तेरहवाँ अध्याय
“एक संग उमंग में आकर जयजयकार करो”!
1. यशायाह के 52वें अध्याय की भविष्यवाणी से क्यों खुशी मिलती है, और यह कैसे दो बार पूरी हुई?
आज़ादी! क्या बंधुओं के लिए आनेवाले वक्त के बारे में इससे बढ़िया कोई और खुशखबरी हो सकती है? यशायाह की किताब का खास विषय, आज़ादी और बहाली है। इसलिए हैरानी की बात नहीं कि बाइबल में भजन संहिता के बाद यशायाह ही दूसरी ऐसी किताब है जिसमें सबसे ज़्यादा खुशी का इज़हार करनेवाले शब्द पाए जाते हैं। खासकर यशायाह का 52वाँ अध्याय, परमेश्वर के लोगों के लिए आनंद मनाने का कारण बताता है। इस भविष्यवाणी के शब्द पहली बार सा.यु.पू. 537 में यरूशलेम पर पूरे हुए। और इसकी बड़ी पूर्ति “ऊपर की यरूशलेम” पर हुई, जो आत्मिक प्राणियों से बना यहोवा का स्वर्गीय संगठन है। इस संगठन का वर्णन कभी-कभी एक माँ या पत्नी के तौर पर किया गया है।—गलतियों 4:26; प्रकाशितवाक्य 12:1.
‘हे सिय्योन, अपना बल धारण कर’!
2. सिय्योन कब और कैसे जाग उठी?
2 यहोवा, यशायाह के ज़रिए अपनी प्रिय नगरी, सिय्योन को आवाज़ देता है: “हे सिय्योन, जाग, जाग! अपना बल धारण कर; हे पवित्र नगर यरूशलेम, अपने शोभायमान वस्त्र पहिन ले; क्योंकि तेरे बीच खतनारहित और अशुद्ध लोग फिर कभी प्रवेश न करने पाएंगे। अपने ऊपर से धूल झाड़ दे, हे यरूशलेम, उठ; हे सिय्योन की बन्दी बेटी अपने गले के बन्धन को खोल दे।” (यशायाह 52:1,2) यरूशलेम के निवासियों ने यहोवा का क्रोध भड़काया था, इसीलिए वह नगरी 70 साल तक उजड़ी रही। (2 राजा 24:4; 2 इतिहास 36:15-21; यिर्मयाह 25:8-11; दानिय्येल 9:2) मगर इतने लंबे अरसे तक यूँ ही पड़े रहने के बाद, अब उसके लिए जाग उठने और आज़ादी के शोभायमान वस्त्र पहनने का समय है। यहोवा ने कुस्रू के मन को उभारा है कि वह “सिय्योन की बन्दी बेटी” को छुड़ा दे ताकि यहूदी बंधुए और उनकी संतान बाबुल छोड़कर यरूशलेम लौट आएँ और वहाँ सच्ची उपासना फिर से शुरू करें। लेकिन यरूशलेम में ऐसा कोई नज़र नहीं आना चाहिए जिसका खतना न हुआ हो या जो अशुद्ध हो।—एज्रा 1:1-4.
3. अभिषिक्त मसीहियों की कलीसिया को ‘सिय्योन की बेटी’ क्यों कहा जा सकता है, और वे किस अर्थ में आज़ाद किए गए हैं?
3 यशायाह के ये शब्द मसीही कलीसिया पर भी पूरे होते हैं। अभिषिक्त मसीहियों की कलीसिया को आधुनिक समय की ‘सिय्योन की बेटी’ कहा जा सकता है, क्योंकि स्वर्गीय सिय्योन यानी “ऊपर की यरूशलेम” उनकी माँ है।a अभिषिक्त जन, झूठे धर्म के उपदेशों और धर्मत्यागी शिक्षाओं से आज़ाद किए गए हैं, इसलिए उन्हें यहोवा के सामने अपनी शुद्धता बनाए रखनी है। इसके लिए उन्हें शारीरिक खतने के बजाय अपने हृदय का खतना करवाने की ज़रूरत है। (यिर्मयाह 31:33; रोमियों 2:25-29) इसके लिए ज़रूरी है कि उन्हें उपासना के मामले में, अपने सोच-विचार और चालचलन में यहोवा के सामने शुद्धता बनाए रखनी होगी।—1 कुरिन्थियों 7:19; इफिसियों 2:3.
