तेइसवाँ अध्याय
“एक नया नाम”
1. यशायाह के 62वें अध्याय में क्या आश्वासन दिया गया है?
दिलासा, सांत्वना, और दोबारा बहाल होने की उम्मीद। बाबुल की बंधुआई में पड़े निराश यहूदियों को इन्हीं की सख्त ज़रूरत है। यरूशलेम और उसके मंदिर का नाश हुए बीसियों साल गुज़र चुके हैं। बाबुल से करीब 800 किलोमीटर दूर, यहूदा देश अब तक उजाड़ और वीरान पड़ा है और ऐसा लगता है कि यहोवा, यहूदियों को भूल चुका है। उनकी यह हालत कैसे सुधर सकती है? यहोवा के इन वादों से कि वह उन्हें अपने वतन वापस ले जाएगा और उन्हें फिर से शुद्ध उपासना की शुरूआत करने का मौका देगा। तब उस देश को “त्यागी हुई” और “उजड़ी हुई” जैसे नामों से नहीं पुकारा जाएगा बल्कि उसे ऐसे नाम देकर उसका आदर किया जाएगा जिनसे पता चलेगा कि यहोवा का उस पर अनुग्रह है। (यशायाह 62:4; जकर्याह 2:12) यशायाह का 62वाँ अध्याय ऐसे ही वादों से भरा हुआ है। लेकिन, बहाली की दूसरी भविष्यवाणियों की तरह, इस अध्याय में भी बाबुल की बंधुआई से यहूदियों के छुटकारे से कहीं बड़े मसलों के बारे में बताया गया है। यशायाह के 62वें अध्याय की भविष्यवाणी की बड़े पैमाने पर पूर्ति हमें यह आश्वासन दिलाती है कि यहोवा की आत्मिक जाति, “परमेश्वर के इस्राएल” का उद्धार हर हाल में होगा।—गलतियों 6:16.
यहोवा चुप नहीं रहेगा
2. यहोवा किस तरह फिर एक बार सिय्योन पर अनुग्रह करता है?
2 सामान्य युग पूर्व 539 में बाबुल का तख्ता पलट दिया गया। उसके बाद, फारस के राजा कुस्रू ने एक आदेश जारी किया जिससे परमेश्वर का भय माननेवाले यहूदी यरूशलेम लौटकर वहाँ दोबारा यहोवा की उपासना शुरू कर पाए। (एज्रा 1:2-4) सा.यु.पू. 537 में, बाबुल से लौटनेवाले यहूदियों का पहला दल अपने वतन पहुँच चुका था। यहोवा ने फिर एक बार यरूशलेम पर अनुग्रह किया, जैसे कि उसकी भविष्यवाणी के इन प्यार-भरे शब्दों से पता चलता है: “सिय्योन के लिए मैं चुप न रहूंगा, और यरूशलेम के लिए मैं शान्त न बैठूंगा, जब तक कि उसकी धार्मिकता प्रकाश के सदृश और उसका उद्धार जलती हुई मशाल के समान प्रकट न हो।”—यशायाह 62:1, NHT.
3. (क) पृथ्वी की सिय्योन को आखिरकार यहोवा ने क्यों त्याग दिया, और उसकी जगह किसने ले ली? (ख) सच्चाई की जगह झूठ कैसे लेने लगा, यह कब हुआ, और आज हम किस समय में जी रहे हैं?
3 सामान्य युग पूर्व 537 में, यहोवा ने अपना वादा पूरा किया कि वह सिय्योन या यरूशलेम को फिर से बसाएगा। सिय्योन के लोगों ने यहोवा के उद्धार को देखा और उनकी धार्मिकता प्रकाश की तरह चमक उठी। लेकिन, बाद में वे फिर एक बार शुद्ध उपासना से दूर चले गए। और एक वक्त ऐसा आया कि उन्होंने यीशु को मसीहा मानने से इनकार कर दिया और तब यहोवा ने उन्हें हमेशा के लिए त्याग दिया और वे उसकी चुनी हुई जाति न रहे। (मत्ती 21:43; 23:38; यूहन्ना 1:9-13) उनकी जगह यहोवा ने एक नयी जाति, ‘परमेश्वर का इस्राएल’ पैदा की। यह नयी जाति उसके खास लोग बनी और पहली सदी में इस जाति के सदस्यों ने बड़े जोश से उस वक्त के सारे संसार में सुसमाचार का प्रचार किया। (गलतियों 6:16; कुलुस्सियों 1:23) मगर अफसोस कि प्रेरितों की मौत के बाद, सच्चे धर्म से भटकने का दौर शुरू हो गया। इसकी वजह से मसीही धर्म में धर्मत्याग एक ऐसा रूप लेकर बढ़ने लगा जो सच्चाई से कोसों दूर था, और जो आज के ईसाईजगत में पाया जाता है। (मत्ती 13:24-30,36-43; प्रेरितों 20:29,30) सदियों से, ईसाईजगत ने यहोवा का नाम बदनाम किया है और उसे ऐसा करने दिया गया। मगर आखिरकार, 1914 में ‘यहोवा के प्रसन्न रहने का वर्ष’ शुरू हुआ और उसके साथ-साथ यशायाह की यह भविष्यवाणी भी बड़े पैमाने पर पूरी होने लगी।—यशायाह 61:2.
