अट्ठाइसवाँ अध्याय
सब जातियों के लिए उजियाला
1, 2. उजियाला बेहद ज़रूरी क्यों है, और आज सारी पृथ्वी पर किस किस्म का अंधकार छाया हुआ है?
यहोवा ही उजियाले का बनानेवाला है। उसी ने “दिन को प्रकाश देने के लिये सूर्य को और रात को प्रकाश देने के लिये चन्द्रमा और तारागण के नियम ठहराए हैं।” (यिर्मयाह 31:35) यही वजह उसे जीवन-दाता मानने के लिए काफी है क्योंकि अगर प्रकाश न होता तो जीवन भी न होता। अगर इस पृथ्वी को लगातार सूरज से गर्मी और धूप न मिलती तो आज दुनिया में जितने प्राणी हैं, उनमें से एक भी ज़िंदा ना बचता। और हमारी यह पृथ्वी जीवन के लायक नहीं रहती।
2 तो फिर, यहोवा की यह भविष्यवाणी हमारे लिए वाकई गंभीर है कि हमारे दिनों में ऐसा समय आएगा जब उजियाला नहीं बल्कि अंधकार होगा। ईश्वर-प्रेरणा से यशायाह ने लिखा: “देख, पृथ्वी पर तो अन्धियारा और राज्य राज्य के लोगों पर घोर अन्धकार छाया हुआ है।” (यशायाह 60:2) माना कि ये शब्द सचमुच के अंधकार के बारे में नहीं बल्कि आध्यात्मिक किस्म के अंधकार के बारे में हैं, मगर इनकी गंभीरता को कम नहीं समझा जाना चाहिए। जैसे सूरज की रोशनी के बिना ज़िंदा रहना नामुमकिन है, उसी तरह जिनके पास आध्यात्मिक उजियाला नहीं है, आगे चलकर उनके जीवन की ज्योति बुझ जाती है।
3. इस अंधकार के वक्त में, हम कहाँ से उजियाला पा सकते हैं?
3 तो अंधकार के इस समय में, हमें उस आध्यात्मिक उजियाले को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए जिसका इंतज़ाम यहोवा ने हमारे लिए किया है। बहुत ज़रूरी है कि हम अपने जीवन के मार्ग को रोशन करने के लिए परमेश्वर के वचन की मदद लें, और उसे हर रोज़ पढ़ने की पूरी कोशिश करें। (भजन 119:105) इसके अलावा, मसीही सभाओं में हमें एक-दूसरे का हौसला बढ़ाने का मौका मिलता है ताकि हम ‘धर्मियों के पथ’ पर बने रहें। (नीतिवचन 4:18, NHT; इब्रानियों 10:23-25) अगर हम मन लगाकर बाइबल का अध्ययन करें, मसीही भाई-बहनों के साथ अच्छी संगति रखें, तो हम इन “अन्तिम दिनों” के अंधकार में गुम नहीं हो जाएँगे जिनका अंत “यहोवा के क्रोध के दिन” में होगा। (2 तीमुथियुस 3:1; सपन्याह 2:3) यहोवा के क्रोध का दिन तूफान की तेज़ी से चला आ रहा है! जैसे प्राचीन यरूशलेम के लोगों के साथ हुआ था, हमारे समय में भी यहोवा का दिन ज़रूर आएगा।
यहोवा ‘न्याय करता है’
4, 5. (क) किस मायने में यहोवा ने यरूशलेम के खिलाफ कार्यवाही की? (ख) हम क्यों कह सकते हैं कि सा.यु.पू. 607 में, सिर्फ थोड़े लोग ही यरूशलेम के विनाश से बच पाएँगे? (फुटनोट देखिए।)
4 यशायाह की सनसनीखेज़ भविष्यवाणी की आखिरी आयतों में, यहोवा साफ शब्दों में उन घटनाओं का ब्यौरा देता है जो उसके क्रोध के दिन से पहले होंगी। हम पढ़ते हैं: “यहोवा आग के साथ आएगा, और उसके रथ बवण्डर के समान होंगे, जिस से वह अपने क्रोध को जलजलाहट के साथ और अपनी चितौनी को भस्म करनेवाली आग की लपट से प्रगट करे। क्योंकि यहोवा सब प्राणियों का न्याय आग से और अपनी तलवार से करेगा; और यहोवा के मारे हुए बहुत होंगे।”—यशायाह 66:15,16.
