यहोवा “अन्त की बात आदि से” बताता है
“मैं . . . अन्त की बात आदि से और प्राचीनकाल से उस बात को बताता आया हूं जो अब तक नहीं हुई।”—यशायाह 46:10.
1, 2. बाबुल की हार से जुड़ी घटनाओं की सबसे अनोखी बात क्या है, और इस सच्चे वाकये से हम यहोवा के बारे में क्या सीखते हैं?
रात का अँधेरा छाया हुआ है। फरात नदी का पानी लगभग सूख गया है और दुश्मन सेना दबे पाँव उस पर चलकर अपनी मंज़िल की तरफ बढ़ती है। सैनिक शक्तिशाली शहर, बाबुल पर धावा बोलने जा रहे हैं। मगर ताज्जुब की बात तो यह है कि जैसे ही वे शहर के पास पहुँचते हैं, तो देखते हैं कि उसके बड़े और ऊँचे-ऊँचे फाटक खुले पड़े हैं! एक-एक करके सभी सैनिक नदी से निकलकर शहर के अंदर घुस जाते हैं। और देखते-ही-देखते पूरे शहर को कब्ज़ा कर लेते हैं। उनका अगुवा, कुस्रू फौरन बाबुल की बागडोर सँभाल लेता है। कुछ समय बाद, वह बाबुल में कैद इस्राएलियों को रिहा करने का एक फरमान जारी करता है। इस तरह हज़ारों इस्राएली बंधुएँ वापस अपने वतन, यरूशलेम लौट जाते हैं। वहाँ पहुँचकर वे दोबारा यहोवा की उपासना करने लगते हैं।—2 इतिहास 36:22, 23; एज्रा 1:1-4.
2 सामान्य युग पूर्व 539 से 537 के बीच हुई उन घटनाओं को, आज इतिहासकार भी सच मानते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन घटनाओं की सबसे अनोखी बात क्या है? ये घटनाएँ होंगी, इसकी जानकारी करीब 200 साल पहले ही दी गयी थी। यहोवा ने अपने नबी, यशायाह को यह लिखने की प्रेरणा दी थी कि बाबुल को कैसे हराया जाएगा। (यशायाह 44:24–45:7) एक और गौरतलब बात यह है कि परमेश्वर ने उस राजा का नाम भी बताया जो बाबुल पर कब्ज़ा करता।a यहोवा ने उस समय के अपने साक्षियों, यानी इस्राएलियों से कहा: “प्राचीनकाल की बातें स्मरण करो जो आरम्भ ही से हैं; क्योंकि ईश्वर मैं ही हूं, दूसरा कोई नहीं; मैं ही परमेश्वर हूं और मेरे तुल्य कोई भी नहीं है। मैं तो अन्त की बात आदि से और प्राचीनकाल से उस बात को बताता आया हूं जो अब तक नहीं हुई।” (यशायाह 46:9, 10क) वाकई, केवल यहोवा ही वह परमेश्वर है जो वक्त से पहले जानता है कि क्या होनेवाला है।
3. इस लेख में हम किन सवालों के जवाब देखेंगे?
3 भविष्य के बारे में यहोवा कितना जानता है? क्या उसे पहले से पता है कि हममें से हरेक क्या करनेवाला है? क्या हमारा भविष्य वाकई पहले से लिखा गया है? इन और इन्हीं से जुड़े दूसरे सवालों के जवाब बाइबल में दिए गए हैं। हम इस लेख में और अगले लेख में इन जवाबों पर गौर करेंगे।
यहोवा—भविष्यवाणी करनेवाला परमेश्वर
4. बाइबल की तमाम भविष्यवाणियाँ किसने दर्ज़ करवायी हैं?
