तीसरा अध्याय
‘आओ, हम मामलों को सुलझा लें’
1, 2. यहोवा ने यरूशलेम और यहूदा के न्यायियों और लोगों की तुलना किससे की, और ऐसा करना सही क्यों है?
यशायाह 1:1-9 में लिखी फटकार सुनकर यरूशलेम के लोग शायद खुद को सच्चा ठहराने के लिए अपनी तरफ से सफाई पेश करना माँगें। बड़े घमंड के साथ वे उन सारे बलिदानों का हवाला दें जो उन्होंने यहोवा के लिए चढ़ाए थे। मगर हम आयत 10 से 15 में पढ़ते हैं कि ऐसा नज़रिया रखनेवालों को यहोवा ने धिक्कारते हुए क्या जवाब दिया: “हे सदोम के न्याइयो, यहोवा का वचन सुनो! हे अमोरा की प्रजा, हमारे परमेश्वर की शिक्षा पर कान लगा!”—यशायाह 1:10.
2 सदोम और अमोरा के लोगों का नाश सिर्फ इसलिए नहीं हुआ था कि वे घृणित लैंगिक भोग-विलास के आदी हो चुके थे, मगर उनके मन की कठोरता और उनका घमंड भी इसकी एक वजह था। (उत्पत्ति 18:20,21; 19:4,5,23-25; यहेजकेल 16:49,50) यशायाह की बात सुननेवालों को ज़रूर भारी झटका लगा होगा जब उन्होंने सुना कि वह सदोम और अमोरा जैसे श्रापित नगरों के लोगों से उनकी तुलना कर रहा है।a मगर यहोवा की नज़रों से उसके लोगों का असली रूप छिप नहीं सकता, वे असल में जैसे हैं यहोवा उसी नज़र से उन्हें देखता है और यशायाह ने भी यहोवा के कठोर संदेश को पूरी कड़ाई से सुनाया। उसने उनके “कानों की खुजली” मिटाने के लिए इसमें फेर-बदल नहीं किया।—2 तीमुथियुस 4:3.
3. यहोवा के यह कहने का क्या मतलब है कि लोगों की बलियों से ‘मैं अघा गया हूं,’ और ऐसा क्यों था?
3 यहोवा अपने इन लोगों की दिखावटी उपासना के बारे में कैसा महसूस करता है, ज़रा गौर कीजिए। “यहोवा यह कहता है, तुम्हारे बहुत से मेलबलि मेरे किस काम के हैं? मैं तो मेढ़ों के होमबलियों से और पाले हुए पशुओं की चर्बी से अघा गया हूं; मैं बछड़ों वा भेड़ के बच्चों वा बकरों के लोहू से प्रसन्न नहीं होता।” (यशायाह 1:11,12क) दरअसल यहूदा के लोग भूल गए हैं कि यहोवा उनके बलिदानों का भूखा नहीं है। (भजन 50:8-13) उसे इंसानों से कोई भी चीज़ लेने की ज़रूरत नहीं है। इसलिए ये लोग अगर सोचते हैं कि वे आधे-अधूरे मन से यहोवा को बलिदान चढ़ाकर उस पर कोई एहसान कर रहे हैं, तो यह उनकी बहुत बड़ी गलतफहमी है। यहोवा बहुत ही तीखे शब्दों का इस्तेमाल करते हुए कहता है, ‘मैं अघा गया हूं,’ इन शब्दों को यूँ भी कहा जा सकता है, ‘मैं छक चुका हूँ,’ या ‘मैं उगलने पर हूँ।’ क्या कभी ऐसा हुआ है कि आपने इतना ज़्यादा खाना खा लिया हो कि उसके बाद खाने को देखते ही आपको उबकाई आने लगे? ठीक वैसे ही यहोवा उन बलिदानों के बारे में महसूस करता था। उन्हें देखते ही उसे घिन आती थी!
4. यशायाह 1:12 इस बात का कैसे परदाफाश करता है कि लोगों का सिर्फ खानापूर्ति के लिए यरूशलेम के मंदिर में आना बेमाने था?
4 यहोवा आगे कहता है: “तुम से किसने कहा कि तुम मुझ से भेंट करने के लिए आकर मेरे आंगनों को रौंदो?” (यशायाह 1:12, NHT) मगर क्या यहोवा ने खुद ही यह नियम नहीं दिया था कि लोग ‘उससे भेंट करने आएँ’ यानी यरूशलेम के उसके मंदिर में हाज़िर हों? (निर्गमन 34:23,24) जी हाँ, परमेश्वर ने यह नियम दिया तो था, मगर इस्राएली लोग, शुद्ध उपासना करने का महज़ दिखावा करने के लिए ही मंदिर आते थे, जबकि उनके मन अशुद्ध थे। उनका बार-बार मंदिर में आना सिर्फ एक खानापूर्ति थी, इसलिए यहोवा की नज़रों में यह मंदिर के आँगन को ‘रौंदने’ से ज़्यादा और कुछ नहीं था।
5. यहूदी उपासना में कैसे-कैसे काम कर रहे थे, और ये यहोवा के लिए क्यों एक “भारी भरकम बोझ” बन चुके थे?
