हमारे जीवन में यहोवा की उपासना का उचित स्थान
“प्रति दिन मैं तुझ को धन्य कहा करूंगा, और तेरे नाम की स्तुति सदा सर्वदा करता रहूंगा।” —भजन १४५:२.
१. उपासना के सम्बन्ध में, यहोवा क्या माँग करता है?
“मैं यहोवा तेरा परमेश्वर अनन्य भक्ति की माँग करनेवाला परमेश्वर हूँ।” (निर्गमन २०:५, NW) मूसा ने यह घोषणा यहोवा से सुनी, और बाद में उसने इसे इस्राएल जाति को सम्बोधित करते समय दोहराया। (व्यवस्थाविवरण ५:९) मूसा के मन में इस विषय में कोई संदेह नहीं था कि यहोवा परमेश्वर अपने सेवकों से उसकी अनन्य रूप से उपासना करने की अपेक्षा करता है।
२, ३. (क) किस बात ने इस्राएलियों को यह स्पष्ट किया कि सीनै पर्वत के पास जो हुआ वह असामान्य था? (ख) इस्राएलियों द्वारा और आज परमेश्वर के सेवकों द्वारा उपासना के बारे में हम कौन-से प्रश्नों की जाँच करेंगे?
२ सीनै पर्वत के पास डेरा डाले हुए, इस्राएलियों और उनके साथ मिस्र छोड़नेवाली “मिली जुली हुई एक भीड़” ने कुछ असाधारण चीज़ देखी। (निर्गमन १२:३८) यह मिस्र के ईश्वरों की उपासना से बिल्कुल भिन्न था, जिनको अब दस आफ़तों, या विपत्तियों द्वारा नीचा दिखाया जा चुका था। जब यहोवा ने अपनी उपस्थिति मूसा को प्रकट की, तब भय-प्रेरक दिव्य घटनाएँ हुईं: बादल गरजा, बिजली चमकी, और नरसिंगे की बहुत तेज़ आवाज़ हुई जिससे पूरी छावनी काँप उठी। उसके बाद जब समस्त पर्वत काँप रहा था, तो आग और धुआँ उठा। (निर्गमन १९:१६-२०; इब्रानियों १२:१८-२१) यदि किसी इस्राएली को इस बारे में अतिरिक्त प्रमाण की ज़रूरत थी कि जो हो रहा था वह असामान्य था, तो वह जल्द ही मिलनेवाला था। शीघ्र ही, मूसा परमेश्वर की व्यवस्था की दूसरी प्रतिलिपि प्राप्त करने के बाद पर्वत पर से नीचे उतरा। उत्प्रेरित वृत्तांत के अनुसार, ‘[मूसा के] चेहरे से किरणें निकल रही थीं और [लोग] उसके पास जाने से डर गए।’ सचमुच, एक यादगार, दिव्य अनुभव!—निर्गमन ३४:३०.
३ परमेश्वर की उस प्ररूपी जाति के लिए, यहोवा की उपासना के स्थान के बारे में कोई प्रश्न नहीं था। वह उनका छुटकारा देनेवाला था। वे अपने जीवन के लिए उसके ऋणी थे। वह उनका विधिकर्ता भी था। लेकिन क्या उन्होंने यहोवा की उपासना को पहले स्थान पर रखा? और परमेश्वर के आधुनिक-दिन के सेवकों के बारे में क्या? उनके जीवन में यहोवा की उपासना का क्या स्थान है?—रोमियों १५:४.
इस्राएल द्वारा यहोवा की उपासना
४. वीराने में उनकी यात्रा के दौरान इस्राएल की छावनी की क्या रूपरेखा थी, और छावनी के बीच में क्या था?
