चौदहवाँ अध्याय
रूप बदलनेवाले दो राजा
1, 2. (क) क्या हुआ था जिसकी वज़ह से एन्टियोकस IV को मजबूर होकर रोम का हुक्म मानना पड़ा? (ख) सीरिया कब रोमी साम्राज्य का एक प्रांत बना?
उत्तर का राजा, सीरियाई एन्टियोकस IV मिस्र पर चढ़ाई करके वहाँ का राजा बन बैठता है। ऐसे में, दक्खिन का राजा टॉल्मी VI रोम से मदद माँगता है और रोम अपने राजदूत कायुस पोपिलियुस लाइनास को मिस्र भेजता है। यह राजदूत जंगी जहाज़ों के बड़े लशकर और रोमी सीनेट से आज्ञापत्र लेकर आता है कि एन्टियोकस IV मिस्र की राजगद्दी को छोड़ दे और अपनी फौजें लेकर वापस अपने देश चला जाए। मिस्र की राजधानी, सिकंदरिया के बाहर इलूसिस में सीरिया के राजा और रोम के इस राजदूत का आमना-सामना होता है। एन्टियोकस IV उससे मोहलत माँगते हुए कहता है कि वह अपने सलाहकारों से सलाह लेकर फैसला करेगा। लेकिन लाइनास अपनी छड़ी से उसके चारों तरफ एक गोलधारा खींचता है और कहता है कि इस घेरे से बाहर कदम रखने से पहले मुझे जवाब दो। सबके सामने एन्टियोकस की नाक कट जाती है। मजबूरी में वह रोम की सारी शर्तें मान लेता है और सा.यु.पू. 168 में अपने वतन सीरिया लौट जाता है, दक्खिन के राजा मिस्र और उत्तर के राजा सीरिया का संघर्ष यहीं खत्म हो गया। अब सीरिया का राजा उत्तर के राजा की जगह से हट चुका था।
2 सा.यु.पू. 163 में सेल्युकसवंशी एन्टियोकस IV की मौत के बाद बहुत-से दूसरे सेल्युकसवंशी राजाओं ने राज किया लेकिन उनमें से कोई भी ‘उत्तर देश के राजा’ की जगह नहीं ले पाया। (दानिय्येल 11:15) अब सारे मध्यपूर्व में रोम का दबदबा था यहाँ तक कि सीरिया भी उसके इशारों पर नाचने लगा। आखिरकार सा.यु.पू. 64 में सीरिया रोम के साम्राज्य का एक प्रांत बन गया।
3. कब और कैसे मिस्र पर रोम की हुकूमत हो गई?
3 दूसरी तरफ एन्टियोकस IV की मौत के बाद, मिस्र में टॉल्मी का राजवंश करीब 130 साल और “दक्खिन देश के राजा” की जगह पर बना रहा। (दानिय्येल 11:14) लेकिन सा.यु.पू. 31 में एक्शियम की लड़ाई में रोम के सम्राट ऑक्टेवियन ने मिस्र की टॉल्मी वंशी रानी क्लियोपेट्रा VII और उसके रोमी दोस्त और प्रेमी मार्क एन्टनी की सेनाओं को हरा दिया। अगले साल क्लियोपेट्रा ने आत्महत्या कर ली और इसी के साथ मिस्र भी रोम के साम्राज्य का एक प्रांत बनकर रह गया। इसके बाद मिस्र दक्खिन का राजा नहीं रहा। सा.यु.पू. 30 तक सीरिया और मिस्र दोनों पर ही रोम की हुकूमत हो गई थी। इसका मतलब यह था कि अब कोई और राष्ट्र और राजा ‘उत्तर देश के राजा’ और ‘दक्खिन देश के राजा’ की जगह लेनेवाला था।
नया राजा “कर वसूलने वाले” को भेजता है
4. यह हम क्यों कह सकते हैं कि कोई और राष्ट्र और राजा उत्तर देश के राजा की जगह लेनेवाला था?
4 यीशु मसीह की भविष्यवाणी से हमें यह जानने में मदद मिलती है कि उत्तर का अगला राजा कौन होगा। सामान्य युग 33 में यीशु ने, उत्तर के राजा के बारे में दानिय्येल की भविष्यवाणी को दोहराते हुए अपने चेलों को बताया था: “सो जब तुम उस उजाड़नेवाली घृणित वस्तु को जिस की चर्चा दानिय्येल भविष्यद्वक्ता के द्वारा हुई थी, पवित्र स्थान में खड़ी हुई देखो, . . . तब जो यहूदिया में हों वे पहाड़ों पर भाग जाएं।” (मत्ती 24:15, 16) कई रोमी और यहूदी टीकाकार कहते हैं कि दानिय्येल 11:19-45 सीरिया के राजा एन्टियोकस IV पर लागू होता है। वे कहते हैं कि आयत 31 में जिस ‘घृणित वस्तु’ के खड़े होने का ज़िक्र दानिय्येल ने किया था वह तब हुआ था जब एन्टियोकस IV ने यरूशलेम के मंदिर को अशुद्ध किया था। लेकिन ध्यान दीजिए कि यीशु ने जब दानिय्येल के इन्हीं शब्दों को दोहराकर अपने चेलों को यह चेतावनी दी, तब उत्तर के राजा एन्टियोकस IV को मरे हुए 195 साल बीत चुके थे। जिसका मतलब है कि इस भविष्यवाणी में उत्तर के राजा के बारे में जो कहा गया है वह एन्टियोकस पर लागू नहीं होता बल्कि यह भविष्य में होनेवाला था। जैसा हम देख चुके हैं, सीरिया पर तो रोम का कब्ज़ा हो चुका था इसलिए जब यह भविष्यवाणी पूरी होती तब सीरिया, उत्तर के राजा की जगह नहीं हो सकता था। कोई और राष्ट्र और राजा उत्तर देश के राजा की जगह लेनेवाला था। यह बदलाव हमें दानिय्येल 11 अध्याय की 20वीं आयत में देखने को मिलता है। आइए देखें कि उत्तर का अगला राजा कौन बना।
5. एन्टियोकस IV के स्थान पर कौन उत्तर का अगला राजा बनकर उठा?
5 यहोवा के स्वर्गदूत ने आगे कहा: “तब उसके [एन्टियोकस IV के] स्थान में कोई ऐसा उठेगा, जो शिरोमणि राज्य में अन्धेर करनेवाले [“किसी कर वसूलने वाले,” ईज़ी-टू-रीड वर्शन] को घुमाएगा; परन्तु थोड़े दिन बीतने पर वह क्रोध वा युद्ध किए बिना ही नाश हो जाएगा।” (दानिय्येल 11:20) एन्टियोकस के स्थान पर ‘उठनेवाला,’ उत्तर का अगला राजा रोम का पहला सम्राट ऑक्टेवियन था, जिसे कैसर या सीज़र औगूस्तुस भी कहा जाता था। यह कैसे कहा जा सकता है कि वही उत्तर का अगला राजा था?—पेज 248 पर “एक का सम्मान दूसरे का अपमान” देखिए।
6. (क) “शिरोमणि राज्य” में एक “अन्धेर करनेवाले” को कब भेजा गया, और इसकी क्या अहमियत थी? (ख) यह क्यों कहा जा सकता है कि औगूस्तुस “क्रोध वा युद्ध किए बिना ही नाश हो” गया? (ग) उत्तर के राजा की पहचान में क्या बदलाव आया और अब उसकी जगह किसने ले ली थी?
6 औगूस्तुस के ‘शिरोमणि राज्य’ में दानिय्येल के लोगों का “शिरोमणि देश” यहूदा भी शामिल था, जो उस वक्त रोमी साम्राज्य का एक प्रांत था। (दानिय्येल 11:16) “अन्धेर” करनेवाले या कर वसूलनेवाले को भेजने की बात तब पूरी हुई जब सा.यु.पू. 2 में औगूस्तुस ने अपने राज्य के लोगों की नाम लिखाई की आज्ञा दी। उसने ऐसा सिर्फ लोगों की गिनती करवाने के लिए नहीं किया बल्कि उसका मकसद था कि वह अपनी प्रजा से कर ले सके और भरती होने लायक लोगों को अपनी फौज में शामिल कर सके। नाम लिखाई की यही घटना औगूस्तुस कैसर के राज की सबसे अहम घटना थी जिससे साबित होता है कि वही उत्तर का अगला राजा बना। इसी आज्ञा के मुताबिक यूसुफ और मरियम अपना नाम लिखवाने के लिए अपने नगर बेतलहम गए और इसी वज़ह से वह भविष्यवाणी पूरी हुई जिसमें बताया गया था कि यीशु का जन्म यहूदा देश के बेतलहम में होगा। (मीका 5:2; मत्ती 2:1-12) इस नाम लिखाई के बाद “थोड़े दिन बीतने पर” ही यानी सा.यु. 14 के अगस्त में औगूस्तुस 76 साल की उम्र में बीमार होकर मर गया। जैसा भविष्यवाणी में कहा गया था, ना तो किसी हत्यारे ने “क्रोध” में आकर उसे मारा ना ही किसी “युद्ध” में उसकी मौत हुई। यह भविष्यवाणी जिस तरह रोम के सम्राट पर पूरी हुई उससे हम कह सकते हैं कि उत्तर के राजा की पहचान बदल चुकी थी। अब रोमी साम्राज्य के सम्राटों ने उत्तर के राजा की जगह ले ली थी!