5 इसलिए कोई ताज्जुब नहीं कि यहोवा अब और कड़ाई से बात करता है! “बेकार की [अन्न] बलियाँ तुम मुझे मत चढ़ाते रहो। जो सुगंधित सामग्री तुम मुझे अर्पित करते हो, मुझे उससे घृणा है। नये चाँद की दावतें, विश्राम और सब्त मुझ से सहन नहीं हो पाते। अपनी पवित्र सभाओं के बीच जो बुरे कर्म तुम करते हो, मुझे उनसे घृणा है। तुम्हारी मासिक बैठकों और सभाओं से मुझे अपने सम्पूर्ण मन से घृणा है। ये सभाएँ मेरे लिये एक भारी भरकम बोझ सी बन गयी है और इन बोझों को उठाते उठाते अब मैं थक चुका हूँ।” (यशायाह 1:13,14, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) अन्नबलियाँ, सुगंधित साम्रगी यानी धूप, विश्रामदिन और पवित्र सभाएँ, ये सब परमेश्वर की कानून-व्यवस्था का ही हिस्सा थे। और जहाँ तक “नये चाँद” की बात है, तो व्यवस्था में बस इतना ही कहा गया था कि इन्हें मनाया जाना चाहिए। मगर वक्त के बीतते, इस त्योहार के साथ कुछ ऐसी परंपराएँ जुड़ती गईं जो अच्छी थीं। (गिनती 10:10; 28:11) हर महीने के नये चाँद को विश्रामदिन माना जाता था। लोग उस दिन कोई मेहनत का काम नहीं करते थे। इसके बजाय, वे भविष्यवक्ताओं और याजकों के पास जाकर उनका उपदेश सुनते थे। (2 राजा 4:23; यहेजकेल 46:3; आमोस 8:5) ये सब करने में कोई बुराई नहीं थी। मगर बुराई यह थी कि अब लोग सिर्फ दिखावे के लिए ही ये सारे काम कर रहे थे। और-तो-और, जहाँ एक तरफ यहूदी परमेश्वर की व्यवस्था का पालन करने का दिखावा कर रहे थे, वहीं दूसरी तरफ इसकी आड़ में वे भूतविद्या जैसे “बुरे कर्म” भी कर रहे थे।b इसलिए, उनकी उपासना यहोवा के लिए एक “भारी भरकम बोझ” बन चुकी थी।
6. यहोवा किस अर्थ में “थक” चुका है?
6 मगर, क्या यहोवा भी कभी “थक” सकता है? उसके बारे में तो कहा गया है कि वह “सामर्थी और अत्यन्त बली है . . . वह न थकता, न श्रमित होता है।” (यशायाह 40:26,28) दरअसल, इन शब्दों का इस्तेमाल करके यहोवा हमें समझाना चाहता है कि उसे कैसा महसूस हो रहा है। क्या आपने कभी बहुत देर तक ऐसा भारी बोझ उठाया है कि आपका सारा शरीर कँपकँपाने लगा हो और आप उस बोझ को उतार फेंकना चाहते हों? जब यहोवा के लोग महज़ दिखावे के लिए उसकी उपासना करने का ढोंग करते हैं तो उसे भी ठीक ऐसा ही महसूस होता है।
7. यहोवा ने अपने लोगों की प्रार्थनाएँ सुनना बंद क्यों कर दिया है?
7 अब यहोवा उपासना के उस काम का ज़िक्र करता है जो सभी पहलुओं से ज़्यादा निजी और गहरा होता है। “जब तुम मेरी ओर हाथ फैलाओ, तब मैं तुम से मुख फेर लूंगा; तुम कितनी ही प्रार्थना क्यों न करो, तौभी मैं तुम्हारी न सुनूंगा; क्योंकि तुम्हारे हाथ खून से भरे हैं।” (यशायाह 1:15) हाथ ऊपर उठाकर, खुली हथेलियाँ स्वर्ग की तरफ करके खड़े होने की मुद्रा का यह मतलब है कि एक इंसान परमेश्वर से बिनती या प्रार्थना कर रहा है। लेकिन अब उसके लोगों की यह मुद्रा यहोवा के सामने बेमाने हो गई है, क्योंकि उनके हाथ खून से रंगे हैं। देश में हर तरफ हिंसा और अत्याचार हो रहा है। जहाँ देखो वहाँ कमज़ोरों पर ज़ुल्म ढाया जा रहा है। उस पर, ऐसा दुर्व्यवहार करनेवाले स्वार्थी लोगों का यहोवा से प्रार्थना करके उससे आशीष माँगना? कितने शर्म की बात है! इसमें कोई ताज्जुब नहीं कि यहोवा उनसे कहता है, “मैं तुम्हारी न सुनूंगा”!
8. आज ईसाईजगत कौन-सा पाप कर रहा है और कैसे कुछ मसीही भी इस फंदे में फँस जाते हैं?
8 इन्हीं लोगों की तरह आज हमारे दिनों का ईसाईजगत है। वह सिर्फ दिखावे के लिए अपनी बेकार की लंबी रटी-रटाई प्रार्थनाएँ करके और धर्म-कर्म के दूसरे “काम” करके परमेश्वर को खुश करने में कामयाब नहीं हो सका है। (मत्ती 7:21-23) इसलिए हमें बहुत सावधान रहने की ज़रूरत है कि कहीं हम भी सिर्फ दिखावे के लिए उपासना करने के फंदे में न फँस जाएँ। क्योंकि हो सकता है कि एक मसीही गंभीर पाप करने लगे और सोचे कि अगर वह अपने पाप को छिपाए रखे और बस कलीसिया में और ज़्यादा सेवा करने लगे तो उसके पाप खुद-ब-खुद किसी तरह धुल जाएंगे। सेवा के ऐसे दिखावटी काम यहोवा को कतई पसंद नहीं हैं। यह एक ऐसी आध्यात्मिक बीमारी है जिसका सिर्फ एक ही इलाज है, और वही यशायाह की अगली आयतें बताती हैं।
आध्यात्मिक बीमारी का इलाज
9, 10. यहोवा की उपासना में शुद्धता रखना कितना ज़रूरी है?
