‘हम को मसीहा मिल गया’!
“[अन्द्रियास] ने पहिले अपने सगे भाई शमौन से मिलकर उस से कहा, कि हम को ख्रिस्तस अर्थात् मसीह मिल गया।”—यूहन्ना १:४१.
१. यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने नासरत के यीशु के विषय में क्या गवाही दी, और अन्द्रियास ने उसके बारे में क्या अनुमान लगाया?
अन्द्रियास ने काफ़ी समय तक उस यहूदी आदमी को अच्छी तरह देखा, जो नासरत का यीशु कहलाता था। वह देखने में न एक राजा, न ज्ञानी, और न ही रब्बी लगता था। उसकी न तो शाही ठाट-बाट थी, न सफ़ेद बाल, न कोमल हाथ और न ही गौरवर्ण त्वचा। यीशु जवान था—क़रीबन ३० साल की उम्र का—और मज़दूर के से उसके सख़्त हाथ और कांस्यावृत त्वचा थी। इसलिए शायद अन्द्रियास को यह जानकर आश्चर्य नहीं हुआ होगा कि वह एक बढ़ई था। फिर भी, यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने इस आदमी के विषय में कहा: “देखो, यह परमेश्वर का मेम्ना है।” एक दिन पहले, यूहन्ना ने एक और भी आश्चर्यजनक बात कही थी: “यही परमेश्वर का पुत्र है।” क्या यह सच हो सकता था? उस दिन, अन्द्रियास ने यीशु की बातों को सुनने में कुछ समय बिताया। हम नहीं जानते कि यीशु ने क्या कहा; हम इतना जानते हैं कि उसके शब्दों ने अन्द्रियास के जीवन को बदल दिया। वह जल्दी से अपने भाई, शमौन, को ढूँढ़ने गया और चिल्लाकर बोला, ‘हम को मसीहा मिल गया’!—यूहन्ना १:३४-४१.
२. यीशु ही प्रतिज्ञात मसीहा था, इस के विषय में प्रमाणों पर विचार करना क्यों महत्त्वपूर्ण है?
२ अन्द्रियास और शमौन (जिसका नाम यीशु ने बदलकर पतरस रखा) बाद में यीशु के प्रेरित बने। उसके शिष्य बनने के दो साल से अधिक समय के बाद, पतरस ने यीशु से कहा: “तू जीवते परमेश्वर का पुत्र मसीह [मसीहा] है।” (मत्ती १६:१६) अन्त में, वफ़ादार प्रेरित और शिष्य उस विश्वास के लिए अपनी जान देने तक भी तैयार साबित हुए। आज, लाखों सच्चे लोग इसी प्रकार निष्ठावान् हैं। परन्तु किस प्रमाण पर? प्रमाण ही तो, आख़िर, विश्वास तथा मात्र आशुविश्वास के बीच अंतर करता है। (इब्रानियों ११:१ देखिए.) इसलिए आइए हम तीन सामान्य प्रमाण पर विचार करें, जो साबित करेंगे कि यीशु ही मसीहा था।
यीशु का वंशक्रम
३. यीशु के वंशक्रम के विषय में मत्ती तथा लूका के सुसमाचार क्या विस्तृत वर्णन देते हैं?