4, 5. (क) आज सिय्योन और उसके बच्चे कौन हैं? (ख) यहोवा ने सिय्योन को कैसे इस्तेमाल किया है, ताकि “उसका उद्धार जलती हुई मशाल के समान” हो?
4 आज, सिय्योन को फिर से बसाने का यहोवा का वादा उसके स्वर्गीय संगठन, “ऊपर की यरूशलेम” पर पूरा हो चुका है और पृथ्वी पर उसके बच्चे यानी आत्मा से अभिषिक्त मसीही उसके प्रतिनिधि हैं। (गलतियों 4:26) यहोवा का स्वर्गीय संगठन, एक वफादार पत्नी की तरह तन-मन से उसका साथ देने के लिए समर्पित है, वह सचेत है, मेहनती है और प्यार करनेवाली पत्नी है। वह क्या ही रोमांचकारी घड़ी थी जब उसने 1914 में मसीहाई राज्य को जन्म दिया! (प्रकाशितवाक्य 12:1-5) खासकर 1919 से, पृथ्वी पर उसके बच्चों ने सभी जातियों के सामने उसकी धार्मिकता और उसके उद्धार का प्रचार किया है। जैसे यशायाह ने भविष्यवाणी की थी, इन बच्चों ने एक जलती हुई मशाल की रोशनी से अंधकार को दूर किया है और अपनी रोशनी सब पर चमकायी है।—मत्ती 5:15,16; फिलिप्पियों 2:15.
5 यहोवा को अपने उपासकों की गहरी परवाह है, इसलिए जब तक वह सिय्योन और उसके बच्चों से किए अपने सभी वादे पूरे नहीं कर लेता, वह शांत या चुप नहीं बैठेगा। अभिषिक्त जनों के शेष जन और उनके साथी ‘अन्य भेड़’ भी चुप नहीं रहते। (यूहन्ना 10:16, NW) लोगों को उद्धार के एकमात्र रास्ते पर लाने का काम वे पूरे ज़ोर-शोर के साथ करते हैं।—रोमियों 10:10.
यहोवा एक “नया नाम” देता है
6. सिय्योन के लिए यहोवा ने क्या सोचा है?
6 अपनी इस स्वर्गीय ‘स्त्री’ सिय्योन के लिए, जिसका प्रतीक प्राचीन यरूशलेम नगरी थी, यहोवा ने क्या सोचा है? वह कहता है: “तब अन्यजातियां तेरा धर्म और सब राजा तेरी महिमा देखेंगे; और तेरा एक नया नाम रखा जाएगा जो यहोवा के मुख से निकलेगा।” (यशायाह 62:2) इस्राएल के धार्मिकता के कामों की वजह से राष्ट्रों को मजबूरन उसकी तरफ ध्यान देना पड़ता है। यहाँ तक कि राजाओं को भी यह मानना पड़ता है कि यहोवा ही यरूशलेम को इस्तेमाल कर रहा है और यहोवा के राज्य के आगे उनकी सारी हुकूमतें फीकी दिखायी देती हैं।—यशायाह 49:23.
7. सिय्योन को नया नाम दिए जाने का क्या मतलब है?
7 अब सिय्योन की हालत बदल चुकी है, यह बात सबको बताने के लिए यहोवा उसे एक नया नाम देता है। नया नाम दिए जाने का मतलब है कि सा.यु.पू. 537 से, पृथ्वी पर सिय्योन के बच्चों पर परमेश्वर की आशीष है और उन्हें सम्मान का पद मिला है।a यह दिखाता है कि यहोवा ने यह स्वीकार किया है कि सिय्योन उसकी है और वह उसका स्वामी है। आज, परमेश्वर का इस्राएल यहोवा का ऐसा अनुग्रह पाकर खुशी से फूला नहीं समाता और उनके साथ-साथ अन्य भेड़ भी आनंद मनाती हैं।
8. यहोवा ने किस तरह सिय्योन का सम्मान किया है?
