अध्ययन लेख 23
‘खबरदार रहो! कहीं कोई तुम्हें कैदी न बना ले’
“खबरदार रहो! कहीं ऐसा न हो कि कोई तुम्हें दुनियावी फलसफों और छलनेवाली उन खोखली बातों से कैदी बना ले, जो इंसानों की परंपराओं . . . के मुताबिक हैं।”—कुलु. 2:8.
गीत 96 याह की पवित्र किताब—एक खज़ाना
लेख की एक झलकa
1. कुलुस्सियों 2:4, 8 के मुताबिक शैतान किस तरह हमारे दिमाग को अपनी कैद में करने की कोशिश करता है?
शैतान चाहता है कि हम यहोवा से दूर हो जाएँ। अपना यह मकसद पूरा करने के लिए वह हमारी सोच भ्रष्ट करने की कोशिश करता है। दूसरे शब्दों में कहें तो वह हमारे दिमाग को अपनी कैद में करने की कोशिश करता है, ताकि हम वैसा ही सोचें, जैसा वह चाहता है। वह हमारे मन को भानेवाली चीज़ों का नाजायज़ फायदा उठाकर हमें उसके पीछे चलने के लिए कायल करता है या फुसलाता है।—कुलुस्सियों 2:4, 8 पढ़िए।
2-3. (क) कुलुस्सियों 2:8 में दी चेतावनी पर हमें क्यों ध्यान देना चाहिए? (ख) इस लेख में हम क्या गौर करेंगे?
2 क्या हम सच में शैतान के बहकावे में आ सकते हैं? क्या यह वाकई हमारे लिए बड़ा खतरा है? जी हाँ। याद कीजिए कि कुलुस्सियों 2:8 में लिखी चेतावनी पौलुस ने दुनिया के लोगों को नहीं, बल्कि अभिषिक्त मसीहियों को दी थी। (कुलु. 1:2, 5) अगर उन मसीहियों के लिए यह खतरा था, तो आज हमारे लिए कितना ज़्यादा खतरा होगा! (1 कुरिं. 10:12) वह क्यों? क्योंकि शैतान को स्वर्ग से धरती पर फेंक दिया गया है और अब वह परमेश्वर के वफादार सेवकों को गुमराह करने की जी-तोड़ कोशिश कर रहा है। (प्रका. 12:9, 12, 17) इसके अलावा, आज हम ऐसे वक्त में जी रहे हैं, जब दुष्ट और फरेबी “बद-से-बदतर होते” जा रहे हैं।—2 तीमु. 3:1, 13.
3 इस लेख में हम जानेंगे कि शैतान किस तरह ‘छलनेवाली खोखली बातों’ से हमारी सोच भ्रष्ट करने की कोशिश करता है। हम उसकी तीन “धूर्त चालों” या “साज़िशों” पर गौर करेंगे। (इफि. 6:11, फु.) अगले लेख में हम यह देखेंगे कि अगर उसकी चालों का हमारी सोच पर बुरा असर हुआ है, तो हम कैसे उसे दूर कर सकते हैं। लेकिन आइए पहले यह देखें कि जब इसराएलियों ने वादा किए गए देश में कदम रखा, तो शैतान ने किस तरह उन्हें गुमराह किया और इससे हम क्या सीख सकते हैं।
मूर्तिपूजा करने के लिए बहकाया
4-6. व्यवस्थाविवरण 11:10-15 के मुताबिक कनान देश में इसराएलियों को खेती के बारे में कौन-सा नया तरीका सीखना था?
