बाइबल की किताब नंबर 36—सपन्याह
लेखक: सपन्याह
लिखने की जगह: यहूदा
लिखना पूरा हुआ: सा.यु.पू. 648 से पहले
राजा योशिय्याह की हुकूमत (सा.यु.पू. 659-629) के शुरूआती सालों में, यहूदा के कोने-कोने में बाल की उपासना ज़ोर-शोर से हो रही थी और ‘मूर्तियों के पुजारी’ (NHT) इस अशुद्ध उपासना में सबसे आगे थे। ऐसे में, यरूशलेम के लोगों ने जब भविष्यवक्ता सपन्याह का संदेश सुना, तो वे ज़रूर भौचक्के रह गए होंगे। हालाँकि सपन्याह शायद राजा हिजकिय्याह का वंशज था और यहूदा के शाही घराने से था, फिर भी वह अपने ही देश के हालात की कड़ी निंदा करने से पीछे नहीं हटा। (सप. 1:1, 4) उसने परमेश्वर के लोगों को विनाश का संदेश सुनाया क्योंकि वे बगावती बन गए थे। अब सिर्फ यहोवा ही उन्हें शुद्ध उपासना की तरफ लौट आने में मदद दे सकता था और उन्हें आशीष दे सकता था ताकि ‘पृथ्वी की सारी जातियों के बीच उनकी कीर्त्ति और प्रशंसा’ फैले। (3:20) सपन्याह ने बताया कि सिर्फ परमेश्वर की मदद से ही एक इंसान ‘यहोवा के क्रोध के दिन में शरण पा’ सकता है। (2:3) इसलिए, उसका नाम सेफानयाह (इब्रानी) कितना सही है, जिसका मतलब है, “यहोवा ने छिपाए रखा (सुरक्षित रखा) है”!
2 सपन्याह के संदेश सुनाने का अच्छा नतीजा निकला। आठ साल की उम्र में राजगद्दी सँभालनेवाले योशिय्याह ने अपनी हुकूमत के 12वें साल में ‘यहूदा और यरूशलेम को शुद्ध करना’ शुरू किया। उसने झूठी उपासना को जड़ से उखाड़ फेंका, “यहोवा के भवन” की मरम्मत करवायी और दोबारा फसह का पर्व मनाना शुरू किया। (2 इति., अध्या. 34, 35) मगर योशिय्याह के किए ये सुधार ज़्यादा दिन तक नहीं टिके, क्योंकि उसके बाद उसके तीन बेटों और एक पोते ने हुकूमत की और उन्होंने वही किया जो “यहोवा की दृष्टि में बुरा” था। (2 इति. 36:1-12, NW) इससे सपन्याह की भविष्यवाणी पूरी हुई: ‘मैं हाकिमों और राजकुमारों को और जो अपने स्वामी के घर को उपद्रव और छल से भर देते हैं, उनको दण्ड दूंगा।’—सप. 1:8, 9.
3 ऊपर बतायी बातों से ऐसा लगता है कि ‘सपन्याह के पास यहोवा का वचन’ योशिय्याह के राज के 12वें साल, यानी सा.यु.पू. 648 से पहले पहुँचा था। पहली आयत से यह समझ में आता है कि सपन्याह यहूदा में भविष्यवाणी कर रहा था। इसके अलावा, उसने यरूशलेम के इलाकों और वहाँ के लोगों के दस्तूरों के बारे में जो बारीकी से जानकारी दी, उससे पता चलता है कि वह यहूदा का रहनेवाला था। सपन्याह की किताब में दो संदेश दिए गए हैं, एक है विनाश का और दूसरा है तसल्ली का। किताब का ज़्यादातर हिस्सा यहोवा के आनेवाले दिन के बारे में बताता है। हालाँकि वह दिन बहुत भयानक होगा, मगर यह किताब भविष्यवाणी करती है कि यहोवा उन नम्र लोगों को बचाएगा जो ‘यहोवा के नाम की शरण लेते हैं।’—1:1, 7-18; 3:12.