8 सिय्योन को नया नाम देने के बाद, यहोवा अब वादा करता है: “तू यहोवा के हाथ में एक शोभायमान मुकुट और अपने परमेश्वर की हथेली में राजमुकुट ठहरेगी।” (यशायाह 62:3) यहोवा अपनी इस लाक्षणिक पत्नी, स्वर्गीय सिय्योन को मानो अपने हाथों में उठाता है, ताकि लोग उसे देखें और उसकी तारीफ करें। (भजन 48:2; 50:2) शोभायमान मुकुट और “राजमुकुट” दिखाते हैं कि सिय्योन को सम्मान और अधिकार दिया गया है। (जकर्याह 9:16) “ऊपर की यरूशलेम” या स्वर्गीय सिय्योन का प्रतिनिधि, यानी परमेश्वर का इस्राएल, इस बात का शानदार सबूत है कि परमेश्वर शक्तिशाली तरीके से काम कर रहा है। (गलतियों 4:26) यहोवा की मदद से इस आत्मिक जाति ने खराई और भक्ति का बेमिसाल रिकॉर्ड कायम किया है। लाखों लोग जिनमें अभिषिक्त और अन्य भेड़ें शामिल हैं, मिलकर अपना बेजोड़ विश्वास और प्रेम दिखाने के लिए मज़बूत हुए हैं। मसीह के हज़ार साल के राज के दौरान, जब अभिषिक्त जन अपनी स्वर्गीय महिमा का इनाम पा चुके होंगे, तब वे यहोवा के हाथ में उन औज़ारों की तरह काम करेंगे जिनसे वह दुःख से कराहती सृष्टि को छुटकारा दिलाकर अनंत जीवन देगा।—रोमियों 8:21,22; प्रकाशितवाक्य 22:2.
“यहोवा तुझ से प्रसन्न है”
9. सिय्योन के बदले हुए हालात के बारे में बताइए।
9 स्वर्गीय सिय्योन को एक नया नाम देना इस बात का शानदार सबूत है कि सिय्योन और पृथ्वी पर उसके बच्चों के हालात में खुशनुमा बदलाव आया है। भविष्यवाणी कहती है: “आगे को तू ‘अजूवाह’ [त्यागी हुई] न कहलाएगी, न ही तेरी भूमि ‘शमामाह’ [उजाड़] कहलाएगी, परन्तु तू ‘हेप्सीबा’ [मेरी प्रिया] और तेरी भूमि ‘ब्यूला’ [सुहागिन] कहलाएगी, क्योंकि यहोवा तुझ से प्रसन्न है, और उसके लिए तेरी भूमि सुहागिन होगी।” (यशायाह 62:4, NHT, फुटनोट) पृथ्वी की सिय्योन, सा.यु.पू. 607 में हुए विनाश के बाद से उजाड़ पड़ी थी। लेकिन, यहोवा के शब्द उसे आश्वासन देते हैं कि वह बहाल होगी और फिर से बसायी जाएगी। एक वक्त पर जो सिय्योन लूटकर बरबाद कर दी गयी थी, वह अब फिर कभी त्यागी न जाएगी और उसका देश फिर कभी सूना न होगा। सा.यु.पू. 537 में यरूशलेम की बहाली का मतलब होगा कि अब वह उजड़ी हुई नहीं है और उसकी हालत बिलकुल बदल चुकी है। यहोवा ऐलान करता है कि सिय्योन को “मेरी प्रिया” पुकारा जाएगा और उसकी भूमि “सुहागिन” कहलाएगी।—यशायाह 54:1,5,6; 66:8; यिर्मयाह 23:5-8; 30:17; गलतियों 4:27-31.
10. (क) परमेश्वर के इस्राएल के हालात में कैसा बदलाव आया? (ख) परमेश्वर के इस्राएल की “भूमि” क्या है?
10 सन् 1919 से, परमेश्वर के इस्राएल के हालात में भी ऐसा ही बदलाव आया। पहले विश्वयुद्ध के दौरान, ऐसा लग रहा था कि परमेश्वर ने अभिषिक्त मसीहियों को त्याग दिया है। मगर 1919 में, उन पर फिर से परमेश्वर का अनुग्रह हुआ और उनका उपासना का तरीका शुद्ध किया गया। इस शुद्धिकरण का उनकी शिक्षाओं, उनके संगठन और उनके काम पर गहरा असर पड़ा। परमेश्वर के इस्राएल ने अपनी “भूमि” यानी आध्यात्मिक प्रदेश या कार्यक्षेत्र में कदम रखा।—यशायाह 66:7,8,20-22.
