विश्व शासकत्व बदल रहा है
अगर आप चुन सकते, तो आप किस तरह के शासन के अधीन जीना चाहेंगे? हम में से अधिकांश एक स्थिर शासन चुनेंगे जिसके अधीन हमें उचित वयक्तिक स्वतंत्रता मिलती। हम एक ऐसा शासन पसंद करेंगे जो अपराध क़ाबू में रख सकता, शान्ति बढ़ा सकता, सामाजिक न्याय प्रोत्साहित कर सकता, और भौतिक समृद्धि विकसित कर सकता है। यक़ीनन, हम एक ऐसा शासन ज़्यादा चाहेंगे जो अत्याचारी और भ्रष्ट न हो।
दुःख की बात यह है कि अधिकांश शासन इस तरह नहीं रहे हैं। इस २०वीं सदी के अवरोक्त हिस्से में की दुनिया पर जब हम ग़ौर करते हैं, तो हमें क्या नज़र आता है? ग़रीबी, भ्रष्टाचार, अदक्षता, अत्याचार, सामाजिक अन्याय, अपराध, और अंतर्राष्ट्रीय तनाव। यह हज़ारों वर्षों के मानवी शासकत्व का नतीजा है।
अवश्य, यह सच है कि कुछेक शासक निष्पक्ष और क़ाबिल रहे हैं। और कुछेक शासकीय व्यवस्थाएँ कुछ समय तक अपेक्षाकृत स्थिर और कार्यसाधक रही हैं। लेकिन सब को एक साथ लेकर, मानवी शासन की विफलता, वह सब कुछ करने में जो हम सहज-ज्ञान से महसूस करते हैं कि उन्हें मनुष्यजाति के लिए करना चाहिए, बाइबल के इस कथन की सच्चाई साबित करती है: “मनुष्य का मार्ग उसके वश में नहीं। जो उसके क़दमों को मार्ग दिखलाने के लिए चलता है, वह उसके भी वश में नहीं।” (यिर्मयाह १०:२३; न्यू.व.) दूसरे शब्दों में कहना हो तो, मनुष्य को बाहरी मदद के बिना, खुद को शासित करने के लिए नहीं बनाया गया।
इसीलिए यह जानना अच्छा है कि विश्व शासकत्व बदल रहा है। इस अभिव्यक्ति से हमारा क्या मतलब है? हमारा मतलब है कि मनुष्यजाति के ज़िन्दगियों के प्रतिदिन का शासन जल्द ही एक संपूर्णतः नए प्रकार के शासकत्व के नियंत्रण में होगा जो पूर्ण रूप से सफल होगा। शासकत्व में यह आत्यन्तिक परिवर्तन परमेश्वर द्वारा पूर्वबतलाया गया था। वास्तव में, यही बाइबल का मूल विषय है।
शासकत्व के विषय परमेश्वर की चिन्ता
परमेश्वर मनुष्यजाति के शासन के विषय हमेशा चिन्तित रहा है। वह ध्यानपूर्वक देखता है कि मानवी शासन किस हद तक अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाते हैं, और कभी-कभी वह उनसे हिसाब माँगता है। वास्तव में, इतिहास के पिछले २,५०० वर्ष की कुछ विशिष्ट शासकीय व्यवस्थाओं के इतिहास बाइबल में पूर्वबतलाए गए थे। दानिय्येल की किताब में, जो मसीह के जन्म से ५०० से ज़्यादा वर्ष पहले लिखा गया, ऐसी भविष्यद्वाणियाँ लिपिबद्ध की गयीं जिन में प्राचीन बाबेलोन का पतन, और साथ साथ मादी-फ़ारसी, यूनान, और रोम का उत्थान-पतन पूर्वबतलाया गया। भविष्यद्वाणियों में हमारे अपने समय के ॲन्ग्लो-अमरीकी विश्व शक्ति का विकास भी पूर्वबतलाया गया। इन में के कुछेक भविष्यद्वाणियों पर संक्षिप्त विचार हमें इस कथन का मतलब समझने की मदद करेगा कि विश्व शासकत्व बदल रहा है।
पहली आश्चर्यजनक भविष्यद्वाणी एक प्रेरित सपना था जिस में दानिय्येल के समय से लेकर हमारे समय तक के राजनीतिक विश्व शक्तियाँ एक विशाल मूर्ति से चित्रित थीं। फिर, बिना किसी के खोदे, एक पत्थर ने इस मूर्ति से टकराकर उसे चूर चूर कर दिया। इस पत्थर ने इन विश्व शक्तियों को रौंधकर धूल बना दिया, “और धूपकाल में खलिहानों के भूसे की नाईं हवा से ऐसे उड़ गए कि उनका कहीं पता न रहा।”—दानिय्येल २:३१-४३.