9 यहोवा तो दया का सागर है, इसलिए अब फिर वह कड़े शब्दों के बजाय प्यार से समझाने की कोशिश करता है। “तुम अपने को धोओ; अपने को शुद्ध करो; मेरी आंखों के सामने से अपने कुकर्मों को दूर करो। तुम बुराई करना छोड़ दो, पर भलाई करना सीखो। न्याय के लिए प्रयत्न करो; अत्याचारी को सुधारो; अनाथ को न्याय दिलाओ, और विधवाओं का पक्ष लो।” (यशायाह 1:16,17, नयी हिन्दी बाइबिल) यहाँ एक-के-बाद-एक नौ आदेश या आज्ञाएँ दी गयी हैं। पहली चार आज्ञाएँ मनाही करती हैं यानी गलत कामों को रोकने या छोड़ने के बारे में कहती हैं; और आखिरी पाँच आज्ञाएँ कुछ करने के बारे में कहती हैं यानी ऐसे अच्छे काम जिनसे यहोवा की आशीष मिलती है।
10 धोना और सफाई रखना हमेशा से शुद्ध उपासना का एक ज़रूरी हिस्सा रहा है। (निर्गमन 19:10,11; 30:20; 2 कुरिन्थियों 7:1) मगर यहोवा चाहता है कि उसकी उपासना करनेवाले सिर्फ ऊपर-ऊपर से नहीं बल्कि अपने दिल की गहराई तक साफ और शुद्ध हों। इसके लिए नैतिक और आध्यात्मिक रीति से शुद्ध होना सबसे ज़रूरी है और इसी शुद्धता का ज़िक्र यहोवा ने यहाँ किया है। आयत 16 में पहली दो आज्ञाएँ एक ही बात को दोहराने के लिए नहीं कही गई हैं। इब्रानी व्याकरण के एक विद्वान कहते हैं कि पहली आज्ञा “अपने को धोओ,” का मतलब है खुद को गंदगी से शुद्ध करने का पहला कदम उठाना, जबकि दूसरी आज्ञा “अपने को शुद्ध करो” का मतलब है अपनी शुद्धता को कायम रखने के लिए लगातार कोशिश करना।
11. पाप को दूर करने के लिए हमें क्या करना चाहिए, और क्या नहीं?
11 हम यहोवा की नज़रों से कुछ नहीं छिपा सकते। (अय्यूब 34:22; नीतिवचन 15:3; इब्रानियों 4:13) इसलिए जब वह आज्ञा देता है, “मेरी आंखों के सामने से अपने कुकर्मों को दूर करो,” तो इसका सिर्फ एक ही मतलब होता है कि हम पूरी तरह बुराई करना छोड़ दें। इसका मतलब है कि हम गंभीर पापों को छिपाने की कोशिश न करें, क्योंकि ऐसा करना ही अपने आप में एक पाप है। नीतिवचन 28:13 हमें खबरदार करता है: “जो अपने अपराध छिपा रखता है, उसका कार्य सुफल नहीं होता, परन्तु जो उनको मान लेता और छोड़ भी देता है, उस पर दया की जायेगी।”
12. (क) ‘भलाई करना सीखना’ क्यों ज़रूरी है? (ख) खास तौर पर प्राचीन ‘न्याय के लिए प्रयत्न करने’ और ‘अत्याचारी को सुधारने’ के आदेशों का कैसे पालन कर सकते हैं?
12 यशायाह 1:17 में यहोवा ने जो अच्छे काम करने की आज्ञा दी है उससे हम काफी कुछ सीख सकते हैं। ध्यान दीजिए कि वह सिर्फ यह नहीं कहता कि “भलाई करो” बल्कि यह कि “भलाई करना सीखो।” (तिरछे टाइप हमारे।) परमेश्वर की नज़र में भलाई क्या है, यह समझने और उसके मुताबिक काम करने के लिए, परमेश्वर के वचन बाइबल का निजी अध्ययन करना बहुत ज़रूरी है। इसके अलावा, यहोवा सिर्फ यह नहीं कह रहा कि “न्याय करो” बल्कि यह कि “न्याय के लिए प्रयत्न करो।” (तिरछे टाइप हमारे।) यहाँ तक कि अनुभवी प्राचीनों को भी कई पेचीदा मामलों में सही न्याय करने के लिए, परमेश्वर के वचन में अच्छी तरह खोजबीन करने का प्रयत्न करने की ज़रूरत है। यहोवा की इस आज्ञा के मुताबिक, उन पर ‘अत्याचारी को सुधारने’ की ज़िम्मेदारी भी है। इसलिए आज ये आदेश मसीही चरवाहों के लिए बहुत महत्त्व रखते हैं क्योंकि वे ‘फाड़नेवाले भेड़ियों’ से झुंड की रक्षा करना चाहते हैं।—प्रेरितों 20:28-30.
13. अनाथों और विधवाओं के बारे में दी गयी आज्ञाओं को हम आज कैसे लागू कर सकते हैं?
13 आखिरी दो आज्ञाएँ परमेश्वर के लोगों में कमज़ोर और दुःखी लोगों यानी अनाथों और विधवाओं के बारे में हैं। दुनिया तो इस ताक में बैठी है कि कैसे इन लोगों का फायदा उठाया जाए, लेकिन परमेश्वर के लोगों के बीच ऐसा नहीं होना चाहिए। प्यार करनेवाले मसीही प्राचीन, कलीसिया में अनाथ लड़के और लड़कियों को ऐसी दुनिया में ‘न्याय दिलाते’ और उनकी हिफाज़त करते हैं, जहाँ लोग उनका नाजायज़ फायदा उठाने और उन्हें भ्रष्ट करने की फिराक में रहते हैं। प्राचीन, ‘विधवाओं का पक्ष लेते हैं’ और जैसे इस इब्रानी शब्द का दूसरा अर्थ है, उनके लिए “संघर्ष” करते हैं। बेशक, सभी मसीहियों में यह भावना होनी चाहिए कि हमारे ज़रूरतमंद भाई-बहनों के लिए सहारा बनें, उन्हें शांति पहुँचाएँ और न्याय दिलाएँ क्योंकि वे यहोवा की नज़रों में अनमोल हैं।—मीका 6:8; याकूब 1:27.
