छब्बीसवाँ अध्याय
‘जो मैं सृजने पर हूं उसमें सर्वदा के लिए हर्षित हो’
1. प्रेरित पतरस ने आश्वासन देनेवाले क्या शब्द लिखे, और इससे क्या सवाल उठता है?
क्या हम कभी अन्याय और दुःख-तकलीफों का अंत देख पाएँगे? आज से करीब 1,900 साल पहले, प्रेरित पतरस ने ये शब्द लिखे थे जो हमारी हिम्मत बँधाते हैं: “[परमेश्वर] की प्रतिज्ञा के अनुसार हम एक नए आकाश और नई पृथ्वी की आस देखते हैं जिन में धार्मिकता बास करेगी।” (2 पतरस 3:13) पतरस के अलावा, परमेश्वर के और भी कई वफादार सेवक सदियों से उस महान दिन का इंतज़ार कर रहे हैं जब अधर्म, अत्याचार और हिंसा का अंत हो जाएगा और हर तरफ धार्मिकता वास करेगी। क्या हम यकीन कर सकते हैं कि यह वादा ज़रूर पूरा होगा?
2. किस भविष्यवक्ता ने “नए आकाश और नई पृथ्वी” के बारे में बताया था, और यह प्राचीन भविष्यवाणी कब-कब पूरी होती है?
2 जी हाँ, बिलकुल कर सकते हैं! जब पतरस ने “नए आकाश और नई पृथ्वी” के बारे में कहा, तो वह कोई नयी बात नहीं कह रहा था। इससे करीब 800 साल पहले, यहोवा ने भविष्यवक्ता यशायाह के ज़रिए ऐसे ही शब्द कहे थे। वह पहला वादा, सा.यु.पू. 537 में छोटे पैमाने पर पूरा हुआ था। तब यहूदी, बाबुल की बंधुआई से आज़ाद होकर अपने वतन वापस लौट पाए थे। मगर यशायाह की भविष्यवाणी आज बड़े ही शानदार ढंग से पूरी हो रही है और हम परमेश्वर की आनेवाली नयी दुनिया का इंतज़ार कर रहे हैं जिसमें यह इससे भी कहीं बड़े पैमाने पर पूरी होगी। सच, यशायाह की इस भविष्यवाणी से हमारे मन में उमंग पैदा होती है और हम उन आशीषों की झलक देख पाते हैं जो परमेश्वर ने अपने चाहनेवालों के लिए भविष्य में संजोकर रखी हैं।
यहोवा “हठीली जाति” से मिन्नतें करता है
3. यशायाह के 65वें अध्याय में किस सवाल का जवाब दिया गया है?
3 याद कीजिए कि यशायाह 63:15–64:12 में, बाबुल में यहूदी बंधुओं की तरफ से की गयी यशायाह की प्रार्थना दर्ज़ है जो एक भविष्यवाणी के रूप में है। जैसे यशायाह के शब्दों से साफ पता लगता है, बहुत-से यहूदी तन-मन से यहोवा की उपासना नहीं कर रहे थे। लेकिन कुछ यहूदी पश्चाताप दिखाकर यहोवा की ओर लौट आए थे। तो क्या यहोवा, खेद दिखानेवाले इन थोड़े-से यहूदियों की खातिर उनके देश को बहाल कर देगा? इसका जवाब यशायाह के 65वें अध्याय में दिया गया है। लेकिन गिने-चुने वफादार लोगों के छुटकारे का वादा करने से पहले, यहोवा बताता है कि जो वफादार नहीं हैं, उन पर क्या न्यायदंड आनेवाला है।
4. (क) यहोवा के बागी लोगों के बजाय, अब कौन उसे खोजेगा? (ख) प्रेरित पौलुस ने यशायाह 65:1,2 को कैसे लागू किया?
4 यहोवा के लोग बार-बार उसके खिलाफ बगावत करते रहे, और वह उनकी बरदाश्त करता रहा। लेकिन, वह वक्त आनेवाला है जब वह उन्हें उनके दुश्मनों के हवाले कर देगा और दूसरे लोगों पर अनुग्रह दिखाकर उन्हें स्वीकार करेगा। यशायाह के ज़रिए, यहोवा कहता है: “जो मुझे पूछते भी न थे, उनको मैंने अपने खोजी बनने दिया। जो मुझे खोजते भी न थे उन से मैं मिला। जिस जाति ने मुझे नाम लेकर नहीं पुकारा उस से मैंने कहा, ‘मैं यहां हूं, यहां।’” (यशायाह 65:1, NHT) यह देखकर कितना दुःख होता है कि यहोवा के अपने लोग हठीले होकर उसके पास लौटने से इनकार कर देते हैं जबकि दूसरी जातियों के लोग उसके पास आ रहे हैं। यह भविष्यवाणी करनेवाला अकेला यशायाह नहीं कि आगे चलकर परमेश्वर ऐसे लोगों को चुन लेगा जिन पर पहले उसकी आशीष नहीं थी। (होशे 1:10; 2:23) प्रेरित पौलुस ने भी सेप्टुअजेंट से यशायाह 65:1,2 का हवाला देकर यह साबित किया कि अन्यजातियों के लोग “उस धार्मिकता को” हासिल करेंगे “जो विश्वास से है।” मगर, जो जन्म से यहूदी हैं, वे ऐसा करने से इनकार कर देंगे।—रोमियों 9:30; 10:20,21.
5, 6. (क) यहोवा की दिली तमन्ना क्या है, मगर उसके लोग बदले में कैसे पेश आए? (ख) हम यहूदा के साथ यहोवा के व्यवहार से क्या सीख सकते हैं?
5 यहोवा अब वजह बताता है कि वह क्यों अपने ही लोगों पर विपत्ति आने देगा: “मैं एक हठीली जाति के लोगों की ओर दिन भर हाथ फैलाए रहा, जो अपनी युक्तियों के अनुसार बुरे मार्गों में चलते हैं।” (यशायाह 65:2) हाथ फैलाने या बढ़ाने का मतलब है किसी को न्यौता देना या किसी से गुज़ारिश करना। यहोवा सिर्फ कुछ देर के लिए नहीं बल्कि पूरा दिन हाथ फैलाए रहा। उसकी दिली तमन्ना है कि यहूदा उसके पास वापस लौट आए। मगर ये हठीले लोग टस-से-मस नहीं होते।
6 यहोवा के शब्दों से हम कितना बढ़िया सबक सीखते हैं! वह चाहता है कि हम उसके करीब आएँ, क्योंकि वह ऐसा परमेश्वर है जिसके पास हम बेझिझक जा सकते हैं। (याकूब 4:8) इन शब्दों से यह भी पता चलता है कि यहोवा नम्र है। (भजन 113:5,6) अपने लोगों का हठीलापन देखकर वह “बहुत दुःखी” हुआ, फिर भी वह लगातार हाथ फैलाए रहा और अपने लोगों से गुज़ारिश करता रहा कि उसके पास लौट आएँ। (भजन 78:40,41, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) सदियों तक बार-बार मिन्नतें करने के बाद ही उसने आखिरकार उन्हें उनके दुश्मनों के हवाले कर दिया। इसके बावजूद उनमें जो नम्र हैं उनसे वह मुँह नहीं फेरता।
7, 8. यहोवा के हठीले लोगों ने कैसे उसके गुस्से को भड़काया है?
