परमेश्वर की धार्मिकता पर अपना भरोसा पक्का करना
“मैं आज इसलिये ये बातें तुझ को जता देता हूं, कि तेरा भरोसा यहोवा पर हो।”—नीतिवचन २२:१९.
१, २. (क) यहोवा के साक्षी यहोवा पर भरोसा क्यों रखते हैं? (नीतिवचन २२:१९) (ख) किन बातों से पता चलता है कि कुछ लोगों को अपना भरोसा और पक्का करने की ज़रूरत है?
सच्चे मसीहियों को यहोवा और उसके उद्देश्यों के बारे में सच्चा ज्ञान दिया गया है। एक “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” प्यार से “समय पर उन्हें [आध्यात्मिक] भोजन” देता है। (मत्ती २४:४५) जो ज्ञान वे इससे पाते हैं वह उन्हें परमेश्वर पर भरोसा रखने की मज़बूत बुनियाद देता है। इसलिए एक समूह के रूप में देखा जाए तो यहोवा के साक्षी, यहोवा और उसकी धार्मिकता पर पूरा-पूरा भरोसा रखते हैं।
२ लेकिन जब अलग-अलग साक्षियों की बात आती है तो ऐसा लगता है कि कुछ साक्षियों को अपना भरोसा और पक्का करने की ज़रूरत है। सोसाइटी के पास कई बार ऐसी चिट्ठियाँ आती हैं जिनमें प्रकाशनों में समझायी गई बातों पर शंकाएँ जताई जाती हैं। ये शक या शंकाएँ हाल की समझ में थोड़े फेर-बदल की वज़ह से हो सकती हैं या ऐसे नाज़ुक मसलों के बारे में हो सकती हैं जो खत भेजनेवाले को निजी तौर पर परेशान कर रहे हैं।—यूहन्ना ६:६०, ६१ से तुलना कीजिए।
३. यहोवा के वफादार सेवकों को भी किस सच्चाई का सामना करना पड़ सकता है, और क्यों?
३ यहोवा के सच्चे सेवकों को भी सभोपदेशक ९:११ की सच्चाई का सामना करना पड़ता है: “फिर मैं ने धरती पर देखा कि न तो दौड़ में वेग दौड़नेवाले और न युद्ध में शूरवीर जीतते; न बुद्धिमान लोग रोटी पाते न समझवाले धन, और न प्रवीणों पर अनुग्रह होता है; वे सब समय और संयोग के वश में है।” यह आध्यात्मिक रूप से कैसे सही हो सकता है? हम ऐसे मसीहियों को जानते होंगे जो बाइबल सलाह को बड़ी तेज़ी से लागू करते हैं, सच्चाई की रक्षा करने में शूरवीर हैं, बाइबल के उसूलों को लागू करने में बुद्धिमान हैं और सही ज्ञान पाने में दिन-रात लगे रहते हैं। लेकिन फिर भी कुछ लोग “समय और संयोग” की वज़ह से हुई किसी दुर्घटना या बुढ़ापे के कारण अब लाचार महसूस करते हैं। वे सोचते हैं कि वे परमेश्वर की नयी दुनिया में जीते-जी पहुँचेंगे भी या नहीं।
४, ५. किसी भी मसीही के पास यहोवा की धार्मिकता पर शक करने का कोई भी कारण क्यों नहीं है?
