शांति यह हक़ीक़त है
बहुत कम लोग संयुक्त राष्ट्र के शांति प्राप्त करने के प्रयासों के पीछे आदर्शों की आलोचना करेंगे। “‘आओ हम अपनी तलवारें पीटकर हल के फाल बनाएँ,’ ये शब्द संयुक्त राष्ट्र के विश्व शांति लक्ष्य को व्यक्त करते हैं,” “द वर्ल्ड बुक एन्साइक्लोपीडिया” कहती है, और आगे यह बताती है कि “संयुक्त राष्ट्र के दो मुख्य लक्ष्य हैं: शांति और मानव प्रतिष्ठा।”
यहाँ दिखाई गई मूर्ति के नीचे अभिलेख बाइबल की भविष्यवाणी का भावानुवाद करता है, जो कि यशायाह अध्याय २, आयत ४ में है। एक आधुनिक अनुवाद के अनुसार इन्हें ऐसे पढ़ा जा सकता है:
“और वे अपनी तलवारें पीटकर हल के फाल और अपने भालों को हंसिया बनाएँगे।”
इन भव्य शब्दों से यक़ीनन संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों को स्थायी शांति प्राप्त करने और निरस्त्रीकरण करने के लिए प्रेरित होना चाहिए था। किन्तु, दुःख की बात है, १९४५ में द्वितीय महायुद्ध के समाप्त होने पर, इसके प्रारम्भ से ही, संयुक्त राष्ट्र के इतिहास ने विपरीत ही प्रकट किया है। क्यों? मूल रूप से, क्योंकि यशायाह की किताब से उद्धृत, ऊपर दिए हुए शब्द विविक्ति में नहीं लिए जा सकते, जैसा कि मानव सरकारों ने किया है। शब्दों का संदर्भ अति-महत्त्वपूर्ण है। विचार कीजिए क्यों।
यशायाह का संदेश
यशायाह एक भविष्यवक्ता था। वह हर जाति के लिए मित्रभाव और शांति के एक शानदार दिव्यदर्शन के बारे में बताता है। इस दिव्यदर्शन को हक़ीक़त बनने के लिए, लोगों को कुछ करना है। क्या? आयत ४ से संबंधित आयत २ और ३ के महत्त्व पर विचार कीजिए।
“[२] अन्त के दिनों में ऐसा होगा कि यहोवा के भवन का पर्वत सब पहाड़ों पर दृढ़ किया जाएगा, और सब पहाड़ियों से अधिक ऊँचा किया जाएगा; और हर जाति के लोग धारा की नाईं उसकी ओर चलेंगे। [३] और बहुत देशों के लोग आएँगे और आपस में कहेंगे; आओ, हम यहोवा के पर्वत पर चढ़कर, याकूब के परमेश्वर के भवन में जाएँ; तब वह हमें अपने मार्ग सिखाएगा, और हम उसके पथों पर चलेंगे। क्योंकि यहोवा की व्यवस्था सिय्योन से, और उसका वचन यरूशलेम से निकलेगा। [४] वह जाति जाति का न्याय करेगा, और देश देश के लोगों के झगड़ों को मिटाएगा; और वे अपनी तलवारें पीटकर हल के फाल और अपने भालों को हंसिया बनाएँगे; तब एक जाति दूसरी जाति के विरुद्ध फिर तलवार न चलाएगी, न लोग भविष्य में युद्ध की विद्या सीखेंगे।”
पहले, हमें स्वीकार करना है कि हमारे सृष्टिकर्ता यहोवा को अधिकार है कि वह हमें ‘अपने मार्गों के बारे में’ शिक्षित करें, जो कि, जैसे यशायाह ने बाद में लेखबद्ध किया, “हमारे विचारों से ऊँचे हैं।” (यशायाह ५५:९) बहुत से लोग, ख़ास तौर से अहंकारी विश्व नेता, इसको स्वीकार करना कठिन पाते हैं। उनकी दृष्टि में केवल उन्हीं के मार्ग सही हैं। फिर भी, यह वास्तविकता कि उनके मार्ग विश्व शांति और निरस्त्रीकरण की ओर नहीं ले गए हैं, यक़ीनन ऐसे मार्ग पर चलने की व्यर्थता को दिखाती है।
दूसरी, उस आवश्यक उत्साही अभिलाषा पर ध्यान दीजिए, जो मनुष्यों में परमेश्वर के नियमों का आज्ञा पालन करने के लिए होनी चाहिए: “हम उसके मार्गों पर चलेंगे।” केवल उसी आधार पर विश्व पैमाने पर तलवारें पीटकर हल के फाल बनाए जाएँगे और भालों को हंसिया बनाया जाएगा। ऐसा लक्ष्य, जिसके लिए हम इतना तरसते हैं, किस तरह कभी भी पूरा होगा?
