यहोवा का अनुकरण कीजिए—न्याय और धार्मिकता से काम कीजिए
“मैं ही वह यहोवा हूं, जो पृथ्वी पर करुणा, न्याय और धर्म के काम करता है; क्योंकि मैं इन्हीं बातों से प्रसन्न रहता हूं।”—यिर्मयाह ९:२४.
१. यहोवा ने कौन-सा अद्भुत भविष्य हमारे सामने रखा है?
यहोवा ने प्रतिज्ञा की है कि एक दिन ऐसा आएगा जब सभी उसको जानेंगे। अपने भविष्यवक्ता यशायाह द्वारा उसने कहा: “मेरे सारे पवित्र पर्वत पर न तो कोई दुःख देगा और न हानि करेगा; क्योंकि पृथ्वी यहोवा के ज्ञान से ऐसी भर जाएगी जैसा जल समुद्र में भरा रहता है।” (यशायाह ११:९) यह कितना अद्भुत भविष्य है!
२. यहोवा को जानने में क्या शामिल है? क्यों?
२ लेकिन यहोवा को जानने का आखिर क्या मतलब है? यहोवा ने यिर्मयाह को बताया कि एक व्यक्ति के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण क्या है: “वह मुझे जानता और समझता है, कि मैं ही वह यहोवा हूं, जो पृथ्वी पर करुणा, न्याय और धर्म के काम करता है; क्योंकि मैं इन्हीं बातों से प्रसन्न रहता हूं।” (यिर्मयाह ९:२४) इसलिए यहोवा को जानने का मतलब है कि उसके न्याय और धार्मिकता से काम करने के तरीके को जानना। अगर हम इन गुणों के अनुसार काम करें तो वह हमसे आनंदित होगा। हम ऐसा कैसे कर सकते हैं? अपने वचन बाइबल में यहोवा ने सदियों के दौरान असिद्ध इंसानों के साथ अपने व्यवहार का रिकार्ड सुरक्षित रखा है। इसका अध्ययन करने के द्वारा हम यहोवा के न्याय और धार्मिकता के मार्ग सीख सकते हैं और उसका अनुकरण कर सकते हैं।—रोमियों १५:४.
न्यायप्रिय फिर भी दयालु
३, ४. सदोम और अमोरा को नाश करने में यहोवा सही क्यों था?
३ सदोम और अमोरा पर ईश्वरीय दण्ड यहोवा के न्याय के अनेक गुणों को प्रगट करने का बेहतरीन उदाहरण है। न केवल यहोवा ने ज़रूरी दण्ड दिया बल्कि सीधे लोगों को छुटकारा भी प्रदान किया। क्या उन नगरों का विनाश करना सही था? इब्राहीम ने पहले ऐसा नहीं सोचा था, क्योंकि शायद उसे सदोम कि दुष्टता का सही अंदाज़ा नहीं था। लेकिन यहोवा ने उसे तसल्ली दी कि अगर उस नगर में सिर्फ दस धर्मी लोग भी होंगे तो वह उस नगर को नाश नहीं करेगा। इससे साफ ज़ाहिर होता है कि यहोवा का न्याय न तो जल्दबाज़ी में होता है न ही क्रूर होता है।—उत्पत्ति १८:२०-३२.
४ दो स्वर्गदूतों द्वारा किए गए मुआयने ने सदोम की नैतिक गिरावट का भारी प्रमाण दिया। जब उस नगर के लोगों, “जवानों से लेकर बूढ़ों” तक ने जाना कि दो पुरुष लूत के घर में रुके हुए हैं, तो उन्होंने उसके घर पर धावा बोल दिया क्योंकि वह उनके साथ सामूहिक रूप से समलैंगिक बलात्कार करना चाहते थे। उनकी चरित्रहीनता वाकई बहुत घिनौनी थी! बेशक उस नगर को दण्ड देना यहोवा का धर्मी फैसला था।—उत्पत्ति १९:१-५, २४, २५.
५. परमेश्वर ने लूत और उसके परिवार को सदोम से कैसे बचाया?
