चौदहवाँ अध्याय
यहोवा अपने मसीहाई सेवक को अति महान करता है
1, 2. (क) एक उदाहरण देकर बताइए कि सा.यु. पहली सदी की शुरूआत में बहुत-से यहूदियों के सामने क्या समस्या थी? (ख) यहोवा ने मसीहा को पहचानने में वफादार यहूदियों की मदद कैसे की थी?
मान लीजिए आप एक महान हस्ती से मिलने जा रहे हैं। उससे मुलाकात करने का समय और जगह तय हो चुकी है। मगर एक समस्या है: आपने उसे कभी देखा नहीं है। ऊपर से वह बिना धूम-धाम किए गुप्त रूप से यात्रा करेगा। ऐसे में आप उसे पहचानेंगे कैसे? अगर आपको उसके हुलिये, शकल-सूरत के बारे में पूरी-पूरी जानकारी मिल जाए, तो उसे पहचानना आपके लिए आसान हो सकता है।
2 पहली सदी की शुरूआत में बहुत-से यहूदियों के सामने एक ऐसी ही समस्या थी। वे उस सर्वश्रेष्ठ इंसान यानी मसीहा के आने की बाट जोह रहे थे, जिससे बड़ा इंसान दुनिया में फिर कभी पैदा नहीं होता। (दानिय्येल 9:24-27; लूका 3:15) लेकिन वफादार यहूदी उसे कैसे पहचानते? यहोवा ने इब्रानी भविष्यवक्ताओं के ज़रिए मसीहा की ज़िंदगी में होनेवाली घटनाओं की ब्यौरेदार जानकारी दी ताकि समझ रखनेवाले लोग उसे पहचानने में भूल ना करें।
3. यशायाह 52:13–53:12 में मसीहा के बारे में क्या-क्या जानकारी दी गयी है?
3 इब्रानी शास्त्र में मसीहा के बारे में दी गयी कोई भी भविष्यवाणी, उसकी इतनी साफ तसवीर पेश नहीं करती जितनी यशायाह 52:13–53:12 की भविष्यवाणी करती है। मसीहा के आने से 700 से ज़्यादा साल पहले, यशायाह ने भविष्यवाणी में मसीहा के रंग-रूप या डील-डौल के बारे में नहीं बल्कि उससे भी अहम बातों की जानकारी दी। जैसे कि मसीहा को क्यों और कैसे सताया जाएगा, साथ ही उसकी मृत्यु, उसे दफन किए जाने और बाद में महिमा पाने के संबंध में क्या-क्या घटनाएँ घटेंगी। इस भविष्यवाणी और इसकी पूर्ति पर ध्यान देने से, हमारा दिल एहसानमंदी से भर जाएगा, और हमारा विश्वास बहुत मज़बूत होगा।
“मेरा दास”—वह कौन है?
4. “दास” की पहचान बताने के लिए कुछ यहूदी विद्वानों ने क्या-क्या राय पेश की है, मगर उनकी बात यशायाह की भविष्यवाणी से क्यों मेल नहीं खाती?
4 यशायाह ने अभी-अभी बाबुल से यहूदियों की रिहाई के बारे में बताया है। अब वह भविष्य में होनेवाली इससे भी महान घटना के बारे में यहोवा के ये शब्द लिखता है: “देखो! मेरा दास अंदरूनी समझ से काम लेगा। वह ऊंचे पद पर होगा और बेशक महान और अति महान किया जाएगा।” (यशायाह 52:13, NW) आखिर यह “दास” है कौन? पिछली कई सदियों से यहूदी विद्वानों ने इस दास के बारे में अलग-अलग राय पेश की है। कुछ विद्वानों का दावा है कि यह दास, बाबुल की बंधुआई में पड़ी इस्राएल जाति थी। लेकिन यह बात भविष्यवाणी में दी गयी बाकी जानकारी से मेल नहीं खाती। भविष्यवाणी में बताया गया परमेश्वर का दास तो खुशी-खुशी दुःख उठाता है। वह बेकसूर होने के बावजूद दूसरों के पापों की खातिर ज़ुल्म सहता है। लेकिन यहूदी जाति ऐसी हरगिज़ नहीं थी क्योंकि उन्हें अपने ही अपराधों की वजह से बंधुआई में जाना पड़ा था। (2 राजा 21:11-15; यिर्मयाह 25:8-11) दूसरे कुछ विद्वानों ने दावा किया है कि यह दास इस्राएल जाति के कुलीन वर्ग के लोग हैं और इन्होंने पापी इस्राएलियों की खातिर खुद कष्ट झेले थे। लेकिन सच तो यह है कि इस्राएल जाति जब भी संकटों के दौर से गुज़री तब किसी एक समूह ने दूसरों की खातिर कभी तकलीफें नहीं झेलीं।
5. (क) कुछ यहूदी विद्वानों ने यशायाह की भविष्यवाणी किस पर लागू की? (फुटनोट देखिए।) (ख) प्रेरितों की किताब में दास की क्या साफ पहचान बतायी गयी है?
5 मसीहियत की शुरूआत से पहले और सामान्य युग की पहली कुछ सदियों के दौरान, कुछ यहूदी विद्वानों ने इस भविष्यवाणी को मसीहा पर लागू किया था। और मसीही यूनानी शास्त्र से पता चलता है कि इन विद्वानों की बात सही थी। प्रेरितों की किताब में बतायी गयी एक कूशी खोजे की घटना से यह साफ पता चलता है। उसने जब फिलिप्पुस को बताया कि वह नहीं जानता कि यशायाह की भविष्यवाणी में बताया गया दास कौन है, तब फिलिप्पुस ने “उसे यीशु का सुसमाचार सुनाया।” (प्रेरितों 8:26-40; यशायाह 53:7, 8) बाइबल की दूसरी किताबें भी यही बताती हैं कि यशायाह की भविष्यवाणी का मसीहाई दास, यीशु मसीह है।a जब हम इस भविष्यवाणी पर चर्चा करेंगे, तो हम यह देख पाएँगे कि यहोवा ने जिसे “मेरा दास” कहा उसमें और नासरत के यीशु में रत्ती भर भी फर्क नहीं है।
6. यशायाह की भविष्यवाणी कैसे दिखाती है कि मसीहा, परमेश्वर की मरज़ी पूरी करने में सफल होगा?
