यहोवा विश्वासघात से घृणा करता है
‘एक दूसरे के साथ विश्वासघात मत करो।’—मलाकी 2:10.
1. परमेश्वर हमें अनंत जीवन किस बिनाह पर देगा?
क्या आप अनंत जीवन पाना चाहते हैं? अगर आप बाइबल में बतायी गयी अंनत जीवन की आशा पर भरोसा करते हैं तो आप शायद कहें, ‘क्यों नहीं।’ लेकिन अगर आप चाहते हैं कि परमेश्वर अपने नए संसार में आपको हमेशा-हमेशा की ज़िंदगी दे तो आपको उसकी माँगें पूरी करनी होगी। (सभोपदेशक 12:13; यूहन्ना 17:3) मगर असिद्ध इंसानों से परमेश्वर की माँगों को पूरा करने की उम्मीद करना क्या गलत है? हरगिज़ नहीं, क्योंकि यहोवा यह कहकर हमारा हौसला बढ़ाता है: “मैं बलिदान से नहीं, स्थिर प्रेम ही से प्रसन्न होता हूं, और होमबलियों से अधिक यह चाहता हूं कि लोग परमेश्वर का ज्ञान रखें।” (होशे 6:6) इसका मतलब है कि पापी इंसान भी परमेश्वर की माँगें पूरी कर सकते हैं।
2. इस्राएलियों में से बहुतों ने कैसे यहोवा के साथ विश्वासघात किया?
2 लेकिन बात यह है कि हर कोई यहोवा की इच्छा पूरी करना नहीं चाहता। होशे बताता है कि उसके दिनों में भी बहुत सारे इस्राएली यहोवा की मरज़ी पर नहीं चलना चाहते थे। दरअसल, एक राष्ट्र के तौर पर उन्होंने परमेश्वर के कायदे-कानूनों को मानने की वाचा बाँधी थी। (निर्गमन 24:1-8) मगर कुछ ही समय बाद, उन्होंने यहोवा के कानूनों को मानना छोड़कर उस “वाचा को तोड़ दिया।” इसलिए, यहोवा ने कहा कि उन इस्राएलियों ने उसके साथ “विश्वासघात किया है।” (होशे 6:7) उसके बाद से कई लोग ऐसा ही करते आए हैं। यहोवा विश्वासघात से घृणा करता है, फिर चाहे यह उसके साथ किया जाता हो या उन लोगों के साथ जो यहोवा से प्यार करते और उसकी सेवा करते हैं।
3. इस लेख में किस बात पर जाँच की जाएगी?
3 अगर हम खुशहाल ज़िंदगी जीना चाहते हैं तो हमें विश्वासघात के बारे में वही नज़रिया रखना होगा जो परमेश्वर का है। इस बारे में सिर्फ भविष्यवक्ता होशे ने ही ज़ोर नहीं दिया था। पिछले लेख से हम मलाकी की किताब की भविष्यवाणियों की जाँच कर रहे हैं और इसकी शुरूआत हमने पहले अध्याय से की। अब आइए हम उसी किताब का दूसरा अध्याय खोलें और देखें कि विश्वासघात के बारे में परमेश्वर के नज़रिए पर और क्या रोशनी डाली गयी है। मलाकी ने उस समय के हालात का ब्योरा दिया जब बाबुल की बंधुआई से लौटे, परमेश्वर के लोगों को कई दशक बीत चुके थे। मगर इस दूसरे अध्याय में दी गयी बातें आज हमारे लिए भी बहुत मायने रखती हैं।
याजक, जो धिक्कारे जाने के लायक थे
4. यहोवा ने याजकों को क्या चेतावनी दी?
