मसीही कलीसिया का जन्म हुआ। ये मसीही अब यीशु के साथ “इब्राहीम के वंश” का एक हिस्सा थे और परमेश्वर ने इन्हें अपने आत्मिक पुत्रों की हैसियत से गोद लिया था। मगर, वफादार मसीहियों की इस नयी कलीसिया के बनते ही धर्म-गुरुओं ने उनके प्रचार काम को बंद करवाने की कोशिश की। (गलतियों 3:26,29; 4:5,6) पहली सदी से लेकर आज तक, अभिषिक्त मसीही, धार्मिकता के पक्ष में स्थिर खड़े हैं। इस दौरान उन्हें, यीशु के दुश्मनों के हाथों झूठे प्रचार-प्रसार और भयानक ज़ुल्मों का सामना करना पड़ा है।
19 मगर फिर भी, वे हमेशा यीशु के ये हौसला बढ़ानेवाले शब्द याद रखते हैं: “धन्य हो तुम, जब मनुष्य मेरे कारण तुम्हारी निन्दा करें, और सताएं और झूठ बोल बोलकर तुम्हारे विरोध में सब प्रकार की बुरी बात कहें। आनन्दित और मगन होना क्योंकि तुम्हारे लिये स्वर्ग में बड़ा फल है।” (मत्ती 5:11,12) इसलिए, अभिषिक्त मसीहियों के साथ चाहे कितनी ही बर्बरता क्यों न की जाए, वे लज्जित नहीं होते बल्कि हमेशा अपना सिर ऊँचा उठाए रखते हैं। उनके विरोधी चाहे उन्हें जितना भी बदनाम करें, इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वे जानते हैं कि परमेश्वर ने उन्हें धर्मी ठहराया है। उसकी नज़र में वे “निष्कलंक, और निर्दोष” हैं।—कुलुस्सियों 1:21,22.
20. (क) आज कौन अभिषिक्त मसीहियों का साथ दे रहे हैं, और उनका क्या अनुभव रहा है? (ख) अभिषिक्त मसीही और ‘अन्य भेड़ें’ कैसे सिखलाए हुए लोगों की तरह बोलते हैं?
20 हमारे दिनों में ‘अन्य भेड़ों’ की एक “बड़ी भीड़” अभिषिक्त मसीहियों का साथ दे रही है। ये अन्य भेड़ें भी धार्मिकता के पक्ष में स्थिर खड़ी हैं। इसलिए, उन्हें भी अपने अभिषिक्त भाइयों के साथ बहुत दुःख उठाना पड़ा है और उन्होंने “अपने वस्त्र मेम्ने के लोहू में धोकर श्वेत किए हैं।” यहोवा ने उनको भी धर्मी ठहराया है ताकि “बड़े क्लेश” में उनका उद्धार हो। (यूहन्ना 10:16, NW; प्रकाशितवाक्य 7:9,14,15; याकूब 2:23) हालाँकि उनके विरोधी अब बहुत ताकतवर दिखायी देते हैं, मगर जैसे यशायाह की भविष्यवाणी कहती है, परमेश्वर के ठहराए गए समय पर ये विरोधी कीड़ा खाए हुए कपड़े की तरह हो जाएँगे जो सिर्फ फेंके जाने के लायक है। उस समय के आने तक, अभिषिक्त मसीही और ‘अन्य भेड़’ दोनों ही नियमित रूप से प्रार्थना करने, परमेश्वर के वचन का अध्ययन करने और उपासना के लिए सभाओं में हाज़िर होने के ज़रिए खुद को मज़बूत बनाए रखते हैं। इस तरह वे यहोवा से सीखते हैं और उसके सिखलाए हुओं की तरह बोलते हैं।
यहोवा के नाम पर भरोसा रखिए
21. (क) कौन उजियाले में चलते हैं, और उनका क्या अंजाम होता है? (ख) अँधियारे में चलनेवालों का क्या होता है?