4 शैतान ने बड़ी चतुराई से इसराएलियों को मूर्तिपूजा करने के लिए बहकाया। कैसे? वह जानता था कि उन्हें जीने के लिए खाना चाहिए और उनकी इसी ज़रूरत का उसने गलत फायदा उठाया। इसराएलियों को वादा किए गए देश में फसल उगाने के तरीके बदलने थे। जब वे मिस्र में थे, तो वे नील नदी के पानी से खेतों की सिंचाई करते थे। लेकिन कनान देश में खेती-बाड़ी का तरीका अलग था। यहाँ नदी के पानी से नहीं, बल्कि बारिश के पानी से और ओस से ही फसल होती थी। (व्यवस्थाविवरण 11:10-15 पढ़िए; यशा. 18:4, 5) इस वजह से इसराएलियों को खेती करने के नए तरीके सीखने थे। यह उनके लिए आसान काम नहीं था, क्योंकि जिन इसराएलियों को खेती-बाड़ी का तजुरबा था, उनमें से ज़्यादातर की मौत वीराने में ही हो गयी थी।
5 यहोवा ने अपने लोगों को समझाया कि उनके हालात बदल गए हैं। फिर उसने एक ऐसी बात कही, जो शायद एक बार को लगे कि इसका खेती-बाड़ी से क्या लेना-देना है। उसने उनसे कहा, “तुम सावधान रहना कि तुम्हारा मन बहक न जाए जिससे तुम दूसरे देवताओं की पूजा करने लगो और उनके आगे दंडवत करने लगो।” (व्यव. 11:16, 17) हम शायद सोचें कि यहोवा ने खेती-बाड़ी की बात करते वक्त झूठे देवी-देवताओं की पूजा करने से क्यों खबरदार किया?
6 यहोवा इसराएलियों को अच्छी तरह जानता था। उसे मालूम था कि वे झूठी उपासना करनेवाले कनानियों से खेती के बारे में कुछ जानने की कोशिश ज़रूर करेंगे। माना कि खेती-किसानी के मामले में इन पड़ोसियों को ज़्यादा तजुरबा था और इसराएली उनसे कुछ काम की बातें सीख सकते थे, मगर ऐसा करना खतरे से खाली नहीं था। कनान के किसान बाल देवता की उपासना करते थे। उनका मानना था कि बाल आकाश का मालिक है और वही बारिश करवाता है। यहोवा नहीं चाहता था कि उसके लोग इन झूठी धारणाओं के बहकावे में आएँ। लेकिन इसराएली बार-बार इसके उलट ही काम करते थे। वे बाल की उपासना करने लगते थे। (गिन. 25:3, 5; न्यायि. 2:13; 1 राजा 18:18) अब ध्यान दीजिए कि शैतान ने किस तरह इसराएलियों को कैदी बनाया।
इसराएलियों को कैदी बनाने की शैतान की तीन चालें
7. वादा किए गए देश में इसराएलियों के विश्वास की परख कैसे हुई?
7 शैतान की पहली चाल थी, इसराएलियों की स्वाभाविक इच्छा का गलत फायदा उठाना। उनकी इच्छा थी कि देश में बारिश हो। वादा किए गए देश में हर साल अप्रैल के आखिर से सितंबर तक बहुत कम बारिश होती थी। आम तौर पर अक्टूबर से जो बारिश होती थी, उसी के सहारे खेती-बाड़ी की जाती थी और लोगों का गुज़ारा होता था। तो शैतान ने इसराएलियों को कैसे धोखा दिया? कनान के लोगों का मानना था कि देवताओं को खुश करने और अच्छी बारिश के लिए कुछ रीति-रिवाज़ मानना ज़रूरी है। उनकी देखा-देखी इसराएली भी यह मानने लगे कि अगर वे अपने पड़ोसियों के जैसे रीति-रिवाज़ मानें, तो उनके खेतों में अच्छी पैदावार होगी। जिन इसराएलियों को यहोवा पर पूरा विश्वास नहीं था, उन्हें लगा कि सूखे से बचने का यही एक तरीका है। इस वजह से वे झूठे देवता बाल के सम्मान में अपने पड़ोसियों के जैसे रीति-रिवाज़ मानने लगे।
8. शैतान ने दूसरी कौन-सी चाल चली? समझाइए।
8 शैतान ने इसराएलियों पर दूसरी चाल यह चली कि उसने उनकी यौन-इच्छाओं का नाजायज़ फायदा उठाया। झूठे धर्म के लोग नाजायज़ यौन-संबंध जैसे घिनौने काम करके अपने देवी-देवताओं की उपासना करते थे। उनके मंदिरों में औरतें वेश्या का काम करती थीं और आदमी दूसरे आदमियों के साथ संभोग करने के लिए खुद को दे देते थे। समलैंगिकता और दूसरे अनैतिक कामों को अनदेखा किया जा रहा था, यहाँ तक कि लोगों को इनमें कोई बुराई नज़र नहीं आ रही थी! (व्यव. 23:17, 18; 1 राजा 14:24) झूठे धर्म के लोगों का मानना था कि इस तरह के कामों से देवी-देवता खुश होते हैं और वे देश की ज़मीन उपजाऊ बनाते हैं। बहुत-से इसराएलियों को भी उनके ये अनैतिक काम अच्छे लगने लगे और इसलिए वे झूठे देवी-देवताओं को पूजने लगे। मगर सच तो यह था कि शैतान ने उन्हें कैदी बना लिया था।
9. जैसे होशे 2:16, 17 से पता चलता है, शैतान ने ऐसा क्या किया, जिससे इसराएली धीरे-धीरे यहोवा को भूल गए?