४ यदि आप वीराने में डेरा डाले हुए इस्राएल को ऊपर से देख सकते, तो आपने क्या देखा होता? तंबुओं का एक विशाल, लेकिन सुव्यवस्थित क्रम, जिसमें संभवतः ३० लाख या उससे ज़्यादा लोग रह रहे थे, जो तीन-गोत्र विभाजनों के अनुसार उत्तर, दक्षिण, पूरब, और पश्चिम में समूहित किए गए थे। ज़्यादा क़रीब से देखने पर, आप छावनी के मध्य के आस-पास एक और समूहन भी देख पाते। इन चार थोड़े छोटे तंबुओं के झुंड में लेवी के गोत्र के परिवार रहते थे। छावनी के बीचोंबीच, कपड़े की दीवार से अलग किए गए एक क्षेत्र में एक अनोखा भवन था। यह ‘मिलापवाला तम्बू,’ या निवासस्थान था, जिसे उन इस्राएलियों ने यहोवा की योजनानुसार बनाया था जिनके “हृदय में बुद्धि का प्रकाश” था।—गिनती १:५२, ५३; २:३, १०, १७, १८, २५; निर्गमन ३५:१०.
५. इस्राएल में निवासस्थान ने क्या उद्देश्य पूरा किया?
५ वीराने में अपनी यात्रा के दौरान इस्राएलियों ने लगभग ४० पड़ाव डाले और हर पड़ाव में उन्होंने निवासस्थान बनाया, जो उनके डेरे का मुख्य-स्थान बन गया। (गिनती, अध्याय ३३) ठीक ही, बाइबल यहोवा का वर्णन इस प्रकार करती है कि वह अपने लोगों के मध्य छावनी के बीचोंबीच निवास करता था। उसका तेज निवासस्थान में भर गया। (निर्गमन २९:४३-४६; ४०:३४; गिनती ५:३; ११:२०; १६:३) पुस्तक हमारी जीवित बाइबल (अंग्रेज़ी) टिप्पणी करती है: “यह परिवहन योग्य पवित्रस्थान अति महत्त्व का स्थान था, क्योंकि यह गोत्रों के लिए एक धार्मिक मिलन-केंद्र बना। इस प्रकार इसने उन्हें उन अनेक सालों के दौरान संयुक्त रखा जब वे मरुभूमि में भटक रहे थे और संयुक्त कार्य संभव बनाया।” उससे भी अधिक, निवासस्थान ने इस सतत अनुस्मारक के रूप में कार्य किया कि अपने सृष्टिकर्ता के प्रति इस्राएलियों की उपासना उनके जीवन में अति महत्त्वपूर्ण थी।
६, ७. उपासना के लिए किस भवन ने निवासस्थान को प्रतिस्थापित किया, और इसने इस्राएल की जाति के लिए कैसे कार्य किया?
६ जब इस्राएली प्रतिज्ञात देश में पहुँच गए, उसके बाद भी निवासस्थान इस्राएल की उपासना का मुख्य-स्थान रहा। (यहोशू १८:१; १ शमूएल १:३) कुछ समय बाद, राजा दाऊद ने एक स्थायी भवन बनाने का प्रस्ताव रखा। यह वह मंदिर साबित हुआ जिसका निर्माण बाद में उसके पुत्र सुलैमान ने किया। (२ शमूएल ७:१-१०) उसके उद्घाटन के समय उस भवन पर यहोवा की स्वीकृति दिखाने के लिए बादल छा गया। “सचमुच मैं ने तेरे लिये एक वासस्थान, वरन ऐसा दृढ़ स्थान बनाया है, जिस में तू युगानुयुग बना रहे,” सुलैमान ने प्रार्थना की। (१ राजा ८:१२, १३; २ इतिहास ६:२) नव-निर्मित मंदिर अब जाति की भक्ति का केंद्र बन गया।
७ परमेश्वर की आशीष की क़दरदानी में साल में तीन बार सभी इस्राएली पुरुष मंदिर में हर्षपूर्ण उत्सव मनाने यरूशलेम जाते थे। उपयुक्त रूप से, ये पुनर्मिलन यहोवा के “पर्ब्ब” कहलाते थे, जो परमेश्वर की उपासना पर ध्यान केंद्रित करते थे। (लैव्यव्यवस्था २३:२, ४) इन्हें मनाने परिवार के अन्य सदस्यों के साथ भक्त स्त्रियाँ भी जाती थीं।—१ शमूएल १:३-७; लूका २:४१-४४.
