“परमेश्वर की शान्ति” को आपके हृदय को सुरक्षित रखने दें
“यहोवा अपना मुख तेरी ओर करे, और तुझे शान्ति दे।”—गिनती ६:२६.
१. अपनी मौत से कुछ समय पहले, पौलुस ने तीमुथियुस को क्या लिखा, जिस से क्या प्रकट हुआ?
सामान्य युग के वर्ष ६५ में, प्रेरित पौलुस रोम में एक क़ैदी था। हालाँकि वह किसी रोमी जल्लाद के हाथों जल्द ही हिंसक रूप से मरनेवाला था, पौलुस का मन शान्त था। यह उसके उन शब्दों से प्रकट है जो उस ने अपने जवान दोस्त, तीमुथियुस को लिखे, जब उसने कहा: “मैं अच्छी कुश्ती लड़ चुका हूँ, मैं ने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैं ने विश्वास की रखवाली की है। भविष्य में मेरे लिए धर्म का वह मुकुट रखा हुआ है, जिसे प्रभु जो धर्मी, और न्यायी है, मुझे उस दिन देगा।”—२ तीमुथियुस ४:७, ८.
२. अपनी घटनापूर्ण ज़िन्दगी में, उसकी मौत तक, किस बात ने पौलुस के हृदय को सुरक्षित रखा था?
२ मौत के सम्मुख पौलुस इतना शान्त किस तरह रह सका? इसलिए कि “परमेश्वर की शान्ति, जो समझ से बिलकुल परे है,” उसके हृदय को सुरक्षित रख रही थी। (फिलिप्पियों ४:७) इसी शान्ति ने उसके कुछ साल पहले मसीहियत में हुए धर्म-परिवर्तन से लेकर, उन सारे सनसनीखेज़ सालों के दौरान उसे सुरक्षित रखा था। उत्तेजित भीड़ के हमलों, क़ैदों, कोड़ों और पत्थरवाह सहते समय इस ने उसका समर्थन किया था। जब वह धर्मत्याग और यहूदी मत की ओर बहकानेवाले प्रभावों के ख़िलाफ़ संघर्ष करता रहा, इस ने उसका बल बढ़ा दिया था। और इस ने उसे अदृश्य दुष्टात्मिक सेनाओं से लड़ने की मदद की थी। प्रत्यक्ष रूप से, इस शान्ति ने आख़िर तक उसका बल बढ़ा दिया था।—२ कुरिन्थियों १०:४, ५; ११:२१-२७; इफिसियों ६:११, १२.
३. परमेश्वर की शान्ति के बारे में कौनसे सवाल किए गए हैं?
३ पौलुस ने इस शान्ति को कैसी ताक़तवर शक्ति पायी! क्या हम आज सीख सकते हैं कि यह क्या है? इन मुश्किल, “कठिन समय में,” ‘जिनसे निपटना दुष्कर है,’ जैसे-जैसे हम “विश्वास की अच्छी कुश्ती” लड़ते हैं, क्या यह हमें अपने हृदय को सुरक्षित रखने और शक्तिशाली बनने की मदद करेगी?—१ तीमुथियुस ६:१२; २ तीमुथियुस ३:१.
परमेश्वर के साथ शान्ति—यह किस तरह खो दी गयी
४. बाइबल में “शान्ति” शब्द के कुछ मतलब क्या हैं?