5 इन शब्दों से यशायाह के ज़माने के लोगों को होश में आना चाहिए कि वे कितने बड़े खतरे में जी रहे हैं। वह वक्त पास आ रहा है जब बाबुली, यहोवा की तरफ से सज़ा देनेवाले जल्लाद बनकर यरूशलेम पर टूट पड़ेंगे। उनके रथों से धूल के ऐसे बादल उठेंगे जैसे कोई बवंडर या तूफान आता है। वह क्या ही दिल दहलानेवाला नज़ारा होगा! इन हमलावरों के ज़रिए यहोवा आग के साथ आएगा और सभी विश्वासघाती यहूदी “प्राणियों” को दंड देगा। तब ऐसा लगेगा मानो यहोवा खुद अपने लोगों के खिलाफ लड़ रहा हो। उसकी “जलजलाहट” नहीं थमेगी। बहुत-से यहूदी, ‘यहोवा के मारे हुओं’ की तरह गिर पड़ेंगे। सा.यु.पू. 607 में, यह भविष्यवाणी पूरी हुई।a
6. यहूदा में कैसे-कैसे घिनौने काम किए जा रहे हैं?
6 क्या यहोवा अपने ही लोगों को दंड देते हुए उनका ‘न्याय करके’ सही कर रहा है? बेशक! यशायाह की किताब की इस चर्चा में हमने बहुत बार देखा है कि यहूदी, जो असल में यहोवा को समर्पित लोग हैं, झूठी उपासना में डूबे हुए हैं। लेकिन उनके काम यहोवा की नज़रों से छिप नहीं सकते। यही बात हम अगली आयत में भी देखते हैं: “जो लोग अपने को इसलिये पवित्र और शुद्ध करते हैं कि बारियों में जाएं और किसी के पीछे खड़े होकर सूअर वा चूहे का मांस और और घृणित वस्तुएं खाते हैं, वे एक ही संग नाश हो जाएंगे, यहोवा की यही वाणी है।” (यशायाह 66:17) क्या ये यहूदी, शुद्ध उपासना की तैयारी करने के लिए खुद को “पवित्र और शुद्ध” कर रहे हैं? जी नहीं। इसके बजाय, वे खास-खास बारियों या बगीचों में जाकर झूठे धर्मों की शुद्धिकरण की रस्में पूरी कर रहे हैं। इसके बाद, वे भूखों की तरह सूअर और दूसरे प्राणियों का मांस ठूँस-ठूँसकर खाते हैं, उन्हीं प्राणियों का जो मूसा की व्यवस्था के मुताबिक अशुद्ध हैं।—लैव्यव्यवस्था 11:7,21-23.
7. ईसाईजगत कैसे मूर्तिपूजक यहूदा जैसा है?
7 एकमात्र सच्चे परमेश्वर ने जिस जाति के साथ वाचा बाँधी है, वह कैसी घिनौनी हालत में है! लेकिन ज़रा गौर कीजिए: आज ऐसे ही घिनौने हालात ईसाईजगत के धर्मों में भी मौजूद हैं। ये भी, प्राचीन यहूदियों के जैसे परमेश्वर की सेवा करने का दावा करते हैं और इनके बहुत-से पादरी बड़े ही धार्मिक और पवित्र होने का ढोंग करते हैं। मगर फिर भी, वे झूठे धर्म की शिक्षाओं और परंपराओं से खुद को कलंकित करते हैं, जिससे यह बात साबित हो जाती है कि वे आध्यात्मिक अंधकार में हैं। और इस तरह का अंधकार कितना गहरा अंधकार है!—मत्ती 6:23; यूहन्ना 3:19,20.
“वे . . . मेरी महिमा देखेंगे”
8. (क) यहूदा और ईसाईजगत, दोनों का क्या हश्र होगा? (ख) किस अर्थ में जातियाँ ‘यहोवा की महिमा देखेंगी’?