4 यहोवा, भविष्य जानने की काबिलीयत रखता है। इसलिए बाइबल के ज़माने में, उसने अपने सेवकों को बहुत-सी भविष्यवाणियाँ दर्ज़ करने के लिए प्रेरित किया था। इन भविष्यवाणियों की बदौलत, हम पहले से जान पाते हैं कि यहोवा ने क्या करने की ठानी है। यहोवा ऐलान करता है: “देखो, पहिली बातें तो हो चुकी हैं, अब मैं नई बातें बताता हूं; उनके होने से पहिले मैं तुम को सुनाता हूं।” (यशायाह 42:9) परमेश्वर के मकसद के बारे में पहले से जानना, उसके लोगों के लिए क्या ही बड़े सम्मान की बात है!
5. यहोवा क्या करनेवाला है, इसकी पहले से जानकारी होना, हम पर क्या ज़िम्मेदारी लाता है?
5 आमोस नबी हमें यकीन दिलाता है: “प्रभु यहोवा अपने दास भविष्यद्वक्ताओं पर अपना मर्म बिना प्रगट किए कुछ भी न करेगा।” यहोवा क्या करनेवाला है, इसकी पहले से जानकारी होना हम पर एक ज़िम्मेदारी भी लाता है। गौर कीजिए कि यह बात समझाने के लिए, आमोस क्या ही ज़बरदस्त उदाहरण देता है: “सिंह गरजा; कौन न डरेगा?” जिस तरह सिंह की दहाड़ सुनते ही आस-पास के जानवर और इंसान, दोनों भाग खड़े होते हैं, उसी तरह यहोवा ने जब आमोस जैसे नबियों को अपना संदेश सुनाया, तो उन्होंने फौरन उसका ऐलान किया। जब ‘परमेश्वर यहोवा ने बोला है’ तो भला ‘कौन भविष्यद्वाणी नहीं करेगा?’—आमोस 3:7, 8.
यहोवा का “वचन” ज़रूर ‘सुफल होता है’
6. बाबुल को तबाह करने में, यहोवा की “युक्ति” कैसे सफल हुई?
6 यहोवा ने अपने नबी यशायाह के ज़रिए कहा: “मेरी युक्ति स्थिर रहेगी और मैं अपनी इच्छा को पूरी करूंगा।” (यशायाह 46:10ख) यहोवा की “युक्ति,” उसकी मरज़ी या उसका मकसद है। और जहाँ तक बाबुल की बात है, तो यहोवा का मकसद था कि उसका तख्ता पलट जाए और इसके लिए उसने फारस से राजा कुस्रू को बुलाया। यहोवा ने अपना यह मकसद सदियों पहले जता दिया था। और जैसा कि हमने शुरू में देखा, सा.यु.पू. 539 में इस भविष्यवाणी की एक-एक बात पूरी हुई।
7. हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि यहोवा का “वचन” हमेशा सफल होता है?
7 कुस्रू का बाबुल को जीतने के करीब 400 साल पहले, यहूदा देश में यहोशापात नाम का एक राजा हुकूमत करता था। उसी दौरान, अम्मोन और मोआब की सेनाएँ मिलकर यहूदा देश पर चढ़ाई करने को तैयार थीं। ऐसे में यहोशापात ने पूरे विश्वास के साथ प्रार्थना की: “हे हमारे पितरों के परमेश्वर यहोवा! क्या तू स्वर्ग में परमेश्वर नहीं है? और क्या तू जाति जाति के सब राज्यों के ऊपर प्रभुता नहीं करता? और क्या तेरे हाथ में ऐसा बल और पराक्रम नहीं है कि तेरा साम्हना कोई नहीं कर सकता?” (2 इतिहास 20:6) यशायाह ने भी कुछ ऐसा ही विश्वास दिखाते हुए कहा: “सेनाओं के यहोवा ने युक्ति की है और कौन उसको टाल सकता है? उसका हाथ बढ़ाया गया है, उसे कौन रोक सकता है?” (यशायाह 14:27) बरसों बाद, बाबुल का राजा नबूकदनेस्सर जब अपने पागलपन के दौर से ठीक हुआ, तब उसने नम्र होकर कबूल किया: “कोई [परमेश्वर को] रोककर उस से नहीं कह सकता है, कि तू ने यह क्या किया है?” (दानिय्येल 4:35) यहोवा भी खुद अपने लोगों को भरोसा दिलाता है: “मेरा वचन . . . व्यर्थ ठहरकर मेरे पास न लौटेगा, परन्तु, जो मेरी इच्छा है उसे वह पूरा करेगा, और जिस काम के लिये मैं ने उसको भेजा है उसे वह सुफल करेगा।” (यशायाह 55:11) तो फिर हम पूरा यकीन रख सकते हैं कि यहोवा का “वचन” हमेशा सच होता है। उसका मकसद हर हाल में पूरा होता है।
परमेश्वर का ‘अनन्त काल का उद्देश्य’
8. परमेश्वर का ‘अनन्त काल का उद्देश्य’ क्या है?
