हम कैसे सब्र दिखाते हुए ‘इंतज़ार कर’ सकते हैं?
“मैं अपने उद्धारकर्त्ता परमेश्वर की बाट जोहता रहूंगा [“इंतज़ार करूँगा,” उर्दू—ओ.वी.]।”—मीका 7:7.
1. हम किस वजह से बेसब्र हो सकते हैं?
सन् 1914 में जब मसीह का राज शुरू हुआ, तब शैतान की व्यवस्था के आखिरी दिन शुरू हो गए। उस साल स्वर्ग में एक युद्ध छिड़ा, जिसका नतीजा यह हुआ कि यीशु ने इब्लीस और दुष्ट स्वर्गदूतों को नीचे धरती पर फेंक दिया। (प्रकाशितवाक्य 12:7-9 पढ़िए।) शैतान जानता है कि उसका “बहुत कम वक्त” बाकी रह गया है। (प्रका. 12:12) लेकिन, आज उस “बहुत कम वक्त” को करीब 100 साल हो चुके हैं, और कुछ लोगों को लग सकता है कि आखिरी दिन कितने लंबे समय से चल रहे हैं। जब तक यहोवा शैतान की व्यवस्था का अंत नहीं कर देता, तब तक इंतज़ार करते-करते क्या हम बेसब्र होने लगे हैं?
2. इस लेख में किन सवालों पर चर्चा की जाएगी?
2 बेसब्र होना हमारे लिए खतरनाक साबित हो सकता है, क्योंकि ऐसे में हम शायद बिना सोचे-समझे कोई कदम उठा सकते हैं। सब्र दिखाते हुए इंतज़ार करते रहने में क्या बात हमारी मदद कर सकती है? इस लेख में हम आगे दिए तीन सवालों पर चर्चा करेंगे, जो ऐसा करने में हमें मदद दे सकते हैं: (1) भविष्यवक्ता मीका की मिसाल से हम सब्र रखने के बारे में क्या सीख सकते हैं? (2) कौन-सी घटनाएँ इस बात की तरफ इशारा करेंगी कि हमारे इंतज़ार की घड़ी खत्म हो चुकी है? (3) यहोवा सब्र दिखा रहा है, इस बात के लिए हम अपनी एहसानमंदी कैसे दिखा सकते हैं?
हम मीका की मिसाल से क्या सीख सकते हैं?
3. मीका के दिनों में इसराएलियों की हालत कैसी थी?
3 मीका 7:2-6 पढ़िए। यहोवा के नबी मीका ने देखा कि यहोवा की तरफ इसराएलियों की वफादारी दिन-ब-दिन कम होती जा रही है। और दुष्ट राजा आहाज़ के शासन में तो इसराएली हद-से-ज़्यादा गद्दार हो गए थे। मीका ने विश्वासघाती इसराएलियों की तुलना “कटीली झाड़ी” और “कांटेवाले बाड़े” से की। ठीक जैसे कटीली झाड़ी उससे होकर निकलनेवालों को चोट पहुँचाती है, उसी तरह इन भ्रष्ट इसराएलियों ने अपने बुरे व्यवहार से उन सभी लोगों को चोट पहुँचायी जिनका उनके साथ वास्ता पड़ा। वे इस कदर भ्रष्ट हो गए थे कि परिवार में भी एक-दूसरे के लिए प्यार नहीं रह गया था। मीका जानता था कि इन हालात को बदलने के लिए वह खुद कुछ नहीं कर सकता, इसलिए उसने दिल खोलकर यहोवा से प्रार्थना की। फिर उसने तब तक सब्र रखा जब तक कि परमेश्वर कोई कदम नहीं उठाता। मीका को पूरा यकीन था कि यहोवा अपने समय पर सब कुछ ठीक कर देगा।
4. हम किन चुनौतियों का सामना करते हैं?