4. हालाँकि “ऊपर की यरूशलेम” ने कभी यहोवा की आज्ञा नहीं तोड़ी, फिर भी पृथ्वी पर उसके प्रतिनिधियों का अनुभव कैसे प्राचीन यरूशलेम के निवासियों से मिलता-जुलता था?
4 यह सच है कि “ऊपर की यरूशलेम” ने कभी यहोवा की आज्ञा नहीं तोड़ी। लेकिन पहले विश्वयुद्ध के दौरान, पृथ्वी पर उसके प्रतिनिधियों यानी अभिषिक्त मसीहियों ने अनजाने में यहोवा का नियम तोड़ दिया, क्योंकि उन्हें इसकी सही समझ नहीं थी कि मसीहियों के लिए सच्ची निष्पक्षता बनाए रखने का क्या मतलब है। इसलिए वे परमेश्वर का अनुग्रह खो बैठे और आध्यात्मिक मायने में ‘बड़े बाबुल’ या पूरे विश्व में फैले झूठे धर्म के साम्राज्य की जकड़ में आ गए। (प्रकाशितवाक्य 17:5) कैदियों के तौर पर उनकी सबसे बदतर हालत तब हुई जब जून 1918 में वॉच टावर संस्था के दफ्तर के आठ सदस्यों पर देशद्रोह जैसे कई झूठे इलज़ाम लगाकर उन्हें जेल में डाल दिया गया। उस वक्त व्यवस्थित ढंग से हो रहा सुसमाचार का प्रचार काम लगभग बंद हो गया। लेकिन 1919 में मानो एक बिगुल बजाकर आध्यात्मिक मायने में उनको जगाया गया। तब से अभिषिक्त मसीही, उपासना और चालचलन के मामले में बड़े बाबुल की अशुद्धता से खुद को पूरी तरह अलग करने लगे। वे बंधुआई की धूल से उठ खड़े हुए और तब से “ऊपर की यरूशलेम” को एक “पवित्र नगर” की महिमा प्राप्त होने लगी जिसके अंदर आध्यात्मिक अशुद्धता हरगिज़ बरदाश्त नहीं की जाती।
5. कोई मुआवज़ा दिए बगैर यहोवा को अपने लोगों को छुड़ाने का पूरा-पूरा हक क्यों था?
5 सामान्य युग पूर्व 537 और सन् 1919 में यहोवा के पास अपने लोगों को रिहा करने का पूरा-पूरा हक था। यशायाह समझाता है: “यहोवा यों कहता है, तुम जो सेंतमेंत बिक गए थे, इसलिये अब बिना रुपया दिए छुड़ाए भी जाओगे।” (यशायाह 52:3) परमेश्वर के चुने हुए लोगों को अपनी गुलामी में लेते वक्त न तो प्राचीन बाबुल ने, ना ही बड़े बाबुल ने यहोवा को कोई कीमत अदा की थी। इसलिए जब पैसे का कोई लेन-देन ही नहीं हुआ तो भला यहोवा खुद को किसी का कर्ज़दार क्यों समझे? वह अब भी कानूनी तौर पर अपने लोगों का मालिक था। और दोनों ही मामलों में उसे अपने उपासकों को छुड़ा लाने का पूरा-पूरा हक था। इसके लिए उसे इन गुलामी करवानेवालों को मुआवज़ा देने की कोई ज़रूरत नहीं थी!—यशायाह 45:13.
6. यहोवा के दुश्मनों ने बीते समय की किन घटनाओं से सबक नहीं सीखा?
6 यहोवा के इन दुश्मनों ने बीती घटनाओं से कोई सबक नहीं सीखा। हम पढ़ते हैं: “प्रभु यहोवा यों भी कहता है, मेरी प्रजा पहिले तो मिस्र में परदेशी होकर रहने को गई थी, और अश्शूरियों ने भी बिना कारण उन पर अत्याचार किया।” (यशायाह 52:4) दरअसल इस्राएलियों को मिस्र में मेहमान बनकर रहने का न्यौता दिया गया था, मगर बाद में मिस्र के एक फिरौन ने उन्हें गुलाम बना लिया। मगर यहोवा ने लाल सागर में फिरौन और उसकी सेना को डुबोकर खत्म कर दिया। (निर्गमन 1:11-14; 14:27,28) और जब अश्शूरी राजा, सन्हेरीब यरूशलेम के लिए खतरा बन गया तो यहोवा के स्वर्गदूत ने उस राजा के 1,85,000 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। (यशायाह 37:33-37) उसी तरह, परमेश्वर के लोगों पर ज़ुल्म ढाने के अंजाम से न तो प्राचीन बाबुल, न ही बड़ा बाबुल बच पाएगा।
“मेरी प्रजा मेरा नाम जान लेगी”
7. यहोवा के लोगों के बंदी बनाए जाने से उसके नाम पर कैसा असर पड़ा?