4 भविष्यवाणी की इस किताब की सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता। यरूशलेम के विनाश के बारे में सपन्याह ने जो भविष्यवाणी की थी, वह 40 से भी ज़्यादा साल बाद पूरी हुई, जब सा.यु.पू. 607 में यरूशलेम को खाक में मिला दिया गया। इस बात को न सिर्फ इतिहास पुख्ता करता है बल्कि खुद बाइबल भी सबूत पेश करती है कि सपन्याह की इस भविष्यवाणी की एक-एक बात पूरी हुई। यरूशलेम के विनाश के कुछ समय बाद, यिर्मयाह ने विलापगीत की किताब लिखी। इसमें उसने विनाश की दिल दहलानेवाली उन घटनाओं का आँखों देखा हाल बयान किया जो उस वक्त उसके मन में ताज़ी थीं। सपन्याह और विलापगीत की कई आयतों की तुलना करने पर यह साबित हो जाता है कि वाकई सपन्याह की किताब “परमेश्वर की प्रेरणा” से रची गयी है। मिसाल के लिए, सपन्याह अपने लोगों को पश्चाताप करने का बढ़ावा देता है “इस से पहिले कि . . . यहोवा का भड़कता हुआ क्रोध [उन] पर आ पड़े,” जबकि यिर्मयाह उस घटना के पूरा होने की बात करता है: “यहोवा ने . . . अपना कोप बहुत ही भड़काया।” (सप. 2:2; विला. 4:11) सपन्याह भविष्यवाणी करता है कि यहोवा ‘मनुष्यों को संकट में डालेगा और वे अन्धों की नाईं चलेंगे, उनका लोहू धूलि के समान फेंक दिया जाएगा।’ (सप. 1:17) यिर्मयाह इस बात के पूरा होने का सबूत देता है: “वे अब सड़कों में अन्धे सरीखे मारे मारे फिरते हैं और मानो लोहू की छींटों से यहां तक अशुद्ध हैं।”—विला. 4:14. सपन्याह 1:13—विलापगीत 5:2; सपन्याह 2:8, 10—विलापगीत 1:9, 16 और विला 3:61 की भी तुलना कीजिए।
5 उसी तरह इतिहास यह भी बताता है कि विधर्मी देश मोआब, अम्मोन, अश्शूर और उसकी राजधानी नीनवे का भी नाश हुआ था, ठीक जैसे सपन्याह ने परमेश्वर के कहने पर भविष्यवाणी की थी। जिस तरह नीनवे के विनाश के बारे में नहूम ने भविष्यवाणी की थी (नहू. 1:1; 2:10), उसी तरह सपन्याह ने ऐलान किया था कि यहोवा “नीनवे को उजाड़ कर जंगल के समान निर्जल कर देगा।” (सप. 2:13) नीनवे को इस कदर उजाड़ दिया गया कि इस घटना को बीते 200 साल भी नहीं हुए थे कि इतिहासकार हिरॉडटस ने टिग्रिस नदी का ज़िक्र करते वक्त लिखा कि इस “नदी पर एक ज़माने में नीनवे नगर बसा करता था।”a करीब सा.यु. 150 में यूनानी लेखक लूशन ने लिखा कि “आज इसका दूर-दूर तक कोई अता-पता नहीं।”b द न्यू वेस्टमिन्स्टर डिक्शनरी ऑफ द बाइबल (1970) के पेज 669 के मुताबिक हमलावर फौजों को “टिग्रिस में अचानक ज्वार उठने की वजह से बहुत फायदा हुआ क्योंकि इससे नगर की दीवारों का ज़्यादातर हिस्सा ढह गया और नगर में सुरक्षा नाम की कोई चीज़ नहीं रही। . . . नीनवे इस कदर तबाह हो गया कि यूनानी और रोमी ज़माने के लोग इसे करीब-करीब एक काल्पनिक जगह मानने लगे। लेकिन हकीकत में नगर का एक हिस्सा मलबे के ढेर में दफन पड़ा था।” इसी किताब के पेज 627 से पता चलता है कि भविष्यवाणी के मुताबिक मोआब का भी नाश हुआ: “नबूकदनेस्सर ने मोआबियों को अपने कब्ज़े में कर लिया।” जोसीफस रिपोर्ट करता है कि अम्मोनियों पर भी कब्ज़ा किया गया।c आगे चलकर मोआबी और अम्मोनी जाति का वजूद ही मिट गया।
6 यहूदी हमेशा से सपन्याह किताब को ईश्वर-प्रेरित किताबों का हिस्सा मानते आए हैं। यह बात गौरतलब है कि इसमें यहोवा के नाम से सुनायी गयी भविष्यवाणियाँ पूरी हुई हैं, जिससे सच्चे परमेश्वर के तौर पर यहोवा की बड़ाई हुई है।
क्यों फायदेमंद है
10 औरों के बिलकुल उलट, राजा योशिय्याह ने सपन्याह की चेतावनी के संदेश पर ध्यान दिया और इससे उसे बहुत फायदा हुआ। उसने धर्म के मामले में सुधार करने का एक बड़ा अभियान चलाया। इस दौरान मूसा की व्यवस्था की पुस्तक भी मिली, जो उस वक्त खो गयी थी जब यहोवा का भवन बिगड़ी हुई हालत में था। जब योशिय्याह को इस पुस्तक से यहोवा की आज्ञा तोड़ने के अंजामों के बारे में पढ़कर सुनाया गया, तो वह बहुत दुःखी हुआ। इस पुस्तक में दर्ज़ मूसा की इन बातों से पुख्ता हुआ कि सपन्याह जो भविष्यवाणी कर रहा था, वह एकदम सच्ची है। योशिय्याह ने खुद को परमेश्वर के आगे नम्र किया। नतीजा, यहोवा ने उससे वादा किया कि भविष्यवाणी में बताया विनाश उसके जीते-जी नहीं आएगा। (व्यव., अध्या. 28-30; 2 राजा 22:8-20) यहूदा देश को नाश होने से बख्श दिया गया! मगर ज़्यादा समय तक नहीं, क्योंकि योशिय्याह के बेटे उसकी अच्छी मिसाल पर नहीं चले। लेकिन जहाँ तक योशिय्याह और उसके लोगों की बात थी, उन्होंने ‘सपन्याह के पास यहोवा का जो वचन पहुंचा था’ उस पर ध्यान दिया और ऐसा करना उनके लिए बहुत ही फायदेमंद साबित हुआ।—सप. 1:1.