14. यशायाह 1:16,17 में हिम्मत बढ़ानेवाला कौन-सा संदेश दिया गया है?
14 इन नौ आज्ञाओं के ज़रिये यहोवा ने कितना साफ और हिम्मत बढ़ानेवाला संदेश दिया है! जो लोग पाप के फँदे में फँस जाते हैं, वे कभी-कभी खुद को यह यकीन दिला लेते हैं कि सही काम करना उनके बस के बाहर है। ऐसी सोच इंसान की हिम्मत तोड़ देती है। और इस तरह सोचना ही गलत है। यहोवा जानता है, और वह चाहता है कि हम भी यह जान लें कि उसकी मदद से कोई भी पापी अपने पाप के बुरे मार्ग को छोड़कर, पश्चाताप करके, सही रास्ते पर आ सकता है।
करुणा से भरी, एक मुनासिब अपील
15. ‘आओ, हम आपस में मामलों को सुलझा लें,’ इन शब्दों का अकसर कौन-सा गलत अर्थ निकाला जाता है, और इनका असल में क्या मतलब है?
15 अब यहोवा की आवाज़ में पहले से ज़्यादा प्यार और करुणा है। “यहोवा कहता है, ‘अब आओ, लोगो, हम आपस में मामलों को सुलझा लें। चाहे तुम लोगों के पाप किरमिजी रंग के हों, तौभी वे हिम की तरह श्वेत किए जाएंगे; चाहे वे गहरे लाल रंग के कपड़े की तरह हों, वे ऊन की तरह उजले हो जाएंगे।’” (यशायाह 1:18, NW) दिल को छू लेनेवाली इस बेहतरीन आयत की शुरूआत में दिए गए यहोवा के बुलावे का अकसर गलत अर्थ निकाला जाता है। मिसाल के तौर पर, हिन्दी बाइबल कहती है, “आओ, हम आपस में वादविवाद करें।” इससे ऐसा लगता है मानो एक समझौते तक पहुँचने के लिए दोनों पक्षों को थोड़ा-थोड़ा झुकना पड़ेगा। मगर यहोवा को झुकने की कोई ज़रूरत नहीं! अपने विद्रोही और कपटी लोगों के साथ व्यवहार करते वक्त यहोवा ने ऐसा कोई काम नहीं किया जिसकी वजह से उसे झुकना पड़े। (व्यवस्थाविवरण 32:4,5) इस आयत में बतायी गयी बहस, बराबर दर्जे के दो लोगों के बीच की बातचीत नहीं है, बल्कि एक अदालती कार्यवाही है जिसमें न्याय किया जाना है। मानो, यहोवा इस अदालत में इस्राएल को, अपनी तरफ से सफाई पेश करने की चुनौती दे रहा है।
16, 17. हम कैसे जानते हैं कि यहोवा गंभीर से गंभीर पापों को भी क्षमा करने के लिए तैयार है?
16 यहोवा के साथ मुकद्दमा लड़ने की बात सोचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं, मगर यहोवा सबसे दयालु और करुणामयी न्यायाधीश है। उसकी तरह क्षमा करनेवाला और कोई नहीं। (भजन 86:5) सिर्फ वही इस्राएल के “किरमिजी रंग” जैसे गहरे पापों को धोकर “हिम की तरह श्वेत” कर सकता है। इंसान की अपनी किसी भी कोशिश, जतन या विधि, बलिदान या प्रार्थना से उसके माथे पर लगा पाप का कलंक नहीं धोया जा सकता। केवल यहोवा की क्षमा से ही पाप धुल सकता है। मगर इसके लिए कुछ शर्तें भी हैं। उनमें से एक यह है कि हम अपने पापों को छोड़ दें और दिल से सच्चा पछतावा दिखाएँ।
17 इस बात की अहमियत को समझाने के लिए यहोवा यही बात दूसरे शब्दों में दोहराता है—“गहरे लाल” रंग के पाप, नई ऊन के समान उजले हो जाएँगे। यहोवा हमें बताना चाहता है कि वह वाकई पापों का क्षमा करनेवाला क्षमाशील परमेश्वर है। अगर हम सच्चे दिल से पश्चाताप करें तो वह गंभीर से गंभीर पापों को भी क्षमा कर सकता है। जिन लोगों को लगता है कि उनके पाप इतने गंभीर हैं कि यहोवा उन्हें कभी माफ नहीं करेगा, उन्हें राजा मनश्शे जैसी मिसालों पर गौर करना चाहिए। मनश्शे ने बरसों तक बहुत ही घिनौने पाप किए थे। मगर जब उसने पश्चाताप किया तो उसे माफ किया गया। (2 इतिहास 33:9-16) ऐसे पापियों के साथ-साथ हम सभी को यहोवा यह बता देना चाहता है, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए अभी वक्त रहते उसके पास आकर ‘आपस में मामले सुलझा लें।’
18. यहोवा ने बलवा करनेवाले अपने लोगों को कौन-सा चुनाव करने के लिए कहा?