‘एक तुच्छ मनुष्य उठ खड़ा होता है’
7, 8. (क) औगूस्तुस की मौत के बाद उत्तर का राजा कौन बना? (ख) न चाहते हुए भी क्यों औगूस्तुस कैसर के वारिस को “राज-प्रतिष्ठा” दी गई?
7 भविष्यवाणी में आगे बताते हुए स्वर्गदूत कहता है: “उसके [औगूस्तुस के] स्थान में एक तुच्छ मनुष्य उठेगा, जिसकी राज-प्रतिष्ठा पहिले तो न होगी, तौभी वह चैन के समय आकर चिकनी-चुपड़ी बातों के द्वारा राज्य को प्राप्त करेगा। तब उसकी भुजारूपी बाढ़ से लोग [“बाढ़-सी बढ़ती हुई सेनाएं,” NHT], वरन वाचा का प्रधान भी उसके साम्हने से बहकर नाश होंगे।”—दानिय्येल 11:21, 22.
8 भविष्यवाणी में बताया गया यह “तुच्छ मनुष्य,” तिबिरियुस कैसर या सीज़र था। वह लिवीया का बेटा था जो बाद में औगूस्तुस की तीसरी पत्नी बनी। (पेज 248 पर “एक का सम्मान दूसरे का अपमान” देखिए।) कैसर औगूस्तुस को अपने इस सौतेले बेटे के चालचलन से नफरत थी और वह नहीं चाहता था कि उसका यह बेटा अगला कैसर या सीज़र बने। लेकिन ना चाहते हुए भी उसे तिबिरियुस को “राज-प्रतिष्ठा” देनी पड़ी, क्योंकि उसकी राजगद्दी को संभालने के लिए उसका और कोई भी वारिस ज़िंदा नहीं बचा था। इसलिए सा.यु. 4 में, कैसर औगूस्तुस ने मजबूरी में तिबिरियुस को अपने बेटे के रूप में अपनाया और उसे अपनी गद्दी का वारिस बना दिया। ठीक जैसा भविष्यवाणी में लिखा था, औगूस्तुस की मौत के बाद यही तुच्छ मनुष्य यानी 54 साल का तिबिरियुस, ‘उठकर’ रोम का सम्राट बना। और वही अब उत्तर का राजा भी था।
9. किस तरह तिबिरियुस ने ‘चिकनी-चुपड़ी बातों के द्वारा राज्य को प्राप्त कर लिया’?
9 द न्यू इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका कहती है: “तिबिरियुस ने रोमी सीनेट (शासी सभा) के साथ राजनीति खेली और [औगूस्तुस के मरने के बाद] एक महीने तक उसने सीनेट को सम्राट के रूप में अपना नाम घोषित करने नहीं दिया।” सीनेट की सभा में उसने कहा कि औगूस्तुस ही रोमी साम्राज्य पर राज करने की इतनी भारी ज़िम्मेदारी उठाने के लायक था। तिबिरियुस ने सीनेट से माँग की कि वे एक अकेले आदमी को इतना बड़ा अधिकार न दें बल्कि वे जनता के काबिल प्रतिनिधियों की सभा फिर से बनाकर उन्हें राज-काज चलाने की यह ज़िम्मेदारी सौंपें। इतिहासकार विल ड्यूरंट ने लिखा, “सीनेट उसकी राय पर कतई अमल नहीं करना चाहती थी, इसलिए उसके सदस्य भरी सभा में तिबिरियुस के आगे झुक-झुककर उसे तब तक दण्डवत करते रहे जब तक कि वह सम्राट बनने के लिए राज़ी न हो गया।” ड्यूरंट ने आगे कहा: “दोनों ही ने अच्छा नाटक किया। तिबिरियुस जानता था कि सीनेट, जनता के प्रतिनिधियों के हाथों में राज नहीं सौंपना चाहती। वह खुद मन ही मन सम्राट का पद पाना चाहता था, क्योंकि अगर उसे सम्राट बनना मंज़ूर नहीं होता तो वह इसे टालने के लिए कोई न कोई रास्ता ज़रूर निकाल लेता। लेकिन वह सबके सामने नम्रता का नाटक कर रहा था। दूसरी तरफ सीनेट उससे डरती थी और उससे नफरत भी करती थी, लेकिन वह यह भी नहीं चाहती थी कि सम्राट और सीनेट के अलावा जनता के हाथ में हुकूमत हो।” जैसे भविष्यवाणी में लिखा था, तिबिरियुस ने ‘चिकनी-चुपड़ी बातों के द्वारा राज्य को प्राप्त कर लिया।’
10. किस तरह “भुजारूपी बाढ़” को ‘नाश’ किया गया?
10 भविष्यवाणी में आगे “भुजारूपी बाढ़” के बारे में कहा गया है। ये रोम के आस-पास के देशों की “सेनाएं” थीं। इनके बारे में स्वर्गदूत ने कहा था, ‘वे उसके साम्हने से बहकर नाश हो जाएँगी।’ यह कैसे हुआ आइए देखें। जब तिबिरियुस सम्राट बना और उसने उत्तर के राजा की जगह ले ली, उस वक्त उसका भतीजा जरमैनिकस सीज़र, राइन नदी के पास रोमी फौजों की टुकड़ी का सेनापति था। और सा.यु. 15 में जरमैनिकस अपनी फौज को लेकर जर्मनी के योद्धा अरमिनीयस से लड़ने गया, और उसे कुछ हद तक सफलता भी मिली। लेकिन इन लड़ाइयों में जीत हासिल करने के लिए उन्हें बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। इसलिए तिबिरियुस ने जर्मनी में अपनी सैनिक कार्यवाही रोक दी। लेकिन इसके बजाय उसने धूर्त तरीके का इस्तेमाल किया और जर्मनी में रहनेवाली जातियों के बीच फूट डाली ताकि वे आपस में झगड़ती रहें और कभी एक न होने पाएँ। यही नीति रोम ने अपने बाकी पड़ोसी देशों के साथ भी अपनायी, उन पर हमला करने के बजाय तिबिरियुस ने अपने साम्राज्य की सरहदों पर फौजों को और भी शक्तिशाली बनाया। उसका यह तरीका बहुत कामयाब रहा। ठीक जैसा भविष्यवाणी में कहा गया था, वह आस-पड़ोस के देशों की ‘बाढ़-सी बढ़ती हुई सेनाओं’ को काबू में कर सका और ‘वे उसके साम्हने से बहकर नाश हो गयीं।’
11. किस तरह ‘वाचा का प्रधान नाश’ हुआ?
11 लेकिन जैसा भविष्यवाणी में बताया गया था, इन सबके साथ-साथ “वाचा का प्रधान” भी उसके ‘साम्हने नाश’ हुआ। यह वाचा का प्रधान इब्राहीम का वंश, यीशु मसीह था। यहोवा परमेश्वर ने इब्राहीम से वाचा बाँधी थी कि पृथ्वी की सारी जातियां अपने को तेरे वंश के कारण धन्य मानेंगी। (उत्पत्ति 22:18; गलतियों 3:16) यह वंश या वाचा का प्रधान यीशु मसीह कैसे नाश हुआ? सा.यु. 33 के निसान 14 के दिन यीशु को यरूशलेम में, रोमी सम्राट तिबिरियुस के गवर्नर पुन्तियुस पीलातुस के महल में हाज़िर किया गया। और उसी के सामने यहूदी महायाजकों और सरदारों ने यीशु पर सम्राट के खिलाफ राजद्रोह का इलज़ाम लगाया। लेकिन यीशु ने पीलातुस से कहा: “मेरा राज्य इस जगत का नहीं . . . मेरा राज्य यहां का नहीं।” लेकिन वहाँ मौजूद यहूदी नहीं चाहते थे कि रोमी गवर्नर पीलातुस यीशु को बेकसूर मानकर छोड़ दे, इसलिए वे चिल्ला उठे: “यदि तू इस को छोड़ देगा तो तेरी भक्ति कैसर की ओर नहीं; जो कोई अपने आप को राजा बनाता है वह कैसर का साम्हना करता है।” यहूदी धर्मगुरू जानते थे कि तिबिरियुस ने “राजद्रोह” कानून के साथ “सम्राट मानहानि” का कानून भी शामिल किया था जिसके मुताबिक किसी भी तरह से कैसर का अपमान करनेवाले को सज़ा दी जा सकती थी। इस कानून का सहारा लेते हुए वे पीलातुस पर दबाव डालकर कहने लगे: “कैसर को छोड़ हमारा और कोई राजा नहीं।” तिबिरियुस के बनाए इसी कानून के मुताबिक, पीलातुस ने यीशु को “नाश” होने या यातना स्तंभ पर चढ़ाए जाने के लिए सौंप दिया।—यूहन्ना 18:36; 19:12-16; मरकुस 15:14-20.