7 जैसे कि भविष्यवाणी दिखाती है, यहोवा के लोगों के बंधुआई में होने से, उसके नाम पर भी बन आती है: “इसलिये यहोवा की यह वाणी है कि मैं अब यहां क्या करूं जब कि मेरी प्रजा सेंतमेंत हर ली गई है? यहोवा यह भी कहता है कि जो उन पर प्रभुता करते हैं वे उधम मचा रहे हैं, और, मेरे नाम की निन्दा लगातार दिन भर होती रहती है। इस कारण मेरी प्रजा मेरा नाम जान लेगी; वह उस समय जान लेगी कि जो बातें करता है वह यहोवा ही है; देखो, मैं ही हूं।” (यशायाह 52:5,6) इस मामले में यहोवा क्यों इतनी दिलचस्पी ले रहा है? बाबुल की बंधुआई में पड़े इस्राएलियों के लिए वह क्यों इतना फिक्रमंद है? बाबुल ने यहोवा के लोगों पर कब्ज़ा कर लिया है और उन पर जीत हासिल करने की खुशी में ऊधम मचा रहा है। बाबुल न सिर्फ डींगें मारता है बल्कि यहोवा के नाम की तौहीन भी कर रहा है। इसलिए यहोवा को कदम उठाना ही पड़ेगा। (यहेजकेल 36:20,21) बाबुल यह समझ नहीं पा रहा है कि यहोवा अपने लोगों से नाराज़ है और इसी वजह से यरूशलेम की यह दुर्दशा हुई है। इसके बजाय, वह यहूदियों को अपना गुलाम बनाकर यह सोचता है कि उनका परमेश्वर कमज़ोर है। और-तो-और, बाबुल पर अपने पिता के साथ राज करनेवाला बेलशस्सर, यहोवा की खिल्ली भी उड़ा रहा है। वह अपने देवी-देवताओं के सम्मान में रखी गयी एक दावत में, यहोवा के मंदिर के पात्रों को इस्तेमाल कर रहा है।—दानिय्येल 5:1-4.
8. प्रेरितों की मौत के बाद से यहोवा के नाम के साथ क्या किया गया?
8 ये सारी बातें “ऊपर की यरूशलेम” पर कैसे पूरी हुईं? ऐसा कहा जा सकता है कि जब से मसीही होने का दावा करनेवालों में धर्मत्याग जड़ पकड़ने लगा, तब से “[उनके] कारण अन्यजातियों में परमेश्वर के नाम की निन्दा की जाती है।” (रोमियों 2:24; प्रेरितों 20:29,30) जहाँ तक यहूदियों की बात थी, उन्होंने अंधविश्वास के कारण धीरे-धीरे परमेश्वर का नाम लेना छोड़ दिया। और प्रेरितों की मौत होते ही, धर्मत्यागी मसीहियों ने भी उन यहूदियों की मिसाल पर चलकर परमेश्वर का नाम लेना छोड़ दिया। धीरे-धीरे इस धर्मत्याग ने ईसाईजगत का रूप लिया, जो आज बड़े बाबुल का सबसे बड़ा हिस्सा है। (2 थिस्सलुनीकियों 2:3,7; प्रकाशितवाक्य 17:5) ईसाईजगत ने जिस तरह बढ़-चढ़कर अनैतिक काम किए हैं और जिस कदर शर्मनाक ढंग से लोगों का खून बहाया है, उससे यहोवा के नाम का बहुत निरादर हुआ है।—2 पतरस 2:1,2.
9, 10. आज के ज़माने में, परमेश्वर के चुने हुए लोगों ने यहोवा के स्तरों और उसके नाम के बारे में कैसी गहरी समझ पायी है?