4 अध्याय 2 की शुरूआत में हम पाते हैं कि यहोवा, यहूदी याजकों की निंदा करता है क्योंकि वे उसके धर्मी मार्गों से भटक गए हैं। अगर याजक उसकी सलाह नहीं मानेंगे और अपने तौर-तरीके नहीं बदलेंगे, तो उन्हें बुरे अंजाम भुगतने पड़ेंगे। पहली दो आयतों पर गौर कीजिए: “हे याजको, यह आज्ञा तुम्हारे लिये है। यदि तुम इसे न सुनो, और मन लगाकर मेरे नाम का आदर न करो, तो सेनाओं का यहोवा यों कहता है कि मैं तुम को शाप दूंगा, और जो वस्तुएं मेरी आशीष से तुम्हें मिली हैं, उन पर मेरा शाप पड़ेगा।” अगर याजकों ने लोगों को यहोवा की व्यवस्था के बारे में सिखाया होता और खुद भी उसका पालन किया होता, तो उन्हें ज़रूर आशीष मिलती। लेकिन अब तो उन पर हाय पड़ेगी, उन्हें शाप मिलेगा क्योंकि उन्होंने परमेश्वर की इच्छा को नज़रअंदाज़ किया है। यहाँ तक कि याजकों की दी हुई आशीषें भी शाप बन जाएँगी।
5, 6. (क) खास तौर पर याजक धिक्कारे जाने के लायक क्यों थे? (ख) यहोवा ने याजकों के लिए अपनी नफरत कैसे ज़ाहिर की?
5 यहोवा ने खासकर याजकों की ही निंदा क्यों की? आयत 7 में इसकी वजह साफ बतायी गयी है: “याजक को चाहिये कि वह अपने ओंठों से ज्ञान की रक्षा करे, और लोग उसके मुंह से व्यवस्था पूछें, क्योंकि वह सेनाओं के यहोवा का दूत है।” एक हज़ार से भी ज़्यादा साल पहले, मूसा के ज़रिए इस्राएल जाति को परमेश्वर की व्यवस्था मिली थी जिसके तहत याजकों की ज़िम्मेदारी थी कि वे ‘इस्राएलियों को वे सारी विधियाँ सिखाएँ जो यहोवा ने उनको सुनवाई थीं।’ (लैव्यव्यवस्था 10:11) लेकिन अफसोस की बात है कि जैसे 2 इतिहास 15:3 में इसके लेखक ने बताया कि एक वक्त ऐसा भी आया, जब “बहुत दिन इस्राएल बिना सत्य परमेश्वर के और बिना सिखानेवाले याजक के और बिना व्यवस्था के रहा।”
6 सामान्य युग पूर्व पाँचवीं सदी में यानी मलाकी के ज़माने में, याजक ऐसा ही कर रहे थे। वे लोगों को परमेश्वर की व्यवस्था नहीं सिखा रहे थे। इसलिए उन याजकों को सज़ा मिलनी ही थी। गौर कीजिए कि यहोवा ने किन ज़बरदस्त शब्दों से उनकी निंदा की। मलाकी 2:3 में वह ऐलान करता है: “मैं . . . तुम्हारे मुंह पर तुम्हारे पर्बों के यज्ञपशुओं का मल फैलाउंगा।” कितनी घिनौनी सज़ा! उस ज़माने में, बलि किए जानेवाले पशु के गोबर को छावनी से बाहर ले जाकर जला दिया जाता था। (लैव्यव्यवस्था 16:27) लेकिन जब यहोवा कहता है कि गोबर उनके मुहँ पर फैलाया जाएगा तो इससे साफ ज़ाहिर होता है कि परमेश्वर ने उन बलिदानों और उन्हें अर्पित करनेवालों को तुच्छ समझा और ठुकरा दिया।
7. व्यवस्था के सिखानेवालों पर यहोवा का क्रोध क्यों भड़का?