8 क्या यहोवा, ईसाईजगत के घिनौने कामों और झूठी शिक्षाओं को देख रहा है? यशायाह के लिखे हुए, यहोवा के ये शब्द पढ़िए और देखिए कि आप किस नतीजे पर पहुँचते हैं: “मैं उनके काम और उनकी कल्पनाएं, दोनों अच्छी रीति से जानता हूं। और वह समय आता है जब मैं सारी जातियों और भिन्न भिन्न भाषा बोलनेवालों को इकट्ठा करूंगा; और वे आकर मेरी महिमा देखेंगे।” (यशायाह 66:18) जो यहोवा की सेवा करने का दावा करते हैं, उनके ना सिर्फ कामों की बल्कि कल्पनाओं और विचारों की भी यहोवा जाँच करता है। इसी के आधार पर वह उन सबका जल्द ही न्याय करेगा। यहूदा दावा करता है कि उसका भरोसा यहोवा पर है, मगर उसकी मूर्तिपूजा और झूठे धर्म के रस्मों-रिवाज़ इस दावे को झूठा साबित करते हैं। झूठी उपासना की रस्मों से खुद को “पवित्र” करने का उसके लोगों को कोई फायदा नहीं होगा। यह जाति तबाह की जाएगी और जब यह होगा तब इसकी बरबादी का तमाशा, मूरतों को पूजनेवाले उसके पड़ोसी देश भी देखेंगे। वे ‘यहोवा की महिमा देखेंगे’ यानी इन घटनाओं को अपनी आँखों से होता देखेंगे और यह मानने पर मजबूर हो जाएँगे कि यहोवा ने जो कहा था, वह सच साबित हुआ है। ये सारी बातें ईसाईजगत पर कैसे लागू होती हैं? जब यहोवा के वचन के अनुसार उसका अंत होगा, तो जो पहले उसके दोस्त-यार और बिज़नेस के साथी थे, वे लाचार होकर पास खड़े उसकी बरबादी का तमाशा देखेंगे।—यिर्मयाह 25:31-33; प्रकाशितवाक्य 17:15-18; 18:9-19.
9. यहोवा कौन-सी खुशखबरी सुनाता है?
9 सामान्य युग पूर्व 607 में यरूशलेम का विनाश हो जाने का क्या यह मतलब है कि इसके बाद धरती पर यहोवा का कोई भी साक्षी नहीं बचेगा? जी नहीं। वफादारी की मिसाल कायम करनेवाले लोग, जैसे दानिय्येल और उसके तीन साथी बाबुल की बंधुआई में रहते वक्त भी यहोवा की सेवा करते रहेंगे। (दानिय्येल 1:6,7) जी हाँ, यहोवा के वफादार साक्षियों का सिलसिला चलता रहेगा और 70 साल के खत्म होने पर वफादार स्त्री-पुरुष बाबुल छोड़कर, यहूदा लौट आएँगे और फिर से शुद्ध उपासना की शुरूआत करेंगे। अगली आयत में यहोवा इसी बात का ज़िक्र कर रहा है: “मैं उन में एक चिन्ह प्रगट करूंगा; और उनके बचे हुओं को मैं उन अन्यजातियों के पास भेजूंगा जिन्हों ने न तो मेरा समाचार सुना है और न मेरी महिमा देखी है, अर्थात्, तर्शीशियों और धनुर्धारी पूलियों और लूदियों के पास, और तबलियों और यूनानियों और दूर द्वीपवासियों के पास भी भेज दूंगा और वे अन्यजातियों में मेरी महिमा का वर्णन करेंगे।”—यशायाह 66:19.
10. (क) बाबुल से आज़ाद हुए वफादार यहूदी किस मायने में एक चिन्ह की तरह थे? (ख) आज कौन एक चिन्ह की तरह काम कर रहे हैं?
10 सामान्य युग पूर्व 537 में, जब वफादार स्त्री-पुरुषों के झुंड-के-झुंड यरूशलेम लौटेंगे, तो वे एक आश्चर्यजनक चिन्ह का काम करेंगे। वे इस बात का सबूत होंगे कि यहोवा ने अपने लोगों को छुड़ाया है। कौन कल्पना कर सकता था कि गुलामी में पड़े यहूदी, फिर से एक दिन यहोवा के मंदिर में शुद्ध उपासना करने के लिए आज़ाद होंगे? पहली सदी में भी ऐसा ही कुछ हुआ था, उस वक्त अभिषिक्त मसीही “चिन्ह और चमत्कार” थे और उनके पास, यहोवा की सेवा करने की इच्छा रखनेवाले नम्र लोगों के झुंड-के-झुंड इकट्ठा हुए। (यशायाह 8:18; इब्रानियों 2:13) आज आध्यात्मिक प्रदेश में फल-फूल रहे अभिषिक्त मसीही, दुनिया के लिए एक विस्मयकारी चिन्ह बने हुए हैं। (यशायाह 66:8) वे यहोवा की आत्मा की शक्ति का जीता-जागता सबूत हैं जिसकी वजह से ऐसे नम्र लोग उनकी तरफ खिंचे चले आते हैं जिनका मन उन्हें यहोवा की सेवा करने के लिए उभारता है।
11. (क) यहूदियों के अपने देश में बस जाने के बाद, जातियाँ यहोवा के बारे में कैसे सीखेंगी? (ख) जकर्याह 8:23 की पहली पूर्ति कैसे हुई?