9 सन् 1919 में, जब महान कुस्रू, यीशु मसीह ने परमेश्वर के चुने हुए लोगों को बड़े बाबुल से छुड़ाया, तब से उन्होंने और अच्छी तरह समझा कि परमेश्वर उनसे क्या माँग करता है। इससे पहले ही उन्होंने ईसाईजगत की ऐसी कई शिक्षाओं को ठुकराकर खुद को शुद्ध कर लिया था जिनकी जड़ें मसीही धर्म की शुरूआत से पहले के झूठे धर्मों में थीं। ये शिक्षाएँ थीं, त्रिएक, आत्मा की अमरता और नरक की आग में अनंत यातना। अब वे बड़े बाबुल से छूटने के बाद अपने दामन से झूठे धर्म का हर दाग मिटाने में लग गए। उन्हें यह भी एहसास हुआ कि दुनिया के राजनीतिक मामलों में पूरी तरह से निष्पक्षता बनाए रखना कितना ज़रूरी है। वे खुद को ऐसे रक्तदोष से भी शुद्ध करना चाहते थे जो उनमें से कुछ लोगों पर शायद अनजाने में आ पड़ा हो।
10 परमेश्वर के इन सेवकों को यहोवा के नाम की अहमियत के बारे में और भी गहरी समझ मिली। इसलिए सन् 1931 में उन्होंने ‘यहोवा के साक्षी’ नाम अपनाया। ऐसा करके उन्होंने दुनिया के सामने ऐलान किया कि वे यहोवा और उसके नाम के समर्थक हैं। इतना ही नहीं, 1950 से यहोवा के साक्षियों ने न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन बाइबल छापनी शुरू की, जिसमें उन्होंने परमेश्वर के नाम को उन सभी जगहों में दोबारा इस्तेमाल किया जहाँ उसे होना चाहिए। जी हाँ, वे यहोवा के नाम की कदर जान गए हैं और धरती के कोने-कोने तक इस नाम का ऐलान कर रहे हैं।
“जो शुभ समाचार लाता है”
11. “तेरा परमेश्वर राजा बन गया है,” सा.यु.पू. 537 की घटनाओं को ध्यान में रखते हुए यह ऐलान करना क्यों सही था?
11 अब हमारा ध्यान फिर से सिय्योन की तरफ लाया जाता है, जो अब भी उजाड़ पड़ी है। एक दूत उसके पास खुशखबरी लेकर आता है। “पहाड़ों पर उसके पांव क्या ही सुहावने हैं जो शुभ समाचार लाता है, जो शान्ति की बातें सुनाता है और कल्याण का शुभ समाचार और उद्धार का सन्देश देता है, जो सिय्योन से कहता है, तेरा परमेश्वर राज्य करता है [“तेरा परमेश्वर राजा बन गया है,” नयी हिन्दी बाइबिल, फुटनोट]।” (यशायाह 52:7) सा.यु.पू. 537 में, यह कैसे कहा जा सकता था कि सिय्योन का परमेश्वर राजा बन गया है? क्या यहोवा हमेशा से ही राजा नहीं है? बेशक, वह तो ‘युग युग का राजा’ है! (प्रकाशितवाक्य 15:3) मगर, उस मौके पर यह ऐलान करना सही था कि “तेरा परमेश्वर राजा बन गया है।” क्योंकि, जब बाबुल गिरा और यह शाही हुक्म सुनाया गया कि यरूशलेम में मंदिर का पुनःनिर्माण किया जाए और वहाँ शुद्ध उपासना फिर से शुरू की जाए, तो यह एक और सबूत था कि यहोवा हुकूमत करता है।—भजन 97:1.
12. ‘शुभ समाचार लाने’ में कौन सबसे पहला था, और कैसे?
12 यशायाह के दिनों में, ‘शुभ समाचार लानेवाला’ कोई एक व्यक्ति था या कोई समूह, इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। लेकिन आज के समय में यह साफ ज़ाहिर है कि शुभ समाचार देनेवाला कौन है। वह यहोवा की ओर से भेजा गया शांति का सबसे महान दूत यीशु मसीह है। धरती पर रहते समय, उसने यह खुशखबरी सुनायी कि आदम से विरासत में मिले पाप के सभी अंजामों से, जैसे बीमारी और मौत से इंसानों को आज़ादी मिलेगी। (मत्ती 9:35) यीशु ने हर मौके का इस्तेमाल करके लोगों को परमेश्वर के राज्य के बारे में सिखाया और इस तरह कल्याण के शुभ समाचार का जोश से प्रचार करने में एक बढ़िया मिसाल कायम की। (मत्ती 5:1,2; मरकुस 6:34; लूका 19:1-10; यूहन्ना 4:5-26) और उसके शिष्य भी उसकी मिसाल पर चले।
13. (क) “पहाड़ों पर उसके पांव क्या ही सुहावने हैं जो शुभ समाचार लाता है,” इन शब्दों को प्रेरित पौलुस ने किस तरह बहुत-से लोगों पर लागू किया? (ख) यह किस अर्थ में कहा जा सकता है कि दूतों के पाँव “सुहावने” हैं?