३ यीशु का वंशक्रम वह पहला प्रमाण है जो उसके मसीहापन के समर्थन में मसीही यूनानी शास्त्र देते हैं। बाइबल ने पूर्वकथन किया कि मसीहा, राजा दाऊद के वंश से आएगा। (भजन १३२:११, १२; यशायाह ११:१, १०) मत्ती का सुसमाचार शुरू होता है: “इब्राहीम की सन्तान, दाऊद की सन्तान, यीशु मसीह की बंशावली।” मत्ती ने यीशु के दत्तकी पिता, यूसुफ, के परिवार द्वारा उसकी वंशावली का पता लगाकर इस निडर दावे का समर्थन किया। (मत्ती १:१-१६) लूका का सुसमाचार यीशु की वंशावली को उसकी नैसर्गिक माता, मरियम के द्वारा, दाऊद तथा इब्राहीम से होते हुए आदम तक पीछे ले जाता है। (लूका ३:२३-३८)a इस प्रकार, सुसमाचार के लेखकों ने अपने दावे का पूर्णतया प्रमाण दिया कि, वैधिक और नैसर्गिक दोनों अर्थ में, यीशु दाऊद का वारिस था।
४, ५. (क) क्या यीशु के समकालीन लोगों ने उसके दाऊद के वंश से आने की बात को चुनौती दी थी, और यह क्यों महत्त्वपूर्ण है? (ख) ग़ैर-बाइबलीय हवाले कैसे यीशु के वंशक्रम का समर्थन करते हैं?
४ यीशु के मसीहापन के सबसे संदेही विरोधी भी यीशु के अधिकार से इन्कार नहीं कर सकते हैं कि वह दाऊद का पुत्र था। क्यों? दो कारण हैं। एक, सा.यु. ७० में यरूशलेम के नाश होने से पहले, उस दावे को उस नगर में दशकों के लिए व्यापक रूप से दोहराया गया था। (मत्ती २१:९; प्रेरितों ४:२७; ५:२७, २८ से तुलना कीजिए.) यदि दावा झूठा होता, तो यीशु का कोई भी विरोधी—और उसके काफ़ी विरोधी थे—केवल सार्वजनिक अभिलेखागार में वंशावलियों में से उसके वंशक्रम की जाँच करके यीशु को धोखेबाज़ साबित कर सकता था।b परन्तु इतिहास में ऐसा कोई रिकार्ड नहीं है कि किसी व्यक्ति ने ऐसी चुनौती दी हो कि यीशु राजा दाऊद के वंश का नहीं है। स्पष्टतः, यह दावा अकाट्य था। निःसंदेह मत्ती और लूका ने अपने वृत्तांत के लिए मुख्य आवश्यक नामों को सीधे सार्वजनिक रिकार्ड से उतारा था।
५ दूसरी बात, बाइबल से बाहर के स्रोत यीशु के वंशक्रम की आम स्वीकृति को प्रमाणित करते हैं। उदाहरण के लिए, तालमूद हवाला देता है कि चौथी-शताब्दी के एक रब्बी ने यीशु की माता, मरियम पर अश्लील आक्रमण किया, यह कहते हुए कि उसने ‘बड़इयों के साथ वेश्या की भूमिका अदा की’ थी; परन्तु वही परिच्छेद स्वीकार करता है कि “वह राजकुमारों और शासकों की वंशज थी।” इससे भी पहले का उदाहरण दूसरी-शताब्दी का इतिहासकार हॅजेसिपस् है। उस ने बताया कि जब रोमी कैसर डोमीशियन ने दाऊद के सब वंशज को मिटा देना चाहा, तो प्रारंभिक मसीहियों के कई शत्रुओं ने यीशु के सौतेले भाई, यहूदा के पोतों पर दोषारोपण किया कि वे “दाऊद के परिवार के हैं।” यदि यहूदा, दाऊद का जाना-माना वंशज था, तो क्या यीशु उसका वंशज न हुआ? अखण्डनीय रूप से हुआ!—गलतियों १:१९; यहूदा १:१.
मसीही भविष्यवाणियाँ
६. इब्रानी शास्त्र में मसीहा-संबंधी भविष्यवाणियाँ कितनी प्रचुर हैं?