9 शैतान ने एक तीसरी चाल चली। उसने कुछ ऐसा किया कि इसराएली धीरे-धीरे यहोवा को भूल गए। यह बात भविष्यवक्ता यिर्मयाह के समय में देखी जा सकती थी। उसके दिनों में यहोवा ने कहा कि झूठे भविष्यवक्ता ऐसे काम कर रहे हैं कि लोग “बाल की वजह से” यहोवा का नाम भूल जाएँ। (यिर्म. 23:27) ऐसा मालूम होता है कि परमेश्वर के लोगों ने यहोवा नाम लेना बंद कर दिया था और उसकी जगह वे बाल का नाम लेने लगे थे, जिसका मतलब है, “मालिक।” इस वजह से इसराएलियों के लिए यह समझना मुश्किल हो गया था कि यहोवा और बाल में क्या फर्क है। नतीजा, वे यहोवा की उपासना करने के साथ-साथ बाल के सम्मान में भी रीति-रिवाज़ मानने लगे।—होशे 2:16, 17 और फुटनोट पढ़िए।
आज शैतान की चालें
10. आज शैतान कौन-सी चालें चलता है?
10 शैतान ने जो चालें इसराएलियों के दिनों में चली थीं, वही चालें वह आज भी चलता है। वह लोगों की स्वाभाविक इच्छाओं और यौन-इच्छाओं का नाजायज़ फायदा उठाता है, साथ ही कुछ ऐसा करता है, जिससे लोग यहोवा को भूल जाएँ। आइए सबसे पहले उसकी आखिरी चाल पर गौर करें।
11. शैतान ने ऐसा क्या किया, जिससे लोग यहोवा को भूलने लगे?
11 शैतान कुछ ऐसा करता है कि लोग यहोवा को भूल जाएँ। यीशु के प्रेषितों की मौत के बाद मसीही होने का दावा करनेवाले कुछ लोग झूठी शिक्षाएँ सिखाने लगे। (प्रेषि. 20:29, 30; 2 थिस्स. 2:3) इस वजह से लोग सच्चे परमेश्वर की पहचान भूलने लगे। उदाहरण के लिए, सच्ची उपासना का विरोध करनेवाले, बाइबल की कॉपियों में यहोवा नाम की जगह “प्रभु” जैसे शब्द इस्तेमाल करने लगे। बाइबल पढ़नेवालों के लिए यह समझना मुश्किल होने लगा कि यहोवा, बाइबल में बताए गए दूसरे ‘प्रभुओं’ से कैसे अलग है। (1 कुरिं. 8:5) यही नहीं, ये विरोधी यहोवा और यीशु दोनों के लिए “प्रभु” शब्द इस्तेमाल करने लगे, इसलिए लोगों के लिए यह समझना मुश्किल हो गया कि यहोवा और यीशु दो अलग-अलग हस्ती हैं। (यूह. 17:3) इस उलझन ने त्रिएक की शिक्षा को जन्म दिया, एक ऐसी शिक्षा को, जिसका परमेश्वर के वचन में कहीं ज़िक्र नहीं मिलता। नतीजा यह हुआ कि आज बहुत-से लोग परमेश्वर को एक रहस्य समझते हैं। वे मानते हैं कि उसे समझना नामुमकिन है। कितना बड़ा झूठ!—प्रेषि. 17:27.
12. (क) झूठे धर्म किस बात का बढ़ावा देते हैं? (ख) रोमियों 1:28-31 के मुताबिक इसका क्या अंजाम हुआ है?