13 प्रेरित पौलुस ने रोमियों को लिखी अपनी पत्री में सुसमाचार प्रचार करने की अहमियत समझाने के लिए यशायाह 52:7 का हवाला दिया। उसने ऐसे कई सवाल पूछे जो सोचने पर मजबूर कर देते हैं। उनमें से एक सवाल यह है: ‘प्रचारक बिना लोग कैसे सुनेंगे?’ फिर उसने कहा: “जैसा लिखा है, कि उन के पांव क्या ही सोहावने हैं, जो अच्छी बातों का सुसमाचार सुनाते हैं!” (रोमियों 10:14,15) इस तरह पौलुस ने बहुवचन “उन के,” का इस्तेमाल करके यशायाह 52:7 को बहुत-से लोगों पर लागू किया, जबकि यशायाह के मूल पाठ में एकवचन “उसके” कहा गया है। यीशु मसीह की मिसाल पर चलते हुए, सभी मसीही शांति के सुसमाचार के प्रचारक हैं। उनके पांवों को किस अर्थ में “सुहावने” कहा जा सकता है? यशायाह, दूत के बारे में ऐसे कहता है मानो वह यहूदा के पास के पहाड़ों से यरूशलेम की ओर आ रहा है। इतनी दूर से एक दूत के पाँव देखना नामुमकिन है, इसलिए भविष्यवाणी में दूत पर हमारा ध्यान दिलाया गया है। यहाँ पाँव उस दूत को ही दर्शाते हैं। जिस तरह पहली सदी में यीशु और उसके चेलों की झलक पाते ही नम्र लोगों के चेहरे खिल जाते थे, ठीक उसी तरह आज के साक्षियों की झलक उन नम्र लोगों को बहुत प्यारी लगती है जो जीवनदायी सुसमाचार को स्वीकार करते हैं।
14. हमारे ज़माने में यहोवा कैसे राजा बना, और यह संदेश कब से पूरे जगत को सुनाया जाने लगा?
14 हमारे ज़माने में कब से यह ऐलान सुनायी पड़ा कि “तेरा परमेश्वर राजा बन गया है”? सन् 1919 से। उस साल सीडर पॉइंट, ओहायो में एक अधिवेशन हुआ, जिसमें वॉच टावर संस्था के अध्यक्ष, जे. एफ. रदरफर्ड ने “साथी-मज़दूरों को बुलावा,” विषय पर भाषण देकर अपने श्रोताओं में जोश भर दिया। यह भाषण यशायाह 52:7 और प्रकाशितवाक्य 15:2 पर आधारित था, जिसके ज़रिए अधिवेशन में हाज़िर सभी लोगों को प्रचार के काम में जुट जाने के लिए उकसाया गया। इस तरह, “पहाड़ों” पर ‘सुहावने पांव’ नज़र आने लगे। पहले अभिषिक्त मसीहियों ने और बाद में उनके साथियों यानी, ‘अन्य भेड़ों’ ने पूरे उत्साह के साथ यह सुसमाचार सुनाया कि यहोवा राजा बन गया है। (यूहन्ना 10:16, NW) इस बार यहोवा किस मायने में राजा बना? सन् 1914 में अपने बेटे, यीशु मसीह को स्वर्ग के नए राज्य का राजा ठहराकर, यहोवा ने एक बार फिर सबूत दिया कि वह हुकूमत करता है। और सन् 1919 में “परमेश्वर के इस्राएल” को बड़े बाबुल की बंधुआई से छुड़ाकर, यहोवा ने एक बार फिर अपनी हुकूमत का सबूत दिया।—गलतियों 6:16; भजन 47:8; प्रकाशितवाक्य 11:15,17; 19:6.
“तेरे पहरुए पुकार रहे हैं”
15. सामान्य युग पूर्व 537 में पुकारनेवाले “पहरुए” कौन हैं?
