अध्याय चौदह
उसने दया दिखाना सीखा
1. (क) योना को किस तरह का सफर करना पड़ा? (ख) अपनी मंज़िल के बारे में सोचकर उसे कैसा लगा?
योना नीनवे जाने के लिए रवाना हुआ। यह सफर 800 किलोमीटर से भी ज़्यादा लंबा था। इसे तय करने में उसे एक महीना या उससे भी ज़्यादा समय लग सकता था। उस दौरान उसे काफी कुछ सोचना था। सबसे पहले उसे यह चुनना था कि वह कौन-सा रास्ता लेगा। छोटा रास्ता जिसमें कई खतरे थे या फिर लंबा रास्ता जिसमें कोई खतरा नहीं था? इस तरह फैसला करते हुए उसने न जाने कितनी घाटियाँ और पहाड़ पार किए। वह दूर-दूर तक फैले सीरिया के रेगिस्तान के किनारे-किनारे चला होगा। उसने कई नदियाँ पार की होंगी, जैसे फरात नाम की बड़ी नदी। उसने सीरिया, मेसोपोटामिया और अश्शूर के गाँवों और नगरों में अनजान लोगों के घरों में पनाह ली होगी। जैसे-जैसे दिन बीतते गए और नीनवे करीब आता गया, योना के दिल में डर और चिंता बढ़ने लगी।
2. योना ने कैसे सबक सीखा कि परमेश्वर के दिए काम से वह भाग नहीं सकता?
2 योना एक बात अच्छी तरह जानता था: परमेश्वर ने उसे जो काम सौंपा है उससे वह भाग नहीं सकता। वह पहले ऐसा कर चुका था। जैसे हमने पिछले अध्याय में देखा, यहोवा ने उसके साथ सब्र से पेश आते हुए उसे सबक सिखाया। उसने समुंदर में एक आँधी चलायी और फिर चमत्कार से एक मछली भेजकर योना को बचाया। तीन दिन बाद योना को ज़िंदा समुंदर किनारे उगल दिया गया। इस घटना से उसके दिल में यहोवा के लिए श्रद्धा और भी बढ़ गयी और वह पहले से ज़्यादा नम्र और आज्ञाकारी बन गया।—योना, अध्या. 1, 2.
3. (क) यहोवा ने योना पर कौन-सा गुण ज़ाहिर किया? (ख) इससे क्या सवाल उठता है?
3 जब यहोवा ने दूसरी बार योना को नीनवे जाने की आज्ञा दी तो वह परमेश्वर की आज्ञा मानकर पूरब की तरफ इस लंबे सफर पर निकल पड़ा। (योना 3:1-3 पढ़िए।) लेकिन जब यहोवा ने उसे सुधारा तो क्या वह पूरी तरह बदल गया? मिसाल के लिए, यहोवा ने उस पर दया की थी। हालाँकि योना ने आज्ञा नहीं मानी थी, फिर भी परमेश्वर ने उसे सज़ा नहीं दी बल्कि उसे डूबने से बचाया और उसे नीनवे जाकर संदेश सुनाने का एक और मौका दिया। इतना कुछ होने के बाद क्या योना ने दूसरों पर दया दिखाना सीखा? पापी इंसानों के लिए यह सबक सीखना अकसर मुश्किल होता है। मगर योना ने काफी जद्दोजेहद के बाद यह सबक सीख ही लिया। आइए देखें कि हम उससे क्या सीख सकते हैं।
नाश का संदेश और लोगों का पश्चाताप
4, 5. (क) यहोवा ने नीनवे को ‘बड़ा शहर’ क्यों कहा? (ख) इससे हम यहोवा के बारे में क्या सीखते हैं?
4 योना ने नीनवे को यहोवा के नज़रिए से नहीं देखा। बाइबल में लिखा है, “नीनवे बहुत बड़ा शहर था (शाब्दिक, ‘परमेश्वर के लिए बहुत बड़ा शहर था’)।” (योना 3:3, फुटनोट) यहोवा ने योना की किताब में नीनवे को तीन बार ‘बड़ा शहर’ कहा। (योना 1:2; 3:2; 4:11) यहोवा की नज़र में यह शहर क्यों बड़ा या बहुत खास था?