6 भविष्यवाणी की शुरूआत में बताया गया है कि परमेश्वर की इच्छा पूरी करने में मसीहा को आखिरकार, सफलता मिलेगी। शब्द “दास” दिखाता है कि जैसे एक दास अपने स्वामी की मरज़ी पूरी करता है ठीक उसी तरह मसीहा, परमेश्वर के अधीन रहकर उसकी इच्छा पूरी करेगा। ऐसा करते वक्त वह “अंदरूनी समझ से काम लेगा।” अंदरूनी समझ का मतलब, एक मामले की तह तक जाने की काबिलीयत है। अंदरूनी समझ से काम लेने का मतलब है, समझ-बूझ से काम लेना। यहाँ इस्तेमाल की गयी इब्रानी क्रिया के बारे में एक किताब कहती है: “इस क्रिया का खासकर यह मतलब निकलता है, होशियारी और बुद्धिमानी से काम करना। जो इंसान बुद्धिमानी से काम करेगा, वह ज़रूर सफल होगा।” और मसीहा भी वाकई सफल होगा, यह भविष्यवाणी की इस बात से देखा जा सकता है कि उसे आगे चलकर “महान और अति महान किया जाएगा।”
7. यीशु मसीह ने कैसे “अंदरूनी समझ से काम” लिया, और कैसे उसे “महान और अति महान” किया गया है?
7 यीशु ने वाकई “अंदरूनी समझ से काम” लिया था, क्योंकि उसने दिखाया कि उसे बाइबल की उन भविष्यवाणियों की समझ है जो उस पर पूरी होती हैं और उसने उन भविष्यवाणियों के मुताबिक अपने पिता की मरज़ी पूरी की। (यूहन्ना 17:4; 19:30) नतीजा क्या हुआ? यीशु, जब पुनरुत्थान पाने के बाद स्वर्ग लौटा तो “परमेश्वर ने उसको अति महान भी किया, और उसको वह नाम दिया जो सब नामों में श्रेष्ठ है।” (फिलिप्पियों 2:9; प्रेरितों 2:34-36) फिर, 1914 में महिमायुक्त यीशु को और भी ऊँचा किया गया। यहोवा ने उसे मसीहाई राज्य की राजगद्दी सौंपकर उसे सम्मानित किया। (प्रकाशितवाक्य 12:1-5) जी हाँ, उसे वाकई “महान और अति महान” किया गया।
‘उसे देखकर चकित होना’
8, 9. जब महान किया गया यीशु दंड देने आएगा, तब पृथ्वी के शासक क्या करेंगे और क्यों?
8 अति महान किए गए मसीहा को देखकर दुनिया के राष्ट्रों और उनके शासकों को कैसा लगेगा? अगर हम कुछ पल के लिए आयत 14 में ब्रैकट में दिए गए शब्द छोड़कर पढ़ें, तो भविष्यवाणी यह कहती है: “जैसे बहुत से लोग उसे देखकर चकित हुए . . . वैसे ही वह बहुत सी जातियों को पवित्र करेगा और उसको देखकर राजा शान्त रहेंगे; क्योंकि वे ऐसी बात देखेंगे जिसका वर्णन उनके सुनने में भी नहीं आया, और, ऐसी बात उनकी समझ में आएगी जो उन्हों ने अभी तक सुनी भी न थी।” (यशायाह 52:14क,15) इन शब्दों के ज़रिए यशायाह उस वक्त की जानकारी नहीं देता जब मसीहा, इंसान बनकर धरती पर आया था बल्कि वह उस वक्त के बारे में बता रहा है जब मसीहा का पृथ्वी के राजाओं के साथ आखिरी आमना-सामना होगा।
9 जब महिमा पाया यीशु इस अधर्मी संसार को दंड देने आएगा, तब पृथ्वी के शासक “उसे देखकर चकित” होंगे। हालाँकि ये शासक सचमुच अपनी आँखों से महिमा पाए यीशु को नहीं देखेंगे, मगर वे उसकी शक्ति का सबूत ज़रूर देखेंगे और उन्हें मानना होगा कि वह यहोवा की तरफ से लड़नेवाला स्वर्गीय योद्धा है। (मत्ती 24:30) उन्हें मसीहा का वह रूप देखने पर मजबूर होना पड़ेगा जिसके बारे में उन्हें धर्मगुरुओं ने नहीं बताया था। वह यह कि यीशु, यहोवा परमेश्वर का ठहराया हुआ, न्यायी और दंड देनेवाला प्रधान है! महान किए गए इस दास से जब उनका आमना-सामना होगा, तो वह ऐसी कार्यवाही करेगा जिसकी उन्होंने कभी उम्मीद भी नहीं की होगी।
10, 11. यह कैसे कहा जा सकता है कि पहली सदी में यीशु का रूप बिगाड़ दिया गया था, और आज कैसे बिगाड़ा जा रहा है?
10 आयत 14 के ब्रैकट के मुताबिक, यशायाह कहता है: “क्योंकि उसका रूप यहां तक बिगड़ा हुआ था कि मनुष्य का सा न जान पड़ता था और उसकी सुन्दरता भी आदमियों की सी न रह गई थी।” (यशायाह 52:14ख) क्या इसका मतलब यह है कि यीशु दिखने में बदसूरत था? बिलकुल नहीं। बाइबल में यह जानकारी तो नहीं दी गयी है कि यीशु दिखने में कैसा था, मगर हम पूरे यकीन के साथ कह सकते हैं कि परमेश्वर का यह सिद्ध बेटा ज़रूर एक बाँका, खूबसूरत जवान था। तो इस बात को मद्देनज़र रखते हुए हम कह सकते हैं कि यशायाह ज़रूर उस अपमान के बारे में बात कर रहा था जो यीशु को सहना पड़ा। जब यीशु ने निधड़क होकर अपने दिनों के धर्मगुरुओं का परदाफाश किया और उन्हें पाखंडी, झूठे और हत्यारे कहा तो उन्होंने बदले में उसे अपशब्द कहकर उसकी बेइज़्ज़ती की। (1 पतरस 2:22, 23) उन्होंने उस पर यह इलज़ाम लगाया कि वह कानून तोड़नेवाला, निंदक और धोखेबाज़ है और रोमी सरकार के खिलाफ साज़िश कर रहा है। इस मायने में कहा जा सकता है कि यीशु पर झूठे इलज़ाम लगानेवालों ने लोगों के सामने उसकी गलत छवि पेश करके उसका रूप बिगाड़ दिया।
11 आज भी यीशु की गलत छवि पेश की जाती है। कई लोग सोचते हैं कि यीशु चरनी में पड़ा एक छोटा बच्चा है या क्रूस पर कीलों से लटका लाचार आदमी है, जिस पर काँटों का मुकुट है और वह दर्द के मारे कराह रहा है। ईसाईजगत के पादरियों ने यीशु के बारे में ऐसे ही विचारों को बढ़ावा दिया है। उन्होंने यह नहीं बताया कि यीशु स्वर्ग में शासन करनेवाला शक्तिशाली राजा है जिसके सामने दुनिया के राष्ट्रों को लेखा देना पड़ेगा। मगर बहुत जल्द इंसानी शासकों की टक्कर उस मसीहा से होगी जिसे “स्वर्ग और पृथ्वी का सारा अधिकार . . . दिया गया है।”—मत्ती 28:18.