15 “तेरा परमेश्वर राजा बन गया है”! यह ऐलान सुनकर क्या कोई जवाब देता है? बेशक देता है। यशायाह लिखता है: “सुन, तेरे पहरुए पुकार रहे हैं, वे एक साथ जयजयकार कर रहे हैं; क्योंकि वे साक्षात् देख रहे हैं कि यहोवा सिय्योन को लौट रहा है।” (यशायाह 52:8) सा.यु.पू. 537 में, सबसे पहले जो बंधुए यरूशलेम लौटे, उनका स्वागत करने के लिए वहाँ सचमुच कोई पहरुए नहीं ठहराए गए थे। यह नगरी 70 सालों से उजाड़ जो पड़ी थी। (यिर्मयाह 25:11,12) तो ये पुकारनेवाले “पहरुए,” वे इस्राएली होंगे जिन्हें सिय्योन के बहाल किए जाने की सबसे पहले खबर मिलती है और जिनकी ज़िम्मेदारी बन जाती कि वे सिय्योन की बाकी संतानों तक यह खबर पहुँचाएँ। सा.यु.पू. 539 में यह देखकर कि यहोवा ने बाबुल को कुस्रू के हाथ में कर दिया है, उनको पक्का यकीन हो जाता है कि यहोवा अपनी प्रजा को छुटकारा दिला रहा है। पहरुए पुकार उठते हैं, उनका शब्द सुनकर दूसरे भी पुकार उठते हैं, फिर पहरुए खुशी के मारे और ज़ोर से ऐलान करने लगते हैं ताकि दूसरे लोग भी इस खुशखबरी को सुन लें।
16. पहरुए किसे “साक्षात्” देखते हैं, और किस अर्थ में?
16 ये पहरुए पूरी तरह चौकन्ने हैं और वे यहोवा के साथ गहरा और नज़दीकी रिश्ता कायम करते हैं, जिससे कि वे मानो उसे “साक्षात्” या आमने-सामने देख पाते हैं। (गिनती 14:14) वे यहोवा के साथ-साथ आपस में एक-दूसरे के भी करीब हैं जिससे पता लगता है कि उनके बीच एकता है और उनका संदेश खुशियों का संदेश है।—1 कुरिन्थियों 1:10.
17, 18. (क) आज का पहरुआ वर्ग किस तरह पुकार लगा रहा है? (ख) किस मायने में पहरुए साथ मिलकर जयजयकार कर रहे हैं?
17 हमारे ज़माने में, भविष्यवाणी का पहरुआ वर्ग, “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” है, जो न सिर्फ उन लोगों को पुकार लगाता है जो परमेश्वर के संगठन में हैं बल्कि उन्हें भी जो इससे बाहर हैं। (मत्ती 24:45-47) सन् 1919 में यह पुकार लगायी गयी कि अभिषिक्तों में बचे हुए जनों को इकट्ठा किया जाए और सन् 1922 में यह आवाज़ और तेज़ हो गयी जब सीडर पॉइंट, ओहायो के अधिवेशन में यह गुज़ारिश की गयी: “राजा और उसके राज्य की घोषणा करो, घोषणा करो, घोषणा करो।” फिर 1935 से भेड़ समान लोगों की बड़ी भीड़ को इकट्ठा करने पर ध्यान दिया गया। (प्रकाशितवाक्य 7:9,10) हाल के कुछ सालों में यहोवा की हुकूमत का ऐलान और भी ज़ोर-शोर से किया जाने लगा है। कैसे? सन् 2000 में, 230 से ज़्यादा देशों और इलाकों में करीब 60 लाख लोगों ने यहोवा के राज्य के बारे में गवाही दी। इसके अलावा, पहरुए वर्ग का सबसे खास औज़ार, प्रहरीदुर्ग 140 से ज़्यादा भाषाओं में खुशखबरी का ऐलान कर रहा है।
18 साथ मिलकर यह काम करने के लिए नम्रता और भाईचारे का प्रेम होना ज़रूरी है। इस पुकार का अच्छा असर तभी हो सकता है जब सभी जन एक ही संदेश सुनाएँ। इसमें खास तौर पर यहोवा के नाम, छुड़ौती के उसके इंतज़ाम, उसकी बुद्धि, उसके प्यार और उसके राज्य का प्रचार करना शामिल है। आज सारी दुनिया में मसीही कंधे-से-कंधा मिलाकर यह काम कर रहे हैं। इससे यहोवा के साथ उनका रिश्ता और भी मज़बूत होता है और वे सभी साथ मिलकर जयजयकार करते हुए खुशखबरी का ऐलान करते हैं।
19. (क) “यरूशलेम के खण्डहरों” पर कैसे खुशियों की बहार आ गयी है? (ख) यहोवा ने कैसे अपनी “पवित्र भुजा प्रगट की है”?