5 नीनवे बहुत पुराना शहर था। वह उन शहरों में से एक था जिन्हें निमरोद ने जलप्रलय के बाद बसाया था। वह एक बहुत ही बड़ा शहर था जिसमें शायद कई शहर थे। इसलिए इसके एक छोर से दूसरे छोर तक पैदल जाने में तीन दिन लगते थे। (उत्प. 10:11; योना 3:3) नीनवे शहर में भव्य मंदिर, ऊँची-ऊँची मज़बूत दीवारें और दूसरी आलीशान इमारतें थीं। इसलिए जो उसे एक बार देख ले वह बस उसे देखता ही रह जाए। लेकिन ये बातें यहोवा परमेश्वर के लिए कोई मायने नहीं रखती थीं। इसके बजाय वहाँ के लोग उसके लिए मायने रखते थे। उस समय, दूसरे शहरों के मुकाबले नीनवे की आबादी बहुत ज़्यादा थी। हालाँकि वहाँ के लोग बुरे काम करते थे, फिर भी यहोवा ने उनकी परवाह की। दरअसल, वह इंसान के जीवन को अनमोल समझता है और चाहता है कि सब लोग पश्चाताप करें और सही काम करना सीखें।
6. (क) योना नीनवे पहुँचने के बाद क्यों और डर गया होगा? (फुटनोट भी देखें।) (ख) योना ने जिस तरह संदेश सुनाया उससे हम क्या सीखते हैं?
6 आखिरकार, योना नीनवे पहुँचा। उस वक्त वहाँ की आबादी 1,20,000 से भी ज़्यादा थी। वह तो पहले ही डरा हुआ था और अब वहाँ की घनी आबादी देखकर उसकी तो जान सूख गयी होगी।a वह पूरा दिन चलता रहा और शहर के अंदर बढ़ता गया। शायद वह ऐसी जगह तलाश रहा था जहाँ से वह संदेश सुनाना शुरू कर सके। मगर उसने उन लोगों से किस भाषा में बात की होगी? क्या उसने अश्शूरी भाषा सीखी थी? या क्या यहोवा ने चमत्कार से उसे यह भाषा बोलने की काबिलीयत दी थी? यह हम नहीं जानते। पर हो सकता है योना ने संदेश अपनी भाषा इब्रानी में सुनाया हो और किसी और ने उसे अश्शूरी भाषा में अनुवाद किया हो। हालाँकि बाइबल यह जानकारी नहीं देती, फिर भी एक बात तय है कि योना का संदेश सरल था। मगर यह लोगों को रास नहीं आनेवाला था। उसने कहा, “अब से 40 दिन बाद नीनवे तबाह हो जाएगा।” (योना 3:4) वह निडर होकर बार-बार यह संदेश देता रहा। इस तरह उसने क्या ही बढ़िया तरीके से अपनी हिम्मत और विश्वास का सबूत दिया! आज हम मसीहियों को भी पहले से ज़्यादा इन गुणों की ज़रूरत है।
योना का संदेश सरल था, मगर यह लोगों को रास नहीं आनेवाला था
7, 8. (क) योना का संदेश सुनकर नीनवे के लोगों ने क्या किया? (ख) राजा ने क्या किया?
7 जब योना ने अपना संदेश सुनाना शुरू किया तब उसने बेशक सोचा होगा कि अब तो लोग मुझे नहीं छोड़ेंगे। मगर ताज्जुब की बात है कि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। उलटा लोगों ने उसका संदेश ध्यान से सुना! देखते-ही-देखते योना का संदेश जंगल की आग की तरह पूरे शहर में फैल गया। उसने विनाश की जो भविष्यवाणी की, सब उस बारे में चर्चा करने लगे। (योना 3:5 पढ़िए।) अमीर-गरीब, ताकतवर और कमज़ोर, जवान और बुज़ुर्ग, सभी ने पश्चाताप किया। उन सबने उपवास किया। इसकी खबर जल्द ही राजा के कानों तक पहुँची।
8 राजा के मन में भी परमेश्वर का डर समा गया। वह पश्चाताप करने के लिए अपनी राजगद्दी से उठा, अपने शाही कपड़े उतारे और टाट ओढ़कर “राख पर बैठ गया।” लोगों ने अपनी मरज़ी से जो उपवास शुरू किया था, उसे अब राजा और “उसके बड़े-बड़े अधिकारियों” ने मिलकर देश का कानून बना दिया। उसने हुक्म दिया कि सब लोग टाट ओढ़ें, यहाँ तक कि पालतू जानवर भी।b राजा ने नम्रता से कबूल किया कि उसकी प्रजा बुरे कामों और खून-खराबे के लिए दोषी है। उसने उम्मीद ज़ाहिर की कि लोगों का पश्चाताप देखकर शायद सच्चे परमेश्वर का दिल पिघल जाए। राजा ने कहा, “परमेश्वर . . . अपनी जलजलाहट हम पर से हटा ले कि हम मिट न जाएँ।”—योना 3:6-9.
