“जागते रहो”
“इसलिये जागते रहो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारा प्रभु किस दिन आएगा।”—मत्ती 24:42.
1. अपनी सारी उम्र यहोवा की सेवा में गुज़ार देनेवाले भाई-बहन आज कैसा महसूस करते हैं? इसका एक उदाहरण दीजिए।
हमारे बीच ऐसे बहुत-से बुज़ुर्ग भाई-बहन हैं जो लंबे अरसे से यहोवा की सेवा कर रहे हैं। उन्होंने उस समय बाइबल से सच्चाई सीखी थी जब वे जवान थे। तब वे इतने खुश हुए थे कि उन्होंने खुद को नकार के अपनी पूरी ज़िंदगी यहोवा को समर्पित कर दी थी। ठीक उस व्यापारी की तरह जिसे एक बहुमूल्य मोती मिला और उसे पाने के लिए उसने अपना सब कुछ बेच दिया। (मत्ती 13:45, 46; मरकुस 8:34) ये भाई-बहन इस चाह में अपनी आँखें बिछाए थे कि परमेश्वर जल्द ही इस पृथ्वी पर अपना उद्देश्य पूरा करेगा। इस इंतज़ार में उन्होंने सारी उम्र बिता दी। तो फिर, आज उन्हें कैसा लग रहा है? क्या उन्हें कोई पछतावा है? हरगिज़ नहीं! दरअसल वे, भाई ए. एच. मैकमिलन की तरह ही सोचते हैं, जिन्होंने वफादारी से लगभग 60 साल परमेश्वर की सेवा में बिताने के बाद कहा: “मैंने तो यह और भी पक्का ठान लिया है कि अपने विश्वास में धीरज से टिका रहूँगा। इसी विश्वास ने मुझे सही मायने में जीना सिखाया है। और इसी विश्वास की वज़ह से मैं बड़ी हिम्मत के साथ आगे भी हर मुसीबत का सामना करने के लिए तैयार हूँ।”
2. (क) वक्त की नज़ाकत को देखते हुए यीशु ने अपने चेलों को कौन-सी चेतावनी दी? (ख) इस लेख में हम किन सवालों पर गौर करेंगे?
2 लेकिन आप क्या सोचते हैं? चाहे आप बूढ़ें हों या जवान, यीशु के इन शब्दों पर हर किसी को गौर करना चाहिए: “जागते रहो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारा प्रभु किस दिन आएगा।” (मत्ती 24:42) ये शब्द हैं तो बहुत ही सीधे और सरल, मगर ये हमारी ज़िंदगी और मौत से ताल्लुक रखते हैं। बेशक हम नहीं जानते कि प्रभु इस दुष्ट दुनिया का न्याय करने के लिए किस दिन आएगा और ना ही हमें जानने की ज़रूरत है। मगर ज़रूरी बात यह है कि हम अपनी ज़िंदगी इस तरह बिताएँ कि बाद में पछताना न पड़े। तो फिर, बाइबल में दिए गए किन लोगों के उदाहरण से हमें जागते रहने में मदद मिलेगी? जागते रहने में हमारी मदद करने के लिए यीशु ने कौन-सा दृष्टांत दिया है? और आज हमारे सामने ऐसे कौन-से सबूत हैं जो दिखाते हैं कि हम अंत के दिनों में जी रहे हैं?
बाइबल से चेतावनी का उदाहरण
3. किस तरह आज के लोग नूह के दिनों के लोगों की तरह हैं?
3 कई बातों में आज के लोग, नूह के दिनों के लोगों की तरह हैं। उस समय अधिकतर लोग बस अपने रोज़मर्रा के कामों में ही डूबे हुए थे। पूरी दुनिया उपद्रव और हिंसा से भरी हुई थी और इंसानों के मन में जो कुछ उत्पन्न होता था, “निरन्तर बुरा ही होता” था। (उत्पत्ति 6:5) तब यहोवा ने एक महा जलप्रलय लाकर दुष्टों का नाश करने का फैसला किया। मगर पहले वह लोगों को एक मौका देना चाहता था कि वे बुरे कामों से फिरकर अपनी जान बचाएँ। इसलिए यहोवा ने नूह को प्रचार करने की आज्ञा दी। “धर्म के प्रचारक” नूह ने ४० या ५० से भी ज़्यादा सालों तक लोगों को चेतावनी दी। (2 पतरस 2:5) मगर लोगों ने उसकी चेतावनी की ओर बिलकुल ध्यान नहीं दिया। जी हाँ, वे सचेत नहीं थे। इसीलिए यहोवा ने उनका नाश कर दिया और सिर्फ नूह और उसके परिवार को बचाया।—मत्ती 24:37-39.