४ बाइबल में “शान्ति” शब्द के कई मतलब हैं। नीचे कुछ मतलब दिए गए हैं, जो द न्यू इंटरनॅशनल् डिक्शनरी ऑफ न्यू टेस्टामेन्ट थिऑलोजी में सूचिबद्ध हैं: “सम्पूर्ण पु[राने] नि[यम] में, [शा·लोमʹ] (शान्ति) इस शब्द के सबसे विस्तृत मतलब से, विधर्मियों का उल्लेख करने में भी, कल्याण (न्या. १९:२०); समृद्धि (भज. ७३:३), शारीरिक स्वास्थ्य (यश. ५७:१८[, १९]; भज. ३८:३); संतोष . . . (उत्प. १५:१५ वगैरह); जातियों और आदमियों के बीच अच्छे सम्बन्ध ( . . . न्या. ४:१७; १ इति. १२:१७, १८); उद्धार ( . . . यिर्म. २९:११; यिर्म. १४:१३ से तुलना करें) सूचित होता है।” सबसे ज़्यादा महत्त्वपूर्ण तो यहोवा के साथ शान्तिमय सम्बन्ध है, जिसके बिना बाक़ी किसी भी तरह की शान्ति, ज़्यादा से ज़्यादा, सिर्फ़ अस्थायी और सीमित है।—२ कुरिन्थियों १३:११.
५. परमेश्वर की सृष्टि की शान्ति प्रारंभ में किस तरह भंग हुई?
५ पहले, सारी सृष्टि यहोवा के साथ पूरी शान्ति की अवस्था में थी। इसलिए यहोवा ने सकारण घोषित किया कि उसके सारे सृजनात्मक कृत्य बहुत ही अच्छे थे। वास्तव में, स्वर्ग के दूतों ने इन्हें देखकर जयजयकार किया। (उत्प. १:३१; अय्यूब ३८:४-७) दुःख की बात यह है कि विश्व शान्ति टिकी न रही। यह तब भंग हुई जब उस आत्मिक प्राणी ने, जो अब शैतान के तौर से जाना जाता है, परमेश्वर के बुद्धिमान प्राणियों में से सबसे नयी प्राणी, हव्वा, को परमेश्वर के आज्ञापालन के मार्ग से बहका दिया। हव्वा के पति, आदम, ने उसका अनुकरण किया, और चूँकि तीन बाग़ी आज़ाद घूम रहे थे, विश्व में फूट पड़ गयी।—उत्पत्ति ३:१-६.
६. परमेश्वर के साथ शान्ति के खो जाने के परिणामस्वरूप क्या हुआ?
६ परमेश्वर के साथ शान्ति का खो जाना आदम और हव्वा के लिए अनर्थकारी था, जो कि अब धीरे-धीरे शारीरिक रूप से बिगड़ने लगे और आख़िर में उनकी मौत हुई। परादीस में शान्ति का आनन्द लेने के बजाय, आदम को संघर्ष करके अदन के बाहर की नातैयार ज़मीन से अपने बढ़ते हुए परिवार का मुँह भरना पड़ा। एक पूर्ण मानवीय जाति को संतुष्ट रूप से जन्म देने के बजाय, हव्वा ने दर्द और दुःख की अवस्था में अपूर्ण बच्चे पैदा किए। परमेश्वर के साथ शान्ति के खो जाने से मनुष्यों के बीच ईर्ष्या और हिंसा उत्पन्न हुई। कैन ने अपने भाई हाबिल को जान से मार डाला, और जलप्रलय के समय तक, पूरी पृथ्वी हिंसा से भर गयी। (उत्पत्ति ३:७-४:१६; ५:५; ६:११, १२) जब हमारे पहले माँ-बाप मर गए, वे निश्चय ही अपने क़ब्रों में संतुष्ट होकर “शान्ति में” सो नहीं गए, जैसे कि इब्राहीम सैंकड़ों साल बाद कर सका था।—उत्पत्ति १५:१५.
७. (अ) परमेश्वर ने कौनसी भविष्यद्वाणी दी जिस से सम्पूर्ण शान्ति के पुनरुद्धार की ओर संकेत हुआ? (ब) परमेश्वर का दुश्मन शैतान कितना प्रभावशाली बन गया?
