अध्याय 12
‘शांति के परमेश्वर’ की सेवा करने के लिए व्यवस्थित
1, 2. (क) जनवरी 1895 में प्रहरीदुर्ग पत्रिका में क्या बदलाव आया? (ख) यह बदलाव देखकर भाइयों को कैसा लगा?
जॉन ए. बोनेट नाम के जोशीले बाइबल विद्यार्थी को जब जनवरी 1895 की प्रहरीदुर्ग मिली तो उसे देखकर वह रोमांचित हो उठा। उसका कवर बिलकुल बदल गया था और बहुत आकर्षक था। कवर पर दिखाया गया कि समुंदर में तूफान उठा है और पास में एक ऊँचा लाइटहाउस है जिसकी रौशनी काले आसमान में दूर तक साफ दिखायी दे रही है। उस नए डिज़ाइन के बारे में पत्रिका में इस शीर्षक के तहत घोषणा की गयी, “हमारा नया रूप।”
2 भाई बोनेट को वह कवर इतना अच्छा लगा कि उन्होंने भाई रसल को एक चिट्ठी लिखी। उन्होंने लिखा, “प्रहरीदुर्ग का नया रूप देखकर बड़ी खुशी हुई। पत्रिका बहुत अच्छी लग रही है।” जॉन एच. ब्राउन नाम के एक और वफादार बाइबल विद्यार्थी ने उस कवर के बारे में लिखा, “यह बिलकुल हटकर है। लाइटहाउस एक पक्की नींव पर खड़ा है, जबकि चारों ओर तूफान मचा है और उससे लहरें टकरा रही हैं।” इस तरह हमारे भाइयों ने उस साल एक बड़ा बदलाव देखा था, मगर यह तो बस एक शुरूआत थी। उसी साल नवंबर में उन्हें एक और बड़े बदलाव के बारे में पता चला। गौर करनेवाली बात है कि वह बदलाव भी एक तरह का तूफान उठने की वजह से किया गया था।
3, 4. (क) 15 नवंबर, 1895 की प्रहरीदुर्ग में किस समस्या के बारे में बताया गया? (ख) कौन-से बड़े बदलाव की घोषणा की गयी?
3 पंद्रह नवंबर, 1895 की प्रहरीदुर्ग में एक बड़ा लेख प्रकाशित किया गया जिसमें एक समस्या के बारे में साफ-साफ बताया गया: बाइबल विद्यार्थियों के संगठन में ऐसी मुश्किलें खड़ी हो गयी थीं जिनसे संगठन में तूफान मच गया और शांति भंग हो गयी। हर जगह भाइयों के बीच इस बात को लेकर झगड़ा होने लगा कि उनकी मंडली का अगुवा किसे होना चाहिए। इससे भाइयों के बीच फूट पैदा हो रही थी। ऐसे झगड़ों को रोकने के लिए, लेख में संगठन की तुलना एक जहाज़ से की गयी। उसमें यह गलती कबूल की गयी कि अगुवाई करनेवाले भाइयों ने संगठन को तूफान जैसी मुसीबतों का सामना करने के लिए तैयार नहीं किया था। अब क्या करना ज़रूरी था?
4 लेख में बताया गया कि एक काबिल कप्तान इस बात का ध्यान रखता है कि जहाज़ पर सुरक्षा जैकिट वगैरह उपलब्ध हों और नाविक तूफान का सामना करने के लिए तैयार हों। उसी तरह संगठन की अगुवाई करनेवाले भाइयों को इस बात का ध्यान रखना था कि सारी मंडलियाँ तूफान जैसी समस्याओं का सामना करने के लिए तैयार रहें। इसलिए उस लेख में एक बहुत बड़े बदलाव की घोषणा की गयी। उसमें निर्देश दिया गया कि फौरन “हर मंडली में प्राचीन चुने जाएँ” ताकि वे “झुंड की ‘निगरानी’ करने की ज़िम्मेदारी सँभालें।”—प्रेषि. 20:28.
