प्रकाश को चुननेवालों के लिए उद्धार
“यहोवा परमेश्वर मेरी ज्योति और मेरा उद्धार है; मैं किस से डरूं?”—भजन 27:1.
1.यहोवा ने हमारे जीवित रहने के लिए कौन-कौन-से इंतज़ाम किए हैं?
सूरज की रोशनी यहोवा की ओर से ही मिलती है जिससे पृथ्वी पर जीवन संभव होता है। (उत्पत्ति 1:2, 14) यहोवा आध्यात्मिक प्रकाश का भी सिरजनहार है जो शैतान के संसार के जानलेवा अंधकार को मिटा देता है। (यशायाह 60:2; 2 कुरिन्थियों 4:6; इफिसियों 5:8-11; 6:12) जो लोग इस प्रकाश में चलना चाहते हैं वे भजनहार के इन शब्दों से सहमत हो सकते हैं: “यहोवा परमेश्वर मेरी ज्योति और मेरा उद्धार है; मैं किस से डरूं?” (भजन 27:1क) लेकिन जो लोग प्रकाश को छोड़कर अंधकार में रहना पसंद करते हैं, वे दण्ड पाने से हरगिज़ नहीं बच सकते, ठीक जैसे यीशु के दिनों में भी हुआ था।—यूहन्ना 1:9-11; 3:19-21, 36.
2. प्राचीन समय में परमेश्वर के प्रकाश को ठुकरानेवालों का क्या अंजाम हुआ और परमेश्वर के वचन पर ध्यान देनेवालों का क्या हुआ?
2 यशायाह के दिनों में, यहोवा के साथ वाचा में बंधे हुए ज़्यादातर लोगों ने उसकी तरफ से मिलनेवाले प्रकाश को ठुकरा दिया था। परिणाम यह हुआ कि इस्राएल के पूरे उत्तरी राज्य का विनाश हो गया और इस घटना को यशायाह ने भी देखा था। फिर सा.यू.पू. 607 में यरूशलेम और उसके मंदिर को भी तबाह कर दिया गया और यहूदा के लोगों को बंदी बनाकर ले जाया गया। लेकिन जिन्होंने यहोवा के वचन पर ध्यान दिया था, उन्हें उस वक्त फैले हुए धर्म-त्याग का विरोध करने की हिम्मत मिली। सा.यू.पू. 607 के संबंध में यहोवा ने वादा किया था कि जो लोग उसके वचन पर ध्यान देंगे उन्हें नाश से बचाया जाएगा। (यिर्मयाह 21:8, 9) आज हम भी जो प्रकाश से प्रेम करते हैं, उस समय हुई घटनाओं से बहुत कुछ सीख सकते हैं।—इफिसियों 5:5.
प्रकाश में रहनेवालों का आनंद
3. आज हम क्या भरोसा रख सकते हैं, हम किस “धर्मी जाति” से प्रेम रखते हैं और उस “जाति” के पास कौन-सा “दृढ़ नगर” है?
3 “हमारा एक दृढ़ नगर है; उद्धार का काम देने के लिये [परमेश्वर] उसकी शहरपनाह और गढ़ को नियुक्त करता है। फाटकों को खोलो कि सच्चाई का पालन करनेवाली एक धर्मी जाति प्रवेश करे।” (यशायाह 26:1, 2) ये शब्द यशायाह के दिनों में वफादार यहूदियों ने खुशी भरे दिल से कहे थे। उन्होंने यहोवा पर भरोसा रखा था कि सिर्फ वही उन्हें सच्ची सुरक्षा दे सकता है, न कि उन झूठे देवताओं पर जिन्हें बाकी यहूदी मानते थे। उनकी तरह आज हम भी यहोवा पर ही भरोसा रखते हैं। इसके अलावा, हम यहोवा की “धर्मी जाति” यानी “परमेश्वर के इस्राएल” से प्रेम रखते हैं। (गलतियों 6:16; मत्ती 21:43) यहोवा भी इस जाति से प्रेम रखता है क्योंकि इसका चाल-चलन खरा है। और परमेश्वर की आशीष से परमेश्वर के इस्राएल के पास “एक दृढ़ नगर,” यानी एक शहरनुमा संगठन है जो उसे मदद और सुरक्षा देता है।
4. कौन-सी मनोवृत्ति पैदा करना हमारे लिए अच्छा होगा?
