बाइबल की किताब नंबर 23—यशायाह
लेखक: यशायाह
लिखने की जगह: यरूशलेम
लिखना पूरा हुआ: सा.यु.पू. 732 के बाद
कब से कब तक का ब्यौरा: लगभग सा.यु.पू. 778 से लेकर 732 के बाद तक
क्रूर अश्शूरी सम्राट का खौफनाक साया मध्य पूर्व के छोटे-बड़े सभी राज्यों पर मंडरा रहा था। पूरे इलाके में, जहाँ देखो वहाँ साज़िशें रचने और संधियाँ बनाने के बारे में दिन-रात चर्चे हो रहे थे। (यशा. 8:9-13) उत्तर का इस्राएल राज्य, जो सच्ची उपासना से दूर चला गया था, बहुत जल्द देशों की इस साज़िश का शिकार होनेवाला था। दक्षिण में यहूदा देश के राजाओं पर भी खतरे की तलवार लटक रही थी। (2 राजा, अध्या. 15-21) लड़ाई करने के लिए नए-नए हथियार ईजाद करके इस्तेमाल किए जा रहे थे, और इस वजह से दहशत और बढ़ गयी थी। (2 इति. 26:14, 15) ऐसे में हिफाज़त पाने और बचने के लिए इंसान किस पर भरोसा रख सकता था? जहाँ तक यहूदा के छोटे-से राज्य की बात है, उसके निवासियों और याजकों की ज़ुबाँ पर कहने को तो यहोवा का नाम था, मगर उनका मन यहोवा से बहुत दूर हो गया था। उन्होंने पहले अश्शूर को अपना आसरा बनाया और बाद में मिस्र को। (2 राजा 16:7; 18:21) यहोवा की शक्ति पर उनका भरोसा कम हो गया था। कहीं सरेआम मूर्तिपूजा होती दिखायी दे रही थी, तो कहीं यहोवा की उपासना में बढ़ता कपट दिखायी दे रहा था। उनकी उपासना बस एक दिखावा थी, उनके दिलों में परमेश्वर के लिए सच्चा भय नहीं था।
2 ऐसे में कौन यहोवा की तरफ से बोलता? कौन इस संदेश का ऐलान करता कि यहोवा उद्धार करने की शक्ति रखता है? फौरन जवाब आता है: “मैं यहां हूं! मुझे भेज।” ये शब्द यशायाह ने कहे थे, जो काफी पहले से भविष्यवाणी कर रहा था। यह उस साल की बात है जब कोढ़ी राजा उज्जिय्याह की मौत हुई, यानी लगभग सा.यु.पू. 778 में। (यशा. 6:1, 8) यशायाह नाम का मतलब है “यहोवा की ओर से उद्धार।” इन शब्दों को दाएँ से बाएँ पढ़ें तो यीशु के नाम का मतलब (“उद्धार यहोवा है”) बनता है। शुरू से लेकर आखिर तक, यशायाह की भविष्यवाणी इसी बात पर ज़ोर देती है कि यहोवा उद्धार है।
3 यशायाह, आमोस का पुत्र था (यह आमोस, भविष्यवक्ता आमोस नहीं था जो यहूदा में भविष्यवाणी करता था)। (1:1) पवित्रशास्त्र में यशायाह के जन्म और उसकी मौत के बारे में कुछ नहीं बताया गया है। यहूदी परंपरा के मुताबिक दुष्ट राजा मनश्शे ने यशायाह को आरे से चीरकर मरवा डाला था। (इब्रानियों 11:37 से जाँचिए।) यशायाह की किताब दिखाती है कि वह यरूशलेम में अपनी नबिया पत्नी के साथ रहता था और उसके कम-से-कम दो बेटे थे, जिनके नामों के साथ भविष्यवाणियाँ जुड़ी थीं। (यशा. 7:3; 8:1, 3) यशायाह ने यहूदा के कम-से-कम चार राजाओं की हुकूमत के दौरान भविष्यवाणी की थी। ये राजा थे: उज्जिय्याह, योताम, आहाज और हिजकिय्याह; उसने लगभग सा.यु.पू. 778 से (जब उज्जिय्याह की मौत हुई थी, या उससे भी पहले) भविष्यवाणी करना शुरू किया और वह सा.यु.पू. 732 (हिजकिय्याह के 14वें साल) के बाद तक काम करता रहा। तो कुल मिलाकर उसने करीब 46 साल भविष्यवाणी की। बेशक उसने सा.यु.पू. 732 या उसके कुछ समय बाद तक अपनी भविष्यवाणी की किताब भी लिख ली थी। (1:1; 6:1; 36:1) उसके ज़माने के दूसरे नबी थे, यहूदा में मीका और उत्तर के इस्राएल राज्य में होशे और ओदेद।—मीका 1:1; होशे 1:1; 2 इति. 28:6-9.