21 ध्यान दीजिए कि अब एक बिलकुल अलग बात कही जा रही है: “तुम में से कौन है जो यहोवा का भय मानता और उसके दास की बातें सुनता है, जो अन्धियारे में चलता हो और उसके पास ज्योति न हो? वह यहोवा के नाम का भरोसा रखे, और अपने परमेश्वर पर आशा लगाए रहे।” (यशायाह 50:10) जो लोग परमेश्वर के दास, यीशु मसीह की बात सुनते हैं, वे उजियाले में चलते हैं। (यूहन्ना 3:21) वे न सिर्फ यहोवा परमेश्वर का नाम लेते हैं बल्कि उस पर पूरा भरोसा भी रखते हैं। एक वक्त था जब वे अँधियारे में चलने की वजह से इंसानों से डरते थे मगर अब वे अपना रास्ता बदल चुके हैं। अब वे यहोवा पर आशा लगाए रहते हैं। दूसरी तरफ, जो अँधियारे में चलते रहते हैं, उन पर इंसान का डर हावी हो जाता है। रोमी अफसर, पुन्तियुस पीलातुस के साथ ऐसा ही हुआ। वह जानता था कि यीशु पर लगाए गए सारे इलज़ाम झूठे हैं और वह बेकसूर है, फिर भी उसने यीशु को रिहा नहीं किया क्योंकि वह लोगों से डरता था। रोमी सैनिकों ने परमेश्वर के पुत्र को मार डाला, मगर यहोवा ने उसका पुनरुत्थान करके उसे महिमा और आदर का मुकुट पहनाया। लेकिन पीलातुस का क्या हुआ? यहूदी इतिहासकार, फ्लेवियस जोसीफस बताते हैं कि यीशु की मौत के सिर्फ चार साल बाद पीलातुस की जगह एक नया रोमी गवर्नर आ गया। और पीलातुस को हुक्म दिया गया कि वह अपने खिलाफ लगाए गए गंभीर इलज़ामों की सफाई पेश करने के लिए रोम में हाज़िर हो। और उन यहूदियों का क्या हुआ जिन्होंने यीशु को मरवाया था? यीशु की मौत को चालीस साल भी बीतने न पाए थे कि रोमी फौज ने आकर यरूशलेम को तहस-नहस कर दिया और उसके बहुत-से निवासियों की लाशें बिछा दीं और बाकियों को गुलाम बनाकर ले गए। जो लोग अँधियारे में चलना पसंद करते हैं, वे कभी उजियाले का मुँह नहीं देख पाएँगे!—यूहन्ना 3:19.
22. उद्धार के लिए इंसान पर आस लगाना क्यों मूर्खता की हद है?
22 उद्धार के लिए इंसान पर आस लगाना मूर्खता की हद है! इसका कारण यशायाह की भविष्यवाणी समझाती है: “देखो, तुम सब जो आग सुलगाते हो, और अपने आप को अंगारों से घेर लेते हो, अपनी ही आग के शोलों में, और अपने सुलगाए हुए अंगारों में चलो। तुम मेरे हाथ से यही पाओगे; तुम अज़ाब में लेट रहोगे।” (यशायाह 50:11, किताब-ए-मुकद्दस) इंसानी अगुवों का राज बस चार दिन का होता है। हो सकता है कि एक शासक अपनी ज़बरदस्त शख्सियत से कुछ वक्त के लिए लोगों का दिल जीत ले। मगर उसके इरादे चाहे कितने ही नेक क्यों न हों, उसकी एक सीमा होती है। उसके हिमायती उम्मीद करते हैं कि वह ज्वाला भड़काएगा, लेकिन वह थोड़े-से ‘अंगारे’ ही सुलगा पाता है, जिनसे कुछ देर के लिए गरमाहट और रोशनी तो मिलती है, मगर वे जल्द ही बुझ जाते हैं। दूसरी तरफ जो लोग, परमेश्वर के वादा किए हुए मसीहा, शीलो पर भरोसा रखते हैं, उन्हें कभी-भी निराश नहीं होना पड़ेगा।
[फुटनोट]
a यशायाह के 50वें अध्याय की पहली तीन आयतों में यहोवा, पूरे यहूदा राष्ट्र को अपनी पत्नी और उसके निवासियों को अपने बच्चे कहकर पुकारता है।
b ऐसा लगता है कि आयत 4 से लेकर अध्याय के आखिर तक लेखक, यशायाह अपने ही बारे में बात कर रहा है। इन आयतों में वह जिन परीक्षाओं का ज़िक्र करता है, उनमें से कुछ से शायद वह भी गुज़रा हो। मगर, इस भविष्यवाणी का एक-एक शब्द सही मायनों में यीशु मसीह पर पूरा उतरता है।
c गौर करने लायक बात है कि सेप्टुअजेंट में, यशायाह 50:6 का अनुवाद यूँ किया गया है: “मैंने अपनी पीठ कोड़े मारनेवालों और अपने गाल, प्रहार करनेवालों की ओर फेर दिए।”
[पेज 155 पर तसवीर]
यहूदी, यहोवा के बजाय इंसानी राजाओं पर भरोसा रखते हैं
[पेज 156, 157 पर तसवीर]
लाल समुद्र पर, यहोवा ने अपने लोगों की रक्षा करने के लिए उनके और मिस्रियों के बीच बादल का खंभा खड़ा कर दिया