7 मलाकी के समय से सदियों पहले, यहोवा ने लेवियों को यह ज़िम्मेदारी सौंपी थी कि वे निवास-स्थान की और आगे चलकर मंदिर की देख-रेख करें और उसमें पवित्र सेवा करें। इतना ही नहीं, उन्हें इस्राएल जाति को सिखाने का ज़िम्मा सौंपा गया था। इस ज़िम्मेदारी को निभाने से उन्हें और पूरी इस्राएल जाति को जीवन और शांति मिलती। (गिनती 3:5-8) लेकिन लेवियों के दिल में परमेश्वर के लिए भय और श्रद्धा धीरे-धीरे खत्म हो गयी। इसलिए यहोवा ने उनसे कहा: “तुम लोग धर्म के मार्ग से ही हट गए; तुम बहुतों के लिये व्यवस्था के विषय में ठोकर का कारण हुए; तुम ने लेवी की वाचा को तोड़ दिया है . . . तुम मेरे मार्गों पर नहीं चलते।” (मलाकी 2:8, 9) याजकों ने लोगों को सच्चाई नहीं सिखायी, इसके बजाय उनके सामने बुरा उदाहरण रखा जिसकी वजह से कई इस्राएली गुमराह हो गए। इसलिए उन पर यहोवा का क्रोध भड़क उठना जायज़ था।
परमेश्वर के स्तरों को मानकर चलना
8. क्या इंसानों से परमेश्वर के स्तरों को मानने की माँग करना, हद-से-ज़्यादा की उम्मीद करना है? समझाइए।
8 हम ऐसा कभी न सोचें कि यहोवा को उन याजकों पर दया दिखानी चाहिए थी और उन्हें माफ कर देना चाहिए था, क्योंकि वे भी आम इंसानों की तरह असिद्ध थे, इसलिए वे परमेश्वर के स्तरों का पालन नहीं कर पाए। लेकिन सच तो यह है कि आम इंसानों के लिए परमेश्वर की आज्ञाओं को मानना बेशक मुमकिन है, क्योंकि यहोवा उनसे हद-से-ज़्यादा की उम्मीद नहीं करता है। शायद उस समय के कुछ याजक, यहोवा के स्तरों को मानकर चले थे और बाद में एक याजक ऐसा करने में बेशक कामयाब हुआ था। वह था, महान “महायाजक,” यीशु। (इब्रानियों 3:1) उसके बारे में यह कहना बिलकुल सही है: “उसको मेरी सच्ची व्यवस्था कण्ठ थी, और उसके मुंह से कुटिल बात न निकलती थी। वह शान्ति और सीधाई से मेरे संग संग चलता था, और बहुतों को अधर्म से लौटा ले आया था।”—मलाकी 2:6.
9. आज हमारे दिनों में किन लोगों ने पूरी वफादारी के साथ बाइबल की सच्चाई बाँटी है?
9 हमारे समय में, स्वर्ग जाने की आशा रखनेवाले मसीह के अभिषिक्त भाई, “याजकों का पवित्र समाज बनकर” उसी की तरह ‘परमेश्वर को ग्रहणयोग्य आत्मिक बलिदान चढ़ाते हैं।’ (1 पतरस 2:5) दूसरों को बाइबल की सच्चाई बाँटने में वे सबसे आगे रहे हैं। आपने बाइबल की जो सच्चाइयाँ उनसे सीखी हैं, उनसे क्या आपको एहसास नहीं होता कि अभिषिक्त मसीहियों को सच्ची व्यवस्था कण्ठ है? उन्होंने कई लोगों को झूठे धर्म के अधर्म से लौट आने में मदद दी है, जिसका नतीजा यह हुआ है कि आज संसार-भर में लाखों लोगों ने बाइबल की सच्चाइयाँ सीखी हैं और उन्हें अनंत जीवन पाने की आशा है। अब इन लोगों के पास, और भी लाखों लोगों को सच्ची व्यवस्था सिखाने का खास अवसर है।—यूहन्ना 10:16; प्रकाशितवाक्य 7:9.
सावधान रहने की वजह
10. हमें सावधान रहने की ज़रूरत क्यों है?