4 मीका की तरह, हमें भी आज खुदगर्ज़ लोगों के बीच रहना पड़ता है। ज़्यादातर लोग “एहसान न माननेवाले, विश्वासघाती, मोह-ममता न रखनेवाले” हैं। (2 तीमु. 3:2, 3) जब हम देखते हैं कि साथ काम करनेवाले, साथ पढ़नेवाले और हमारे पड़ोसी कितने स्वार्थी हो गए हैं, तो हमारा जीना और भी मुश्किल हो जाता है। लेकिन परमेश्वर के कुछ सेवकों को इससे भी बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। यीशु ने कहा था कि उसके चेले अपने परिवार से ही विरोध का सामना करेंगे। उसने मीका 7:6 में दर्ज़ शब्दों से मिलते-जुलते शब्दों का इस्तेमाल करते हुए कहा, “मैं बेटे को बाप के, बेटी को माँ के और बहू को उसकी सास के खिलाफ करने आया हूँ। वाकई, एक आदमी के दुश्मन उसके अपने ही घराने के लोग होंगे।” (मत्ती 10:35, 36) जब परिवार के सदस्य, जो सच्चाई में नहीं हैं, हमारा मज़ाक उड़ाते हैं और विरोध करते हैं, तो यह सहना बहुत मुश्किल होता है। अगर हम ऐसे हालात का सामना कर रहे हैं, तो हमें उनके दबाव में नहीं आना चाहिए। इसके बजाए, हमें यहोवा के वफादार रहना चाहिए और उस वक्त तक सब्र रखना चाहिए, जब तक कि यहोवा सही समय पर मामलों को सुलझा नहीं देता। अगर हम लगातार उसकी मदद के लिए प्रार्थना करते रहेंगे, तो वह हमें ताकत और बुद्धि देगा, ताकि हम उसके वफादार बने रह सकें।
5, 6. सब्र दिखाने के लिए यहोवा ने मीका को क्या आशीषें दीं? मगर मीका ने क्या होते नहीं देखा?
5 सब्र दिखाने के लिए यहोवा ने मीका को आशीष दी। कैसे? मीका ने राजा आहाज़ और उसके बुरे शासन का अंत होते देखा। उसने आहाज़ के बेटे, हिज़किय्याह को राजा बनते और शुद्ध उपासना को बहाल करते भी देखा। इसके अलावा, मीका ने सामरिया के खिलाफ जो न्यायदंड सुनाया था, उसे भी उसने पूरा होते देखा, जब अश्शूरियों ने इसराएल के उत्तरी राज्य पर हमला किया।—मीका 1:6.
6 मगर मीका ने यहोवा की प्रेरणा से जितनी भविष्यवाणियाँ की थीं, उनमें से हरेक भविष्यवाणी उसने पूरी होते नहीं देखीं। मिसाल के लिए, मीका ने लिखा: “अन्त के दिनों में . . . यहोवा के भवन का पर्वत सब पहाड़ों पर दृढ़ किया जाएगा, और सब पहाड़ियों से अधिक ऊंचा किया जाएगा; और हर जाति के लोग धारा की नाईं उसकी ओर चलेंगे। और बहुत जातियों के लोग जाएंगे, और आपस में कहेंगे, आओ, हम यहोवा के पर्वत पर [चढ़ें]।” (मीका 4:1, 2) इस भविष्यवाणी के पूरे होने से कई साल पहले मीका की मौत हो गयी थी। फिर भी अपने जीते-जी उसने ठान लिया था कि वह अपनी मौत तक यहोवा का वफादार बना रहेगा, फिर चाहे उसके ज़माने के लोग कुछ भी क्यों न करें। इस बारे में उसने लिखा: “सब राज्यों के लोग तो अपने अपने देवता का नाम लेकर चलते हैं, परन्तु हम लोग अपने परमेश्वर यहोवा का नाम लेकर सदा सर्वदा चलते रहेंगे।” (मीका 4:5) मुश्किल हालात में भी मीका ने सब्र दिखाया। आखिर किस बात ने उसे ऐसा करने में मदद दी? उसे पूरा यकीन था कि यहोवा ने जो भी वादे किए हैं, उन सभी को वह ज़रूर पूरा करेगा। इस वफादार भविष्यवक्ता ने यहोवा पर भरोसा रखा।
7, 8. (क) हमारे पास यहोवा पर भरोसा रखने की क्या वजह है? (ख) क्या करने से समय जल्दी बीतेगा?