4 यहोवा ने यशायाह को भविष्यवाणियों के रूप में न्यायदंड लिखने की आज्ञा दी थी। यह बात यशायाह 30:8 से साबित होती है: “अब जाकर इसको उनके साम्हने पत्थर पर खोद, और पुस्तक में लिख, कि वह भविष्य के लिये वरन सदा के लिये साक्षी बनी रहे।” प्राचीन यहूदी धर्म-गुरु, यशायाह को इस किताब का लेखक मानते थे और इस किताब को बड़े नबियों (यशायाह, यिर्मयाह और यहेजकेल) की किताबों में सबसे पहले रखते थे।
5 इस किताब के 40वें अध्याय से लिखने की शैली में बदलाव आता है, इसलिए कुछ लोग कहते हैं कि 40वें अध्याय से इस किताब को किसी और ने या “दूसरे यशायाह” ने लिखा होगा। लेकिन असल में लिखने की शैली में यह बदलाव इसलिए है क्योंकि 40वें अध्याय से आगे का विषय भी बदल जाता है। इस बात के काफी सबूत हैं कि यशायाह ने ही अपने नाम की पूरी किताब लिखी। मिसाल के लिए, इस पूरी किताब के एक होने का इशारा इन शब्दों से मिलता है, “इस्राएल का/के पवित्र।” ये शब्द अध्याय 1 से 39 में 13 बार और अध्याय 40 से 66 में 13 बार पाए जाते हैं, यानी कुल 26 बार; जबकि इब्रानी शास्त्र की बाकी किताबों में ये शब्द सिर्फ 6 बार आते हैं। प्रेरित पौलुस ने भी यह सबूत दिया कि इस पूरी किताब को एक ही शख्स ने लिखा है, क्योंकि उसने इस भविष्यवाणी की किताब के हर हिस्से से हवाले दिए और इस पूरी किताब का श्रेय एक ही लेखक यशायाह को दिया।—रोमियों 10:16, 20; 15:12 की तुलना यशायाह 53:1; 65:1; 11:1 से कीजिए।
6 गौरतलब है कि सन् 1947 से, मृत सागर के उत्तर-पश्चिमी तट के पास खिरबत कुमरान से थोड़ी दूर अंधेरी गुफाओं से कुछ प्राचीन दस्तावेज़ मिलने लगे। ये मृत सागर चर्मपत्र थे, जिनमें यशायाह की भविष्यवाणी का भी चर्मपत्र था। यह चर्मपत्र, मसोरा युग से पहले की मूल इब्रानी भाषा में बड़े खूबसूरत अंदाज़ में लिखा गया था। यह 2,000 साल पुरानी हस्तलिपि है जो सा.यु.पू. दूसरी सदी के आखिरी हिस्से में लिखी गयी थी। आज की बाइबलों में इब्रानी शास्त्र का अनुवाद, मसोरा लेखों की अब तक पायी गयी सबसे पुरानी हस्तलिपियों के आधार पर किया गया है। मगर मृत सागर चर्मपत्र, इन मसोरा लेखों से भी करीब एक हज़ार साल पहले के हैं। मसोरा लेखों और मृत सागर चर्मपत्रों में कितना फर्क है, इसकी जाँच करने पर पता चला कि कुछ शब्दों की वर्तनी में मामूली-सा फर्क है और व्याकरण में कुछ फर्क है, मगर जहाँ तक शिक्षाओं की बात है, मृत सागर हस्तलिपियों और मसोरा लेखों में कोई फर्क नहीं है। यह इस बात का पुख्ता सबूत है कि आज हमारे पास जो बाइबलें हैं, उनमें यशायाह का वही संदेश पाया जाता है जो उसने ईश्वर-प्रेरणा से खुद लिखा था। यही नहीं, इन प्राचीन हस्तलिपियों से आलोचकों