11. यहूदी अपनी माँ को कैसे ब्याह लेते हैं?
11 यहोवा ने अपने लोगों को जो सम्मान के नए पद पर बिठाया है, उसके बारे में ज़ोर देते हुए वह कहता है: “जिस प्रकार जवान पुरुष एक कुमारी को ब्याह लाता है, वैसे ही तेरे पुत्र तुझे ब्याह लेंगे; और, जैसे दुल्हा अपनी दुल्हिन के कारण हर्षित होता है, वैसे ही तेरा परमेश्वर तेरे कारण हर्षित होगा।” (यशायाह 62:5) यह कैसे हो सकता है कि सिय्योन के “पुत्र,” यानी यहूदी अपनी माँ को ब्याह लाएँ? वह ऐसे कि सिय्योन के जो बेटे बाबुल की बंधुआई से छूटते हैं, वे अपनी पुरानी राजधानी को फिर से अधिकार में ले लेते हैं और उसमें बस जाते हैं। जब यह होता है तब सिय्योन उजाड़ नहीं रहती, मगर बेटों से भर जाती है।—यिर्मयाह 3:14.
12. (क) किस तरीके से यहोवा ने साफ प्रकट कर दिया है कि अभिषिक्त मसीही एक ऐसे संगठन का हिस्सा हैं जो उसके साथ शादी के बंधन में बंधा हुआ है? (ख) अपने लोगों के साथ यहोवा का व्यवहार, आज शादी-शुदा जीवन के लिए कैसे एक सर्वश्रेष्ठ आदर्श है? (पेज 342 पर बक्स देखिए।)
12 इसी के समान, 1919 से स्वर्गीय सिय्योन के बच्चों ने अपने देश या आध्यात्मिक प्रदेश पर अधिकार कर लिया जिसे भविष्यवाणी में “सुहागिन” कहा गया है। उस देश में मसीहियों के काम से यह ज़ाहिर हो गया है कि ये अभिषिक्त मसीही “[यहोवा के] नाम के लिये एक लोग” हैं। (प्रेरितों 15:14) इन्होंने राज्य के फल पैदा किए हैं और यहोवा के नाम का प्रचार किया है, इससे ज़ाहिर होता है कि यहोवा इन मसीहियों से बेहद खुश है। उसने यह साफ प्रकट कर दिया है कि ये मसीही एक ऐसे संगठन का हिस्सा हैं जो उसके साथ अटूट रिश्ते में बंधा हुआ है। इन मसीहियों को पवित्र आत्मा से अभिषिक्त करके, आध्यात्मिक बंधुआई से छुड़ाकर और सारी दुनिया में राज्य की आशा का प्रचार करने के लिए उन्हें इस्तेमाल करके, यहोवा ने दुनिया पर ज़ाहिर कर दिया कि वह उनकी वजह से ऐसे खुश होता है जैसे एक दूल्हा अपनी दुल्हन को देखकर हर्षित होता है।—यिर्मयाह 32:41.
“चुप न रहो”
13, 14. (क) प्राचीनकाल में यरूशलेम कैसे एक ऐसा नगर बना जिसने लोगों को सुरक्षा दी? (ख) आज के ज़माने में, सिय्योन की “प्रशंसा पृथ्वी पर” कैसे फैली है?
13 यहोवा से एक लाक्षणिक नया नाम पाकर उसके लोग सुरक्षित महसूस करते हैं। वे जानते हैं कि उसने उन्हें स्वीकार किया है और वह उनका मालिक है। अब यहोवा एक और मिसाल देकर, अपने लोगों से ऐसे बात करता है जैसे वे शहरपनाह से घिरा एक नगर हों। “हे यरूशलेम, मैं ने तेरी शहरपनाह पर पहरुए बैठाए हैं; वे दिन-रात कभी चुप न रहेंगे। हे यहोवा को स्मरण करनेवालो, चुप न रहो, और, जब तक वह यरूशलेम को स्थिर करके उसकी प्रशंसा पृथ्वी पर न फैला दे, तब तक उसे भी चैन न लेने दो।” (यशायाह 62:6,7) बाबुल से वफादार शेष लोगों की वापसी के बाद, यहोवा के ठहराए हुए समय पर वाकई यरूशलेम की ‘प्रशंसा पृथ्वी पर फैली’—क्योंकि यह एक ऐसा नगर बन गया जिसकी शहरपनाह के अंदर लोग महफूज़ रहते थे। इसकी शहरपनाह पर दिन-रात पहरुए पहरा लगाते थे, ताकि नगर की सुरक्षा का ध्यान रखें और खतरे को आते देख नगर के निवासियों को चेतावनी देकर चौकन्ना कर दें।—नहेमायाह 6:15; 7:3; यशायाह 52:8.