7 क्या हम भी मीका की तरह यहोवा पर भरोसा रखते हैं? ऐसा करने की हमारे पास वजह है। हमने खुद अपनी आँखों से मीका की भविष्यवाणी को पूरा होते देखा है। इन “अन्त के दिनों” में हर राष्ट्र, जाति और भाषा के लाखों लोग ‘यहोवा के भवन के पर्वत’ पर आएँ हैं। हालाँकि वे ऐसे देशों से हैं, जो एक-दूसरे के खून के प्यासे हैं, मगर इन उपासकों ने “अपनी तलवारें पीटकर हल के फाल” बनाए हैं और उन्होंने ‘युद्ध-विद्या सीखने’ से इनकार कर दिया है। (मीका 4:3, 4) शांति बनाए रखनेवाले यहोवा के लोगों में से एक होना हमारे लिए कितने बड़े सम्मान की बात है!
8 इसमें कोई दो राय नहीं कि हम सभी चाहते हैं कि यहोवा इस दुष्ट व्यवस्था का जल्द ही अंत कर दे। लेकिन उस वक्त का सब्र दिखाते हुए इंतज़ार करने के लिए ज़रूरी है कि हम मामलों को यहोवा की नज़र से देखें। उसने एक दिन तय किया है जब वह मानवजाति का न्याय करेगा। यह न्याय वह “एक ऐसे आदमी के ज़रिए करनेवाला है जिसे उसने ठहराया है,” यानी यीशु मसीह के ज़रिए। (प्रेषि. 17:31) पर उस वक्त के आने तक, परमेश्वर सब किस्म के लोगों को यह मौका दे रहा है कि वे “सच्चाई का सही ज्ञान” हासिल करें, उसके मुताबिक कदम उठाएँ और अपनी जान बचाएँ। हमें याद रखना चाहिए कि लोगों की जान दाँव पर लगी है। (1 तीमुथियुस 2:3, 4 पढ़िए।) अंत बहुत तेज़ी से नज़दीक आ रहा है। अगर दूसरों को परमेश्वर के बारे में सही ज्ञान देने में हम खुद को व्यस्त रखेंगे, तो यहोवा के न्याय का दिन आने से पहले जो समय बाकी रह गया है, वह और जल्दी बीतेगा। और जब वह दिन आएगा, तो हमें इस बात की कितनी खुशी होगी कि हमने राज के प्रचार काम में खुद को व्यस्त रखा!
कौन-सी घटनाएँ दिखाएँगी कि हमारे इंतज़ार की घड़ी खत्म हो चुकी है?