4 इस “दृढ़ नगर” में रहनेवाले अच्छी तरह जानते हैं कि ‘जिसका मन यहोवा में धीरज धरे हुए है, उसकी वह पूर्ण शान्ति के साथ रक्षा करता है, क्योंकि वह यहोवा पर भरोसा रखता है।’ जो लोग हमेशा यहोवा पर भरोसा रखते हैं और उसके धर्मी सिद्धांतों पर चलते हैं, उनकी वह ज़रूर रक्षा करता है। इसलिए यहूदा के वफादार लोगों ने यशायाह की इस सलाह को माना: “यहोवा पर सदा भरोसा रख, क्योंकि प्रभु यहोवा सनातन चट्टान है।” (यशायाह 26:3, 4; भजन 9:10; 37:3; नीतिवचन 3:5) जो लोग ऐसी मनोवृत्ति रखते हैं, वे मानते हैं कि सिर्फ “प्रभु यहोवा” ही वह चट्टान है जो उन्हें सच्ची सुरक्षा दे सकता है। वे हमेशा यहोवा के साथ “शान्ति” में रहते हैं।—फिलिप्पियों 1:2; 4:6, 7.
परमेश्वर के दुश्मनों का अपमान
5, 6. (क) प्राचीन बाबुल को किस तरह नीचा दिखाया गया था? (ख) किस तरह ‘बड़े बाबुल’ को भी अपमान सहना पड़ा?
5 लेकिन अगर यहोवा पर भरोसा रखनेवालों को दुःख झेलने पड़े तब क्या? तब भी उन्हें घबराने की कोई ज़रूरत नहीं। यहोवा भले ही कुछ समय के लिए उन पर तकलीफें आने देता है मगर समय आने पर वह उन तकलीफों को दूर भी कर देता है और उनके सतानेवालों पर न्यायदंड लाता है। (2 थिस्सलुनीकियों 1:4-7; 2 तीमुथियुस 1:8-10) यह समझने के लिए गौर कीजिए कि ‘ऊंचे पर बसे एक नगर’ के साथ क्या हुआ था। यशायाह कहता है: “[यहोवा] ऊंचे पदवाले को झुका देता, जो नगर ऊंचे पर बसा है उसको वह नीचे कर देता। वह उसको भूमि पर गिराकर मिट्टी में मिला देता है। वह पांवों से, वरन दरिद्रों के पैरों से रौंदा जाएगा।” (यशायाह 26:5, 6) यहाँ बताया गया ऊंचा नगर शायद बाबुल था। उस नगर ने परमेश्वर के लोगों पर बहुत अत्याचार किए थे। लेकिन बाद में उसका क्या हुआ? सा.यु.पू. 539 में मादियों और फारसियों ने आकर उसे हरा दिया। तब बाबुल का कितना घोर अपमान हुआ था!
6 हमारे दिनों में यशायाह की भविष्यवाणी के वचन बखूबी दिखाते हैं कि 1919 से ‘बड़े बाबुल’ का क्या हुआ है। इस ‘ऊंचे नगर’ को 1919 में बड़े ही शर्मनाक तरीके से नीचा किया गया क्योंकि तब उसे यहोवा के लोगों को आध्यात्मिक बंधुवाई से रिहा करने के लिए मजबूर होना पड़ा। (प्रकाशितवाक्य 14:8) इसके बाद जो हुआ वह तो बड़े बाबुल के लिए और भी अपमानजनक था। गुलामी से रिहा हुए मसीहियों के इसी छोटे-से झुंड ने अपने इस पुराने मगरूर बैरी को पैरों तले ‘रौंदना’ शुरू कर दिया। सन् 1922 से उन्होंने पूरी दुनिया के सामने यह ऐलान करना शुरू कर दिया कि जल्द ही ईसाईजगत का विनाश होनेवाला है। उन्होंने प्रकाशितवाक्य 8:7–12 में बताए गए चार स्वर्गदूतों की तुरहियों के संदेश और प्रकाशितवाक्य 9:1–11:15 में भविष्यवाणी की गई तीन विपत्तियों की घोषणा करनी शुरू कर दी।
“धर्मी का मार्ग सीधा होता है”
7. जो लोग यहोवा की ज्योति को स्वीकार करते हैं उन्हें कैसा मार्गदर्शन मिलता है और वे किसकी बाट जोहते हैं और किससे लगाव रखते हैं?