७ आदम और हव्वा की शान्ति खो जाने के बाद, हम बाइबल में बैर का पहला ज़िक्र पाते हैं। परमेश्वर शैतान से बोले और कहा: “मैं तेरे और स्त्री के बीच में, और तेरे वंश और उसके वंश के बीच में बैर उत्पन्न करूँगा, वह तेरे सिर को कुचल डालेगा, और तू उसकी एड़ी को डसेगा।” (उत्पत्ति ३:१५, न्यू.व.) जैसे वक़्त गुज़रता गया, शैतान का प्रभाव इस हद तक बढ़ा कि प्रेरित यूहन्ना कह सका: “सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है।” (१ यूहन्ना ५:१९) एक ऐसी दुनिया जो शैतान के वश में है, निश्चय ही परमेश्वर के साथ शान्ति की अवस्था में नहीं है। तो फिर, उचित रूप से, शिष्य याकूब ने मसीहियों को चेतावनी दी: “क्या तुम नहीं जानतीं, कि संसार से मित्रता करनी परमेश्वर से बैर करना है?”—याकूब ४:४.
एक शत्रुतापूर्ण दुनिया में शान्ति से
८, ९. आदम के पाप करने के बाद, मनुष्य परमेश्वर के साथ किस तरह शान्ति से हो सकते थे?
८ वहाँ अदन में, जब परमेश्वर ने पहली बार “बैर” शब्द का ज़िक्र किया, तब उन्होंने यह भी पूर्वबतलाया कि किस तरह सम्पूर्ण शान्ति इस सृष्टि को लौटायी जाती। परमेश्वर के स्त्री का प्रतिज्ञात वंश मूल शान्ति-भंग करनेवाले के सिर को कुचल डालता। अदन के समय से लेकर, उस वादे पर विश्वास करनेवालों ने परमेश्वर के साथ शान्तिमय सम्बन्धों का आनन्द लिया। इब्राहीम के लिए, यह दोस्ती में विकसित हुई।—२ इतिहास २०:७; याकूब २:२३.
९ मूसा के समय में, यहोवा ने इब्राहीम के पोते, इस्राएल, के बच्चों को एक जाति में संगठित किया। उन्होंने अपनी शान्ति इस जाति को देने का प्रस्ताव रखा, जैसा कि उन को महायाजक हारून द्वारा दिए आशीर्वाद से देखा जा सकता है: “यहोवा तुझे आशीष दे और तेरी रक्षा करे। यहोवा तुझ पर अपने मुख का प्रकाश चमकाए, और तुझ पर अनुग्रह करे: यहोवा अपना मुख तेरी ओर करे, और तुझे शान्ति दे।” (गिनती ६:२४-२६) यहोवा की शान्ति बहुत सारे प्रतिफल ले आती, लेकिन इसे सप्रतिबंध पेश किया गया था।
१०, ११. इस्राएल के लिए परमेश्वर के साथ शान्ति किस बात पर सप्रतिबंध थी, और इसके परिणामस्वरूप क्या हो जाता?
१० यहोवा ने उस जाति से कहा: “यदि तुम मेरी विधियों पर चलो और मेरी आज्ञाओं को मानकर उनका पालन करो, तो मैं तुम्हारे लिए समय समय पर मेंह बरसाऊँगा, तथा भूमि अपनी उपज उपजाएगी, और मैदान के वृक्ष अपने अपने फल दिया करेंगे; और मैं तुम्हारे देश में सुख चैन दूँगा, और तुम सोओगे और तुम्हारा कोई डरानेवाला न होगा; और मैं उस देश में दुष्ट जन्तुओं को न रहने दूँगा, और तलवार तुम्हारे देश में न चलेगी। और मैं तुम्हारे मध्य चला फिरा करूँगा, और तुम्हारा परमेश्वर बना रहूँगा, और तुम मेरी प्रजा बने रहोगे।” (लैव्यव्यवस्था २६:३, ४, ६, १२) इस्राएल की जाति इस रीति से शान्ति का आनन्द उठा सकती थी कि उन्हें अपने शत्रुओं से सुरक्षा, भौतिक सम्पन्नता, और यहोवा के साथ एक नज़दीक़ी सम्बन्ध हासिल था। लेकिन यह उनका यहोवा की व्यवस्था से लगे रहने पर निर्भर था।—भजन ११९:१६५.