एक तानाशाह ‘योजनाएँ रचता है’
12. (क) किसने तिबिरियुस के साथ सन्धि की? (ख) किस तरह तिबिरियुस “थोड़े से लोगों के सहारे प्रबल” हो गया?
12 तिबिरियुस के बारे में आगे कहते हुए वह स्वर्गदूत भविष्यवाणी करता है: “उसके साथ सन्धि हो जाने पर भी वह छल करेगा और आगे बढ़कर थोड़े से लोगों के सहारे प्रबल होगा।” (दानिय्येल 11:23, NHT) रोमी संविधान के मुताबिक, सम्राट और सीनेट को साथ मिलकर काम करना था। इसी मायने में सीनेट ने तिबिरियुस के साथ ‘सन्धि’ की थी और तिबिरियुस भी ऊपरी तौर पर दिखावा करता था कि वह सीनेट पर पूरी तरह निर्भर है। लेकिन वह छल कर रहा था और “थोड़े ही लोगों के सहारे प्रबल” होता जा रहा था। ये थोड़े से लोग दरअसल रोमी प्रिटोरियन गार्ड थे। ये राजा के निजी अंगरक्षकों की फौज थी, जो रोम की शहरपनाह के पास ही डेरा डालकर रहती थी। राजा के 10,000 अंगरक्षकों की इस फौज की मौजूदगी से सीनेट दहशत खाती थी और तिबिरियुस इसी के सहारे अपने खिलाफ उठनेवाली किसी भी आवाज़ को कुचल देता था। इन थोड़े से लोगों की फौज के सहारे तिबिरियुस प्रबल रहा।
13. किस मामले में तिबिरियुस अपने पुरखों से बढ़कर साबित हुआ?
13 स्वर्गदूत ने भविष्यवाणी में आगे कहा: “चैन के समय वह प्रान्त के उत्तम से उत्तम स्थानों पर चढ़ाई करेगा; और जो काम न उसके पुरखा और न उसके पुरखाओं के पुरखा करते थे, उसे वह करेगा; और लूटी हुई धन-सम्पत्ति उन में बहुत बांटा करेगा। वह कुछ काल तक दृढ़ नगरों के लेने की कल्पना करता रहेगा [“योजनाएँ रचेगा,” ईज़ी-टू-रीड]।” (दानिय्येल 11:24) तिबिरियुस बहुत ही शक्की किस्म का इंसान था और अपने राज में उसने बेहिसाब लोगों को शक की बिनाह पर मरवा डाला। प्रिटोरियन फौज का सेनापति सिजेनस उसका दायाँ हाथ था जिसकी वज़ह से तिबिरियुस के राज के आखिरी दिन लोगों के लिए दहशत से भरे हुए थे। लेकिन बाद में तिबिरियुस ने सिजेनस को भी शक की बिनाह पर मरवा डाला। लोगों पर ज़ुल्म करने में तिबिरियुस अपने पुरखों से भी बढ़कर साबित हुआ।
14. (क) किस तरह तिबिरियुस ने “लूटी हुई धन-सम्पत्ति” को रोम के सभी प्रांतों में बाँटा? (ख) जब तिबिरियुस मरा तब तक वह क्या नाम कमा चुका था?
14 लेकिन तिबिरियुस ने “लूटी हुई धन-सम्पत्ति” को सभी रोमी प्रांतों में “बहुत बांटा”। आइए देखें कैसे। उसकी मौत के वक्त तक उसकी प्रजा बहुत खुशहाल और संपन्न हो चुकी थी। इसकी वज़ह यह थी कि उसके राज में लोगों से ज़्यादा कर नहीं लिए जाते थे और जो इलाके बुरे हालात से गुज़र रहे होते थे वहाँ तिबिरियुस दिल खोलकर लोगों को रिआयत देता था। अगर किसी नागरिक पर कोई सैनिक या सरकारी अफसर अत्याचार करता या उसके साथ बेईमानी करता तो वह नागरिक सम्राट से फरियाद करके इंसाफ पा सकता था। राज्य में अधिकार रखनेवालों पर सम्राट का पूरा नियंत्रण था, जिसकी वज़ह से लोग सुरक्षित महसूस करते थे। अच्छी सड़कों और संचार के अच्छे इंतज़ामों की वज़ह से व्यापार फलने-फूलने लगा था। तिबिरियुस ने इस बात का ध्यान रखा कि न सिर्फ रोम में बल्कि साम्राज्य की हर जगह पर राज-काज का हर काम बिना पक्षपात के और बिना किसी रुकावट के पूरा किया जाए। इसलिए उसने कानूनों में सुधार किया और कैसर औगूस्तुस के बनाए हुए कानूनों में फेर-बदल करके जनता के लिए कानूनों को सुधारा। लेकिन तिबिरियुस ने ‘योजनाएँ रचना’ नहीं छोड़ा इसीलिए रोमी इतिहासकार टेसिटस उसे एक कपटी और महाढोंगी बताता है। और जब सा.यु. 37 के मार्च में वह मरा तब तक वह एक अत्याचारी तानाशाह का नाम कमा चुका था।
15. पहली सदी के आखिर से लेकर दूसरी सदी की शुरूआत तक रोम किस मंज़िल तक पहुँच गया था?
15 तिबिरियुस की मौत के बाद रोम के जिन सम्राटों ने उत्तर के राजा की जगह ली, वे थे गेयस सीज़र (कलिग्युला), क्लौडियस I, नीरो, वेसपाज़ीन, टाइटस, डोमिशियन, नरवा, ट्राज़ेन, हेड्रियन। द न्यू इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका कहती है: “तिबिरियुस के अलावा रोम की राजगद्दी पर बैठनेवाले सम्राटों ने अपने साम्राज्य की तरक्की के लिए ज़्यादातर औगूस्तुस की ही शासन नीतियों को लागू किया और उसी के निर्माण काम को आगे बढ़ाया। भले ही उन्होंने खुद इनमें कोई खास सुधार न किया हो, मगर सभी ने इस बात का बढ़-चढ़के दिखावा किया कि वे औगूस्तुस की नीतियों पर चल रहे हैं।” यही किताब आगे कहती है: “पहली सदी के आखिर से लेकर दूसरी सदी की शुरूआत तक रोम अपनी पूरी महिमा और वैभव में पहुँच चुका था और उसकी जनसंख्या भी उसी वक्त सबसे ज़्यादा थी।” हालाँकि, इस दौरान रोम के साम्राज्य की सरहदों पर कभी-कभार छोटी-मोटी झड़पें ज़रूर हुईं, लेकिन दक्खिन के राजा के साथ उसकी लड़ाई तीसरी सदी में ही आकर हुई जैसा भविष्यवाणी में बताया गया था।
दक्खिन के राजा के खिलाफ उभरता है
16, 17. (क) दानिय्येल 11:25 में बताया गया उत्तर का अगला राजा कौन बना? (ख) दक्खिन के राजा की जगह किसने ली, और यह कैसे हुआ?
16 परमेश्वर का स्वर्गदूत भविष्यवाणी में आगे कहता है: “वह [उत्तर का राजा] दक्षिण देश के राजा के विरुद्ध एक बड़ी सेना लिए हुए अपने बल और साहस को उभारेगा; और दक्षिण देश का राजा एक विशाल और शक्तिशाली सेना लेकर युद्ध करने के लिए उत्तेजित होगा। और वह [उत्तर का राजा] अपने विरुद्ध किए गए षड्यंत्रों के कारण टिक न सकेगा। जो उसी का दिया उत्तम भोजन खाते हैं वे ही उसका विनाश करेंगे। और उसकी सेना बह जाएगी और बहुत लोग मार डाले जाएंगे।”—दानिय्येल 11:25, 26, NW.