इस सुसमाचार पर कौन विश्वास करेगा?
12. यशायाह 53:1 के शब्दों से कौन-से दिलचस्प सवाल उठते हैं?
12 यह बताने के बाद कि मसीहा का ‘रूप कैसे बिगाड़’ दिया जाएगा और फिर हैरतअंगेज़ बदलाव से उसे “अति महान” किया जाएगा यशायाह पूछता है: “जो समाचार हमें दिया गया, उसका किस ने विश्वास किया? और यहोवा का भुजबल किस पर प्रगट हुआ?” (यशायाह 53:1) यशायाह के इन शब्दों से कुछ दिलचस्प सवाल उठते हैं: क्या यह भविष्यवाणी पूरी होगी? क्या “यहोवा का भुजबल” यानी शक्ति दिखाने की उसकी क्षमता प्रकट होगी और इन शब्दों को सच साबित करेगी?
13. पौलुस ने यह कैसे समझाया कि यशायाह की भविष्यवाणी यीशु में पूरी हुई थी, और उसके दिनों में लोगों ने कैसा रवैया दिखाया?
13 बेशक इन सारे सवालों का जवाब है, हाँ! पौलुस ने रोमियों को अपनी पत्री में यशायाह के शब्दों का हवाला देकर समझाया कि इस भविष्यवाणी के बारे में यशायाह ने जो भी सुना और लिखा वह सब यीशु में सच साबित हुआ। पृथ्वी पर दुःख उठाने के बाद यीशु का महिमा पाना, संसार के लिए एक खुशखबरी या सुसमाचार था। “परन्तु” पौलुस, अविश्वासी यहूदियों का ज़िक्र करते हुए कहता है: “सब ने उस सुसमाचार पर कान न लगाया: यशायाह कहता है, कि हे प्रभु [यहोवा] किस ने हमारे समाचार की प्रतीति की है? सो विश्वास सुनने से, और सुनना मसीह के वचन से होता है।” (रोमियों 10:16, 17) अफसोस कि पौलुस के समय में बहुत कम लोगों ने परमेश्वर के दास के बारे में सुनाए जानेवाले सुसमाचार पर विश्वास किया। ऐसा क्यों हुआ?
14, 15. मसीहा को कैसे हालात में धरती पर पैदा होना था?
14 इसके आगे भविष्यवाणी में इस्राएलियों को बताया जाता है कि पहली आयत में वे सवाल क्यों पूछे गए थे। और इससे यह भी पता चलता है कि क्यों बहुत-से लोग मसीहा को ठुकरा देंगे: “वह [देखनेवाले के] सामने कोमल अंकुर के समान और सूखी भूमि से निकली जड़ के समान उगा; उस में न रूप था, न सौंदर्य कि हम उसे देखते, न ही उसका स्वरूप ऐसा था कि हम उसको चाहते।” (यशायाह 53:2, NHT) यहाँ हमें देखने को मिलता है कि मसीहा किन हालात में दुनिया में कदम रखनेवाला था। वह गरीब परिवार में पैदा होगा और देखनेवालों को लगेगा कि इसकी कोई औकात नहीं है। इसके अलावा, वह सिर्फ एक कोमल अंकुर या नन्हे पौधे की तरह होगा, जो किसी पेड़ के तने या उसकी डाली पर उगता है। वह निर्जल और बंजर ज़मीन पर उगनेवाली जड़ जैसा भी होगा जिसे पानी की सख्त ज़रूरत होती है। वह शाही अंदाज़ में बड़ी धूम-धाम के साथ नहीं आएगा ना ही उसका पहनावा राजा-महाराजाओं जैसा होगा और उसके सिर पर कोई हीरों से जड़ा हुआ मुकुट भी नहीं होगा। इसके बजाय उसकी शुरूआत एक मामूली, गरीब परिवार से होगी और वह किसी प्रकार का दिखावा नहीं करेगा।
15 एक साधारण इंसान के तौर पर यीशु की शुरूआत के बारे में यहाँ कितनी अच्छी तसवीर पेश की गयी है! यहूदी कुँवारी मरियम ने यीशु को बैतलहम नाम के एक छोटे-से नगर में एक चरनी में जन्म दिया।b (लूका 2:7; यूहन्ना 7:42) मरियम और उसका पति, यूसुफ दोनों गरीब थे। इसलिए यीशु के जन्म के करीब 40 दिन बाद उन्होंने “पंडुकों का एक जोड़ा, या कबूतर के दो बच्चे,” पाप बलि के तौर पर चढ़ाए क्योंकि व्यवस्था में गरीबों को यह बलि चढ़ाने की इजाज़त थी। (लूका 2:24; लैव्यव्यवस्था 12:6-8) बाद में मरियम और यूसुफ नासरत में बस गए और वहाँ यीशु की परवरिश एक बड़े परिवार में हुई जो गरीबी की हालत में रहता था।—मत्ती 13:55, 56.
16. यह बात कैसे सच हुई कि यीशु में न तो “रूप” था, ना ही “सौंदर्य”?
16 ऐसा लगता था कि धरती पर बढ़ने के लिए यीशु को सही माहौल या ज़मीन नहीं मिली। (यूहन्ना 1:46; 7:41, 52) वह एक सिद्ध इंसान था और राजा दाऊद का वंशज था फिर भी, गरीबी में परवरिश पाने की वजह से लोगों की नज़र में ना तो उसका कोई देखने लायक “रूप” था, ना ही तारीफ करने लायक कोई “सौंदर्य।” क्योंकि वे तो उम्मीद लगाए बैठे थे कि मसीहा एक ऊँचे खानदान का होगा। यहूदी धर्मगुरुओं के बहकावे में आकर कई लोगों ने यीशु को नज़रअंदाज़ किया, यहाँ तक कि उसे तुच्छ समझा। यहूदी धर्मगुरुओं ने लोगों की मति इतनी खराब कर दी कि लोग उसे नज़रअंदाज़ करने लगे यहाँ तक कि तुच्छ समझने लगे। लोग इतने अंधे हो गए कि उन्हें परमेश्वर के सिद्ध बेटे में चाहने लायक कोई भी बात नज़र नहीं आयी।—मत्ती 27:11-26.
‘तुच्छ और मनुष्यों का त्यागा हुआ’
17. यशायाह अब क्या जानकारी देना शुरू करता है, और उसने ऐसा क्यों लिखा मानो ये शब्द पूरे हो चुके हैं? (ख) किन लोगों ने यीशु को “तुच्छ” जानकर उसे ‘त्याग’ दिया, और यह उन्होंने कैसे किया?