११ उस जाति के सम्पूर्ण इतिहास में, जिन इस्राएली लोगों ने यहोवा के नियमों का विश्वसनीयता से पालन करने की कोशिश की, उन्होंने उनके साथ शान्ति का आनन्द ज़रूर लिया, और अकसर उस से और भी कई आशीष प्राप्त होते थे। राजा सुलैमान की हुक़ूमत के आरंभिक सालों में, परमेश्वर के साथ शान्ति होने के कारण भौतिक सम्पन्नता और साथ ही इस्राएल के पड़ोसियों के साथ युद्धों से विश्राम प्राप्त हुआ। उस समय का वर्णन करते हुए, बाइबल कहती है: “और दान से बेर्शेबा तक के सब यहूदी और इस्राएली अपनी अपनी दाखलता और अंजीर के वृक्ष तले सुलैमान के जीवन भर निडर रहते थे।” (१ राजा ४:२५) जब पड़ोसी देशों के साथ युद्ध-स्थिति शुरू हुई, तब भी विश्वसनीय इस्राएलियों के पास वह शान्ति थी, जो सचमुच ही महत्त्व रखती है, परमेश्वर के साथ शान्ति। इस प्रकार, एक जाने-माने सिपाही, राजा दाऊद ने लिखा: “मैं शान्ति से लेट जाऊँगा और सो जाऊँगा; क्योंकि, हे यहोवा, केवल तू ही मुझ को एकान्त में निश्चिन्त रहने देता है।”—भजन ४:८.
शान्ति के लिए एक बेहतर आधार
१२. इस्राएल ने परमेश्वर के साथ शान्ति को आख़िरकार किस तरह अस्वीकार कर दिया?
१२ आख़िरकार, वह वंश जो सम्पूर्ण शान्ति को पुनःस्थापित करनेवाला था, यीशु के रूप में आ गया, और उसके जन्म के अवसर पर स्वर्गदूतों ने गाकर कहा: “ऊँचे से ऊँचे स्थान में परमेश्वर की महिमा और पृथ्वी पर उन मनुष्यों में जिन से वह प्रसन्न है शान्ति हो।” (लूका २:१४, न्यू.व.) यीशु इस्राएल में प्रकट हुआ, लेकिन परमेश्वर के क़रार के अधीन होने के बावजूद, उस पूरी जाति ने उसको अस्वीकार कर दिया और उसे रोमियों के हाथों सौंप दिया ताकि उसे मार डाला जाए। उसकी मौत के कुछ समय पहले, यीशु ने यरूशलेम के कारण आँसू बहाए, यह कहते हुए: “क्या ही भला होता, कि तू; हाँ तू ही, इसी दिन में कुशल की बातें जानता, परन्तु अब वे तेरी आँखों से छिप गयी हैं।” (लूका १९:४२; यूहन्ना १:११) यीशु को अस्वीकार कर देने के कारण, इस्राएल ने परमेश्वर के साथ अपनी शान्ति को पूरी तरह से खो दिया।
१३. यहोवा ने मनुष्यों को उनके साथ शान्ति पाने के लिए कौनसा नया रास्ता स्थापित किया?
१३ फिर भी, परमेश्वर के उद्देश्य व्यर्थ नहीं कर दिए गए। यीशु को मौत की हालत से पुनरुत्थित किया गया, और उसने सही-मनोवृत्ति रखनेवाले मनुष्यों के लिए एक छुड़ौती के तौर से अपने परिपूर्ण जीवन की क़ीमत यहोवा को पेश की। (इब्रानियों ९:११-१४) यीशु की क़ुरबानी मनुष्य—दोनों पैदाइशी इस्राएली और ग़ैर-यहूदियों को परमेश्वर के साथ शान्ति पाने का एक नया और बेहतर रास्ता बन गया। पौलुस ने रोम में रहनेवाले मसीहियों को लिखी अपनी चिट्ठी में कहा: “क्योंकि बैरी होने की दशा में तो उसके पुत्र की मृत्यु के द्वारा हमारा मेल परमेश्वर के साथ हुआ।” (रोमियों ५:१०) पहली सदी में, जिन लोगों ने इस तरीक़े से शान्ति स्थापित की, उन्हें परमेश्वर के दत्तक पुत्र और “परमेश्वर के इस्राएल” नामक एक नयी आत्मिक जाति के सदस्य बनने के लिए पवित्र आत्मा से अभिषिक्त किया गया।—गलतियों ६:१६; यूहन्ना १:१२, १३; २ कुरिन्थियों १:२१, २२; १ पतरस २:९.