9. (क) बाइबल में नुक्स निकालनेवालों को क्या यकीन करना मुश्किल लगता है? (ख) हम कैसे जानते हैं कि उनका शक करना गलत है?
9 बाइबल में नुक्स निकालनेवालों को यकीन करना मुश्किल लगता है कि नीनवे के लोग इतनी जल्दी बदल गए। मगर बाइबल के विद्वानों का कहना है कि प्राचीन समय में लोगों का इस तरह बदलना कोई नयी बात नहीं थी। वे अंधविश्वासी थे और सुनी-सुनायी बातों पर फौरन यकीन कर लेते थे। विद्वानों से भी बढ़कर सबूत हमें यीशु मसीह से मिलता है। उसने नीनवे के लोगों के पश्चाताप का ज़िक्र किया था। (मत्ती 12:41 पढ़िए।) वह इस बारे में इसलिए कह पाया क्योंकि जब यह सब हो रहा था, तब वह स्वर्ग में था और सबकुछ देख रहा था। (यूह. 8:57, 58) वाकई, लोग चाहे कितने ही खूँखार क्यों न दिखें, हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि वे कभी पश्चाताप नहीं करेंगे। इंसान के दिल में क्या है, यह सिर्फ यहोवा जान सकता है।
परमेश्वर की दया और इंसानों के कठोर न्याय में फर्क
10, 11. (क) यहोवा ने नीनवे के लोगों का पश्चाताप देखकर क्या किया? (ख) हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि यहोवा का फैसला गलत नहीं था?
10 यहोवा ने नीनवे के लोगों का पश्चाताप देखकर क्या किया? योना ने बाद में लिखा, “जब सच्चे परमेश्वर ने उनके कामों को देखा कि किस तरह वे अपनी दुष्ट राहों से फिर गए हैं, तो उसने अपने फैसले पर दोबारा गौर किया। और वह नीनवे पर कहर नहीं लाया।”—योना 3:10.
11 क्या यहोवा के कहने का यह मतलब था कि उसने पहले नीनवे के लोगों का नाश करने का जो फैसला किया था वह गलत था? जी नहीं। बाइबल बताती है कि यहोवा का न्याय हमेशा सही होता है। (व्यवस्थाविवरण 32:4 पढ़िए।) नीनवे के लोगों के बुरे कामों की वजह से यहोवा का क्रोध उन पर भड़का था, मगर अब उनका पश्चाताप देखकर उसका क्रोध शांत हो गया। उसने देखा कि लोग बदल गए हैं, इसलिए उसे लगा कि अब उन्हें सज़ा देना सही नहीं होगा। जी हाँ, यह समय था कि परमेश्वर नीनवे के लोगों पर दया करे।
12, 13. (क) यहोवा ने कैसे दिखाया कि वह दयालु, लिहाज़ करनेवाला और हालात के मुताबिक बदलनेवाला परमेश्वर है? (ख) यह क्यों कहा जा सकता है कि योना की भविष्यवाणी झूठी साबित नहीं हुई?