८. भजन ८४:१-१२ यहोवा की उपासना के महत्त्व को कैसे प्रमाणित करता है?
८ उत्प्रेरित भजनहारों ने भावपूर्ण रूप से स्वीकार किया कि उनके जीवन में उपासना को कितना अधिक महत्त्वपूर्ण समझा जाता था। “हे सेनाओं के यहोवा, तेरे निवास क्या ही प्रिय हैं!” कोरह के पुत्रों ने गाया। वे निश्चित ही मात्र एक इमारत की प्रशंसा नहीं कर रहे थे। उसके बजाय, उन्होंने यह घोषणा करते हुए अपनी आवाज़ें यहोवा परमेश्वर की स्तुति में उठायीं: “मेरा तन मन दोनों जीवते ईश्वर को पुकार रहे।” लेवियों को अपनी सेवा से बहुत ख़ुशी मिली। “क्या ही धन्य हैं वे, जो तेरे भवन में रहते हैं,” उन्होंने घोषणा की। “वे तेरी स्तुति निरन्तर करते रहेंगे।” वास्तव में, इस्राएल के सभी लोग गा सकते थे: “क्या ही धन्य है, वह मनुष्य जो तुझ से शक्ति पाता है, और वे जिनको सिय्योन की सड़क की सुधि रहती है। . . . वे बल पर बल पाते जाते हैं; उन में से हर एक जन सिय्योन में परमेश्वर को अपना मुंह दिखाएगा।” जबकि यरूशलेम को एक इस्राएली की यात्रा शायद लम्बी और थकाऊ हो सकती थी, फिर भी राजधानी पहुँचते ही उसे शक्ति पुनःप्राप्त हो जाती थी। उसका हृदय हर्ष से भर जाता जब वह यहोवा की उपासना करने के अपने विशेषाधिकार का गुणगान करता: “क्योंकि तेरे आंगनों में का एक दिन और कहीं के हजार दिन से उत्तम है। दुष्टों के डेरों में वास करने से अपने परमेश्वर के भवन की डेवढ़ी पर खड़ा रहना ही मुझे अधिक भावता है। . . . हे सेनाओं के यहोवा, क्या ही धन्य वह मनुष्य है, जो तुझ पर भरोसा रखता है!” ऐसी अभिव्यक्तियाँ उन इस्राएलियों द्वारा यहोवा की उपासना को दी गयी प्राथमिकता प्रकट करती हैं।—भजन ८४:१-१२.
९. जब इस्राएल की जाति यहोवा की उपासना को प्रमुख स्थान देने से चूक गयी तब उसका क्या हुआ?
९ दुःख की बात है कि इस्राएल सच्ची उपासना को प्रमुख स्थान देने से चूक गया। उन्होंने झूठे ईश्वरों की भक्ति द्वारा यहोवा के लिए अपने जोश को कम होने दिया। उसके फलस्वरूप, यहोवा ने उन्हें त्यागकर उनके बैरियों पर छोड़ दिया, उन्हें बाबुल की बन्धुआई में ले जाए जाने दिया। जब ७० साल बाद उन्हें उनके स्वदेश में पुनःस्थापित किया गया, यहोवा ने इस्राएल को विश्वासी भविष्यवक्ताओं हाग्गै, जकर्याह, और मलाकी के उत्साहपूर्ण उपदेश प्रदान किए। याजक एज्रा और हाकिम नहेमायाह ने परमेश्वर के लोगों को मंदिर का पुनःनिर्माण करने और वहाँ सच्ची उपासना पुनःस्थापित करने के लिए उत्तेजित किया। लेकिन जैसे-जैसे शताब्दियाँ बीतती गयीं, जाति में सच्ची उपासना फिर से कम प्राथमिक बन गयी।
सच्ची उपासना के लिए प्रथम-शताब्दी जोश
१०, ११. जब यीशु पृथ्वी पर था तब विश्वासी लोगों के जीवन में यहोवा की उपासना का क्या स्थान था?