५ चेतावनी उदाहरण के रूप में सदोम और अमोरा के विनाश के बारे में बताने के बाद प्रेरित पतरस ने लिखा: “प्रभु भक्तों को परीक्षा में से निकाल लेना . . . जानता है।” (२ पतरस २:६-९) अगर सदोम के उन अधर्मी लोगों के साथ धर्मी लूत और उसके परिवार का भी सफाया हो गया होता तो इसे न्याय नहीं कहा जा सकता था। इसलिए, यहोवा के स्वर्गदूतों ने लूत को आनेवाले इस विनाश से खबरदार किया। जब लूत विलंब करने लगा, तब स्वर्गदूतों ने “यहोवा की दया” से उसको, उसकी पत्नी और उसकी बेटियों को हाथ पकड़कर नगर से बाहर कर दिया। (उत्पत्ति १९:१२-१६) हम निश्चित हो सकते हैं कि दुष्टों के आनेवाले विनाश में यहोवा इसी तरह धर्मियों के लिए चिंता दिखाएगा।
६. हमें इस दुष्ट रीति-व्यवस्था के आनेवाले विनाश के बारे में हद-से-ज़्यादा चिंता क्यों नहीं करनी चाहिए?
६ हालाँकि इस व्यवस्था का अंत “पलटा लेने” का समय होगा, फिर भी हमें हद-से-ज़्यादा चिंता करने की ज़रूरत नहीं। (लूका २१:२२) जो न्याय परमेश्वर अरमगिदोन में करेगा वह “पूरी रीति से धर्ममय” ठहरेगा। (भजन १९:९) जैसा इब्राहीम ने भरोसा रखना सीखा, हम भी यहोवा के न्याय पर पूरा-पूरा भरोसा रख सकते हैं, क्योंकि उसका न्याय वाकई हमारे न्याय से कहीं ज़्यादा श्रेष्ठ है। इब्राहीम ने पूछा: “क्या सारी पृथ्वी का न्यायी न्याय न करे[गा]?” (उत्पत्ति १८:२५. अय्यूब ३४:१० से तुलना कीजिए।) या जैसा यशायाह उचित रूप से कहता है: “किस ने [यहोवा को] समझाकर न्याय का पथ बता दिया?”—यशायाह ४०:१४.
मानवजाति को बचाने के लिए धर्म का एक काम
७. परमेश्वर के न्याय और उसकी दया के बीच क्या संबंध है?
७ परमेश्वर का न्याय सिर्फ दुष्टों को नाश करने के तरीके से प्रकट नहीं होता है। यहोवा अपनी पहचान “धर्मी और उद्धारकर्त्ता ईश्वर” के रूप में कराता है। (यशायाह ४५:२१) साफ तौर पर, परमेश्वर की धार्मिकता या न्याय और मनुष्यजाति को पाप के प्रभावों से बचाने की उसकी इच्छा के बीच बहुत गहरा संबंध है। इस पाठ पर टिप्पणी करते हुए, द इंटरनैश्नल स्टैंडर्ड बाइबल एनसाइक्लोपीडिया का १९८२ का संस्करण बताता है कि “परमेश्वर का न्याय उसकी दया को पूरी तरह दिखाने और उसके उद्धार को पूरा करने की खोज में रहता है।” यह नहीं कि परमेश्वर के न्याय को दया से नरम बनाने की ज़रूरत है बल्कि यह कि परमेश्वर का न्याय दया से ज़ाहिर होता है। मनुष्यजाति के उद्धार के लिए छुड़ौती का प्रबंध परमेश्वर के न्याय के इस गुण का सबसे बेहतरीन उदाहरण है।
८, ९. (क) ‘एक धर्म के काम’ में क्या शामिल था? क्यों? (ख) यहोवा हमसे क्या माँग करता है?