६ यीशु ही मसीहा था, इस का एक और प्रमाण है पूरित भविष्यवाणी। इब्रानी शास्त्रों में मसीह पर लागू होनेवाली बहुत सारी भविष्यवाणियाँ हैं। अपनी रचना यीशु अर्थात् मसीहा का जीवन और समय (The Life and Times of Jesus the Messiah) में, आल्फ्रॅड ऐडर्शाइम ने इब्रानी शास्त्रों में ४५६ परिच्छेदों को मिलाकर देखा, जिन्हें प्राचीन रब्बी लोग मसीहा-संबंधी परिच्छेद समझते थे। परन्तु, मसीहा के बारे में रब्बियों के काफ़ी ग़लत विचार थे; उनके संकेत किए हुए कई परिच्छेद तो बिलकुल ही मसीहा से संबंधित नहीं हैं। तो भी, कम-से-कम कितनी ही भविष्यवाणियाँ हैं जो मसीहा के तौर पर यीशु की पहचान करवाती हैं।—प्रकाशितवाक्य १९:१० से तुलना कीजिए.
७. यीशु ने पृथ्वी पर अपने निवास के दौरान कौनसी कुछ भविष्यवाणियों को पूरा किया?
७ उन में से कुछ हैं: उसके जन्म का नगर (मीका ५:२; लूका २:४-११); उसके जन्म के बाद घटित हुई सामूहिक शिशुहत्या की महाविपदा (यिर्मयाह ३१:१५; मत्ती २:१६-१८); उसे मिस्र से बुलाया जाएगा (होशे ११:१; मत्ती २:१५); जातियों के शासक उसे नाश करने के लिए एक हो जाएंगे (भजन २:१, २; प्रेरितों ४:२५-२८); चांदी के तीस मुहरों के लिए उसके साथ विश्वासघात (जकर्याह ११:१२; मत्ती २६:१५); यहाँ तक कि उसकी मृत्यु का ढंग भी।—भजन २२:१६, NW, फुटनोट; यूहन्ना १९:१८, २३; २०:२५, २७.c
उसका आना भविष्यसूचित
८. (क) कौनसी भविष्यवाणी मसीहा के आने के समय की ओर संकेत करती है? (ख) इस भविष्यवाणी को समझने के लिए कौनसे दो तत्त्वों को जानना आवश्यक है?
८ आइए हम सिर्फ़ एक ही भविष्यवाणी पर ध्यान केंद्रित करें। दानिय्येल ९:२५ में, यहूदियों को बताया गया था कि मसीहा कब आएगा। वहाँ लिखा है: ‘सो यह जान और समझ ले, कि यरूशलेम के फिर बसाने की आज्ञा के निकलने से लेकर अभिषिक्त प्रधान के समय तक सात सप्ताह बीतेंगे, फिर बासठ सप्ताह।’ पहली नज़र में तो यह भविष्यवाणी शायद रहस्यमय लगे। परन्तु सामान्य अर्थ में, यह हमें सिर्फ़ जानकारी की दो बातें ढूँढ़ने के लिए कहती है: आरंभ-बिन्दु और समय की अवधि। दृष्टांत के तौर पर, यदि आपके पास एक नक़शा होता जो “नगर उद्यान में कूएँ के पूर्व दिशा में ५० लग्गा” की दूरी पर दफनाए हुए ख़ज़ाने की ओर संकेत करता है, तो आपको शायद पथ-प्रदर्शन रहस्यमय लगते—ख़ासकर यदि आपको यह न पता होता कि यह कूआँ कहाँ है, या एक ‘लग्गा’ कितना लम्बा होता है। क्या आप उन दो तथ्यों को न ढूँढ़ निकालते ताकि आप ख़ज़ाने का पता लगा सकते? ख़ैर, दानिय्येल की भविष्यवाणी के साथ भी ऐसा ही है, सिवाय इसके कि हम आरंभ के समय का पता लगा रहे हैं और उसके बाद की अवधि को नाप रहे हैं।
९, १०. (क) वह आरंभ-बिन्दु क्या है जिससे ६९ सप्ताह को नापा जाता है? (ख) वह ६९ सप्ताह कितने लम्बे थे, और हमें यह कैसे पता है?