17 मसीहा को किस नज़र से देखा जाएगा और उसके साथ क्या सलूक किया जाएगा, इसके बारे में यशायाह अब ब्यौरेदार जानकारी देना शुरू करता है: “वह तुच्छ जाना जाता और मनुष्यों का त्यागा हुआ था; वह दु:खी पुरुष था, रोग से उसकी जान पहिचान थी; और लोग उस से मुख फेर लेते थे। वह तुच्छ जाना गया, और, हम ने उसका मूल्य न जाना।” (यशायाह 53:3) यशायाह को इन शब्दों के सच होने का इतना यकीन था कि उसने इनके बारे में ऐसा लिखा, मानो ये पूरे हो चुके हैं। तो क्या लोगों ने वाकई यीशु मसीह को तुच्छ जाना और उसे त्याग दिया था? जी हाँ! खुद को धर्मी समझनेवाले धर्मगुरु और उनके चेले उसे सबसे नीच इंसान समझते थे। उन्होंने उसे चुंगी लेनेवालों और वेश्याओं का साथी कहा। (लूका 7:34, 37-39) उन्होंने उसके मुँह पर थूका, उसे घूँसे मारे और उसे गालियाँ दीं। उन्होंने उस पर ताने कसे, और उसका ठट्ठा उड़ाया। (मत्ती 26:67) सच्चाई के इन दुश्मनों की बातों में आकर, यीशु के “अपनों ने [भी] उसे ग्रहण नहीं किया।”—यूहन्ना 1:10, 11.
18. यीशु कभी बीमार नहीं पड़ा था, तो फिर इसका क्या मतलब है कि “वह दु:खी पुरुष था, रोग से उसकी जान पहिचान थी”?
18 यीशु एक सिद्ध इंसान था, इसलिए वह कभी बीमार नहीं पड़ा। फिर भी “वह दु:खी पुरुष था, रोग से उसकी जान पहिचान थी।” ये सारे दुःख और रोग उसके अपने नहीं थे। यीशु पहले स्वर्ग में रहता था और अब बीमारियों से भरी इस दुनिया में आया था। उसे दुःख और दर्द सह रहे लोगों के बीच रहना पड़ा, मगर वह ऐसे लोगों से दूर-दूर नहीं भागता था जो शारीरिक या आध्यात्मिक रूप से बीमार थे। परवाह करनेवाले वैद्य की तरह वह अपने आस-पास के लोगों के दुःख से अच्छी तरह वाकिफ हुआ। इसके अलावा, उसके पास वह सब करने की ताकत थी जो किसी भी वैद्य के पास नहीं हो सकती।—लूका 5:27-32.
19. यीशु के दुश्मन ने कैसे उससे नज़रें फेर लीं, और उन्होंने कैसे “उसका मूल्य न जाना”?
19 इसके बावजूद, यीशु के दुश्मनों ने उसे ही बीमार समझा और उससे नज़रें फेर लीं। दरअसल यीशु के विरोधी उससे इस कदर नज़रें फेर लेते थे मानो वह कोई बेहद घिनौनी चीज़ हो। उनकी नज़रों में उसकी कीमत एक गुलाम के बराबर थी। (निर्गमन 21:32; मत्ती 26:14-16) उनके मन में बरअब्बा नाम के खूनी की यीशु से कहीं ज़्यादा इज़्ज़त थी। (लूका 23:18-25) यीशु को वे कितना गिरा हुआ इंसान समझते थे, यह दिखाने के लिए वे इससे ज़्यादा और क्या कर सकते थे?
20. यशायाह के शब्दों से आज यहोवा के लोगों को क्या सांत्वना मिलती है?
20 आज यहोवा के सेवक, यशायाह के शब्दों से बहुत सांत्वना पा सकते हैं। वफादारी से यहोवा की सेवा करनेवालों को शायद कभी विरोधी तुच्छ समझें या उनके साथ ऐसा सलूक करें मानो उनकी कोई कीमत नहीं। लेकिन जैसा यीशु के मामले में सच था, सबसे ज़रूरी बात यह है कि यहोवा परमेश्वर की नज़रों में हमारी क्या कीमत है। हालाँकि मनुष्यों ने ‘यीशु का मूल्य नहीं जाना,’ मगर इससे यहोवा की नज़रों में उसकी कीमत हरगिज़ कम नहीं हुई!
“हमारे ही अपराधों के कारण बेधा गया”
21, 22. (क) मसीहा ने दूसरों की खातिर खुद क्या सहा और क्या उठा लिया? (ख) बहुत-से लोगों ने मसीहा को किस नज़र से देखा, और आखिर में उसके दुःखों का अंत कैसे हुआ?
21 मसीहा को इतने दुःख उठाने और मरने की ज़रूरत क्यों पड़ी? यशायाह बताता है: “निश्चय उसने हमारी पीड़ाओं को आप सह लिया और हमारे दुखों को उठा लिया। फिर भी हमने उसे परमेश्वर का मारा-कूटा और दुर्दशा में पड़ा हुआ समझा। परन्तु वह हमारे ही अपराधों के कारण बेधा गया, वह हमारे अधर्म के कामों के लिए कुचला गया; हमारी ही शान्ति के लिए उस पर ताड़ना पड़ी, उसके कोड़े खाने से हम चंगे हुए। हम तो सब के सब भेड़ों के समान भटक गए थे, हम में से प्रत्येक ने अपना अपना मार्ग लिया, परन्तु यहोवा ने हम सब के अधर्म का बोझ उसी पर लाद दिया।”—यशायाह 53:4-6, NHT.
22 मसीहा ने दूसरों की पीड़ा को आप सह लिया और उनके दुःखों को अपने ऊपर उठा लिया। उसने उनका बोझ उठा लिया या दूसरे शब्दों में उन्हें अपने कंधों पर उठाकर ढोया। बीमारियाँ और दर्द इंसान के पापी होने का अंजाम हैं, इसलिए मसीहा ने दूसरों के पापों को उठा लिया। बहुत-से लोग समझ नहीं पाए कि उसे दुःख क्यों झेलना पड़ा। इसलिए उन्होंने मान लिया कि परमेश्वर उसे एक घिनौनी बीमारी देकर, उसे सज़ा दे रहा है।c आखिर में मसीहा को बेधा और कुचला गया और उसकी दुर्दशा हुई। इन ज़बरदस्त शब्दों से पता चलता है कि मसीहा को कैसी भयानक और दर्दनाक मौत सहनी पड़ी। लेकिन उसकी मौत, पापों का प्रायश्चित दिला सकती थी। इसलिए उसकी मौत ने अधर्म और पाप में पड़े लोगों के लिए चंगे होने और परमेश्वर के साथ मेल-मिलाप करने का मार्ग खोला।
23. यीशु ने किस अर्थ में दूसरों का दुःख उठा लिया?