7 जो लोग यहोवा की ज्योति को स्वीकार करते हैं वह उनका उद्धार करता है और उन्हें मार्गदर्शन देता है। इस बारे में यशायाह आगे कहता है: “धर्मी का मार्ग सीधा होता है। तू जो सच्चा है, धर्मी के मार्ग को समतल बना। हे यहोवा, हम तेरी विधियों के मार्ग में चलकर तेरी बाट जोहते आए हैं; तेरा नाम, हां, तेरा स्मरण ही हमारे मन की लालसा है।” (यशायाह 26:7, 8, NHT) यहोवा एक धर्मी परमेश्वर है इसलिए उसकी उपासना करनेवालों के लिए उसके धर्मी स्तरों पर चलना ज़रूरी है। वे जब ऐसा करते हैं, तो यहोवा उनको मार्गदर्शन देता है और उनका मार्ग समतल बनाता है। ये नम्र लोग यहोवा के मार्गदर्शन को मानने के ज़रिए दिखाते हैं कि वे यहोवा की बाट जोह रहे हैं, और जिस नाम से परमेश्वर का “स्मरण” होता है उसके लिए वे गहरा लगाव रखते हैं।—निर्गमन 3:15.
8. यशायाह ने किस तरह एक सही मनोवृत्ति दिखाई?
8 यशायाह को भी यहोवा के नाम से गहरा लगाव था। यह हम उसके द्वारा आगे कहे गए इन शब्दों से मालूम कर सकते हैं: ‘रात के समय मैं जी से तेरी लालसा करता हूं, मेरा सम्पूर्ण मन यत्न के साथ तुझे ढूंढ़ता है। क्योंकि जब तेरे न्याय के काम पृथ्वी पर प्रगट होते हैं, तब जगत के रहनेवाले धर्म को सीखते हैं।’ (यशायाह 26:9) यशायाह ने अपने “जी” या पूरे दिल से यहोवा की लालसा की थी। कल्पना कीजिए कि किस तरह यह भविष्यवक्ता रात की खामोशी में यहोवा से प्रार्थना किया करता था और अपने दिल की गहराइयों में छिपे विचारों को यहोवा के सामने खुलकर प्रकट करता था। साथ ही, वह यहोवा से मार्गदर्शन के लिए गिड़गिड़ाकर बिनती करता था। हमारे लिए वह कितना अच्छा उदाहरण है! इतना ही नहीं, यशायाह ने यहोवा के न्याय के कामों से धार्मिकता सीखी। इस तरह यशायाह हमें याद दिलाता है कि हमें जागते रहने और यहोवा की इच्छा जानने के लिए हमेशा सतर्क रहने की ज़रूरत है।
कुछ लोग अंधकार को चुनते हैं
9, 10. यहोवा ने अपनी विद्रोही जाति पर किस तरह दया की, मगर उन्होंने क्या किया?
9 यहोवा ने यहूदा देश को बहुत प्यार किया था और उस पर बहुत कृपा की थी, मगर अफसोस की बात है कि हर किसी ने इसकी कदर नहीं जानी। ज़्यादातर लोगों ने यहोवा की सच्चाई की रोशनी पर चलने के बजाय विद्रोह किया और सच्चे मार्ग से भटक गए। यशायाह ने ठीक ही कहा था: “दुष्ट पर चाहे दया भी की जाए तौभी वह धर्म को न सीखेगा; धर्मराज्य में भी वह कुटिलता करेगा, और यहोवा का माहात्म्य उसे सूझ न पड़ेगा।”—यशायाह 26:10.