7 हठीले यहूदियों ने अपनी नीच हरकतों से बार-बार यहोवा का क्रोध भड़काया है। यहोवा उनकी घिनौनी करतूतों के बारे में बताता है: “ऐसे लोग, जो मेरे साम्हने ही बारियों में बलि चढ़ा चढ़ाकर और ईंटों पर धूप जला जलाकर, मुझे लगातार क्रोध दिलाते हैं। ये क़ब्र के बीच बैठते और छिपे हुए स्थानों में रात बिताते; जो सूअर का मांस खाते, और घृणित वस्तुओं का रस अपने बर्तनों में रखते; जो कहते हैं, हट जा, मेरे निकट मत आ, क्योंकि मैं तुझ से पवित्र हूं। ये मेरी नाक में धूंएं व उस आग के समान हैं जो दिन भर जलती रहती है।” (यशायाह 65:3-5) पवित्र होने का ढोंग करनेवाले ये लोग, यहोवा के “साम्हने ही” उसे क्रोध दिलाने जैसे काम करते हैं। “मेरे साम्हने ही,” इन शब्दों का मतलब यह हो सकता है कि वे गुस्ताख हैं और मुँह पर उसका निरादर कर रहे हैं। वे अपने घृणित कामों को छिपाने की कोशिश भी नहीं करते। क्या इससे घिनौनी और कोई बात हो सकती है कि जिस परमेश्वर का सम्मान किया जाना चाहिए और जिसकी आज्ञा माननी चाहिए उसी की आँखों के सामने ऐसे-ऐसे पाप किए जा रहे हैं?
8 एक तरह से, खुद को धर्मी माननेवाले ये पापी दूसरे यहूदियों से कह रहे हैं: ‘मुझसे दूर रह, क्योंकि मैं तुझ से पवित्र हूं।’ क्या ही पाखंड! खुद को “पवित्र” कहनेवाले ये लोग झूठे देवी-देवताओं के सामने बलि करते और उन्हें धूप चढ़ाते हैं, जबकि ऐसा करना परमेश्वर की कानून-व्यवस्था में सख्त मना था। (निर्गमन 20:2-6) वे कब्रिस्तान में बैठे रहते हैं, जो व्यवस्था के मुताबिक उन्हें अशुद्ध कर देता है। (गिनती 19:14-16) वे सूअर का मांस खा रहे हैं, जो एक अशुद्ध जानवर है।a (लैव्यव्यवस्था 11:7) फिर भी उन्हें लगता है कि उनकी धार्मिक रीतियाँ उन्हें दूसरे यहूदियों से अधिक पवित्र बना देती हैं, इसलिए वे दूसरों को दूर रहने के लिए कहते हैं, कहीं ऐसा ना हो कि उनके पास आने भर से या उनकी संगति में आकर वे भी पवित्र या शुद्ध हो जाएँ। लेकिन, “एकनिष्ठ भक्ति” की माँग करनेवाला परमेश्वर इन लोगों के बारे में ऐसा हरगिज़ नहीं सोचता!—व्यवस्थाविवरण 4:24, NW.
9. खुद को धर्मी कहनेवाले पापियों को यहोवा किस नज़र से देखता है?
9 खुद को धर्मी कहनेवाले इन लोगों को पवित्र समझने के बजाय, यहोवा कहता है: “ये मेरी नाक में धूंएं” की तरह हैं। बाइबल में “नाक” या “नथने” के लिए इब्रानी शब्द अकसर गुस्से को दर्शाता है। शब्द, धूँआ भी यहोवा के भड़कते कोप को दर्शाने के लिए इस्तेमाल किया गया है। (व्यवस्थाविवरण 29:20) अपने लोगों को घिनौनी मूर्तिपूजा में धँसता देख यहोवा का कोप भड़क उठा है।
10. यहूदा के लोगों के पापों का यहोवा उनसे कैसे पलटा लेगा?
10 यहोवा न्यायी है इसलिए वह इन घोर पापियों को सज़ा दिए बगैर नहीं रह सकता। यशायाह लिखता है: “देखो, यह बात मेरे साम्हने लिखी हुई है: मैं चुप न रहूंगा, मैं निश्चय बदला दूंगा वरन तुम्हारे और तुम्हारे पुरखाओं के भी अधर्म के कामों का बदला तुम्हारी गोद में भर दूंगा। क्योंकि उन्हों ने पहाड़ों पर धूप जलाया और पहाड़ियों पर मेरी निन्दा की है, इसलिये मैं यहोवा कहता हूं, कि, उनके पिछले कामों के बदले को मैं इनकी गोद में तौलकर दूंगा।” (यशायाह 65:6,7) झूठी उपासना करके यहूदियों ने यहोवा के नाम पर कलंक लगाया है। उन्होंने ऐसा दिखाया है मानो सच्चे परमेश्वर की उपासना और आसपास की जातियों में की जानेवाली उपासना में कोई फर्क ही नहीं है। उनके मूर्तिपूजा और भूतविद्या जैसे कामों और ‘उनके अधर्म’ के कामों का बदला यहोवा ‘उनकी गोद में भर देगा।’ यहाँ “गोद” का मतलब है, कपड़ों के ऊपर पहने जानेवाले ओढ़ने का झोल। इस झोल को ऐसे फैलाया जा सकता था कि यह एक झोली बन जाती थी और अकसर दुकानदार, सामान तौलकर ऐसी झोली में डाल देते थे। (लूका 6:38) धर्मत्यागी यहूदियों के लिए इसका मतलब साफ है—यहोवा उन्हें उनकी सज़ा या उनका “बदला” तौलकर उनकी झोली में डाल देगा। न्यायी परमेश्वर उनसे ज़रूर पलटा लेगा। (भजन 79:12; यिर्मयाह 32:18) यहोवा बदलता नहीं इसलिए हम भी यह भरोसा रख सकते हैं कि अपने ठहराए हुए समय पर वह इस दुष्ट संसार को भी न्यायदंड तौलकर देगा।—मलाकी 3:6.