5. (क) पहली बार प्राचीनों का जो इंतज़ाम किया गया वह सही समय पर उठाया गया कदम क्यों था? (ख) हम किन सवालों पर गौर करेंगे?
5 इस तरह पहली बार प्राचीनों का इंतज़ाम किया गया और यह सही समय पर उठाया गया कदम था। इससे आगे चलकर मंडलियाँ अच्छी तरह व्यवस्थित और मज़बूत हुईं। इस इंतज़ाम ने भाइयों की मदद की और वे पहले विश्व युद्ध के दौरान तूफान जैसी मुसीबतों का सामना करते हुए संगठन को सही दिशा में ले जा पाए। बाद के सालों में संगठन के काम करने के तरीकों में और भी निखार आया, जिससे यहोवा के लोग उसकी सेवा करने के लिए अच्छी तरह काबिल बने। बाइबल की किस भविष्यवाणी में बताया गया था कि ऐसा निखार होगा? आपने संगठन में कौन-कौन-से बदलाव देखे हैं? आपको उन बदलावों से क्या फायदा हुआ है?
“मैं शांति को ठहराऊँगा कि तेरी निगरानी करे”
6, 7. (क) यशायाह 60:17 की भविष्यवाणी का क्या मतलब है? (ख) “निगरानी” करने और ‘काम सौंपने’ की बात से क्या पता चलता है?
6 जैसे हमने अध्याय 9 में देखा, यशायाह ने भविष्यवाणी की थी कि यहोवा की आशीष से उसके लोगों की गिनती बढ़ जाएगी। (यशा. 60:22) यहोवा ने उनके लिए और भी कुछ करने का वादा किया था। उसी भविष्यवाणी में उसने कहा, “मैं ताँबे के बदले सोना, लोहे के बदले चाँदी, लकड़ी के बदले ताँबा और पत्थर के बदले लोहा लाऊँगा। मैं शांति को ठहराऊँगा कि तेरी निगरानी करे और नेकी तुझे काम सौंपेगी।” (यशा. 60:17) इस भविष्यवाणी का क्या मतलब है? आज यह कैसे पूरी हो रही है?
यह नहीं कहा गया है कि खराब चीज़ की जगह अच्छी चीज़ लायी जाएगी बल्कि अच्छी चीज़ की जगह और भी बढ़िया चीज़ लायी जाएगी
7 यशायाह ने बताया कि एक चीज़ के बदले दूसरी चीज़ लायी जाएगी। मगर ध्यान दीजिए कि यहाँ किस तरह के बदलाव की बात की गयी है। यह नहीं कहा गया है कि खराब चीज़ की जगह अच्छी चीज़ लायी जाएगी बल्कि अच्छी चीज़ की जगह और भी बढ़िया चीज़ लायी जाएगी। ताँबे की जगह सोना लाना एक सुधार है, उसी तरह बाकी चीज़ों के बदले जो लाया गया है वह भी एक सुधार है। यहोवा ने यह मिसाल देकर बताया कि आगे चलकर उसके लोगों के संगठन में धीरे-धीरे सुधार किया जाएगा। भविष्यवाणी में किस तरह के सुधार की बात की गयी है? आयत में “निगरानी” करने और ‘काम सौंपने’ की बात की गयी है जिससे पता चलता है कि यहोवा के लोगों की निगरानी और देखरेख के मामले में धीरे-धीरे सुधार किया जाएगा।
8. (क) यशायाह की भविष्यवाणी में बताए गए सुधार के पीछे किसका हाथ है? (ख) इन बदलावों से हमें क्या फायदा हुआ है? (यह बक्स भी देखें: “उन्होंने नम्रता से सलाह मानी।”)
8 संगठन में ऐसा सुधार कौन करता है? यहोवा ने कहा, ‘मैं सोना और चाँदी लाऊँगा। मैं शांति को ठहराऊँगा।’ जी हाँ, मंडली को व्यवस्थित करने के तरीके में जो सुधार हुआ है उसके पीछे इंसानों का नहीं बल्कि यहोवा का हाथ है। जब से यीशु को राजा ठहराया गया तब से यहोवा अपने इस बेटे के ज़रिए ये बदलाव कर रहा है। इन बदलावों से हमें क्या फायदा हुआ है? वही आयत कहती है कि इस तरह सुधार करने का नतीजा “शांति” और “नेकी” होगी। जब हम परमेश्वर के निर्देश मानते हैं और फेरबदल करते हैं, तो हमारे बीच शांति होती है। हम नेकी से प्यार करते हैं, इसलिए हम यहोवा की सेवा करते हैं जिसे पौलुस ने “शांति का परमेश्वर” कहा।—फिलि. 4:9.