4. हम क्यों कह सकते हैं कि नूह का प्रचार काम सफल रहा और आपके प्रचार के बारे में भी ऐसा ही क्यों कहा जा सकता है?
4 क्या हम कह सकते हैं कि नूह अपने प्रचार काम में सफल हुआ? यह मत देखिए कि कितने लोगों ने उसकी बात सुनी। चंद लोग ही सही, मगर नूह के प्रचार करने का मकसद ज़रूर पूरा हुआ। हम ऐसा क्यों कह सकते हैं? क्योंकि इससे लोगों को यह चुनाव करने के लिए काफी वक्त मिला कि वे यहोवा की सेवा करना चाहते हैं या नहीं। आपके प्रचार काम के बारे में क्या? आपके इलाके में भी अगर थोड़े ही लोग आपकी बात सुनते हैं तौभी प्रचार का मकसद ज़रूर पूरा होता है। वह कैसे? क्योंकि लोगों तक चेतावनी पहुँच रही है। आप प्रचार करके डंके की चोट पर लोगों को परमेश्वर की तरफ से आगाह कर रहे हैं। इस तरह आप यीशु की वह आज्ञा भी मान रहे हैं जो उसने अपने चेलों को दी थी।—मत्ती 24:14; 28:19, 20.
परमेश्वर के भविष्यवक्ताओं को नज़रअंदाज़ करना
5. (क) हबक्कूक के दिनों में यहूदा राज्य की हालत कैसी थी और चेतावनी के संदेश का लोगों पर कैसा असर हुआ? (ख) यहूदा के लोगों ने यहोवा के भविष्यवक्ताओं का विरोध कैसे किया?
5 जलप्रलय के सदियों बाद यहूदा राज्य की हालत बहुत बिगड़ चुकी थी। देश में मूर्तिपूजा, अन्याय, अत्याचार और यहाँ तक कि खून-खराबा भी एक आम बात हो गई थी। इसलिए यहोवा ने हबक्कूक के ज़रिए लोगों को चेतावनी दी कि अगर वे अपनी बुराई से न फिरे तो वह कसदियों यानी बाबुलियों को भेजकर उनका सर्वनाश कर देगा। (हबक्कूक 1:5-7) मगर लोगों के कानों पर जूँ तक न रेंगी। शायद उन्होंने यह कहकर खुद को समझा लिया होगा, ‘अरे, सौ साल से भी पहले, यशायाह भविष्यवक्ता ने इसी तरह की चेतावनी दी थी मगर देखो, अभी तक कुछ नहीं हुआ!’ (यशायाह 39:6, 7) और भविष्यवक्ताओं की चेतावनियों को सुनना तो दूर, यहूदा के कई अधिकारी तो उनके दुश्मन बन गए। एक बार तो उन्होंने भविष्यवक्ता यिर्मयाह की हत्या करने की भी कोशिश की मगर अहीकाम के बीच में आने की वज़ह से उनके बुरे मंसूबे पर पानी फिर गया। फिर बाद में, जब ऊरिय्याह भविष्यवक्ता ने राजा यहोयाकीम को चेतावनी का संदेश सुनाया तो राजा गुस्से से इतना आग-बबूला हो गया कि उसने उसकी हत्या ही करवा दी।—यिर्मयाह 26:21-24.
6. यहोवा ने हबक्कूक की हिम्मत कैसे बँधाई?