९ पहले तो, हमें आरंभ-बिन्दु की आवश्यकता है, वह तिथि जब ‘यरूशलेम के फिर बसाने की आज्ञा निकली’ थी। इसके बाद, हमें उस बिन्दु से फ़ासले को जानने की आवश्यकता है, कि ये ६९ (७ और ६२) सप्ताह कितने लम्बे थे। दोनों जानकारी प्राप्त करना कठिन नहीं है। नहेमायाह काफ़ी स्पष्ट रूप से हमें बताता है कि “अर्तक्षत्र राजा के बीसवें वर्ष” में, यरूशलेम के इर्द-गिर्द के शहरपनाह को पुनर्निर्मित करने की आज्ञा दी गई, और अख़िरकार इसे फिर से एक नगर बनाया गया। (नहेमायाह २:१, ५, ७, ८) यह हमारे आरंभ-बिन्दु को सा.यु.पू. ४५५ पर ले आता है।d
१० अब जहाँ इन ६९ सप्ताहों का प्रश्न है, क्या ये सात दिन के शाब्दिक सप्ताह हो सकते हैं? नहीं, क्योंकि सा.यु.पू. ४५५ से एक साल और कुछ अधिक समय बाद मसीहा प्रकट नहीं हुआ था। इस प्रकार अधिकतर बाइबल विद्वान् और अनेक अनुवाद (यहूदी तनख़ भी इस आयत के फुटनोट में) इस बात से सहमत हैं कि ये “वर्षों के” सप्ताह हैं। ‘वर्षों के सप्ताह,’ या सात-वर्ष के कालचक्र, की धारणा से प्राचीन यहूदी लोग परिचित थे। जिस तरह वे हर सातवें दिन सब्त का दिन मनाते थे, उसी तरह वे हर सातवें वर्ष सब्त का वर्ष मनाते थे। (निर्गमन २०:८-११; २३:१०, ११) इस प्रकार वर्षों के ६९ सप्ताह, कुल मिलाकर ६९ बार ७ वर्ष, या ४८३ वर्ष बनते। अब हमें सिर्फ़ गिनती करना बाक़ी है। सा.यु.पू. ४५५ से, ४८३ वर्ष गिनते हुए हम सा.यु. २९ के वर्ष में पहुँचते हैं—ठीक उसी वर्ष जब यीशु का बपतिस्मा हुआ और वह मेशिएक (ma·shiʹach), अर्थात् मसीहा बना!—“सत्तर सप्ताह,” इन्साइट ऑन द स्क्रिपचर्स्, खण्ड २, पृष्ठ ८९९ देखिए।
११. हम उनको कैसे उत्तर दे सकते हैं जो कहते हैं कि यह तो सिर्फ़ दानिय्येल की भविष्यवाणी को समझाने का आधुनिक तरीक़ा है?
११ कुछ लोग विरोध कर सकते हैं कि यह तो इतिहास से मेल करवाने के लिए भविष्यवाणी को समझाने का केवल एक आधुनिक तरीक़ा है। यदि ऐसा है, तो यीशु के दिन के लोग क्यों उस समय मसीहा के प्रकट होने की अपेक्षा कर रहे थे? मसीही इतिहासकार लूका, रोमी इतिहासकार टैसिटस् तथा सूटोनियस, यहूदी इतिहासकार जोसीफ़स, और यहूदी दार्शनिक फ़ाइलो सब इसी समय के आस-पास जीवित थे और इस अपेक्षा की स्थिति की गवाही देते हैं। (लूका ३:१५) कुछ विद्वान् आज ज़ोर देते हैं कि रोमी दमन के कारण ही यहूदियों ने उन दिनों मसीहा की लालसा और अपेक्षा की। परन्तु यहूदियों ने तब ही क्यों मसीहा की अपेक्षा की, बजाय उस समय जब शताब्दियों पहले क्रूर यूनानी सताहट चल रही थी? टैसिटस् ने क्यों कहा कि “रहस्यपूर्ण भविष्यवाणियों” के कारण यहूदियों ने अपेक्षा की कि यहूदिया में से शक्तिशाली शासक आएँगे और “विश्वव्यापी साम्राज्य प्राप्त” करेंगे? ऐबा हिलेल सिलवर, अपनी पुस्तक इस्राएल में मसीहाई चिन्तन का इतिहास (A History of Messianic Speculation in Israel), में मानता है कि “लगभग सा.यु. प्रथम शताब्दी के दूसरे चौथाई भाग में मसीहा की अपेक्षा थी,” रोमी सताहटों के कारण नहीं, परन्तु “उन दिनों के प्रसिद्ध कालक्रम” के कारण, जिसका कुछ भाग दानिय्येल की पुस्तक से लिया गया था।
ऊपर से पहचान की गयी
१२. मसीहा के तौर पर यीशु की पहचान यहोवा ने कैसे करवाई?