10 यशायाह के दिनों में जब यहोवा ने यहूदा को दुश्मनों से बचाया तो अधिकतर लोगों ने इसकी कदर नहीं की। जब यहोवा ने उस राष्ट्र को शांति दी तो उन्होंने ज़रा भी एहसान नहीं माना। इसलिए यहोवा ने उन यहूदियों को ठुकरा दिया और दूसरे ‘स्वामियों’ को उन पर हुकूमत करने दी और आखिर में सा.यु.पू. 607 में उन्हें बाबुलियों के हाथों गुलाम बनकर जाने दिया। (यशायाह 26:11-13) लेकिन वहाँ जाने के बाद उस जाति के कुछ लोगों ने इससे सबक सीखा और फिर उन्हें अपने देश लौटने का मौका दिया गया।
11, 12. (क) यहूदा को बंदी बनानेवालों के साथ क्या हुआ? (ख) अभिषिक्त सेवकों को कैद करनेवाले पुराने विरोधी का 1919 से क्या हुआ?
11 मगर उन लोगों का क्या हुआ जिन्होंने यहूदा के लोगों को बंदी बना लिया था? इसका जवाब यशायाह एक भविष्यवाणी के रूप में देता है: “वे मर गए हैं, फिर कभी जीवित नहीं होंगे; उनको मरे बहुत दिन हुए, वे फिर नहीं उठने के; तू ने उनका विचार करके उनको ऐसा नाश किया कि वे फिर स्मरण में न आएंगे।” (यशायाह 26:14) जी हाँ, सा.यु.पू. 539 में जब बाबुल साम्राज्य गिर जाता तो फिर उसका कोई पता नहीं रहता। कुछ वक्त बाद वह शहर भी पूरी तरह तबाह हो जाता। उसे ‘मरे बहुत दिन हो जाते’ और उसके विशाल साम्राज्य की झलक सिर्फ इतिहास के पन्नों पर ही नज़र आती। यह आज उन लोगों के लिए एक गंभीर चेतावनी है जो इस संसार के ताकतवर लोगों पर भरोसा रखते हैं।
12 इस भविष्यवाणी के कुछ भागों की एक और पूर्ति तब हुई जब 1918 में यहोवा ने अपने अभिषिक्त सेवकों को आध्यात्मिक बंधुवाई में जाने दिया और फिर 1919 में उन्हें छुटकारा दिलाया। अभिषिक्त मसीहियों को बंदी बनानेवाले पुराने विरोधी, खासकर ईसाईजगत का भविष्य 1919 से बिलकुल धुँधला हो गया। लेकिन यहोवा के लोगों को जो आशीषें मिलनेवाली थीं, वे वाकई शानदार थीं।
“तू ने जाति को बढ़ाया”
13, 14. सन् 1919 से यहोवा के अभिषिक्त सेवक कौन-सी बढ़िया आशीषों का आनंद उठा रहे हैं?
13 सन् 1919 में जब अभिषिक्त सेवकों ने सच्चा पछतावा दिखाया, तो यहोवा ने उन्हें आशीष दी और उनके काम को आगे बढ़ाया। सबसे पहले परमेश्वर के इस्राएल के शेष जनों को इकट्ठा करने पर ध्यान दिया गया और उसके बाद, ‘अन्य भेड़’ की “बड़ी भीड़” को इकट्ठा किया जाने लगा। (प्रकाशितवाक्य 7:9; यूहन्ना 10:16, NW) इन आशीषों की भविष्यवाणी यशायाह ने की थी: “तू ने जाति को बढ़ाया; हे यहोवा, तू ने जाति को बढ़ाया है; तू ने अपनी महिमा दिखाई है और उस देश के सब सिवानों को तू ने बढ़ाया है। हे यहोवा, दुःख में वे तुझे स्मरण करते थे, जब तू उन्हें ताड़ना देता था तब वे दबे स्वर से अपने मन की बात तुझ पर प्रगट करते थे।”—यशायाह 26:15, 16.