“अपने दासों के निमित्त”
11. यहोवा कैसे बताता है कि वह शेष वफादार लोगों को बचाएगा?
11 क्या यहोवा अपने उन लोगों पर दया करेगा जो वफादार हैं? यशायाह समझाता है: “यहोवा यों कहता है, जिस भांति दाख के किसी गुच्छे में जब नया दाखमधु भर आता है, तब लोग कहते हैं, उसे नाश मत कर, क्योंकि उस में आशीष है; उसी भांति मैं अपने दासों के निमित्त ऐसा करूंगा कि सभों को नाश न करूंगा। मैं याकूब में से एक वंश, और यहूदा में से अपने पर्वतों का एक वारिस उत्पन्न करूंगा; मेरे चुने हुए उसके वारिस होंगे, और मेरे दास वहां निवास करेंगे।” (यशायाह 65:8,9) यहोवा अपने लोगों की तुलना अंगूर के एक गुच्छे से इसलिए करता है, ताकि यह दृष्टांत सभी को आसानी से समझ में आ सके। देश में अंगूर की उपज बहुतायत में होती है और अंगूर से बननेवाला दाखमधु इंसानों के लिए एक आशीष है। (भजन 104:15) यहाँ एक ऐसे गुच्छे का उदाहरण दिया गया है जिसमें सिर्फ कुछ ही अंगूर अच्छे हैं। या फिर ऐसा होगा कि एक ही गुच्छा अच्छा है और बाकी गुच्छे या तो सही से पके नहीं या सड़ गए हैं। जो भी हो, दाख की बारी की देखभाल करनेवाला कभी अच्छे अंगूरों को नाश नहीं करता। इस दृष्टांत से यहोवा अपने लोगों को यकीन दिलाता है कि वह सारी जाति को तबाह नहीं करेगा बल्कि कुछ वफादार लोगों को बचाए रखेगा। वह कहता है कि जिन शेष बचे हुओं पर उसकी आशीष होगी वे उसके “पर्वतों” यानी यरूशलेम और यहूदा के पहाड़ी देश के वारिस होंगे, जिसे यहोवा ने अपना कहा है।
12. वफादार शेष जनों को क्या आशीषें मिलेंगी?
12 इन वफादार शेष जनों को क्या आशीषें मिलेंगी? यहोवा इसकी जानकारी देता है: “मेरी प्रजा जो मुझे ढूंढ़ती है, उसकी भेड़-बकरियां तो शारोन में चरेंगी, और उसके गाय-बैल आकोर नाम तराई में विश्राम करेंगे।” (यशायाह 65:10) बहुत-से यहूदियों की ज़िंदगी में भेड़-बकरियाँ और गाय-बैल बेहद अहमियत रखते हैं और शांति के समय में अगर उनके लिए बड़े-बड़े चरागाह मिल जाएँ तो इससे लोग समृद्ध हो सकते हैं। इस शांति और खुशहाली की मन में तसवीर उभारने के लिए यहोवा देश की दो सरहदों का ज़िक्र करता है। वह पश्चिम में, भूमध्य सागर के किनारे-किनारे, एक छोर से दूसरे छोर तक फैले हुए शारोन के मैदान का ज़िक्र करता है, जो अपनी खूबसूरती और उपजाऊपन के लिए मशहूर है। देश के उत्तर-पूर्व की सरहद, आकोर नाम की तराई है। (यहोशू 15:7) जब इस्राएली बंधुआई में चले जाएँगे, तब बाकी देश के साथ-साथ ये इलाके भी सुनसान हो जाएँगे। लेकिन, यहोवा वादा करता है कि बंधुआई का समय बीतने के बाद ये इलाके लौटनेवाले यहूदियों के मवेशियों के लिए चराई के बढ़िया मैदान बन जाएँगे।—यशायाह 35:2; होशे 2:15.
“भाग्य देवता” पर भरोसा
13, 14. किन कामों से परमेश्वर के लोगों ने दिखाया है कि वे उसे छोड़ चुके हैं, और इसका उन्हें क्या सिला मिलेगा?
13 यशायाह की भविष्यवाणी अब फिर से उन लोगों के बारे में बताती है जो यहोवा को छोड़कर मूर्तिपूजा में लगे हुए हैं। यह कहती है: “तुम जो यहोवा को त्याग देते और मेरे पवित्र पर्वत को भूल जाते हो, जो भाग्य देवता के लिये मेज़ पर भोजन की वस्तुएं सजाते और भावी देवी के लिये मसाला मिला हुआ दाखमधु भर देते हो।” (यशायाह 65:11) “भाग्य देवता” और “भावी देवी” के लिए मेज़ पर खाने-पीने की चीज़ें सजाकर रखनेवाले ये यहूदी वापस बुरे कामों में फँसकर विधर्मी देशों की तरह मूर्तिपूजा करते हैं।b इन देवी-देवताओं पर आँख मूँदकर भरोसा रखने की बेवकूफी करनेवालों का क्या होगा?
14 यहोवा उन्हें सीधे-सीधे चेतावनी देता है: “तुम्हारे भाग्य का निर्धारण तो मैं करता हूँ। मैं तलवार से तुम्हें दण्ड दूँगा। जो तुम्हें दण्ड देगा, तुम सभी उसके आगे मिमिआने लगोगे। मैंने तुम्हें पुकारा किन्तु तुमने कोई उत्तर नहीं दिया। मैंने तुमसे बातें कीं किन्तु तुमने सुना तक नहीं। तुम उन कामों को ही करते रहे जिन्हें मैंने बुरा कहा था। तुमने उन कामों को करने की ही ठान ली जो मुझे अच्छे नहीं लगते थे।” (यशायाह 65:12, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) मूल इब्रानी भाषा में भाग्य देवता का जो नाम है उस पर ताना कसते हुए यहोवा कहता है कि जो इस झूठे देवता की पूजा करते हैं, उनका ‘भाग्य निर्धारण तो तलवार से दण्ड’ पाकर होगा यानी वे नाश किए जाएँगे। यहोवा ने बार-बार इन लोगों के पास भविष्यवक्ता भेजकर उन्हें पश्चाताप करने के लिए उकसाया, मगर उन्होंने उसकी एक न सुनी। वे ज़िद्द में आकर वही करने की ठान चुके हैं जो वे जानते हैं कि यहोवा की दृष्टि में बुरा है। वे अपने मन में परमेश्वर को कितना तुच्छ समझते हैं! लेकिन परमेश्वर की चेतावनी सच साबित होगी। सा.यु.पू. 607 में जब इस देश पर बहुत भारी संकट आ पड़ेगा, तब यहोवा बाबुलियों को यरूशलेम और उसके मंदिर का अंत करने देगा। उस वक्त, “भाग्य देवता” यहूदा और यरूशलेम में अपने भक्तों को बचा नहीं पाएगा।—2 इतिहास 36:17.