इसका मतलब दानिय्येल के इसी अध्याय में समझा दिया गया। यह दिखाता है कि असफल हो रहे मानवी शासनों के स्थान में एक ऐसा शासन आता, जो अत्यधिक मात्रा में बेहतर होता। यह हमें बताता है: “और उन राजाओं के दिनों में स्वर्ग का परमेश्वर, एक ऐसा राज्य उदय करेगा जो अनन्तकाल तक न टूटेगा, और न वह किसी दूसरी जाति के हाथ में किया जाएगा। वरन वह उन सब [मानवी] राज्यों को चूर चूर करेगा, और उनका अन्त कर डालेगा; और वह सदा स्थिर रहेगा; . . . स्वप्न और उसका फल विश्वासयोग्य हैं।”—दानिय्येल २:४४, ४५, न्यू.व.
लेकिन उस से बात ख़त्म न हुई। दूसरे दर्शन में, क्रमिक विश्व शक्तियाँ विशाल पशुओं से चित्रित थे, जिन में चित्रित विश्व शक्ति की विशेषताएँ थीं। दानिय्येल को फिर “अति प्राचीन” के विस्मय-प्रेरक स्वर्गीय सिंहासन तक देखने दिया गया, और उसे एक ऐसी बात दिखायी गयी जो उसके समय में नहीं, बल्कि हमारे समय की ॲन्ग्लो-अमरीकी विश्व शक्ति के राज्य-काल में घटित होती। उसने यहोवा के प्रातापी स्वर्गीय अदालत को इन विश्व शक्तियों का न्याय करते देखा। (दानिय्येल ७:२-१२) जैसा कि निम्नलिखित आयत दिखाते हैं, शासकत्व में एक परिवर्तन के लिए एक ईश्वरीय आदेश दिया गया। यह शासकत्व किसे दिया जाता?
मनुष्य के सन्तान सा कोई
दानिय्येल भावोत्तेजक जवाब देता है:
“मैं ने रात के स्वप्न में देखा, और देखो! मनुष्य के सन्तान सा कोई आकाश के बादलों समेत आ रहा था; और वह उस अति प्राचीन के पास पहुँचा, और उसको वे उसके समीप लाए। तब उसको ऐसी प्रभुता, महिमा और राज्य दिया गया, कि देश-देश और जाति-जाति के लोग और भिन्न-भिन्न भाषा बोलनेवाले सब उसके अधीन हों। उसकी प्रभुता सदा तक अटल, और उसका राज्य अविनाशी ठहरेगा।”—दानिय्येल ७:१३, १४, न्यू.व.
इस प्रकार दानिय्येल को यह पूर्वबतलाने के लिए इस्तेमाल किया गया कि “अति प्राचीन,” यहोवा परमेश्वर खुद, अत्याचारी मानवी शासनों का कुशासन दूर करेगा। वह, मनुष्यजाति जो कभी कल्पना कर भी नहीं सकती, उससे भी ज़्यादा बेहतर शासन की हुकूमत इसके स्थान पर रखेगा—स्वर्ग से ताक़त और अधिकार करनेवाला एक अदृश्य राज्य। लेकिन यह “मनुष्य के सन्तान सा कोई” कौन है जिसे राज्य मिलेगा?
हमें कोई संदेह में नहीं रखा गया है। यीशु ने खुद अपनी पहचान “मनुष्य के पुत्र” के तौर से की। उसने अपनी उपस्थिति का वर्णन उस समय के तौर से किया जब “मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा में आएगा, और सब स्वर्ग दूत उसके साथ आएँगे।” (मत्ती २५:३१) जब यहूदी महायाजक ने माँगा कि यीशु अदालत को बताए कि क्या वह “परमेश्वर का पुत्र मसीह” था या नहीं, यीशु ने जवाब दिया: “तू ने आप ही कह दिया, बरन मैं तुम से यह भी कहता हूँ, कि अब से तुम मनुष्य के पुत्र को सर्वशक्तिमान की दहिनी ओर बैठे, और आकाश के बादलों पर आते देखोगे।”a—मत्ती २६:६३, ६४.
आख़री मानवी विश्व शक्ति
दानिय्येल के समय के कुछ ६०० वर्ष बाद, प्रेरित यूहन्ना ने ईश्वरीय प्रेरणा के अधीन प्रकाशितवाक्य की बाइबल किताब लिखी। वह किताब इन विश्व शक्तियों का उल्लेख ताक़तवर “राजाओं” के तौर से करती है, यह कहकर: “और वे सात राजा भी हैं, पाँच तो हो चुके हैं, और एक अभी है; और एक अब तक आया नहीं, और जब आएगा, तो कुछ समय तक उसका रहना भी अवश्य है।”—प्रकाशितवाक्य १७:१०.