14 यहोवा ने हमारे ज़माने में अपने अभिषिक्त पहरुओं के ज़रिए नम्र लोगों को झूठे धर्म की बेड़ियों से आज़ाद होने का रास्ता दिखाया है। इन नम्र लोगों को उसके संगठन में आने का बुलावा दिया गया है, जहाँ उन्हें आध्यात्मिक भ्रष्टता, अधर्मी प्रभावों, और यहोवा के क्रोध से सुरक्षा मिलती है। (यिर्मयाह 33:9; सपन्याह 3:19) ऐसी हिफाज़त के लिए पहरुए वर्ग यानी “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” का काम बेहद ज़रूरी है जो “समय पर” आध्यात्मिक “भोजन” देता है। (मत्ती 24:45-47) पहरुए वर्ग के साथ काम करते हुए, “बड़ी भीड़” ने भी सिय्योन की ‘प्रशंसा पृथ्वी पर फैलाने’ में बहुत बड़ी भूमिका निभायी है।—प्रकाशितवाक्य 7:9.
15. पहरुआ वर्ग और उनके साथी कैसे लगातार यहोवा की सेवा करते हैं?
15 पहरुए वर्ग और उनके साथियों की सेवा आज भी जारी है! जिस तरह वे तन-मन से सेवा करते हैं वही भावना, आज लाखों वफादार लोगों के जोशीले कामों से नज़र आती है। इनमें सफरी ओवरसियर और उनकी पत्नियाँ; यहोवा के साक्षियों के अनेकों बेथेल घरों और छपाईखानों में स्वयंसेवक; मिशनरी और स्पेशल, रेग्युलर और ऑक्ज़लरी पायनियर शामिल हैं। इसके अलावा, वे नए किंगडम हॉलों का निर्माण करने, बीमारों से मिलने, और ऐसे लोगों की मदद करने में कड़ी मेहनत करते हैं जो इलाज के मामले में बड़ी-बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, साथ ही वे विपत्तियों और दुर्घटनाओं के शिकार लोगों को जल्द-से-जल्द राहत पहुँचाने का काम करते हैं। इनमें से कई लोग दूसरों की मदद करने के लिए अपना चैन और आराम त्यागकर सचमुच “दिन-रात” एक कर देते हैं!—प्रकाशितवाक्य 7:14,15.
16. किस तरह यहोवा के सेवक उसे ‘चैन नहीं लेने देते’?
16 यहोवा के सेवकों को लगातार उससे यह प्रार्थना करने के लिए उकसाया जाता है कि उसकी “इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो।” (मत्ती 6:9,10; 1 थिस्सलुनीकियों 5:17) उन्हें उकसाया जाता है: “[यहोवा को] तब तक . . . चैन न लेने दो” जब तक सच्ची उपासना के फिर से कायम होने के बारे में हमारी सारी मनसाएँ और उम्मीदें पूरी न हो जाएँ। यीशु ने प्रार्थना में लगे रहने पर ज़ोर दिया और अपने चेलों से गुज़ारिश की कि वे “रात-दिन [परमेश्वर] की दुहाई देते” रहें।—लूका 18:1-8.
परमेश्वर की सेवा करने का ज़रूर प्रतिफल दिया जाएगा
17, 18. (क) सिय्योन के लोग अपनी मेहनत का फल किस तरह पाने की उम्मीद कर सकते हैं? (ख) आज यहोवा के लोग किस तरह अपनी मेहनत का फल पाते हैं?
17 यहोवा अपने लोगों को जो नया नाम देता है, वह इस बात का यकीन दिलाता है कि उनकी मेहनत बेकार नहीं जाएगी। “यहोवा ने अपने दहिने हाथ की और अपनी बलवन्त भुजा की शपथ खाई है: निश्चय मैं भविष्य में तेरा अन्न अब फिर तेरे शत्रुओं को खाने के लिये न दूंगा, और परदेशियों के पुत्र तेरा नया दाखमधु जिसके लिये तू ने परिश्रम किया है, नहीं पीने पाएंगे; केवल वे ही, जिन्हों ने उसे खत्ते में रखा हो, उस से खाकर यहोवा की स्तुति करेंगे, और जिन्हों ने दाखमधु भण्डारों में रखा हो, वे ही उसे मेरे पवित्रस्थान के आंगनों में पीने पाएंगे।” (यशायाह 62:8,9) यहोवा का दाहिना हाथ और उसकी भुजा का मतलब उसकी ताकत और शक्ति है। (व्यवस्थाविवरण 32:40; यहेजकेल 20:5) इनकी शपथ खाकर यहोवा दिखाता है कि उसने सिय्योन के हालात को बदलने की ठान ली है। सा.यु.पू. 607 में, यहोवा ने सिय्योन के शत्रुओं को उस पर डाका डालने और उसकी संपत्ति को लूटने दिया था। (व्यवस्थाविवरण 28:33,51) मगर अब सिय्योन की संपत्ति का आनंद सिर्फ वे ही उठाएँगे जो इसके असली हकदार हैं।—व्यवस्थाविवरण 14:22-27.
