अध्याय ३८
मेरे लिए क्या भविष्य है?
“मुझे भविष्य से डर लगता है, ऐसे संसार में भविष्य से जो परमाणु ख़तरों से चिन्हित है।” अपने राष्ट्र के सर्वोच्च राजनैतिक अधिकारी को सम्बोधित करते हुए एक जर्मन युवा ने इस प्रकार कहा।
शायद उसी तरह एक परमाणु अग्नि-उल्का में ध्वस्त होने का दृश्य भविष्य के बारे में आपको दुःस्वप्न देता है। “मैं अच्छे नम्बर लाने का कष्ट क्यों करूँ?” एक युवा ने पूछा। “संसार तो वैसे भी मिटने जा रहा है।” असल में, स्कूली बच्चों के एक सर्वेक्षण में, युवा लड़कों ने परमाणु युद्ध को अपना सबसे बड़ा डर बताया। लड़कियों ने इसे दूसरे नम्बर पर रखा, उनका पहला डर था “अपने माता-पिता के मरने” का डर।
लेकिन, परमाणु छत्ता सिर पर मँडराता एकमात्र काला बादल नहीं है। “बढ़ती जनसंख्या, सिकुड़ते साधन, पर्यावरण प्रदूषण” का ख़तरा और दूसरे सन्निकट संकटों ने विख्यात मनोवैज्ञानिक बी. एफ. स्किनर को इस निष्कर्ष पर पहुँचाया: “हमारी प्रजाति अब ख़तरे में दिखती है।” उसने बाद में स्वीकार किया: “मैं बहुत निराशावादी हूँ। सचमुच, हम अपनी समस्याएँ नहीं सुलझा पाएँगे।”
क्योंकि बड़े-बड़े पर्यवेक्षक भी भविष्य को दहशत से देखते हैं, तो इसमें आश्चर्य नहीं कि अनेक युवा यह मनोवृत्ति दिखाते हैं: “आओ, खाए-पीए, क्योंकि कल तो मर ही जाएंगे।” (१ कुरिन्थियों १५:३२) सचमुच, यदि आपका भविष्य राजनीतिज्ञों और वैज्ञानिकों की क्षमता पर निर्भर है, तो यह सचमुच धुँधला दिखता है। क्योंकि यिर्मयाह १०:२३ कहता है: “मनुष्य का मार्ग उसके वश में नहीं है, मनुष्य चलता तो है, परन्तु उसके डग उसके अधीन नहीं हैं।”
ऐसा नहीं कि मनुष्य में अपने ऊपर शासन करने की क्षमता ही नहीं। ध्यान दीजिए कि ऐसा करना मनुष्य के “वश” में नहीं है—उसे पृथ्वी का भविष्य नियंत्रित करने का कोई अधिकार नहीं है। अतः उसके प्रयास निश्चित ही असफल होंगे। उसी कारण, यिर्मयाह ने ईश्वरीय हस्तक्षेप के लिए प्रार्थना की: “हे यहोवा, मेरी ताड़ना कर, पर न्याय से।” (यिर्मयाह १०:२४) इसका अर्थ है कि हमारा सृष्टिकर्ता हमारा भविष्य निश्चित करेगा। लेकिन वह भविष्य कैसा होगा?
पृथ्वी के लिए परमेश्वर का उद्देश्य—और आपका भविष्य
मनुष्य की सृष्टि के कुछ ही समय बाद, परमेश्वर ने प्रथम मानव दम्पति से कहा: “फूलो-फलो, और पृथ्वी में भर जाओ, और उसको अपने वश में कर लो; और समुद्र की मछलियों, तथा आकाश के पक्षियों, और पृथ्वी पर रेंगनेवाले सब जन्तुओं पर अधिकार रखो।” (उत्पत्ति १:२८) इस प्रकार मनुष्य के सामने एक विश्वव्यापी परादीस में जीने की प्रत्याशा रखी गयी।
लेकिन, प्रथम दम्पति ने परमेश्वर के शासकत्व का विद्रोह किया। जैसे बाद में सुलैमान ने कहा, “परमेश्वर ने मनुष्य को सीधा बनाया, परन्तु उन्हों ने बहुत सी युक्तियां निकाली हैं।” (सभोपदेशक ७:२९) मानव युक्तियाँ विनाशक साबित हुई हैं, और विरासत के रूप में वर्तमान पीढ़ी के लिए दुःख और अति अंधकारमय भविष्य की प्रत्याशा छोड़ी है।
क्या इसका यह अर्थ है कि परमेश्वर ने पृथ्वी को त्याग दिया है कि वह एक प्रदूषित, रेडियोधर्मी—और संभवतः निर्जीव—भूमंडल बन जाए? असंभव! उसने “पृथ्वी को रचा और बनाया, उसी ने उसको स्थिर भी किया; उस ने उसे सुनसान रहने के लिये नहीं परन्तु बसने के लिये उसे रचा है।” अतः पृथ्वी के लिए उसका घोषित उद्देश्य अवश्य ही पूरा होगा!—यशायाह ४५:१८; ५५:१०, ११.