14 आज परमेश्वर के इस्राएल के सिवानें या सरहदें पृथ्वी के कोने-कोने तक फैल गई हैं और उनके साथ एक बड़ी भीड़ भी जुड़ गई है। इस बड़ी भीड़ की संख्या अब करीब 60 लाख है और यह सुसमाचार प्रचार करने में पूरे ज़ोर-शोर से हिस्सा ले रही है। (मत्ती 24:14) यहोवा की ओर से यह कितनी बड़ी आशीष है! और इससे यहोवा के नाम को कितना गौरव मिलता है! यहोवा का नाम आज 235 देशों में सुनाया जा रहा है और इस तरह यहोवा का वादा बड़े ही अद्भुत तरीके से पूरा हो रहा है।
15. सन् 1919 में कौन-सा लाक्षणिक पुनरुत्थान हुआ था?
15 यहूदा के लोगों को बाबुल की बंधुवाई से छुटकारा पाने के लिए यहोवा की मदद की ज़रूरत पड़ी। वे अपने आप छुटकारा नहीं पा सकते थे। (यशायाह 26:17, 18) उसी तरह, 1919 में परमेश्वर के इस्राएल का छूटना भी यहोवा की मदद का एक सबूत था। यहोवा की मदद के बिना उनका छुटकारा असंभव था। उनके हालात में हुआ यह बदलाव इतना आश्चर्यजनक था कि यशायाह उसकी तुलना एक पुनरुत्थान से करता है: “तेरे मरे हुए लोग जीवित होंगे, मुर्दे उठ खड़े होंगे। हे मिट्टी में बसनेवालो, जागकर जयजयकार करो! क्योंकि तेरी ओस ज्योति से उत्पन्न होती है, और पृथ्वी मुर्दों को लौटा देगी।” (यशायाह 26:19; प्रकाशितवाक्य 11:7-11) जी हाँ, जो मुर्दों की तरह पड़े हुए थे वे मानो फिर से जी उठेंगे और नए सिरे से काम शुरू करेंगे!
संकट के समयों में सुरक्षा
16, 17. (क) सा.यु.पू. 539 में जब बाबुल का विनाश हुआ तो यहूदियों को अपने उद्धार के लिए क्या करना था? (ख) आज ‘कोठरियाँ’ शायद किन्हें सूचित करती हैं और इनसे हमें किस तरह लाभ होता है?
16 यहोवा के सेवकों को हमेशा उसकी ओर से सुरक्षा की ज़रूरत होती है। लेकिन, जल्द ही परमेश्वर शैतान की दुनिया पर आखिरी बार अपना हाथ उठाएगा और तब यहोवा के उपासकों को उसकी मदद की उतनी ज़रूरत होगी जितनी पहले कभी नहीं थी। (1 यूहन्ना 5:19) उस खतरनाक समय के बारे में यहोवा हमें चेतावनी देता है: “हे मेरे लोगो, आओ, अपनी अपनी कोठरी में प्रवेश करके किवाड़ों को बन्द करो; थोड़ी देर तक जब तक क्रोध शान्त न हो तब तक अपने को छिपा रखो। क्योंकि देखो, यहोवा पृथ्वी के निवासियों को अधर्म का दण्ड देने के लिये अपने स्थान से चला आता है, और पृथ्वी अपना खून प्रगट करेगी और घात किए हुओं को और अधिक न छिपा रखेगी।” (यशायाह 26:20, 21; सपन्याह 1:14) सा.य.पू. 539 में इस चेतावनी से यहूदियों को मालूम पड़ा कि बाबुल के विनाश से बचने के लिए उन्हें क्या कदम उठाना है। जो लोग उस चेतावनी को मानते और अपने-अपने घरों के अंदर रहते वे सड़कों पर आ रही सेना से बच जाते।
17 भविष्यवाणी में बताई गई ‘कोठरियों’ का मतलब आज दुनिया भर में यहोवा के साक्षियों की हज़ारों कलीसियाएँ हो सकती हैं। ये कलीसियाएँ आज भी मसीहियों के लिए सुरक्षा का स्थान हैं क्योंकि वे अपने भाइयों के बीच खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं और प्राचीन उनकी प्यार से देखभाल करते हैं। (यशायाह 32:1, 2; इब्रानियों 10:24, 25) यह बात इसलिए भी सच है क्योंकि इस संसार का अंत बहुत निकट आ पहुँचा है और बचाव उन्हीं का होगा जो आज्ञा का पालन करते हैं।—सपन्याह 2:3.
18. यहोवा जल्द ही किस तरह “समुद्री अजगर का वध करेगा?”