15. आज सच्चे मसीही, यशायाह 65:11,12 की चेतावनी पर कैसे ध्यान देते हैं?
15 आज सच्चे मसीही यशायाह 65:11,12 में दी गयी चेतावनी पर ध्यान देते हैं। वे “भाग्य” पर विश्वास नहीं करते, जो मानो कोई दैवी शक्ति हो और जिससे उन्हें आशीषें मिल सकती हैं। वे “भाग्य देवता” को खुश करने की कोशिश में अपनी संपत्ति बरबाद नहीं करते, इसलिए वे किसी भी किस्म का जूआ नहीं खेलते। वे जानते हैं कि जो इस देवता के भक्त हैं, वे आखिरकार सब कुछ गवाँ बैठेंगे क्योंकि ऐसे लोगों से यहोवा कहता है: “तुम्हारे भाग्य का निर्धारण तो मैं करता हूँ। मैं तलवार से तुम्हें दण्ड दूँगा।”
‘देखो, मेरे दास आनन्द करेंगे’
16. यहोवा अपने वफादार सेवकों को कैसे आशीष देगा, लेकिन जो उसे छोड़ चुके हैं, उनका क्या होगा?
16 यहोवा को छोड़नेवालों को फटकार सुनाते हुए, यह भविष्यवाणी बताती है कि जो लोग सच्चे मन से परमेश्वर की उपासना करते हैं, उनके और उपासना का ढोंग करनेवालों का अंजाम एक-दूसरे से कितना अलग होगा: “इस कारण प्रभु यहोवा यों कहता है, देखो, मेरे दास तो खाएंगे, पर तुम भूखे रहोगे; मेरे दास पीएंगे, पर तुम प्यासे रहोगे; मेरे दास आनन्द करेंगे, पर तुम लज्जित होगे; देखो, मेरे दास हर्ष के मारे जयजयकार करेंगे, परन्तु तुम शोक से चिल्लाओगे और खेद के मारे हाय हाय, करोगे।” (यशायाह 65:13,14) यहोवा अपने वफादार सेवकों को आशीष देगा। उनके दिलों में खुशी ऐसे उमड़ पड़ेगी कि वे जयजयकार करेंगे। खाना, पीना और आनंद करना, ये शब्द दिखाते हैं कि यहोवा अपने उपासकों की ज़रूरतों को इस हद तक पूरा करेगा कि कोई कमी नहीं रहेगी। दूसरी तरफ, जिन्होंने यहोवा को छोड़ने की ठान रखी है, वे आध्यात्मिक रूप से भूखे-प्यासे मरेंगे। उनकी ज़रूरतें कभी पूरी नहीं होंगी। पीड़ा और तकलीफ के मारे वे चिल्लाएँगे और हाय-हाय करेंगे।
17. आज परमेश्वर के लोगों के पास हर्ष के मारे जयजयकार करने की कौन-सी बढ़िया वजह है?
17 यहोवा के इन शब्दों से उन लोगों की आध्यात्मिक हालत की असलियत मालूम होती है जो उसकी सेवा करने का सिर्फ दम भरते हैं। जहाँ एक तरफ ईसाईजगत के करोड़ों लोग दुःख के मारे हाय-हाय कर रहे हैं, वहीं यहोवा के उपासक खुशी के मारे जयजयकार कर रहे हैं। और आखिर वे खुश क्यों ना हों, उनके पास खुश होने की बढ़िया वजह जो है। उन्हें भरपूर मात्रा में आध्यात्मिक भोजन खिलाया जाता है। बाइबल की समझ देनेवाले प्रकाशनों और मसीही सभाओं के ज़रिए यहोवा ने उनके लिए आध्यात्मिक भोजन का भंडार लगा दिया है। परमेश्वर के वचन की हौसला बढ़ानेवाली सच्चाइयों और शांति देनेवाले वादों से हमारा मन सचमुच ‘हर्षित’ है!
18. यहोवा को त्यागनेवालों का क्या रह जाएगा, और शपथ खाने में उनके नाम का इस्तेमाल किए जाने का क्या मतलब हो सकता है?
18 जो लोग यहोवा को छोड़ चुके हैं, उनसे वह आगे कहता है: “मेरे चुने हुए लोग तुम्हारी उपमा दे देकर शाप देंगे, और प्रभु यहोवा तुझ को नाश करेगा; परन्तु अपने दासों का दूसरा नाम रखेगा। तब सारे देश में जो कोई अपने को धन्य कहेगा वह सच्चे [“विश्वासयोग्य,” नयी हिन्दी बाइबिल] परमेश्वर का नाम लेकर अपने को धन्य कहेगा, और जो कोई देश में शपथ खाए वह सच्चे परमेश्वर के नाम से शपथ खाएगा; क्योंकि पिछला कष्ट दूर हो गया और वह मेरी आंखों से छिप गया है।” (यशायाह 65:15,16) यहोवा को त्यागनेवालों का बस नाम रह जाएगा और वह भी सिर्फ इसलिए ताकि लोग उनके नाम से उपमा या शाप दें। इसका मतलब यह हो सकता है कि जो लोग किसी काम को पूरा करने की शपथ खाएँगे, वे असल में यह कह रहे होंगे: ‘अगर मैं अपना वादा पूरा न करूँ, तो मुझे भी वही दंड मिले जो उन धर्मत्यागियों को मिला था।’ इसका यह मतलब भी हो सकता है कि उनके नाम को एक चेतावनी के रूप में लिया जाएगा, वैसे ही जैसे सदोम और अमोरा का नाम यह बताने के लिए लिया जाता है कि जब दुष्टों पर परमेश्वर का दंड आता है तो उनका क्या हश्र होता है।
19. परमेश्वर के लोगों का दूसरा नाम कैसे पड़ेगा और विश्वासयोग्य परमेश्वर पर उन्हें भरोसा क्यों होगा? (फुटनोट भी देखिए।)
19 परमेश्वर के सेवकों का भविष्य इनसे कितना अलग होगा! उन्हें दूसरा नाम दिया जाएगा। दूसरा नाम मिलना दर्शाता है कि जब वे अपने वतन लौट आएँगे तो उन्हें ढेरों आशीषें मिलेंगी और उनका सम्मान बढ़ जाएगा। वे किसी झूठे देवता से आशीष नहीं माँगेंगे न ही किसी बेजान मूरत की शपथ खाएँगे। इसके बजाय जब वे खुद को धन्य कहेंगे या शपथ खाएँगे, तो वे विश्वासयोग्य परमेश्वर के नाम से ऐसा करेंगे। (यशायाह 65:16) देश में रहनेवाले परमेश्वर पर पूरा भरोसा रख सकेंगे क्योंकि उसने साबित कर दिया होगा कि वह अपनी ज़ुबान का पक्का है।c जब यहूदी अपने वतन में फिर से निश्चिंत होकर बस जाएँगे तब वे अपनी पिछली तकलीफों को भूल जाएँगे।
“मैं नया आकाश और नई पृथ्वी उत्पन्न करता हूं”
20. सामान्य युग पूर्व 537 में ‘नए आकाश और नई पृथ्वी’ के बारे में यहोवा का वादा कैसे पूरा हुआ?