17 यह आयत उत्तर के राजा की जगह लेनेवाले रोम के नए सम्राट के बारे में बताती है, वह था ऑरीलियन। ऑरीलियन के राज में सीरिया के रेगिस्तान में पालमाइरा नाम का एक नगर था। यह रोम साम्राज्य का ही एक प्रांत था। लेकिन इसकी रानी सेप्टीमीया ज़ॆनोबीया, ऑरीलियन की सबसे बड़ी दुश्मन साबित हुई। यह कैसे हुआ, आइए देखें। (पेज 252 पर “ज़ॆनोबीया—पालमाइरा की जाँबाज़ महारानी” देखिए।) आपको याद होगा कि रोम के पहले सम्राट, ऑक्टेवियन ने मिस्र पर कब्ज़ा करके उसे रोम का एक प्रांत बना लिया था। यह ऑरीलियन के सम्राट बनने से करीब 300 साल पहले हुआ था। लेकिन जब सा.यु. 269 में मिस्र में रोम के खिलाफ विद्रोह हुआ, तो इसे कुचलने का बहाना बनाकर पालमाइरा की फौजों ने मिस्र पर कब्ज़ा कर लिया और ज़ॆनोबीया ने खुद को मिस्र की रानी घोषित कर दिया। इसी घटना के साथ, पालमाइरा की रानी ज़ॆनोबीया ने दक्खिन के राजा की जगह ले ली।a ज़ॆनोबीया चाहती थी कि सारे पूर्व में पालमाइरा की हुकूमत हो और वह रोमी साम्राज्य के पूर्वी प्रांतों पर भी राज करे। लेकिन ऑरीलियन को जब उसके इरादों का पता चला तब उसने ज़ॆनोबीया के खिलाफ युद्ध करने के लिए अपने “बल और साहस” को उभारा।
18. उत्तर के राजा, सम्राट ऑरीलियन और दक्खिन के राजा के रूप में रानी ज़ॆनोबीया के बीच संघर्ष का क्या नतीजा हुआ?
18 रानी ज़ॆनोबीया जो अब दक्खिन के राजा की जगह पर थी, उसने भी उत्तर के राजा ऑरीलियन का सामना किया। उसने अपने दो सेनापतियों, ज़बदस और ज़ब्बै के अधीन “एक विशाल और शक्तिशाली सेना लेकर युद्ध” किया। लेकिन ऑरीलियन ने पालमाइरा की फौजों को हराकर मिस्र पर दोबारा कब्ज़ा कर लिया और उसके बाद वह अपनी फौजें लेकर एशिया माइनर और सीरिया की तरफ बढ़ चला। ज़ॆनोबीया एमेसा (अब होम्ज़) की लड़ाई में हार गई और अपनी फौज के साथ पीछे हटकर पालमाइरा में आ गई। फिर जब ऑरीलियन ने वहाँ आकर पालमाइरा को घेरा तब ज़ॆनोबीया ने डटकर उसका मुकाबला किया, लेकिन वह अपने नगर को बचा नहीं पाई। इसलिए वह अपने बेटे को लेकर फारस की तरफ भागी, लेकिन उसे फरात नदी के पास ही रोमी सैनिकों ने पकड़ लिया। सा.यु. 272 में आखिरकार पालमाइरा के लोगों ने ऑरीलियन के सामने आत्म-समर्पण कर दिया। ऑरीलियन ज़ॆनोबीया को पकड़कर रोम ले गया और सा.यु. 274 में उसने हारी हुई ज़ॆनोबीया को अपने जीत के जुलूस में पूरे रोम शहर में घुमाया। ज़ॆनोबीया ने बाद में रोम के एक बड़े अधिकारी से शादी कर ली और उसकी बाकी ज़िंदगी रोम में ही कटी।
19. ‘अपने विरुद्ध किए गए षड्यंत्रों के कारण’ ऑरीलियन का अंत कैसे हो गया?
19 लेकिन दक्खिन देश के राजा को हरानेवाला उत्तर देश का राजा, ऑरीलियन खुद भी ‘अपने विरुद्ध किए गए षड्यंत्रों के कारण टिक न सका।’ सा.यु. 275 में वह फारस के खिलाफ लड़ने निकला था। जब वह थ्रेस में रुका हुआ था और जलसंधि पार करके एशिया माइनर में जाने के मौके का इंतज़ार कर रहा था तब ‘उसी का दिया भोजन खानेवालों’ ने उसके ‘विनाश’ के लिए षड्यंत्र रचा। वह अपने सेक्रेट्री इरोज़ को उसकी बेईमानी की सज़ा देनेवाला था। लेकिन इससे पहले ही इरोज़ ने कुछ अधिकारियों के नाम की एक नकली पर्ची बनाकर उन्हीं अधिकारियों को दिखाई और उनको वरगलाया कि इस पर्ची में उन लोगों के नाम हैं जिन्हें राजा मरवा डालेगा। यह देखकर उन अधिकारियों ने ऑरीलियन के खिलाफ आपस में साज़िश की और उसे मार डाला।
20. किस तरह उत्तर के राजा की “सेना” ‘बह गयी’?
20 लेकिन सम्राट ऑरीलियन की मौत होने पर उत्तर का राजा खत्म नहीं हो गया। ऑरीलियन के बाद रोम में और भी कई सम्राट हुए। एक ऐसा भी वक्त आया जब रोम साम्राज्य दो भागों में यानी पूर्वी और पश्चिमी भाग में बँट गया और दोनों में अलग-अलग सम्राट राज कर रहे थे। पूर्वी और पश्चिमी सम्राटों के अधीन, उत्तर के राजा की सेना ‘बह गयी’ या “त्तितर-बित्तर”b हो गई। कैसे? जैसा भविष्यवाणी में कहा गया था, ‘बहुत लोग मार डाले’ गए क्योंकि उत्तर से गॉथ कहलानेवाली जर्मन जातियाँ लगातार हमले कर रही थीं। चौथी सदी में ये जातियाँ रोम साम्राज्य की उत्तरी सरहदों को पार करने में कामयाब हो गईं। उसके बाद तो उन्होंने एक-के-बाद-एक कई हमले किए। आखिरकार, सा.यु. 476 में जर्मन जाति के सरदार ओडवेसर ने रोम के पश्चिमी राज्य के आखिरी सम्राट से रोम की राजगद्दी छीन ली। छठी सदी की शुरूआत होते-होते, रोम साम्राज्य का पश्चिमी भाग पूरी तरह टूट चुका था और ब्रितानिया, गॉल, इटली, उत्तरी अफ्रीका और स्पेन में जर्मन राजा राज करने लगे थे। मगर रोम साम्राज्य का पूर्वी भाग 15वीं सदी तक बना रहा।
बड़ा साम्राज्य बँट जाता है
21, 22. चौथी सदी में, रोमी सम्राट कॉन्सटनटाइन ने क्या-क्या बदलाव किए?
21 इसके बाद धीरे-धीरे रोम साम्राज्य टूटता गया और इसमें कई सदियाँ लग गयीं। यह कैसे हुआ इसका ब्यौरा देने के बजाय अब स्वर्गदूत दानिय्येल को यह बताता है कि भविष्य में उत्तर के राजा और दक्खिन के राजा की जगहों पर आनेवाले राजा या देश क्या करेंगे। लेकिन दानिय्येल 11:27 में किन राजाओं ने उत्तर और दक्खिन के राजाओं की जगह ली यह समझने के लिए ज़रूरी है कि हम रोम साम्राज्य के आखिरी दिनों में क्या हुआ उस पर एक नज़र डालें।
22 आइए चौथी सदी में चलें, जब कॉन्सटनटाइन रोम साम्राज्य का सम्राट था। उसने, सच्ची मसीहियत से दूर जा चुके ईसाई धर्म को पूरे रोम साम्राज्य का धर्म बना दिया। कॉन्सटनटाइन नहीं चाहता था कि उसका साम्राज्य टूटे, इसलिए उसने सा.यु. 325 में एशिया माइनर के निसीया नगर में चर्च के बिशपों की बैठक बुलाई और खुद उसकी अध्यक्षता की। बाद में सम्राट कॉन्सटनटाइन ने रोम की जगह अपना निवास बिज़ेन्टियम या कॉन्सटनटीनोपल में बना लिया। और इस तरह कॉन्सटनटीनोपल शहर, रोम साम्राज्य की नई राजधानी बन गया। जनवरी 17, सा.यु. 395 को सम्राट थियोडोसियस I की मौत होने तक, पूरे रोम साम्राज्य पर एक ही सम्राट का राज्य था।
23. (क) थियोडोसियस के मरने पर रोमी साम्राज्य किन भागों में बँट गया? (ख) रोम का पूर्वी साम्राज्य कब खत्म हुआ? (ग) सन् 1517 में मिस्र पर किसका राज था?