9-11. क्या 1 थिस्सलुनीकियों 5:3 में दर्ज़ भविष्यवाणी पूरी हो चुकी है? समझाइए।
9 पहला थिस्सलुनीकियों 5:1-3 पढ़िए। जल्द ही भविष्य में यह घोषणा की जाएगी: “शांति और सुरक्षा है!” अगर हम इस घोषणा से धोखा नहीं खाना चाहते, तो ज़रूरी है कि हम “जागते रहें और होश-हवास बनाए रखें।” (1 थिस्स. 5:6) कई घटनाओं ने इस खास घोषणा के होने की बुनियाद डालनी शुरू कर दी है। आइए हम इन घटनाओं पर एक सरसरी नज़र डालें, ताकि हमें आध्यात्मिक तौर पर जागते रहने में मदद मिल सके।
10 हर विश्वयुद्ध के बाद, राष्ट्रों ने शांति के नारे लगाए। पहले विश्वयुद्ध (1914-1918) के बाद, राष्ट्र संघ इस उम्मीद के साथ शुरू किया गया था कि यह पूरी दुनिया में शांति लाएगा। फिर दूसरे विश्वयुद्ध (1939-1945) के बाद दुनिया-भर में शांति लाने के लिए एक और संगठन की शुरूआत की गयी, और वह था संयुक्त राष्ट्र। सरकार और धार्मिक अगुवों ने इन संगठनों पर भरोसा किया है कि ये मानवजाति के बीच शांति कायम करेंगे। मिसाल के लिए, संयुक्त राष्ट्र ने साल 1986 को ‘अंतर्राष्ट्रीय शांति वर्ष’ घोषित किया। उस साल, कई राष्ट्रों और धर्मों के नेताओं ने शांति की कामना करने के लिए इटली के अस्सीज़ी शहर में कैथोलिक चर्च के मुखिया से भेंट की।
11 लेकिन न तो उस साल की गयी घोषणा ने, और न ही किसी और घोषणा ने “शांति और सुरक्षा” के बारे में 1 थिस्सलुनीकियों 5:3 में दर्ज़ भविष्यवाणी को पूरा किया। ऐसा हम क्यों कह सकते हैं? क्योंकि भविष्यवाणी के मुताबिक “अचानक उन पर विनाश” नहीं आया।
12. हम “शांति और सुरक्षा” की घोषणा के बारे में क्या जानते हैं?
12 भविष्य में “शांति और सुरक्षा” की खास घोषणा कौन करेगा? ईसाईजगत और दूसरे धर्मों के अगुवे इसमें क्या भूमिका निभाएँगे? इस घोषणा में अलग-अलग सरकारों के नेता किस तरह हिस्सा लेंगे? बाइबल हमें इस बारे में नहीं बताती। लेकिन हम इतना ज़रूर जानते हैं कि यह घोषणा चाहे कैसे भी की जाए, या यह कितनी ही सच क्यों न लगे, यह महज़ एक ढकोसला ही होगी। क्योंकि जब यह घोषणा की जाएगी, तब इस दुनिया की व्यवस्था पर शैतान का ही राज चल रहा होगा। यह व्यवस्था अंदर से पूरी तरह सड़ चुकी है और जब तक शैतान का राज खत्म नहीं हो जाता, यह ऐसी ही रहेगी। यह कितने दुख की बात होगी अगर हममें से कोई भी शैतान की झूठी बातों में आ जाए और निष्पक्ष बने रहने से चूक जाए!
13. स्वर्गदूत क्यों विनाश की हवाओं को थामे हुए हैं?
13 प्रकाशितवाक्य 7:1-4 पढ़िए। जहाँ एक तरफ हम 1 थिस्सलुनीकियों 5:3 में कही भविष्यवाणी के पूरा होने का इंतज़ार कर रहे हैं, वहीं स्वर्ग में शक्तिशाली स्वर्गदूत महासंकट की विनाशकारी हवाओं को थामे हुए हैं। वे किस घटना का इंतज़ार कर रहे हैं? एक खास घटना के होने का, जिसका ज़िक्र प्रेषित यूहन्ना ने किया, वह है “परमेश्वर के [अभिषिक्त] दासों” पर आखिरी मुहर का लगना।a इस खास घटना के पूरा होते ही, स्वर्गदूत विनाश की हवाओं को छोड़ देंगे। फिर क्या होगा?
14. क्या बात दिखाती है कि महानगरी बैबिलोन का अंत करीब है?