12 शैतान लोगों की यौन-इच्छाओं का गलत फायदा उठाता है। इसराएलियों के दिनों में शैतान ने झूठे धर्मों के ज़रिए नाजायज़ यौन-संबंधों का बढ़ावा दिया। आज भी वह ऐसा ही करता है। झूठे धर्मों में अनैतिक कामों को न सिर्फ अनदेखा किया जाता है, बल्कि इनका बढ़ावा भी दिया जाता है। इस वजह से परमेश्वर की भक्ति का दावा करनेवाले कई लोगों ने उसके नैतिक स्तरों पर चलना छोड़ दिया है। अंजाम क्या हुआ है? इसका जवाब हमें प्रेषित पौलुस के उस खत से मिलता है, जो उसने रोम के मसीहियों को लिखा था। (रोमियों 1:28-31 पढ़िए।) इन आयतों में बताए ‘गलत कामों’ में समलैंगिकता और हर तरह के नाजायज़ यौन-संबंध शामिल हैं। (रोमि. 1:24-27, 32; प्रका. 2:20) हमारे लिए यह कितना ज़रूरी है कि हम हर हाल में बाइबल के स्तरों पर चलें!
13. शैतान और कौन-सी चाल चलता है?
13 शैतान लोगों की स्वाभाविक इच्छाओं का नाजायज़ फायदा उठाता है। हम सबमें यह इच्छा होती है कि हम ऐसे हुनर सीखें, जिससे हम अपना और अपने परिवार का गुज़ारा चला सकें। (1 तीमु. 5:8) इस तरह के हुनर हम स्कूल में लगन से पढ़ाई करके सीख सकते हैं। लेकिन हमें सावधान रहना चाहिए। वह इसलिए कि कई देशों में विद्यार्थियों को न सिर्फ ज़िंदगी में काम आनेवाले हुनर सिखाए जाते हैं, बल्कि इंसानी विचारधाराएँ भी सिखायी जाती हैं। जैसे, उन्हें बताया जाता है कि ईश्वर बस इंसानों की दिमागी उपज है, सचमुच में ऐसा कुछ नहीं होता और बाइबल बस कथा-कहानियों की किताब है। उन्हें यह भी सिखाया जाता है कि पढ़े-लिखे और समझदार लोग यही मानते हैं कि जीवन की शुरूआत विकासवाद से हुई है। (रोमि. 1:21-23) ऐसी विचारधाराएँ “परमेश्वर की बुद्धि” के खिलाफ हैं।—1 कुरिं. 1:19-21; 3:18-20.
14. इंसानी विचारधाराएँ किस बात का बढ़ावा देती हैं?
14 इंसानी विचारधाराएँ यहोवा के नेक स्तरों का बढ़ावा नहीं देतीं, बल्कि उन्हें गलत ठहराती हैं। ये एक इंसान को अपने अंदर पवित्र शक्ति के गुण पैदा करने का बढ़ावा देने के बजाय “शरीर के काम” करने के लिए उकसाती हैं। (गला. 5:19-23) ये इंसान को घमंडी और मगरूर बना देती हैं। नतीजा यह होता है कि लोग “सिर्फ खुद से प्यार” करने लगते हैं। (2 तीमु. 3:2-4) परमेश्वर नहीं चाहता कि उसके सेवकों में ऐसा रवैया हो। वह चाहता है कि वे दीन और नम्र स्वभाव के हों। (2 शमू. 22:28) जिन मसीहियों ने विश्वविद्यालय की पढ़ाई की है, उनमें से कुछ लोगों पर परमेश्वर की सोच के बजाय दुनियावी सोच का असर हुआ है। आइए ऐसे ही एक अनुभव पर ध्यान दें।
15-16. एक बहन के अनुभव से आपने क्या सीखा?