23 लेकिन, थियोडोसियस के मरने पर रोम साम्राज्य उसके दो बेटों में बँट गया, जैसा 20वें पैराग्राफ में बताया गया है। उसके बेटे हनोरियस ने पश्चिम का भाग ले लिया और आर्केडियस ने पूर्व का भाग ले लिया जिसमें राजधानी कॉन्सटनटीनोपल भी थी। पश्चिमी भाग में ब्रितानिया, गॉल, इटली, स्पेन, उत्तरी अफ्रीका के प्रांत थे। जबकि पूर्वी भाग में मकिदुनिया, थ्रेस, एशिया माइनर, सीरिया, और मिस्र के प्रांत थे। सा.यु. 642 में मिस्र की राजधानी सिकंदरिया पर सारासेन (या, अरबी) जाति ने कब्ज़ा कर लिया और मिस्र में खलीफा राज करने लगे। सन् 1449 जनवरी में कॉन्सटनटाइन XI पूर्वी रोम का आखिरी सम्राट बना। मई 29, 1453 में सुल्तान मुहम्मद II ने ऑटमन तुर्कों के साथ कॉन्सटनटीनोपल पर कब्ज़ा कर लिया। इसी के साथ रोम का पूर्वी साम्राज्य खत्म हो गया। इसके बाद सन् 1517 में पूरे मिस्र पर भी तुर्कों का अधिकार हो गया। लेकिन यह मिस्र देश जो पुराने ज़माने में कभी दक्खिन के राजा की जगह रखता था बहुत जल्द रोम के पश्चिमी भाग से उभरनेवाले एक साम्राज्य का हिस्सा बननेवाला था।
24, 25. (क) पवित्र रोमी साम्राज्य की शुरूआत के बारे में कुछ इतिहासकार क्या बताते हैं? (ख) पवित्र रोमी साम्राज्य के “सम्राट” की उपाधि आखिर में किसे मिली?
24 आइए अब रोम साम्राज्य के पश्चिमी भाग को लें। जैसा हम पहले भी देख चुके हैं, सा.यु. 476 में आखिरी पश्चिमी रोमी सम्राट से रोम की राजगद्दी छीन ली गयी थी और इन पश्चिमी इलाकों पर जर्मन जाति के राजाओं का कब्ज़ा हो गया था। लेकिन इसके बाद भी रोम, विश्वशक्ति बना रहा। अब यह विश्वशक्ति रोम साम्राज्य नहीं था बल्कि इसने ‘रोमन कैथोलिक धर्म संगठन’ का रूप ले लिया था। रोमन कैथोलिक धर्म संगठन के ‘पोप’ ने सदियों तक सारे यूरोपीय देशों पर अपना दबदबा बनाए रखा। आइए देखें कैसे। सा.यु. 476 के बाद, रोम के पश्चिमी भाग में एक कैथोलिक बिशप उठा जिसका नाम था पोप लियो I. माना जाता है कि इसी पोप लियो I ने पाँचवी सदी में राजनैतिक मामलों में रोमन कैथोलिक पोप की हुकूमत की शुरूआत की थी। कुछ समय बाद तो रोम के ये पोप ही, पश्चिमी भाग के सम्राटों की ताजपोशी करने लगे। सा.यु. 800 में क्रिसमस के दिन रोमन कैथोलिक धर्म संगठन के अगुवे पोप लियो III ने फ्रांक भाषा बोलनेवाले राजा चार्ल्स (शार्लमेन) को पश्चिम के नए रोमी साम्राज्य का सम्राट बना दिया। इस ताजपोशी के साथ ही रोम शहर में फिर से सम्राटों का राज शुरू हो गया। कुछ इतिहासकार कहते हैं कि इसी समय से “पवित्र रोमी साम्राज्य” की शुरूआत हुई। इस वक्त, एक तरफ तो रोमी साम्राज्य का पूर्वी भाग था जिस पर रोमी सम्राट राज करता था और दूसरी तरफ पश्चिम में नया “पवित्र रोमी साम्राज्य” था जिस पर पोप का अधिकार था। ये दोनों ही ईसाई-धर्म को मानने का दावा करते थे।
25 राजा शार्लमेन के बाद, पश्चिमी भाग की राजगद्दी पर बैठनेवाले सम्राट सही तरीके से राज नहीं कर पाए। एक बार तो यहाँ तक नौबत आयी कि सम्राट का पद कुछ समय तक खाली पड़ा रहा। इस दौरान उत्तर और मध्य इटली के बड़े इलाके पर जर्मन जाति के राजा ऑटो I ने कब्ज़ा कर लिया था। और उसने ऐलान कर दिया कि वह इटली का राजा है। इसलिए फरवरी 2, सा.यु. 962 में पोप जॉन XII ने ऑटो I को पवित्र रोमी साम्राज्य का सम्राट बनाने के लिए उसकी ताजपोशी कर दी। इस साम्राज्य की राजधानी जर्मनी में थी और उसके राजा भी जर्मन थे और प्रजा के ज़्यादातर लोग भी जर्मन थे। इसके 500 साल बाद, “सम्राट” की उपाधि ऑस्ट्रिया के हैप्सबर्ग घराने के शासकों ने हासिल कर ली और पवित्र रोमी साम्राज्य के रहने तक वही इसके सम्राट बने रहे।
दोनों राजा फिर से नज़र आने लगते हैं
26. (क) पवित्र रोमी साम्राज्य के अंत के बारे में क्या कहा जा सकता है? (ख) आखिर में दुनिया के परदे पर उत्तर का राजा बनकर कौन दिखाई दिया?
26 सन् 1805 के दौरान नेपोलियन I ने पवित्र रोमी साम्राज्य के सम्राट फ्रांसिस II के खिलाफ जर्मनी में बहुत लड़ाइयाँ जीतीं और खुद को फ्रांसीसी सम्राट घोषित कर दिया। उसने यूरोप के राजाओं पर रोम के पोप के अधिकार को नकार दिया। फ्रांसिस II उसका मुकाबला नहीं कर पाया। अगस्त 6, 1806 को नेपोलियन की शर्त मानते हुए, उसने पवित्र रोमी साम्राज्य के सम्राट के पद से इस्तीफा दे दिया साथ ही उसने पवित्र रोमी साम्राज्य को बरखास्त करते हुए उसके अधीन जर्मन राज्यों को उसकी हुकूमत से आज़ाद कर दिया। इसी के साथ अब हैप्सबर्ग घराने का फ्रांसिस II सिर्फ अपने देश ऑस्ट्रिया का ही सम्राट रह गया। इस तरह वह “पवित्र रोमी साम्राज्य” जिसकी शुरूआत रोमन कैथोलिक पादरी लियो III ने सा.यु. 800 में की थी और जिसका राजा फ्रांक भाषी शार्लमेन था, कुल मिलाकर 1,006 साल बाद पूरी तरह खत्म हो गया। सन् 1870 में रोम शहर इटली देश की राजधानी बन गया और अब उस पर वैटिकन में रहनेवाले रोमन कैथोलिक पोप का कोई अधिकार नहीं था। पवित्र रोमी साम्राज्य से आज़ाद हुए जर्मन राज्यों का अपना एक साम्राज्य शुरू हुआ। सन् 1871 में, इस जर्मन साम्राज्य का पहला सम्राट विलहेल्म I बना जिसे सीज़र या कैसर की उपाधि दी गई। इस तरह हमारे ज़माने का उत्तर का राजा—जर्मनी—दुनिया के परदे पर दिखाई देने लगा।
27. (क) मिस्र, ब्रिटेन की पनाह में कैसे आया? (ख) दक्खिन के राजा की जगह किसने ले ली?