18 यहोवा अपने लोगों को याद दिलाता है कि उनके पास चुनने का मौका है। “यदि तुम आज्ञाकारी होकर मेरी मानो, तो इस देश के उत्तम उत्तम पदार्थ खाओगे; और यदि तुम न मानो और बलवा करो, तो तलवार से मारे जाओगे; यहोवा का यही वचन है।” (यशायाह 1:19,20) अपनी बात समझाने के लिए यहोवा ज़बरदस्त शब्दों का इस्तेमाल करते हुए बताता है कि उन्हें किस तरह का रवैया रखना चाहिए। यहूदा को एक फैसला करना था: या तो खाओ या खुद ही तलवार का निवाला हो जाओ। अगर वे यहोवा के आज्ञाकारी रहते और उसकी बात मानते तो वे उस देश के उत्तम-से-उत्तम पदार्थ खाते। लेकिन अगर वे बलवा करते रहते तो अपने दुश्मनों की तलवार का कौर हो जाते! क्या कभी कोई सोच सकता है कि ये लोग, क्षमा करनेवाले अपने दयालु परमेश्वर की आशीषों को ठुकराकर अपने दुश्मनों की तलवार से मरना पसंद करेंगे? मगर, यरूशलेम ने यही चुनाव किया, जैसे कि यशायाह की आगे की आयतों में बताया गया है।
प्रिय नगरी पर विलाप
19, 20. (क) किन शब्दों से यहोवा अपने साथ हुए विश्वासघात का बयान करता है? (ख) किस तरह यरूशलेम में “धार्मिकता वास [किया] करती थी”?
19 यशायाह 1:21-23 में, हम देखते हैं कि यरूशलेम की दुष्टता सारी हदें पार कर चुकी है। यशायाह अब परमेश्वर की प्रेरणा से एक शोकगीत गाता है: “विश्वासयोग्य नगरी जो न्याय से परिपूर्ण थी, कैसी व्यभिचारिणी बन गई! एक समय था जब उसमें धार्मिकता वास करती थी, परन्तु अब उसमें हत्यारे पाए जाते हैं।”—यशायाह 1:21, NHT.
20 यरूशलेम नगरी किस कदर गिर चुकी है! पहले वह विश्वासयोग्य और वफादार पत्नी जैसी थी मगर अब एक व्यभिचारिणी बन चुकी है। और किन शब्दों में यहोवा अपने साथ हुए विश्वासघात और अपनी निराशा का बयान करता? “एक समय था जब [इस नगरी में] धार्मिकता वास करती थी।” कब? इस्राएल जाति के बनने से भी पहले, इब्राहीम के दिनों में यह नगरी शालेम कहलाती थी। इस पर एक ऐसा शख्स राज करता था, जो राजा भी था और याजक भी। उसका नाम मेल्कीसेदेक था, जिसका मतलब है “धर्म का राजा।” और जैसा उसका नाम था वैसा ही वह था। (इब्रानियों 7:2; उत्पत्ति 14:18-20) मेल्कीसेदेक के 1,000 साल बाद, दाऊद और सुलैमान के राज्यों में यरूशलेम, अपने पूरे वैभव पर था। “उसमें धार्मिकता वास करती थी,” खासकर जब इस पर राज करनेवाले राजाओं ने अपनी प्रजा के सामने, यहोवा के मार्गों पर चलने की एक अच्छी मिसाल रखी। मगर यशायाह के ज़माने तक, ये सिर्फ भूली-बिसरी यादें बनकर रह गयी थीं।
21, 22. धातु के मैल और पानी मिले दाखरस का क्या मतलब है, और यहूदा के शासकों के बारे में ऐसा कहना क्यों सही है?
21 ऐसा लगता है कि काफी हद तक इस्राएल के अगुवे ही इस समस्या की जड़ हैं। यशायाह अपने शोकगीत में आगे कहता है: “तेरी चांदी धातु का मैल बन गई, तेरे दाखरस में पानी मिल गया है। तेरे शासक अन्यायी, और चोरों के साथी हैं; वे सब घूस लेते और उपहारों के पीछे भागते हैं। वे अनाथों का न्याय नहीं चुकाते, न ही विधवाओं के मुकदमे अपने पास आने देते हैं।” (यशायाह 1:22,23, NHT) दो ज़बरदस्त मिसालें देकर हमें आगे आनेवाली बातों के लिए तैयार किया जा रहा है। सुनार अपनी भट्टी में चाँदी को पिघलाता है और ऊपर आए मैल को निकालकर फेंक देता है। इस्राएल के शासक और न्यायी इस मैल की तरह हैं, न कि चाँदी की तरह। वे सिर्फ कूड़े में फेंकने लायक हैं। जैसे पानी मिला दाखरस बेकार हो जाता है, अपना स्वाद खो देता है और सिर्फ नाले में बहाने लायक रह जाता है, ठीक उसी तरह ये शासक भी हैं!
22 आयत 23 दिखाती है कि क्यों इस्राएल के शासकों के बारे में ऐसा कहा गया है। मूसा की व्यवस्था ने परमेश्वर के लोगों को सारी जातियों में श्रेष्ठ किया और उन्हें उनसे अलग रखा। मिसाल के तौर पर, व्यवस्था में अनाथों और विधवाओं की रक्षा करने की आज्ञा दी गयी थी। (निर्गमन 22:22-24) लेकिन, यशायाह के दिनों के अनाथ बच्चे न्याय पाने की ज़रा भी उम्मीद नहीं कर सकते थे। और किसी विधवा का पक्ष लेकर उसके लिए लड़ने की बात तो दूर रही, इन दुखियारियों का मुकद्दमा तक इन शासकों के पास नहीं पहुँचता था। ये न्यायी और शासक स्वार्थ में अंधे हो चुके थे। वे घूस लेते थे, उपहारों के पीछे भागते थे, चोरों के साथी थे और ज़ाहिर है कि वे इन्हीं अपराधियों की रक्षा करते थे, जो बेगुनाहों पर ज़ुल्म ढाते थे। और-तो-और वे बुराई के रास्ते पर चलते-चलते पक चुके थे और कठोर बन गए थे। ऐसे हालात को देखकर कितना दुःख होता है!