8 इफिसुस के मसीहियों को लिखी अपनी पत्री में, प्रेरित पौलुस ने बताया कि परमेश्वर ने ‘अनन्त काल का उद्देश्य’ ठहराया है। (इफिसियों 3:11, बुल्के बाइबिल) यह उद्देश्य कोई योजना नहीं है, मानो परमेश्वर को पहले से एक-एक बात तय करनी पड़ी थी। इसके बजाय, यह उद्देश्य, उसका पक्का इरादा है कि उसने शुरू में जिस मकसद से इंसानों और पृथ्वी को बनाया था, वह उसे पूरा करके ही रहेगा। (उत्पत्ति 1:28) परमेश्वर का मकसद हर हाल में कैसे पूरा होगा, यह समझने के लिए आइए बाइबल में दर्ज़ पहली भविष्यवाणी पर गौर करें।
9. उत्पत्ति 3:15 का, परमेश्वर के मकसद के साथ क्या नाता है?
9 यह भविष्यवाणी उत्पत्ति 3:15 में दी गयी है जो एक वादा भी है। इससे पता चलता है कि आदम और हव्वा के पाप करने के फौरन बाद, यहोवा ने पक्का इरादा किया था कि भविष्य में उसकी लाक्षणिक स्त्री, वंश या एक बेटे को जन्म देगी। यहोवा ने पहले से यह भी देख लिया था कि उस स्त्री और शैतान के बीच, साथ ही उनके वंशों के बीच की दुश्मनी का क्या अंजाम होगा। हालाँकि वह इस बात की इजाज़त देता कि स्त्री के वंश की एड़ी डसी जाए, मगर बाद में यह वंश परमेश्वर के ठहराए वक्त पर सर्प यानी शैतान के सिर को कुचल देगा। इस बीच, चुनी हुई वंशावली के ज़रिए वंश लाने का यहोवा का मकसद पूरा होता गया, और आखिर में यीशु, वादा किए मसीहा के रूप में प्रकट हुआ।—लूका 3:15, 23-38; गलतियों 4:4.
यहोवा किन बातों को पहले से मुकर्रर करता है
10. क्या यहोवा ने शुरू से तय किया था कि आदम और हव्वा पाप करेंगे? समझाइए।
10 परमेश्वर के मकसद में यीशु ने जो भूमिका निभायी, उसके बारे में प्रेरित पतरस ने लिखा: “उसका [यीशु का] ज्ञान तो जगत की उत्पत्ति के पहिले ही से जाना गया था, पर अब इस अन्तिम युग में तुम्हारे लिये प्रगट हुआ।” (1 पतरस 1:20) क्या यहोवा ने शुरू से तय किया था कि आदम और हव्वा पाप करेंगे और यीशु मसीह के छुड़ौती बलिदान की ज़रूरत पड़ेगी? जी नहीं। जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “उत्पत्ति” किया गया है, उसका शाब्दिक अर्थ है, “बीज डालना।” तो क्या आदम और हव्वा के पाप करने से पहले ‘बीज डाला’ गया था यानी उनके बच्चे पैदा हुए थे? नहीं। परमेश्वर की आज्ञा तोड़ने के बाद ही उन्होंने बच्चे पैदा किए थे। (उत्पत्ति 4:1) तो फिर 1 पतरस 1:20 का मतलब है कि आदम और हव्वा के बगावत करने के बाद मगर उनके बच्चे पैदा करने से पहले, यहोवा ने “वंश” के आने की बात मुकर्रर की थी। यीशु की मौत और उसके पुनरुत्थान की बदौलत छुड़ौती का प्यार-भरा इंतज़ाम किया गया था। यही इंतज़ाम, पाप को मिटा देगा और शैतान की सारी कोशिशों को नाकाम कर देगा।—मत्ती 20:28; इब्रानियों 2:14; 1 यूहन्ना 3:8.