१० यहोवा के नियुक्त समय पर मसीहा प्रकट हुआ। विश्वासी व्यक्ति उद्धार के लिए यहोवा की बाट जोह रहे थे। (लूका २:२५; ३:१५) लूका का सुसमाचार वृत्तांत ८४-वर्षीय विधवा हन्नाह का सुस्पष्ट रूप से वर्णन करता है जो “मन्दिर को नहीं छोड़ती थी पर उपवास और प्रार्थना कर करके रात-दिन उपासना किया करती थी।”—लूका २:३७.
११ यीशु ने कहा: “मेरा भोजन यह है, कि अपने भेजनेवाले की इच्छा के अनुसार चलूं और उसका काम पूरा करूं।” (यूहन्ना ४:३४) याद कीजिए कि यीशु ने कैसे प्रतिक्रिया दिखायी जब वह मन्दिर में सर्राफों से आमने-सामने मिला। उसने उनके पीढ़े और साथ ही कबूतर बेचनेवाले सौदागरों की चौकियाँ उलट दीं। मरकुस बताता है: “[यीशु ने] मन्दिर में से होकर किसी को बरतन लेकर आने जाने न दिया। और उपदेश करके उन से कहा, क्या यह नहीं लिखा है, कि मेरा घर सब जातियों के लिये प्रार्थना का घर कहलाएगा? पर तुम ने इसे डाकुओं की खोह बना दी है।” (मरकुस ११:१५-१७) जी हाँ, यीशु ने किसी को मंदिर के आंगन में से छोटा मार्ग अपनाकर शहर के एक अन्य भाग में वस्तुएँ ले जाने की भी अनुमति नहीं दी। यीशु के कार्यों ने उस सलाह को सुदृढ़ किया जो उसने पहले दी थी: “इसलिए पहले तुम राज्य और [परमेश्वर की] धार्मिकता की खोज करते रहो।” (मत्ती ६:३३, NW) यीशु ने यहोवा को अपनी अनन्य भक्ति देने का हमारे लिए एक शानदार उदाहरण छोड़ा। उसने जो उपदेश दूसरों को दिया उसे वास्तव में ख़ुद भी व्यवहार में लाया।—१ पतरस २:२१.
१२. यीशु के चेलों ने यहोवा की उपासना को जो प्राथमिकता दी उसे उन्होंने कैसे प्रदर्शित किया?
१२ जिस प्रकार यीशु ने दलित, परन्तु विश्वासी यहूदियों को झूठे धार्मिक रिवाज़ों के भार से छुटकारा देने के अपने नियुक्त-कार्य को पूरा किया उसके द्वारा उसने अनुकरण करने के लिए अपने चेलों के लिए एक नमूना भी रखा। (लूका ४:१८) चेले बनाने और उन्हें बपतिस्मा देने के बारे में यीशु की आज्ञा का पालन करने में प्रारंभिक मसीहियों ने अपने पुनरुत्थित प्रभु के सम्बन्ध में यहोवा की इच्छा निडरता से घोषित की। जो प्राथमिकता उन्होंने उसकी उपासना को दी उससे यहोवा बहुत प्रसन्न था। अतः, स्वयं परमेश्वर के स्वर्गदूत ने प्रेरित पतरस और यूहन्ना को चमत्कारी रूप से हिरासत से छुड़ाया और उन्हें आदेश दिया: “जाओ, मन्दिर में खड़े होकर, इस जीवन की सब बातें लोगों को सुनाओ।” पुनःशक्ति प्राप्त, उन्होंने आज्ञा-पालन किया। प्रति दिन, वे यरूशलेम के मन्दिर में और घर घर में “उपदेश करने, और इस बात का सुसमाचार सुनाने से, कि यीशु ही मसीह है न रुके।”—प्रेरितों १:८; ४:२९, ३०; ५:२०, ४२; मत्ती २८:१९, २०.