18 आज यह वादा हमारे ज़माने में भी पूरा हो रहा है, यहोवा के बहाल किए हुए लोग आध्यात्मिक रूप से खुशहाली में हैं। वे अपनी मेहनत का पूरा फल पा रहे हैं यानी उन्होंने मसीही चेलों की गिनती में बढ़ोतरी पायी है और बहुतायत में आध्यात्मिक भोजन भी पा रहे हैं। (यशायाह 55:1,2; 65:14) यहोवा के लोग उसके वफादार हैं, इसलिए वह उनके दुश्मनों को उनकी आध्यात्मिक खुशहाली में बाधा डालने या तन-मन से की गयी उनकी सेवा का फल उनसे छीनने नहीं देता। यहोवा की सेवा में किया गया कोई भी काम व्यर्थ नहीं है।—मलाकी 3:10-12; इब्रानियों 6:10.
19, 20. (क) यरूशलेम लौटने के लिए यहूदियों का मार्ग कैसे साफ किया गया? (ख) आज, यहोवा के संगठन में आने के लिए नम्र लोगों की खातिर मार्ग में से पत्थर कैसे हटाए गए हैं?
19 इस नए नाम की वजह से, यहोवा का संगठन इतना आकर्षक लगता है कि सच्चे दिल के लोग इस की तरफ खिंचे चले आते हैं। झुंड-के-झुंड चले आते हैं और उनके लिए रास्ता खुला छोड़ दिया गया है। यशायाह की भविष्यवाणी कहती है: “जाओ, फाटकों में से निकल जाओ, प्रजा के लिये मार्ग सुधारो; राजमार्ग सुधारकर ऊंचा करो, उस में के पत्थर बीन बीनकर फेंक दो, देश देश के लोगों के लिये झण्डा खड़ा करो।” (यशायाह 62:10) पहली बार जब यह पुकार लगायी गयी तो शायद यरूशलेम लौटने के लिए यहूदियों को बेबिलोनिया के नगरों के फाटकों से निकलने के लिए कहा जा रहा था। उन्हें मार्ग से पत्थर बीनकर अलग करने थे ताकि यात्रा आसान हो जाए। साथ ही उन्हें रास्ता दिखाने के लिए झण्डा या चिन्ह खड़ा करना था।—यशायाह 11:12.
20 सन् 1919 से, अभिषिक्त मसीहियों को परमेश्वर की सेवा के लिए अलग किया गया है और वे “पवित्र मार्ग” पर सफर कर रहे हैं। (यशायाह 35:8) वे पहले थे जिन्होंने बड़े बाबुल से निकलकर आध्यात्मिक राजमार्ग पर चलना शुरू किया। (यशायाह 40:3; 48:20) परमेश्वर ने उन्हें यह सम्मान दिया कि वे पहले ऐसे लोग हों जो उसके महान कामों का ऐलान करें और इस राजमार्ग पर आने में दूसरों की मदद करें। उन्होंने पत्थर बीनकर अलग किए, यानी उन्होंने अपने मार्ग में आनेवाली सारी बाधाएँ दूर कीं और इससे उन्हें ही फायदा हुआ। (यशायाह 57:14) उनके लिए परमेश्वर के उद्देश्यों और उसकी शिक्षाओं को सही तरीके से समझना ज़रूरी था। जीवन के रास्ते पर झूठी शिक्षाएँ, ठोकर खिलानेवाले पत्थरों की तरह होती हैं, मगर यहोवा का वचन, ‘ऐसे हथौड़े जैसा है जो पत्थर को फोड़’ डालता है। इसकी मदद से अभिषिक्त मसीहियों ने रुकावट पैदा करनेवाले ऐसे पत्थरों के टुकड़े-टुकड़े कर दिए हैं जिनसे ठोकर खाकर, यहोवा की सेवा करने की इच्छा रखनेवाले लोग गिर सकते थे।—यिर्मयाह 23:29.