11. यहोवा ने अपने मकसद को अंजाम देने के लिए, कौन-सी बात को पहले से मुकर्रर कर दिया था?
11 परमेश्वर ने अपने मकसद को अंजाम देने के लिए, एक और बात को पहले से मुकर्रर किया। वह क्या है, इस बारे में पौलुस ने इफिसुस के मसीहियों से कहा कि परमेश्वर “जो कुछ स्वर्ग में है, और जो कुछ पृथ्वी पर है, सब कुछ . . . मसीह में एकत्र करे[गा]।” “जो कुछ स्वर्ग में है,” इन शब्दों का मतलब वे लोग हैं जो मसीह के साथ राज करने के लिए वारिस ठहराए गए हैं। उनके बारे में पौलुस ने आगे समझाया: ‘उसी में जिस में हम भी उसी की मनसा से जो अपनी इच्छा के मत के अनुसार सब कुछ करता है, पहिले से ठहराए गए हैं।’ (इफिसियों 1:10, 11) जी हाँ, यहोवा ने बहुत पहले तय कर लिया था कि धरती पर से कुछ लोग, परमेश्वर की स्त्री के वंश का दूसरा भाग बनेंगे और वे मसीह के साथ मिलकर, इंसानों को छुड़ौती बलिदान से फायदा पाने में मदद देंगे। (रोमियों 8:28-30) प्रेरित पतरस ने इन्हें “पवित्र लोग” कहा। (1 पतरस 2:9) और प्रेरित यूहन्ना को एक दर्शन से यह जानने का अनोखा मौका मिला कि मसीह के इन संगी वारिसों की गिनती 1,44,00 है। (प्रकाशितवाक्य 7:4-8; 14:1, 3) ये 1,44,000 जन अपने राजा मसीह का साथ देते हैं और परमेश्वर “की महिमा की स्तुति” के लिए काम करते हैं।—इफिसियों 1:12-14.
12. हम कैसे जानते हैं कि 1,44,000 जनों में से ठीक कौन-कौन होंगे यह पहले से तय नहीं किया गया है?
12 यह तो तय है कि 1,44,000 लोग स्वर्ग जाएँगे, मगर इसका यह मतलब नहीं कि उनमें से हरेक का भविष्य लिखा गया है कि वह अंत तक परमेश्वर का वफादार रहेगा। यह हम कैसे कह सकते हैं? क्योंकि मसीही यूनानी शास्त्र में खास अभिषिक्त मसीहियों के लिए सलाह दी गयी थी ताकि अपनी खराई बनाए रखने और अपने स्वर्गीय बुलावे के काबिल बने रहने के लिए उन्हें ज़रूरी हिम्मत और मार्गदर्शन मिले। (फिलिप्पियों 2:12; 2 थिस्सलुनीकियों 1:5, 11; 2 पतरस 1:10, 11) यहोवा पहले से जानता है कि एक समूह के तौर पर 144,000 जन उसका मकसद पूरा करने के काबिल होंगे। मगर आखिर में, वे कौन-कौन होंगे, यह इस बात पर निर्भर करता है कि हरेक अभिषिक्त जन कैसे अपनी ज़िंदगी जीने का फैसला करता है और यह फैसला हरेक को अपनी मरज़ी से करना है।—मत्ती 24:13.