१२ यीशु के मसीहापन का तीसरा प्रमाण स्वयं परमेश्वर की गवाही है। लूका ३:२१, २२ के अनुसार, यीशु का बपतिस्मा होने के बाद, यहोवा परमेश्वर की अपनी पवित्र आत्मा, पूरे विश्व में सबसे पवित्र तथा प्रभावशाली शक्ति से उसे अभिषिक्त किया गया। और स्वयं अपनी आवाज़ से, यहोवा ने माना कि उसने अपने पुत्र, यीशु को स्वीकृति दी है। दो अवसरों पर, यहोवा ने सीधे स्वर्ग से यीशु से बात की, और इसके द्वारा अपनी स्वीकृति का संकेत दिया: एक बार, यीशु के तीन प्रेरितों के सामने, और दूसरी बार, दर्शकों की भीड़ के सामने। (मत्ती १७:१-५; यूहन्ना १२:२८, २९) इसके अतिरिक्त, मसीह, या मसीहा के तौर पर यीशु के पद की पुष्टि करने के लिए ऊपर से स्वर्गदूतों को भेजा गया।—लूका २:१०, ११.
१३, १४. मसीहा के तौर पर यीशु के प्रति यहोवा ने अपनी स्वीकृति कैसे प्रदर्शित की?
१३ उसे महान् कार्य करने के लिए सामर्थ्य देकर, यहोवा ने अपने अभिषिक्त जन पर अपनी स्वीकृति दिखाई। उदाहरण के लिए, यीशु ने भविष्यवाणियाँ की, जिन्होंने पहले से ही इतिहास का विस्तृत वर्णन किया, जिन में से कुछ तो हमारे दिन तक पहुँचती हैं।e उसने चमत्कार भी किए, जैसे कि भूखी भीड़ को खिलाना और बीमारों को चंगा करना। उसने मरे हुओं को भी जी उठाया। क्या उसके अनुयायियों ने वास्तविक घटनाओं के पश्चात् इन महान् कार्यों की केवल कहानियाँ गढ़ी थीं? खैर, यीशु ने अपने काफ़ी सारे चमत्कार चश्मदीद गवाहों के सामने किए, कभी-कभी एक ही समय पर हज़ारों लोगों के सामने। यीशु के शत्रु भी इन्कार न कर सके कि उसने वास्तव में ये कार्य किए थे। (मरकुस ६:२; यूहन्ना ११:४७) इसके अलावा, यदि यीशु के अनुयायी ऐसे विवरण गढ़ने की ओर प्रवृत्त थे, तो वे स्वयं अपनी गलतियों के विषय में इतने स्पष्टवादी क्यों होते? सचमुच, क्या वे ऐसे एक विश्वास के लिए मरने को तैयार होते, जो केवल उनकी अपनी गढ़ी हुई पौराणिक कथाओं पर आधारित था? नहीं। यीशु के चमत्कार इतिहास के तथ्य हैं।
१४ मसीहा के रूप में यीशु के विषय में परमेश्वर द्वारा दी गई गवाही इससे भी अधिक थी। पवित्र आत्मा के द्वारा उसने निश्चित किया कि यीशु के मसीहापन के प्रमाण लिखे जाएं और पूरे इतिहास में सबसे विस्तृत रूप से अनुवाद और वितरण की जानेवाली पुस्तक का भाग बनें।
यहूदियों ने यीशु को क्यों स्वीकार नहीं किया?