12 यहोवा कठोर नहीं कि एक बार कुछ करने की ठान ले, तो टस-से-मस न हो। न ही वह पत्थरदिल है जैसे ज़्यादातर धर्म गुरु सिखाते हैं। इसके बिलकुल उलट, वह दयालु है, दूसरों का लिहाज़ करता है और हालात के मुताबिक अपना फैसला बदलने के लिए तैयार रहता है। वह दुष्टों का नाश करने से पहले उन्हें चेतावनी देता है। इसके लिए वह धरती पर अपने प्रतिनिधियों को उनके पास भेजता है। यहोवा ऐसा इसलिए करता है क्योंकि वह चाहता है कि दुष्ट लोग नीनवे के लोगों की तरह पश्चाताप करें और अपने तौर-तरीके बदल दें। (यहे. 33:11) यहोवा ने अपने भविष्यवक्ता यिर्मयाह से कहा, “जब भी मैं किसी राष्ट्र या राज्य के बारे में कहूँ कि मैं उसे जड़ से उखाड़ दूँगा, ढा दूँगा और नाश कर दूँगा, तब अगर वह राष्ट्र अपनी दुष्टता छोड़ दे तो मैं अपनी सोच बदल दूँगा और उस पर वह विपत्ति नहीं लाऊँगा जिसे लाने की मैंने ठानी थी।”—यिर्म. 18:7, 8.
परमेश्वर चाहता है कि दुष्ट लोग नीनवे के लोगों की तरह पश्चाताप करें और अपने तौर-तरीके बदल दें
13 तो क्या योना की भविष्यवाणी झूठी साबित हुई? नहीं बल्कि जिस मकसद से भविष्यवाणी की गयी थी वह पूरा हुआ। भविष्यवाणी सुनाने का मकसद था नीनवे के लोगों को चेतावनी देना ताकि वे बुरे काम करना छोड़ दें। और उन्होंने ऐसा ही किया। लेकिन अगर नीनवे के लोग फिर से दुष्ट काम करने लगते तो यकीनन परमेश्वर उनका नाश कर डालता। आगे चलकर यही हुआ।—सप. 2:13-15.
14. जब यहोवा ने नीनवे पर दया की तो योना को कैसा लगा?
14 जिस समय नीनवे का नाश होना था उस समय जब उसका नाश नहीं हुआ तो योना को कैसा लगा? हम पढ़ते हैं, “यह बात योना को बहुत बुरी लगी और वह आग-बबूला हो उठा।” (योना 4:1) योना ने परमेश्वर से इस तरह प्रार्थना भी की मानो वह परमेश्वर को डाँट रहा हो! योना एक तरह से कह रहा था, ‘इससे तो अच्छा था कि मैं अपने देश में ही रहता।’ वह सीना ठोककर बोला कि मैं पहले ही जानता था कि यहोवा नीनवे का नाश नहीं करेगा, इसीलिए पिछली बार मैं वहाँ जाने के बजाय तरशीश भाग गया था। फिर योना ने परमेश्वर से कहा कि उसे मौत दे दे क्योंकि जीने से अच्छा है कि वह मर जाए।—योना 4:2, 3 पढ़िए।
15. (क) योना शायद किस वजह से निराश हो गया? (ख) यहोवा उसके साथ कैसे पेश आया?
15 योना क्यों इतना गुस्सा था? हम नहीं जानते कि उसके मन में क्या चल रहा था। लेकिन हम इतना ज़रूर जानते हैं कि योना ने नीनवे के सभी लोगों के सामने उनके नाश का ऐलान किया था। उन्होंने उस पर यकीन भी किया था। मगर अब नीनवे का नाश नहीं होनेवाला था। तो क्या योना घबरा गया था कि अब लोग उसकी हँसी उड़ाएँगे या उसे झूठा भविष्यवक्ता कहेंगे? बात चाहे जो भी रही हो, सच तो यह है कि योना न तो लोगों के पश्चाताप से और न ही यहोवा के दया दिखाने से खुश था। ऐसा लगता है कि उसका मन कड़वा हो गया, वह खुद पर कुछ ज़्यादा ही तरस खाने लगा और उसके अहं को चोट लगी थी। इसके बावजूद दयालु परमेश्वर ने योना की अच्छाइयों पर ध्यान दिया, जो बहुत निराश हो गया था। इसलिए योना ने जिस तरह उसका अनादर किया उसके लिए उसे सज़ा नहीं दी बल्कि उससे प्यार से एक सवाल पूछा जिससे उसे खुद की जाँच करने का बढ़ावा मिला, “क्या तेरा गुस्से से भड़कना सही है?” (योना 4:4) क्या योना ने इस सवाल का जवाब दिया? इस बारे में बाइबल कुछ नहीं बताती।
16. (क) किन मामलों में कुछ लोगों की सोच परमेश्वर से अलग हो सकती है? (ख) योना की मिसाल से हम क्या सीखते हैं?
