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क्या आप परमेश्वर के साथ-साथ चलेंगे?प्रहरीदुर्ग—2005 | नवंबर 1
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11. यिर्मयाह 6:16 के मुताबिक, यहोवा ने अपने लोगों को समझाने के लिए कौन-सा प्यार-भरा तकाज़ा किया, मगर बदले में उन्होंने क्या जवाब दिया?
11 क्या हम अपनी ज़िंदगी के हर कदम पर परमेश्वर के वचन को मानते हैं? कभी-कभी रुककर, पूरी ईमानदारी के साथ खुद की जाँच करना फायदेमंद होता है। इस आयत पर गौर कीजिए जो हमें खुद की जाँच करने में मदद देगी: “यहोवा यों भी कहता है, सड़कों पर खड़े होकर देखो, और पूछो कि प्राचीनकाल का अच्छा मार्ग कौन सा है, उसी में चलो, और तुम अपने अपने मन में चैन पाओगे।” (यिर्मयाह 6:16) इन शब्दों से हमें एक मुसाफिर की याद आती है जो एक चौराहे पर आकर रुक जाता है और किसी से रास्ता पूछता है। आध्यात्मिक मायने में, इस्राएल में रहनेवाले यहोवा के बागी लोगों को भी उस मुसाफिर की तरह यहोवा से रास्ता पूछना चाहिए था। उन्हें पता लगाना चाहिए था कि वे कैसे ‘प्राचीनकाल के मार्ग’ पर लौट सकते थे। इस ‘अच्छे मार्ग’ पर उनके वफादार पूर्वज चले थे, जबकि इस्राएल जाति ने इस रास्ते से बहककर सबसे बड़ी मूर्खता का काम किया था। लेकिन अफसोस कि इस्राएल ने यहोवा के इस प्यार भरे तकाज़े का जवाब बड़ी ढिठाई से दिया। आयत 16 आगे कहती है: “उन्हों ने कहा, हम उस पर न चलेंगे।” मगर नए ज़माने में, परमेश्वर के लोग उनसे बिलकुल अलग हैं। वे इस सलाह को दिल से मानते हैं।
12, 13. (क) मसीह के अभिषिक्त चेलों ने कैसे यिर्मयाह 6:16 की सलाह को खुद पर लागू किया है? (ख) आज हम ज़िंदगी की राह पर किस तरह चल रहे हैं, इसकी जाँच हम कैसे कर सकते हैं?
12 उन्नीसवीं सदी के आखिरी सालों से, मसीह के अभिषिक्त चेलों ने यिर्मयाह 6:16 की सलाह को खुद पर लागू किया है। एक समूह के तौर पर, वे पूरे दिल से ‘प्राचीनकाल के मार्ग’ पर लौट आने में अगुवाई कर रहे हैं। वे धर्मत्यागी ईसाईजगत से एकदम अलग हैं, उन्होंने पूरी वफादारी के साथ ‘खरी बातों के आदर्श’ को माना है, जिसे यीशु ने कायम किया था और जिसकी पैरवी पहली सदी में उसके वफादार चेलों ने की थी। (2 तीमुथियुस 1:13) ईसाईजगत ने भले ही उस मार्ग पर चलना छोड़ दिया है, मगर अभिषिक्त जन और ‘अन्य भेड़’ आज भी उस मार्ग पर चल रहे हैं। और ऐसा करने में अभिषिक्त जन न सिर्फ एक-दूसरे की बल्कि ‘अन्य भेड़ों’ की भी मदद करते हैं ताकि वे उम्दा किस्म की ज़िंदगी जीएँ और खुशी पाएँ।—यूहन्ना 10:16, NW.
13 विश्वासयोग्य दास वर्ग ने सही समय पर भोजन देकर, लाखों लोगों को ‘प्राचीनकाल के मार्ग’ का पता लगाने और परमेश्वर के साथ-साथ चलने में मदद दी है। (मत्ती 24:45-47) क्या आप उन लाखों में से एक हैं? अगर हाँ, तो आप क्या कर सकते हैं जिससे कि आप इस राह से बहककर अपनी ही राह पर न चलने लगें? कभी-कभी समझदारी इसी में होती है कि आप थोड़ी देर रुककर जाँचें कि आप अपनी ज़िंदगी के साथ क्या कर रहे हैं और किस तरह चल रहे हैं। अगर आप बिना नागा बाइबल और बाइबल की समझ देनेवाली किताबें-पत्रिकाएँ पढ़ें और उन सभाओं में हाज़िर हों जिनके ज़रिए अभिषिक्त जन हिदायतें देते हैं, तो आपको परमेश्वर के साथ-साथ चलने की तालीम मिलती है। और जब कोई आपको सलाह देता है तो उस पर अगर आप नम्रता से अमल करें, तो आप वाकई में परमेश्वर के साथ-साथ और ‘प्राचीनकाल के मार्ग’ पर चल रहे होंगे।
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क्या आप परमेश्वर के साथ-साथ चलेंगे?प्रहरीदुर्ग—2005 | नवंबर 1
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क्या आशीषें मिलेंगी?
17. अगर हम यहोवा के मार्ग पर चलें, तो हमें मन में कैसा “चैन” मिलेगा?
17 यहोवा परमेश्वर के साथ-साथ चलने से हमें जीवन में कई आशीषें मिलेंगी। याद कीजिए कि यहोवा ने ‘अच्छे मार्ग’ की खोज करनेवाले अपने लोगों से क्या वादा किया था। उसने कहा था: “उसी में चलो, और तुम अपने अपने मन में चैन पाओगे।” (यिर्मयाह 6:16) यहाँ “चैन” का मतलब क्या है? क्या यह चैन की ज़िंदगी है जिसमें सिर्फ मौज-मस्ती और ऐशो-आराम ही हो? जी नहीं। यहोवा इससे भी बढ़कर, एक बेहतरीन ज़िंदगी देने का वादा करता है, ऐसी ज़िंदगी जो दुनिया के सबसे दौलतमंद लोगों को भी शायद ही मिले। मन का चैन पाने का मतलब है, अंदरूनी सुकून, खुशी, सुख और आध्यात्मिक संतोष पाना। इस तरह के चैन का यह भी मतलब है कि आपको यकीन है कि आपने ज़िंदगी में सबसे बेहतरीन रास्ता चुना है। मुसीबतों से भरी इस दुनिया में मन की यह शांति विरले ही मिलती है!
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