४ जब किसी मसीही की पत्नी या उसका पति मर जाता है तो उसका दर्द और साथी से बिछड़ने का गम बहुत भारी होता है। उन दोनों ने शायद कई सालों तक साथ-साथ मिलकर यहोवा की सेवा की हो। जीवित साथी जानता है कि मौत शादी के बंधन को तोड़ देती है।a (१ कुरिन्थियों ७:३९) अब अगर वह साथी नहीं चाहता कि उसका भरोसा कमज़ोर पड़ जाए, तो उसे अपने जज़बातों पर काबू पाना होगा।—मरकुस १६:८ से तुलना कीजिए।
५ अपने साथी, माँ-बाप, बच्चे या अज़ीज़ मसीही दोस्त की मौत को यहोवा की धार्मिकता पर भरोसा दिखाने का एक मौका समझना कितनी बुद्धिमानी की बात है! चाहे हमने किसी अपने को ही क्यों न खोया हो हम भरोसा रख सकते हैं कि यहोवा अधर्मी नहीं है। हम भरोसा रख सकते हैं कि अनंत जीवन पानेवाला हरेक इंसान खुश रहेगा, चाहे वह इस दुनिया के अंत से बचकर यह जीवन पाए चाहे पुनरुत्थान से। परमेश्वर के बारे में भजनहार कहता है: “तू अपनी मुट्ठी खोलता, और प्रत्येक प्राणी की इच्छा को सन्तुष्ट करता है। यहोवा अपने सब मार्गों में धर्मी और अपने सब कार्यों में दयालु है। जो उसे पुकारते हैं अर्थात् जो उसको सच्चाई से पुकारते हैं वह उन सबके निकट रहता है। जो उस से डरते हैं वह उनकी इच्छा पूरी करेगा; वह उनकी दुहाई भी सुनेगा और उन्हें बचा लेगा।”—भजन १४५:१६-१९, NHT.
बेवज़ह दुःख झेलने की भावनाएँ
६, ७. (क) क्यों कुछ ऐसे साक्षियों की समझ में बदलाव आया है जिन्होंने गुज़रे वक्तों में दुःख तकलीफें सही थीं? (ख) गुज़रे वक्तों में दुःख तकलीफ उठाने देने के कारण हमें यहोवा को अन्यायी क्यों नहीं समझना चाहिए?
६ गुज़रे वक्तों में, कुछ साक्षियों ने जिन कामों से इनकार करने की वज़ह से दुःख तकलीफें सही थीं, आज उनका विवेक उन्हीं कामों को करने की इज़ाज़त दे सकता है। मिसाल के तौर पर, हो सकता है कि कुछ साल पहले इन लोगों ने कुछ तरह की राष्ट्रीय सेवाएँ न करने का फैसला किया हो। लेकिन अब शायद एक भाई को लगे कि ऐसी सेवा करना इस दुनिया से समझौता करना नहीं है और वह साफ विवेक के साथ इस तरह की सेवा कर सकता है।
७ क्या यहोवा ने उसके साथ अन्याय किया है कि जिस काम को ठुकराने की वज़ह से उसे यहोवा ने दुःख तकलीफें उठाने दीं, उसी काम को करने के लिए अब वह दोषी नहीं ठहरता? ज़्यादातर लोग जिनका यह अनुभव रहा है ऐसा नहीं सोचते। इसके बजाय उन्हें खुशी है कि इस विश्वमंडल की सत्ता के मसले पर जो अटल रुख उन्होंने अपनाया है उसे सबके सामने साफ-साफ दिखाने का उन्हें मौका मिला है। (अय्यूब २७:५ से तुलना कीजिए।) यहोवा का पक्ष लेने के लिए अपने ज़मीर की बात मानने पर क्या किसी को पछताना पड़ेगा? मसीही सिद्धांतों का वफादारी से पालन करने या अपने ज़मीर की आवाज़ को सुनने के ज़रिए वे यहोवा की मित्रता के लायक साबित हुए हैं। बेशक ऐसे काम से दूर रहना बुद्धिमानी है, जिससे आपका विवेक परेशान हो या दूसरे लोग ठोकर खाएँ। इस मामले में प्रेरित पौलुस ने जो मिसाल रखी हम उस पर ध्यान दे सकते हैं।—१ कुरिन्थियों ८:१२, १३; १०:३१-३३.
८. वे यहूदी मसीही जो पहले व्यवस्था का पालन करते थे, उनके पास यहोवा की धार्मिकता पर सवाल उठाने का कोई कारण क्यों नहीं था?