6 हबक्कूक से पहले जब यिर्मयाह ने बिना डरे लोगों को परमेश्वर का यह संदेश सुनाया कि यहूदा देश ७० साल तक उजाड़ पड़ा रहेगा तो यह लोगों के गले नहीं उतरा। उसी तरह हबक्कूक का संदेश भी लोगों के लिए उतना ही कड़वा था। (यिर्मयाह 25:8-11) तो हम समझ सकते हैं कि क्यों हबक्कूक दुःखी होकर यहोवा से गिड़गिड़ाया: “हे यहोवा मैं कब तक तेरी दोहाई देता रहूंगा, और तू न सुनेगा? मैं कब तक तेरे सम्मुख “उपद्रव”, “उपद्रव”, चिल्लाता रहूंगा? क्या तू उद्धार नहीं करेगा?” (हबक्कूक 1:2) तब यहोवा ने उसकी हिम्मत बँधाते हुए कहा: “इस दर्शन की बात नियत समय में पूरी होनेवाली है, वरन इसके पूरे होने का समय वेग से आता है; इस में धोखा न होगा। चाहे इस में विलम्ब भी हो, तौभी उसकी बाट जोहते रहना; क्योंकि वह निश्चय पूरी होगी और उस में देर न होगी।” (हबक्कूक 2:3) अन्याय और अत्याचार का अंत करने के लिए यहोवा का अपना एक “नियत समय” था। हबक्कूक को भले ही लगे कि इसमें देर हो रही है, फिर भी उसे हिम्मत नहीं हारनी थी और ना ही यहोवा की सेवा में ढीला पड़ना था। इसके बजाय उसे “बाट जोहते रहना” था। उसे हमेशा यह ध्यान में रखना था कि अंत किसी भी पल आ सकता है। यहोवा के दिन के आने में ज़रा भी देर न होगी!
7. सा.यु. पहली सदी में यरूशलेम का दोबारा विनाश करने की क्यों ठानी गई?
7 हबक्कूक से यह कहने के लगभग 20 साल बाद ही यहूदा की राजधानी यरूशलेम का नाश हो गया। मगर बाद में उसे फिर से बसाया गया और जिन बुराइयों को देखकर हबक्कूक आहें भरता था उनका नामोनिशान मिटा दिया गया। लेकिन सा.यु. पहली सदी में वह शहर एक बार फिर विनाश के कगार पर खड़ा हो गया क्योंकि उसमें रहनेवालों ने यहोवा के साथ विश्वासघात किया। मगर जो धर्मी थे, यहोवा ने उन पर दया करके उन्हें बचाव का रास्ता बताया। इस बार उसने लोगों तक अपना संदेश पहुँचाने के लिए सबसे बड़े भविष्यवक्ता को भेजा, जो कोई और नहीं बल्कि उसका अपना बेटा यीशु मसीह था। सा.यु. 33 में यीशु ने अपने चेलों से कहा: “जब तुम यरूशलेम को सेनाओं से घिरा हुआ देखो, तो जान लेना कि उसका उजड़ जाना निकट है। तब जो यहूदिया में हों वह पहाड़ों पर भाग जाएं।”—लूका 21:20, 21.
8. (क) यीशु के मरने के बाद जैसे जैसे वक्त गुज़रता गया कुछ मसीहियों के मन में शायद कौन-से विचार आए होंगे? (ख) यरूशलेम के बारे में यीशु की भविष्यवाणी कैसे पूरी हुई?
8 जैसे-जैसे समय गुज़रता जा रहा था, यरूशलेम के कुछ मसीहियों ने ज़रूर सोचा होगा कि आखिर यीशु की भविष्यवाणी कब पूरी होगी। यह सोचना मुनासिब भी था क्योंकि उनमें से कुछ ने तो बड़े-बड़े त्याग किए थे। जागते रहने के अपने अटल इरादे की वज़ह से शायद उन्होंने धन-दौलत कमाने के अच्छे से अच्छे मौके को भी ठुकराया होगा। तो क्या अब इंतज़ार करते-करते वे थक गए थे? क्या उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि यीशु के शब्द उनके दिनों में नहीं बल्कि भविष्य में पूरे होंगे इसलिए अब और इंतज़ार करना समय की बरबादी है? लेकिन, सा.यु. 66 में जब रोमी सेना ने यरूशलेम को आ घेरा तब यीशु की भविष्यवाणी पूरी होने लगी। जागते रहनेवालों ने अपनी आँखों से जब यह चिन्ह देखा तो वे शहर छोड़कर भाग निकले। इस तरह वे यरूशलेम के साथ नाश होने से बच गए।
जागते रहने की ज़रूरत के बारे में दृष्टांत
9, 10. (क) अपने स्वामी का इंतज़ार कर रहे दासों के बारे में यीशु के दृष्टांत का सार दीजिए। (ख) स्वामी का इंतज़ार करना दासों को क्यों मुश्किल लगा होगा? (ग) दासों के लिए धीरज धरना क्यों फायदेमंद था?