10 मगर फिर भी हमें सावधान रहने की ज़रूरत है। हम कभी-कभी मलाकी 2:1-9 में दिए सबक को समझने और उन पर चलने से चूक सकते हैं। क्या हममें से हरेक सावधान है कि हमारे मुंह से कोई कुटिल बात न निकले? मिसाल के लिए, क्या हमारे परिवार का हर सदस्य हमारी बात पर भरोसा कर सकता है? क्या कलीसिया के भाई-बहन भी हम पर भरोसा रख सकते हैं? हमारे अंदर यह आदत बड़ी आसानी से पैदा हो सकती है कि हम चतुराई से ऐसी बातें करें जो कहने में सही हों, मगर उनसे सुननेवाला गलत नतीजों पर पहुँच सकता है। या क्या हम अपने बिज़नॆस के संबंध में काफी बढ़ा-चढ़ाकर बात करते हैं या कुछ जानकारी छिपा लेते हैं? क्या आपको लगता है कि यहोवा यह सबकुछ नहीं देख सकता? और अगर हम ऐसे काम करेंगे, तो क्या यहोवा हमारे होंठों से अर्पित किए जानेवाले स्तुति के बलिदान स्वीकार करेगा?
11. किन लोगों को खास तौर पर सावधान रहना चाहिए?
11 जहाँ तक आज की कलीसियाओं की बात है, उनमें जिन भाइयों को परमेश्वर का वचन सिखाने की ज़िम्मेदारी मिली है, उनके लिए मलाकी 2:7 एक चेतावनी है। इस आयत में बताया गया है कि उन्हें अपने होंठों से ‘ज्ञान की रक्षा करनी चाहिए, और लोगों को उनके मुंह से व्यवस्था पूछनी चाहिए।’ ऐसे शिक्षकों पर भारी जवाबदारी है, जैसा कि याकूब 3:1 बताता है, उनके साथ “अधिक कड़ाई के साथ न्याय किया जायेगा।” (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) यह सच है कि इन भाइयों को ज़ोर-शोर से और उत्साह के साथ सिखाना चाहिए। पर उन्हें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि वे सिर्फ परमेश्वर के लिखित वचन और यहोवा के संगठन से मिलनेवाली हिदायतों के आधार पर ही सिखाएँ। इस तरह वे ‘औरों को सिखाने के योग्य होंगे।’ इसीलिए उनको सलाह दी जाती है: “अपने आप को परमेश्वर का ग्रहणयोग्य और ऐसा काम करनेवाला ठहराने का प्रयत्न कर, जो लज्जित होने न पाए, और जो सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाता हो।”—2 तीमुथियुस 2:2, 15.
12. जिन पर सिखाने की ज़िम्मेदारी है, उन्हें किस बात का खास ध्यान रखना होगा?
12 अगर हम सावधान नहीं रहेंगे तो हम सिखाते वक्त अपनी राय या अपने विचार जोड़ने के लिए लुभाए जा सकते हैं। और ऐसा रवैया खासकर उन लोगों में बहुत ज़बरदस्त होता है जिन्हें अपनी बात पर हद-से-ज़्यादा भरोसा होता है, भले ही उनकी बात यहोवा के संगठन की शिक्षा से कोई मेल न खाती हो। लेकिन मलाकी के अध्याय 2 में बताया गया है कि कलीसिया के शिक्षकों को भरोसे के योग्य होना चाहिए ताकि हम उनसे उम्मीद कर सकें कि वे हमें खुद के विचार नहीं बल्कि परमेश्वर का ज्ञान ही सिखाएँगे। इस तरह भेड़ ठोकर खाने से बचेंगी। यीशु ने कहा: “जो कोई इन छोटों में से जो मुझ पर विश्वास करते हैं एक को ठोकर खिलाए, उसके लिये भला होता, कि बड़ी चक्की का पाट उसके गले में लटकाया जाता, और वह गहिरे समुद्र में डुबाया जाता।”—मत्ती 18:6.
