बाइबल की किताब नंबर 28—होशे
लेखक: होशे
लिखने की जगह: सामरिया (ज़िला)
लिखना पूरा हुआ: सा.यु.पू. 745 के बाद
कब से कब तक का ब्यौरा: सा.यु.पू. 804 से पहले-सा.यु.पू. 745 के बाद
इब्रानी शास्त्र की आखिरी 12 किताबों को आम तौर पर “माइनर प्रॉफेट्स” या “महत्वहीन भविष्यवक्ता” कहा जाता है। लेकिन, जर्मनी में इन्हें “छोटे नबी” कहा जाता है और यह नाम ज़्यादा मुनासिब है क्योंकि भले ही उनके कुल अध्याय, यशायाह या यिर्मयाह के अध्यायों से कम हैं मगर वे महत्वहीन बिलकुल नहीं हैं। इब्रानी बाइबल में इन किताबों के खर्रों को एक ही भाग माना जाता था जिसे “द ट्वेल्व” कहा जाता था। शायद इन खर्रों को महफूज़ रखने के लिए ही इन्हें इस तरह इकट्ठा किया गया था, वरना अगर अलग-अलग रखा जाता, तो वे आसानी से गुम हो सकते थे। इन 12 किताबों के नाम उनके लेखकों के नाम पर रखे गए हैं और इनमें होशे की किताब सबसे पहली है। होशे, होशायाह का छोटा रूप है जिसका मतलब है, “याह के ज़रिए बचाए गए; याह ने बचाया है।”
2 होशे की किताब में हमें उसके बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं मिलती है। केवल यही कि वह बेरी का पुत्र था। होशे ने ज़्यादातर इस्राएल के बारे में भविष्यवाणी की थी और यहूदा का उसने बहुत कम ज़िक्र किया। उसकी किताब में यरूशलेम का ज़िक्र कहीं नहीं आता, जबकि इस्राएल के सबसे बड़े गोत्र, एप्रैम का ज़िक्र कुछ 37 बार आता है और इस्राएल की राजधानी, सामरिया या शोमरोन का ज़िक्र 6 बार आता है।
3 इस किताब की पहली आयत बताती है कि होशे ने इस्राएल के राजा, यारोबाम द्वितीय की हुकूमत के आखिरी दौर से लेकर यहूदा के राजा, हिजकिय्याह की हुकूमत के शुरूआती सालों तक, यहोवा के नबी के तौर पर लंबे समय तक सेवा की थी। इसका मतलब उसने सा.यु.पू. 804 से लेकर सा.यु.पू. 745 के बाद तक यानी कम-से-कम 59 सालों तक सेवा की थी। बेशक इन 59 सालों के अलावा, उसने कुछ साल यारोबाम द्वितीय और हिजकिय्याह की हुकूमत के दौरान भी भविष्यवाणी की होगी। इस दरमियान आमोस, यशायाह, मीका और ओदेद भी यहोवा के वफादार भविष्यवक्ता थे।—आमो. 1:1; यशा. 1:1; मीका 1:1; 2 इति. 28:9.
4 मसीही यूनानी शास्त्र में होशे की भविष्यवाणियों का कई बार हवाला दिया गया है जिससे साबित होता है कि यह किताब सच्ची है। खुद यीशु ने यरूशलेम पर न्यायदंड सुनाते वक्त होशे 10:8 का हवाला दिया और कहा: “उस समय वे पहाड़ों से कहने लगेंगे, कि हम पर गिरो, और टीलों से कि हमें ढाँप लो।” (लूका 23:30) इसी आयत के एक हिस्से का हवाला प्रकाशितवाक्य 6:16 में दिया गया है। मत्ती ने होशे 11:1 का हवाला देकर दिखाया कि यह भविष्यवाणी पूरी हुई: “मैं ने अपने पुत्र को मिस्र से बुलाया।” (मत्ती 2:15) होशे की यह भविष्यवाणी भी पूरी हुई कि पूरे इस्राएल को बहाल किया जाएगा। वह कैसे? इससे पहले कि यहूदा बंधुआई में जाता, दस गोत्रवाले राज्य में से कई इस्राएली, उनके साथ जा मिले थे और आगे चलकर इनके वंशज उन लोगों में से थे जो बंधुआई से आज़ाद होकर वापस लौटे थे। (होशे 1:11; 2 इति. 11:13-17; 30:6-12, 18, 25; एज्रा 2:70) एज्रा के ज़माने से इस किताब को यह मानकर इब्रानी संग्रह में शामिल किया गया है कि इसमें ‘होशे के द्वारा यहोवा की बातें’ दर्ज़ हैं।—होशे 1:2.