14 महानगरी बैबिलोन, यानी दुनिया-भर में साम्राज्य की तरह फैला झूठा धर्म, जल्द ही नाश हो जाएगी, जो इसी लायक है। “लोग और भीड़ और राष्ट्र और भाषाएँ” उसकी कोई मदद नहीं कर पाएँगी। हम अभी से इस बात के सबूत देख सकते हैं कि महानगरी बैबिलोन का अंत करीब है। (प्रका. 16:12; 17:15-18; 18:7, 8, 21) दरअसल, अभी से खबरों में यह साफ दिखाया जा रहा है कि लोग उसकी कोई मदद नहीं कर रहे हैं। वे खुलेआम धर्मों और धर्मगुरुओं की निंदा कर रहे हैं। इसके बावजूद, महानगरी बैबिलोन के गुरुओं को ऐसा नहीं लगता कि उनका भविष्य खतरे में है। लेकिन वे कितना गलत सोचते हैं! “शांति और सुरक्षा” की घोषणा के बाद, शैतान की व्यवस्था का राजनैतिक हिस्सा अचानक झूठे धर्म पर हमला करेगा और उसका नामो-निशान मिटा देगा। जी हाँ, महानगरी बैबिलोन हमेशा-हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी! बेशक, इस रोमांचक घटना को होते देखना सब्र दिखाते हुए इंतज़ार करने लायक है!—प्रका. 18:8, 10.
हम परमेश्वर के सब्र के लिए एहसानमंदी कैसे दिखा सकते हैं?
15. यहोवा ने अब तक सब्र क्यों दिखाया है?
15 लोग यहोवा के नाम को बदनाम करते आ रहे हैं, फिर भी वह सही समय पर कदम उठाने तक सब्र दिखा रहा है। यहोवा नहीं चाहता कि कोई भी नेक इंसान नाश हो। (2 पत. 3:9, 10) क्या हम भी ऐसा ही चाहते हैं? यहोवा का दिन आने से पहले, हम उसके सब्र के लिए अपनी एहसानमंदी आगे बताए कुछ तरीकों से दिखा सकते हैं।
16, 17. (क) जो लोग सच्चाई में ठंडे पड़ चुके हैं, हमें उनकी मदद क्यों करनी चाहिए? (ख) यह क्यों ज़रूरी है कि सच्चाई में ठंडे पड़ चुके लोग जल्द-से-जल्द यहोवा के पास लौट आएँ?
16 जो सच्चाई में ठंडे पड़ चुके हैं, उनकी मदद कीजिए। यीशु ने कहा था कि जब खोई हुई एक भेड़ भी मिल जाती है, तो स्वर्ग में खुशियाँ मनायी जाती हैं। (मत्ती 18:14; लूका 15:3-7) बेशक यहोवा उन सभी की गहरी परवाह करता है, जिन्होंने उसके नाम के लिए प्यार दिखाया है, फिर भले ही आज वे उसकी सेवा न कर रहे हों। जब हम ऐसे लोगों को मंडली में लौट आने में मदद देते हैं, तो यहोवा और स्वर्गदूत खुश होते हैं।
17 क्या आप भी उन लोगों में से एक हैं, जो आज परमेश्वर की सेवा नहीं कर रहे हैं? हो सकता है मंडली में किसी ने आपको ठेस पहुँचायी हो और इस वजह से आपने यहोवा के संगठन के साथ संगति करना बंद कर दिया हो। हो सकता है इस बात को कुछ समय बीत चुका हो, इसलिए खुद से पूछिए: ‘क्या अब मेरी ज़िंदगी पहले से बेहतर है, और क्या मैं आज ज़्यादा खुश हूँ? क्या यहोवा ने मुझे ठेस पहुँचायी है या किसी असिद्ध इंसान ने? क्या यहोवा परमेश्वर ने कभी भी मुझे कोई नुकसान पहुँचाया है?’ नहीं, उसने तो हमेशा हमारा भला ही किया है। चाहे हम आज अपने समर्पण के मुताबिक न भी जी रहे हों, फिर भी वह हमें उन चीज़ों का लुत्फ उठाने दे रहा है, जो उसने दी हैं। (याकू. 1:16, 17) लेकिन बहुत जल्द यहोवा का दिन आ जाएगा। इसलिए यही वक्त है कि हम अपने प्यारे पिता यहोवा के पास और मंडली में लौट आएँ। इन आखिरी दिनों में पनाह लेने की इससे सुरक्षित जगह और कोई नहीं!—व्यव. 33:27; इब्रा. 10:24, 25.