अविश्वासियों से शादी
13, 14. मलाकी ने किस तरह के विश्वासघात के बारे में बताया?
13 मलाकी अध्याय 2 की 10वीं आयत से विश्वासघात के बारे में और भी सीधे-सीधे बताया गया है। मलाकी दो तरह के कामों का ज़िक्र करता है, जो एक-दूसरे से जुड़े हैं और इनका ज़िक्र करते समय वह बार-बार “विश्वासघात” शब्द का इस्तेमाल करता है। सबसे पहले, ध्यान दीजिए कि मलाकी सलाह देने से पहले सवाल पूछता है: “क्या हम सभों का एक ही पिता नहीं? क्या एक ही परमेश्वर ने हम को उत्पन्न नहीं किया? हम क्यों एक दूसरे का विश्वासघात करके अपने पूर्वजों की वाचा को तोड़ देते हैं?” फिर आयत 11 बताती है कि इस्राएलियों का विश्वासघाती होना, “यहोवा की पवित्रता” (NW) को अपवित्र करने के बराबर है। यह मामला इतना संगीन क्यों था? आखिर वे ऐसा क्या कर रहे थे? उसी आयत में बताया गया है कि उनका पहला गलत काम यह था कि उन्होंने “बिराने देवता की कन्या से विवाह” किया था।
14 दूसरे शब्दों में कहें तो यहोवा को समर्पित इस्राएल जाति के कुछ पुरुषों ने उन स्त्रियों से शादी कर ली, जो यहोवा की उपासक नहीं थीं। उनका यह पाप इतना गंभीर क्यों था, यह जानने के लिए आस-पास की आयतें हमारी मदद करती हैं। आयत 10 बताती है कि उन सभी का एक ही पिता था। यहाँ पिता का मतलब याकूब (जिसका नाम बाद में इस्राएल पड़ा) नहीं है और न ही इब्राहीम या आदम है। मलाकी 1:6 दिखाता है कि उन सब का “एक ही पिता” यहोवा था। इस्राएली, यहोवा के साथ एक रिश्ते में बँधे हुए थे क्योंकि वे उस वाचा में शामिल थे जो यहोवा ने उनके पूर्वजों के साथ बाँधी थी। उस वाचा का एक नियम था: “[तू] न उन से ब्याह शादी करना, न तो अपनी बेटी उनके बेटे को ब्याह देना, और न उनकी बेटी को अपने बेटे के लिये ब्याह लेना।”—व्यवस्थाविवरण 7:3.
15. (क) अविश्वासियों से शादी करने के लिए कुछ लोग शायद कैसी दलील पेश करें? (ख) शादी के मामले में यहोवा ने अपना नज़रिया कैसे ज़ाहिर किया?
15 आज शायद कुछ लोग यह दलील दें: ‘मुझे जो लड़की (या लड़का) पसंद है, उसकी तो बात ही कुछ और है। वह ज़रूर सच्ची उपासना करने के लिए राज़ी हो जाएगी/गा।’ मगर ऐसे सोच-विचार से यही साबित होता है कि परमेश्वर की प्रेरणा से लिखी गयी यह चेतावनी वाकई सच है: “मनुष्य का हृदय छल-कपट से भरा होता है, निस्सन्देह वह सब से अधिक भ्रष्ट होता है।” (यिर्मयाह 17:9, नयी हिन्दी बाइबिल) अविश्वासियों से शादी करनेवालों के साथ परमेश्वर कैसे पेश आएगा, इसके बारे में मलाकी 2:12 में साफ बताया गया है: ‘जो पुरुष ऐसा काम करता है, उसे यहोवा काट डालेगा।’ इसलिए मसीहियों को उकसाया जाता है कि वे “केवल प्रभु में” शादी करें। (1 कुरिन्थियों 7:39) हालाँकि आज, अगर एक विश्वासी, अविश्वासी से शादी करता है तो मसीही इंतज़ाम के तहत उसे ‘काट डाला’ नहीं जाता। लेकिन अगर एक अविश्वासी साथी सच्चाई में नहीं आता, तो उस वक्त उसका क्या होगा जब परमेश्वर जल्द ही इस संसार का अंत करेगा?—भजन 37:37,38.