23 यीशु ने दूसरों का दुःख कैसे उठाया? सुसमाचार की किताब मत्ती, यशायाह 53:4 का हवाला देते हुए कहती है: “वे उसके पास बहुत से लोगों को लाए जिन में दुष्टात्माएं थीं और उस ने उन आत्माओं को अपने वचन से निकाल दिया, और सब बीमारों को चंगा किया। ताकि जो वचन यशायाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था वह पूरा हो, कि उस ने आप हमारी दुर्बलताओं को ले लिया और हमारी बीमारियों को उठा लिया।” (मत्ती 8:16, 17) तरह-तरह की बीमारियाँ लेकर जो लोग यीशु के पास आते थे, उन्हें चंगा करने के ज़रिए उसने उनका सारा दुःख अपने ऊपर ले लिया। और इस तरह चंगा करते वक्त यीशु में से सामर्थ या ताकत निकलती थी। (लूका 8:43-48) उसके पास शारीरिक और आध्यात्मिक, हर तरह की बीमारियों को चंगा करने की ताकत थी जिससे साबित हुआ कि उसे लोगों को पाप से मुक्त करने की शक्ति दी गयी थी।—मत्ती 9:2-8.
24. (क) बहुतों को ऐसा क्यों लगा कि यीशु को परमेश्वर ने ही “मारा-कूटा” है? (ख) यीशु ने क्यों दुःख उठाया और मौत सही?
24 मगर, बहुतों को लगा कि यीशु को परमेश्वर ने ही “मारा-कूटा” है। आखिर, उसे इज़्ज़तदार धर्मगुरुओं के उकसाने पर ही सज़ा दी जा रही थी। लेकिन याद रखिए कि उसने दुःख इसलिए नहीं उठाया कि खुद उसने कोई पाप किया था। पतरस कहता है: ‘मसीह तुम्हारे लिये दुख उठाकर, तुम्हें एक आदर्श दे गया है, कि तुम भी उसके चिन्ह पर चलो। न तो उस ने पाप किया, और न उसके मुंह से छल की कोई बात निकली। वह आप ही हमारे पापों को अपनी देह पर लिए हुए काठ पर चढ़ गया, जिस से हम पापों के लिये मर कर धार्मिकता के लिये जीवन बिताएं: उसी के मार खाने से तुम चंगे हुए।’ (1 पतरस 2:21, 22, 24) एक समय था, जब हम सभी “भटकी हुई भेड़ों” की तरह पाप के रास्ते में गुम हो गए थे। (1 पतरस 2:25) लेकिन यहोवा ने यीशु के ज़रिए हमें पापी दशा से छुड़ाने का इंतज़ाम किया। यहोवा ने हम सभों का अधर्म यीशु पर “लाद दिया।” और निष्पाप यीशु ने हमारे पापों के लिए खुशी-खुशी दंड सह लिया। बेकसूर होने पर भी वह काठ पर एक शर्मनाक मौत मरा और इस तरह हमारे लिए परमेश्वर से मेल-मिलाप करना मुमकिन बनाया।
“वह सहता रहा”
25. यह हम कैसे जानते हैं कि मसीहा, दुःख उठाने के लिए दिल से तैयार था?
25 क्या मसीहा दुःख उठाने और मरने के लिए दिल से तैयार था? यशायाह कहता है: “वह सताया गया, तौभी वह सहता रहा और अपना मुंह न खोला; जिस प्रकार भेड़ बध होने के समय वा भेड़ी ऊन कतरने के समय चुपचाप शान्त रहती है, वैसे ही उस ने भी अपना मुंह न खोला।” (यशायाह 53:7) धरती पर अपनी ज़िंदगी की आखिरी रात को अगर यीशु चाहता तो मदद के लिए “स्वर्गदूतों की बारह पलटन से अधिक” बुला सकता था। लेकिन उसने यह कहा: “परन्तु पवित्र शास्त्र की वे बातें कि ऐसा ही होना अवश्य हैं, क्योंकर पूरी होंगी?” (मत्ती 26:53, 54) ‘परमेश्वर के मेम्ने’ ने दुःख उठाने से खुद को नहीं रोका। (यूहन्ना 1:29) जब पीलातुस के सामने महायाजक और पुरनियों ने यीशु पर झूठे इलज़ाम लगाए तो “उस ने कुछ उत्तर नहीं दिया।” (मत्ती 27:11-14) वह ऐसा कुछ नहीं कहना चाहता था जिससे परमेश्वर की मरज़ी पूरी करने में उसके आगे कोई रुकावट पैदा हो। यीशु, बलि के मेम्ने की तरह मरने को तैयार था, क्योंकि वह अच्छी तरह जानता था कि उसकी मृत्यु से आज्ञा माननेवाले इंसानों को पाप, बीमारी और मौत से छुटकारा मिलेगा।
26. यीशु के विरोधियों ने उसका “अपमान” कैसे किया?
26 यशायाह, मसीहा के दुःख उठाने और अपमान सहने के बारे में और भी जानकारी देता है। वह लिखता है: “रोक लगाने और न्याय की वजह से उसे ले जाया गया; और कौन उसकी पीढ़ी के बारे में जानकारी पर ध्यान देगा? क्योंकि वह तो जीवतों के देश से काट डाला गया। मेरे लोगों के अपराध की वजह से उस पर मार पड़ी।” (यशायाह 53:8, NW) जब यीशु आखिरकार अपने दुश्मनों द्वारा ले जाया गया, तो इन धर्मगुरुओं ने उसके साथ व्यवहार करते वक्त ‘रोक लगायी।’ ऐसा नहीं कि उन्होंने अपनी घृणा ज़ाहिर करने में खुद पर रोक लगायी, मगर उन्होंने न्याय पर रोक लगायी यानी न्याय नहीं चुकाया। यूनानी सेप्टुअजेंट बाइबल में यशायाह 53:8 में “रोक लगाने” के बजाय “अपमान” शब्द इस्तेमाल हुआ है। यीशु के दुश्मनों ने उसका घोर अपमान किया, यहाँ तक कि उन्होंने उसके साथ उतना भी इंसाफ नहीं किया जितना इंसाफ पाने का हकदार एक आम अपराधी होता था। यीशु का मुकद्दमा, इंसाफ के मुँह पर एक तमाचा था। वह कैसे?
27. यीशु पर मुकद्दमा चलाते वक्त यहूदी धर्मगुरुओं ने कौन-से नियम तोड़े, और किन तरीकों से उन्होंने परमेश्वर की व्यवस्था का उल्लंघन किया?