१५. (क) मसीहा के रूप में पहचान करवाने के लिए यीशु के प्रत्यायक कितने विस्तृत हैं? (ख) यहूदियों की किन प्रत्याशाओं के कारण उन में से बहुतों ने यीशु को मसीहा के तौर पर अस्वीकार किया?
१५ फिर, कुल मिलाकर, प्रमाण के इन तीन वर्ग में वस्तुतः सौंकड़ों तथ्य सम्मिलित हैं जो कि मसीहा के तौर पर यीशु की पहचान बताते हैं। क्या यह काफ़ी नहीं? ज़रा कल्पना कीजिए कि आप चालक के लाइसेंस या एक क्रेडिट कार्ड के लिए आवेदन करते हैं और आपको बताया जाता है कि तीन पहचान के प्रमाण पर्याप्त नहीं हैं—आपको सैकड़ों प्रमाण लाने होंगे। कितना अनुचित! निश्चय ही, बाइबल में यीशु की पहचान पर्याप्त रीति से की गई है। परन्तु, यीशु के अपने ही लोगों में से इतनों ने क्यों उसके मसीहा होने के इन सब प्रमाणों से इन्कार किया? क्योंकि प्रमाण, जबकि सच्चे विश्वास के लिए आवश्यक है, विश्वास की गारंटी नहीं देता है। दुःख की बात है कि अत्यधिक प्रमाण होते हुए भी, बहुत से लोग वही विश्वास करते हैं जो वे करना चाहते हैं। मसीह के विषय में, वे क्या चाहते हैं, इस के बारे में अधिकांश यहूदियों के बहुत ही निश्चित विचार थे। वे एक राजनीतिक मसीहा चाहते थे, ऐसा मसीहा जो रोमी दमन का अन्त करके इस्राएल को ऐसी महिमा में वापस लाए जो भौतिक रूप से सुलैमान के दिनों की महिमा का सदृश हो। फिर, वे कैसे बढ़ई के इस साधारण पुत्र को स्वीकार कर सकते थे, यह नासरी जिसने राजनीति या धन में कोई दिलचस्पी ही नहीं दिखायी? ख़ासकर, वह मसीहा कैसे हो सकता था जब कि वह दुःख उठाने के बाद एक यातना स्तंभ पर घृणित मौत मरा?
१६. मसीहा के विषय में यीशु के अनुयायियों को अपनी ख़ुद की प्रत्याशाएँ क्यों बदलनी पड़ीं?
१६ यीशु के अपने शिष्य उसकी मृत्यु से अशांत हो गए थे। उसके महिमायुक्त पुनरुत्थान के पश्चात्, स्पष्टतः उन्होंने आशा की कि वह उसी समय “इस्राएल को राज्य फेर देगा।” (प्रेरितों १:६) परन्तु, उन्होंने यीशु को मसीहा के तौर पर सिर्फ़ इसलिए ही अस्वीकार नहीं किया कि उनकी निजी प्रत्याशा पूरी नहीं हुई। उन्होंने उपलब्ध अत्यधिक प्रमाणों के आधार पर उस में विश्वास रखा, और धीरे-धीरे उनकी समझ बढ़ती गई; रहस्य सुस्पष्ट हो गए। यह बात उनकी समझ में आ गयी कि मसीहा इस पृथ्वी पर मनुष्य के रूप में गुज़ारे थोड़े समय के दौरान अपने विषय में सब भविष्यवाणियों को पूरा नहीं कर सकता था। क्यों, एक भविष्यवाणी ने कहा कि वह गदही के बच्चे पर सवार, दीन रूप से आएगा, जबकि एक और भविष्यवाणी ने कहा कि वह महिमा में बादलों समेत आएगा! ये दोनों कैसे सच हो सकते हैं? स्पष्ट है कि उसे दुबारा आना पड़ेगा।—दानिय्येल ७:१३; जकर्याह ९:९.