१४, १५. परमेश्वर की शान्ति का वर्णन करें, और समझाएँ कि यह किस तरह मसीहियों की रक्षा करती है, उस समय भी जब वे शैतान की शत्रुता का निशाना हैं।
१४ ये नए आत्मिक इस्राएली शैतान और उसकी दुनिया की ओर से शत्रुता का निशाना होते। (यूहन्ना १७:१४) बहरहाल, उन्हें “परमेश्वर पिता और हमारे प्रभु मसीह यीशु की ओर से . . . शान्ति मिलती।” (२ तीमुथियुस १:२) यीशु ने उन से कहा: “मैं ने ये बातें तुम से इसलिए कही हैं, कि तुम्हें मुझ में शान्ति मिले; संसार में तुम्हें क्लेश होता है, परन्तु ढाढ़स बाँधो, मैं ने संसार के जीत लिया है।”—यूहन्ना १६:३३.
१५ यही वह शान्ति है जिस से पौलुस और उसके संगी मसीहियों को उन सारी कठिनाइयों के बावजूद, जिनका सामना उन्होंने किया, सहन करने की मदद मिली। इस से परमेश्वर के साथ एक सुकून-भरा, अनुकूल सम्बन्ध प्रतिबिंबित होता है, जो यीशु की क़ुरबानी से मुमकिन हुआ है। यह इसके मालिक को एक अविक्षुब्ध मन की शान्ति देता है, जब वह यहोवा की परवाह के बारे में अवगत होता है। एक बच्चे को, जो अपने प्रेममय पिता की बाँहों में चिपटकर बैठा हुआ है, उसी क़िस्म की शान्ति का बोध है, एक ऐसा यक़ीन जिस में कोई सन्देह नहीं, कि ऐसा व्यक्ति उसकी देख-रेख कर रहा है, जो उसकी परवाह करता है। पौलुस ने फिलिप्पियों को प्रोत्साहित किया: “किसी भी बात की चिन्ता मत करो: परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएँ। तब परमेश्वर की शान्ति, जो समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी।”—फिलिप्पियों ४:६, ७.
१६. परमेश्वर के साथ शान्ति होने से पहली-सदी के मसीहियों के दरमियान के सम्बन्ध पर कैसा असर हुआ?
१६ परमेश्वर के साथ मनुष्य की शान्ति के खो जाने का एक नतीजा द्वेष और फूट था। पहली-सदी के मसीहियों के लिए, परमेश्वर के साथ शान्ति पाने का परिणाम बिलकुल ही उलटा रहा: उनके दरमियान शान्ति और एकता, जिसको पौलुस ‘मेल का बन्ध’ कहता था। (इफिसियों ४:३) उन्होंने ‘एक ही मन रखा और मेल से रहे और शान्ति उनके साथ थी।’ इसके अलावा, उन्होंने “शान्ति का सुसमाचार” प्रचार किया, जो मुख्य रूप से ‘शान्ति के दोस्तों’ के लिए उद्धार का सुसमाचार था, यानी वे लोग जो सुसमाचार के प्रति अनुकूल प्रतिक्रिया दिखाते हैं।—२ कुरिन्थियों १३:११; प्रेरितों १०:३६; लूका १०:५, ६.
शान्ति का क़रार
१७. हमारे समय में परमेश्वर ने अपने लोगों के साथ क्या बनाया है?