का यह दावा झूठा साबित होता है कि दो “यशायाह” थे, क्योंकि इन हस्तलिपियों में जिस कॉलम पर अध्याय 39 खत्म होता है, उसी के नीचे अध्याय 40 की पहली लाइन शुरू होती है और यह लाइन अगले कॉलम में जाकर खत्म होती है। इससे पता चलता है कि नकलनवीस को इस बात की कोई जानकारी नहीं थी कि आगे के हिस्से को किसी और लेखक ने लिखा है या आगे का भाग पिछले भाग से अलग है।a
7 यशायाह की किताब की सच्चाई के अनगिनत सबूत हैं। बाइबल के मसीही लेखकों ने मूसा के बाद, यशायाह नबी की किताब के ही सबसे ज़्यादा हवाले दिए हैं। इतना ही नहीं, इतिहास और पुरातत्व के भी ढेरों सबूत दिखाते हैं कि यह किताब सच्ची है। एक सबूत है, अश्शूरी सम्राटों के ऐतिहासिक लेख। इनमें से एक है, सन्हेरीब का छः कोनोंवाला प्रिज़्म जिस पर उसने यरूशलेम की घेराबंदी का अपनी तरफ से ब्यौरा दिया है।b (यशा. अध्या. 36, 37) जहाँ कभी बाबुल हुआ करता था, उस जगह के खंडहर आज भी यशायाह 13:17-22 के पूरा होने की गवाही देते हैं।c यशायाह की एक भविष्यवाणी के सच होने का जीता-जागता सबूत वे हज़ारों यहूदी थे, जिन्हें राजा कुस्रू ने बाबुल से अपने वतन लौटने के लिए आज़ाद किया था। यशायाह ने करीब 200 साल पहले इस रिहाई की भविष्यवाणी की थी। हो सकता है कि बाद में कुस्रू को यह भविष्यवाणी दिखायी गयी थी, क्योंकि जब उसने बचे हुए यहूदियों को आज़ाद किया तो कहा कि यहोवा ने उसे ऐसा करने की आज्ञा दी है।—यशा. 44:28; 45:1; एज्रा 1:1-3.
8 यशायाह की किताब का एक बहुत ही खास पहलू है, मसीहा के बारे में भविष्यवाणियाँ। यशायाह को “खुशखबरी सुनानेवाला नबी” कहा गया है, क्योंकि उसने ऐसी ढेरों भविष्यवाणियाँ लिखीं जो यीशु में पूरी हुईं। अध्याय 53 काफी समय तक एक “रहस्य” था, न सिर्फ प्रेरितों के अध्याय 8 में बताए कूशी खोजे के लिए बल्कि सभी यहूदियों के लिए। यीशु के साथ जो बदसलूकी की गयी, उसके बारे में अध्याय 53 में इतनी ठीक-ठीक भविष्यवाणी की गयी है कि ऐसा लगता है जैसे किसी चश्मदीद गवाह ने इसे लिखा हो। मसीही यूनानी शास्त्र बताता है कि यशायाह किताब के इस अनोखे अध्याय की भविष्यवाणियाँ कैसे पूरी हुईं। यह इन आयतों की तुलना करने से पता चलता है: यशा 53 आयत 1—यूहन्ना 12:37, 38; यशा 53 आयत 2—यूहन्ना 19:5-7; यशा 53 आयत 3—मरकुस 9:12; यशा 53 आयत 4—मत्ती 8:16, 17; यशा 53 आयत 5—1 पतरस 2:24; यशा 53 आयत 6—1 पतरस 2:25; यशा 53 आयत 7—प्रेरितों 8:32, 35; यशा 53 आयत 8—प्रेरितों 8:33; यशा 53 आयत 9—मत्ती 27:57-60; यशा 53 आयत 10—इब्रानियों 7:27; यशा 53 आयत 11—रोमियों 5:18; यशा 53 आयत 12—लूका 22:37. परमेश्वर के अलावा और कौन है जो ऐसी अचूक भविष्यवाणियाँ कर सकता था?