मसीहा को क्यों मरना था
१७. दानिय्येल की भविष्यवाणी कैसे स्पष्ट करती है कि मसीहा को मरना होगा, और वह किस कारण मरेगा?
१७ इसके अतिरिक्त, मसीहा-संबंधी भविष्यवाणियों ने यह स्पष्ट किया कि मसीहा को मरना होगा। उदाहरण के लिए, जिस भविष्यवाणी ने मसीहा के लौटने के समय का पूर्वकथन किया उसी भविष्यवाणी ने अगली आयत में पूर्वकथन किया: “उन बासठ सप्ताहों [जो उन सात सप्ताह के बाद में आए] के बीतने पर अभिषिक्त पुरुष काटा जाएगा।” (दानिय्येल ९:२६) यहां पर ‘काटा जाना’ के लिए प्रयुक्त इब्रानी शब्द के ·रथʹ वही शब्द है जिसे मूसा की व्यवस्था के अधीन मृत्यु-दण्ड के लिए प्रयोग किया जाता था। निःसंदेह मसीहा को मरना ही था। क्यों? आयत २४ हमें उत्तर देती है: “पापों का अन्त और अधर्म का प्रायश्चित्त किया जाए, और युगयुग की धार्मिकता प्रगट होए।” यहूदी लोग बहुत अच्छी तरह से जानते थे कि सिर्फ़ एक बलि, एक मृत्यु, ही गलती के लिए प्रायश्चित कर सकती थी।—लैव्यव्यवस्था १७:११; इब्रानियों ९:२२ से तुलना कीजिए.
१८. (क) यशायाह अध्याय ५३ कैसे दिखाता है कि मसीहा को दुःख उठाकर मरना पड़ेगा? (ख) यह भविष्यवाणी कौन-सा प्रतीत होनेवाला विरोधाभास खड़ा करती है?
१८ यशायाह अध्याय ५३ में मसीहा को यहोवा का ख़ास सेवक बताया गया है जिसे दूसरों के पापों को ढाँपने के लिए दुःख उठाकर मरना पड़ेगा। आयत ५ कहती है: “हमारे ही अपराधों के कारण घायल किया गया, वह हमारे अधर्म के कामों के हेतु कुचला गया।” वही भविष्यवाणी, हमें यह बताने के बाद कि इस मसीहा को “दोषबलि” के रूप में मरना पड़ेगा, प्रकट करती है कि यही जन “बहुत दिन जीवित रहेगा; उसके हाथ से यहोवा की इच्छा पूरी हो जाएगी।” (आयत १०) क्या यह विरोधाभास नहीं? मसीहा कैसे मर सकता था, और फिर ‘बहुत दिन जीवित रहता’? उसे कैसे बलि के तौर पर चढ़ाया जा सकता था और फिर बाद में “उसके हाथ से यहोवा की इच्छा पूरी” होती? बेशक, वह अपने विषय में सबसे महत्त्वपूर्ण भविष्यवाणियों को, अर्थात् वह राजा के रूप में सर्वदा शासन करेगा और पूरे संसार में शांति और ख़ुशी लाएगा, पूरा किए बिना कैसे मरकर मृत रह सकता था?—यशायाह ९:६, ७.
१९. यीशु का पुनरुत्थान मसीहा के विषय में विरोधात्मक प्रतीत होनेवाली भविष्यवाणियों में कैसे मेल करवाता है?