11 जब सा.यु.पू. 537 में यहूदी फिर से अपने देश में जाकर बस चुके होंगे, तब अन्यजातियों के लोग जिन्होंने यहोवा का समाचार नहीं सुना, वे उसे कैसे जानेंगे? बाबुल की बंधुआई के खत्म होने के बाद सभी वफादार यहूदी यरूशलेम नहीं लौटेंगे। दानिय्येल जैसे कई लोग बाबुल में ही रह जाएँगे। बाकी कुछ पृथ्वी की चारों दिशाओं में फैल जाएँगे। और सा.यु.पू. पाँचवी सदी तक, फारस साम्राज्य में हर तरफ यहूदी पाए जा सकते थे। (एस्तेर 1:1; 3:8) कुछ यहूदियों ने अपने विधर्मी पड़ोसियों को यहोवा के बारे में ज़रूर बताया होगा, क्योंकि उन देशों में से बहुत-से लोग यहूदी मतधारक बन गए थे। ज़ाहिर है कि पहली सदी में कूश देश के जिस खोजे को फिलिप्पुस ने सुसमाचार सुनाया था, उसके किस्से में ऐसा ही हुआ होगा। (प्रेरितों 8:26-40) इन सारी घटनाओं से, भविष्यवक्ता जकर्याह की इस भविष्यवाणी की पहली पूर्ति हुई: “उन दिनों में भांति भांति की भाषा बोलनेवाली सब जातियों में से दस मनुष्य, एक यहूदी पुरुष के वस्त्र की छोर को यह कहकर पकड़ लेंगे, कि, हम तुम्हारे संग चलेंगे, क्योंकि हम ने सुना है कि परमेश्वर तुम्हारे साथ है।” (जकर्याह 8:23) वाकई, यहोवा ने सब जातियों में उजियाला फैलाया!—भजन 43:3.
“यहोवा के लिये भेंट” लाना
12, 13. सामान्य युग पूर्व 537 से किस तरह “भाइयों” को यरूशलेम में लाया गया?
12 अपने वतन से दूर अलग-अलग जगहों पर बिखरे यहूदियों के लिए दोबारा बसा यरूशलेम नगर शुद्ध उपासना का केंद्र होगा, जिसमें याजकों की सेवाएँ फिर से शुरू हो जाएँगी। बहुत-से लोग सालाना पर्वों में हाज़िर होने के लिए दूर-दूर से यात्रा करते हुए यहाँ आएँगे। इसलिए, ईश्वर-प्रेरणा से यशायाह लिखता है: “जैसे इस्राएली लोग अन्नबलि को शुद्ध पात्र में धरकर यहोवा के भवन में ले आते हैं, वैसे ही वे [“सब जातियों में से,” NHT] तुम्हारे सब भाइयों को घोड़ों, रथों, पालकियों, खच्चरों और सांड़नियों पर चढ़ा चढ़ाकर मेरे पवित्र पर्वत यरूशलेम पर यहोवा की भेंट के लिये ले आएंगे, यहोवा का यही वचन है। और उन में से मैं कितने लोगों को याजक और लेवीय पद के लिये भी चुन लूंगा।”—यशायाह 66:20,21.