यहोवा पहले से क्या जानता है
13, 14. यहोवा भविष्य को जानने की अपनी काबिलीयत का जिस तरीके से इस्तेमाल करता है, वह किसके साथ मेल खाती है, और क्यों?
13 यहोवा, भविष्यवाणी करनेवाला और अपने मकसदों को पूरा करनेवाला परमेश्वर है। तो फिर वह भविष्य को जानने की अपनी काबिलीयत का इस्तेमाल कैसे करता है? इसका जवाब जानने से पहले आइए हम कुछ बातों पर गौर करें। सबसे पहले, हमें यकीन दिलाया गया है कि यहोवा के सभी कामों से उसकी सच्चाई, धार्मिकता और उसका प्यार झलकता है। सामान्य युग पहली सदी में, इब्री मसीहियों को लिखी अपनी पत्री में प्रेरित पौलुस ने पुख्ता किया कि परमेश्वर की शपथ और उसका वादा, ‘दो अटल बातें’ हैं और जिनके बारे में “परमेश्वर का झूठ बोलना असम्भव है।” (इब्रानियों 6:17, 18, NHT) चेले तीतुस को लिखी पत्री में भी पौलुस ने लिखा कि परमेश्वर “झूठ बोल नहीं सकता।”—तीतुस 1:2.
14 यही नहीं, यहोवा कभी-भी किसी के साथ नाइंसाफी नहीं करता, इसके बावजूद कि उसके पास अपार शक्ति है। मूसा ने यहोवा के बारे में कहा कि “वह सच्चा ईश्वर है, उस में कुटिलता [“अन्याय,” बुल्के बाइबिल] नहीं, वह धर्मी और सीधा है।” (व्यवस्थाविवरण 32:4) यहोवा जो कुछ करता है, वह उसकी बेजोड़ शख्सियत के साथ मेल खाता है। उसके कामों में उसके चार खास गुणों यानी प्यार, बुद्धि, न्याय और शक्ति का बढ़िया तालमेल देखा जा सकता है।
15, 16. यहोवा ने अदन के बाग में, आदम के आगे क्या चुनाव रखा?
15 आइए गौर करें कि अदन के बाग में हुई घटनाओं में यहोवा ने कैसे ये चार खास गुण दिखाए। एक प्यार करनेवाले पिता की तरह, यहोवा ने इंसान को वह सबकुछ दिया जिनकी उन्हें ज़रूरत थी। उसने आदम को अपनी सोच का इस्तेमाल करने, मामले की जाँच-परख करने और सही नतीजे पर पहुँचने की काबिलीयत दी थी। जी हाँ, आदम को जानवरों की तरह सहज-बुद्धि के साथ नहीं बनाया गया था बल्कि उसे अपने फैसले खुद करने की काबिलीयत दी गयी थी। इसलिए आदम की सृष्टि के बाद, जब परमेश्वर ने स्वर्गीय सिंहासन से नीचे धरती पर देखा, तो पाया कि उसने ‘जो कुछ बनाया था, वह बहुत ही अच्छा है।’—उत्पत्ति 1:26-31; 2 पतरस 2:12.
16 जब यहोवा ने आदम को ‘भले या बुरे के ज्ञान के वृक्ष’ का फल खाने से मना किया था, तो उसने आदम को काफी हिदायतें दीं ताकि वह खुद फैसला कर सके। यहोवा ने आदम को सिर्फ एक पेड़ को छोड़कर “बाटिका के सब वृक्षों का फल” खाने की इजाज़त दी। उसने आदम को खबरदार किया कि अगर वह उस पेड़ से फल खाएगा जो उसके लिए मना था, तो वह मर जाएगा। (उत्पत्ति 2:16, 17) उसने आदम को बता दिया था कि वह जो भी चुनाव करता, उसका क्या अंजाम होता। अब आदम क्या करता?
17. हम क्यों कह सकते हैं कि यहोवा हर मामले में, भविष्य जानने की अपनी काबिलीयत का इस्तेमाल नहीं करता?