१३, १४. (क) प्रारंभिक मसीही समय से, शैतान ने परमेश्वर के सेवकों को क्या करने का प्रयास किया है? (ख) परमेश्वर के विश्वासी सेवकों ने क्या करना जारी रखा है?
१३ जैसे-जैसे उनके प्रचार के प्रति विरोध बढ़ा, परमेश्वर ने अपने विश्वासी सेवकों को समयोचित सलाह लिखने के लिए निर्देशित किया। “अपनी सारी चिन्ता उसी [यहोवा, NW] पर डाल दो, क्योंकि उस को तुम्हारा ध्यान है,” पतरस ने सा.यु. ६० के थोड़े ही समय बाद लिखा। “सचेत हो, और जागते रहो, क्योंकि तुम्हारा विरोधी शैतान गर्जनेवाले सिंह की नाईं इस खोज में रहता है, कि किस को फाड़ खाए। विश्वास में दृढ़ होकर, और यह जानकर उसका साम्हना करो, कि तुम्हारे भाई जो संसार में हैं, ऐसे ही दुख भुगत रहे हैं।” निश्चित ही प्रारंभिक मसीहियों को उन शब्दों से आश्वासन मिला। वे जानते थे कि उनके थोड़ी देर तक दुःख उठाने के बाद, परमेश्वर उनका प्रशिक्षण पूरा करेगा। (१ पतरस ५:७-१०) यहूदी रीति-व्यवस्था के उन अन्तिम दिनों के दौरान, सच्चे मसीहियों ने यहोवा की प्रेममय उपासना को नयी ऊँचाइयों तक उन्नत किया।—कुलुस्सियों १:२३.
१४ जैसा प्रेरित पौलुस ने पूर्वबताया था, सच्ची उपासना से दूर हटना, अर्थात् धर्मत्याग आया। (प्रेरितों २०:२९, ३०; २ थिस्सलुनीकियों २:३) इसका प्रमाण प्रथम शताब्दी के अन्तिम दशकों की घटनाओं से इकट्ठा हुआ। (१ यूहन्ना २:१८, १९) शैतान ने सफलतापूर्वक असली मसीहियों के बीच नक़ली मसीहियों को बो दिया, जिससे कि इन ‘जंगली दानों’ और गेंहू-समान मसीहियों के बीच फ़र्क करना मुश्किल हो गया। फिर भी, बीतती शताब्दियों के दौरान कुछ व्यक्तियों ने परमेश्वर की उपासना को पहला स्थान दिया, यहाँ तक कि अपनी जान जोख़िम में डालकर। लेकिन परमेश्वर ने “जातियों के नियुक्त समय” के अन्तिम दशकों से पहले अपने सेवकों को सच्ची उपासना उन्नत करने के लिए पुनःएकत्रित नहीं किया।—मत्ती १३:२४-३०, ३६-४३; लूका २१:२४, NW.
यहोवा की उपासना आज उन्नत
१५. वर्ष १९१९ से, यशायाह २:२-४ और मीका ४:१-४ की भविष्यवाणियाँ कैसे पूरी हुई हैं?