18. हमें क्यों अगुवाई लेनेवालों को सहयोग देना चाहिए?
18 जो अगुवाई लेते हैं, उन्हें वफादारी से सहयोग दीजिए। एक प्यार करनेवाला चरवाहा होने के नाते यहोवा हमारा मार्गदर्शन और हमारी हिफाज़त करता है। उसने अपने बेटे को झुंड का प्रधान चरवाहा ठहराया है। (1 पत. 5:4) एक लाख से भी ज़्यादा मंडलियों में प्राचीन, परमेश्वर की हर भेड़ की निजी तौर पर चरवाहों की तरह देखभाल कर रहे हैं। (प्रेषि. 20:28) जब हम अगुवाई लेनेवाले भाइयों को वफादारी से सहयोग देते हैं, तो हम यहोवा और यीशु का उन सब बातों के लिए शुक्रिया अदा कर रहे होते हैं, जो उन्होंने हमारी खातिर की हैं।
19. हम एक-दूसरे के और करीब कैसे आ सकते हैं?
19 एक-दूसरे के करीब आइए। इसका क्या मतलब है? जब दुश्मन किसी सेना पर हमला करता है, तो उस सेना के सभी सैनिक एक-दूसरे के और नज़दीक आ जाते हैं। इस तरह वे एक ऐसा दल बना लेते हैं, जिसे दुश्मन सेना का कोई हथियार भेद नहीं सकता। आज हमारा दुश्मन शैतान पहले से कहीं ज़्यादा परमेश्वर के लोगों पर हमला कर रहा है। यह वक्त अपने ही दल के सैनिकों, यानी अपने भाई-बहनों से लड़ने का नहीं, बल्कि एक-दूसरे के और करीब आने का, एक-दूसरे की असिद्धताओं को नज़रअंदाज़ करने का और यहोवा पर पूरा भरोसा रखने का है।
20. हमें आज क्या करना चाहिए?
20 आइए हम सभी आध्यात्मिक तौर से सतर्क रहें और सब्र दिखाते हुए इंतज़ार करें। आइए हम उस समय का इंतज़ार करें जब “शांति और सुरक्षा” की घोषणा की जाएगी और चुने हुओं पर आखिरी मुहर लगा दी जाएगी। उसके बाद, वे चार स्वर्गदूत विनाश की हवाओं को छोड़ देंगे, जिन्हें वे थामे हुए हैं और महानगरी बैबिलोन का नाश कर दिया जाएगा। जब तक हम इन शानदार घटनाओं के पूरा होने का इंतज़ार कर रहे हैं, आइए हम उन भाइयों की हिदायतें मानें जिन्हें यहोवा के संगठन में अगुवाई लेने के लिए नियुक्त किया गया है। एक दल बनाकर इब्लीस और दुष्ट स्वर्गदूतों का सामना कीजिए! यही वक्त है कि हम भजनहार की इस सलाह पर अमल करें: “हे यहोवा पर आशा रखनेवालो [‘की प्रतीक्षा करनेवालो,’ हिंदी ईज़ी-टू-रीड वर्शन] हियाव बान्धो और तुम्हारे हृदय दृढ़ रहें!”—भज. 31:24.
a अभिषिक्त जनों पर पहली मुहर लगने में और आखिरी मुहर लगने में क्या फर्क है, इस बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए 15 अगस्त, 1997 की प्रहरीदुर्ग के पेज 14 पर दिया पैराग्राफ 12 देखिए।