यहोवा अपने लोगों को शुद्ध करेगा
23. यहोवा ने अपने बैरियों के बारे में कैसी भावनाएँ ज़ाहिर कीं?
23 यहोवा, इस्राएल के शासकों को ताकत का गलत इस्तेमाल करने की और इजाज़त नहीं देगा। यशायाह आगे कहता है: “इस कारण सेनाओं के प्रभु यहोवा अर्थात् इस्राएल के सर्वशक्तिमान की यह वाणी है, ‘आह! मैं अवश्य अपने विरोधियों को दूर करूंगा, और अपने बैरियों से पलटा लूंगा।’” (यशायाह 1:24, NHT) यहाँ यहोवा को दी गयी दो उपाधियों के ज़रिए इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि सिर्फ उसी को दुनिया पर राज करने का हक है और उसी के पास अपार शक्ति है। यहोवा का “आह!” कहना, शायद यही दिखाता है कि उसके मन में दया के साथ-साथ अब अपना क्रोध ज़ाहिर करने का संकल्प भी पैदा हो चुका है। और उसके ऐसा करने की सही वजह भी है।
24. यहोवा अपने लोगों को शुद्ध करने के लिए क्या करेगा?
24 यहोवा के चुने हुए लोग ही उसके बैरी हो गए हैं। वे इसी लायक हैं कि परमेश्वर उनसे पलटा ले। यहोवा उन्हें अपने से ‘दूर करेगा,’ यानी उनसे पिंड छुड़ा लेगा। तो क्या इसके बाद परमेश्वर के चुने हुए लोगों का नामो-निशान सदा के लिए मिट जाएगा? हरगिज़ नहीं, क्योंकि यहोवा आगे कहता है: “मैं तुम्हारे विरुद्ध अपना हाथ भी बढ़ाकर तुम्हारा धातु का मैल मानो सज्जी से भस्म करूंगा, और तुम्हारे सम्पूर्ण खोट को दूर करूंगा।” (यशायाह 1:25, NHT) यहोवा अब धातुओं को शुद्ध करने के दृष्टांत का इस्तेमाल करता है। प्राचीन काल में, किसी कीमती धातु को शुद्ध करनेवाला अकसर उस धातु में सज्जी मिलाता था, जिससे धातु में छिपा मैल निकलकर अलग हो जाता था। उसी तरह, यहोवा अपने चुने हुए लोगों को शुद्ध करने के लिए उन्हें ‘उचित रूप से ताड़ना’ देगा, क्योंकि वह जानता है कि उनमें सभी लोग पूरी तरह से दुष्ट नहीं हैं। वह उनमें से सारे “खोट” को, यानी ऐसे हठीले और बुराई करनेवालों को दूर करेगा जो न तो उससे सीखना चाहते हैं और न ही उसकी आज्ञा मानते हैं।c (यिर्मयाह 46:28, NHT) इन शब्दों के ज़रिए यशायाह को यह अवसर मिला कि वह भविष्य में होनेवाली घटनाओं के बारे में पहले से लिख ले।
25. (क) यहोवा ने सा.यु.पू. 607 में अपने लोगों को कैसे शुद्ध किया? (ख) हमारे ज़माने में यहोवा ने अपने लोगों को कब शुद्ध किया?
25 यहोवा ने वाकई अपने लोगों को शुद्ध किया। उसने धातु का मैल यानी उनके भ्रष्ट शासकों और बलवा करनेवालों को उनसे अलग कर दिया। यह यशायाह के दिनों के काफी समय बाद, सा.यु.पू. 607 में हुआ। उसी साल यरूशलेम का विनाश हुआ और उसके निवासियों को बंधुआ बनाकर बाबुल ले जाया गया जहाँ वे 70 साल तक गुलामी में रहे। कुछ मायनों में परमेश्वर की यह कार्यवाही, बाद में की गयी उसकी एक और कार्यवाही की तरह थी। यहूदियों के बाबुल की बंधुआई से छूटने के काफी समय बाद, परमेश्वर के लोगों के शुद्ध किए जाने के बारे में एक और भविष्यवाणी लिखी गयी जो मलाकी 3:1-5 में दर्ज़ है। यह भविष्यवाणी उस वक्त के बारे में थी, जब परमेश्वर यहोवा अपने आत्मिक मंदिर में ‘वाचा के दूत’ यानी यीशु मसीह के साथ आता। सबूत दिखाते हैं कि यह भविष्यवाणी हमारे ही ज़माने में पहले विश्वयुद्ध के खत्म होने पर पूरी हुई। उस वक्त यहोवा ने उन सभी को जाँचा-परखा जो मसीही होने का दावा कर रहे थे, और सच्चे मसीहियों को झूठे मसीहियों से अलग किया। इसका नतीजा क्या हुआ?
26-28. (क) यशायाह 1:26 की भविष्यवाणी पहले कैसे पूरी हुई? (ख) यह भविष्यवाणी हमारे समय में कैसे पूरी हुई है? (ग) इस भविष्यवाणी से आज प्राचीन क्या सीख सकते हैं?