८ यहोवा को प्रसन्न करने के लिए यहूदियों से दस आज्ञाओं के अलावा ६०० अलग-अलग तरह के नियम मानने की भी माँग की गई थी। बाद में, मसीही प्रबंध में इन नियमों को मानना यहोवा की सेवा के लिए ज़रूरी नहीं रहा, यहाँ तक कि जन्मजात यहूदियों के लिए भी नहीं। जिन नियमों को अब मानने की ज़रूरत नहीं थी वे थे खतना, सब्त का दिन मानना, पशु बलि चढ़ाना और कुछ किस्म का भोजन न खाना। (१ कुरिन्थियों ७:१९; १०:२५; कुलुस्सियों २:१६, १७; इब्रानियों १०:१, ११-१४) मसीही बननेवाले वे यहूदी जिनमें प्रेरित भी शामिल थे उन नियमों से आज़ाद हो गए थे जिनका पालन करने की व्यवस्था वाचा उनसे माँग करती थी। तब क्या वे शिकायत करने लगे कि परमेश्वर ने पहले ऐसी माँगें रखकर उनके साथ अन्याय किया जिनकी अब कोई ज़रूरत नहीं थी? जी नहीं, वे यहोवा के उद्देश्यों की ज़्यादा समझ पाकर आनंदित हुए।—प्रेरितों १६:४, ५.
९. कुछ साक्षियों के बारे में क्या सच रहा है, लेकिन इसकी वज़ह से उन्हें कोई अफसोस क्यों नहीं है?
९ पिछले समयों में, कुछ साक्षी क्या करना है क्या नहीं करना, इस मामले में बहुत सख्त रहे थे और एकदम पक्की राय रखते थे। इसी वज़ह से उन्होंने दूसरों के मुकाबले ज़्यादा दुःख झेले। बाद में, ज़्यादा ज्ञान ने कई मामलों में उनकी समझ को खोला। उन्हें अपने विवेक की बात मानने की वज़ह से अफसोस नहीं है, चाहे इसकी वज़ह से उन्हें ज़्यादा दुःख ही क्यों न झेलने पड़े। यह वाकई तारीफ की बात है कि उन्होंने यहोवा के लिए वफादार रहकर दुःख झेलने और “सब कुछ सुसमाचार के लिये” करने की इच्छा दिखाई। यहोवा इस तरह की भक्ति दिखानेवालों को आशीष देता है। (१ कुरिन्थियों ९:२३; इब्रानियों ६:१०) प्रेरित पतरस ने अंदरूनी समझ के साथ लिखा: “यदि भला काम करके दुख उठाते हो और धीरज धरते हो, तो यह परमेश्वर को भाता है।”—१ पतरस २:२०.
योना से सीखना
१०, ११. योना ने यहोवा पर भरोसे की कमी कैसे दिखायी (क) जब उसे नीनवे जाने का काम दिया गया? (ख) जब परमेश्वर ने नीनवे के लोगों को नाश नहीं किया?
१० जब योना को नीनवे जाने के लिए कहा गया तो उसने यहोवा के उस भरोसे की कदर नहीं की जो वह योना पर रखता था। कहना मानने में आनाकानी करने की वज़ह से खौफनाक सबक हासिल करने के बाद योना की अक्ल ठिकाने आई, उसने अपनी गलती मानी और दूसरे देश जाने के लिए राज़ी हो गया और नीनवे के लोगों को आनेवाले विनाश के बारे में चेतावनी दी। तब वही हुआ जिसकी उम्मीद नहीं थी: नीनवे के लोगों के मनफिराव की वज़ह से यहोवा ने उनका विनाश न करने का फैसला किया।—योना १:१-३:१०.
११ योना को क्या हुआ? चिड़चिड़ाहट से भरकर उसने परमेश्वर से शिकायत की। उसका दुखड़ा यह था: ‘मुझे पता था कि ऐसा ही होगा। इसीलिए मैं पहले ही नीनवे नहीं जाना चाहता था। अब जब मैंने इतना दुःख उठाया, इतना जोखिम सहा यहाँ तक कि एक बड़ी मछली ने मुझे निगल लिया और मेरी तौहीन हुई और जब मैंने इतनी मुसीबतें झेलकर नीनवे के लोगों को आनेवाले विनाश की चेतावनी दी, तो इसका यह नतीजा निकला! मेरी सारी मेहनत और तकलीफें बेकार गईं! मुझे मौत ही आ जाए तो अच्छा हो!”—योना ४:१-३.