20 यहोवा अपने इस वादे के बारे में और भी ज़्यादा बताता है कि वह प्रायश्चित्त करनेवाले शेष जनों को उनके बाबुल लौटने पर किस तरह देश में बसाएगा। यशायाह के ज़रिए, यहोवा कहता है: “देखो, मैं नया आकाश और नई पृथ्वी उत्पन्न करता हूं; और पहिली बातें स्मरण न रहेंगी और सोच विचार में भी न आएंगी।” (यशायाह 65:17) अपने लोगों को बहाल करने का यहोवा का वादा हर हाल में पूरा होगा, इसलिए वह भविष्य में होनेवाली इस बहाली का ऐसे ज़िक्र करता है मानो इसका होना शुरू हो गया हो। जब सा.यु.पू. 537 में यहूदियों में से शेष जनों को यरूशलेम में फिर से बसाया गया तब इस भविष्यवाणी की पहली पूर्ति हुई। उस वक्त, “नया आकाश” क्या था? यह नया आकाश, यरूशलेम में कायम किया गया नया प्रशासन था, जिसके तहत जरूब्बाबेल अधिपति था और उसकी मदद करनेवाला महायाजक यहोशू था। और “नई पृथ्वी,” यहूदियों में से शेष जन थे जो अपने देश में आ बसे थे। उन्होंने खुद को इस नए शासन के अधीन किया और देश में शुद्ध उपासना फिर से कायम करने में हाथ बँटाया। (एज्रा 5:1,2) उस बहाली की खुशी इतनी बड़ी थी कि इसने पिछले सारे दुःखों को भुला दिया; पिछली तकलीफें उनके मन में भी न आयीं।—भजन 126:1,2.
21. सन् 1914 में किस नए आकाश का जन्म हुआ?
21 मगर, याद कीजिए कि प्रेरित पतरस ने यशायाह की इसी भविष्यवाणी को दोहराते हुए बताया था कि यह भविष्य में एक बार फिर पूरी होगी। उसने लिखा था: “उस की प्रतिज्ञा के अनुसार हम एक नए आकाश और नई पृथ्वी की आस देखते हैं जिन में धार्मिकता बास करेगी।” (2 पतरस 3:13) लंबे इंतज़ार के बाद, आखिरकार सन् 1914 में नए आकाश का जन्म हुआ। उस साल मसीहाई राज्य का जन्म हुआ जो स्वर्ग से राज करता है और यहोवा ने उसे सारी पृथ्वी पर अधिकार दिया है। (भजन 2:6-8) यही सरकार नया आकाश है जिसमें मसीह और उसके 1,44,000 साथी राजा शासन करेंगे।—प्रकाशितवाक्य 14:1.
22. नयी पृथ्वी किनसे बनी होगी, और आज भी कैसे लोगों को तैयार किया जा रहा है ताकि वे नए समाज की बुनियाद बनें?
22 नयी पृथ्वी के बारे में क्या? प्राचीनकाल में जिस तरह यह भविष्यवाणी पूरी हुई, उसी के मुताबिक भविष्य में आनेवाली नयी पृथ्वी ऐसे लोगों से बनी होगी जो खुद को खुशी-खुशी नयी स्वर्गीय सरकार के अधीन करते हैं। आज भी, सही मन रखनेवाले लाखों लोग इस सरकार के अधीन हो रहे हैं और इसके उन कानूनों का पालन करने की पूरी कोशिश करते हैं जो बाइबल में पाए जाते हैं। ये लोग सभी देशों, भाषाओं, जातियों से आते हैं और मिलकर राजा यीशु मसीह की सेवा करते हैं। (मीका 4:1-4) इस दुष्ट संसार के मिट जाने के बाद, यही लोग नयी पृथ्वी के समाज की बुनियाद बनेंगे। और यह नया समाज बढ़कर पूरी धरती पर फैल जाएगा, जिसमें ऐसे सभी लोग होंगे जो परमेश्वर का भय मानते हैं। वे परमेश्वर के राज्य में इस ज़मीन के वारिस होंगे।—मत्ती 25:34.
23. प्रकाशितवाक्य की किताब में हम “नये आकाश और नयी पृथ्वी” के बारे में क्या जानकारी पाते हैं, और यह भविष्यवाणी कैसे पूरी होगी?