26 यहोवा जवाब देता है: “मैं पहले के समान तेरे न्यायी और पूर्वकाल के समान तेरे मंत्री पुन: नियुक्त करूंगा। इसके पश्चात् ही तू धार्मिकता की नगरी, एक विश्वासयोग्य नगरी कहलाएगी। सिय्योन न्याय के द्वारा छुड़ाई जाएगी और उसके पश्चात्तापी जन धार्मिकता के द्वारा छुड़ाए जाएंगे।” (यशायाह 1:26,27, NHT) यह भविष्यवाणी पहले प्राचीन यरूशलेम में पूरी हुई। सा.यु.पू. 537 में जब यहूदी बंधुआई से छूटकर अपने इस प्रिय नगर को लौटे, तो उनके बीच पहले की तरह वफादार न्यायी और मंत्री काम करने लगे। भविष्यवक्ता हाग्गै और जकर्याह, याजक यहोशू, शास्त्री एज्रा और अधिपति जरूब्बाबेल, ये सभी बंधुआई से लौटनेवाले वफादार यहूदियों को परमेश्वर के मार्गों पर चलते रहने में मदद और सलाह दे रहे थे। लेकिन यह भविष्यवाणी 20वीं सदी में बड़े पैमाने पर और एक खास तरीके से भी पूरी हुई है।
27 हमारे ज़माने में सन् 1919 में, यहोवा के चुने हुए लोग परखे जाने पर वफादार रहे और खरे निकले। दुनिया-भर में फैले झूठे धर्म यानी बड़े बाबुल के बंधनों से उन्हें छुड़ाया गया। अब वे आध्यात्मिक रूप से आज़ाद थे। इस छुटकारे से साफ ज़ाहिर हो गया कि परमेश्वर के बचे हुए, वफादार अभिषिक्त जनों में और ईसाईजगत के धर्मत्यागी पादरियों में ज़मीन-आसमान का फर्क है। परमेश्वर ने अपने चुने हुए लोगों को फिर से आशीष दी, उनके बीच ‘पहले के समान न्यायी और मंत्री’ नियुक्त किए। ये ऐसे वफादार भाई हैं जो परमेश्वर के लोगों को मनुष्यों की परंपराएँ सिखाने के बजाय उसके वचन बाइबल से सलाह देते हैं। आज भी हमारे बीच ऐसे हज़ारों वफादार भाई मौजूद हैं, जिनमें से कुछ अभिषिक्त जनों के घटते “छोटे झुण्ड” से हैं और कुछ उनके बढ़ते जा रहे लाखों साथियों यानी ‘अन्य भेड़ों’ में से हैं।—लूका 12:32; यूहन्ना 10:16, NW; यशायाह 32:1,2; 60:17; 61:3,4.
28 आज, प्राचीन इस बात का ध्यान रखते हैं कि उन्हें कलीसिया में कभी-कभी “न्यायी” बनकर भी काम करना है, ताकि वे इसे नैतिक और आध्यात्मिक रूप से शुद्ध रख सकें और गलत मार्ग पर चलनेवालों को सही राह दिखा सकें। उन्हें हमेशा इस बात की चिंता लगी रहती है कि वे जो कुछ करें परमेश्वर के तरीके से करें, और न्याय करते वक्त दया दिखाएँ जैसे खुद परमेश्वर दिखाता है। लेकिन, ज़्यादातर मामलों में वे “मंत्री” बनकर सेवा करते हैं। बेशक, वे आजकल के मंत्रियों जैसे नहीं हैं जो सिर्फ हुक्म चलाना या अत्याचार करना जानते हैं। इसके बजाय, वे पूरी कोशिश करते हैं कि लोगों को कभी इस बात का एहसास न होने दें कि वे ‘सौंपे गए लोगों पर’ किसी तरह ‘अधिकार जता’ रहे हैं।—1 पतरस 5:3.
29, 30. (क) जिन्हें यहोवा के हाथों शुद्ध होना पसंद नहीं है उनको यहोवा कौन-सा दंड सुनाता है? (ख) किस तरह लोग अपने वृक्षों और बारियों से “लज्जित” हुए?
29 यशायाह की भविष्यवाणी में जिसे “धातु का मैल” बताया गया है उसका क्या होगा? जिन्हें यहोवा के हाथों शुद्ध होना पसंद नहीं है, उनका क्या अंजाम होगा? यशायाह आगे कहता है: “परन्तु बलवाइयों और पापियों का एक संग नाश होगा, और जिन्हों ने यहोवा को त्यागा है, उनका अन्त हो जाएगा। क्योंकि जिन बांजवृक्षों से तुम प्रीति रखते थे, उन से वे लज्जित होंगे, और जिन बारियों से तुम प्रसन्न रहते थे, उनके कारण तुम्हारे मुंह काले होंगे।” (यशायाह 1:28,29) जो यहोवा के खिलाफ बलवा और पाप करते हैं, और उसके भविष्यवक्ताओं की चेतावनियों को अनसुना कर देते हैं, वे वाकई “नाश” होंगे, उनका “अन्त हो जाएगा।” सा.यु.पू. 607 में यही हुआ। लेकिन, यहाँ जिन वृक्षों और बारियों के बारे में बताया गया है उनका मतलब क्या है?
30 यहूदी बार-बार यहोवा की उपासना को छोड़कर मूर्तिपूजा करने लगते थे। वे अकसर वृक्षों के आसपास, बारियों और बागों में झूठी उपासना के घिनौने रीति-रिवाज़ों का पालन करते थे। मिसाल के तौर पर, बाल-देवता और उसकी पत्नी अश्तोरेत के उपासकों का मानना था कि जब बारिश नहीं होती तब ये दोनों देवी-देवता कब्र में मौत की नींद सो रहे होते हैं। उन्हें जगाने और सहवास करवाने और इसके ज़रिए देश में उर्वरता बढ़ाने के लिए, ये मूर्तिपूजक बागों या बारियों के “पवित्र” वृक्षों की छाया में घिनौने लैंगिक काम करते थे। जब देश में बारिश होती थी और ज़मीन उपजाऊ हो जाती थी, तो इसके लिए इन झूठे देवताओं का धन्यवाद किया जाता था; इन मूर्तिपूजकों को यह यकीन हो जाता था कि उनके सारे रीति-रिवाज़ सही हैं। लेकिन जब यहोवा ने इन विद्रोही मूर्तिपूजकों का विनाश किया तो उस समय उनका कोई भी देवी-देवता उन्हें बचाने नहीं आया। ये बलवा करनेवाले इन बेजान वृक्षों और बारियों की वजह से “लज्जित” हुए।
31. अपमान से भी ज़्यादा मूर्तिपूजकों को कौन-सी सज़ा मिलेगी?