27 यहूदी धर्मगुरुओं ने यीशु का काम तमाम करने की ठान ली थी और ऐसा करने में उन्होंने खुद अपने ही बनाए कानूनों को तोड़ दिया। यहूदियों की परंपरा के मुताबिक, महासभा मृत्युदंड से जुड़े किसी भी मुकद्दमे की सुनवाई महायाजक के घर पर नहीं बल्कि सिर्फ मंदिर की उस कोठरी में कर सकती थी जो तराशे हुए पत्थरों से बनी थी। ऐसे मुकद्दमे को सिर्फ दिन के वक्त चलाया जाना था, सूर्यास्त के बाद नहीं। और मृत्युदंड से जुड़े अपराध का फैसला मुकद्दमा खत्म होने के बाद के दिन सुनाना था। इस वजह से सब्त या किसी पर्व से पहले के दिन किसी भी मुकद्दमे की सुनवाई नहीं की जा सकती थी। मगर यीशु के मुकद्दमे में इन सारे नियमों को ताक पर रख दिया गया। (मत्ती 26:57-68) और-तो-और, धर्मगुरुओं ने इस मुकद्दमे के दौरान, परमेश्वर की व्यवस्था के नियमों का सरासर उल्लंघन किया। मिसाल के लिए, उन्होंने यीशु को पकड़ने के लिए रिश्वतखोरी का रास्ता इख्तियार किया। (व्यवस्थाविवरण 16:19; लूका 22:2-6) उन्होंने झूठे गवाहों की बात पर यकीन किया। (निर्गमन 20:16; मरकुस 14:55, 56) और उन्होंने एक खूनी को रिहा करने की साज़िश रची और इस तरह खुद पर और पूरे देश पर रक्तदोष लाया। (गिनती 35:31-34; व्यवस्थाविवरण 19:11-13; लूका 23:16-25) इस तरह यीशु के साथ कोई “न्याय” नहीं किया गया, उसका फैसला करने के लिए सही तरह से मुकद्दमा तक नहीं चलाया गया।
28. यीशु के विरोधी किस बात पर ध्यान देने से चूक गए?
28 क्या यीशु के दुश्मनों ने यह जानने की ज़रा-सी भी कोशिश की कि जिस इंसान पर वे मुकद्दमा चला रहे हैं, वह असल में कौन है? यशायाह भी ऐसा ही सवाल पूछता है: “कौन उसकी पीढ़ी के बारे में जानकारी पर ध्यान देगा?” शब्द “पीढ़ी” का मतलब वंश या घराना भी हो सकता है। महासभा के सदस्यों ने यीशु पर मुकद्दमा चलाते वक्त, इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि वह किस वंश का है, और कि मसीहा के बारे में की गयी हर भविष्यवाणी उसमें पूरी हुई है। इसके बजाय, उन्होंने उसको परमेश्वर की निंदा करनेवाला करार देकर उसे मौत की सज़ा के लायक ठहराया। (मरकुस 14:64) बाद में रोमी गवर्नर, पुन्तियुस पीलातुस ने भी लोगों के दबाव में आकर यीशु को सूली पर चढ़ाने की सज़ा सुना दी। (लूका 23:13-25) इस तरह यीशु पर जवानी में यानी सिर्फ साढ़े तैंतीस साल की उम्र में मार पड़ी या उसे “काट डाला गया।”
29. यीशु मरते और दफनाए जाते वक्त कैसे “दुष्टों” और “धनवानों के संग” था?
29 मसीहा की मृत्यु और उसे दफनाए जाने के बारे में यशायाह आगे लिखता है: “उसकी क़ब्र भी दुष्टों के संग ठहराई गई, और, मृत्यु के समय वह धनवान का संगी हुआ, यद्यपि उस ने किसी प्रकार का उपद्रव न किया था और उसके मुंह से कभी छल की बात नहीं निकली थी।” (यशायाह 53:9) यीशु मरते और दफनाए जाते वक्त दुष्टों और धनवानों का संगी कैसे हुआ? सा.यु. 33 के निसान 14 को यरूशलेम की शहरपनाह के बाहर काठ पर उसने दम तोड़ दिया। उसे दो अपराधियों के बीच सूली पर चढ़ाया गया था, इस अर्थ में उसकी कब्र दुष्टों के संग ठहरायी गयी। (लूका 23:33) लेकिन यीशु की मौत के बाद, अरिमतिया के एक धनी आदमी, यूसुफ ने हिम्मत करके पीलातुस से यीशु के शरीर को काठ से उतारकर दफनाने की इजाज़त माँगी। नीकुदेमुस के साथ मिलकर यूसुफ ने यीशु की लोथ को दफनाए जाने के लिए तैयार किया और उसे एक नयी कब्र में रखा, जिसे यूसुफ ने खुदवाया था। (मत्ती 27:57-60; यूहन्ना 19:38-42) इस तरह यीशु की कब्र धनवानों के संग भी थी।
“यहोवा को यही भाया कि उसे कुचले”
30. किस अर्थ में यहोवा को यीशु का कुचला जाना भाया?
30 इसके बाद यशायाह एक चौंका देनेवाली बात कहता है: “यहोवा को यही भाया कि उसे कुचले; उसी ने उसको रोगी कर दिया; जब तू उसका प्राण दोषबलि करे, तब वह अपना वंश देखने पाएगा, वह बहुत दिन जीवित रहेगा; उसके हाथ से यहोवा की इच्छा पूरी हो जाएगी। वह अपने प्राणों का दु:ख उठाकर उसे देखेगा और तृप्त होगा; अपने ज्ञान के द्वारा मेरा धर्मी दास बहुतेरों को धर्मी ठहराएगा; और उनके अधर्म के कामों का बोझ आप उठा लेगा।” (यशायाह 53:10,11) यह कैसे हो सकता है कि यहोवा को अपने वफादार दास का कुचला जाना भाया हो? बेशक, यहोवा ने खुद अपने प्यारे बेटे को नहीं तड़पाया था। यीशु के साथ बुरा सलूक करने के लिए उसके दुश्मन ही पूरी तरह ज़िम्मेदार थे। लेकिन यहोवा ने उनको ऐसी बेरहमी करने की इजाज़त दी थी। (यूहन्ना 19:11) किस लिए? इसमें कोई दो राय नहीं कि प्यार और हमदर्दी दिखानेवाले परमेश्वर ने जब अपने बेकसूर बेटे को यातनाएँ सहते देखा तो ज़रूर उसका कलेजा तड़प उठा होगा। (यशायाह 63:9; लूका 1:77, 78) बेशक, यहोवा किसी तरह यीशु से नाराज़ नहीं था। मगर फिर भी यहोवा को यह देखकर भाया कि उसका बेटा खुशी-खुशी दुःख सहने के लिए तैयार है, क्योंकि इससे लोगों के लिए ढेरों आशीषें पाने का रास्ता खुल जाता।
31. (क) किस तरह यहोवा ने यीशु के प्राण को “दोषबलि” ठहराया? (ख) इंसान के तौर पर सारे कष्टों को झेलने के बाद, यीशु को अब खासकर किस बात से तसल्ली होती होगी?