23 प्रकाशितवाक्य की किताब में प्रेरित यूहन्ना को दिखाए गए एक दर्शन के बारे में बताया गया है। उसने यहोवा का आनेवाला वह दिन देखा जब इस दुनिया की पुरानी व्यवस्था को मिटा दिया जाएगा। उसके बाद शैतान को अथाह कुंड में कैद कर दिया जाएगा। (प्रकाशितवाक्य 19:11–20:3) यह सब बताने के बाद, यूहन्ना भी अपनी भविष्यवाणी में यशायाह के शब्द दोहराता है, वह लिखता है: “मैं ने नये आकाश और नयी पृथ्वी को देखा।” इस शानदार दर्शन के बारे में बाद की आयतें उस वक्त की भविष्यवाणी करती हैं जब यहोवा परमेश्वर धरती पर पाए जानेवाले हालात को पूरी तरह बदल देगा। (प्रकाशितवाक्य 21:1,3-5) तो साफ ज़ाहिर है कि ‘नए आकाश और नई पृथ्वी’ के बारे में यशायाह का वादा परमेश्वर की नयी दुनिया में बड़े ही अनोखे ढंग से पूरा होगा। नए आकाश यानी नयी सरकार के नीचे, एक नयी पृथ्वी या नया मानव समाज होगा जो एक आध्यात्मिक और सचमुच के फिरदौस में जीने का लुत्फ उठाएगा। इस वादे से हमें कितनी तसल्ली मिलती है कि “पहिली बातें [बीमारियाँ, दुःख और इंसानों की और बहुत-सी मुसीबतें] स्मरण न रहेंगी और सोच विचार में भी न आएंगी।” आज जो गम या गहरे ज़ख्म हमें लगातार परेशान करते रहते हैं, वे उस वक्त चाहे याद भी आएँ, लेकिन वे हमें किसी तरह की तकलीफ या दर्द का एहसास नहीं देंगे।
24. यहोवा, यरूशलेम के फिर से बसाए जाने पर मग्न क्यों होगा, और उस नगर की सड़कों पर अब क्या नहीं सुनायी देगा?
24 यशायाह की भविष्यवाणी आगे कहती है: “जो मैं सृजने पर हूं उसमें सर्वदा के लिए आनन्दित और हर्षित हो; क्योंकि देखो, मैं यरूशलेम को आनन्द का और उसकी प्रजा को हर्ष का कारण होने के लिए सृजूंगा। मैं यरूशलेम के कारण आनन्दित और अपनी प्रजा के कारण हर्षित होऊंगा; उसमें रोने का शब्द और चिल्लाने की आवाज़ फिर कभी सुनाई न पड़ेगी।” (यशायाह 65:18,19, NHT) न सिर्फ यहूदी अपने देश में फिर से बसाए जाने पर खुशियाँ मनाएँगे बल्कि खुद यहोवा भी आनंदित होगा, क्योंकि वह फिर से यरूशलेम को खूबसूरत यानी इस ज़मीन पर शुद्ध उपासना की खास जगह बनाएगा। फिर कभी विपत्ति के कारण रोने की वैसी आवाज़ सुनायी नहीं देगी, जैसी कई साल पहले इसी नगर की सड़कों पर सुनायी पड़ी थी।
25, 26. (क) हमारे दिनों में यहोवा यरूशलेम को ‘आनन्द का कारण’ कैसे बनाता है? (ख) यहोवा, नए यरूशलेम के ज़रिए क्या-क्या करेगा, और आज हम क्यों हर्षित हो सकते हैं?
25 आज भी यहोवा, यरूशलेम को ‘आनन्द का कारण’ बना रहा है। कैसे? हम पहले देख चुके हैं कि जिस नए आकाश का जन्म 1914 में हुआ उसमें कुल मिलाकर 1,44,000 राजा होंगे और वे यीशु के साथ स्वर्गीय सरकार में राज करेंगे। भविष्यवाणियों में इन्हें ‘नया यरूशलेम’ कहा गया है। (प्रकाशितवाक्य 21:2) इसी नए यरूशलेम के बारे में परमेश्वर कहता है: “मैं यरूशलेम को आनन्द का और उसकी प्रजा को हर्ष का कारण होने के लिए सृजूंगा।” परमेश्वर नए यरूशलेम के ज़रिए आज्ञा माननेवाले इंसानों पर अनगिनत आशीषों की बौछार करेगा। फिर कभी रोने का शब्द और चिल्लाने की आवाज़ सुनायी न देगी क्योंकि यहोवा हमारे “मनोरथों को पूरा करेगा।”—भजन 37:3,4.
26 वाकई हमारे पास खुशियाँ मनाने की हर वजह मौजूद है! बहुत जल्द यहोवा अपने सारे विरोधियों का सत्यानाश करके अपने महान और वैभवशाली नाम को पवित्र करेगा। (भजन 83:17,18) तब सब कुछ नए आकाश के आधीन होगा। इसलिए परमेश्वर ने जो सृजा है, उसमें सदा के लिए हर्ष मनाने और आनंदित होने के क्या ही बेजोड़ कारण हैं!
सुरक्षित भविष्य का वादा
27. यहूदी अपने वतन लौटने पर जो सुरक्षा पाएँगे, इसका वर्णन यशायाह ने कैसे किया?
27 भविष्यवाणी जब पहली बार पूरी हुई, तब नए आकाश के अधीन लौटनेवाले यहूदियों की ज़िंदगी कैसी होनी थी? यहोवा कहता है: “उस में फिर न तो थोड़े दिन का बच्चा, और न ऐसा बूढ़ा जाता रहेगा जिस ने अपनी आयु पूरी न की हो; क्योंकि जो लड़कपन में मरनेवाला है वह सौ वर्ष का होकर मरेगा, परन्तु पापी सौ वर्ष का होकर श्रापित ठहरेगा।” (यशायाह 65:20) लौटनेवाले यहूदी अपने वतन वापस आने पर जो सुरक्षा पाएँगे, उसकी इस आयत में कितनी बढ़िया तसवीर खींची गयी है! नया जन्मा शिशु जो सिर्फ थोड़े ही दिन जीया हो, वह बेवक्त मौत के मुँह में नहीं जाएगा। ना ही ऐसी मौत किसी बुज़ुर्ग इंसान पर आएगी जो अब तक अपनी पूरी ज़िंदगी नहीं जीया।d अपने वतन लौटनेवाले यहूदियों को यशायाह के इन शब्दों से कितना आश्वासन मिला होगा! अपने देश में रहते हुए, उन्हें इस बारे में चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं होगी कि दुश्मन उनके बच्चों को उठा ले जाएँगे या उनके जवानों को मौत के घाट उतार देंगे।
28. यहोवा के वचनों से, उसके राज्य के अधीन नयी दुनिया में जीवन के बारे में हमें क्या पता चलता है?