१७ क्या आज ऐसी शान्ति पायी जा सकती है? जी हाँ, पायी जा सकती है। १९१४ में महिमान्वित यीशु मसीह के अधीन परमेश्वर के राज्य की स्थापना से लेकर, यहोवा ने परमेश्वर के इस्राएल के बाक़ी सदस्यों को इस दुनिया में से एकत्रित किया है और उनके साथ शान्ति का क़रार बनाया है। उन्होंने इस प्रकार उस वादे को पूरा किया जो भविष्यद्वक्ता यहेज़केल के द्वारा किया गया है: “मैं उनके साथ शान्ति की वाचा बान्धूँगा; वह सदा की वाचा ठहरेगी; और मैं उन्हें स्थान देकर गिनती में बढ़ाऊँगा, और उनके बीच अपना पवित्र स्थान सदा बनाए रखूँगा।” (यहेज़केल ३७:२६) यहोवा ने यह क़रार अभिषिक्त मसीहियों के साथ बनायी जो, पहली सदी में उनके भाइयों के ही जैसे, यीशु की क़ुरबानी में विश्वास करते हैं। आध्यात्मिक दूषण से शुद्ध किए जाकर, उन्होंने अपने आप को अपने स्वर्ग के पिता को समर्पित किया है और वे उनकी आज्ञाओं का पालन करने का यत्न करते हैं, सबसे ज़्यादा उल्लेखनीय रूप से परमेश्वर के स्थापित राज्य के सुसमाचार के विश्वव्यापी प्रचार कार्य में अगुवाई करने के ज़रिए।—मत्ती २४:१४.
१८. जातियों में से कुछेक लोगों ने किस तरह प्रतिक्रिया दिखायी है, जब उन्होंने पहचान लिया है कि परमेश्वर का नाम परमेश्वर के इस्राएल पर है?
१८ भविष्यद्वाणी में आगे कहा गया है: “मेरे निवास का तम्बू उनके ऊपर तना रहेगा; और मैं उनका परमेश्वर हूँगा, और वे मेरी प्रजा होंगे। और . . . सब जातियाँ जान लेंगी कि मैं यहोवा इस्राएल का पवित्र करनेवाला हूँ।” (यहेज़केल ३७:२७, २८) इसके अनुरूप, “जातियों” में से कई हज़ार, हाँ, लाखों ने मान लिया है कि यहोवा का नाम परमेश्वर के इस्राएल पर है। (जकर्याह ८:२३) सारी जातियों में से निकलकर, वे उस आत्मिक जाति के साथ यहोवा की सेवा करने के लिए एकत्र हो गए हैं, और वह “बड़ी भीड़” बन गए हैं जिसका पूर्वदर्शन प्रकाशितवाक्य में हुआ था। चूँकि उन्होंने “अपने वस्त्र मेम्ने के लोहू में धोकर श्वेत किए हैं,” वे भारी क्लेश में से निकलकर एक शान्तिमय नयी दुनिया में जीवन पाने के लिए बचा दिए जाएँगे।—प्रकाशितवाक्य ७:९, १४.
१९. परमेश्वर के लोग आज कैसी शान्ति का आनन्द लेते हैं?
१९ मिलकर, परमेश्वर के इस्राएल और बड़ी भीड़ ऐसी आत्मिक शान्ति का आनन्द उठाते हैं, जिसकी तुलना उस शान्ति से की जा सकती है जिसका आनन्द इस्राएल ने राजा सुलैमान के शासनकाल में लिया। उनके बारे में, मीका ने भविष्यद्वाणी की: “वे अपनी तलवारें पीटकर हल के फाल, और अपने भालों से हंसिया बनाएँगे; तब एक जाति दूसरी जाति के विरुद्ध तलवार फिर न चलाएगी; और लोग आगे को युद्ध-विद्या न सीखेंगे। परन्तु वे अपनी अपनी दाखलता और अंजीर के वृक्ष तले बैठा करेंगे, और कोई उनको न डराएग।” (मीका ४:३, ४; यशायाह २:२-४) इसके अनुरूप, उन्होंने युद्ध और झगड़ा से अपना मुँह मोड़ दिया है, और प्रतीकात्मक रूप से अपनी तलवारों को हल की फाल और भालों को हंसिया बना दिया है। इस प्रकार, उनकी राष्ट्रीयता, भाषा, प्रजाति या सामाजिक पृष्ठाधार चाहे जो हो, वे अपने सम्पूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय में एक शान्तिपूर्ण भाईचारे का आनन्द उठाते हैं। और वे उन पर यहोवा की संरक्षणात्मक देख-रेख की निश्चितता के कारण आनन्द मनाते हैं। ‘कोई भी उन्हें नहीं डराएगा।’ सचमुच, ‘यहोवा ने खुद अपनी प्रजा को बल दी है। यहोवा ने खुद अपनी प्रजा को शान्ति की आशीष दी है।’—भजन २९:११.