19 जब परमेश्वर के लोग आनंद से जयजयकार करते हैं तो वह जगह भी खुशनुमा लगने लगती है जहाँ वे रहते हैं। भविष्यवाणी आगे कहती है: “हे यरूशलेम के खण्डहरों, एक संग उमंग में आकर जयजयकार करो; क्योंकि यहोवा ने अपनी प्रजा को शान्ति दी है, उस ने यरूशलेम को छुड़ा लिया है। यहोवा ने सारी जातियों के साम्हने अपनी पवित्र भुजा प्रगट की है; और पृथ्वी के दूर दूर देशों के सब लोग हमारे परमेश्वर का किया हुआ उद्धार निश्चय देख लेंगे।” (यशायाह 52:9,10) बाबुल से बंधुओं के लौट आने पर, उजाड़ यरूशलेम की जिन जगहों पर उदासी छायी हुई है उनमें खुशियों की बहार आ जाती है क्योंकि अब यहाँ यहोवा की शुद्ध उपासना दोबारा शुरू की जा सकेगी। (यशायाह 35:1,2) बेशक, इसके पीछे यहोवा का हाथ है। उसने अपनी “पवित्र भुजा प्रगट की है” मानो अपने लोगों को छुड़ाने के लिए अपनी आस्तीनें चढ़ा ली हों।—एज्रा 1:2,3.
20. हमारे दिनों में, यहोवा की पवित्र भुजा प्रगट होने का क्या अंजाम हुआ और आगे क्या होगा?
20 इन “अन्तिम दिनों” में यहोवा ने अपनी पवित्र भुजा प्रगट करके, शेष अभिषिक्त जनों यानी प्रकाशितवाक्य की किताब के “दो गवाहों” में दोबारा जान डाली है। (2 तीमुथियुस 3:1; प्रकाशितवाक्य 11:3,7-13) सन् 1919 से वे एक आध्यात्मिक फिरदौस यानी आध्यात्मिक प्रदेश में लाए गए, जिसमें अब उनके साथ अन्य भेड़ों में से उनके लाखों साथी भी रहते हैं। आखिर में, “हर-मगिदोन” में यहोवा अपने लोगों का उद्धार करने के लिए अपनी पवित्र भुजा प्रगट करेगा। (प्रकाशितवाक्य 16:14,16) उस वक्त, “पृथ्वी के दूर दूर देशों के सब लोग हमारे परमेश्वर का किया हुआ उद्धार निश्चय देख लेंगे।”
एक बेहद ज़रूरी माँग
21. (क) ‘यहोवा के पात्रों के ढोनेवालों’ से क्या माँग की जाती है? (ख) बाबुल से निकलनेवाले यहूदियों को थर-थर काँपने की ज़रूरत क्यों नहीं है?
21 जो लोग बाबुल छोड़कर यरूशलेम की ओर रवाना होंगे, उन्हें एक माँग पूरी करनी होगी। यशायाह लिखता है: “दूर हो, दूर, वहां से निकल जाओ, कोई अशुद्ध वस्तु मत छुओ; उसके बीच से निकल जाओ; हे यहोवा के पात्रों के ढोनेवालो, अपने को शुद्ध करो। क्योंकि तुम को उतावली से निकलना नहीं, और न भागते हुए चलना पड़ेगा; क्योंकि यहोवा तुम्हारे आगे आगे अगुवाई करता हुआ चलेगा, और, इस्राएल का परमेश्वर तुम्हारे पीछे भी रक्षा करता चलेगा।” (यशायाह 52:11,12) बाबुल छोड़नेवाले इस्राएलियों को ऐसी हर चीज़ पीछे छोड़नी होगी, जिस पर बाबुल की झूठी उपासना का एक भी दाग है। और क्योंकि उन्हें यरूशलेम के मंदिर से लाए गए यहोवा के पात्र वापस ले जाने हैं, इसलिए उन्हें शुद्ध होना है। उन्हें न सिर्फ बाहरी तौर पर व्यवस्था की विधियों के मुताबिक शुद्ध होना है, बल्कि इनसे ज़्यादा ज़रूरी है, उनके मन शुद्ध हों। (2 राजा 24:11-13; एज्रा 1:7) यहोवा उनके आगे-आगे चलेगा, इसलिए उन्हें थर-थर काँपने की कोई ज़रूरत नहीं है। ना ही उन्हें बेतहाशा भागने की ज़रूरत है, मानो खून के प्यासे उनके दुश्मन उनका पीछा कर रहे हों। इस्राएल का परमेश्वर उनके पीछे भी रक्षा करता चलेगा।—एज्रा 8:21-23.