28 यहोवा के वचन हमें आनेवाली नयी दुनिया में जीने के बारे में क्या बताना चाहते हैं? परमेश्वर के राज्य में, हर बच्चे के आगे एक सुरक्षित भविष्य होगा। परमेश्वर का भय माननेवाले इंसान को कभी-भी भरी जवानी में मरना नहीं पड़ेगा। इसके बजाय, आज्ञा माननेवाले इंसान महफूज़ और सुरक्षित रहेंगे और ज़िंदगी का भरपूर मज़ा लेंगे। और अगर कोई परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह करने का फैसला करता है तो उसका क्या होगा? ऐसे लोगों से उनकी ज़िंदगी छीन ली जाएगी। विद्रोह करनेवाला पापी चाहे “सौ वर्ष” का ही क्यों न हो, वह मर जाएगा। जो अनंत जीवन वह पा सकता था उसकी तुलना में उसकी सौ साल की ज़िंदगी ऐसी होगी मानो वह “लड़कपन” में ही मर गया हो।
29. (क) यहूदा के फिर से बसने पर परमेश्वर के आज्ञाकारी लोगों को कौन-सी खुशियाँ मिलेंगी? (ख) लंबी उम्र के लिए वृक्षों की मिसाल देना क्यों सही है? (फुटनोट देखिए।)
29 यहोवा आगे बताता है कि यहूदा के फिर से बसाए जाने पर उसमें कैसे हालात होंगे: “वे घर बनाकर उन में बसेंगे; वे दाख की बारियां लगाकर उनका फल खाएंगे। ऐसा नहीं होगा कि वे बनाएं और दूसरा बसे; वा वे लगाएं, और दूसरा खाए; क्योंकि मेरी प्रजा की आयु वृक्षों की सी होगी, और मेरे चुने हुए अपने कामों का पूरा लाभ उठाएंगे।” (यशायाह 65:21,22) परमेश्वर की आज्ञा माननेवाले यहूदी जब अपने देश लौटेंगे तो वहाँ न तो कोई घर होगा न ही दाख की बारियाँ। मगर बसने के बाद, वे अपने घरों में रहने और अपनी दाख की बारियों का फल खाने का मज़ा उठा सकेंगे। परमेश्वर उनके काम पर आशीष देगा और वृक्षों की तरह उनकी उम्र लंबी होगी और इस आयु में वे अपनी मेहनत के फल का पूरा-पूरा मज़ा ले पाएँगे।e
30. आज यहोवा के सेवक किस अच्छी हालत में हैं, और नयी दुनिया में वे कैसे भविष्य का मज़ा उठाएँगे?
30 हमारे दिनों में भी इस भविष्यवाणी की एक पूर्ति हुई है। यहोवा के लोग सन् 1919 में आध्यात्मिक बंधुआई से आज़ाद हुए और उन्होंने अपने “देश,” यानी उपासना और काम करने के क्षेत्र को फिर से बसाना शुरू किया। उन्होंने कलीसियाओं का निर्माण किया और आध्यात्मिक फल पैदा किए। इसका अंजाम यह हुआ कि आज भी यहोवा के लोग आध्यात्मिक फिरदौस और परमेश्वर से मिलनेवाली शांति का मज़ा ले रहे हैं। हम यकीन रख सकते हैं कि ऐसी शांति उस वक्त भी कायम रहेगी जब यह धरती सचमुच की फिरदौस बन जाएगी। आज हम कल्पना भी नहीं कर सकते कि नयी दुनिया में यहोवा, उसकी सेवा करने की इच्छा रखनेवालों के हाथों कैसे-कैसे करिश्मे करवा सकता है। सोचिए कि जब आप अपने हाथों से अपना घर बनाएँगे और फिर उसमें रहेंगे तो आपको कितनी खुशी होगी! परमेश्वर के राज्य के अधीन, मनपसंद और तसल्ली देनेवाले काम की कोई कमी नहीं होगी। अपनी मेहनत के फल से हमेशा “सुखी” रहना क्या ही संतोषदायक होगा! (सभोपदेशक 3:13) क्या हमारे पास इतना वक्त होगा कि हम अपने हाथ के कामों का पूरा-पूरा मज़ा उठा सकें? जी हाँ, बिलकुल होगा! वफादार इंसानों की ज़िंदगी कभी खत्म नहीं होगी। उनकी उम्र “वृक्षों की सी होगी”—हज़ारों साल ही नहीं बल्कि उससे भी कहीं ज़्यादा!
31, 32. (क) बंधुआई से लौटनेवालों को क्या आशीषें मिलेंगी? (ख) नयी दुनिया में वफादार इंसानों के आगे कैसा भविष्य होगा?
31 यहोवा आगे बताता है कि बंधुआई से लौटनेवालों को और क्या आशीषें मिलेंगी: “उनका परिश्रम व्यर्थ न होगा, न उनके बालक घबराहट के लिये उत्पन्न होंगे; क्योंकि वे यहोवा के धन्य लोगों का वंश ठहरेंगे, और उनके बालबच्चे उन से अलग न होंगे।” (यशायाह 65:23) बहाल किए गए यहूदियों के काम पर आशीष देकर यहोवा उन्हें सफल करेगा इसलिए उनका परिश्रम व्यर्थ नहीं जाएगा। माता-पिता बच्चों को सिर्फ बेवक्त की मौत मरने के लिए जन्म नहीं देंगे। बंधुआई से आज़ाद हुए यहूदी, देश में फिर से बसने की आशीषों का मज़ा उठाने के लिए अकेले नहीं होंगे, उनके बच्चे भी उनके साथ होंगे। परमेश्वर अपने लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए इतना उत्सुक है कि वह वादा करता है: “उनके पुकारने से पहिले ही मैं उनको उत्तर दूंगा, और उनके मांगते ही मैं उनकी सुन लूंगा।”—यशायाह 65:24.
32 आनेवाली नयी दुनिया में, यहोवा ये वादे कैसे पूरे करेगा? यह देखने के लिए हमें तब तक इंतज़ार करना पड़ेगा। यहोवा ने इस बारे में हमें एक-एक बात की जानकारी तो नहीं दी है, मगर हम यह भरोसा रख सकते हैं कि वफादार लोगों का “परिश्रम” फिर कभी “व्यर्थ न होगा।” हरमगिदोन से बचनेवालों की बड़ी भीड़ और उनके बच्चों के आगे एक लंबा और सुखी जीवन, जी हाँ अनंत जीवन जीने का भविष्य होगा! जो लोग पुनरुत्थान में वापस आएँगे और जो परमेश्वर के स्तरों के मुताबिक जीने का फैसला करेंगे उन्हें भी नयी दुनिया में ढेरों खुशियाँ मिलेंगी। यहोवा उनकी मदद की पुकार सुनेगा और उनकी ज़रूरतें पूरी करेगा। यहाँ तक कि उनके माँगने से पहले ही वह जान जाएगा कि उन्हें क्या चाहिए। सच, यहोवा अपनी मुट्ठी खोलकर “प्रत्येक प्राणी की [उचित] इच्छा को” संतुष्ट करेगा।—भजन 145:16, NHT.