१५ वर्ष १९१९ में, यहोवा ने अभिषिक्त शेषजन को एक निडर विश्वव्यापी गवाही अभियान चलाने के लिए शक्ति दी जिसने सच्चे परमेश्वर की उपासना को उन्नत किया है। वर्ष १९३५ से लेकर अब तक लाक्षणिक ‘अन्य भेड़ों’ के आने से, ऐसे लोगों की धारा जो ‘यहोवा के भवन के पर्वत’ पर आध्यात्मिक रूप से चढ़ते हैं बढ़ती ही गयी है। सेवा वर्ष १९९३ के दौरान, यहोवा के ४७,०९,८८९ गवाहों ने उसकी उन्नत उपासना में शामिल होने के लिए दूसरों को आमंत्रण देने के द्वारा उसकी स्तुति की। यह झूठे धर्म के विश्व साम्राज्य, ख़ासकर मसीहीजगत की सांप्रदायिक “पहाड़ियों” की आध्यात्मिक रूप से अपभ्रष्ट स्थिति से कितनी विषमता दिखाता है!—यूहन्ना १०:१६, NW; यशायाह २:२-४; मीका ४:१-४.
१६. यशायाह २:१०-२२ में पूर्वबतायी गयी बातों को ध्यान में रखते हुए परमेश्वर के सभी सेवकों को क्या करने की ज़रूरत है?
१६ झूठे धर्म को माननेवाले अपने गिरजों और कथिड्रलों और यहाँ तक कि अपने पादरियों को “गौरवपूर्ण” (NW) समझते हैं, उन्हें भव्य नाम और सम्मान देते हैं। लेकिन नोट कीजिए कि यशायाह ने क्या पूर्वबताया: “आदमियों की घमण्ड-भरी आंखें नीची की जाएंगी और मनुष्यों का घमण्ड दूर किया जाएगा; और उस दिन केवल यहोवा ही ऊंचे पर विराजमान रहेगा।” यह कब होगा? सन्निकट बड़े क्लेश के दौरान जब “मूरतें सब की सब नष्ट हो जाएंगी।” उस भय-प्रेरक समय की निकटता को ध्यान में रखते हुए, परमेश्वर के सभी सेवकों को गंभीरता से यह जाँचने की ज़रूरत है कि उनके जीवन में यहोवा की उपासना का क्या स्थान है।—यशायाह २:१०-२२.
१७. आज यहोवा के सेवक यहोवा की उपासना को जो प्राथमिकता देते हैं उसे वे कैसे प्रदर्शित करते हैं?
१७ एक अंतर्राष्ट्रीय भाईचारे के रूप में, यहोवा के गवाह राज्य का प्रचार करने में अपने जोश के लिए सुप्रसिद्ध हैं। उनकी उपासना कोई मात्र औपचारिक धर्म नहीं है जिसे सप्ताह में एक-आध घंटे तक सीमित रखा जाता है। नहीं, यह उनकी पूरी जीवन-शैली है। (भजन १४५:२) सचमुच, पिछले साल ६,२०,००० से भी ज़्यादा गवाहों ने मसीही सेवकाई में पूर्ण-समय भाग लेने के लिए अपने कार्यों को व्यवस्थित किया। निश्चित ही बाक़ी भी यहोवा की उपासना के प्रति लापरवाह नहीं हैं। चाहे उनकी पारिवारिक बाध्यताएँ माँग करती हैं कि वे लौकिक नौकरियों में कड़ा परिश्रम करें, तौभी यह उनकी साधारण बातचीत और उनके सार्वजनिक प्रचार दोनों में मुख्य स्थान रखती है।
१८, १९. गवाहों की जीवनियाँ पढ़ने से आपको जो प्रोत्साहन मिला हो उसके उदाहरणों का उल्लेख कीजिए।