16 योना जिस तरह पेश आया उसे गलत ठहराना आसान है। मगर हमें याद रखना चाहिए कि पापी इंसान अकसर वैसा नहीं सोचते जैसे परमेश्वर सोचता है। जैसे, हादसों के बारे में लोगों का मानना है कि परमेश्वर को उन्हें रोकना चाहिए था। कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें लगता है कि परमेश्वर को फौरन बुरे लोगों को सज़ा देनी चाहिए या अब तक उसे इस दुष्ट संसार का अंत कर देना चाहिए था। योना की मिसाल से हम सीखते हैं कि जब किसी बात पर हमारी सोच यहोवा परमेश्वर की सोच से मेल नहीं खाती, तो ऐसे में उसे नहीं बल्कि हमें अपना नज़रिया बदलना होगा।
यहोवा ने योना को दया का सबक कैसे सिखाया
17, 18. (क) योना ने नीनवे से जाने के बाद क्या किया? (ख) यहोवा ने घीए की बेल के मामले में जो चमत्कार किए उनका योना पर क्या असर हुआ?
17 भविष्यवक्ता दुखी होकर नीनवे से चला गया। पर वह अपने घर की तरफ नहीं बल्कि पूरब की ओर गया, जहाँ के कुछ पहाड़ों से पूरा नीनवे दिखायी देता था। वहाँ वह एक छप्पर बनाकर उसकी छाया में बैठ गया और देखने लगा कि नीनवे का क्या होगा। शायद उसे अब भी उम्मीद थी कि वह शहर नाश हो जाएगा। आखिर यहोवा ने इस सख्तदिल इंसान को दया का सबक कैसे सिखाया?
18 यहोवा ने एक ही रात में घीए की एक बेल उगायी। सुबह जब योना की नींद खुली तो उसने देखा कि एक हरा-भरा पौधा उग आया है जिसके चौड़े-चौड़े पत्ते उसे और भी अच्छी छाया दे रहे हैं। “योना बहुत खुश हुआ।” उसने सोचा होगा कि यह चमत्कार इस बात की निशानी है कि उस पर परमेश्वर की आशीष और मंज़ूरी है। मगर यहोवा का मकसद योना को सिर्फ धूप से बचाना नहीं था और न ही उसका गुस्सा ठंडा करना था। वह उसके दिल तक पहुँचना चाहता था। इसलिए उसने और भी चमत्कार किए। उसने एक कीड़ा भेजा जिसने बेल को ऐसा खाया कि बेल सूख गयी। इसके बाद “परमेश्वर ने पूरब से झुलसा देनेवाली हवा चलायी” और उसकी गरमी से योना “बेहोश होने लगा।” योना फिर से निराशा में डूब गया और परमेश्वर से अपनी मौत माँगने लगा।—योना 4:6-8.
19, 20. यहोवा ने घीए की बेल की मिसाल देकर योना के साथ कैसे तर्क किया?
19 यहोवा ने योना से पूछा कि क्या घीए की बेल के सूख जाने पर उसका गुस्सा करना सही है? अपनी गलती मानने के बजाय योना ने खुद को सही ठहराते हुए कहा, “हाँ, मेरा भड़कना सही है। मुझे इतना गुस्सा आ रहा है कि मैं मर जाना चाहता हूँ।” अब यह सही वक्त था कि यहोवा योना को समझाए कि उसने नीनवे का नाश क्यों नहीं किया।—योना 4:9.
20 परमेश्वर ने योना से तर्क किया। उसने भविष्यवक्ता से कहा कि वह महज़ एक पौधे के मुरझाने पर दुखी हो रहा है, जिसे न तो उसने लगाया न ही बढ़ाया बल्कि वह एक ही रात में उग आया था। परमेश्वर ने आखिर में कहा, “तो क्या मैं उस बड़े शहर नीनवे पर तरस न खाऊँ, जहाँ 1,20,000 से भी ज़्यादा लोग हैं, जो सही-गलत में फर्क तक नहीं जानते और जहाँ बहुत-से जानवर भी हैं?”—योना 4:10, 11.