31 एक आशीष यह थी कि यहोवा ने यीशु के प्राण को एक “दोषबलि” ठहराया था। इसलिए जब यीशु स्वर्ग वापस लौटा, तो उसने बलिदान में अर्पित किए गए अपने मानव जीवन की कीमत एक दोषबलि के तौर पर यहोवा के सामने पेश की। और यहोवा ने उस बलि को सभी इंसानों की खातिर खुशी-खुशी स्वीकार किया। (इब्रानियों 9:24; 10:5-14) यीशु ने दोषबलि चढ़ाकर अपने लिए “वंश” पाया। वह अब “अनन्तकाल का पिता” है और उन लोगों को हमेशा की ज़िंदगी दे सकता है जो उसके बहाए गए लहू पर विश्वास दिखाते हैं। (यशायाह 9:6) इंसान के तौर पर सारे कष्ट झेलने के बाद अब यीशु को यह देखकर कितनी तसल्ली होती होगी कि भविष्य में वह इंसानों को पाप और मौत से छुड़ा सकता है! मगर हाँ, उसे इस बात से और ज़्यादा संतोष मिलता होगा कि उसने वफादार रहने के ज़रिए अपने पिता को यह मौका दिया कि वह अपने विरोधी शैतान के तानों का मुँहतोड़ जवाब दे सके।—नीतिवचन 27:11.
32. किस “ज्ञान” के ज़रिए यीशु ‘बहुतेरों को धर्मी ठहराता’ है, और ये बहुतेरे कौन हैं?
32 यीशु की मृत्यु से एक और आशीष मिलती है कि वह ‘बहुतेरों को धर्मी ठहराता है।’ और वह आज भी ऐसा कर रहा है। यशायाह कहता है कि वह ऐसा “अपने ज्ञान के द्वारा” करता है। यह वही ज्ञान है जो उसने एक इंसान बनने और परमेश्वर की आज्ञा मानने की वजह से दुःख उठाने के ज़रिए पाया था। (इब्रानियों 4:15) अपनी आखिरी साँस तक दुःख झेलने की वजह से यीशु ऐसा बलिदान अर्पित कर सका जिसकी बिनाह पर दूसरे धर्मी ठहराए जा सकते थे। वे कौन हैं, जो धर्मी ठहराए जाते? सबसे पहले, उसके अभिषिक्त शिष्य। वे यीशु के बलिदान पर विश्वास करते हैं, इसलिए यहोवा उन्हें धर्मी ठहराता है ताकि उन्हें अपने बेटों के तौर पर अपना सके और उन्हें यीशु के संगी वारिस बना सके। (रोमियों 5:19; 8:16, 17) इनके बाद हैं, ‘अन्य भेड़ों’ की “बड़ी भीड़” जो यीशु के बहाए लहू में विश्वास करती है। इस भीड़ के लोग धर्मी ठहराए जाते हैं ताकि परमेश्वर के मित्र बन सकें और हरमगिदोन से बच सकें।—यूहन्ना 10:16, NW; प्रकाशितवाक्य 7:9; 16:14, 16; याकूब 2:23, 25.
33, 34. (क) यहोवा के बारे में क्या जानकर हमारा दिल उसके लिए प्यार से भर जाता है? (ख) मसीहाई दास को किन “बहुतों” के साथ एक “भाग” मिलेगा?
33 आखिर में, यशायाह, मसीहा को मिलनेवाली जीत का बयान करता है: “इस कारण मैं उसे महान लोगों के संग [“बहुतों के साथ,” ईज़ी-टू-रीड वर्शन] भाग दूंगा, और, वह सामर्थियों के संग लूट बांट लेगा; क्योंकि उस ने अपना प्राण मृत्यु के लिये उण्डेल दिया, वह अपराधियों के संग गिना गया; तौभी उस ने बहुतों के पाप का बोझ उठा लिया, और, अपराधियों के लिये बिनती करता है।”—यशायाह 53:12.
34 यशायाह की इस भविष्यवाणी के इन आखिरी शब्दों से हमें यहोवा के बारे में एक ऐसी बात पता चलती है जिससे हमारा दिल उसके लिए प्यार से भर जाता है। वह ऐसे लोगों को अनमोल समझता है जो उसके वफादार बने रहते हैं। यह उसके इस वादे से ज़ाहिर होता है कि वह मसीहाई दास को “बहुतों के साथ भाग” देगा। ये शब्द शायद, युद्ध के बाद लूट का माल बाँटने के दस्तूर से ताल्लुक रखते हैं। यहोवा, प्राचीन समय के “बहुतों” यानी नूह, इब्राहीम और अय्यूब जैसे वफादार जनों की वफादारी की कदर करता है। और उसने आनेवाली नयी दुनिया में उनके लिए एक “भाग” तय किया है। (इब्रानियों 11:13-16) उनकी तरह, वह अपने मसीहाई दास को भी एक भाग देगा। बेशक, यहोवा, मसीहा को उसकी खराई का इनाम दिए बगैर नहीं रहेगा। आज हम भी पूरा यकीन रख सकते हैं कि यहोवा ‘हमारे काम, और उस प्रेम को नहीं भूलेगा जो हम उसके नाम के लिए दिखाते हैं।’—इब्रानियों 6:10.
35. वे ‘सामर्थी’ कौन हैं जिनके संग यीशु लूट बाँट लेता है, और लूट क्या है?