5 यहोवा ने होशे को अपना भविष्यवक्ता बनाकर इस्राएल के पास क्यों भेजा? क्योंकि इस्राएल के लोग विश्वासघाती बन गए थे। उन्होंने यहोवा को छोड़ बाल की उपासना करना शुरू कर दिया था और इस तरह यहोवा के साथ अपनी वाचा को तोड़ दिया था। वादा किए गए देश में आकर बसने के बाद, इस्राएलियों ने खेती-बाड़ी करना शुरू किया था। मगर ऐसा करते वक्त उन्होंने कनानियों के तौर-तरीके और धर्म को भी अपना लिया जिसमें बाल की उपासना करना शामिल था। कनानी लोग, बाल देवता को प्रकृति की शक्तियों पर अधिकार चलानेवाला और ज़मीन की उपज और पशुओं को बढ़ानेवाला देवता मानते थे। होशे के दिनों में, इस्राएलियों ने यहोवा की उपासना करना पूरी तरह से छोड़ दिया था और ऐसी रस्मों को मानने लगे थे जिनमें नशे में धुत्त होना, हो-हल्ला मचाना और मंदिर की वेश्याओं के साथ कुकर्म करना भी शामिल था। इस्राएलियों ने अपनी खुशहाली का श्रेय बाल को दिया। इस तरह उन्होंने यहोवा से बेवफाई की और वे उसके लायक नहीं रहे, इसलिए यहोवा ने उन्हें ताड़ना देना ज़रूरी समझा। वह उन्हें एहसास दिलाना चाहता था कि उनकी दौलत और खुशहाली बाल की देन नहीं है। इसी वजह से उसने होशे को इस्राएलियों के पास उन्हें खबरदार करने के लिए भेजा कि पश्चाताप न करने पर उन्हें क्या-क्या अंजाम भुगतने पड़ेंगे। यारोबाम द्वितीय की मौत के बाद, इस्राएल राज्य अपने इतिहास के सबसे खौफनाक दौर से गुज़रा। उसके कई राजाओं की हत्या की गयी और दहशत का यह माहौल सा.यु.पू. 740 तक बना रहा जब अश्शूरी आकर इस्राएलियों को बंधुआई में ले गए। इस दौरान, इस्राएल के दस गोत्रवाले राज्य और यहूदा के दो गोत्रवाले राज्य भी आपस में लड़े और एक ने मिस्र के साथ संधि करनी चाही तो दूसरे ने अश्शूर के साथ। दोनों में से किसी ने यहोवा पर भरोसा नहीं किया।
6 होशे की लेखन-शैली से हमें उसके बारे में थोड़ी-बहुत जानकारी मिलती है। उसके ज़्यादातर शब्दों से प्यार और कोमलता झलकती है और वह बार-बार यहोवा की निरंतर प्रेम-कृपा और दया पर ज़ोर देता है। वह लोगों में पछतावे की हर छोटी-से-छोटी निशानी देखकर उसके बारे में लिखता है। मगर दूसरी आयतों में, उसकी भाषा में तालमेल की कमी और उतावलापन नज़र आता है। भले ही उसकी लेखन-शैली में लयबद्धता न हो, मगर दमदार शब्दों का इस्तेमाल करके वह उस कमी को पूरा करता है। अपनी किताब में वह ज़बरदस्त भावनाएँ ज़ाहिर करता है और एक विषय पर बात करते-करते अचानक दूसरे विषय पर चला जाता है।