८ छुड़ौती बलिदान की कीमत ही—परमेश्वर के एकलौते पुत्र, यीशु मसीह की कीमती ज़िंदगी—बहुत ज़्यादा थी, क्योंकि यहोवा के स्तर सब पर लागू होते हैं और वह खुद भी इनका पालन करता है। (मत्ती २०:२८) आदम ने एक सिद्ध जीवन खोया था, तो आदम की संतान की ज़िंदगी के लिए एक सिद्ध जीवन छुड़ौती में दिया जाना था। (रोमियों ५:१९-२१) प्रेरित पौलुस यीशु के खराई के जीवन को, जिसमें उसका छुड़ौती का बलिदान देना भी शामिल है, “एक धर्म का काम” कहता है। (रोमियों ५:१८) ऐसा क्यों है? क्योंकि यहोवा परमेश्वर की नज़रों में मनुष्यजाति के लिए छुड़ौती देना सही और न्याय का काम था, चाहे उसे इसके लिए भारी कीमत ही क्यों न चुकानी पड़ती। आदम की संतान “कुचले हुए सरकण्डे” के समान थी, जिसे परमेश्वर ने तोड़ना नहीं चाहा, या “धूआं देती हुई बत्ती” के समान थी जिसे उसने बुझाना नहीं चाहा। (मत्ती १२:२०) परमेश्वर को पूरा यकीन था कि आदम की संतान में से अनेक वफादार स्त्री-पुरुष निकलेंगे।—मत्ती २५:३४ से तुलना कीजिए।
९ प्रेम और न्याय के इस बेमिसाल काम के बदले में हमें क्या करना चाहिए? यहोवा हमसे एक माँग करता है कि हम “न्याय से काम” करें। (मीका ६:८) हम ऐसा कैसे कर सकते हैं?
यत्न से न्याय करो, धर्म का पीछा करो
१०. (क) एक तरीका क्या है जिसके द्वारा हम न्याय से काम करते हैं? (ख) हम पहले परमेश्वर के धर्म का पीछा कैसे कर सकते हैं?
१० सबसे पहली बात हमें परमेश्वर के नैतिक स्तरों के मुताबिक चलना चाहिए। क्योंकि परमेश्वर के स्तर खरे और धर्मी हैं, तो इनके मुताबिक जीवन बिताने से हम न्याय से काम करते हैं। यहोवा अपने लोगों से यही उम्मीद रखता है। यहोवा ने इस्राएलियों से कहा, “भलाई करना सीखो; यत्न से न्याय करो।” (यशायाह १:१७) यीशु ने अपने पहाड़ी उपदेश में अपने सुननेवालों को यही सलाह दी, जब उसने उन्हें ‘पहिले परमेश्वर के राज्य और धर्म की खोज करने’ का निर्देश दिया। (मत्ती ६:३३) पौलुस ने तीमुथियुस को ‘धर्म का पीछा करने’ के लिए प्रोत्साहित किया। (१ तीमुथियुस ६:११) जब हम चालचलन में परमेश्वर के स्तरों के मुताबिक जीते हैं और नए व्यक्तित्व को धारण करते हैं, तब हम सच्चे न्याय और धर्म का पीछा कर रहे होते हैं। (इफिसियों ४:२३, २४) दूसरे शब्दों में हम परमेश्वर के मार्गों के मुताबिक काम करके यत्न से न्याय कर रहे होते हैं।
११. हमें पाप के अधिकार के खिलाफ क्यों और कैसे लड़ना चाहिए?
११ जैसा हम सब जानते हैं कि असिद्ध इंसानों के लिए हमेशा न्यायसंगत और सही काम करना आसान नहीं होता। (रोमियों ७:१४-२०) पौलुस ने रोम के मसीहियों को पाप के अधिकार के खिलाफ लड़ने का प्रोत्साहन दिया, ताकि वे अपने समर्पित शरीर को “धर्म के हथियार” के रूप में परमेश्वर को सौंप सकें जिससे ये परमेश्वर के उद्देश्य को पूरा करने में उसके काम आ सकेंगे। (रोमियों ६:१२-१४) इसी तरह, परमेश्वर के वचन का नियमित अध्ययन करने और उसे लागू करने से हम “प्रभु की शिक्षा” को समझ सकते हैं और “धर्म की शिक्षा” पा सकते हैं।—इफिसियों ६:४; २ तीमुथियुस ३:१६, १७.
१२. हमें किस बात से दूर रहना चाहिए अगर हमें दूसरों के साथ उसी तरह बर्ताव करना है जिस तरह हम चाहते हैं कि यहोवा हमसे बर्ताव करे?