21, 22. झूठे धर्म को छोड़नेवालों के लिए यहोवा ने क्या झण्डा खड़ा किया है, और यह हम कैसे जानते हैं?
21 सामान्य युग पूर्व 537 में, यरूशलेम वह झण्डा बन गया जो शेष यहूदियों को लौटने और दोबारा मंदिर बनाने का न्यौता दे रहा था। (यशायाह 49:22) सन् 1919 में जब अभिषिक्त मसीहियों को झूठे धर्म की बेड़ियों से आज़ाद करवाया गया तो वे यहाँ-वहाँ नहीं भटके। वे अपनी मंज़िल जानते थे, क्योंकि यहोवा ने उनके लिए एक झण्डा खड़ा किया था। यह झण्डा कौन था? वही जिसके बारे में यशायाह 11:10 में भविष्यवाणी की गयी है, जिसमें लिखा है: “उस समय यिशै की जड़ देश देश के लोगों के लिये एक झण्डा होगी।” प्रेरित पौलुस ने ये शब्द यीशु पर लागू किए। (रोमियों 15:8,12) जी हाँ, यीशु मसीह ही वह झण्डा है जो स्वर्गीय सिय्योन पर्वत से राजा की हैसियत से राज कर रहा है!—इब्रानियों 12:22; प्रकाशितवाक्य 14:1.
22 यीशु मसीह के इर्द-गिर्द, अभिषिक्त मसीही और अन्य भेड़ इकट्ठा होते हैं और परमप्रधान परमेश्वर की उपासना करते हैं जो उनको एकता के बंधन में बाँधता है। यीशु मसीह के राज्य से यह साबित किया जाएगा कि इस जहान पर राज करने का हक सिर्फ यहोवा को है, साथ ही इसी राज्य के ज़रिए पृथ्वी के सब देशों के नेकदिल लोगों को आशीष दी जाएगी। क्या यह एक वजह नहीं कि हममें से हर कोई उसकी स्तुति करके उसकी महानता की महिमा करे?
“तेरा उद्धारकर्त्ता आता है”
23, 24. परमेश्वर पर विश्वास करनेवालों के लिए उद्धार कैसे निकट लाया गया है?
23 यहोवा अपने पत्नी-समान संगठन को जो नया नाम देता है वह उसके बच्चों के अनंतकाल के उद्धार से जुड़ा हुआ है। यशायाह लिखता है: “देखो, पृथ्वी के छोर छोर तक यहोवा ने प्रचार किया है कि सिय्योन की पुत्री से कहो, ‘देख, तेरा उद्धार निकट है, देख, जो मजदूरी उसे देनी है उसे वह लेकर आ रहा है, हां, जो प्रतिफल उसे देना है वह उसके आगे आगे है।” (यशायाह 62:11, NHT) यहूदियों का उद्धार उस वक्त हुआ जब बाबुल गिर गया और वे अपने वतन लौट गए। मगर भविष्यवाणी के ये शब्द इससे भी बड़ी घटना की तरफ इशारा करते हैं। यहोवा के इस ऐलान से, यरूशलेम के बारे में की गयी जकर्याह की यह भविष्यवाणी याद आती है: “हे सिय्योन बहुत ही मगन हो! हे यरूशलेम जयजयकार कर! क्योंकि तेरा राजा तेरे पास आएगा; वह धर्मी और उद्धार पाया हुआ है, वह दीन है, और गदहे पर वरन गदही के बच्चे पर चढ़ा हुआ आएगा।”—जकर्याह 9:9.
24 यीशु, पानी में बपतिस्मा लेने और परमेश्वर की आत्मा से अभिषिक्त होने के साढ़े तीन साल बाद, सवारी करता हुआ यरूशलेम में आया और उसके मंदिर को शुद्ध किया। (मत्ती 21:1-5; यूहन्ना 12:14-16) आज, यीशु मसीह ही उन सभी को यहोवा का उद्धार दिलाता है जो परमेश्वर पर विश्वास करते हैं। सन् 1914 में जब यीशु को राजा बनाया गया तब से वह यहोवा का ठहराया हुआ न्यायी और दंड देनेवाला भी है। सन् 1918 में, राजा बनने के साढ़े तीन साल बाद, उसने इस पृथ्वी पर यहोवा के आत्मिक मंदिर के प्रतीक यानी अभिषिक्त मसीहियों की कलीसिया को शुद्ध किया। (मलाकी 3:1-5) जब वह झण्डे की तरह खड़ा हुआ तो सारी पृथ्वी से बड़े पैमाने पर ऐसे लोगों का इकट्ठा होना शुरू हुआ, जो मसीहाई राज्य के समर्थक हैं। जैसे प्राचीनकाल में हुआ, वैसे ही परमेश्वर के इस्राएल का “उद्धार” तब हुआ जब उसे 1919 में बड़े बाबुल से छुड़ाया गया। अपना सुख-चैन त्यागकर कटनी के काम में लगनेवाले सभी मज़दूरों के लिए “प्रतिफल” या उनकी “मजदूरी” रखी है। वे या तो स्वर्ग में अमर जीवन जीएँगे या पृथ्वी पर अनंतकाल का जीवन पाएँगे। वफादार रहनेवाले सभी लोग यह यकीन रख सकते हैं कि उनका “परिश्रम प्रभु में व्यर्थ नहीं है।”—1 कुरिन्थियों 15:58.