13 जब पिन्तेकुस्त के दिन यीशु के चेलों पर पवित्र आत्मा उंडेली गयी तब “सब जातियों में से” कुछ ‘भाई’ उस नगर में मौजूद थे। बाइबल बताती है: “आकाश के नीचे की हर एक जाति में से भक्त यहूदी यरूशलेम में रहते थे।” (प्रेरितों 2:5) पिन्तेकुस्त के अवसर पर वे यहूदियों के रिवाज़ के मुताबिक उपासना करने के लिए यरूशलेम आए थे, मगर जब उन्होंने यीशु मसीह का सुसमाचार सुना तो उस पर विश्वास किया और उन्होंने बपतिस्मा लिया।
14, 15. (क) अभिषिक्त मसीहियों ने पहले विश्वयुद्ध के बाद, और ज़्यादा आत्मिक भाइयों को कैसे इकट्ठा किया, और उन्हें ‘शुद्ध पात्र में अन्नबलि’ की तरह यहोवा को कैसे अर्पित किया गया? (ख) यहोवा ने कुछ ‘लोगों को याजक पद के लिये’ कैसे चुना? (ग) ऐसे कुछ अभिषिक्त मसीही कौन थे जिन्होंने अपने आत्मिक भाइयों को इकट्ठा किया? (इस पेज पर बक्स देखिए।)
14 क्या इस भविष्यवाणी की हमारे ज़माने में भी पूर्ति हुई है? जी हाँ, ज़रूर। पहले विश्वयुद्ध के बाद, यहोवा के अभिषिक्त सेवकों ने बाइबल से यह समझ पायी कि सन् 1914 में परमेश्वर का राज्य स्वर्ग में स्थापित हो गया है। बाइबल का ध्यान से अध्ययन करके उन्होंने जाना कि राज्य के और भी वारिसों या “भाइयों” को इकट्ठा किया जाना बाकी है। इसलिए कई साहसी प्रचारक, अभिषिक्त मसीहियों के बाकी सदस्यों की खोज में, यात्रा के हर साधन का इस्तेमाल करते हुए “पृथ्वी की छोर तक” गए। जिन अभिषिक्तों की खोज की जा रही थी, उनमें से ज़्यादातर उस वक्त ईसाईजगत के गिरजों के सदस्य थे। जब इन्हें ढूँढ़ा गया तब इन्हें यहोवा के लिए भेंट के रूप में लाया गया।—प्रेरितों 1:8.
15 शुरूआत के उन सालों में जिन अभिषिक्त मसीहियों को इकट्ठा किया गया, वे जानते थे कि यहोवा उन्हें उस हालत में स्वीकार नहीं करेगा जिसमें वे बाइबल की सच्चाई जानने से पहले थे। इसलिए उन्होंने खुद को आध्यात्मिक और नैतिक गंदगी से शुद्ध किया, ताकि उन्हें ‘शुद्ध पात्र में अन्नबलि’ की तरह या जैसे प्रेरित पौलुस ने कहा, “पवित्र कुंवारी की नाईं मसीह” को अर्पित किया जा सके। (2 कुरिन्थियों 11:2) झूठी शिक्षाओं को ठुकराने के अलावा, अभिषिक्त मसीहियों को यह भी सीखना था कि दुनिया के राजनीतिक मामलों में पूरी तरह से निष्पक्ष कैसे रहें। सन् 1931 में, जब यहोवा के ये सेवक काफी हद तक शुद्ध किए जा चुके थे, तब उसने बड़ी करुणा दिखाते हुए उन्हें यहोवा के साक्षी नाम धारण करने का अनमोल सम्मान दिया। (यशायाह 43:10-12) मगर, यहोवा ने इनमें से कुछ ‘लोगों को याजक पद के लिये’ कैसे चुना? अभिषिक्त जनों का यह समूह “राज-पदधारी, याजकों का समाज, और पवित्र लोग[गों]” का एक हिस्सा बना और यह यहोवा को स्तुति के बलिदान चढ़ाता है।—1 पतरस 2:9; यशायाह 54:1; इब्रानियों 13:15.
इकट्ठा किए जाने का काम जारी
16, 17. पहले विश्वयुद्ध के बाद से भविष्यवाणी में बताया गया “तुम्हारा वंश” कौन रहा है?