21. (क) यहोवा ने घीए की बेल से योना को क्या सबक सिखाया? (ख) योना की कहानी से कैसे हमें खुद की जाँच का बढ़ावा मिलता है?
21 क्या आप समझ पाए कि घीए की बेल से यहोवा ने योना को क्या सबक सिखाया? उस पौधे की देखभाल करने में योना ने कोई मेहनत नहीं की थी। मगर जहाँ तक नीनवे के लोगों की बात है, यहोवा उनका जीवनदाता था। उसने उन्हें जीवित रखा था, जैसे वह धरती के दूसरे प्राणियों को भी ज़िंदा रखता है। तो फिर योना के लिए एक पौधा, नीनवे के 1,20,000 इंसानों और उनके तमाम पालतू जानवरों की जान से ज़्यादा कीमती कैसे हो गया? क्या इसकी वजह यह नहीं थी कि योना स्वार्थी बन गया था? वह पौधे पर सिर्फ इसलिए तरस खा रहा था क्योंकि उससे उसे फायदा हो रहा था। उसी तरह, नीनवे के लोगों पर जब उसका गुस्सा भड़का तो इसके पीछे भी उसका स्वार्थ था। उसे अपनी इज़्ज़त की पड़ी थी और वह चाहता था कि वह सही साबित हो। योना की कहानी से हमें खुद की ईमानदारी से जाँच करने का बढ़ावा मिलता है। हममें से ऐसा कौन है जिसके दिल में कभी स्वार्थ न पैदा हुआ हो? इसलिए हमें यहोवा का एहसान मानना चाहिए कि वह सब्र से हमें सिखाता है कि हम कैसे उसकी तरह और भी करुणामय और दयालु बनें और सिर्फ अपने बारे में न सोचें।
22. (क) यहोवा की बुद्धि-भरी बातों का योना पर क्या असर हुआ होगा? (ख) हम सबको क्या सीखने की ज़रूरत है?
22 मगर सवाल है, क्या योना ने इस सबक को अपने दिलो-दिमाग में उतारा? बाइबल की किताब योना, यहोवा के पूछे सवाल पर खत्म होती है। इसलिए बाइबल में नुक्स निकालनेवाले कुछ लोग शायद शिकायत करें कि योना ने इस सवाल का जवाब कभी नहीं दिया। लेकिन देखा जाए तो योना का जवाब उसकी किताब में है। वह कैसे? सबूत दिखाते हैं कि योना ने ही यह किताब लिखी थी। उसने शायद यह किताब अपने देश सही-सलामत लौटने के बाद लिखी होगी। ज़रा कल्पना कीजिए, वह अपने घर पर बैठा अपनी कहानी लिख रहा है। उसकी उम्र ढल चुकी है। वह अब पहले से ज़्यादा नम्र और बुद्धिमान है। अपनी गलतियों और अपने बगावती और कठोर रवैए के बारे में लिखते वक्त उसके दिल में कैसी हूक-सी उठी होगी। इससे साफ है, योना ने यहोवा की बुद्धि-भरी बातों से ज़रूरी सबक सीखा। आखिरकार, उसने दया दिखाना सीख ही लिया। क्या हम भी दया दिखाना सीखेंगे?—मत्ती 5:7 पढ़िए।
a अनुमान लगाया गया है कि योना के दिनों में दस गोत्रोंवाले इसराएल राज्य की राजधानी, सामरिया में 20,000 से 30,000 लोग रहे होंगे। यानी सामरिया की आबादी, नीनवे की आबादी की एक-चौथाई से भी कम थी। जब नीनवे शहर फल-फूल रहा था तब शायद वह दुनिया का सबसे बड़ा शहर था।
b यह बात शायद अजीब लगे, लेकिन योना के ज़माने से पहले भी ऐसा हुआ था। यूनानी इतिहासकार हिरॉडटस ने बताया कि जब फारस देश में एक जाने-माने सेनापति की मौत हुई तो लोगों ने मातम मनाने में अपने जानवरों को भी शामिल किया था।