लेकिन कब—और कैसे? अपने लिए लूका अध्याय २१ पढ़िए। वहाँ यीशु ने उन्हीं समस्याओं की भविष्यवाणी की जिन्होंने इस सदी में मानवजाति को ग्रस्त किया है: अंतरराष्ट्रीय युद्ध, भूकम्प, बीमारी, भोजन की कमी, व्यापक अपराध। ये घटनाएँ क्या सूचित करती हैं? स्वयं यीशु समझाता है: “जब ये बातें होने लगें, तो सीधे होकर अपने सिर ऊपर उठाना; क्योंकि तुम्हारा छुटकारा निकट होगा। . . . जब तुम ये बातें होते देखो, तब जान लो कि परमेश्वर का राज्य निकट है।”—लूका २१:१०, ११, २८, ३१.
वह राज्य आपके भविष्य की कुंजी है। सरल शब्दों में कहें तो वह एक सरकार है, पृथ्वी पर शासन करने का परमेश्वर का साधन। वह राज्य सरकार बलपूर्वक मनुष्यों के हाथों से पृथ्वी का नियंत्रण छीन लेगी। (दानिय्येल २:४४) “पृथ्वी के बिगाड़नेवाले” स्वयं भी परमेश्वर के हाथों नाश का सामना करेंगे, पृथ्वी—और मानवजाति—को मानव दुर्व्यवहार के हमलों से बचाया जाएगा।—प्रकाशितवाक्य ११:१८; सभोपदेशक १:४.
परमेश्वर के राज्य संचालन के अधीन सुरक्षित, पृथ्वी धीरे-धीरे एक विश्वव्यापी परादीस बन जाएगी। (लूका २३:४३) इस प्रकार एक पूर्ण पारिस्थितिक संतुलन लौट आएगा। मनुष्य और पशु के बीच भी सामंजस्य होगा। (यशायाह ११:६-९) युद्ध और युद्ध-शस्त्र नहीं रहेंगे। (भजन ४६:८, ९) अपराध, भूख, आवास कमी, बीमारी—स्वयं मृत्यु भी—मिटा दी जाएगी। पृथ्वी के निवासी “बड़ी शान्ति के कारण आनन्द मनाएंगे।”—भजन ३७:१०, ११; ७२:१६; यशायाह ६५:२१, २२; प्रकाशितवाक्य २१:३, ४.
परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं को ‘परखना’
परादीस में अनन्त जीवन—यह आपका भविष्य हो सकता है! लेकिन जबकि यह विचार आकर्षक लग सकता है, संभवतः आपको यह मत त्यागने में कठिनाई होती है कि सभी अच्छे लोग स्वर्ग जाते हैं, या तो आपको स्वयं बाइबल के बारे में संदेह हैं। यहोवा के साक्षियों के बीच भी कुछ युवाओं को कभी-कभी अपना विश्वास बहुत ही डाँवाँडोल लगा है। उदाहरण के लिए, मिशॆल का पालन-पोषण साक्षी माता-पिता ने किया। यह स्वीकार करना कि बाइबल सत्य वचन है यह स्वीकार करने के जैसा था कि रात के बाद सुबह होती है। लेकिन, एक दिन उसे यह एहसास हुआ—वह नहीं जानती थी कि वह बाइबल पर क्यों विश्वास करती है। “मेरे ख़याल से तब तक मैं उस पर इसलिए विश्वास करती थी क्योंकि मेरे माता-पिता उस पर विश्वास करते थे,” उसने कहा।
“विश्वास बिना [परमेश्वर को] प्रसन्न करना अनहोना है,” बाइबल कहती है। (इब्रानियों ११:६) फिर भी, विश्वास कोई ऐसी चीज़ नहीं जो आपके पास इसलिए होती है क्योंकि आपके माता-पिता के पास है। यदि आपका भविष्य सुरक्षित होना है, तो आपको ठोस प्रमाण पर आधारित विश्वास बढ़ाने की ज़रूरत है—जो ‘आशा की गयी वस्तुओं की निश्चित प्रत्याशा’ है। (इब्रानियों ११:१, NW) जैसे बाइबल कहती है, आपको चाहिए कि ‘सब बातों को परखें।’—१ थिस्सलुनीकियों ५:२१.