35 परमेश्वर का दास अपने दुश्मनों को युद्ध में हराने के बाद लूट का माल भी हासिल करेगा। वह इस लूट को “सामर्थियों” के संग बाँट लेगा। इस भविष्यवाणी में बताए गए ‘सामर्थी’ कौन हैं? वे यीशु के पहले शिष्य हैं जिन्होंने यीशु की तरह इस संसार को जीत लिया है, यानी “परमेश्वर के इस्राएल” के 1,44,000 नागरिक। (गलतियों 6:16; यूहन्ना 16:33; प्रकाशितवाक्य 3:21; 14:1) तो फिर वह लूट क्या है? बेशक इस लूट में ‘मनुष्यों में दान’ शामिल हैं जिन्हें यीशु मानो शैतान के कब्ज़े से छुड़ाकर मसीही कलीसिया को देता है। (इफिसियों 4:8-12) इन 1,44,000 “सामर्थियों” को एक और लूट का हिस्सा मिलता है। संसार पर जीत पाने के ज़रिए, वे शैतान से ऐसा हर मौका छीन लेते हैं जिससे वह परमेश्वर की निंदा कर सके। वे यहोवा को छोड़ और किसी को भक्ति नहीं देते, जिससे उसका नाम बुलंद होता है और उसका मन आनंदित होता है।
36. क्या यीशु जानता था कि वह परमेश्वर के दास के बारे में की गयी भविष्यवाणी पूरी कर रहा है? समझाइए।
36 यीशु जानता था कि वह परमेश्वर के दास के बारे में की गयी भविष्यवाणी पूरी कर रहा है। जिस रात उसे गिरफ्तार किया गया, उसने यशायाह 53:12 में दर्ज़ शब्दों का हवाला देकर उन्हें खुद पर लागू किया: “मैं तुम से कहता हूं, कि यह जो लिखा है, कि वह अपराधियों के साथ गिना गया, उसका मुझ में पूरा होना अवश्य है।” (लूका 22:36, 37) कितने दुःख की बात है कि यीशु के साथ वाकई अपराधियों जैसा सलूक किया गया। उसे दो डाकुओं के बीच सूली पर चढ़ाकर एक मुजरिम की तरह सज़ा-ए-मौत दी गयी। (मरकुस 15:27) इसके बावजूद उसने खुशी-खुशी यह बदनामी सही क्योंकि वह अच्छी तरह जानता था कि ऐसा करके वह हमारा मध्यस्थ बन रहा है। दूसरे शब्दों में वह पापियों और उनको मिलनेवाले मृत्युदंड की मार के बीच खड़ा हो गया और अपनी जान पर खेलकर खुद उस वार को झेला।
37. (क) यीशु की ज़िंदगी और मौत के बारे में दर्ज़ किया गया रिकॉर्ड हमें क्या पहचानने में मदद देता है? (ख) हमें यहोवा परमेश्वर और उसके महान किए गए दास, यीशु मसीह का क्यों एहसानमंद होना चाहिए?
37 यीशु की ज़िंदगी और मौत के बारे में दर्ज़ किए गए रिकॉर्ड से हमें यह ठीक-ठीक पहचान करने में मदद मिलती है: यशायाह की भविष्यवाणी में बताया गया मसीहाई सेवक यीशु मसीह ही है। हमें कितना एहसानमंद होना चाहिए कि यहोवा ने अपने प्यारे बेटे को भविष्यवाणी में बताए गए दास का भाग अदा करने दिया, कि वह दुःख उठाए और अपनी जान दे ताकि हमें पाप और मौत के चंगुल से छुड़ाया जा सके! इस तरह यहोवा ने हमारे लिए अपार प्रेम दिखाया। रोमियों 5:8 कहता है: “परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है, कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा।” साथ ही हमें, महान किए गए दास, यीशु मसीह का भी कितना शुक्रगुज़ार होना चाहिए जिसने हमारी खातिर खुशी-खुशी अपनी जान कुरबान कर दी!
[फुटनोट]
a जे. एफ. स्टेनिंग द्वारा अनुवाद किए गए योनातन बेन उज़्ज़ियल के तारगम (सा.यु. पहली सदी) में यशायाह 52:13 कहता है: “देखो, मेरा दास, अभिषिक्त जन (या मसीहा) समृद्ध होगा।” उसी तरह बाबुली तलमुद (सा.यु. तीसरी सदी) कहता है: “मसीहा—उसका नाम क्या है? . . . रब्बी के घराने के [लोग कहते हैं कि वह रोगी है] क्योंकि ऐसा बताया गया है: ‘बेशक उसने हमारे रोगों को ले लिया।’”—सॆन्हड्रीन 98ख; यशायाह 53:4.
b भविष्यवक्ता मीका ने बैतलहम के बारे में कहा कि यह “ऐसा छोटा है कि यहूदा के हजारों में गिना नहीं जाता।” (मीका 5:2) मगर फिर भी बैतलहम में ही मसीहा पैदा हुआ और इस तरह इस नगर को ऐसा अनोखा सम्मान मिला जो किसी और नगर को नहीं मिला था।
c जिस इब्रानी शब्द का हिन्दी बाइबल में “मारा-कूटा” अनुवाद किया गया है, उसी शब्द का मतलब कोढ़ भी होता है। (2 राजा 15:5) एक-दो विद्वानों के मुताबिक कुछ यहूदियों ने यशायाह 53:4 का यह मतलब निकाला कि मसीहा एक कोढ़ी होगा। बाबुली तलमुद इस आयत को मसीहा पर लागू करते हुए कहती है कि वह “कोढ़ी विद्वान” होगा। लातीनी वलगेट की तरह कैथोलिक डूए वर्शन इस आयत का अनुवाद यूँ करती है: “हमने उसे एक कोढ़ी समझा।”
[पेज 212 पर चार्ट]
यहोवा का दास
यीशु ने यह भाग कैसे अदा किया
भविष्यवाणी
घटना
पूर्ति
महान और अति महान किया गया
प्रेरि. 2:34-36; फिलि. 2:8-11; 1 पत. 3:22
उसकी गलत तसवीर पेश की गयी और बदनाम किया गया
मत्ती 11:19; 27:39-44, 63, 64; यूह. 8:48; 10:20
कई जातियों को चकित कर दिया
मत्ती 24:30; 2 थिस्स. 1:6-10; प्रका. 1:7.
उस पर विश्वास नहीं किया गया
यूह. 12:37, 38; रोमि. 10:11,16,17
इंसान के तौर पर मामूली-सी शुरूआत हुई और कोई दिखावा नहीं किया
तुच्छ जाना गया और त्यागा गया
मत्ती 26:67; लूका 23:18-25; यूह. 1:10,11
मारे रोगों को सह लिया
बेधा गया
दूसरों के अपराधों के लिए दुःख सहा
इलज़ाम लगानेवालों के सामने खामोश रहा और शिकायत नहीं की
मत्ती 27:11-14; मर. 14:60,61; प्रेरि. 8:32,35
उस पर अन्याय से मुकद्दमा गयी चलाया गया और उसे सज़ा सुनायी
मत्ती 26:57-68; 27:1, 2, 11-26; यूह. 18:12-14, 19-24, 28-40
धनवानों के संग कब्र दी गयी
उसका प्राण दोषबलि करके चढ़ाया गया
बहुतेरों के लिए धर्मी ठहरने खोला का रास्ता
रोमि. 5:18,19; 1 पत. 2:24; प्रका. 7:14
पापियों के संग गिना गया
मत्ती 26:55, 56; 27:38; लूका 22:36,37
[पेज 203 पर तसवीर]
‘मनुष्यों ने उसे तुच्छ जाना था’
[पेज 206 पर तसवीर]
‘उसने अपना मुंह न खोला’
[चित्र का श्रेय]
एन्टोनियो सीसरी का “ऐकी होमो” चित्र
[पेज 211 पर तसवीर]
“उस ने अपना प्राण मृत्यु के लिये उण्डेल दिया”