16 ‘राज-पदधारी, याजकों के समाज’ की पूरी संख्या 1,44,000 है और कुछ वक्त के बाद उन्हें इकट्ठा करने का काम पूरा हुआ। (प्रकाशितवाक्य 7:1-8; 14:1) तो क्या इसके बाद इकट्ठा किए जाने का सारा काम वहीं खत्म हो गया? नहीं। यशायाह की भविष्यवाणी आगे कहती है: “जिस प्रकार नया आकाश और नई पृथ्वी, जो मैं बनाने पर हूं, मेरे सम्मुख बनी रहेगी, उसी प्रकार तुम्हारा वंश और तुम्हारा नाम भी बना रहेगा; यहोवा की यही वाणी है।” (यशायाह 66:22) इस भविष्यवाणी की पहली पूर्ति तब हुई जब बाबुल की बंधुआई से लौटनेवाले यहूदियों के बच्चे पैदा हुए जिनको उन्होंने पाल-पोसकर बड़ा किया। इस तरह, ‘नए आकाश’ यानी नए यहूदी प्रशासन के अधीन, “नई पृथ्वी” यानी बहाल किए गए शेष यहूदी, मज़बूती से बस जाएँगे। लेकिन, यह भविष्यवाणी आज हमारे ज़माने में बड़े ही अद्भुत तरीके से पूरी हुई है।
17 आत्मिक भाइयों की जाति ने जिस “वंश” को पैदा किया है, वह “बड़ी भीड़” के लोग हैं जिन्हें पृथ्वी पर सदा तक जीने की आशा है। ये “हर एक जाति, और कुल, और लोग और भाषा में से” निकलकर आए हैं और “सिंहासन के साम्हने और मेम्ने के साम्हने” खड़े हैं। इन्होंने “अपने अपने वस्त्र मेम्ने के लोहू में धोकर श्वेत किए हैं।” (प्रकाशितवाक्य 7:9-14; 22:17) आज “बड़ी भीड़” के लोग आत्मिक अंधकार से निकलकर यहोवा से मिल रहे उजियाले में आ रहे हैं। वे यीशु मसीह पर विश्वास करते हैं और अपने अभिषिक्त भाई-बहनों की तरह आध्यात्मिक और नैतिक गंदगी से खुद को शुद्ध रखने की पूरी-पूरी कोशिश करते हैं। एक समूह के तौर पर वे मसीह की निगरानी में सेवा कर रहे हैं और सदा तक ‘बने रहेंगे’!—भजन 37:11,29.
18. (क) बड़ी भीड़ के लोगों ने कैसे, अपने अभिषिक्त भाइयों के जैसा काम किया है? (ख) अभिषिक्त जन और उनके साथी कैसे “एक नये चांद से दूसरे नये चांद के दिन तक और एक विश्राम दिन से दूसरे विश्राम दिन तक” यहोवा की उपासना करते हैं?
18 इसी धरती पर जीने की आशा रखनेवाले बड़ी भीड़ के ये मेहनती स्त्री-पुरुष जानते हैं कि यहोवा को खुश करने के लिए आध्यात्मिक और नैतिक रूप से शुद्ध होना बेहद ज़रूरी तो है, मगर इतना ही काफी नहीं है। आज लोगों को इकट्ठा किए जाने का काम पूरे ज़ोरों पर है और ये लोग भी इसमें हिस्सा लेना चाहते हैं। प्रकाशितवाक्य की किताब उनके बारे में भविष्यवाणी करती है: “वे परमेश्वर के सिंहासन के साम्हने हैं, और उसके मन्दिर में दिन रात उस की सेवा करते हैं।” (प्रकाशितवाक्य 7:15) ये शब्द हमें यशायाह की भविष्यवाणी की इस आयत की याद दिलाते हैं, जो कहती है: “फिर ऐसा होगा कि एक नये चांद से दूसरे नये चांद के दिन तक और एक विश्राम दिन से दूसरे विश्राम दिन तक समस्त प्राणी मेरे साम्हने दण्डवत् करने को आया करेंगे; यहोवा का यही वचन है।” (यशायाह 66:23) आज यह भविष्यवाणी पूरी हो रही है। “एक नये चांद से दूसरे नये चांद के दिन तक और एक विश्राम दिन से दूसरे विश्राम दिन तक,” यानी नियमित रूप से, हर महीने के हर हफ्ते, अभिषिक्त मसीही और उनके साथी, बड़ी भीड़ यहोवा की उपासना करने के लिए इकट्ठे होते हैं। इसके लिए वे कई काम करते हैं, जिनमें से कुछ हैं सभाओं में हाज़िर होना और प्रचार करना। क्या आप भी उन लोगों में से एक हैं जो नियमित रूप से ‘यहोवा के साम्हने दण्डवत् करने को आया करते’ हैं? यहोवा के लोगों को ऐसा करने से बहुत खुशी मिलती है और जो बड़ी भीड़ के हैं, वे उस वक्त का इंतज़ार कर रहे हैं जब “समस्त प्राणी,” यानी हर जीवित इंसान “एक नये चांद से दूसरे नये चांद के दिन तक और एक विश्राम दिन से दूसरे विश्राम दिन तक” यानी सदा तक यहोवा की सेवा करता रहेगा।
परमेश्वर के दुश्मनों को सदा के लिए मिटा दिया जाएगा
19, 20. बाइबल के ज़माने में गेहन्ना किस काम के लिए इस्तेमाल होता था, और यह किस बात को दर्शाता है?