9 जागते रहना कितना ज़रूरी है यह समझाने के लिए यीशु ने अपने चेलों को एक दृष्टांत दिया था। इस दृष्टांत में उसने अपने चेलों की तुलना उन दासों से की जो अपने स्वामी के शादी से लौटने का इंतज़ार करते हैं। वे इतना जानते थे कि उनका स्वामी रात को लौटेगा, मगर ठीक किस घड़ी आएगा, यह वे नहीं जानते थे। वह रात को कब आएगा, पहले पहर में, दूसरे पहर में या तीसरे पहर में? यीशु ने कहा: “यदि वह रात के दूसरे पहर या तीसरे पहर में आकर उन्हें जागते पाए, तो वे दास धन्य हैं।” (लूका 12:35-38) ज़रा सोचिए, ये दास कितनी बेसब्री से उसका इंतज़ार कर रहे होंगे! उन्हें जब भी कोई आहट सुनाई देती होगी या जब भी कोई परछाई नज़र आती होगी तो उनका दिल ज़रूर यह कह उठता होगा, ‘कहीं ये स्वामी तो नहीं?’
10 अगर स्वामी दूसरे पहर में आता तब क्या, यानी रात नौ से बारह के बीच? क्या सभी दास उसके स्वागत के लिए कमर बाँधे तैयार रहते, चाहे उनमें से कुछ दास सुबह से कड़ी मेहनत करके थक ही क्यों न गए हों? या सभी नींद की झपकियाँ लेते रहते? अगर स्वामी तीसरे पहर लौटता यानी रात बारह से तीन बजे के बीच, तब क्या? उस घड़ी तक क्या वे बिलकुल निराश हो जाते, यहाँ तक की यह सोचकर खिसिया जाते कि स्वामी तो आने में बहुत देर कर रहा है?a लेकिन ध्यान दीजिए कि यीशु ने सिर्फ उसी दास को धन्य कहा जो स्वामी के आने पर जागता रहता। इसलिए इंतज़ार की घड़ियाँ गिननेवालों पर नीतिवचन 13:12 के ये शब्द कितने सही बैठते हैं: “जब आशा पूरी होने में विलम्ब होता है, तो मन शिथिल होता है, परन्तु जब लालसा पूरी होती है, तब जीवन का वृक्ष लगता है।”
11. जागते रहने में प्रार्थना कैसे हमारी मदद करेगी?
11 अगर यीशु के चेलों को लगता कि भविष्यवाणी के पूरा होने में देर हो रही है तो उन्हें किस बात से जागते रहने में मदद मिलती? गतसमनी के बाग में गिरफ्तारी से कुछ समय पहले, यीशु ने अपने तीन प्रेरितों से कहा था: “जागते रहो, और प्रार्थना करते रहो, कि तुम परीक्षा में न पड़ो।” (मत्ती 26:41) उन तीन प्रेरितों में से एक पतरस था, और सालों बाद उसने ऐसी ही सलाह संगी मसीहियों को दी। उसने लिखा: “सब बातों का अन्त तुरन्त होनेवाला [निकट, NHT] है; इसलिये संयमी होकर प्रार्थना के लिये सचेत रहो।” (1 पतरस 4:7) जी हाँ, मन लगाकर प्रार्थना करना मसीहियों की ज़िंदगी का अहम हिस्सा होना चाहिए। दरअसल हमें लगातार यहोवा से मिन्नतें करनी चाहिए कि वह जागते रहने में हमारी मदद करे।—रोमियों 12:12; 1 थिस्सलुनीकियों 5:17.
12. बाट जोहने का मतलब क्या है और क्या नहीं?