7 जब होशे ने नबूवत करने का काम शुरू किया था, तो यहोवा ने उसे आज्ञा दी थी कि वह “एक वेश्या को अपनी पत्नी” बना ले। (1:2) यहोवा की इस आज्ञा के पीछे ज़रूर उसका एक मकसद था। इस्राएल, यहोवा की पत्नी की तरह था, जिसने व्यभिचार करके उसके साथ बेवफाई की थी। फिर भी, यहोवा ने उसके लिए अपना प्यार दिखाया और उसे वापस पाने की कोशिश की। यह बात हम होशे की पत्नी, गोमेर की कहानी से अच्छी तरह समझ सकते हैं। माना जाता है कि उसने अपने पहले बच्चे को जन्म देने के बाद व्यभिचार किया था और नाजायज़ बच्चे पैदा किए थे। (2:5-7) ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि बाइबल बताती है कि गोमेर “उस से [होशे से] गर्भवती हुई और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ।” मगर बाकी दो बच्चों के जन्म के सिलसिले में बाइबल, होशे का कोई ज़िक्र नहीं करती। (1:3, 6, 8) होशे अध्याय 3 की आयत 1 से 3 शायद होशे के बारे में बताती हैं कि कैसे उसने गोमेर को वापस स्वीकार किया और उसे मोल लिया, मानो वह कोई दासी हो। यहोवा ने भी कुछ ऐसा ही किया। जब उसके लोगों ने पश्चाताप किया और व्यभिचार करना छोड़ दिया, तब उसने भी उन्हें वापस स्वीकार कर लिया।
8 होशे ने उत्तर के दस गोत्रवाले जिस इस्राएल राज्य को खास अपनी भविष्यवाणी सुनायी थी, वह राज्य उसके सबसे बड़े गोत्र, एप्रैम के नाम से भी जाना जाता था। इसलिए होशे की किताब में कभी-कभी इस्राएल नाम के बजाय एप्रैम नाम इस्तेमाल किया गया है।
क्यों फायदेमंद है
14 होशे की किताब यहोवा की भविष्यवाणियों पर हमारा विश्वास मज़बूत करती है। होशे ने इस्राएल और यहूदा के बारे में जितनी भी भविष्यवाणियाँ कीं, वे सब सच निकलीं। इस्राएल के यारों ने यानी मूर्तिपूजा करनेवाले पड़ोसी देशों ने उसे छोड़ दिया और सा.यु.पू. 740 में उसे अश्शूरियों के हाथों विनाश का बवंडर काटना पड़ा। (होशे 8:7-10; 2 राजा 15:20; 17:3-6, 18) लेकिन, यहूदा के बारे में होशे ने भविष्यवाणी की थी कि यहोवा उस पर दया दिखाएगा और बिना किसी फौजी ताकत से उनका उद्धार करेगा। यह भविष्यवाणी तब पूरी हुई जब यहोवा के एक स्वर्गदूत ने 1,85,000 अश्शूरियों को मार गिराया, जो यरूशलेम के लिए खतरा बने हुए थे। (होशे 1:7; 2 राजा 19:34, 35) फिर भी, होशे 8:14 में सुनाया गया यहोवा का न्यायदंड यहूदा के लिए भी था: “मैं उनके नगरों में आग लगाऊंगा, और उस से उनके गढ़ भस्म हो जाएंगे।” यह भविष्यवाणी सा.यु.पू. 609-607 के बीच बहुत ही भयानक तरीके से पूरी हुई जब नबूकदनेस्सर ने यहूदा और यरूशलेम को उजाड़ दिया। (यिर्म. 34:6, 7; 2 इति. 36:19) बहाली के बारे में होशे की कई भविष्यवाणियाँ तब पूरी हुईं जब यहोवा ने यहूदा और इस्राएल को इकट्ठा किया और सा.यु.पू. 537 में वे गुलामी के ‘देश से निकल आए।’—होशे 1:10, 11, NHT; 2:14-23; 3:5; 11:8-11; 13:14; 14:1-9; एज्रा 2:1; 3:1-3.