जब यूहन्ना ने यह लिखा जिन पाँच राजाओं का पतन हो चुका था, वे मिस्र, अश्शूर, बाबेलोन, मादी-फ़ारसी, और यूनान थे। रोमी साम्राज्य अभी तक ‘था।’ स्पष्टतः, सातवीं, हमारे समय की ॲन्ग्लो-अमरीकी विश्व शक्ति, अब तक आयी न थी। प्रकाशितवाक्य के अनुसार, सातवीं शक्ति—जो आज विद्यमान है—के बाद कोई विश्व शक्ति नहीं बचती। यह आख़री शक्ति है। अब और नहीं होंगी।
परन्तु, इसे एक डरावना विचार नहीं होना चाहिए—यह एक रोमहर्षक विचार है! इसका मतलब है कि अन्यायी, युद्ध करनेवाले मानवी शासकत्व की समाप्ति नज़दीक है। पृथ्वी के शासन में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन के विषय बताने में भविष्यद्वाणियाँ सहमत हैं—स्वार्थी मानवी शासन से एक धार्मिक स्वर्गीय शासन, परमेश्वर के राज्य में परिवर्तन।
राज्य शासन
लेकिन वह राज्य क्या है? यह लोगों के दिलों और ज़िन्दगियों में अच्छाई के लिए सिर्फ़ एक प्रभाव ही से बहुत ज़्यादा है। यह तथाकथित मसीही गिरजा के जीवन से भी बहुत ज़्यादा है। परमेश्वर का राज्य एक असली शासन है। इस में एक राजा, सहायक शासक, एक राज्यक्षेत्र, और प्रजा हैं। और यह पहले उल्लेख किए गए बढ़िया आशीर्वाद उत्पन्न करेगा।
यीशु का परिचय राज्य का राजा के तौर से किया गया है। उसने अपने आप की तुलना एक कुलीन मनुष्य से की जो “दूर देश को चला ताकि राजपद पाकर फिर आए।” उस भविष्य के समय के विषय, उसने कहा: “जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा में आएगा, और सब स्वर्ग दूत उसके साथ आएँगे तो वह अपनी महिमा के सिंहासन पर विराजमान होगा।”—लूका १९:१२; मत्ती २५:३१.
“मनुष्य का पुत्र” कब पहुँच जाता? हमें जवाब के लिए अनुमान लगाने की ज़रूरत नहीं। यहाँ यीशु के शब्द इस प्रश्न के उसके उत्तर का हिस्सा हैं: “तेरी उपस्थिति का, और जगत के अन्त का क्या चिन्ह होगा?” (मत्ती २४:३, ३०, न्यू.व.) जैसे इस पत्रिका के कालमों में अक़्सर दिखाया गया है, वह “उपस्थिति” १९१४ में “अन्य जातियों के समय” की समाप्ति पर अदृश्य रूप से स्वर्ग में शुरू हुई।b—लूका २१:२४.
जैसे प्रकाशितवाक्य अध्याय १२ ने कहा था होगा, उसी तरह तब यीशु ने अपना अधिकार लेकर शैतान को स्वर्ग से पृथ्वी के प्रतिवेश में फेंक दिया। स्वर्ग से एक आवाज़ ने घोषित किया: “अब हमारे परमेश्वर का उद्धार, और सामर्थ, और राज्य, और उसके मसीह का अधिकार प्रगट हुआ है; क्योंकि हमारे भाइयों पर दोष लगानेवाला, . . . गिरा दिया गया।” इस से हमें उस समय से बदतर हो रही विश्व परिस्थितियों का कारण मिलता है। इस तरह, स्वर्ग की आवाज़ ने आगे कहा: “हे पृथ्वी, और समुद्र, तुम पर हाय! क्योंकि इब्लीस बड़े क्रोध के साथ तुम्हारे पास उतर आया है; क्योंकि जानता है, कि उसका थोड़ा ही समय और बाक़ी है।”—प्रकाशितवाक्य १२:९-१२.