१२ दूसरी बात, जब हम दूसरों के साथ उसी तरह बर्ताव करते हैं जिस तरह हम चाहते हैं कि यहोवा हमसे बर्ताव करे, तब हम न्याय से काम करते हैं। दोहरे स्तर रखना आसान है—अपने लिए नरमी दूसरों के लिए सख्ती। हम अपनी गलतियों के लिए तुरंत बहाने बनाने लगते हैं, जबकि हम दूसरों की गलतियाँ बताने में देर नहीं लगाते, चाहे वह हमारी गलतियों के मुकाबले राई के दाने के बराबर ही क्यों न हों। यीशु ने साफ-साफ पूछा: “तू क्यों अपने भाई की आंख के तिनके को देखता है, और अपनी आंख का लट्ठा तुझे नहीं सूझता?” (मत्ती ७:१-३) हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि अगर यहोवा हमारे अपराधों की जाँच करे तो हममें से कोई भी उसके सामने निर्दोष नहीं ठहर सकता। (भजन १३०:३, ४) अगर यहोवा का न्याय हमारे भाई की कमज़ोरियों की आलोचना नहीं करता तो हम उन पर दोष लगानेवाले कौन होते हैं?—रोमियों १४:४, १०.
१३. एक धर्मी व्यक्ति राज्य के सुसमाचार का प्रचार करने के लिए बाध्य क्यों महसूस करता है?
१३ तीसरी बात, जब हम प्रचार के कार्य में मेहनत करते हैं तब हम ईश्वरीय न्याय प्रदर्शित करते हैं। यहोवा हमें सीख देता है, “जिनका भला करना चाहिये, यदि तुझ में शक्ति रहे, तो उनका भला करने से न रुकना।” (नीतिवचन ३:२७) परमेश्वर ने जो जीवनदायक ज्ञान हमें इतनी उदारता से दिया है उसे अपने तक ही रखना सही नहीं होगा। सच है कि अनेक लोग हमारे संदेश को ठुकरा देते हैं, लेकिन जब तक परमेश्वर की दया उन पर बनी रहती है, तब तक हमें उन्हें “मन फिराव” का अवसर देने के लिए तैयार रहना चाहिए। (२ पतरस ३:९) और यीशु की तरह, किसी व्यक्ति की न्याय और धार्मिकता के मार्ग पर आने में मदद करने पर हम आनंदित होते हैं। (लूका १५:७) अभी हमारे पास ‘धर्म का बीज बोने’ का सही समय है।—होशे १०:१२.
‘न्याय से हुकूमत करनेवाले राजकुमार’
१४. न्याय के संबंध में प्राचीन क्या भूमिका निभाते हैं?
१४ हम सभी को धार्मिकता के मार्ग पर चलना चाहिए, लेकिन मसीही कलीसिया में प्राचीनों की इस मामले में खास ज़िम्मेदारी है। यीशु का राजा के तौर पर शासन ‘न्याय और धर्म के द्वारा स्थिर रहता है।’ इसी तरह परमेश्वर का न्याय प्राचीनों का आदर्श है। (यशायाह ९:७) यशायाह ३२:१ में की गई भविष्यवाणी को वे मन में रखते हैं “देखो, एक राजा धर्म से राज्य करेगा, और राजकुमार न्याय से हुकूमत करेंगे।” आत्मा द्वारा नियुक्त किए गए ओवरसियरों, या ‘परमेश्वर के भण्डारियों’ के रूप में प्राचीनों को परमेश्वर के तरीकों के अनुसार काम करना चाहिए।—तीतुस १:७.
१५, १६. (क) प्राचीन, यीशु के दृष्टांत के वफादार चरवाहे का कैसे अनुकरण करते हैं? (ख) प्राचीन उन लोगों के बारे में कैसा महसूस करते हैं जो आध्यात्मिक रूप से भटक गए हैं?