१२. योना के अनुभव से हम क्या सीख सकते हैं?
१२ क्या योना की शिकायत जायज़ थी? पश्चाताप करनेवाले पापियों पर तरस खाकर क्या यहोवा ने कोई अन्याय किया था? योना को तो दरअसल खुश होना चाहिए था; हज़ारों लोगों की जानें बख्श दी गई थीं! (योना ४:११) लेकिन आदर की कमी और उसके कुड़कुड़ानेवाले रवैये ने दिखाया कि वह यहोवा की धार्मिकता पर पूरी तरह भरोसा नहीं दिखा रहा था। उसे अपनी ही चिंता पड़ी थी दूसरों की नहीं। आइए योना के अनुभव से सीखें कि हम खुद को और अपनी भावनाओं को दूसरों से ज़्यादा अहमियत न दें। हम यकीन रखें कि यहोवा का कहना मानना, उसके संगठन के निर्देशन का पालन करना और उसके फैसलों को मानना ही सही है। हमें यकीन है कि “जो परमेश्वर से डरते हैं . . . उनका भला ही होगा।”—सभोपदेशक ८:१२.
भरोसा पक्का करने का वक्त अभी है!
१३. हम सभी यहोवा पर अपने भरोसे को पक्का कैसे कर सकते हैं?
१३ यहोवा पर अपने भरोसे को पक्का करना बुद्धि का मार्ग है। (नीतिवचन ३:५-८) सिर्फ इतनी प्रार्थना करना काफी नहीं है कि यहोवा हमारा भरोसा बढ़ाए। भरोसा सही ज्ञान की बुनियाद पर बढ़ता है, इसलिए हमें निजी बाइबल अध्ययन करने, यानी बाइबल और बाइबल को समझानेवाले प्रकाशनों को हर रोज़ पढ़ने की आदत बनानी चाहिए। मसीही सभाओं में नियमित रूप से हाज़िर होना जितना ज़रूरी है उतना ही ज़रूरी अच्छी तैयारी करना और हिस्सा लेना है। दूसरों को बाइबल की सच्चाई सुनाने की आदत डालना और एतराज़ उठाए जाने पर कुशलता से जवाब देना भी यहोवा और उसके वचन पर हमारे भरोसे को और पक्का करता है। इस तरह हम हर रोज़ उसके साथ-साथ काम करते हैं।
१४. क्यों थोड़े ही समय बाद परमेश्वर के लोगों को यहोवा पर इतना ज़्यादा भरोसा दिखाने की ज़रूरत पड़ेगी जितनी ज़रूरत पहले कभी नहीं पड़ी?
१४ थोड़े ही दिनों में, मनुष्यजाति पर आनेवाला सबसे बड़ा क्लेश अचानक शुरू हो जाएगा। (मत्ती २४:२१) जब यह शुरू होगा, तब परमेश्वर के सेवकों को यहोवा की धार्मिकता और उसके संगठन द्वारा दी गई हिदायतों पर इतना ज़्यादा भरोसा दिखाने की ज़रूरत पड़ेगी जितनी ज़रूरत पहले कभी नहीं पड़ी। तब एक लाक्षणिक तरीके से वे परमेश्वर के इस हुक्म का पूरे भरोसे के साथ पालन करेंगे: “हे मेरे लोगों, आओ, अपनी अपनी कोठरी में प्रवेश करके किवाड़ों को बन्द करो; थोड़ी देर तक जब तक क्रोध शान्त न हो तब तक अपने को छिपा रखो।” (यशायाह २६:२०) पहले ही वे २३२ देशों की ८५,००० से भी ज़्यादा कलीसियाओं की सुरक्षित पनाह में आ चुके हैं। ‘अपनी अपनी कोठरी में प्रवेश करने’ के हुक्म में चाहे और कोई हुक्म भी शामिल हो, हमें यकीन है कि यहोवा इसका पालन करने में हमारी मदद करेगा।
१५. भरोसा रखने की बात पर १९९८ में कैसे ज़ोर दिया गया है और यह क्यों सही है?