12 ध्यान दीजिए कि पतरस ने क्या कहा: “सब बातों का अंत निकट है।” अंत कितना निकट है? यह तो कोई नहीं बता सकता कि अंत ठीक किस दिन और किस घड़ी आएगा। (मत्ती 24:36) यह सच है कि बाइबल हमें अंत की बाट जोहते रहने के लिए कहती है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम अंत के समय के बारे में अटकलें लगाएँ क्योंकि बाइबल इसे मूर्खता कहती है। (2 तीमुथियुस 4:3, 4; तीतुस 3:9 से तुलना कीजिए।) तो फिर हम अंत की बाट कैसे जोह सकते हैं? और कैसे जागते रह सकते हैं? अंत के बारे में दिए गए सबूतों पर ध्यान देने से। आइए अब ऐसे 6 सबूतों पर गौर करें जो साबित करती हैं कि हम इस दुष्ट दुनिया की आखिरी दिनों में जी रहे हैं।
छः सबूत
13. दूसरे तीमुथियुस के तीसरे अध्याय में लिखी पौलुस की भविष्यवाणी किस तरह यकीन दिलाती है कि हम “अंतिम दिनों” में जी रहे हैं?
13 पहला सबूत यह है कि “अंतिम दिनों” के बारे में पौलुस की भविष्यवाणी को हम बखूबी पूरा होते देख रहे हैं। पौलुस ने लिखा था: “अन्तिम दिनों में कठिन समय आएंगे। क्योंकि मनुष्य अपस्वार्थी, लोभी, डींगमार, अभिमानी, निन्दक, माता-पिता की आज्ञा टालनेवाले, कृतघ्न, अपवित्र। मयारहित, क्षमारहित, दोष लगानेवाले, असंयमी, कठोर, भले के बैरी। विश्वासघाती, ढीठ, घमण्डी, और परमेश्वर के नहीं बरन सुखविलास ही के चाहनेवाले होंगे। वे भक्ति का भेष तो धरेंगे, पर उस की शक्ति को न मानेंगे; ऐसों से परे रहना। और दुष्ट, और बहकानेवाले धोखा देते हुए, और धोखा खाते हुए, बिगड़ते चले जाएंगे।” (2 तीमुथियुस 3:1-5, 13) क्या यह भविष्यवाणी आज हमारे सामने पूरी नहीं हो रही है? इस बात से सिर्फ वे ही इंकार करेंगे जो हकीकत से अपनी आँखें मूँद लेते हैं!b
14. शैतान के बारे में प्रकाशितवाक्य 12:9 के शब्द कैसे पूरे हुए हैं और उसके साथ जल्द ही क्या होनेवाला है?
14 दूसरा सबूत यह है कि हम प्रकाशितवाक्य 12:9 की भविष्यवाणी को पूरा होते देख रहे हैं। इसमें शैतान और उसके संगी पिशाचों को स्वर्ग से खदेड़ देने के बारे में बात कही गई थी। वहाँ लिखा है: “वह बड़ा अजगर अर्थात् वही पुराना सांप, जो इब्लीस और शैतान कहलाता है, और सारे संसार का भरमानेवाला है, पृथ्वी पर गिरा दिया गया; और उसके दूत उसके साथ गिरा दिए गए।” इससे पूरी पृथ्वी पर त्राही-त्राही मची है। और 1914 से इंसानों पर मानो आसमान ही टूट पड़ा है। मगर प्रकाशितवाक्य में आगे यह भविष्यवाणी भी की गई कि जब शैतान को पृथ्वी पर फेंका गया तब वह जानता था कि अब “उसका थोड़ा ही समय और बाकी” है। (प्रकाशितवाक्य 12:12) इस थोड़े समय के दौरान शैतान यीशु के अभिषिक्त मसीहियों से लड़ाई करेगा। (प्रकाशितवाक्य 12:17) और उसने अभिषिक्त मसीहियों पर जो हमले किए उन्हें तो हमने अपने समय में साफ देखा है।c मगर जल्द ही शैतान को अथाह कुंड में डाल दिया जाएगा ताकि वह “जाति जाति के लोगों को फिर न भरमाए।”—प्रकाशितवाक्य 20:1-3.
15. प्रकाशितवाक्य 17:9-11 से हमें किस तरह सबूत मिलता है कि हम अंत के दिनों में जी रहे हैं?