अपने जीवन-साथी के साथ बुरा सलूक
16, 17. कुछ लोगों ने कौन-सा दूसरा गलत काम करके विश्वासघात किया?
16 मलाकी अब दूसरे गलत काम का ज़िक्र करता है: अपने जीवन-साथी के साथ बुरा सलूक करना, खासकर बिना किसी शास्त्रीय आधार के उसे तलाक दे देना। मलाकी के दूसरे अध्याय की आयत 14 कहती है: “यहोवा तेरे और तेरी उस जवानी की संगिनी और ब्याही हुई स्त्री के बीच साक्षी हुआ था जिस का तू ने विश्वासघात किया है।” यहूदी पुरुषों ने अपनी-अपनी पत्नियों के साथ विश्वासघात किया था और उनके कारण यहोवा की वेदी ‘आँसुओं से भर’ गयी थी। (मलाकी 2:13) ये पुरुष हर छोटी-सी-छोटी बात का बहाना बनाकर, अपनी जवानी की पत्नियों को तलाक दे रहे थे। वे शायद इसलिए ऐसा कर रहे थे ताकि वे जवान औरतों या झूठे धर्मों को माननेवाली औरतों से शादी कर सकें। और-तो-और, भ्रष्ट याजक भी लोगों को ऐसे काम करने से मना नहीं कर रहे थे! लेकिन मलाकी 2:16 में कहा गया है: “‘मैं तलाक से घृणा करता हूं,’ इस्राएल के यहोवा परमेश्वर का यही वचन है।” (NHT) बाद में यीशु ने भी बताया कि सिर्फ अनैतिकता के बिनाह पर ही तलाक लिया जा सकता है और इसके बाद अगर बेकसूर साथी चाहे तो वह दोबारा शादी कर सकता है।—मत्ती 19:9.
17 मलाकी के शब्दों पर मनन कीजिए और देखिए कि ये शब्द कैसे हमारे दिलों को छू जाते हैं और हमारा दिल पसीज जाता है। वह कहता है: ‘तेरी जवानी की संगिनी और ब्याही हुई स्त्री।’ इस पाप में फँसे हर पुरुष ने यहोवा की उपासना करनेवाली एक इस्राएली स्त्री से पहले शादी की थी और उसे अपनी प्रिय संगिनी या अपना जीवन-साथी चुना था। हो सकता है कि यह शादी उन दोनों की जवानी में हुई हो, मगर वक्त के गुज़रने और उम्र ढलने से, उनकी वाचा यानी शादी का बंधन, रद्द नहीं हो जाता।
18. विश्वासघात के बारे में मलाकी की सलाह आज भी कैसे लागू होती है?
18 शादी के मामले में जो सलाह बरसों पहले दी गयी थी, वह आज भी लागू होती है। दुःख की बात है कि हमारे कुछ भाई-बहन सिर्फ प्रभु में शादी करने के बारे में परमेश्वर के निर्देशन को ठुकरा रहे हैं। और यह भी बड़े दुःख की बात है कि कुछ भाई-बहन अपने शादी के बंधन को मज़बूत बनाए रखने की लगातार कोशिश नहीं करते। इसके बजाय वे बहाने बनाकर किसी और से शादी करने के लिए तलाक लेते हैं जबकि ऐसा करना बाइबल के मुताबिक सही नहीं है। इस तरह वे ऐसे काम कर रहे हैं जिनसे परमेश्वर नफरत करता है। अपने कामों से उन्होंने “यहोवा को उकता दिया है।” मलाकी के दिनों में जिन्होंने परमेश्वर की सलाह ठुकरा दी वे अपनी हद भूलकर यह सोचने लगे कि यहोवा के विचार इतने सही नहीं है। उन्होंने यहाँ तक कहा: “न्यायी परमेश्वर कहां है?” कितनी घिनौनी सोच! आइए हम कभी ऐसे फंदे में न फँसें।—मलाकी 2:17.