क्यों फायदेमंद है
34 यशायाह की भविष्यवाणी की किताब को चाहे आप किसी भी पहलू से देखें, यहोवा परमेश्वर की तरफ से हमारे लिए यह बेहतरीन तोहफा है जिससे हमें फायदा ही होता है। यह परमेश्वर के महान विचारों का उजियाला हम तक पहुँचाती है। (यशा. 55:8-11) जो दूसरों को बाइबल की सच्चाइयाँ सिखाते हैं, उनके लिए यशायाह की किताब ऐसी जीती-जागती मिसालों का खज़ाना है, जो यीशु के दृष्टांतों की तरह बिलकुल सही निशाने पर वार करती हैं। यशायाह, एक इंसान की मूर्खता की मिसाल देता है जो एक पेड़ की लकड़ी को जलाने और खाना पकाने के काम लाता है और उसी से एक देवता की मूरत बनाकर उसे पूजता है। ऐसी मिसाल हमारे दिलो-दिमाग पर गहरी छाप छोड़ जाती है। वह हमें छोटे पलंग पर लेटे एक आदमी की बेचैनी महसूस कराता है, जिसकी चादर इतनी छोटी है कि उसके तन को सही से ढक नहीं पाती। वह हमें सोते हुए नबियों की भी आवाज़ सुनाता है, जो गूंगे कुत्तों की तरह हैं और इतने आलसी हैं कि उनसे भौंका तक नहीं जा रहा। यशायाह हमें उकसाता है कि “यहोवा की पुस्तक से ढूंढ़कर पढ़ो।” ऐसा करने पर हम समझ सकेंगे कि यशायाह ने हमारे दिनों के लिए कितना ज़बरदस्त संदेश दिया है।—44:14-20; 28:20; 56:10-12; 34:16.
35 यह भविष्यवाणी, परमेश्वर के उस राज्य पर खास ध्यान दिलाती है जिसका राजा मसीहा है। यहोवा सारे जहान का महाराजाधिराज है, और वही हमारा उद्धार करता है। (33:22) मगर मसीहा के बारे में क्या? स्वर्गदूत ने मरियम को बच्चे के जन्म के बारे में जो बताया उससे पता चलता है कि मसीहा, दाऊद की राजगद्दी का वारिस होता जिससे यशायाह 9:6, 7 की यह भविष्यवाणी पूरी होती: “और वह याकूब के घराने पर सदा राज्य करेगा; और उसके राज्य का अन्त न होगा।” (लूका 1:32, 33) मत्ती 1:22, 23 दिखाता है कि एक कुँवारी के गर्भ से यीशु के पैदा होने से, यशायाह 7:14 की भविष्यवाणी पूरी हुई जिसमें उसे “इम्मानुएल” कहा गया है। लगभग 30 साल बाद, यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला यह प्रचार करता हुआ आया कि “स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है।” सुसमाचार की किताबों के चारों लेखकों ने यशायाह 40:3 का हवाला देकर दिखाया कि यूहन्ना ही था जिसके बारे में भविष्यवाणी की गयी है कि उसकी ‘पुकार जंगल में सुनाई देगी।’ (मत्ती 3:1-3; मर. 1:2-4; लूका 3:3-6; यूह. 1:23) बपतिस्मा लेने पर यीशु, मसीहा बना यानी यहोवा का अभिषिक्त जन और यिशै की डाली और जड़, जो सब देशों पर राज करता। सब देशों के लोगों को उसी पर उम्मीद लगानी चाहिए, ठीक जैसे यशायाह 11:1, 10 में भविष्यवाणी की गयी है।—रोमि. 15:8, 12.