18 उस समय के बारे में यशायाह भविष्यवाणी करता है: “उस दिन यहोवा अपनी भयानक, विशाल और सामर्थी तलवार से फुर्तीले सर्प लिब्यातान को, हां, बल खाते सर्प लिब्यातान को दण्ड देगा और उस समुद्री अजगर का वध करेगा।” (यशायाह 27:1, NHT) आज के समय में “लिब्यातान” किसे सूचित करता है? ज़ाहिर है कि यह ‘पुराने सांप,’ शैतान को और उसके दुष्ट संसार को सूचित करता है जिसके ज़रिए वह परमेश्वर के इस्राएल के खिलाफ लड़ रहा है। (प्रकाशितवाक्य 12:9, 10, 17; 13:14, 16, 17) सन् 1919 से परमेश्वर के लोगों पर लिब्यातान की पकड़ ढीली हो गई। और समय आने पर पूरी तरह से उसका नामो-निशान भी मिटा दिया जाएगा। (प्रकाशितवाक्य 19:19-21; 20:1-3, 10) इस तरह यहोवा “उस समुद्री अजगर का वध करेगा।” विनाश की वह घड़ी आने तक, “लिब्यातान” यहोवा के लोगों के खिलाफ चाहे जो भी करे उसकी सफलता बस कुछ समय की होगी। (यशायाह 54:17) यह जानकर हमारे दिल को कितनी तसल्ली मिलती है!
“एक सुन्दर दाख की बारी”
19. अभिषिक्त वर्ग के शेष जन आज किस स्थिति में हैं?
19 जब यहोवा ने हमें ज्ञान की इतनी रोशनी दी है, तो क्या हमें खुश नहीं होना चाहिए? बेशक होना चाहिए! यशायाह ने यहोवा के लोगों की खुशी का वर्णन बड़े ही खूबसूरत शब्दों में किया है: “उस समय एक सुन्दर दाख की बारी होगी, तुम उसका यश गाना! मैं यहोवा उसकी रक्षा करता हूं; मैं क्षण क्षण उसको सींचता रहूंगा। मैं रात-दिन उसकी रक्षा करता रहूंगा, ऐसा न हो कि कोई उसकी हानि करे।” (यशायाह 27:2, 3) यहोवा ने इस “दाख की बारी” यानी परमेश्वर के इस्राएल के शेष जनों की और उनके साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर मेहनत करनेवाले उनके साथियों की देखभाल की है। (यूहन्ना 15:1-8) इसका प्रतिफल यह हुआ है कि उनके बीच काफी बढ़ोतरी हो रही है। इससे परमेश्वर के नाम की महिमा हो रही है और पृथ्वी पर उसके सेवक आनंद मना रहे हैं।
20. यहोवा किस तरह मसीही कलीसिया की रक्षा करता है?
20 हम इस बात के लिए बेहद खुश हो सकते हैं कि यहोवा का क्रोध ठंडा हो गया है जिसकी वजह से 1918 में उसने अभिषिक्त सेवकों को आध्यात्मिक बंधुवाई में जाने दिया था। यहोवा खुद कहता है: “मेरे मन में जलजलाहट नहीं है। यदि कोई भांति भांति के कटीले पेड़ मुझ से लड़ने को खड़े करता, तो मैं उन पर पांव बढ़ाकर उनको पूरी रीति से भस्म कर देता। वा मेरे साथ मेल करने को वे मेरी शरण लें, वे मेरे साथ मेल कर लें।” (यशायाह 27:4, 5) यह निश्चित करने के लिए कि उसकी दाखलताएँ भरपूर दाखरस देती रहें, यहोवा उन सभी कंटीली झाड़ियों यानी बाधाओं को पूरी तरह हटा देता है जो उसकी “दाख की बारी” को खराब कर सकती हैं। इसलिए किसी को भी मसीही कलीसिया की खुशहाली को भंग करने की ज़ुर्रत नहीं करनी चाहिए! और जो लोग आशीष और सुरक्षा पाना चाहते हैं, उन्हें ‘यहोवा की शरण’ लेनी चाहिए। अगर हम ऐसा करेंगे, तो हम परमेश्वर के साथ मेल कर पाएँगे और परमेश्वर के साथ मेल करना इतना ज़रूरी है कि यशायाह इसका ज़िक्र दो बार करता है।—भजन 85:1, 2, 8; रोमियों 5:1.