15 एक बहन को पूरे समय की सेवा करते 15 साल से भी ऊपर हो गए हैं। अपने बीते दिनों के बारे में वह बताती है, “मेरा बपतिस्मा हो चुका था और मैंने विश्वविद्यालय में ऊँची शिक्षा लेने के खतरों के बारे में काफी कुछ पढ़ा और सुना था। लेकिन मैंने ये सारी सलाह अनसुनी कर दी। मैंने सोचा कि मुझे इससे कोई खतरा नहीं होगा।” सलाह अनसुनी करने का उसे क्या अंजाम भुगतना पड़ा? वह बताती है, “मैं जो पढ़ाई कर रही थी, उसमें मेरा बहुत सारा समय जाता था और मैं थक जाती थी। मुझे ठीक से प्रार्थना करने के लिए भी समय नहीं मिल पाता था, जबकि पहले मैं काफी देर-देर तक प्रार्थना करती थी। मैं इतनी पस्त हो जाती थी कि प्रचार सेवा का मज़ा नहीं ले पाती थी और न ही मैं ठीक से सभाओं की तैयारी कर पाती थी। तभी मुझे एहसास हुआ कि ऊँची शिक्षा के पीछे भागने से यहोवा के साथ मेरा रिश्ता खतरे में पड़ गया है। मैं समझ गयी कि इसे छोड़ने में ही भलाई है और मैंने वैसा ही किया।”
16 ऊँची शिक्षा का उस बहन की सोच पर क्या असर हुआ? वह कहती है, “मुझे यह बताते हुए शर्म आती है कि ऊँची शिक्षा ने मुझे दूसरों में नुक्स निकालना सिखाया, खासकर भाई-बहनों में। मैं उनसे कुछ ज़्यादा ही उम्मीद करने लगी। मुझे उनसे मिलना-जुलना पसंद नहीं आता था। मेरी जो सोच हो गयी थी, उसे बदलने में मुझे बहुत वक्त लगा। इस अनुभव से मैंने सीखा कि हमारा पिता यहोवा अपने संगठन के ज़रिए जिन बातों से हमें खबरदार करता है, उन्हें अनसुना करना कितना खतरनाक होता है। यहोवा मुझे मुझसे भी बेहतर जानता है। काश, मैंने पहले ही उसकी बात मान ली होती!”
17. (क) हमें क्या ठान लेना चाहिए? (ख) अगले लेख में क्या चर्चा की जाएगी?
17 ठान लीजिए कि आप कभी-भी शैतान की दुनिया के ‘फलसफों और छलनेवाली खोखली बातों से’ उसके कैदी नहीं बनेंगे। शैतान की चालों को कामयाब मत होने दीजिए। (1 कुरिं. 3:18; 2 कुरिं. 2:11) उसकी बातों में आकर कभी-भी यहोवा को भूलने की गलती मत कीजिए। यहोवा के ऊँचे नैतिक स्तरों पर चलते रहिए। शैतान के धोखे में आकर यहोवा की सलाह अनसुनी मत कीजिए। लेकिन अगर आपको लगता है कि आप पर दुनियावी सोच का बुरा असर हुआ है, तो आपको क्या करना चाहिए? अगले लेख में बताया जाएगा कि जो सोच और आदतें आपमें “गहराई तक” जड़ पकड़ चुकी हैं, उन्हें भी आप परमेश्वर के वचन की मदद से उलट सकते हैं।—2 कुरिं. 10:4, 5.
गीत 49 यहोवा का दिल खुश करें
a शैतान लोगों को फुसलाने में माहिर है। उसने बहुत-से लोगों को इस धोखे में रखा है कि वे आज़ाद हैं, जबकि सच तो यह है कि वे उसकी कैद में हैं। शैतान लोगों को गुमराह करने के लिए कई चालें चलता है। इस लेख में हम ऐसी ही कुछ चालों के बारे में जानेंगे।
b तसवीर के बारे में: जो इसराएली कनानी लोगों से संगति करते हैं, उन्हें बाल की उपासना करने और अनैतिक काम करने के लिए लुभाया जा रहा है।
c तसवीर के बारे में: चर्च का एक विज्ञापन, जिसमें समलैंगिकता को बढ़ावा दिया जा रहा है।
d तसवीर के बारे में: एक बहन विश्वविद्यालय की पढ़ाई करने गयी है। वह और उसकी क्लास के साथी प्रोफेसर की बातों में आकर यह मानने लगे हैं कि विज्ञान और टेकनॉलजी से इंसानों की सारी समस्याएँ हल की जा सकती हैं। बाद में वही बहन राज-घर में बैठी है और सभा में कोई दिलचस्पी नहीं ले रही है, उसे भाई-बहनों में कमियाँ नज़र आ रही हैं।