१५ इसलिए निहायत ज़रूरी है कि हम अभी अपने भरोसे को पक्का करें। अपने मसीही भाइयों, यहोवा के संगठन और सबसे बढ़कर खुद यहोवा पर भरोसा रखे बिना बच पाना नामुमकिन हो जाएगा। यह कितनी सही बात है कि १९९८ के दौरान दुनिया भर के यहोवा के साक्षियों को उनके सालाना पाठ से यह याद दिलाया गया है कि “जो कोई प्रभु [यहोवा] का नाम लेगा, वह उद्धार पाएगा”! (रोमियों १०:१३) और हमारे लिए इस पर हमेशा यकीन रखना ज़रूरी है। अगर हम इस भरोसे में रत्ती भर भी कमी आते देखते हैं तो हमें आज, अभी, इसी वक्त इसे दूर करना होगा।
यहोवा धर्म से न्याय करेगा
१६. अगर भरोसे को पक्का न किया जाए तो इसे क्या हो सकता है, और हम इसे कैसे रोक सकते हैं?
१६ इब्रानियों ३:१४ में, अभिषिक्त मसीहियों को चेतावनी दी गई है: “हम मसीह के भागी हुए हैं, यदि हम अपने प्रथम भरोसे पर अन्त तक दृढ़ता से स्थिर रहें।” यही सिद्धांत उन मसीहियों पर भी लागू होता है जिनकी आशा पृथ्वी की है। अगर शुरूआत में हासिल किए गए भरोसे को पक्का न किया जाए तो यह कमज़ोर पड़ सकता है। इसलिए कितना ज़रूरी है कि हम लगातार सही ज्ञान लेते रहें और इस तरह अपने भरोसे की बुनियाद को और मज़बूत करते रहें!
१७. हम क्यों भरोसा रख सकते हैं कि यीशु सही न्याय करेगा कि कौन बचने के लायक है?
१७ सभी जातियों को थोड़े ही समय बाद मसीह जाँचेगा ताकि “जैसा चरवाहा भेड़ों को बकरियों से अलग कर देता है, वैसा ही वह [लोगों को] एक दूसरे से अलग” कर सके। (मत्ती २५:३१-३३) हम पूरा भरोसा रख सकते हैं कि मसीह धर्म से न्याय करेगा कि कौन-कौन बचने के लायक है। यहोवा ने उसे बुद्धि, अंदरूनी समझ और दूसरे ज़रूरी गुण दिए हैं ताकि वह “धर्म से जगत का न्याय” करे। (प्रेरितों १७:३०, ३१) हमारा भरोसा इब्राहीम की तरह होना चाहिए जिसने कहा था: “इस प्रकार का काम करना तुझ [यहोवा] से दूर रहे कि दुष्ट के संग धर्मी को भी मार डाले और धर्मी और दुष्ट दोनों की एक ही दशा हो। यह तुझ से दूर रहे: क्या सारी पृथ्वी का न्यायी न्याय न करे[गा]?”—उत्पत्ति १८:२५.
१८. जो बातें हम अभी नहीं जानते उनके बारे में हमें हद-से-ज़्यादा चिंता क्यों नहीं करनी चाहिए?