9. मंडली में कायदा और एकता के लिए क्या ज़रूरी है और क्यों?
9 पौलुस ने यहोवा के बारे में यह भी लिखा, “परमेश्वर गड़बड़ी का नहीं, बल्कि शांति का परमेश्वर है।” (1 कुरिं. 14:33) ध्यान दीजिए कि पौलुस ने शांति का ज़िक्र किया, न कि कायदे का जो गड़बड़ी का विपरीत शब्द है। क्यों? गौर कीजिए: सिर्फ कायदा होना शांति नहीं लाता। मिसाल के लिए, सैनिकों की एक टोली कायदे से कूच करती हुई युद्ध के मैदान में जाती है, मगर उनके कायदे का नतीजा शांति नहीं युद्ध होता है। इसलिए हम मसीहियों को यह अहम बात याद रखनी चाहिए: अगर एक संगठन कायदे से चलता है, मगर उसकी बुनियाद शांति न हो तो वह आज नहीं तो कल खत्म हो जाएगा। दूसरी तरफ, अगर एक संगठन की बुनियाद, परमेश्वर की शांति है तो उसमें कायदा भी बना रहेगा और वह संगठन बरकरार रहेगा। इसलिए हम कितने शुक्रगुज़ार हैं कि हमारे संगठन को “शांति देनेवाला परमेश्वर” राह दिखाता है और शुद्ध करता है। (रोमि. 15:33) परमेश्वर से मिलनेवाली शांति की बदौलत पूरी दुनिया की मंडलियों में बढ़िया कायदा और सच्ची एकता है, जिसके लिए हम शुक्रगुज़ार और खुश हैं।—भज. 29:11.
10. (क) शुरू के सालों में हमारे संगठन में कौन-से सुधार किए गए? (यह बक्स देखें: “निगरानी करने के तरीके में कैसे सुधार हुआ।”) (ख) अब हम किन सवालों पर गौर करेंगे?
10 “निगरानी करने के तरीके में कैसे सुधार हुआ,” इस बक्स में हमें एक झलक मिलती है कि शुरू के सालों में संगठन में एक-एक करके कौन-से सुधार किए गए। मगर अब आइए देखें कि हाल के सालों में यहोवा ने हमारे राजा के ज़रिए कौन-से बदलाव किए जो “ताँबे के बदले सोना” लाने की तरह हैं? निगरानी करने के तरीके में हुए इन बदलावों से पूरी दुनिया की मंडलियों में शांति और एकता को कैसे बढ़ावा मिला है? इन बदलावों की वजह से ‘शांति के परमेश्वर’ की सेवा करने में आपको कैसे मदद मिली है?
मसीह कैसे मंडली की अगुवाई करता है
11. (क) बाइबल के अध्ययन से क्या समझ मिली? (ख) शासी निकाय ने क्या करने की ठानी?