15 मसीही यूनानी शास्त्र के लेखकों ने होशे की भविष्यवाणी की किताब से जो हवाले दिए हैं, उनकी भी जाँच करना आज हमारे लिए बहुत फायदेमंद है। मिसाल के लिए पौलुस, पुनरुत्थान की चर्चा करते वक्त होशे 13:14 को बड़े ज़बरदस्त तरीके से इस्तेमाल करते हुए पूछता है: “हे मृत्यु तेरी जय कहां रही? हे मृत्यु तेरा डंक कहां रहा?” (1 कुरि. 15:55, 56क) पौलुस इस बात पर ज़ोर देने के लिए कि यहोवा ने दया के बरतनों पर बड़ी कृपा की है, होशे 1:10 और 2:23 का हवाला देता है: “जैसा वह होशे की पुस्तक में भी कहता है, कि जो मेरी प्रजा न थी, उन्हें मैं अपनी प्रजा कहूंगा, और जो प्रिया न थी, उसे प्रिया कहूंगा। और ऐसा होगा कि जिस जगह में उन से यह कहा गया था, कि तुम मेरी प्रजा नहीं हो, उसी जगह वे जीवते परमेश्वर की सन्तान कहलाएंगे।” (रोमि. 9:25, 26) पतरस होशे की इन आयतों को अपने शब्दों में इस तरह कहता है: “तुम पहिले तो कुछ भी नहीं थे, पर अब परमेश्वर की प्रजा हो: तुम पर दया नहीं हुई थी पर अब तुम पर दया हुई है।”—1 पत. 2:10.
16 इससे पता चलता है कि होशे की भविष्यवाणी न सिर्फ जरुब्बाबेल के दिनों में पूरी हुई जब बचे हुए यहूदी वापस अपने वतन लौटे थे। बल्कि यह तब भी पूरी हुई जब यहोवा ने दया दिखाते हुए आध्यात्मिक शेष जनों को इकट्ठा किया जो ‘जीवते परमेश्वर की प्रिय सन्तान’ बने। होशे ने ईश्वर-प्रेरणा से लिखा कि उपासना के बारे में यहोवा की माँगें क्या हैं। सिर्फ खानापूर्ति के लिए उपासना करना कोई मायने नहीं रखता, मगर होशे 6:6 (जिसे यीशु ने मत्ती 9:13 और 12:7 में दोहराया था) बताता है कि यहोवा क्या चाहता है: “मैं बलिदान से नहीं, स्थिर प्रेम ही से प्रसन्न होता हूं, और होमबलियों से अधिक यह चाहता हूं कि लोग परमेश्वर का ज्ञान रखें।”
17 होशे की बेवफा पत्नी का उदाहरण साफ-साफ दिखाता है कि यहोवा उन लोगों से घृणा करता है जो उसके साथ बेवफाई करके मूर्तिपूजा और झूठी उपासना में उलझ जाते हैं और इस मायने में आध्यात्मिक व्यभिचार करते हैं। पाप करके ठोकर खानेवालों को चाहिए कि वे सच्चे दिल से पश्चाताप करके यहोवा के पास लौट आएँ और “अपने होंठों की स्तुति अर्पित करें।” (होशे 14:2, NHT; इब्रा. 13:15) फिर वे आत्मिक इस्राएल के शेष जनों के साथ इस बात की खुशी मना सकेंगे कि होशे 3:5 (NHT) में दिया राज्य का यह वादा पूरा हुआ है: “इसके पश्चात् इस्राएली लौटेंगे और अपने परमेश्वर यहोवा तथा अपने राजा दाऊद को खोजेंगे, और अन्तिम दिनों वे अपने यहोवा और उसकी भलाई की ओर थरथराते हुए आएंगे।”