वह थोड़ा समय जल्द ही ख़त्म हो जाएगा। कुछ अध्याय बाद, महिमा-प्राप्त यीशु एक सफेद घोड़े पर नज़र आता है। उसे “परमेश्वर का वचन” कहा जाता है, और वह “जाति जाति को मारेगा” और “लोहे का राजदण्ड लिए हुए उन पर राज्य करेगा”—ठीक उसी तरह जिस तरह दानिय्येल ने दिखाया कि जातियाँ परमेश्वर के पत्थर-समान राज्य द्वारा रौंधी जातीं, जो कि बढ़कर सारी पृथ्वी में फैल जाता।—प्रकाशितवाक्य १९:११-१६; दानिय्येल २:३४, ३५, ४४, ४५.
फिर कभी भी पशु-समान मानवी राजनीतिक शक्तियाँ मनुष्यजाति पर अत्याचार नहीं करेंगी!
सहायक शासक
लेकिन कुछ और भी है। दानिय्येल यह कहने के लिए प्रेरित हुआ कि राज्य न केवल “मनुष्य के सन्तान सा कोई” को दिया जाता, लेकिन “परमप्रधान ही की प्रजा अर्थात् पवित्र लोगों को” भी दिया जाता।—दानिय्येल ७:२७.
ये कौन हैं? प्रकाशितवाक्य मेम्ना, यीशु मसीह, के विषय कहता है: “तू ने . . . हर एक कुल, और भाषा, और लोग, और जाति में से परमेश्वर के लिए लोगों को मोल लिया है। और उन्हें हमारे परमेश्वर के लिए एक राज्य और याजक बनाया; और वे पृथ्वी पर राज्य करते हैं।” यह आगे कहता है कि वे “परमेश्वर और मसीह के याजक होंगे, और उसके साथ हज़ार वर्ष तक राज्य करेंगे।” उनकी संख्या १,४४,००० दी गयी है।—प्रकाशितवाक्य ५:९, १०; १४:१; २०:६.
ये वही लोग हैं जिन्हें परमप्रधान परमेश्वर अपने पुत्र, यीशु मसीह के साथ विश्व शासन में हिस्सा लेने के लिए चुनता है। क्या हमारा भविष्य परमेश्वर के चुने हुए इन लोगों के हाथों से ज़्यादा सुरक्षित हाथों में हो सकता है? नहीं, यह राज्य सबसे बेहतर शासन होगा—अन्य किसी भी शासन, जो मनुष्य ने कभी जाना है, से कहीं ज़्यादा बढ़िया। उसकी हुकूमत के नीचे समस्त पृथ्वी उस परादीस में बदली जाएगी, जिसका संकल्प परमेश्वर ने प्रारंभ में किया था।
अगला लेख पढ़ें और देखें कि क्या यह उस प्रकार का शासन है जिसके अधीन आप जीना पसंद करेंगे।
[फुटनोट]
a दानिय्येल के दर्शन के संबंध में, न्यू कैथोलिक एन्साइक्लोपीडिया कहती है: “इस बात का कोई शक नहीं कि यहाँ दानिय्येल एक ऐसी घटना के बारे में बोल रहा है जो आख़िर के समय में अनन्त अभिप्राय रखता है।” यह आगे कहता है: “यहूदी महासभा के सामने यीशु का स्वीकरण हमें मनुष्य के सन्तान से उसकी पहचान का अविवाद्य सबूत और उसके अधिकार में आने के विषय स्पष्ट उल्लेख देता है।”
b द वॉचटावर के मई १, १९८२ और अप्रैल १, १९८४ अंक देखें।
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“यीशु के उपदेश का मुख्य विषय”
“परमेश्वर के राज्य का मूल विषय यीशु के प्रचार में मुख्य स्थान पर है।”—न्यू कैथोलिक एन्साइक्लोपीडिया.
“आम तौर से समझा जाता है कि [परमेश्वर का राज्य] यीशु के उपदेश का मुख्य विषय है।”—एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटॅन्निका.
लेकिन पिछली बार आप ने “यीशु के उपदेश का मुख्य विषय” किसी गिरजे में विचार-विमर्श होते कब सुना?
[पेज 9 पर बक्स]
परमेश्वर के राज्य के विषय गड़बड़
कुछ लोगों ने सोचा है कि “पृथ्वी पर की गिरजा” परमेश्वर का राज्य है, जबकि दूसरों ने माना है कि वर्तमान दुनिया “राज्य बनने तक मसीही प्रभाव के अधीन विकसित होगा।” और दूसरे कहते हैं कि परमेश्वर का राज्य “व्यक्ति के दिल और ज़िन्दगी में परमेश्वर का प्राबल्य है।”
पर क्या परमेश्वर के राज्य के बारे में यही सब कुछ है—एक धार्मिक व्यवस्था, क्रमिक राजनीतिक परिवर्तन, या लोगों के दिलों की कोई आत्मिक अवस्था?