11 सन् 1964 से 1971 तक, शासी निकाय की निगरानी में बाइबल के कुछ विषयों पर काफी गहराई से अध्ययन किया गया। उनमें से एक विषय था, पहली सदी में मसीही मंडली के काम करने का तरीका।a इस अध्ययन से पता चला कि पहली सदी में हर मंडली की निगरानी सिर्फ एक प्राचीन या निगरान नहीं बल्कि प्राचीनों का निकाय करता था। (फिलिप्पियों 1:1; 1 तीमुथियुस 4:14 पढ़िए।) शासी निकाय ने जब यह बात अच्छी तरह समझ ली तो उन्हें एहसास हुआ कि उनका राजा यीशु उन्हें संगठन को चलाने के तरीके में सुधार करने का मार्गदर्शन दे रहा है। उन भाइयों ने ठान लिया कि वे राजा का निर्देश मानेंगे। उन्होंने फौरन कुछ बदलाव किए ताकि शास्त्र में प्राचीनों के इंतज़ाम के बारे में जो बताया गया है, ठीक उसी तरह संगठन काम करे। सन् 1970 के बाद क्या बदलाव किए गए?
12. (क) शासी निकाय के इंतज़ाम में क्या बदलाव किया गया? (ख) बताइए कि आज शासी निकाय कैसे व्यवस्थित है। (यह बक्स देखें: “शासी निकाय कैसे राज के कामों की देखरेख करता है।”)
12 पहला बदलाव शासी निकाय के इंतज़ाम में ही हुआ। तब तक शासी निकाय, वॉच टावर बाइबल एंड ट्रैक्ट सोसाइटी ऑफ पेन्सिलवेनिया के निदेशक मंडल के 7 सदस्यों से बना था। मगर 1971 में सदस्यों की गिनती 7 से बढ़ाकर 11 कर दी गयी और यह फैसला किया गया कि शासी निकाय और वॉच टावर का निदेशक मंडल, दोनों अलग समूह होंगे। ये 11 भाई एक-दूसरे को बराबर समझते थे और हर साल बारी-बारी से उनमें से किसी एक को सभापति की ज़िम्मेदारी दी जाने लगी।
13. (क) मंडलियों में 40 साल तक क्या इंतज़ाम था? (ख) 1972 में शासी निकाय ने क्या किया?
13 अगला बदलाव मंडलियों में किया गया। वह बदलाव क्या था? सन् 1932 से 1972 तक, हर मंडली की निगरानी खास तौर से एक ही भाई करता था। सन् 1936 तक ऐसे भाई को सेवा निदेशक कहा जाता था। बाद में वह नाम बदलकर मंडली सेवक और उसके बाद मंडली निगरान रखा गया। इन भाइयों ने झुंड की देखभाल करने का काम पूरे जोश से किया। आम तौर पर मंडली निगरान दूसरे सेवक भाइयों से मशविरा किए बिना अकेले ही मंडली के सारे फैसले करता था। मगर 1972 में शासी निकाय ने एक बहुत बड़ा बदलाव किया। वह बदलाव क्या था?
14. (क) 1 अक्टूबर, 1972 से कौन-सा नया इंतज़ाम शुरू हुआ? (ख) प्राचीनों के निकाय का संयोजक फिलिप्पियों 2:3 की सलाह कैसे मानता है?
14 शासी निकाय ने फैसला किया कि अब से हर मंडली की निगरानी सिर्फ एक भाई, यानी मंडली निगरान नहीं करेगा बल्कि नियुक्त प्राचीनों का एक निकाय करेगा। यह निकाय ऐसे भाइयों से बना होगा जो शास्त्र के मुताबिक प्राचीन बनने के योग्य हैं। प्राचीनों के निकाय का यह नया इंतज़ाम 1 अक्टूबर, 1972 को शुरू हुआ। आज हर मंडली में प्राचीनों के निकाय का एक संयोजक होता है, मगर वह खुद को बाकी प्राचीनों से बड़ा नहीं बल्कि “छोटा” समझता है। (लूका 9:48) ऐसे नम्र भाई दुनिया-भर में फैली बिरादरी के लिए कितनी बड़ी आशीष हैं!—फिलि. 2:3.