१५ यीशु ने दिखाया कि यहोवा का न्याय तरस खानेवाला, दयालु और संतुलित था। सबसे बढ़कर उसने मुश्किलों से घिरे उन लोगों की मदद करने की और “खोए हुओं को ढूंढ़ने और उन का उद्धार करने” की कोशिश की। (लूका १९:१०) यीशु के दृष्टांत के चरवाहे की तरह जो अपनी खोई हुई भेड़ को तब तक ढूँढ़ता है जब तक वह मिल नहीं जाती, प्राचीन भी उन लोगों को खोजते हैं जो आध्यात्मिक रूप से भटक गए हैं और उन्हें वापस झुण्ड में लाने का प्रयत्न करते हैं।—मत्ती १८:१२, १३.
१६ जिन लोगों ने शायद गंभीर पाप किए थे उनको दोषी ठहराने के बजाय प्राचीन उन्हें चंगा करने और अगर मुमकिन हो तो पश्चाताप की ओर ले जाने की कोशिश करते हैं। जब वे ऐसे किसी व्यक्ति की मदद कर पाते हैं जो भटक गया था तब वे आनंदित होते हैं। लेकिन जब पाप करनेवाला कोई व्यक्ति पश्चाताप नहीं दिखाता तो उन्हें दुःख होता है। तब परमेश्वर के धर्मी स्तर उनसे यह माँग करते हैं कि पश्चाताप न दिखानेवाले ऐसे व्यक्ति को बहिष्कृत कर दें। इसके बावजूद भी उड़ाऊ पुत्र के पिता की तरह वे उम्मीद करते हैं कि एक दिन पाप करनेवाला यह व्यक्ति ‘अपने आपे में’ आएगा। (लूका १५:१७, १८) इसलिए प्राचीन खुद कुछ बहिष्कृत लोगों के पास जाते हैं ताकि उन्हें याद दिला सकें कि वे यहोवा के संगठन में कैसे वापस आ सकते हैं।a
१७. गलत कार्य के किसी मामले से निपटते वक्त प्राचीनों का क्या लक्ष्य होता है, और इस लक्ष्य तक पहुँचने में कौन-सा गुण उनकी मदद करेगा?
१७ प्राचीनों को खासतौर पर गलत कार्यों के मामलों से निपटते वक्त यहोवा के न्याय का अनुकरण करना चाहिए। पापी मनुष्य यीशु के “पास आया करते थे” क्योंकि उन्हें लगता था कि वह उन्हें समझेगा और उनकी मदद करेगा। (लूका १५:१; मत्ती ९:१२, १३) बेशक यीशु गलत कार्यों को अनदेखा नहीं कर रहा था। यीशु के साथ एक बार खाना खाने से जक्कई जैसा एक ज़ालिम महसूल लेनेवाला इंसान पश्चाताप करने और दूसरों को उसने जो भी तकलीफ पहुँचाई थी उसकी भरपाई करने के लिए प्रेरित हुआ। (लूका १९:८-१०) आज प्राचीनों के सामने भी न्यायिक सुनवाई के समय यही लक्ष्य रहता है—गलत कार्य करनेवाले को पश्चाताप की ओर ले जाना। अगर उन तक यीशु की तरह आसानी से पहुँचा जा सकता है, तो गलत कार्य करनेवाले अनेक लोग उनकी मदद लेना आसान पाएँगे।
१८. प्राचीनों को “आंधी से छिपने का स्थान” बनने में कौन-सी बात मदद करेगी?
१८ एक संवेदनशील हृदय प्राचीनों को ईश्वरीय न्याय करने में मदद देगा, यह न्याय कठोर नहीं होता न ही बेरहम। दिलचस्पी की बात है कि एज्रा ने इस्राएलियों को न्याय सिखाने के लिए सिर्फ अपना दिमाग ही नहीं बल्कि अपना हृदय भी लगाया। (एज्रा ७:१०) समझवाला हृदय प्राचीनों को सही शास्त्रीय सिद्धांत लागू करने के योग्य बनाएगा और वे हर व्यक्ति की परिस्थितियों पर ध्यान देंगे। जब यीशु ने उस स्त्री को चंगा किया जिसे लहू बहने का रोग था, उसने दिखाया कि यहोवा के न्याय का मतलब है व्यवस्था का असली मकसद और अंदरूनी समझ जानकर उसके नियमों का पालन करना। (लूका ८:४३-४८) ऐसे प्राचीन जो दया के साथ न्याय करते हैं वे उन लोगों के लिए ‘आंधी से छिपने के स्थान’ की तरह हैं जो अपनी कमज़ोरियों या इस दुष्ट व्यवस्था के मारे हुए हैं।—यशायाह ३२:२.