15 तीसरा सबूत यह है कि प्रकाशितवाक्य 17:9-11 में आठवें और आखिरी “राजा” के बारे में जो भविष्यवाणी की गई थी आज हम उसी समय में जी रहे हैं। वहाँ प्रेरित यूहन्ना पहले सात राजाओं के बारे में बात करता है। ये सात राजा सात विश्वशक्तियाँ हैं, यानी मिस्र (इजिप्ट), अश्शूर, बाबुल, मादी-फारसी, यूनान, रोम और ब्रिटेन-अमरीका। फिर यूहन्ना ‘आठवें राजा’ को देखता है जो “उन सातों में से उत्पन्न” होता है। वह आठवाँ राजा संयुक्त राष्ट्र संगठन है जो आज हमारे दिनों में मौजूद है। यही आठवाँ राजा यूहन्ना के दर्शन का आखिरी राजा है। वह कहता है कि यह राजा “विनाश में पड़ेगा।” इसके बाद और किसी इंसानी राजा का ज़िक्र नहीं किया गया।d
16. मूर्ति में दर्शायी गई बातों से कैसे पता चलता है कि हम अंत के दिनों में जी रहे हैं?
16 चौथा सबूत यह है कि नबूकदनेस्सर के सपने में, मूर्ति के पैर जिस समयावधि को सूचित करते हैं उसी समय में आज हम जी रहे हैं। राजा ने आदमी की मूरत के बारे में जो रहस्यमयी सपना देखा था, उसका मतलब भविष्यवक्ता दानिय्येल ने समझाया। (दानिय्येल 2:36-43) मूर्ति चार हिस्सों में बँटी थी जो अलग-अलग धातुओं की बनी थी और ये विश्वशक्तियों को सूचित करती हैं। सबसे पहला हिस्सा सिर (यानी बाबुल का साम्राज्य) था और सबसे आखिरी हिस्सा पैर और पैरों की उँगलियाँ (यानी आज की सरकारें) हैं। इस मूर्ति के ज़रिए दर्शायी गयी सारी विश्वशक्तियाँ आ चुकी हैं। अब हम आखिरी विश्वशक्ति के समय में जी रहे हैं यानी आज उस मूर्ति के पैरों की उँगलियों से दर्शाया गया राज्य चल रहा है। इसके बाद और किसी विश्वशक्ति के आने का ज़िक्र नहीं किया गया।e
17. राज्य प्रचार का काम किस तरह एक और सबूत देता है कि हम अंत के दिनों में जी रहे हैं?
17 पाँचवाँ सबूत यह है कि आज यीशु के कहे अनुसार अंत के समय में पूरी धरती पर प्रचार काम किया जा रहा है। यीशु ने कहा था: “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।” (मत्ती 24:14) यह भविष्यवाणी आज हमारे दिनों में बहुत ही बड़े पैमाने पर पूरी हो रही है। माना कि अब भी कुछ ऐसे इलाके हैं जहाँ प्रचार करना बाकी है, मगर हो सकता है कि जब यहोवा का वक्त आए तब वहाँ भी प्रचार काम के लिए द्वार खुल जाए। (1 कुरिन्थियों 16:9) लेकिन बाइबल में ऐसा कहीं नहीं बताया गया कि यहोवा तब तक अंत नहीं लाएगा जब तक कि धरती के हर इंसान को व्यक्तिगत रूप से गवाही नहीं दे दी जाती। बल्कि प्रचार काम तो तब तक जारी रहेगा जब तक कि यहोवा बस नहीं कह देता। और तब अंत आएगा।—मत्ती 10:23 से तुलना कीजिए।
18. “भारी क्लेश” के शुरू होने के समय कुछ अभिषिक्त लोगों के बारे में हम क्या कह सकते हैं और क्यों?
18 छठा सबूत यह है कि आज अभिषिक्त मसीहियों की संख्या कम होती जा रही है, हालाँकि ज़ाहिर होता है कि बड़े क्लेश शुरू होने के वक्त कुछ अभिषिक्त मसीही इस पृथ्वी पर ज़रूर होंगे। बचे हुए अभिषिक्त जनों में से बहुत-से लोग काफी बूढ़े हो चुके हैं और जैसे-जैसे साल गुज़र रहे हैं उनकी संख्या और भी कम होती जा रही है। मगर जब यीशु ने भारी क्लेश की बात कही थी तब उसने यह भी कहा था: “यदि वे दिन घटाए न जाते, तो कोई प्राणी न बचता; परन्तु चुने हुओं के कारण वे दिन घटाए जाएंगे।” (मत्ती 24:21, 22) तो हम कह सकते हैं कि जब भारी क्लेश शुरू होगा, तब कुछ ‘चुने हुए’ अभिषिक्त इस धरती पर ज़रूर मौजूद होंगे।f
आगे क्या होनेवाला है?