१८ द वॉचटावर में प्रकाशित गवाहों की जीवनियाँ उन तरीक़ों के बारे में अंतर्दृष्टि देती हैं जिनसे अनेक भाई-बहनों ने अपने जीवन में यहोवा की उपासना को प्रथम स्थान पर रखा है। एक युवा बहन जिसने अपना जीवन यहोवा को छः साल की उम्र में समर्पित किया, उस ने मिशनरी सेवा को अपना लक्ष्य रखा। आप युवा भाइयों और बहनों, आप कौन-सा लक्ष्य चुन सकते हैं जो अपने जीवन में यहोवा की उपासना को पहले स्थान पर रखने में आपकी मदद करेगा?—मार्च १, १९९२ की द वॉचटावर में पृष्ठ २६-३० पर दिया गया लेख “छः साल की उम्र में रखे लक्ष्य को प्राप्त करने में प्रयत्नशील रहना” देखिए।
१९ एक वृद्ध बहन जो विधवा हो गयी, यहोवा की उपासना को उसका उचित स्थान देने का एक और उत्तम उदाहरण प्रदान करती है। धीरज धरने के लिए उसे उन लोगों से बहुत प्रोत्साहन मिला जिन्हें उसने सत्य सीखने में मदद दी थी। वे उसका “परिवार” थे। (मरकुस ३:३१-३५) यदि आप ख़ुद को समान परिस्थितियों में पाते हैं, तो क्या आप कलीसिया के जवान लोगों का सहारा और मदद स्वीकार करेंगे? (कृपया नोट कीजिए कि किस प्रकार बहन विनफ्रेड रेमी ने अपने आपको जुलाई १, १९९२ की द वॉचटावर में पृष्ठ २१-३ पर प्रकाशित “मैं ने कटनी के समय प्रतिक्रिया दिखायी” में व्यक्त किया।) आप पूर्ण-समय के सेवकों, स्वेच्छा से ईश्वरशासित निर्देशन के अधीन होते हुए, जहाँ आपको नियुक्त किया गया है वहाँ नम्रता से सेवा करने के द्वारा प्रदर्शित कीजिए कि यहोवा की उपासना का आपके जीवन में सचमुच पहला स्थान है। (कृपया भाई रॉए रायन का उदाहरण नोट कीजिए, जो दिसम्बर १, १९९१ की द वॉचटावर में पृष्ठ २४-७ पर लेख “परमेश्वर के संगठन से निकटता से जुड़े रहना” में दिया गया है।) याद रखिए कि जब हम यहोवा की उपासना को प्राथमिकता देते हैं, तब हमारे पास आश्वासन है कि वह हमारा ध्यान रखेगा। हमें चिन्ता करने की ज़रूरत नहीं कि जीवन की ज़रूरतें कहाँ से पूरी होंगी। बहन ऑलिव और सोनिया स्प्रिन्गेट के अनुभव इसे सुचित्रित करते हैं।—फरवरी १, १९९४ की द वॉचटावर में पृष्ठ २०-५ पर दिया गया लेख “हम ने पहले राज्य की खोज की है” देखिए।
२०. अब हमें अपने आप से कौन-से प्रासंगिक प्रश्न पूछने चाहिए?
२० तो व्यक्तिगत रूप से, क्या हमें अपने आप से कुछ बेधनेवाले प्रश्न नहीं पूछने चाहिए? यहोवा की उपासना का मेरे जीवन में क्या स्थान है? अपनी पूरी क्षमता से परमेश्वर की इच्छा पूरी करने के अपने समर्पण को क्या मैं पूरा कर रहा हूँ? जीवन के कौन-से क्षेत्रों में मैं उन्नति कर सकता हूँ? अगले लेख का ध्यानपूर्ण अध्ययन इस विषय पर विचार करने का अवसर देगा कि हम हमारी चुनी हुई जीवन की प्राथमिकता—सर्वसत्ताधारी प्रभु यहोवा, हमारे प्रेममय पिता की उपासना—के सामंजस्य में अपने साधन कैसे प्रयोग करते हैं।—सभोपदेशक १२:१३; २ कुरिन्थियों १३:५.
पुनर्विचार
▫ उपासना के सम्बन्ध में, यहोवा क्या माँग करता है?
▫ निवासस्थान ने किस बात के अनुस्मारक के रूप में कार्य किया?
▫ सामान्य युग प्रथम शताब्दी में, कौन सच्ची उपासना के लिए जोश के उल्लेखनीय उदाहरण थे, और कैसे?
▫ वर्ष १९१९ से, यहोवा की उपासना कैसे उन्नत की गयी है?