हमारे राजा ने वाकई दूर की सोची और सही समय पर अपने चेलों के लिए चरवाहों का इंतज़ाम किया
15. (क) प्राचीनों के निकायों का इंतज़ाम करने से क्या फायदे हुए हैं? (ख) क्या दिखाता है कि हमारे राजा ने बुद्धिमानी का काम किया है?
15 मंडली की ज़िम्मेदारी प्राचीनों में बाँट देने का इंतज़ाम काफी फायदेमंद साबित हुआ है। आइए इनमें से तीन फायदों पर गौर करें। सबसे पहले, इस इंतज़ाम की वजह से सभी प्राचीनों को एहसास रहता है कि वे मंडली में चाहे कितनी ही बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ निभाते हों, मंडली का मुखिया यीशु है। (इफि. 5:23) दूसरा फायदा नीतिवचन 11:14 में बताया गया है, “बहुतों की सलाह से कामयाबी मिलती है।” जब प्राचीन, मंडली की भलाई से जुड़े मामलों पर आपस में सलाह करते हैं और एक-दूसरे के सुझाव सुनते हैं तो वे बाइबल के सिद्धांतों के मुताबिक सही फैसले कर पाते हैं। (नीति. 27:17) यहोवा उनके फैसलों पर आशीष देता है और इससे कामयाबी मिलती है। तीसरा फायदा, ज़्यादा-से-ज़्यादा काबिल भाइयों के होने की वजह से आज निगरानी करनेवाले भाइयों की बढ़ती ज़रूरत पूरी की जा रही है। (यशा. 60:3-5) ज़रा सोचिए, 1971 में पूरी दुनिया में 27,000 से ज़्यादा मंडलियाँ थीं, मगर 2013 तक यह गिनती बढ़कर 1,13,000 से ज़्यादा हो गयी! हमारे राजा ने वाकई दूर की सोची और सही समय पर अपने चेलों के लिए चरवाहों का इंतज़ाम किया।—मीका 5:5.
‘झुंड के लिए एक मिसाल बनो’
16. (क) प्राचीनों की क्या ज़िम्मेदारी है? (ख) ‘भेड़ों की देखभाल करने’ की सलाह के बारे में बाइबल विद्यार्थियों का क्या नज़रिया था?
16 बाइबल विद्यार्थियों के ज़माने में ही प्राचीनों को अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास हो गया था कि उन्हें परमेश्वर की सेवा करते रहने में अपने भाई-बहनों की मदद करनी है। (गलातियों 6:10 पढ़िए।) सन् 1908 में प्रहरीदुर्ग के एक लेख में यीशु की इस सलाह पर चर्चा की गयी: “चरवाहे की तरह मेरी छोटी भेड़ों की देखभाल कर।” (यूह. 21:15-17) लेख में प्राचीनों से कहा गया, “हमारे स्वामी ने झुंड के मामले में हमें जो काम सौंपा है उसे हमें मन में मुख्य स्थान देना चाहिए। हमें प्रभु के शिष्यों को भोजन देने और उनकी देखभाल करने के काम को एक सुअवसर मानना चाहिए।” सन् 1925 की एक प्रहरीदुर्ग में दोबारा इस बात पर ज़ोर दिया गया कि चरवाहों के नाते सेवा करना कितनी गंभीर ज़िम्मेदारी है। लेख में प्राचीनों को याद दिलाया गया, “परमेश्वर का चर्च [या मंडली] उसका अपना है, . . . और वह उन सभी से लेखा लेगा जिन्हें अपने भाइयों की सेवा करने का सुअवसर मिला है।”
17. प्राचीनों को और कुशल बनने के लिए कैसे मदद दी गयी है?