27 अगर जर्मनी उत्तर का राजा बना तो दक्खिन के राजा की जगह किसने ली? इतिहास दिखाता है कि 17वीं सदी में ब्रिटेन ने अपना एक बड़ा साम्राज्य खड़ा कर लिया था। नेपोलियन I ब्रिटेन के व्यापार के रास्तों पर कब्ज़ा करना चाहता था इसलिए उसने सन् 1798 में मिस्र को जीत लिया। तब युद्ध छिड़ गया और ब्रिटेन और ऑटोमन तुर्कों की सेनाओं ने मिलकर फ्राँसीसी फौजों को मिस्र छोड़ने पर मजबूर किया। आपको याद होगा कि इन दोनों राजाओं के संघर्ष की शुरूआत में मिस्र ही दक्खिन देश के राजा की जगह पर था। उन्नीसवीं सदी में मिस्र पर ब्रिटेन का दबदबा बढ़ता चला गया। सन् 1882 के बाद तो मिस्र पूरी तरह ब्रिटेन पर निर्भर हो गया। जब सन् 1914 में पहला विश्व युद्ध शुरू हुआ तब मिस्र पर तुर्कों के खादिव या वाइसराय का राज था। लेकिन जब इस विश्व युद्ध में तुर्की ने जर्मनी का साथ दिया तब ब्रिटेन ने खादिव को उसके पद से हटा दिया और यह ऐलान कर दिया कि मिस्र अब ब्रिटेन की पनाह में है। धीरे-धीरे ब्रिटेन और अमरीका के संबंध काफी मज़बूत होते गए जिससे ब्रिटेन-अमरीकी विश्वशक्ति का जन्म हुआ। और इसी ब्रिटेन-अमरीकी विश्वशक्ति ने मिलकर दक्खिन के राजा की जगह ले ली।
[फुटनोट]
a “उत्तर देश का राजा” और “दक्खिन देश का राजा” सिर्फ उपाधियाँ हैं, इसलिए इनका इस्तेमाल किसी राजा, रानी या कई देशों के गुट के लिए भी किया गया है, जिन्होंने इनकी जगह ली।
b वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित द न्यू वर्ल्ड ट्रान्सलेशन—विद रेफ्रॆंसिस में दानिय्येल 11:26 का फुटनोट देखिए।
आपने क्या समझा?
• किस रोमी सम्राट ने सबसे पहले उत्तर के राजा की जगह ली, और उसने “कर वसूलने वाले” को कब भेजा?
• औगूस्तुस के बाद किसने उत्तर के राजा की जगह ली, और किस तरह ‘वाचा का प्रधान नाश’ हुआ?
• उत्तर के राजा, सम्राट ऑरीलियन और दक्खिन के राजा के रूप में रानी ज़ॆनोबीया के बीच संघर्ष का क्या नतीजा हुआ?
• रोम साम्राज्य का क्या हुआ, और 19वीं सदी के आखिर तक किसने उत्तर और दक्खिन के राजा की जगह ले ली?
[पेज 248-251 पर बक्स/तसवीर]
एक को सम्मान दूसरे को अपमान
एक ने रगड़े-झगड़े से भरे गणराज्य को दुनिया का सबसे बड़ा साम्राज्य बना दिया। दूसरे ने इसी साम्राज्य को 23 सालों के अंदर पहले से बीस गुना ज़्यादा धनवान बना दिया। जब पहला मरा तो उसे देवता मानकर पूजा गया, लेकिन जब दूसरा मरा तो उसे तुच्छ समझा गया। ये दोनों ही रोम के सम्राट थे। इनके राज के दौरान यीशु का जन्म हुआ और उसने अपना प्रचार काम पूरा किया। आखिर ये दोनों थे कौन? और क्यों एक को सम्मान मिला और दूसरे को अपमान?
उसने “गारे-ईंट से बने रोम को संगमरमर से जड़ दिया”
सा.यु.पू. 44 में जब जूलियस सीज़र का कत्ल कर दिया गया था तब उसकी बहन का पोता गेयस ऑक्टेवियन सिर्फ 18 साल का था। उसे जूलियस सीज़र ने गोद लिया था और वही राजगद्दी का असली हकदार था इसलिए नौजवान ऑक्टेवियन अपना हक लेने के लिए रोम को रवाना हो गया। वहाँ उसका सामना अपने सबसे बड़े दुश्मन यानी सीज़र की सेना के सबसे बड़े लेफ्टिनेंट मार्क एन्टनी से हुआ। एन्टनी भी राजगद्दी का वारिस बनना चाहता था। इसके लिए जो राजनैतिक षड्यंत्र रचे गए और सत्ता हथियाने के लिए जो संघर्ष हुआ वह 13 साल तक चला।
ऑक्टेवियन ने मिस्र की रानी क्लियोपेट्रा और उसके प्रेमी मार्क एन्टनी की सेनाओं को (सा.यु.पू. 31 में) हरा दिया। इसके बाद किसी ने भी उसके सम्राट बनने पर उंगली नहीं उठायी। अगले साल, एन्टनी और क्लियोपेट्रा ने आत्महत्या कर ली और ऑक्टेवियन ने मिस्र को अपने साम्राज्य में मिला लिया। इस तरह सिकंदर के बसाए यूनान साम्राज्य की आखिरी निशानी को मिटाकर रोम विश्वशक्ति बन गया।
ऑक्टेवियन बहुत अच्छी तरह जानता था कि तानाशाह बनने की वज़ह से ही जूलियस सीज़र का कत्ल किया गया था इसलिए वह यही गलती दोहराना नहीं चाहता था। इसके बजाय उसने चालाकी से काम लिया। उसने अपनी हुकूमत को गणतंत्र का लबादा ओढ़ा दिया। वह जानता था कि रोमी जनता और सीनेट नहीं चाहती कि पूरे साम्राज्य पर अकेले सम्राट की हुकूमत चले। इसलिए, उसने अपने नाम के साथ “राजा” और “सरताज” जैसी उपाधियों को जोड़ने से इनकार कर दिया। इतना ही नहीं, उसने ऐलान कर दिया कि रोम साम्राज्य के सभी प्रान्तों पर सीनेट का अधिकार होगा और वह अपने पद से इस्तीफा दे देगा। उसकी यह चाल काम कर गई। सीनेट ने खुश होकर ऑक्टेवियन से बिनती की कि वह अपने पद पर बना रहे और रोम के कुछ प्रान्तों का अधिकार भी अपने हाथ में रखे।
इसके अलावा जनवरी 16, सा.यु.पू. 27 को सीनेट ने ऑक्टेवियन को “औगूस्तुस” की उपाधि दी जिसका मतलब है “गौरवशाली, पवित्र।” ऑक्टेवियन ने न सिर्फ यह उपाधि स्वीकार की बल्कि उसने कैलेंडर में एक महीने का नाम बदलकर अपने नाम पर ‘अगस्त’ रख दिया। उसने फरवरी के महीने से एक दिन लेकर, अगस्त के महीने में जोड़ दिया ताकि उसके नाम के महीने में भी जूलियस सीज़र के नाम के महीने ‘जुलाई’ के बराबर दिन हों। इस तरह ऑक्टेवियन रोम का पहला सम्राट बना और उसके बाद से उसका नाम सीज़र औगूस्तुस या “औगूस्तुस प्रथम” हो गया। इसके बाद उसने “पॉन्टिफॆक्स मैक्सिमस” (महा पुरोहित) की उपाधि ले ली, और सा.यु.पू. 2 में यानी जिस साल यीशु का जन्म हुआ था, सीनेट ने उसे पातर पात्रियाई की उपाधि दी जिसका मतलब है “राष्ट्रपिता।”
उसी साल “औगूस्तुस कैसर की ओर से आज्ञा निकली, कि सारे जगत के लोगों के नाम लिखे जाएं। . . . और सब लोग नाम लिखवाने के लिये अपने अपने नगर को गए।” (लूका 2:1-3) इस आज्ञा के निकलने की वज़ह से, जैसे बाइबल में भविष्यवाणी की गयी थी, यीशु का जन्म बैतलहम में हुआ।—दानिय्येल 11:20; मीका 5:2.