33. जब यहूदी अपने वतन लौटेंगे तो किस मायने में जानवर उनके साथ शांति से रहेंगे?
33 जिस शांति और सुरक्षा का वादा किया गया है, वह किस हद तक होगी? यहोवा इस भविष्यवाणी के आखिर में कहता है: “भेड़िया और मेम्ना एक संग चरा करेंगे, और सिंह बैल की नाईं भूसा खाएगा; और सर्प का आहार मिट्टी ही रहेगा। मेरे सारे पवित्र पर्वत पर न तो कोई किसी को दु:ख देगा और न कोई किसी की हानि करेगा, यहोवा का यही वचन है।” (यशायाह 65:25) जब शेष वफादार यहूदी अपने वतन लौटेंगे तो यहोवा का साया उन पर होगा। इसका मतलब होगा कि उनके सामने शेर भी एक मायने में बैल की तरह भूसा खाएगा, क्योंकि शेर यहूदियों या उनके पालतू जानवरों को कोई नुकसान नहीं पहुँचाएगा। यह वादा पक्का है, क्योंकि भविष्यवाणी के आखिर में कहा गया है कि “यहोवा का यही वचन है।” और उसका वचन हमेशा सच होता है!—यशायाह 55:10,11.
34. यहोवा के वचन आज किस अद्भुत तरीके से पूरे हो रहे हैं, और नयी दुनिया में कैसे पूरे होंगे?
34 आज यहोवा के ये वचन सच्चे उपासकों पर बड़े ही अद्भुत तरीके से पूरे हो रहे हैं। सन् 1919 से, परमेश्वर ने अपने लोगों के आध्यात्मिक देश पर आशीष दी है और इसे एक आध्यात्मिक फिरदौस बना दिया है। इस आध्यात्मिक फिरदौस में आनेवाले लोग अपनी ज़िंदगी में बहुत बड़े-बड़े बदलाव करते हैं। (इफिसियों 4:22-24) ऐसे बहुत-से लोग जिनकी शख्सियत पहले जानवरों-सी थी—जो दूसरों को लूटते थे या उन्हें किसी तरह अपना शिकार बनाते थे, अब परमेश्वर की आत्मा की मदद से अपनी बुरी कामनाओं को वश में करने में कामयाब हो रहे हैं। इसका नतीजा यह हुआ है कि वे भाई-बहनों के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर उपासना कर रहे हैं और शांति और एकता का आनंद उठा रहे हैं। आज यहोवा के लोग, आध्यात्मिक फिरदौस में जिन आशीषों को पा रहे हैं, वे आशीषें सचमुच के फिरदौस में भी मिलती रहेंगी। उस वक्त न सिर्फ इंसानों के बीच शांति होगी बल्कि उनके और जानवरों के बीच भी शांति होगी। हम यकीन रख सकते हैं कि परमेश्वर ने शुरूआत में इंसान को जो काम सौंपा था, वह उसके ठहराए हुए समय में सही तरीके से पूरा किया जाएगा: “[पृथ्वी] को अपने वश में कर लो; और समुद्र की मछलियों, तथा आकाश के पक्षियों, और पृथ्वी पर रेंगनेवाले सब जन्तुओं पर अधिकार रखो।”—उत्पत्ति 1:28.
35. हमारे पास ‘सर्वदा के लिए हर्षित होने’ की हर वजह क्यों है?
35 हम यहोवा का कितना एहसान मानते हैं कि उसने “नए आकाश और नयी पृथ्वी” को सृजने का वादा किया है। यह वादा सा.यु.पू. 537 में एक बार पूरा हुआ था और आज भी पूरा हो रहा है। दो बार इस वादे का पूरा होना दिखाता है कि आज्ञा माननेवाले इंसानों के आगे बहुत ही शानदार भविष्य रखा है। यह यहोवा की दया है कि उसने यशायाह की भविष्यवाणी के ज़रिए हमें उन आशीषों की झलक दिखायी है जो वह अपने प्रेम करनेवालों को देगा। सचमुच, यहोवा के इन शब्दों को मानने की हमारे पास हर वजह है: “जो मैं सृजने पर हूं उसमें सर्वदा के लिए . . . हर्षित हो”!—यशायाह 65:18, NHT.
[फुटनोट]
a कई लोगों का मानना है कि ये पापी, कब्रों के पास बैठकर मरे हुओं से संपर्क करने की कोशिश कर रहे थे। सूअर का मांस खाना शायद मूर्तिपूजा से जुड़ा हुआ था।
b इस आयत पर टिप्पणी करते हुए, (सा.यु. चौथी सदी में जन्मे) बाइबल अनुवादक जेरोम ने प्राचीन समय के मूर्तिपूजकों के एक रिवाज़ के बारे में बताया जो वे साल के आखिरी महीने के आखिरी दिन करते थे। उन्होंने लिखा: “वे एक मेज़ सजाते थे जिस पर तरह-तरह का भोजन, और एक प्याले में नया दाखमधु होता था। यह पिछले साल और आनेवाले साल के लिए किया जाता था। इससे वे अपने देवताओं से अच्छे भाग्य की कामना करते थे ताकि वे खुश होकर उन्हें अच्छी उपज दें।”
c इब्रानी मसोरा पाठ के मुताबिक, यशायाह 65:16 में यहोवा को “आमीन का परमेश्वर” कहा गया है। “आमीन” का मतलब है “ऐसा ही हो” या “ज़रूर” हो। यह एक गारंटी या पक्का वादा है कि बात सच्ची है या सच होकर रहेगी। अपने सभी वादों को पूरा करके, यहोवा दिखाता है कि वह जो कहता है सच कहता है।
d द जॆरूसलेम बाइबल में, यशायाह 65:20 का यूँ अनुवाद किया गया है: “उसमें ऐसा शिशु न पाया जाएगा जो सिर्फ कुछ ही दिन जीया हो, न ही ऐसा बूढ़ा पाया जाएगा जिसने अपने दिन पूरे न किए हों।”
e लंबी उम्र के लिए वृक्षों की मिसाल बिलकुल सही है, क्योंकि जीवित वस्तुओं में वृक्ष ही सबसे ज़्यादा समय तक सही-सलामत रहते हैं। मिसाल के लिए, जैतून का एक वृक्ष सैकड़ों साल तक फल देता रहता है और करीब एक हज़ार साल तक ज़िंदा रह सकता है।
[पेज 389 पर तसवीर]
परमेश्वर की नयी दुनिया में, हमारे पास अपने हाथों के काम का मज़ा लेने के लिए ढेर सारा वक्त होगा