17 यहोवा के संगठन ने प्राचीनों को और भी कुशल बनाया है ताकि वे चरवाहों की तरह मंडली की अच्छी देखभाल कर सकें। यह ऐसा है मानो “लोहे के बदले चाँदी” लायी गयी है। उन्हें कैसे कुशल बनाया गया है? अच्छा प्रशिक्षण देकर। सन् 1959 में पहली बार निगरानों के लिए राज-सेवा स्कूल रखा गया। उस स्कूल में एक बार इस विषय पर भाषण दिया गया, “हर भेड़ पर ध्यान दीजिए।” ज़िम्मेदारी सँभालनेवाले भाइयों को बढ़ावा दिया गया कि वे “प्रचारकों के घर जाकर उनसे मिलने के लिए एक अच्छी समय-सारणी बनाएँ।” प्राचीनों को समझाया गया कि जब वे प्रचारकों से मिलेंगे तो वे किन-किन तरीकों से उनका हौसला बढ़ा सकते हैं। सन् 1966 में राज-सेवा स्कूल में कुछ बदलाव किए गए। इस स्कूल में एक विषय पर बात की गयी, “चरवाहे के काम का महत्त्व।” उसमें क्या खास बात सिखायी गयी? यही कि अगुवाई करनेवाले भाइयों को “परमेश्वर के झुंड की प्यार से देखभाल करनी चाहिए और अपने परिवार पर और प्रचार काम पर भी पूरा ध्यान देना चाहिए।” हाल के सालों में प्राचीनों के लिए और भी स्कूल रखे गए। यहोवा के संगठन से लगातार मिलनेवाले इस प्रशिक्षण से क्या फायदा हुआ है? आज मसीही मंडली में ऐसे हज़ारों काबिल भाई हैं जो चरवाहों के नाते सेवा कर रहे हैं।
18. (क) प्राचीनों को कौन-सी भारी ज़िम्मेदारी दी गयी है? (ख) यहोवा और यीशु, मेहनती प्राचीनों से क्यों प्यार करते हैं?
18 यहोवा ने हमारे राजा यीशु के ज़रिए मसीही प्राचीनों का इंतज़ाम इसलिए शुरू करवाया ताकि वे एक भारी ज़िम्मेदारी निभाएँ। वह है, इतिहास के सबसे मुश्किल दौर में परमेश्वर की भेड़ों की अगुवाई करना। (इफि. 4:11, 12; 2 तीमु. 3:1) यहोवा और यीशु, मेहनती प्राचीनों से बहुत प्यार करते हैं क्योंकि वे बाइबल की यह सलाह मानते हैं: ‘तुम चरवाहों की तरह परमेश्वर के झुंड की देखभाल करो जो तुम्हें सौंपा गया है और ऐसा खुशी-खुशी और तत्परता से करो। तुम झुंड के लिए एक मिसाल बनो।’ (1 पत. 5:2, 3) मसीही चरवाहे कई तरीकों से झुंड के लिए मिसाल बनते हैं और मंडली की शांति और खुशी को बढ़ावा देते हैं। आइए ऐसे दो तरीकों पर गौर करें।
प्राचीन आज परमेश्वर के झुंड की देखभाल कैसे करते हैं
19. हम उन प्राचीनों के बारे में कैसा महसूस करते हैं जो हमारे साथ प्रचार करते हैं?