परमेश्वरीय शिक्षण
बहुत लोगों के पास बाइबल की एक प्रति है, वह पुस्तक जिसमें परमेश्वर यहोवा के निर्देशन हैं, परन्तु इसे मात्र पास रखना ही काफ़ी नहीं, कुछ और भी आवश्यक है। यशायाह कहता है यहोवा के नियम और वचन “यरूशलेम” से निकलते हैं। उसका क्या अर्थ है? यशायाह के दिनों में, यह शहर राजकीय अधिकार का स्रोत था जिसकी ओर सभी विश्वासी इस्राएली देखते थे। (यशायाह ६०:१४) बाद में, यीशु मसीह के प्रेरितों के समय में, यरूशलेम अभी तक उस शिक्षा का केन्द्र था, जो कि उस शहर के मसीही शासी वर्ग से आती थी।—प्रेरितों के काम १५:२; १६:४.
आज के विषय में क्या? ध्यान दीजिए, यशायाह अपने संदेश की प्रस्तावना इस कथन से करता है: “अन्त के दिनों के अन्तिम चरण में ऐसा होगा।” (न्यू.व.) दूसरे अनुवाद कहते हैं: “अन्त के दिनों में।” (न्यू इंटरनॅशनल वर्शन) इस पत्रिका के पृष्ठों में नियमित रूप से इस बात के समर्थन का प्रमाण प्रस्तुत किया जाता है कि १९१४ से हम इस संसार की रीति-व्यवस्था के अन्तिम दिनों में जी रहे हैं। तो आयत ३ और ४ के अनुसार, हमें क्या देखने की आशा करनी चाहिए?
एक बड़ी संख्या में लोगों का समूह जो अब और युद्ध नहीं सीखते और जिन्होंने पहले ही अपनी “तलवारों को पीटकर हल के फाल” बना लिया है। और हम उन्हें देखते ज़रूर हैं! २०० से अधिक देशों में सब जातियों में से ४० लाख से बहुत अधिक पुरुष, स्त्री और बच्चे एक मत में शामिल होकर शांति से एक दूसरे के साथ रहते हैं और अपने पड़ोसियों को बाइबल के शांति का संदेश का प्रचार करते हैं। वे विश्व भर में यहोवा के गवाहों के नाम से जाने जाते हैं।
पृथ्वी के विभिन्न भागों में से बुज़ुर्ग मसीही पुरुषों से बना उनका एक आधुनिक शासी वर्ग है, जो कि परमेश्वर के लोगों के विश्वव्यापी कार्यों पर आवश्यक अध्यक्षता करते हैं। ये पुरुष, प्रेरितों और पहली शताब्दी में यरूशलेम के प्राचीनों के जैसे, विश्वासी और बुद्धिमान दास वर्ग के अभिषिक्त सदस्य हैं, जिनको यीशु ने इस पृथ्वी पर अपने राज्य के सारे हितों की देख-रेख करने के लिए नियुक्त किया है। इतिहास से प्रमाणित हुआ है कि इन पर विश्वास किया जा सकता है कि वे पवित्र आत्मा के निर्देशन से चलेंगे और परमेश्वर के समूह को सच्ची शांति के मार्ग सिखाने में वे मनुष्यों की बुद्धिमत्ता पर विश्वास नहीं करते।—मत्ती २४:४५-४७; १ पतरस ५:१-४.