11 परमेश्वर के सबसे महान भविष्यवक्ता, मसीह यीशु ने अपने मशहूर पहाड़ी उपदेश में सपन्याह की सलाह से मिलती-जुलती बातें कहीं और इस तरह पुख्ता किया कि सपन्याह एक सच्चा नबी था। वह सलाह सपन्याह के अध्याय 2 की आयत 3 में दर्ज़ है: ‘हे पृथ्वी के सब नम्र लोगो, यहोवा को ढूंढ़ते रहो; धर्म को ढूंढ़ो, नम्रता को ढूंढ़ो।’ उसी तरह, यीशु ने कहा: “इसलिये पहिले तुम उसके राज्य और धर्म की खोज करो।” (मत्ती 6:33) जो लोग पहले परमेश्वर के राज्य की खोज करते हैं, उन्हें बेरुखी की भावना दिखाने से खबरदार रहना चाहिए जिसके बारे में सपन्याह ने चेतावनी दी थी। उसने बताया कि उसके दिनों में लोग ऐसी ही भावना दिखाते हुए “यहोवा के पीछे चलने से लौट गए [थे], और जिन्हों ने न तो यहोवा को ढूंढ़ा, और न उसकी खोज में लगे” और जो “मन में कहते [थे] कि यहोवा न तो भला करेगा और न बुरा।” (सप. 1:6, 12) इब्रानियों को लिखी अपनी पत्री में, पौलुस भी आनेवाले न्याय के दिन की बात करता है और पीछे न हटने की सलाह देता है। वह आगे कहता है: “हम हटनेवाले नहीं, कि नाश हो जाएं पर विश्वास करनेवाले हैं, कि प्राणों को बचाएं।” (इब्रा. 10:30, 37-39) सपन्याह हार माननेवालों या एहसानफरामोशों से नहीं, बल्कि जो विश्वास, नम्रता और सच्चे दिल से यहोवा को ढूँढ़ते हैं, उनसे यह बात कहता है: “सम्भव है तुम यहोवा के क्रोध के दिन में शरण पाओ।” सपन्याह ऐसा क्यों कहता है कि “सम्भव है”? क्योंकि एक इंसान के जीने के तौर-तरीके से तय होगा कि आखिर में उसे उद्धार मिलेगा या नहीं। (मत्ती 24:13) यह हमारे लिए एक चितौनी भी है कि हम परमेश्वर की दया का नाजायज़ फायदा न उठाएँ। सपन्याह की भविष्यवाणी शक की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ती कि यहोवा का दिन उन लोगों पर एकाएक आ पड़ेगा जो उस दिन की बाट नहीं जोह रहे होंगे।—सप. 2:3; 1:14, 15; 3:8.
12 तो ज़ाहिर है, सपन्याह का संदेश यहोवा के खिलाफ पाप करनेवालों को विनाश की चेतावनी देता है, जबकि पश्चाताप करके ‘यहोवा को ढूंढ़नेवालों’ को शानदार आशीषों की उम्मीद देता है। पश्चाताप करनेवाले ये लोग हिम्मत रख सकते हैं, क्योंकि सपन्याह कहता है: “इस्राएल का राजा यहोवा तेरे बीच में है।” सिय्योन के लिए यह डरने का या हाथ ढीले करने का वक्त नहीं बल्कि यहोवा पर भरोसा रखने का वक्त है। “वह उद्धार करने में पराक्रमी है; वह तेरे कारण आनन्द से मगन होगा, वह अपने प्रेम के मारे चुपका रहेगा; फिर ऊंचे स्वर से गाता हुआ तेरे कारण मगन होगा।” वे लोग भी खुश हो सकते हैं, जो ‘पहले परमेश्वर के राज्य की खोज’ करते हैं और उससे प्यार-भरी हिफाज़त और हमेशा की आशीषें पाने की आस लगाते हैं।—3:15-17.
[फुटनोट]
a मैक्लिंटॉक और स्ट्रॉन्ग की साइक्लोपीडिया, सन् 1981 में दोबारा छापी गयी, सातवाँ भाग, पेज 112.
b लूशन, ए. एम. हारमन का अनुवाद, सन् 1968, दूसरा भाग, पेज 443.
c जूइश एन्टिक्विटीस्, X, 181, 182 (9, 7)।