१९ प्रतीत होनेवाले इस विरोधाभास को एक ही शानदार चमत्कार ने सुलझा दिया। यीशु का पुनरुत्थान हुआ। सैकड़ों सच्चे दिलवाले यहूदी इस शानदार असलियत के चश्मदीद गवाह बने। (१ कुरिन्थियों १५:६) प्रेरित पौलुस ने बाद में लिखा: “यह व्यक्ति [यीशु मसीह] तो पापों के बदले एक ही बलिदान सर्वदा के लिये चढ़ाकर परमेश्वर के दहिने जा बैठा। और उसी समय से इस की बाट जोह रहा है, कि उसके बैरी उसके पांवों के नीचे की पीढ़ी बनें।” (इब्रानियों १०:१०, १२, १३) जी हाँ, यीशु का पुनरुत्थान होकर स्वर्ग चले जाने के बाद, और ‘बाट जोहने’ की अवधि के बाद ही, उसे आख़िरकार राजा की हैसियत से सिंहासनारूढ़ किया जाता और वह अपने पिता, यहोवा के शत्रुओं के विरुद्ध कार्यवाई करता। स्वर्गीय राजा की भूमिका अदा करते हुए, यीशु अर्थात् मसीहा अब जीवित सब व्यक्तियों के जीवन पर प्रभाव डालता है। किस रीति से? हमारा अगला लेख इस पर चर्चा करेगा।
[फुटनोट]
a जब लूका ३:२३ कहता है: ‘यूसुफ, एली का पुत्र था,’ तो प्रत्यक्षतः “पुत्र” का अर्थ “दामाद” है, क्योंकि एली मरियम का नैसर्गिक पिता था।—इन्साइट ऑन द स्क्रिपचर्स् (Insight on the Scriptures), खण्ड १, पृष्ठ ९१३-१७.
b अपना ख़ुद का वंशक्रम प्रस्तुत करने में, यहूदी इतिहासकार जोसीफ़स स्पष्ट करता है कि ऐसे रिकार्ड सा.यु. ७० से पहले उपलब्ध थे। स्पष्टतः, ये रिकार्ड यरूशलेम नगर के साथ ही नाश हो गए, जिस कारण मसीहापन के सब परवर्ती दावे अप्रमाण्य हो गए।
c इन्साइट ऑन द स्क्रिपचर्स्, खण्ड २, पृष्ठ ३८७ देखिए.
d प्राचीन यूनानी, बाबुली, तथा फ़ारसी स्रोतों से ठोस प्रमाण मिलता है जो संकेत करता है कि अर्तक्षत्र का प्रथम शासकीय वर्ष सा.यु.पू. ४७४ था। इन्साइट ऑन द स्क्रिपचर्स्, खण्ड २, पृष्ठ ६१४-१६, ९०० देखिए।
e एक ऐसी ही भविष्यवाणी में, उसने पूर्वबताया कि उसके दिन से झूठे मसीहा उठ खड़े होंगे। (मत्ती २४:२३-२६)
आप कैसे उत्तर देंगे?
▫ यीशु प्रतिज्ञात मसीहा है कि नहीं, इस बात के प्रमाण की जाँच क्यों करें?
▫ यीशु का वंशक्रम उसके मसीहापन का समर्थन कैसे करता है?
▫ यीशु ही मसीहा था इसको प्रमाणित करने के लिए बाइबल भविष्यवाणियाँ कैसे सहायता करती हैं?
▫ ख़ुद यहोवा ने यीशु का मसीहा होने की बात की पुष्टि किन तरीक़ों से की?
▫ इतने सारे यहूदियों ने क्यों यीशु को मसीहा के रूप में अस्वीकार किया, और ये कारण क्यों ग़लत थे?
[पेज 6 पर तसवीरें]
यीशु के अनेक चमत्कारों में से हरेक ने उसके मसीहापन का अतिरिक्त प्रमाण दिया