सच्ची उपासना
शांति से रहने में दिमाग़ी ज्ञान या फिर परमेश्वरीय शिक्षण के अनुरूप जीने की एक अभिलाषा भी के अलावा कुछ अधिक शामिल है। हार्दिक भक्ति और हमारे सृष्टिकर्ता, यहोवा की उपासना अनिवार्य हैं, जैसा कि यशायाह भी स्पष्ट करता है।
भविष्यवक्ता कहता है कि “यहोवा के भवन का पर्वत सब पहाड़ों पर दृढ़ किया जाएगा” और “सब पहाड़ियों से अधिक ऊँचा किया जाएगा।” प्राचीन समय में, कुछ पहाड़ और पहाड़ियाँ मूर्तिपूजक उपासना के और झूठे ईश्वरों के मंदिरों के स्थलों के रूप में काम में लाए जाते थे। जब राजा दाऊद पवित्र संदूक को उस तम्बू में ले आया, जो उसने सिय्योन पर्वत (यरूशलेम) पर खड़ा किया था, जो कि समुद्र-तल से लगभग २,५०० फुट ऊपर है, वह प्रत्यक्ष रूप से परमेश्वरीय निर्देशनों पर चल रहा था। बाद में, जब यहोवा का भव्य मंदिर मोरिय्याह पर्वत पर बनाया गया, “सिय्योन” नाम में मंदिर स्थल भी शामिल हो गया, इसलिए कि चारों तरफ़ के कुछ मूर्तिपूजक स्थानों से अधिक ऊँचाई का स्थान इस मंदिर को प्राप्त था। स्वयं यरूशलेम को उसका “पवित्र पर्वत” भी कहा जाता था; इस प्रकार, यहोवा की उपासना एक उच्च स्थान पर बनी रही।—यशायाह ८:१८; ६६:२०.
उसी तरह आज, यहोवा परमेश्वर की उपासना सांकेतिक पर्वत के समान ऊँची उठ गयी है। इसकी विशिष्टता सबको देखने के लिए है, क्योंकि इसने ऐसा कुछ किया है जो कोई और धर्म नहीं कर पाया है। वह क्या है? इसने यहोवा के सभी उपासकों को एकता में मिला दिया है, जिन्होंने खुशी से अपनी तलवारों को पीटकर हल के फाल बनाए हैं और जो अब और युद्ध की विद्या नहीं सीखते। राष्ट्रीय और जातीय बाधाएँ अब उनको विभाजित नहीं करतीं। वे संयुक्त जाति, एक भाइचारे के समान रहते हैं, हालाँकि वे विश्व भर के देशों में बिख़रे हुए हैं।—भजन संहिता ३३:१२.
निर्णय का समय
यह सब आपको कैसे प्रभावित करता है? एक दूसरे इब्रानी भविष्यवक्ता के शब्द अति उचित हैं: “निबटारे की तराई में भीड़ की भीड़े है, क्योंकि निबटारे की तराई में यहोवा का दिन निकट है।” (योएल ३:१४) सम्पूर्ण मानवजाति के लिए यह अति शीघ्रता से निर्णय लेने का समय है, या तो वे परमेश्वर से सच्ची शांति के मार्ग सीखें या फिर एक शस्त्र-निर्दिष्ट जीवन का समर्थन देते रहें, जिसका अन्त जल्द ही होगा।
यीशु ने भविष्यवाणी की कि हमारे समय में एक बड़ा प्रचार कार्य होगा। वह प्रचार इस “सुसमाचार” के विषय में है कि परमेश्वर का राज्य इस युद्ध-विभाजित पृथ्वी पर शांति लाएगा। (मत्ती २४:१४) पिछले वर्ष यहोवा के गवाहों द्वारा ३६ लाख से बहुत अधिक नियमित गृह बाइबल अध्ययन विश्व भर में संचालित किए गए। इन में से कुछ साप्ताहिक अध्ययन व्यक्तियों के साथ थे, पर अनेक पारिवारिक समूहों के साथ थे। लाखों बच्चों को इस प्रकार उनके भविष्य के लिए एक निश्चित आशा दी जा रही है, और उनके माता-पिताओं को आश्वासन मिलता है कि युद्ध, जैसे कि उन्होंने देखे हैं और शायद जिनमें भाग भी लिया है, यहोवा परमेश्वर की बनाई नई पृथ्वी का भाग नहीं होंगे।
आपसी विश्वास और शांति का वह क्या ही संसार होगा! निरस्त्रीकरण के विषय में चिन्ता करने की कोई आवश्यकता नहीं होगी, क्योंकि युद्ध के शस्त्र बीती हुई बातें होंगी। और यहोवा को धन्यवाद, जो ‘शांति देनेवाले परमेश्वर’ हैं, और जो हमें अभी प्रेम से सिखाते हैं कि हम उनके धार्मिक राज्य में पूरी तरह से जीने के लिए तैयार हो सकें।—रोमियों १५:३३, न्यू.व.