25. यहोवा के लोगों को क्या यकीन दिलाया गया है?
25 यहोवा के स्वर्गीय संगठन का, पृथ्वी पर इसके अभिषिक्त राजदूतों और उनके साथ जोश से काम करनेवाले हर इंसान का भविष्य कितना उज्ज्वल है! (व्यवस्थाविवरण 26:19) यशायाह ने भविष्यवाणी की: “लोग उनको पवित्र प्रजा और यहोवा के छुड़ाए हुए कहेंगे; और तेरा नाम ग्रहण की हुई अर्थात् न-त्यागी हुई नगरी पड़ेगा।” (यशायाह 62:12) एक वक्त “ऊपर की यरूशलेम” जिसका प्रतीक परमेश्वर का इस्राएल है, त्यागी हुई महसूस कर रही थी। मगर वह फिर कभी ऐसा महसूस नहीं करेगी। यहोवा सदा के लिए अपने लोगों की हिफाज़त करता रहेगा और वे उसकी अनुग्रह की मुस्कान को सदा तक देखते रहेंगे।
[फुटनोट]
a बाइबल की भविष्यवाणियों में ‘एक नए नाम’ का मतलब एक नया ओहदा या आशीष पाना हो सकता है।—प्रकाशितवाक्य 2:17; 3:12.
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शादी-शुदा जीवन के लिए सर्वश्रेष्ठ आदर्श
जब लोग शादी करते हैं, तो इस रिश्ते के बारे में उनकी अपनी-अपनी उम्मीदें होती हैं। मगर परमेश्वर की उम्मीदें क्या हैं? शादी की शुरूआत परमेश्वर ने की थी। उसका उद्देश्य क्या था?
परमेश्वर इस मामले पर कैसे सोचता है, इसकी समझ, हमें इस्राएल जाति के साथ उसके रिश्ते से मिलती है। यशायाह ने इस रिश्ते को शादी के रिश्ते जैसा बताया है। (यशायाह 62:1-5) ध्यान दीजिए कि यहोवा “पति” की हैसियत से अपनी “दुल्हन” के लिए क्या करता है। वह उसकी हिफाज़त करता है और उसे पवित्र करता है। (यशायाह 62:6,7,12) वह उसका आदर-मान करता है और उसे अनमोल समझता है। (यशायाह 62:3,8,9) और वह उससे प्रसन्न होता है, जैसा कि उन नए नामों से पता चलता है जो यहोवा ने उसे दिए हैं।—यशायाह 62:4,5,12.
मसीही यूनानी शास्त्र में, पौलुस भी उसी रिश्ते को दोहराता है जो यहोवा और इस्राएल के बीच है। उसने मसीह और अभिषिक्त मसीहियों की कलीसिया के बीच संबंध की तुलना भी पति-पत्नी के रिश्ते से की।—इफिसियों 5:21-27.
पौलुस ने मसीही पति-पत्नियों को सलाह दी कि उनके बीच वैसा ही रिश्ता हो जैसा मसीह और कलीसिया के बीच है। यहोवा ने इस्राएल के लिए और मसीह ने कलीसिया के लिए जो प्रेम दिखाया, उससे बड़ी प्रेम की मिसाल और कोई नहीं हो सकती। भविष्यवाणी में बताए गए ये रिश्ते, मसीहियों के शादी-शुदा जीवन को कामयाब और सुखी बनाने के लिए सर्वश्रेष्ठ आदर्श हैं।—इफिसियों 5:28-33.
[पेज 339 पर तसवीर]
यहोवा स्वर्गीय सिय्योन को एक नए नाम से पुकारेगा
[पेज 347 पर तसवीरें]
आज के ज़माने में यहोवा का पहरुआ वर्ग चुप नहीं बैठा है