19 यशायाह की भविष्यवाणी के अध्ययन में अब सिर्फ एक आयत पर चर्चा करना बाकी है। यह किताब इन शब्दों से खत्म होती है: “तब वे निकलकर उन लोगों की लोथों पर जिन्हों ने मुझ से बलवा किया दृष्टि डालेंगे; क्योंकि उन में पड़े हुए कीड़े कभी न मरेंगे, उनकी आग कभी न बुझेगी, और सारे मनुष्यों को उन से अत्यन्त घृणा होगी।” (यशायाह 66:24) यीशु मसीह ने जब अपने चेलों को सादगी से जीने और राज्य को पहला स्थान देने के लिए उकसाया था, तब शायद उसके मन में यही भविष्यवाणी थी। यीशु ने कहा था: “यदि तेरी आंख तुझे ठोकर खिलाए तो उसे निकाल डाल, काना होकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना तेरे लिये इस से भला है, कि दो आंख रहते हुए तू नरक [“गेहन्ना,” NW] में डाला जाए। जहां उन का कीड़ा नहीं मरता और आग नहीं बुझती।”—मरकुस 9:47,48; मत्ती 5:29,30; 6:33.
20 गेहन्ना कैसी जगह है? सदियों पहले यहूदी विद्वान, डेविड किमकी ने लिखा था: “यह जगह . . . यरूशलेम से सटी हुई है, और यह बड़ी ही घिनौनी जगह है। लोग यहाँ घृणित चीज़ों और लाशों को फेंकते हैं। यहाँ हमेशा आग भी सुलगती रहती है ताकि गंदी चीज़ों और लाशों की हड्डियों को जलाकर राख कर दे। इसलिए दुष्टों पर आनेवाले न्यायदंड की तुलना गहिन्नोम में फेंके जाने से की गयी है।” जैसे इस यहूदी विद्वान ने कहा, अगर गेहन्ना में कचरा या ऐसे लोगों की लाशें जलायी जाती थीं जिन्हें दफनाए जाने के लायक नहीं समझा जाता था, तो उनका नामो-निशान मिटाने के लिए आग बिलकुल सही चीज़ थी। जो चीज़ें आग से बच जातीं, उन्हें खाने के लिए कीड़े थे। परमेश्वर के दुश्मनों का सदा का विनाश होगा, यह बताने के लिए क्या ही सही तसवीर पेश गयी है!b
21. यशायाह की किताब के आखिरी शब्दों से किसे हौसला मिलता है, और क्यों?
21 लाशों, आग और कीड़ों के बारे में बताकर, क्या ऐसा नहीं लगता कि यशायाह की हैरतअंगेज़ भविष्यवाणियों का अंत बड़ी डरावनी बातों से होता है? परमेश्वर के कट्टर दुश्मनों को बेशक ऐसा ही लगेगा। मगर जो परमेश्वर के मित्र हैं, उनको यशायाह के इस वर्णन से कि दुष्टों को सदा के लिए नाश कर दिया जाएगा, बहुत हौसला मिलता है। यहोवा के लोगों को इस आश्वासन की सख्त ज़रूरत है कि इसके आगे कभी-भी उनके दुश्मन उन पर हावी नहीं हो पाएँगे। उनके जिन दुश्मनों ने, परमेश्वर के उपासकों पर इतने ज़ुल्म ढाए हैं और यहोवा के नाम को इतना बदनाम किया है, उन्हें सदा के लिए मिटा दिया जाएगा। इसके बाद, “विपत्ति दूसरी बार पड़ने न पाएगी।”—नहूम 1:9.
22, 23. (क) यशायाह की किताब के अध्ययन से आपको जो फायदे हुए, उनमें से कुछ के बारे में बताइए। (ख) यशायाह की किताब का अध्ययन करने के बाद आपने क्या संकल्प किया है, और भविष्य के लिए आपकी आशा क्या है?