36 आगे देखिए कि यशायाह ने और किस तरह से उस मसीहा और राजा की पहचान करायी! यीशु ने यशायाह की एक हस्तलिपि से वह भाग पढ़ा जिसमें लिखा था कि वह क्या काम करेगा। और इस तरह यह साबित किया कि वह यहोवा का अभिषिक्त जन है। इसके बाद उसने “परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाना” शुरू किया क्योंकि उसने कहा कि “मैं इसी लिये भेजा गया हूं।” (लूका 4:17-19, 43; यशा. 61:1, 2) यशायाह के 53वें अध्याय में बताया गया था कि धरती पर यीशु की सेवा कैसी होगी और उसे कैसे मार डाला जाएगा। सुसमाचार की चार किताबों में दर्ज़ बारीक जानकारी दिखाती है कि 53वें अध्याय की भविष्यवाणी कैसे पूरी हुई। यहूदी लोग राज्य का सुसमाचार सुनने और यीशु के अद्भुत कामों को खुद अपनी आँखों से देखने के बावजूद, उस भविष्यवाणी का मतलब नहीं समझ सके क्योंकि उनके दिलों में विश्वास नहीं था। इससे यशायाह 6:9, 10; 29:13; 53:1 की भविष्यवाणी पूरी हुई। (मत्ती 13:14, 15; यूह. 12:38-40; प्रेरि. 28:24-27; रोमि. 10:16; मत्ती 15:7-9; मर. 7:6, 7) यीशु उनके लिए ठोकर का पत्थर था, मगर जैसे यशायाह 8:14 और 28:16 में भविष्यवाणी की गयी थी, वह नींव के कोने का पत्थर हो गया जिसे यहोवा ने सिय्योन में रखा और जिस पर उसने अपना आत्मिक घर खड़ा किया।—लूका 20:17; रोमि. 9:32, 33; 10:11; 1 पत. 2:4-10.
37 यीशु मसीह के प्रेरितों ने कई बार यशायाह की भविष्यवाणी के हवाले देकर उन्हें प्रचार काम पर लागू किया। मिसाल के लिए, पौलुस ने यह दिखाने के लिए कि लोगों को विश्वास करने के लिए प्रचारकों की ज़रूरत होती है, यशायाह के इन शब्दों का हवाला दिया: “उन के पांव क्या ही सोहावने हैं, जो अच्छी बातों का सुसमाचार सुनाते हैं!” (रोमि. 10:15; यशा. 52:7. रोमियों 10:11, 16, 20, 21 भी देखिए।) पतरस ने भी यह दिखाने के लिए यशायाह का हवाला दिया कि सुसमाचार हमेशा तक कायम रहता है: “क्योंकि हर एक प्राणी घास की नाईं है, और उस की सारी शोभा घास के फूल की नाईं है: घास सूख जाती है, और फूल झड़ जाता है। परन्तु प्रभु का वचन युगानुयुग स्थिर रहेगा: और यह ही सुसमाचार का वचन है जो तुम्हें सुनाया गया था।”—1 पत. 1:24, 25; यशा. 40:6-8.
38 परमेश्वर का राज्य भविष्य में इंसानों की उम्मीदें कैसे पूरी करेगा, यशायाह इसकी एक शानदार तसवीर पेश करता है। वह एक “नया आकाश और नई पृथ्वी” होगी, जहाँ “एक राजा धार्मिकता से राज्य करेगा” और हाकिम न्याय से हुकूमत करेंगे। वाकई खुशियाँ मनाने और आनंद से जयजयकार करने का यह क्या ही बढ़िया कारण है! (65:17, 18; 32:1, 2) पतरस भी यशायाह का लिखा यह खुशी का पैगाम सुनाता है: “[परमेश्वर] की प्रतिज्ञा के अनुसार हम एक नए आकाश और नई पृथ्वी की आस देखते हैं जिन में धार्मिकता बास करेगी।” (2 पत. 3:13) प्रकाशितवाक्य की किताब के आखिरी अध्यायों में परमेश्वर के राज्य की शानदार सच्चाई को पूरे वैभव और महिमा के साथ बयान किया गया है।—यशा. 66:22, 23; 25:8; प्रका. 21:1-5.
39 इस तरह, यशायाह की किताब में जहाँ यहोवा के शत्रुओं को और उसकी सेवा करने का ढोंग करनेवालों को कड़े न्यायदंड सुनाए गए हैं, वहीं मसीहाई राज्य की शानदार आशा का बड़े ही उम्दा शब्दों में बयान किया गया है। यह वही राज्य है जिसके ज़रिए यहोवा का महान नाम पवित्र किया जाएगा। यह किताब यहोवा के राज्य की अद्भुत सच्चाइयाँ बहुत बढ़िया तरीके से समझाती है और “उस से उद्धार” पाने के लिए हमारे दिलों में उम्मीद जगाती है।—यशा. 25:9; 40:28-31.
[फुटनोट]
a इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स्, भाग 1, पेज 1221-3.
b इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स्, भाग 1, पेज 957; भाग 2, पेज 894-5.
c इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स्, भाग 2, पेज 324.