१८ यहोवा की धार्मिकता पर पूरे भरोसे के साथ, हमें ऐसे सवालों के जवाब पाने की चिंता नहीं करना चाहिए जैसे: “छोटे-छोटे बच्चों का न्याय कैसे किया जाएगा? क्या ऐसा होगा कि अरमगिदोन आने से पहले बहुत सारे लोग सुसमाचार सुने बिना रह जाएँगे? जो लोग मानसिक रूप से बीमार हैं उनका क्या होगा? और जो . . . ?’ माना, अभी हम यह नहीं जानते कि यहोवा इन मामलों को कैसे निपटाएगा। लेकिन वह ये सारे काम धर्म और दया के साथ निपटाएगा। हमें कभी-भी ऐसी बातों पर शक नहीं करना चाहिए। दरअसल जिस तरह वह इन कामों को निपटाएगा शायद हमने उसके बारे में कभी सपने में भी न सोचा हो, और हम इसे देखकर ताज्जुब करेंगे और आनंदित होंगे।—अय्यूब ४२:३; भजन ७८:११-१६; १३६:४-९; मत्ती १५:३१; लूका २:४७ से तुलना कीजिए।
१९, २०. (क) ढंग के सवाल पूछना गलत क्यों नहीं है? (ख) यहोवा ज़रूरी सवालों का जवाब कब देगा?
१९ यहोवा का संगठन ऐसे सवालों का बुरा नहीं मानता जो साफ मन से और वक्त के हिसाब से पूछे जाते हैं। विरोधी लोगों को यही गलतफहमी है कि ऐसे सवालों का बुरा माना जाता है। (१ पतरस १:१०-१२) लेकिन बाइबल हमें सलाह देती है कि मूर्खतापूर्ण और अटकलोंवाले सवालों से दूर रहें। (तीतुस ३:९) ढंग के सवाल पूछना और परमेश्वर के वचन और मसीही प्रकाशनों से बाइबल पर आधारित जवाबों को खोजना हमारे ज्ञान को बढ़ा सकता है और यहोवा पर हमारे भरोसे को और भी पक्का कर सकता है। संगठन यीशु के उदाहरण पर चलता है। उसने ऐसे सवालों का जवाब नहीं दिया जिनके लिए सही वक्त नहीं आया था। उसने बताया: “मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते।” (यूहन्ना १६:१२) उसने यह भी माना कि कुछ ऐसी भी बातें थीं जिन्हें वह खुद उस वक्त तक नहीं जानता था।—मत्ती २४:३६.
२० यहोवा के पास अभी-भी बहुत कुछ बताने के लिए है। उसकी बाट जोहना कितनी बुद्धिमानी की बात है और हमें भरोसा रखना चाहिए कि वह सही वक्त पर अपने उद्देश्यों को प्रकट करेगा। हम भरोसा रख सकते हैं कि जब यहोवा का ठहराया हुआ समय आएगा, तब हमें उसके मार्गों की और ज़्यादा अंदरूनी समझ पाकर खुशी मिलेगी। जी हाँ हमें इनाम मिलेगा, लेकिन शर्त यह है कि हम यहोवा पर और जिस संगठन का वह इस्तेमाल कर रहा है, उस पर पूरा-पूरा भरोसा रखें। नीतिवचन १४:२६ हमें यकीन दिलाता है: “यहोवा के भय मानने से दृढ़ भरोसा होता है, और उसके पुत्रों को शरणस्थान मिलता है।”
[फुटनोट]
a प्रहरीदुर्ग (अंग्रेज़ी) के अक्तूबर १५, १९६७, पृष्ठ ६३८ और जून १, १९८७, पृष्ठ ३० देखिए।
आप क्या सोचते हैं?
◻ जज़बातों की वज़ह से यहोवा पर भरोसे को कमज़ोर पड़ने देना मूर्खता क्यों है?
◻ योना के अनुभव से हम क्या सीख सकते हैं?
◻ बाइबल का अध्ययन और सभाओं में हाज़िर होना इतना ज़रूरी क्यों है?
[पेज 16 पर तसवीर]
चाहे हमने किसी अपने को ही क्यों न खोया हो हम भरोसा रख सकते हैं कि यहोवा अधर्मी नहीं है
[पेज 18 पर तसवीर]
क्या आपको यकीन है कि आपका भरोसा यहोवा पर है?