22 अब जब हम यशायाह की किताब का अध्ययन खत्म कर रहे हैं, हम इस बात को समझ पाए हैं कि बाइबल की यह किताब सिर्फ एक इतिहास नहीं है, जिसका हमारी ज़िंदगी से कोई लेना-देना नहीं। इसके बजाय, इस किताब में आज हमारे लिए भी संदेश दिया गया है। जब हम सोचते हैं कि यशायाह कैसे अंधकारमय समय में जीया था, तो हम देख सकते हैं कि उसके ज़माने और हमारे ज़माने में बहुत समानता है। यशायाह के ज़माने में देश में राजनीतिक उथल-पुथल मची हुई थी, धर्म के नाम पर पाखंड होता था, अदालतों में रिश्वत के बिना काम नहीं होता था और सच्चाई से जीनेवालों और गरीबों पर अत्याचार किया जाता था। सामान्य युग पूर्व छठी सदी में ऐसे हालात में रहनेवाले वफादार यहूदियों ने यशायाह की भविष्यवाणियों की किताब के लिए कितना एहसान माना होगा और आज हम भी इसका अध्ययन करके सांत्वना पाते हैं।
23 इस कठिन समय में जब सारी पृथ्वी पर अंधकार छाया हुआ है और देश-देश के लोग घोर अंधकार में हैं, हम दिल से यहोवा का एहसान मानते हैं कि उसने यशायाह के ज़रिए सारे जगत को उजियाला दिया है! दरअसल, आध्यात्मिक उजियाले का मतलब है, हमेशा की ज़िंदगी। जो लोग इस उजियाले को पूरे दिल से स्वीकार करते हैं, वे चाहे किसी भी देश या जाति से क्यों ना हों, उन्हें हमेशा की ज़िंदगी मिल सकती है। (प्रेरितों 10:34,35) तो फिर, आइए हम परमेश्वर के वचन के उजियाले में चलते रहें, इसे रोज़ पढ़ें, इस पर मनन करें और इसके संदेश को सीने से लगाए रखें। अगर हम ऐसा करेंगे तो हमें अनंतकाल की आशीषें मिलेंगी और इससे यहोवा के पवित्र नाम की स्तुति होती रहेगी!
[फुटनोट]
a जब बाबुल ने यरूशलेम पर कब्ज़ा किया, तब उसका जो हाल हुआ उसके बारे में यिर्मयाह 52:15 कहता है: “कंगाल लोगों में से कितनों को, और जो लोग नगर में रह गए थे।” (तिरछे टाइप हमारे।) इसके बारे में इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स, भाग 1 के पेज 415 में लिखा है: “ये शब्द, ‘जो लोग नगर में रह गए थे,’ दिखाते हैं कि बड़ी तादाद में लोग, अकाल और बीमारी की वजह से या आग में जलकर मर गए थे या युद्ध में उनको घात कर दिया गया था।”
b गेहन्ना में लाशों को, ना कि ज़िंदा लोगों को भस्म करने के लिए फेंका जाता था, इसलिए हम कह सकते हैं कि यह जगह, सदा तक नरक की आग में जलाए जाने को नहीं दर्शाती।
[पेज 409 पर बक्स]
सब जातियों से यहोवा के लिए अभिषिक्तों के रूप में भेंट
सन् 1920 में, क्वान मूनयीस अमरीका से स्पेन गए और उसके बाद अर्जेंटाइना गए। वहाँ उन्होंने अभिषिक्त जनों की कलीसियाएँ संगठित कीं। सन् 1923 से मिशनरी भाई विलियम आर. ब्राऊन (जिन्हें अकसर बाइबल ब्राऊन कहा जाता था) की बदौलत सच्चाई का उजियाला, पश्चिम अफ्रीका में रहनेवाले सच्चे दिल के लोगों पर चमका। भाई ब्राऊन, सियरा लियोन, घाना, लाइबेरिया, द गेम्बिया और नाइजेरिया जैसी जगहों में राज्य का संदेश सुनाने निकल पड़े थे। उसी साल कनाडा के जॉर्ज यंग, ब्राज़ील गए और उसके बाद अर्जेंटाइना, कोस्टा रिका, पनामा, वेनेज़ुइला, यहाँ तक कि सोवियत संघ भी गए। उसी दौरान, एडविन स्किनर इंग्लैंड से समुद्री जहाज़ में यात्रा करते हुए भारत पहुँचे, जहाँ उन्होंने कटनी के काम में बरसों तक कड़ी मेहनत की।
[पेज 411 पर तसवीर]
पिन्तेकुस्त के दिन मौजूद कुछ यहूदी, ‘सब जातियों में से लाए गए भाई’ थे
[पेज 413 पर बड़ी तसवीर दी गयी है]