१९. परमेश्वर के न्याय का अनुभव करने पर एक बहन ने क्या कहा?
१९ एक बहन जिसने एक गंभीर पाप किया था उसने खुद परमेश्वर के न्याय का अनुभव किया। उसने माना, “सच कहूँ तो मैं प्राचीनों के पास जाने से डरती थी। लेकिन उन्होंने मुझ पर दया दिखाई और इज़्ज़त के साथ पेश आए। वे प्राचीन पिता की तरह थे, कठोर न्यायियों की तरह नहीं। उन्होंने मुझे समझाया कि अगर मैं अपने गलत कार्यों को सुधारने का निश्चय करती हूँ तो यहोवा मुझे नहीं छोड़ेगा। मैंने खुद महसूस किया कि एक प्रेमी पिता की तरह यहोवा हमें कैसे अनुशासन देता है। मैं यहोवा के सामने अपना दिल खोल सकी और मुझे विश्वास था कि वह मेरी बिनती को सुनेगा। गुज़रे वक्त पर नज़र डालने से मैं सच कहती हूँ कि सात साल पहले प्राचीनों से मिलना वाकई यहोवा की ओर से एक आशीष थी। तब से यहोवा के साथ मेरा संबंध और भी गहरा हो गया है।”
न्याय और धार्मिकता के काम कीजिए
२०. न्याय और धर्म को समझ पाने और उसके अनुसार काम करने के क्या-क्या फायदे हैं?
२० हमें शुक्रगुज़ार होना चाहिए कि परमेश्वर के न्याय का मतलब है, एक इंसान के हक से उसे ज़्यादा देना। यहोवा ने अपने न्याय की वज़ह से विश्वास करनेवालों को अनंत जीवन प्रदान किया। (भजन १०३:१०; रोमियों ५:१५, १८) परमेश्वर हमसे इस तरीके से बर्ताव करता है क्योंकि उसका न्याय हमारी परिस्थितियों को ध्यान में रखता है और दण्ड देने के बजाय बचाने की कोशिश करता है। वाकई यहोवा के न्याय की विशालता की अच्छी समझ हमें उसके और करीब ले आती है। अगर हम उसके व्यक्तित्व के इस गुण का अनुकरण करने का कड़ा प्रयास करते हैं तो हमारे साथ-साथ दूसरों के जीवन में भी आशीषें आएँगी। न्याय से काम करने की हमारी कोशिश को हमारा स्वर्गीय पिता ज़रूर देखेगा। यहोवा वायदा करता है: “न्याय का पालन करो, और, धर्म के काम करो; क्योंकि मैं शीघ्र तुम्हारा उद्धार करूंगा, और मेरा धर्मी होना प्रगट होगा। क्या ही धन्य है वह मनुष्य जो ऐसा ही करता [है]।”—यशायाह ५६:१, २.
[फुटनोट]
a प्रहरीदुर्ग, फरवरी १, १९९२ पृष्ठ १८-१९ देखिए।
क्या आपको याद है?
◻ सदोम और अमोरा का विनाश हमें यहोवा के न्याय के बारे में क्या सिखाता है?
◻ छुड़ौती परमेश्वर के न्याय और प्रेम का असाधारण प्रदर्शन क्यों है?
◻ किन तीन तरीकों से हम न्याय से काम कर सकते हैं?
◻ किस खास तरीके से प्राचीन परमेश्वर के न्याय का अनुकरण कर सकते हैं?
[पेज 15 पर तसवीर]
प्रचार कार्य के द्वारा हम परमेश्वर के न्याय को प्रदर्शित करते हैं
[पेज 16 पर तसवीर]
जब प्राचीन, परमेश्वर का न्याय प्रदर्शित करते हैं, तब जिन्हें समस्याएँ होती हैं वे उनसे मदद माँगना आसान पाते हैं