19 एक तरीका यह है कि प्राचीन, मंडली के सदस्यों के साथ मिलकर प्रचार करते हैं। खुशखबरी की एक किताब के लेखक लूका ने लिखा: “यीशु शहर-शहर और गाँव-गाँव गया और लोगों को प्रचार करता और परमेश्वर के राज की खुशखबरी सुनाता गया। वे 12 चेले उसके साथ थे।” (लूका 8:1) जैसे यीशु अपने प्रेषितों के साथ प्रचार करता था, वैसे ही जो प्राचीन अच्छी मिसाल रखते हैं वे अपने भाई-बहनों के साथ मिलकर प्रचार करते हैं। वे जानते हैं कि ऐसा करके वे मंडली में एक अच्छा माहौल बनाए रखने में मदद देते हैं। मंडली के सदस्य ऐसे प्राचीनों के बारे में कैसा महसूस करते हैं? ज़नीन नाम की बहन, जो करीब 90 साल की हैं, कहती हैं: “जब मैं किसी प्राचीन के साथ प्रचार करती हूँ तो मुझे उससे बात करने और उसे अच्छी तरह जानने का बढ़िया मौका मिलता है।” करीब 35 साल का भाई स्टीवन कहता है, “जब कोई प्राचीन मेरे साथ घर-घर का प्रचार करता है तो मुझे एहसास होता है कि वह मेरी मदद करना चाहता है। ऐसी मदद पाकर मुझे बहुत खुशी मिलती है।”
20, 21. प्राचीन, यीशु की मिसाल में बताए चरवाहे की तरह कैसे बन सकते हैं? एक अनुभव बताइए। (यह बक्स भी देखें: “हर हफ्ते की मुलाकातों के बढ़िया नतीजे।”)
20 दूसरा तरीका यह है कि प्राचीन ऐसे लोगों की मदद करते हैं जिनका मंडली से संपर्क टूट गया है। यह काम करने के लिए संगठन ने उन्हें अच्छा प्रशिक्षण दिया है। (इब्रा. 12:12) प्राचीनों को ऐसे कमज़ोर लोगों की क्यों मदद करनी चाहिए और वे कैसे उनकी मदद कर सकते हैं? चरवाहे और खोयी हुई भेड़ के बारे में यीशु की मिसाल से हमें इस सवाल का जवाब मिलता है। (लूका 15:4-7 पढ़िए।) जब एक भेड़ खो जाती है तो चरवाहा उसे ढूँढ़ने के लिए इतनी मेहनत करता है मानो उसके पास वही एक भेड़ थी। आज मसीही प्राचीन कैसे उस चरवाहे की तरह काम करते हैं? भले ही वह भेड़ खो गयी थी मगर चरवाहे की नज़र में वह अब भी अनमोल थी। उसी तरह जिन लोगों का मंडली से संपर्क टूट गया है वे भी प्राचीनों की नज़र में अनमोल हैं। प्राचीन यह नहीं सोचते कि ऐसे लोगों को ढूँढ़ना और उनकी मदद करना समय की बरबादी है। इसके बजाय वे खुद जाकर उन कमज़ोरों को ढूँढ़ते हैं और उनकी मदद करते हैं, ठीक जैसे चरवाहा ‘खोयी हुई भेड़ को तब तक ढूँढ़ता रहता है जब तक कि वह मिल नहीं जाती।’
21 मिसाल में बताए चरवाहे को जब भेड़ मिल जाती है तो वह क्या करता है? वह प्यार से “उसे अपने कंधों पर उठा लेता है” और उसे वापस झुंड के पास ले जाता है। उसी तरह, जब एक प्राचीन किसी कमज़ोर मसीही से प्यार से बात करता है और उसकी परवाह करता है तो उसे मंडली में वापस आने में मदद मिलती है। अफ्रीका के एक भाई विक्टर का यही अनुभव रहा। विक्टर ने मंडली से मेल-जोल रखना छोड़ दिया था। वह कहता है, “मैं आठ साल तक मंडली से दूर रहा। उस दौरान प्राचीन मेरी मदद करने की कोशिश करते रहे।” क्या बात खासकर उसके दिल को छू गयी? वह बताता