22. पौलुस ने अभिषिक्त मसीहियों के शुद्ध बने रहने की ज़रूरत पर कैसे ज़ोर दिया?
22 शुद्ध बने रहने के बारे में यशायाह के शब्द, “ऊपर की यरूशलेम” की संतान पर बड़े पैमाने पर पूरे होते हैं। कुरिन्थ के मसीहियों को अविश्वासियों के साथ असमान जूए में न जुतने की सलाह देते वक्त, पौलुस ने यशायाह 52:11 का हवाला दिया: “इसलिये प्रभु कहता है, कि उन के बीच में से निकलो और अलग रहो; और अशुद्ध वस्तु को मत छूओ।” (2 कुरिन्थियों 6:14-17) बाबुल से अपने घर लौटनेवाले इस्राएलियों की तरह, मसीहियों को भी बाबुल की झूठी उपासना से खुद को पूरी तरह बेदाग रखना है।
23. आज यहोवा के सेवक किन मामलों में शुद्धता बनाए रखने की कोशिश करते हैं?
23 ऐसा खासकर यीशु मसीह के उन अभिषिक्त चेलों को करना था जो 1919 में बड़े बाबुल से भागकर बाहर निकल आए थे। उन्होंने धीरे-धीरे झूठी उपासना के हर दाग को मिटाकर खुद को शुद्ध किया। (यशायाह 8:19,20; रोमियों 15:4) उन्होंने चालचलन के मामले में भी शुद्धता बनाए रखने की अहमियत को और अच्छी तरह समझा। हालाँकि यहोवा के साक्षी हमेशा से ही चालचलन के ऊँचे आदर्शों पर चलते आए हैं, फिर भी 1952 की प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) के लेखों में इस बात पर खास ध्यान दिया गया कि कलीसिया में शुद्धता बनाए रखने के लिए ऐसे लोगों को ताड़ना देना ज़रूरी है जो अनैतिक काम करते हैं। ऐसी ताड़ना से गलती करनेवाले को भी यह एहसास होगा कि उसे सच्चा पछतावा दिखाने की ज़रूरत है।—1 कुरिन्थियों 5:6,7,9-13; 2 कुरिन्थियों 7:8-10; 2 यूहन्ना 10,11.
24. (क) हमारे समय में ‘यहोवा के पात्र’ क्या हैं? (ख) आज मसीहियों को क्यों इस बात का पक्का यकीन है कि यहोवा उनके आगे आगे चलता रहेगा और उनके पीछे भी चलकर रक्षा करता रहेगा?
24 अभिषिक्त मसीहियों, साथ ही अन्य भेड़ों की बड़ी भीड़ ने यह संकल्प कर लिया है कि वे ऐसी कोई भी चीज़ नहीं छूएँगे जो आध्यात्मिक रूप से अशुद्ध है। उनकी शुद्ध और स्वच्छ अवस्था के कारण, वे “यहोवा के पात्रों” को ढोने के योग्य हैं। ये पात्र परमेश्वर के ठहराए ऐसे अनमोल इंतज़ाम हैं जो घर-घर के प्रचार, बाइबल अध्ययन और दूसरे तरीकों से पवित्र सेवा करने में उनकी मदद करते हैं। आज परमेश्वर के लोग अगर शुद्ध बने रहें, तो वे पक्का यकीन रख सकते हैं कि यहोवा उनके आगे आगे चलता रहेगा, साथ ही उनके पीछे भी चलकर उनकी रक्षा करता रहेगा। परमेश्वर के शुद्ध लोग होने की वजह से उनके पास “एक संग उमंग में आकर जयजयकार” करने के बहुत-से कारण हैं!
[फुटनोट]
a “ऊपर की यरूशलेम” और पृथ्वी पर रहनेवाली उसकी अभिषिक्त संतान के आपसी रिश्ते के बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए इस किताब का 15वाँ अध्याय देखिए।
[पेज 183 पर तसवीर]
सिय्योन को बंधुआई से छुड़ाया जाएगा
[पेज 186 पर तसवीर]
सन् 1919 से, “पहाड़ों” पर ‘सुहावने पांव’ फिर से नज़र आने लगे हैं
[पेज 189 पर तसवीर]
यहोवा के साक्षी एक ही संदेश सुनाते हैं
[पेज 192 पर तसवीर]
“यहोवा के पात्रों” के ढोनेवालों को नैतिक और आध्यात्मिक रूप से शुद्ध होना ज़रूरी है