17 यहोवा के पास पहले से सारी बातों को जानने की काबिलीयत है। फिर भी, उसने यह जानने का चुनाव नहीं किया कि आदम और हव्वा क्या करेंगे। तो मुद्दा यह नहीं है कि यहोवा भविष्य देख सकता है या नहीं, बल्कि यह है कि क्या वह ऐसा करने का चुनाव करता है या नहीं। यही नहीं, यहोवा प्रेम का परमेश्वर है। इसलिए वह इतना बेरहम नहीं कि आदम और हव्वा की बगावत और उससे निकलनेवाले बुरे अंजामों को पहले से मुकर्रर कर देता। (मत्ती 7:11; 1 यूहन्ना 4:8) इसलिए यह कहा जा सकता है कि यहोवा हर मामले में भविष्य जानने की अपनी काबिलीयत का इस्तेमाल नहीं करता है।
18. भविष्य जानने की अपनी काबिलीयत का हर मामले में इस्तेमाल न करने का मतलब यह क्यों नहीं है कि यहोवा में कुछ कमी है?
18 यहोवा, हर मामले में अपनी इस काबिलीयत का इस्तेमाल नहीं करता, तो क्या इसका यह मतलब है कि उसमें कुछ खोट या कमी है? हरगिज़ नहीं। मूसा ने कहा कि यहोवा एक “चट्टान” है और “उसका काम सिद्ध है।” (NHT) इसलिए इंसान के पाप की वजह से जो भयानक अंजाम हम भुगत रहे हैं, उसके लिए यहोवा ज़िम्मेदार नहीं है। असली गुनहगार तो आदम है, जिसने परमेश्वर की आज्ञा तोड़कर अधर्म का काम किया। प्रेरित पौलुस ने इस बात को साफ-साफ समझाया: “जैसा एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, इसलिये कि सब ने पाप किया।”—व्यवस्थाविवरण 32:4, 5; रोमियों 5:12; यिर्मयाह 10:23.
19. अगले लेख में किन सवालों पर चर्चा की जाएगी?
19 तो फिर, हमने इस चर्चा से सीखा है कि यहोवा कभी अन्याय नहीं करता। (भजन 33:5) इसके बजाय, यहोवा की काबिलीयतें, उसके गुण और स्तर उसका मकसद पूरा करते हैं। (रोमियों 8:28) यहोवा भविष्यवाणी करनेवाला परमेश्वर है, इसलिए वह ‘अन्त की बात आदि से और प्राचीनकाल से उस बात को बताता आया है जो अब तक नहीं हुई।’ (यशायाह 46:9, 10) हमने यह भी सीखा कि वह हर मामले में भविष्य जानने की अपनी काबिलीयत का इस्तेमाल नहीं करता। इन सारी बातों का हम पर क्या असर होता है? हम इस बात का पूरा खयाल कैसे रख सकते हैं कि हमारा हर फैसला, परमेश्वर के मकसद के मुताबिक हो? ऐसा करने से हमें क्या आशीषें मिलेंगी? इन सवालों की चर्चा अगले लेख में की जाएगी।
[फुटनोट]
a ब्रोशर, सब लोगों के लिए एक किताब का पेज 28 देखिए। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।
क्या आप समझा सकते हैं?
• प्राचीन समय की कौन-सी मिसालें साबित करती हैं कि परमेश्वर का “वचन” हमेशा “सुफल” होता है?
• यहोवा ने ‘अनन्त काल के उद्देश्य’ के सिलसिले में क्या बात पहले से मुकर्रर की थी?
• यहोवा किस तरीके से भविष्य जानने की अपनी काबिलीयत का इस्तेमाल करता है?
[पेज 22 पर तसवीर]
यहोशापात को यहोवा पर पूरा भरोसा था
[पेज 23 पर तसवीर]
परमेश्वर ने यीशु की मौत और उसके पुनरुत्थान की भविष्यवाणी की थी
[पेज 24 पर तसवीर]
क्या यहोवा ने पहले से मुकर्रर किया था कि आदम और हव्वा क्या करेंगे?