अपने आपको प्रमाण देना कि बाइबल सत्य वचन है
आपको शायद पहले यह परखने की ज़रूरत हो कि क्या बाइबल वास्तव में ‘परमेश्वर की प्रेरणा से रची गयी है।’ (२ तीमुथियुस ३:१६) आप यह कैसे कर सकते हैं? केवल सर्वशक्तिमान परमेश्वर बिना चूके “अन्त की बात आदि से” बता सकता है। (यशायाह ४३:९; ४६:१०) और वह बाइबल में ऐसा बार-बार करता है। यरूशलेम के पतन के सम्बन्ध में लूका १९:४१-४४ और २१:२०, २१ में अभिलिखित भविष्यवाणियों को पढ़िए। या बाबुल के पतन के सम्बन्ध में यशायाह ४४:२७, २८ और ४५:१-४ की भविष्यवाणियाँ पढ़िए। लौकिक इतिहास साबित करता है कि कितनी अचूक रीति से बाइबल ने इन घटनाओं को पूर्वबताया! “इसकी कुछ भविष्यवाणियों को जाँचने के बाद,” १४-वर्षीय नीलू ने कहा, “मैं यह देखकर चकित रह गयी कि यह इतनी सारी बातें पूर्वबताने में कैसे समर्थ हुई।”
बाइबल की ऐतिहासिक यथार्थता, सत्यवादिता, स्पष्टवादिता, और अंतर्विरोध का न होना बाइबल में विश्वास करने के और कारण हैं।a लेकिन आप कैसे जानें कि जिस तरह यहोवा के साक्षी बाइबल को समझते हैं वह सही है? प्राचीन बिरीया के निवासियों ने बाइबल के बारे में प्रेरित पौलुस की व्याख्या को आँख मूँदकर स्वीकार नहीं कर लिया। इसके बजाय, वे “प्रति दिन पवित्र शास्त्रों में ढूंढ़ते रहे कि ये बातें योंहीं हैं, कि नहीं।”—प्रेरितों १७:११.
उसी तरह हम आपसे भी आग्रह करते हैं कि बाइबल शिक्षाओं का गहरा अध्ययन कीजिए। प्रकाशन ज्ञान जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है (वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित) इन शिक्षाओं को स्पष्ट ढंग से बताता है। यदि आपके माता-पिता यहोवा के साक्षी हैं, तो निःसंदेह वे आपके किसी प्रश्न पर आपकी मदद करने में समर्थ होंगे। “इस सम्बन्ध में यदि आपको कोई समस्या है तो अपने माता-पिता से सच बोलिए,” जनॆल नाम की एक युवती सुझाती है। “यदि आपको किसी बात पर विश्वास करना कठिन लगता है तो प्रश्न पूछिए।” (नीतिवचन १५:२२) कुछ समय बाद आप अवश्य यह समझ जाएँगे कि यहोवा ने सचमुच अपने साक्षियों को बाइबल सच्चाइयों की अद्भुत समझ की आशिष दी है!
प्रॆन्टिस नाम का एक युवा कहता है: “कभी-कभी मैं इस बात को लेकर हताश हो जाता हूँ कि यह संसार कैसा है। मैं प्रकाशितवाक्य २१:४ जैसे शास्त्रवचन देखता हूँ, और यह मुझे कुछ आशा देता है।” जी हाँ, परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं में ठोस विश्वास रखना निश्चित ही आपके दृष्टिकोण को प्रभावित करेगा। आप भविष्य को सुखद प्रत्याशा के साथ देखेंगे, निराशा के साथ नहीं। आपका वर्तमान जीवन एक लक्ष्यहीन संघर्ष नहीं, बल्कि इसका एक साधन बन जाएगा कि “आगे के लिए एक अच्छी नेव डाल रखें, कि सत्य जीवन को वश में कर लें।”—१ तीमुथियुस ६:१९.
लेकिन उस “सत्य जीवन” को पाने के लिए क्या बाइबल की शिक्षाओं को सीखना और उन पर विश्वास करना ही काफ़ी है या कुछ और भी चाहिए?
[फुटनोट]
a बाइबल की प्रामाणिकता के बारे में और विस्तृत जानकारी के लिए प्रकाशन शास्त्रवचनों से तर्क करना (अंग्रेज़ी) (वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित) के पृष्ठ ५८-६८ देखिए।
चर्चा के लिए प्रश्न
◻ अपने भविष्य के बारे में अनेक युवाओं को क्या आशंकाएँ हैं?
◻ पृथ्वी के लिए परमेश्वर का मूल उद्देश्य क्या था? हम क्यों विश्वस्त हो सकते हैं कि परमेश्वर का उद्देश्य बदला नहीं है?
◻ पृथ्वी के लिए परमेश्वर के उद्देश्य को पूरा करने में राज्य क्या भूमिका निभाता है?
◻ यह क्यों ज़रूरी है कि आप बाइबल शिक्षाओं की सत्यता को परखें, और यह आप कैसे कर सकते हैं?
◻ आप अपने आपको कैसे प्रमाण दे सकते हैं कि बाइबल परमेश्वर की प्रेरणा से रची गयी है?
[पेज 306 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
“मैं बहुत निराशावादी हूँ। सचमुच, हम अपनी समस्याएँ नहीं सुलझा पाएँगे।”—मनोवैज्ञानिक बी. एफ. स्किनर
[पेज 307 पर तसवीर]
पृथ्वी का सृष्टिकर्ता मनुष्य को हमारा ग्रह नष्ट नहीं करने देगा
[पेज 309 पर तसवीर]
क्या आपने अपने आपको बाइबल की सत्यता के बारे में विश्वस्त कर लिया है?