२०, २१. (अ) हमें परमेश्वर के साथ अपनी शान्ति को बनाए रखने के लिए क्यों कार्य करना चाहिए? (ब) परमेश्वर के लोगों की शान्ति भंग करने के लिए शैतान की कोशिशों के बारे में हम क्या कह सकते हैं?
२० बहरहाल, जैसे सामान्य युग की पहली सदी में हुआ, वैसे ही परमेश्वर के दासों की शान्ति के कारण शैतान की शत्रुता उकसायी गयी है। १९१४ में परमेश्वर के राज्य की स्थापना के बाद स्वर्ग से फेंका जाकर, शैतान ने तब से “[स्त्री] की शेष सन्तान से” लड़ाई की है। (प्रकाशितवाक्य १२:१७) अपने समय में भी, पौलुस ने चेतावनी दी: “हमारा यह मल्लयुद्ध, लोहू और माँस से नहीं, परन्तु . . . उस दुष्टता की आत्मिक सेनाओं से है जो आकाश में हैं।” (इफिसियों ६:१२) चूँकि शैतान अब इस पृथ्वी के पड़ोस में है, वह चेतावनी बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
२१ परमेश्वर के लोगों की शान्ति भंग करने की उसकी कोशिशों में शैतान ने अपने अधिकार में सारी युक्तियों को इस्तेमाल किया है, लेकिन वह विफ़ल रहा है। १९१९ में, १०,००० लोग भी न थे जिन्होंने परमेश्वर की सेवा विश्वस्तता से करने का प्रयास किया। आज, चालीस लाख से ज़्यादा लोग हैं जो अपने विश्वास के ज़रिए इस दुनिया पर जय प्राप्त कर रहे हैं। (१ यूहन्ना ५:४) इन के लिए, परमेश्वर के साथ शान्ति और एक दूसरे के साथ शान्ति एक असलियत है, उस समय भी जब वे शैतान और उसके वंश की शत्रुता को सहन करते हैं। लेकिन इस शत्रुता को ध्यान में रखते हुए, और खुद अपनी अपरिपूर्णता तथा हम जिस “कठिन समय” में जी रहे हैं, ‘जिनसे निपटना मुश्किल है,’ उसका विचार करते हुए, हमें अपनी शान्ति को बनाए रखने के लिए अध्यवसाय से कार्य करना चाहिए। (२ तीमुथियुस ३:१) अगले लेख में हम देखेंगे कि इस में क्या-क्या सम्बद्ध है।
क्या आप व्याख्या कर सकते हैं?
◻ मनुष्य ने परमेश्वर के साथ अपनी शान्ति को प्रारंभ में क्यों खो दिया?
◻ इस्राएल के लिए, परमेश्वर के साथ शान्ति पाना किस बात पर सप्रतिबन्ध था?
◻ आज परमेश्वर के साथ शान्ति किस बात पर आधारित है?
◻ हमारे हृदय की रक्षा करनेवाली “परमेश्वर की शान्ति” क्या है?
◻ अगर हमें परमेश्वर के साथ शान्ति हासिल हो, तो हम और कौनसी आशीषों का आनन्द उठाते हैं?