औगूस्तुस के राज में सरकार काफी हद तक अपनी ईमानदारी के लिए मशहूर थी और पैसे की कीमत भी स्थिर रही। औगूस्तुस ने बेहतरीन डाक-सेवा का भी इंतज़ाम किया और कई सड़कें और पुल भी बनवाए। उसने अपनी सेना को नया रूप देकर मज़बूत किया और समुद्र पर निगरानी रखने के लिए नौसेना बनाई। इसके अलावा उसने सम्राट के अंगरक्षकों की एक फौज भी बनाई जिसे प्रिटोरियन गार्ड कहा जाता था। (फिलिप्पियों 1:13, NHT) उसी की छत्रछाया में विरगिल और हॉरस जैसे लेखक फले-फूले और शिल्पकारों ने भी रोमी शैली की बेहद खूबसूरत कला-कृतियाँ बनाईं। औगूस्तुस ने जूलियस सीज़र की बनाई हुई अधूरी इमारतों को पूरा करवाया और कई मंदिरों को दोबारा बनवाया। पूरे साम्राज्य में शांति और खुशहाली के लिए उसने पैक्स रोमाना (“रोमी शांति”) शुरू करने के ज़रिये जो कोशिश की उसका असर 200 साल तक रहा। अगस्त 19, सा.यु. 14 में औगूस्तुस 76 साल का होकर मर गया और उसके मरने पर उसे देवता मानकर पूजा जाने लगा।
औगूस्तुस ने शेखी मारी थी कि मैंने “गारे-ईंट से बने रोम को संगमरमर से जड़ दिया।” वह नहीं चाहता था कि रोम साम्राज्य फिर से रगड़े-झगड़े से भरा हुआ वही पुराना राज्य बन जाए, इसलिए वह नए सम्राट को खुद सिखाकर तैयार करना चाहता था। लेकिन उसे अपनी मरज़ी का वारिस चुनने का मौका ही नहीं मिला क्योंकि उसका भतीजा, दो पोते, एक जंवाई और एक सौतेला बेटा सभी मर चुके थे, और उसके एक और सौतेले बेटे तिबिरियुस को छोड़कर कोई और वारिस नहीं बचा था।
जिसे “तुच्छ मनुष्य” समझा गया
औगूस्तुस के मरने के एक महीने के अंदर ही रोमी सीनेट ने 54 साल के तिबिरियुस को सम्राट घोषित कर दिया। वह सा.यु. 37 के मार्च तक जीवित रहा और राज करता रहा। इसलिए, जब यीशु अपना प्रचार का काम कर रहा था, उस दौरान तिबिरियुस ही रोम का सम्राट था।
सम्राट तिबिरियुस में जहाँ एक तरफ कई अच्छाइयाँ थीं तो दूसरी तरफ बुराइयाँ भी थीं। उसकी एक अच्छाई यह थी कि उसने ऐशो-आराम पर पैसा बरबाद नहीं किया। इसका नतीजा यह हुआ कि उसके सारे साम्राज्य में खुशहाली आ गई और जब विपत्ति या संकट का वक्त आता तो लोगों की मदद करने के लिए उसके पास धन की कमी नहीं होती थी। इसके अलावा तिबिरियुस हमेशा खुद को एक मामूली इंसान ही मानता था यहाँ तक कि उसने अपने नाम के साथ कई उपाधियाँ जोड़ने से इनकार कर दिया। रोम के लोग जो सम्राट-उपासना करते थे, उसमें वह अपनी पूजा करवाने के बजाय औगूस्तुस की पूजा करने के लिए कहता था। उसने औगूस्तुस और जूलियस सीज़र की तरह, साल के किसी महीने का नाम बदलकर अपने नाम पर नहीं रखा और जो लोग ऐसा करके उसका सम्मान करना चाहते थे, उनको भी उसने ऐसा करने से रोका।
लेकिन तिबिरियुस की बुराइयाँ उसकी अच्छाइयों से कहीं बढ़कर थीं। वह बेहद शक्की किस्म का और कपटी इंसान था। उसने अपने राज में शक की बिनाह पर बेहिसाब लोगों को मरवा डाला। इनमें उसके कई पुराने और खास दोस्त भी शामिल थे। उसके राज में लेज़े-मैजिस्टी (राजद्रोह) कानून में न सिर्फ बगावत करनेवालों को सज़ा दी जाती थी बल्कि ‘सम्राट मानहानि’ के तहत खुद उसके यानी कैसर के खिलाफ ज़रा-सी गलत बात कहनेवाले को सज़ा दी जा सकती थी। माना जाता है कि इसी कानून की आड़ लेकर यहूदी धर्मगुरुओं ने पीलातुस पर यीशु को मार डालने के लिए दबाव डाला।—यूहन्ना 19:12-16.
तिबिरियुस ने प्रिटोरियन गार्ड को रोम शहर के एकदम नज़दीक रखने के लिए, उत्तरी शहरपनाह के पास उनके लिए गढ़ बनवाए। उसने इन अंगरक्षकों की मौजूदगी से सीनेट को दबा कर रखा जो उसकी हुकूमत के लिए सबसे बड़ा खतरा थी। इतना ही नहीं, आम जनता में सम्राट के खिलाफ सिर उठानेवालों को भी उसने इन अंगरक्षकों की मदद से काबू में रखा। तिबिरियुस ने अपने राज में चुगलखोरों और मुखबिरों को बहुत शह दी और ऐसे लोगों का पूरे साम्राज्य में जाल फैल गया। ऐसे माहौल की वज़ह से उसके राज के आखिरी दिनों में लोगों में चारों तरफ आतंक फैल गया था।
जब वह मरा तो उसे अत्याचारी तानाशाह करार दिया गया। उसकी मौत पर रोम के लोगों ने खुशियाँ मनाईं और सीनेट ने उसे देवताओं जैसा सम्मान देने से इनकार कर दिया। इनके अलावा और भी बहुत-सी बातें हैं जिन्हें देखकर यह कहा जा सकता है कि तिबिरियुस ही वह इंसान था जिस पर यह भविष्यवाणी पूरी हुई कि “एक तुच्छ मनुष्य” उठकर “उत्तर देश का राजा” बनेगा।—दानिय्येल 11:15, 21.
आपने क्या समझा?
• ऑक्टेवियन किस तरह रोम का पहला सम्राट बना?
• औगूस्तुस की सरकार ने क्या-क्या काम किए?
• तिबिरियुस में क्या-क्या अच्छाइयाँ और बुराइयाँ थीं?
• “एक तुच्छ मनुष्य” की भविष्यवाणी तिबिरियुस पर कैसे पूरी हुई?
[तसवीर]
तिबिरियुस
ज़ॆनोबीया—पालमाइरा की जाँबाज़ महारानी
“उसका रंग चंदन का सा था . . . उसके दाँत सफेद मोतियों की लड़ी थे और उसकी बड़ी-बड़ी काली आँखों में गज़ब की चमक थी। और उस पर उसकी गुलाबों जैसी खूबसूरती देखने लायक थी। उसकी आवाज़ दमदार और रसीली थी। बेहतरीन तालीम की वज़ह से उसने एक ज़बरदस्त शख्सियत पायी थी। वह लैटिन भाषा तो जानती ही थी, साथ ही उसे यूनानी, सीरियाई और मिस्री भाषा बोलने में महारत हासिल थी।” इतिहासकार एडवर्ड गिब्बन ने यह सब सीरिया के पालमाइरा शहर की जाँबाज़ महारानी, ज़ॆनोबीया की तारीफ में लिखा था।
ज़ॆनोबीया का पति, ऑडिनेथॆस पालमाइरा का शासक था। सा.यु. 258 में रोमी साम्राज्य की तरफ से फारस के खिलाफ युद्ध में जीत हासिल करके उसने रोमी सम्राट के प्रतिनिधि की पदवी पायी। दो साल बाद, रोम के सम्राट गालीनस ने उसे कॉरेक्टोर टोटयुस ऑरियन्टिस (समस्त पूर्व के हाकिम) की उपाधि भी दी। फारस के राजा शापूर I पर जीत हासिल करने के लिए ऑडिनेथॆस को इनाम के तौर पर यह उपाधि दी गयी थी। लेकिन इसके बाद ऑडिनेथॆस ने खुद अपने नाम के साथ “राजाओं के राजा” की उपाधि जोड़ ली। ऑडिनेथॆस की कामयाबी के पीछे काफी हद तक ज़ॆनोबीया की हिम्मत और सूझ-बूझ का हाथ था।
ज़ॆनोबीया अपना साम्राज्य खड़ा करने का इरादा करती है