19, 20. यही वह वक्त क्यों है कि हम बाट जोहते हुए जागते रहें और सावधान रहें?
19 हमारा भविष्य कैसा होगा? अभी तो और सनसनीखेज़ घटनाओं का होना बाकी है। पौलुस ने आगाह किया, “जैसा रात को चोर आता है, वैसा ही प्रभु का दिन आनेवाला है।” दुनिया के विद्वानों के बारे में पौलुस ने कहा, “जब लोग कहते होंगे, कि कुशल है, और कुछ भय नहीं, तो उन पर एकाएक विनाश आ पड़ेगा।” इसलिए पौलुस अपनी पत्री पढ़नेवाले हर किसी को उकसाते हुए कहता है: “हम औरों की नाईं सोते न रहें, पर जागते और सावधान रहें।” (1 थिस्सलुनीकियों 5:2, 3, 6) यह सच है कि जो लोग शांति और सुरक्षा के लिए दुनिया के संगठनों पर भरोसा रखते हैं वे दरअसल सच्चाई से अपनी आँखें मूंदते हैं। ऐसे लोग वाकई गहरी नींद सो रहे हैं!
20 जी हाँ, इस दुनिया पर विपत्ति एकाएक ही आ पड़ेगी और यह नाश हो जाएगी। इसलिए जागते रहिए और यहोवा के दिन की बाट जोहते रहिए। खुद परमेश्वर यहोवा ने हबक्कूक से कहा था: “उस में देर न होगी”! बेशक यही वह वक्त है कि यहोवा के दिन की बाट जोहते हुए, हम जागते रहें और सावधान रहें!
[फुटनोट]
a दासों को शायद लगे कि स्वामी को आने में देर हो रही है मगर स्वामी ने तो अपने दासों को नहीं बताया था कि वह ठीक कब आएगा। ना तो स्वामी को अपने आने-जाने के बारे में दासों को कोई खबर देने की ज़रूरत थी, और ना ही उसे अपने दासों को कोई लेखा देना था कि उसे आने में देर क्यों हो गई।
b इस भविष्यवाणी के बारे में अधिक जानकारी के लिए ज्ञान जो अनंत जीवन की ओर ले जाता है किताब का 11वाँ अध्याय पढ़िए। इसे वॉच टावर बाइबल एन्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित किया गया है।
c अधिक जानकारी के लिए प्रकाशितवाक्य—इसकी शानदार पूर्ति जल्द ही! (अंग्रेज़ी) का पेज 180-6 देखिए जिसे वॉचटावर बाइबल एन्ड ट्रैक्ट द्वारा प्रकाशित किया गया है।
d प्रकाशितवाक्य—इसकी शानदार पूर्ति जल्द ही! पेज 251-4 देखिए।
e दानिय्येल की भविष्यवाणी पर ध्यान दें! किताब का अध्याय 4 देखिए जिसे वॉच टावर बाइबल एन्ड ट्रैक्ट सोसाइटी ने प्रकाशित किया है।
f भेड़ और बकरी के दृष्टांत में बताया गया है कि मनुष्य का पुत्र भारी क्लेश के दौरान अपनी महिमा में आएगा और न्याय के सिंहासन पर बैठेगा। यीशु इस आधार पर लोगों का न्याय करेगा कि उन्होंने उसके अभिषिक्त भाइयों का साथ दिया या नहीं। अगर न्याय से बहुत पहले ही उसके सभी भाई पृथ्वी छोड़ चुके होते तो इस आधार पर यीशु के न्याय करने का कोई मतलब नहीं होगा।—मत्ती 25:31-46.
क्या आपको याद है?
• बाइबल में दिए गए कौन-से उदाहरण जागते रहने में हमारी मदद कर सकते हैं?
• यीशु ने जागते रहने की ज़रूरत के बारे में कौन-सा दृष्टांत दिया?
• किन छः सबूतों से हम कह सकते हैं कि हम अंत के दिनों में जी रहे हैं?
[पेज 9 पर तसवीरें]
ए. एच. मैकमिलन ने करीब साठ सालों तक वफादारी से यहोवा की सेवा की
[पेज 10 पर तसवीर]
यीशु ने अपने चेलों की तुलना उन दासों से की जो जागते रहे थे