है, “एक दिन जॉन नाम का एक प्राचीन, जिसके साथ मैं पायनियर सेवा स्कूल में था, समय निकालकर मुझसे मिलने आया। उसने मुझे पायनियर स्कूल की कुछ तसवीरें दिखायीं। उन तसवीरों को देखकर बहुत-सी मीठी यादें ताज़ा हो गयीं और मैं फिर से वह खुशी पाने के लिए तरसने लगा जो मुझे यहोवा की सेवा में मिलती थी।” इसके कुछ ही समय बाद विक्टर मंडली में लौट आया। आज वह फिर से पायनियर सेवा कर रहा है। वाकई, मसीही प्राचीन प्यार से हमारी देखभाल करते हैं और इससे हमें बहुत खुशी मिलती है!—2 कुरिं. 1:24.b
निगरानी के काम में होनेवाले सुधार से हमारी एकता मज़बूत होती है
22. नेकी और शांति की वजह से मसीही मंडली की एकता कैसे मज़बूत होती है? (यह बक्स भी देखें: “हम दंग रह गए।”)
22 जैसे पहले कहा गया है, यहोवा ने भविष्यवाणी की थी कि उसके लोगों की नेकी और शांति लगातार बढ़ती जाएगी। (यशा. 60:17) उन दोनों गुणों की वजह से मंडलियों की एकता मज़बूत होती है। कैसे? आइए पहले नेकी की बात करें। “परमेश्वर यहोवा एक ही यहोवा है।” (व्यव. 6:4) इसलिए सही-गलत के बारे में उसके स्तर “पवित्र जनों की सारी मंडलियों” के लिए एक जैसे हैं। (1 कुरिं. 14:33) ऐसा नहीं है कि एक देश की मंडलियों के लिए उसके नेक स्तर कुछ हैं और दूसरे देश की मंडलियों के लिए कुछ और। एक मंडली तभी तरक्की कर पाएगी जब वह परमेश्वर के स्तरों को मानेगी। जहाँ तक शांति की बात है, हमारा राजा चाहता है कि हम मंडली में न सिर्फ शांति का आनंद उठाएँ बल्कि ‘शांति कायम करनेवाले’ भी बनें। (मत्ती 5:9) इसलिए ‘हम उन बातों में लगे रहते हैं जिनसे शांति कायम होती है।’ जब हमारे बीच कोई अनबन हो जाती है तो उसे सुलझाने के लिए हम खुद कदम उठाते हैं। (रोमि. 14:19) इस तरह हम अपनी मंडली की शांति और एकता को बढ़ावा देते हैं।—यशा. 60:18.
23. हम यहोवा के सेवक किन बातों का आनंद उठाते हैं?
23 नवंबर 1895 में जब प्रहरीदुर्ग में प्राचीनों के इंतज़ाम की शुरूआत के बारे में घोषणा की गयी तो ज़िम्मेदारी सँभालनेवाले भाइयों ने अपनी एक इच्छा ज़ाहिर की। वे चाहते थे और उनकी यह प्रार्थना भी थी कि संगठन में हुए इस नए इंतज़ाम से परमेश्वर के लोगों के बीच “जल्द-से-जल्द एकता कायम हो।” आज हम बीते सालों को याद करके कितने एहसानमंद हैं कि यहोवा ने हमारे राजा के ज़रिए निगरानी के काम में जो सुधार किया है उससे उपासना में हमारी एकता वाकई मज़बूत हुई है। (भज. 99:4) इसलिए पूरी दुनिया में यहोवा के सभी लोग खुश हैं कि वे “एक ही तरह का जज़्बा” रखते हैं, “एक ही राह” पर चलते हैं और “कंधे-से-कंधा मिलाकर” ‘शांति के परमेश्वर’ की सेवा करते हैं।—2 कुरिं. 12:18; सपन्याह 3:9 पढ़िए।
a उस खोजबीन से मिली जानकारी बाइबल समझने में मदद (अँग्रेज़ी) किताब में प्रकाशित की गयी।
b पंद्रह जनवरी, 2013 की प्रहरीदुर्ग में यह लेख देखें: “मसीही प्राचीन ‘हमारी खुशी के लिए हमारे सहकर्मी।’”