21. किस मायने में आज जगत “फलों” से भर रहा है?
21 यहोवा की ओर से आशीषों का कोई अंत नहीं: “भविष्य में याकूब जड़ पकड़ेगा, और इस्राएल फूले-फलेगा, और उसके फलों से जगत भर जाएगा।” (यशायाह 27:6) इस आयत की पूर्ति 1919 से हो रही है और इस तरह यहोवा की शक्ति का शानदार सबूत मिल रहा है। अभिषिक्त मसीहियों ने पूरी पृथ्वी को “फलों” यानी पौष्टिक आध्यात्मिक भोजन से भर दिया है। इस भ्रष्ट संसार में रहते हुए भी वे परमेश्वर के ऊँचे आदर्शों पर खुशी-खुशी चलते हैं। और यहोवा लगातार उनके काम पर आशीषें बरसा रहा है। इसका प्रतिफल यह है कि आज अन्य भेड़ के उनके लाखों साथी “दिन रात [परमेश्वर की] सेवा करते हैं।” (प्रकाशितवाक्य 7:15) “फलों” को खाने और दूसरों को भी देने का जो बढ़िया सम्मान हमें मिला है, उसे आइए हम कभी नज़रअंदाज़ न करें!
22. जो लोग प्रकाश को स्वीकार करते हैं, उन्हें कौन-सी आशीषें मिलती हैं?
22 क्या हमें यहोवा का शुक्रगुज़ार नहीं होना चाहिए कि वह इन कठिन समयों में भी अपने लोगों को आध्यात्मिक प्रकाश दे रहा है, जबकि सारी पृथ्वी पर अन्धियारा और राज्य राज्य के लोगों पर घोर अंधकार छाया हुआ है? (यशायाह 60:2; रोमियों 2:19; 13:12) जो लोग इस प्रकाश को स्वीकार करते हैं, उन सभी को आज मन की शांति और खुशी मिलती है और भविष्य में तो उन्हें हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी। इसलिए प्रकाश से प्रेम करनेवाले हम सब पूरे दिल से यहोवा की स्तुति करते हैं और भजनहार के साथ हाँ-में-हाँ मिलाते हुए कहते हैं: “यहोवा मेरे जीवन का दृढ़ गढ़ ठहरा है, मैं किस का भय खाऊं? यहोवा की बाट जोहता रह; हियाव बान्ध और तेरा हृदय दृढ़ रहे; हां, यहोवा ही की बाट जोहता रह!”—भजन 27:1ख, 14.
क्या आपको याद है?
• यहोवा के लोगों को जो सताते हैं उनका क्या होगा?
• यशायाह ने किस बढ़ोतरी की भविष्यवाणी की?
• हमें किन ‘कोठरियों’ के अंदर रहना चाहिए और क्यों?
• आज यहोवा के लोगों की जो स्थिति है, उससे यहोवा की महिमा क्यों होती है?
[पेज 22 पर बक्स]
नई किताब
इन दोनों अध्ययन लेखों में दी गई ज़्यादातर जानकारी 2000/2001 के ज़िला अधिवेशन के एक भाषण में पेश की गई थी। उस भाषण के आखिर में एक नई किताब रिलीज़ की गई थी, जिसका शीर्षक है, आइज़ायास प्रॉफॆसी—लाइट फॉर ऑल मैनकाइंड I. 416-पन्नोंवाली इस किताब में यशायाह के पहले 40 अध्यायों की एक-एक आयत पर चर्चा की गई है।
[पेज 18 पर तसवीर]
यहोवा के “दृढ़ नगर” यानी उसके संगठन में रहने की इजाज़त सिर्फ धर्मी लोगों को मिलती है
[पेज 19 पर तसवीर]
यशायाह, “रात के समय” यहोवा की लालसा करता था
[पेज 21 पर तसवीर]
यहोवा अपनी “दाख की बारी” की रक्षा करता और उसे फलदायी बनाता है