सा.यु. 267 में जब ऑडिनेथॆस कामयाबी की बुलंदियाँ छू रहा था, तब उसके साथ-साथ उसकी राजगद्दी के वारिस, यानी उसके बड़े बेटे का कत्ल कर दिया गया। ज़ॆनोबीया का अपना बेटा अभी बहुत छोटा था, इसलिए उसने अपने पति की जगह पालमाइरा पर राज करना शुरू कर दिया। ज़ॆनोबीया न सिर्फ खूबसूरत थी, बल्कि वह बड़े-बड़े इरादे भी रखती थी। वह राज-काज के काम करने में माहिर थी और अपने पति के साथ अकसर युद्धों में जाने की आदी थी। इसके अलावा वह कई भाषाएँ जानती थी। इन सब खूबियों की वज़ह से वह अपनी प्रजा के दिलों पर छा गयी और वे उसके इशारे पर अपनी जान भी कुरबान करने के लिए तैयार थे। ज़ॆनोबीया को ज्ञान हासिल करने का बहुत शौक था इसलिए वह बहुत सारे विद्वानों के साथ संगति करती थी। उसका एक सलाहकार काशीअस लॉनजाइनस, दर्शनशास्त्री और साहित्य का विश्लेषण करने में पंडित था। इसलिए उसे “एक जीती-जागती लाइब्रेरी और चलता-फिरता म्यूज़ियम” कहा जाता था। अपनी किताब पालमाइरा और उसका साम्राज्य—रोम के खिलाफ ज़ॆनोबीया की बगावत (अंग्रेज़ी) में लेखक रिचर्ड स्टोनमैन कहते हैं: “ऑडिनेथॆस की मौत के बाद, पाँच साल के अंदर ही . . . ज़ॆनोबीया ने अपने लोगों के मन में खास जगह बना ली थी, वे उसे सारे पूर्व की मलिका मानने लगे थे।”
ज़ॆनोबीया के राज्य की सरहदों की एक तरफ फारस था जिसे उसने और उसके पति ने अपाहिज बना दिया था और दूसरी तरफ लड़खड़ाता रोम। उस वक्त रोम की क्या हालत थी इस बारे में इतिहासकार जे. एम. रॉबट्र्स कहते हैं: “तीसरी सदी में . . . रोम साम्राज्य की पूर्वी और पश्चिमी सरहदें खतरे में पड़ गयी थीं। इसके अलावा, रोम के अंदर ही आपसी झगड़े और राजगद्दी की छीना-झपटी का एक और दौर शुरू हो गया था। (नकली दावेदारों के अलावा) बाईस सम्राट आए और चले गए।” लेकिन, फारस और रोम के बीच हुकूमत करनेवाली सीरिया की मलिका बहुत शक्तिशाली बन चुकी थी और अपने पूरे इलाके में सिर्फ उसी की हुकूमत थी। स्टोनमैन कहते हैं: “वह इन दोनों साम्राज्यों [फारस और रोम] को आपस में भिड़ाए रखना चाहती थी, क्योंकि उसका इरादा ऐसा मज़बूत साम्राज्य खड़ा करने का था जो जल्द ही इन दोनों साम्राज्यों पर कब्ज़ा कर सके।”
सा.यु. 269 में ज़ॆनोबीया को अपना यह सपना पूरा करने का मौका मिला। मिस्र में वहाँ की राजगद्दी का एक झूठा दावेदार उठा जिसने रोम के सम्राट के खिलाफ बगावत कर दी और उससे आज़ाद होने का दावा किया। इस मौके का फायदा उठाकर, ज़ॆनोबीया की सेनाएँ तेज़ी से मिस्र की तरफ रवाना हो गयीं। ज़ॆनोबीया ने बगावत को कुचल दिया और मिस्र पर खुद कब्ज़ा कर लिया। लेकिन यह सब उसने रोम के लिए नहीं किया था, बल्कि उसने खुद मिस्र की महारानी होने का ऐलान कर दिया और अपने नाम के सिक्के भी बनवा लिए। अब उसका साम्राज्य नील नदी से फरात नदी तक फैल गया। यही वह समय था जब ज़ॆनोबीया ने “दक्खिन देश के राजा” की जगह ले ली थी।—दानिय्येल 11:25, 26.
ज़ॆनोबीया की राजधानी
ज़ॆनोबीया ने अपनी राजधानी पालमाइरा को न सिर्फ मज़बूत किया बल्कि उसे इस कदर खूबसूरत बनाया कि उसका शुमार रोम साम्राज्य के बड़े-बड़े शहरों के साथ होने लगा। कहा जाता है कि पालमाइरा की आबादी करीब 1,50,000 थी। इसमें आलीशान सरकारी इमारतें, बड़े-बड़े मंदिर, बगीचे, खंभे और स्मारक थे। इस शहर के चारों तरफ मज़बूत शहरपनाह थी जिसकी कुल लंबाई 21 किलोमीटर थी। इसके राजमार्ग के दोनों तरफ 15 मीटर ऊँचे 1,500 कुरंथियन खंभों की कतार थी। पूरे शहर में शूरवीरों और दानवीरों की प्रतिमाएँ खड़ी करायी गई थीं। सा.यु. 271 में खुद ज़ॆनोबीया ने अपनी और अपने मरहूम पति की मूर्तियाँ बनवाकर खड़ी करवाईं।
पालमाइरा की सबसे भव्य और आलीशान इमारत सूर्य देवता का मंदिर था और इसी को पूजा-प्रार्थना करने का सबसे बड़ा स्थान माना जाता था। ज़ॆनोबीया भी शायद सूर्य देवता से ही जुड़े किसी देवता को मानती थी। लेकिन गौर करने लायक बात है कि तीसरी सदी के सीरिया में कई धर्मों को माननेवाले लोग रहते थे। ज़ॆनोबीया के राज्य में ईसाई, यहूदी और सूर्य और चंद्र देवता की उपासना करनेवाले लोग रहते थे। ज़ॆनोबीया का इन अलग-अलग धर्मों की ओर क्या रवैया था? लेखक स्टोनमैन कहते हैं: “कोई भी अक्लमंद शासक अपनी जनता के मनपसंद रीति-रिवाज़ों और धर्मों को नज़रअंदाज़ नहीं करेगा, उसी तरह ज़ॆनोबीया ने भी किया। . . . यह विश्वास किया जाता था कि . . . पालमाइरा के इतने सारे देवी-देवताओं ने साथ मिलकर उसकी हिफाज़त की है।” इससे पता चलता है कि ज़ॆनोबीया सब धर्मों को बराबर आदर देती थी।
ज़ॆनोबीया की इतनी सारी खूबियों, उसके रूप और उसकी शख्सियत ने कई लोगों के दिल जीत लिए। उसकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि उसने एक वक्त पर दानिय्येल की भविष्यवाणी में बताए गए दक्खिन के राजा की जगह ली थी। फिर भी उसका राज पाँच साल से ज़्यादा नहीं चला। सा.यु. 272 में रोम के सम्राट ऑरीलियन ने ज़ॆनोबीया को हरा दिया और पालमाइरा को इतनी बुरी तरह तहस-नहस कर दिया कि उसे पहचानना भी मुश्किल था। लेकिन ज़ॆनोबीया की जान बख्श दी गई। उसे रोम ले जाया गया और कहा जाता है कि उसने बाद में रोम की सीनेट के एक सदस्य से शादी कर ली और फिर अपनी सारी ज़िंदगी वहीं बिता दी।
आपने क्या समझा?
• ज़ॆनोबीया की खूबियों और शख्सियत के बारे में क्या कहा गया है?
• ज़ॆनोबीया ने क्या-क्या कामयाबियाँ हासिल कीं?
• धर्म के मामले में ज़ॆनोबीया का रवैया कैसा था?
[तसवीर]
महारानी ज़ॆनोबीया अपने सैनिकों को हिदायतें दे रही है
[पेज 246 पर चार्ट/तसवीरें]
दानिय्येल 11:20-26 के राजा
उत्तर दक्खिन
का राजा का राजा
दानिय्येल 11:20 औगूस्तुस
दानिय्येल 11:21-24 तिबिरियुस
दानिय्येल 11:25, 26 ऑरीलियन महारानी ज़ॆनोबीया
जैसा भविष्यवाणी में जर्मन साम्राज्य ब्रिटेन,
बताया और उसके
गया था रोमी साम्राज्य बाद ब्रिटेन-अमरीकी
के टूटने का नतीजा था विश्वशक्ति
[तसवीर]
तिबिरियुस
[तसवीर]
ऑरीलियन
[तसवीर]
शार्लमेन की छोटी मूर्ति
[तसवीर]
औगूस्तुस
[तसवीर]
17वीं सदी का ब्रिटेन का लड़ाकू समुद्री जहाज़
[पेज 230 पर बड़ी तसवीर दी गयी है]
[पेज 246 पर तसवीर]
औगूस्तुस
[पेज 234 पर तसवीर]
तिबिरियुस
[पेज 235 पर तसवीर]
औगूस्तुस ने नाम लिखाई की आज्ञा दी थी जिसके मुताबिक यूसुफ और मरियम बेतलहम गए
[पेज 237 पर तसवीर]
जैसी भविष्यवाणी की गई थी, यीशु “नाश” हुआ यानी मारा गया
[पेज 245 पर तसवीर]
1. शार्लमेन 2. नेपोलियन I 3. विलहेल्म I 4. पहले विश्व युद्ध में जर्मनी के सैनिक