31 लेकिन, यहूदा देश के मूर्तिपूजक सिर्फ लज्जित ही नहीं होंगे बल्कि उन्हें इससे भी कड़ी सज़ा मिलेगी। अब यहोवा इन मूर्तिपूजकों की तुलना एक वृक्ष से करते हुए कहता है: “तुम पत्ते मुर्झाए हुए बांजवृक्ष के, और बिना जल की बारी के समान हो जाओगे।” (यशायाह 1:30) मध्यपूर्व के गर्म और खुश्क मौसम के लिए यह दृष्टांत बिलकुल ठीक है। वहाँ अगर पानी लगातार न मिले तो कोई वृक्ष या बाग ज़्यादा समय तक हरा-भरा नहीं रह सकता। जब ऐसे पेड़-पौधे सूख जाते हैं तो उनमें बड़ी आसानी से आग लग सकती है। इसलिए आयत 31 का दृष्टांत एकदम ठीक है।
32. (क) आयत 31 में बताया गया “बलवान” मनुष्य कौन है? (ख) वह किस मायने में “सन” की तरह हो जाएगा, किस “चिंगारी” से उसको आग लगेगी और इसका अंजाम क्या होगा?
32 “बलवान तो सन और उसका काम चिंगारी बनेगा, और दोनों एक साथ जलेंगे, और कोई बुझानेवाला न होगा।” (यशायाह 1:31) यह “बलवान” मनुष्य कौन है? बलवान शब्द के लिए इस्तेमाल हुए इब्रानी शब्द का मतलब है ताकतवर और दौलतमंद। यहाँ शायद झूठे देवताओं को पूजनेवाले एक ऐसे आदमी के बारे में बताया गया है जो दौलतमंद है और सिर्फ खुद पर भरोसा करता है। यशायाह के दिनों की तरह हमारे ज़माने में भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो यहोवा की शुद्ध उपासना को ठुकरा देते हैं। उस ज़माने की तरह आज भी ऐसा लगता है कि ये लोग बहुत ही कामयाब हो रहे हैं। मगर, यहोवा आगाह करता है कि ये मनुष्य “सन” के रेशों की तरह कमज़ोर और सूखे हो जाएँगे जो आग को छूते ही भस्म हो जाते हैं। (न्यायियों 16:8,9) ऐसे लोगों के काम “चिंगारी” की तरह हैं, चाहे वे अपने देवताओं की मूर्तियाँ बनाते हों, दौलत कमाते हों या यहोवा को छोड़ किसी की भी उपासना करते हों। ये चिंगारी और सन दोनों ही उस आग में भस्म हो जाएँगे जिसे कोई नहीं बुझा सकता। सारे विश्व में ऐसी कोई शक्ति नहीं है जो यहोवा के खरे न्याय को बदल सके।
33. (क) आनेवाले न्यायदंड के बारे में परमेश्वर की चेतावनियों से कैसे उसकी दया भी नज़र आती है? (ख) यहोवा अब इंसानों को क्या करने का मौका दे रहा है, और हममें से हरेक जन पर इसका असर कैसे होता है?
33 आखिर में दिया गया यह संदेश, क्या आयत 18 में दिए दया और क्षमा के संदेश से मेल खाता है? बिलकुल मेल खाता है! यहोवा ने ऐसी चेतावनियों को न सिर्फ लिखवाया है बल्कि अपने सेवकों के ज़रिए हम तक पहुँचाया भी है, क्योंकि वह दयालु है। वह “नहीं चाहता, कि कोई नाश हो; बरन यह कि सब को मन फिराव का अवसर मिले।” (2 पतरस 3:9) आज हर सच्चे मसीही को परमेश्वर के इन संदेशों में दी गयी चेतावनी को सब लोगों तक पहुँचाने का एक अनमोल अवसर मिला है। इसके ज़रिए पश्चाताप करनेवाले इंसान उसकी क्षमा पाएँगे और सदा तक जीएँगे। यहोवा कैसा कृपानिधान है कि वह वक्त के रहते, सब इंसानों को मौका दे रहा है कि वे उसके पास आकर “मामलों को सुलझा लें”!
[फुटनोट]
a प्राचीन यहूदी परंपरा के मुताबिक, दुष्ट राजा मनश्शे ने यशायाह को आरे से चिरवाकर मरवाया था। (इब्रानियों 11:37 से तुलना कीजिए।) एक किताब कहती है कि यशायाह को यह सज़ा दिलवाने के लिए, एक झूठे भविष्यवक्ता ने उस पर यह इलज़ाम लगाया: “इसने यरूशलेम को सदोम कहा है। और सबके सामने यहूदा और यरूशलेम के हाकिमों को अमोरा के लोग कहा है।”
b “बुरे कर्म” के लिए इस्तेमाल हुए इब्रानी शब्द का मतलब यह भी हो सकता है, “जो हानिकारक है,” “जो अनर्थकारी है,” और “अधर्म” है। थिऑलॉजिकल डिक्शनरी ऑफ दी ओल्ड टॆस्टामेंट के मुताबिक, इब्रानी भविष्यवक्ता इस शब्द का इस्तेमाल “ताकत के गलत इस्तेमाल से पैदा होनेवाली बुराई” की निंदा करने के लिए करते थे।
c ‘मैं तुम्हारे विरुद्ध अपना हाथ भी बढ़ाऊंगा,’ इन शब्दों का मतलब था कि यहोवा जिस हाथ से अब तक अपने लोगों को सहारा देता आया था, अब उसी हाथ से वह उन्हें सज़ा भी देगा।