19. पति-पत्नी कैसे परमेश्वर की आत्मा पा सकते हैं?
19 दूसरी तरफ, मलाकी एक अच्छी बात भी बताता है। उसके समय में कुछ ऐसे पुरुष थे जिन्होंने अपनी पत्नियों के साथ विश्वासघात नहीं किया था। इसलिए उन्हें ‘परमेश्वर की शेष पवित्र आत्मा’ मिली थी। (आयत 15, NW) खुशी की बात है कि आज परमेश्वर के संगठन में ऐसे पुरुष बड़ी तादाद में हैं जो ‘अपनी पत्नियों का आदर करते हैं।’ (1 पतरस 3:7) वे ना तो अपनी पत्नियों को मारते-पीटते हैं, ना ही उन्हें गालियाँ देते और उन पर तानें कसते हैं। वे उन पर नीच लैंगिक काम करने का ज़ोर नहीं डालते और ना ही दूसरी स्त्रियों के साथ इश्कबाज़ी करके या पोर्नोग्राफी का मज़ा लेकर अपनी पत्नियों का अपमान करते हैं। और यहोवा के संगठन में ऐसी मसीही पत्नियों की भी कमी नहीं, जो परमेश्वर और उसकी आज्ञाओं की वफादार रहती हैं। ये सारे स्त्री-पुरुष जानते हैं कि परमेश्वर किन बातों से नफरत करता है और वे उसके मुताबिक अपने सोच-विचारों को ढालते और काम करते हैं। आप भी उनकी तरह बनिए और “परमेश्वर की आज्ञा का पालन” करते हुए पवित्र आत्मा की आशीष पाइए।—प्रेरितों 5:29.
20. सभी लोगों के लिए कौन-सा समय करीब आ रहा है?
20 वह समय बहुत जल्द आ रहा है जब यहोवा पूरे संसार का न्याय करेगा। उस वक्त हर इंसान को अपने रवैए और कामों के लिए यहोवा को जवाब देना पड़ेगा। “हम में से हर एक परमेश्वर को अपना अपना लेखा देगा।” (रोमियों 14:12) अब एक बहुत ही दिलचस्प सवाल खड़ा होता है: यहोवा के दिन में कौन बच पाएगा? इस श्रंखला के तीसरे और आखिरी लेख में इसी विषय पर चर्चा की जाएगी।
क्या आप समझा सकते हैं?
• किस बुनियादी कारण से यहोवा ने इस्राएली याजकों की निंदा की?
• परमेश्वर के स्तरों को मानकर चलना इंसानों के लिए नामुमकिन क्यों नहीं है?
• आज हमें सिखाते वक्त सावधान रहने की ज़रूरत क्यों है?
• यहोवा खासकर किन दो तरह के कामों की निंदा करता है?
[पेज 15 पर तसवीर]
मलाकी के दिनों में यहोवा के मार्गों से भटकने की वजह से याजकों की निंदा की गयी
[पेज 16 पर तसवीर]
हमें सावधान रहने की ज़रूरत है कि हम अपने विचार नहीं बल्कि यहोवा के मार्ग सिखाएँ
[पेज 18 पर तसवीरें]
यहोवा ने उन इस्राएली पुरुषों की निंदा की जिन्होंने छोटी-से-छोटी बात का बहाना बनाकर अपनी पत्नियों को तलाक दे दिया और झूठे धर्म को माननेवाली स्त्रियों से शादी कर ली
[पेज 18 पर तसवीर]
आज मसीही, अपने शादी के बंधन का आदर करते हैं