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यहोवा की मदद से हम मुश्किलों के बावजूद खुश रह सकते हैं!प्रहरीदुर्ग (अध्ययन)—2022 | नवंबर
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यहोवा हमें सही राह दिखाता है
8. बीते ज़माने में यशायाह 30:20, 21 में लिखी भविष्यवाणी कैसे पूरी हुई?
8 यशायाह 30:20, 21 पढ़िए। बैबिलोन की सेना ने डेढ़ साल से यरूशलेम शहर को घेर रखा था। वह यहूदियों के लिए एक बहुत ही मुश्किल घड़ी थी। जिस तरह हम हर रोज़ रोटी खाते हैं, पानी पीते हैं, उसी तरह उन्हें हर रोज़ दुख और मुसीबतें झेलनी पड़ रही थीं। लेकिन जैसे आयत 20 और 21 में बताया गया है, यहोवा ने यहूदियों से वादा किया कि अगर वे पश्चाताप करें और खुद को बदलें, तो वह उन्हें बचाएगा। यशायाह ने यहोवा को एक “महान उपदेशक” कहा और यहूदियों को यकीन दिलाया कि यहोवा उन्हें सिखाएगा कि उन्हें किस तरह उसकी उपासना करनी चाहिए। जब यहूदी बैबिलोन से रिहा हुए, तो यशायाह की भविष्यवाणी पूरी हुई। यहोवा ने अपने लोगों को सही राह दिखायी और वे दोबारा शुद्ध उपासना करने लगे। इसराएली देख पाए कि यहोवा एक महान उपदेशक है। हम बहुत खुश हैं कि आज यहोवा हमें भी सिखाता है, वह हमारा भी उपदेशक है।
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यहोवा की मदद से हम मुश्किलों के बावजूद खुश रह सकते हैं!प्रहरीदुर्ग (अध्ययन)—2022 | नवंबर
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10. आज हम किस तरह पीछे से यहोवा की आवाज़ सुनते हैं?
10 फिर यशायाह ने एक और तरीके के बारे में बताया जिससे यहोवा हमें सिखाता है। उसने लिखा, “तेरे कानों में पीछे से यह आवाज़ आएगी।” ऐसा कहकर यशायाह ने कहा कि यहोवा मानो एक ऐसे टीचर की तरह है जो बच्चों के पीछे-पीछे चल रहा है और उन्हें बता रहा है कि उन्हें किस राह पर चलना चाहिए। आज हम भी जब बाइबल पढ़ते हैं, तो मानो पीछे से यहोवा की आवाज़ सुनते हैं। वह इसलिए कि बाइबल आज से हज़ारों साल पहले लिखी गयी थी। इसलिए जब हम उसमें लिखी बातें पढ़ते हैं, तो मानो पीछे से यहोवा की आवाज़ सुनते हैं।—यशा. 51:4.
11. मुश्किलें आने पर धीरज रखने के लिए और खुश रहने के लिए हमें क्या करना होगा और क्यों?
11 आज यहोवा ने हमें बाइबल और अपने संगठन के ज़रिए सिखाने के लिए जो इंतज़ाम किए हैं, उनसे हम पूरा-पूरा फायदा कैसे पा सकते हैं? ध्यान दीजिए, यशायाह ने दो बातें लिखीं। उसने लिखा, “राह यही है।” और फिर लिखा, “इसी पर चल।” (यशा. 30:21) इसका मतलब, हमें जानना होगा कि हमें किस राह पर चलना चाहिए, लेकिन इतना काफी नहीं है। हमें उस पर चलना भी होगा। बाइबल और परमेश्वर के संगठन के ज़रिए हम जान पाते हैं कि यहोवा हमसे क्या चाहता है। हम यह भी जान पाते हैं कि हम परमेश्वर की राह पर कैसे चल सकते हैं। लेकिन इन बातों को बस जानना काफी नहीं है। हम जो बातें सीखते हैं, हमें उन्हें मानना भी होगा। जब हम ऐसा करेंगे, तो मुश्किलें आने पर भी हम धीरज रख पाएँगे और खुशी से यहोवा की सेवा करते रहेंगे। फिर यहोवा हमें ज़रूर बहुत-सी आशीषें भी देगा।
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